पाठा के फायदे, उपयोग और नुकसान
2022-08-11 00:00:00
पाठा को लघुपाठा या अंग्रेजी में वेलवेट लीफ (Velvet leaf) के नाम से जाना जाता है। यह एक पारंपरिक भारतीय औषधि है जिसकी जड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता रहा है। आमतौर पर यह वनस्पति सड़कों या खेतों के किनारे झाडियों में स्वतः उगती है। लेकिन जानकारी के अभाव के कारण हम और आप इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं। आयुर्वेदिक तौर पर इस जड़ी-बूटी का उपयोग पारंपरिक रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार और मासिक धर्म में ऐंठन से राहत के लिए उपयोग किया जाता है। क्योंकि इसकी जड़ों में मांसपेशियों को आराम देने वाले गुण मौजूद हैं। भारत के कुछ इलाकों में पाठा की पत्तियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है।
पाठा क्या है?
पाठा एक बारहमासी झाड़ीनुमा लता होती है। इसकी लता पेड़ों के सहारे ऊपर चढ़ती है या जमीन पर फैलती है। इसकी लताएं पत्तियों से भरी होती है। इसके पत्ते देखने में गिलोय की तरह सुगंधित और नुकीले होते हैं। इसकी जड़ें बेलनाकार, घुमावदार 1-1.5 सेंटीमीटर व्यास वाली और हल्के भूरे या पीले रंग के होते हैं। इसके फूल छोटे सफेद रंग और फल मकोय के आकार की तरह होते हैं। इसके फलों का रंग लाल होता है। सामान्यतः पाठा भारत के सभी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2000 मीटर ऊंचाई तक देखने को मिलते हैं। इसका वानस्पतिक नाम सिसैम्पीलैस पेरिरा (Cissampelos pareira) है।
आयुर्वेद में पाठा का महत्व
आयुर्वेद में पाठा अपने डाइजेस्टिव (पाचन), एंटी पाइरेटिक (ज्वरनाशक) और वूंड हीलिंग (व्रण रोपण) गुणों के लिए जाना जाता है। इन्हीं गुणों के कारण, इसका उपयोग मूत्र पथ के विकार, सूजन, दस्त, मासिक धर्म में ऐंठन, महामारी और त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में इसे त्रिदोषी कहा गया है क्योंकि यह तीनों दोषों यानी कफ, पित्त और वात को संतुलित करता है।
पाठा के फायदे
- त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिएपाठा त्वचा की समस्याओं जैसे मुंहासों के इलाज के लिए कारगर उपाय है। क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह गुण शरीर में हार्मोनल असंतुलन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जो मुंहासों का मुख्य कारण माने जाते हैं। इसके अलावा पाठा त्वचा पर होने वाली सूजन और लालिमा को भी कम करता है।
- दस्त के इलाज में सहायकपाठा में डायरिया रोधी गुण पाए जाते हैं जो दस्त के इलाज में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त पाठा के रोगाणुरोधी गुण बृहदान्त्र में बैक्टीरिया के विकास को रोकते हैं। साथ ही शरीर के होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
- उच्च रक्तचाप को कम करने में मददगारपाठा एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हैं जो उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए उपयोगी होते हैं। क्योंकि यह रक्त वाहिकाओं को फैलाने और उसे आराम पहुंचाने में मदद करता है। जिससे शरीर में सामान्य रक्त प्रवाह होता है।
- मासिक धर्म के दर्द में उपयोगीपाठा मासिक धर्म के दर्द से राहत दिलाने में उपयोगी है। दरअसल पाठा में एनाल्जेसिक गुण पाया जाता है जो दर्द को कम करने का काम करता है।
- मलेरिया के इलाज में सहायकपाठा में मलेरिया रोधी गुण होते हैं जो मलेरिया को रोकने या इलाज करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा पाठा शरीर में मलेरिया पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवों के विकास को रोकने में मदद करते हैं।
- दांत दर्द कम करने में कारगरपाठा में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और एनाल्जेसिक गुण दांत दर्द के इलाज के लिए उपयोगी होते हैं।
पाठा के उपयोग
- पाठा की पत्तियों और जड़ों केलेप का इस्तमाल विभिन्न त्वचा विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
- आयुर्वेद में नस्य कर्म (पंचकर्म चिकित्सा) में पाठा के चूर्ण या रस का उपयोग किया जाता है।
- पाठा की जड़ और पत्तियों का लेप सूजन को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- खुजली और घावों के इलाज के लिए इसके पत्ते का उपयोग दवा बनाने में किया जाता है।
- इस जड़ी बूटी का उपयोग कुत्ते के काटने और सांप के जहर के इलाज के लिए भी किया जाता है।
पाठा के नुकसान
- पाठा को एक शक्तिशाली प्रजनन-विरोधी एजेंट (प्राकृतिक गर्भनिरोधक) कहा जाता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं और गर्भ धारण करने की कोशिश कर रही महिलाओं को किसी भी रूप में इस जड़ी बूटी का सेवन करने से पहले किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेनी चाहिए।
- पाठा में हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव होता है। इसलिए निम्न रक्त शर्करा से ग्रस्त रोगियों को इसका सेवन नहीं करनी चाहिए।
- यदि कोई पहले से किसी भी प्रकार की दवा ले रहा है या उसे कोई पुरानी बीमारी है, तो इस स्थिति में पाठा का सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
यह कहां पाया जाता है?
पाठा एशिया, पूर्वी अफ्रीका, अमेरिका और भारत सहित दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत में मुख्य रूप से यह पश्चिम बंगाल, बिहार, नागपुर, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र (विशेष कर मराठवाड़ा के जंगलों में) और तमिलनाडु में देखने को मिलता है।