कचूर के फायदे, उपयोग और नुकसान
2022-09-15 00:00:00
सदियों से कई ऐसी जड़ी- बूटियों का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। इन्हीं जड़ी-बूटियों में कचूर भी शामिल है। दिखने में कचूर हल्दी या अदरक की तरह होती है। लेकिन यह एक खास औषधीय पौधा है, जो दर्द, सूजन, अल्सर को दूर करने के साथ-साथ कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में भी मदद करता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के चिकित्सा प्रयोजनों के लिए किया जाता है।
कचूर में सूजन विरोधी, फंगस रोधी, जीवाणुरोधी, पीड़ारोधी, रोगाणुरोधी और ऑक्सीकरण रोधी गुण पाए जाते हैं। इन सभी गुणों की वजह से स्वास्थ्य में लाभ हेतु कचूर का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
क्या होता है कचूर?
कचूर ज़िंजीबरेसी (Zingiberaceae) परिवार से संबंध रखने वाला एक औषधीय पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम कुरूकुमा जेडोरिआ (Curcuma zedoaria) है। आमतौर पर यह हल्दी की प्रजाति है और इसका रंग सफेद होता है। इसलिए इसे सफेद हल्दी भी कहा जाता है।इसका तना जमीन पर उगता हैं। इस पौधे की लंबाई करीब 3-4 फुट होती है। इसके पत्ते चिकने और मध्य भाग से गुलाबी रंग के होते हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। यह जड़ी-बूटी स्वाद में कड़वी होती है।
कचूर के फायदे-
- सूजन कम करने में सहायक-सूजन की समस्या के लिए कचूर एक प्राकृतिक उपचारक है। इस पर किए गए एक शोध के मुताबिक, कचूर में इथेनॉलिक एक्सट्रेक्ट नामक यौगिक पाया जाता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों को प्रदर्शित करता है, जो सूजन के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इसके लिए इसके पत्ते या कंद को पीसकर प्रभावित अंगों पर लगाने से लाभ मिलता है।
- घाव को ठीक करने में कारगर-कचूर के प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और जीवाणुरोधी गुण इसे एक प्रभावी कीटाणुनाशक बनाते हैं। साथ ही इस पर किए गए एक रिसर्च से पता चलता है कि कचूर में वाउन्ड हीलिंग गुण मौजूद है, जो घाव भरने में सहायक होता है। इसलिए प्रभावित भाग पर कचूर पाउडर लगाने से घाव तेजी से ठीक होता है।
- अल्सर को ठीक करने में कारगर-कचूर अल्सर को ठीक करने में प्रभावी होता है। क्योंकि इसमें एंटी अल्सर गुण मौजूद है, जो इस समस्या को बढ़ने से रोकता है। इसके लिए कचूर के कंद से बने काढ़े से कुल्ला करें। इस प्रकार यह अल्सर से पीड़ित रोगियों के लिए लाभप्रद है।
- वायरल संबंधी समस्याओं के लिए-कचूर वायरल संबंधी समस्याओं के लिए कारगर साबित होता है। दरअसल यह एंटी माइक्रोबियल और एंटी-वायरल गुणों से समृद्ध है। यह दोनों गुण वायरल संक्रमण को रोकने या उससे बचाने में मदद करते हैं।
- रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर-यदि कोई व्यक्ति लगातार बीमार रहता है तो इसकी मुख्य वजह उसकी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) भी हो सकती है। ऐसे में कचूर के काढ़े का सेवन करना बेहद लाभप्रद होता है। दरअसल कचूर में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव पाए जाते हैं। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद औषधीय गुण रक्त को साफ करने और स्वस्थ्य कोशिकाओं को बढ़ाने का काम करते है। साथ ही यह शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया एवं फ्री रेडिकल्स से लड़ता है। जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- जोड़ों के दर्द में उपयोगी-कचूर में एंटी-एनाल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। जो दर्द और सूजन से आराम दिलाने में कारगर है। खासतौर पर जो लोग जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं। उनके लिए कचूर का उपयोग करना काफी फायदेमंद रहता है। इसके लिए कचूर के प्रकन्द और फिटकरी को एक साथ पीसकर जोड़ों लगाएं।
- मधुमेह से बचाव के लिए-मधुमेह से बचाव और उससे राहत दिलाने में कचूर एक प्रभावी औषधि है। इस विषय पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कचूर में एंटी हाइपरलिपिडेमिक प्रभाव मौजूद होते हैं। यह प्रभाव रक्त शर्करा के स्तर को कम करते हैं। इस प्रकार यह मधुमेह से बचाव और रोकथाम के लिए उपयोगी है।
कचूर के उपयोग-
- कचूर के चूर्ण को दूध या गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन किया जाता है।
- कचूर को मसाले के रूप में अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
- इससे बने चूर्ण को शहद के साथ सेवन किया जाता है।
- इसके कंद से बने काढ़े का उपयोग गरारे या सेवन के रूप में किया जाता है।
- इसकी पत्तियों से बने पेस्ट को लेप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- कचूर से बने तेल को त्वचा पर लगाया जाता है।
कचूर के नुकसान-
- इसके सेवन से कुछ लोगों को पेट की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- चूंकि कचूर रक्त शर्करा के स्तर को कम करती है। इसलिए लो ब्लड शुगर के मरीजों को इसके उपयोग से परहेज करना चाहिए।
- इसका सेवन महिलाएं पीरियड्स के दौरान न करें।
- कचूर का सेवन गर्भावस्था के समय न करें। क्योंकि इससे मिसकैरेज होने का खतरा बढ़ जाता है।
कहां पाया जाता है कचूर?
सामान्यतः कचूर पूर्वोत्तर भारत एवं दक्षिण समुद्रतटवर्ती प्रदेशों में स्वतः उगने वाला पौधा है। लेकिन चीन, श्रीलंका और भारत में इसकी खेती भी की जाती है।