तगर के अद्भुत फायदे और उपयोग
2023-03-17 16:18:22
आमतौर पर तगर को भारतीय वेलेरियन या सुगंधबाला कहा जाता है। यह एक बारहमासी जड़ी बूटी है, जो 40-45 सेमी तक की ऊंचाई तक बढ़ती है। इसकी पत्तियां 2.5-7 सेमी लंबी होती हैं। इसके फूल एकलिंगी और सफेद या हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। सामान्य रूप से तगर को दो किस्मों में वर्गीकृत किया गया है अर्थात निघंटस तगर और पिंडा तगर। इसका वानस्पतिक नाम वेलेरियाना वालिची है और यह वैलेरियानेसी परिवार से संबंधित है।
तगर का आयुर्वेदिक महत्व-
आयुर्वेद में तगर अपने औषधीय गुणों के कारण जाना जाता है। इसमें मुख्य रूप से विषघ्न (एंटी-टॉक्सिन), वेदनास्थापन (एनाल्जेसिक), अक्षेपहर (एंटीकॉन्वेलसेंट), दीपन (पेटाइज़र), हृदय (कार्डियो टॉनिक), यकृत उत्तेजक (हेप्टोप्रोटेक्टिव), श्वाशहर (ब्रोन्कोडायलेटर्स), कृमि नाशक (एंटीलेप्रोटिक), ज्वर हर (एंटी पाइरेटिक), अपस्मार रोग (मिर्गी), मूत्रजनन (मूत्रवर्धक) और चाक्षुसिया (आंखों के लिए फायदेमंद) आदि गुण शामिल हैं। इसके अलावा तगर एक अद्भुत प्राकृतिक शामक है जिसे नींद में सुधार, मन को शांत करने और रक्तचाप को कम करने के लिए औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
तगर के फायदे-
चिंता कम करने में उपयोगी-
तगर चिंता को कम करने में उपयोगी है क्योंकि इसका मन पर शांत प्रभाव पड़ता है। साथ ही चिंताजनक गुणों के कारण शरीर को आराम करने में मदद करता है। यह विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक है और सीधे तंत्रिका तंत्र पर कार्य करता है।
नींद संबंधी विकारों को दूर करने में सहायक-
तगर एक शामक के रूप में कार्य करता है, जो अनिद्रा के इलाज में सहायक है। यह मस्तिष्क में कुछ रसायनों की गतिविधि को कम करता है जो मस्तिष्क की गतिविधि को शांत करने में मदद करता है। इस प्रकार यह नींद को प्रेरित करने में सहायक होता है।
मिर्गी के लक्षणों का इलाज करने में कारगर-
तगर अपने एंटीकॉन्वेलसेंट गुणों के कारण मिर्गी के लक्षणों का इलाज करने में मदद करता है। तगर में पाए जाने वाले विशेष घटक अनैच्छिक मांसपेशियों की ऐंठन को दूर करने का काम करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद विशिष्ट रसायन दौरे की गंभीरता और उनकी आवृति को भी कम करते हैं। इस प्रकार यह एंटीकॉन्वेलसेंट यौगिक मिर्गी को रोकने में सहायक होते हैं।
जोड़ों के दर्द और सूजन में लाभप्रद-
तगर अपने एनाल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों के कारण जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है। यह तनाव पूर्ण मांसपेशियों को आराम प्रदान करता है।
डिसुरिया में उपयोगी-
तगर में मौजूद मूत्रजनन (मूत्रवर्धक) गुण डिसुरिया के इलाज में कारगर होते हैं।
तगर के उपयोग-
- घावों और संक्रमणों के उपचार के लिए तगर की जड़ों का ठंडा अर्क का सेवन किया जाता है।
- घावों के इलाज के लिए तगर की जड़ों से बना लेप लगाया जाता है।
- जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए तगर की जड़ का लेप प्रभावित अंगों पर लगाया जाता है।
- शरीर की कमजोरी को कम करने के लिए इसके जड़ों का अर्क 1-2 सप्ताह तक टॉनिक के रूप में नियमित रूप से दिया जाता है।
- पौधे की जड़ों का काढ़ा पक्षाघात, आक्षेप, हिस्टीरिया और गठिया के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।
- तगर की जड़ का पेस्ट कीड़े के काटने और बिच्छू के डंक से प्रभावित क्षेत्रों पर लगाया जाता है।
- अस्थमा और खांसी के इलाज के लिए इसके जड़ों से बने काढ़े का सेवन किया जाता है।
- बुखार के इलाज के लिए तगर की जड़ों का ठंडा अर्क या काढ़ा दिया जाता है।
तगर के दुष्प्रभाव और सावधानियां-
- इसका अधिक सेवन पेट संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
- इसका अधिक सेवन मुंह के सूखेपन का कारण बन सकता है।
- हृदय विकारों में तगर का सेवन करने से बचें।
- एंटीकॉन्वेलेंट्स के साथ तगर का सेवन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, यदि आप पहले से कोई एंटीकॉन्वेलेंट्स दवा ले रहें हैं तो इसे लेते समय डॉक्टर से परामर्श लें।
- गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान तगर का उपयोग चिकित्सक के परामर्श अनुसार ही करें।
यह कहां पाया जाता है?
तगर पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान और दक्षिण पश्चिम चीन में पाया जाता है। भारत में यह मुख्य रूप से मेघालय और समशीतोष्ण हिमालय में पाया जाता है जो 1500 से 3600 मीटर तक होता है।