जानें, अगरु और इसके फायदों के बारे में
2022-05-24 18:25:48
अगरु एक उत्तम दर्जे की जड़ी-बूटी है। इसके इस्तेमाल से कई रोग ठीक होते हैं। भारत में प्राचीन काल से अगरु का उपयोग होता आया है। अगरु को ‘अगर' भी कहा जाता है। इसकी लकड़ी से गोंद जैसी राल निकलती है। जो अगरबत्ती बनाने और सुगंधित उबटन के रूप में शरीर पर मली जाती है।
अगरु क्या है?
अगरु दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रों में पाई जाने वाली औषधि है। इसको कई जगह पर “ईगल वुड और अगरकाष्ठ” के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान समय में जिस प्रकार लिखने के लिए कागज की आवश्यकता पड़ती है। उसी प्रकार पुराने समय में लिखने के लिए अगरु पेड़ की छाल की आवश्यता पड़ती थी। आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी चिकित्सा पद्धति में भी अगरु का प्रसंग देखने को मिलता है। इसकी पत्तियां पतली होती हैं, जिनकी लंबाई करीब तीन इंच होती हैं। कई संस्कृतियों में अगरकाष्ठ का उपयोग बुरी ऊर्जाओं को दूर करने के लिए किया जाता है। तो कई मामलों में इसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है।
अगरु क्यों है इतना खास?
अगरु का पेड़ सदा हरा-भरा रहता है। कृष्णागुरु, काष्ठागुरु, दाहागुरु, मंगल्यागुरु आदि अगरु की ही प्रजातियां हैं। जिसमें कृष्णागुरु को सबसे अच्छा माना जाता है। 'जर्नल ऑफ हर्बल मेडिसिन' द्वारा पब्लिश रिसर्च के अनुसार, अगरु की पत्तियों में फेनोलिक एसिड, क्रोमोसोमंस, एल्केन्स, स्टेरॉयड, जेन्थोनॉइड्स, बेंजोफेनोन्स, टेरपेनॉइड्स, फ्लेवोनॉइड्स, और फैटी एसिड जैसे तत्व पाए जाते हैं। जो दर्द और सूजन को कम करने, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीकैंसर, एंटीट्यूमर और रोगाणुरोधी के तौर पर काफी प्रभावी सिद्ध होते हैं।
अगरु की छाल और पत्तियों का इस्तेमाल कई लाभों के लिए जाता है। इसकी पत्तियों को चाय के रूप में उपचार के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रजाति के पेड़ों की पत्तियों में स्क्वैलीन और हेक्साडेकोनिक एसिड जैसे तत्व पाए जाते हैं। जो अपने ऐंटिफंगल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए प्रचलित हैं।
अगरु के फायदे-
भूख बढ़ाने में मददगार-
अगरु यकृत (लिवर) और पेट पर सकारात्मक प्रभाव डालकर भूख बढ़ाने का काम करता है। यह लिवर के कार्यों में सुधार कर उपापचय को उत्तेजित करता है। अगरु गैस्ट्रिक डिस्चार्ज को बेहतर बनाकर भूख को बढ़ाता है।
मुंह की बदबू और खराब सांस को दूर करने में सहायक-
मुंह की बदबू को दूर करने के लिए अगरु का चूर्ण सबसे अच्छी औषधि है। इसके रोगाणुरोधी गुण मसूड़ों की बिमारियों को कम कर मुंह की दुर्गन्ध का उपचार करते हैं। इसके अलावा अगरु एक सुगन्धित औषधि भी है, जो ख़राब सांस की समस्या को भी कम करती है। मुंह से बदू आने पर अगरु की डंडी से दातून से भी अच्छे परिणाम मिलते हैं।
दस्त में फायदेमंद-
अगरकाष्ठ में दस्त रोकने और एंटीमाइक्रोबियल (रोगाणुरोधी) गुण पाए जाते हैं। जो दस्त की बारंबारता को कम करते हैं और इस संक्रमण के लिए रिस्पांसिबल रोगाणुओं (Microbes) को बढ़ने से रोकते हैं।
आंतों की गैस, सूजन और उदर के फैलाव को कम करने में सक्षम-
ईगल वुड आंतों की गैस को बाहर करने में सहायता करता है। आंतों की गैस, सूजन और उदर के फैलाव को कम करने के लिए अगरु, जीरा और अजवाइन के मिश्रण का सेवन किया जाता है। इस मिश्रण से गैस के कारण पेट में होने वाली ऐंठन और उसका दर्द कम होता है।
बुखार में असरदार-
अगरु ठण्ड और थकान को कम करने का काम करता है। यह बुखार में लगने वाली प्यास को कम करता है। बुखार आने पर इसका काढ़ा पीने से बुखार में आराम मिलता है। इसके सेवन से शरीर मजबूत बनाता है।
बुखार के बाद की थकान और दुर्बलता को दूर करने में सहायक-
अगरु बुखार के बाद शरीर में होने वाली थकान और दुर्बलता को दूर करता है। इसके लिए अगरु को अश्वगंधा, शतावरी और गिलोय के मिश्रण के साथ प्रयोग में लाया जाता है। यह मिश्रण थकान, आलस, कमजोरी और शरीर के दर्द को कम कर पहले की भांति मजबूत और शक्तिशाली बनाने का काम करता है।
श्वसनीशोध लाभदायक-
अगरु अग्रो ब्रोन्कियल (श्वसनीशोध) ट्यूबों की सूजन और जलन को कम करता है। यह गाढ़े बलगम को पतला करके फेफड़ों की साफ़ करने का काम करता है। यह पुराने श्वसनीशोध (Bronchitis) के उपचार में सहायता करता है।
दमा में फायदेमंद-
अगरु पाउडर, शहद और अगरु तेल की कुछ बूंदों को पान के पत्ते के साथ लेने से दमा के उपचार में सहायता मिलती है।
हिचकी रोकने में कारगर-
दिन में चार से पांच बार अगरु चूर्ण को शहद के साथ लेने से लगातार आने वाली हिचकी की समस्या कम होती हैं।
अधिक प्यास की समस्या में लाभप्रद-
अगरकाष्ठ पाउडर को इलायची बीज के पाउडर के साथ लेने से अधिक प्यास की समस्या में लाभ मिलता है।
बवासीर में फायदेमंद-
अगरु और मिश्री के चूर्ण को एक साथ लेने से बवासीर के दर्द और उपचार में आराम मिलता है।
एनरिसिस (बिस्तर गीला करना) में लाभदायक-
अगरु को एक तंत्रिका टॉनिक माना जाता है। यह तंत्रिकाओं और मूत्राशय पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह यूरिन के प्रवाह को नियंत्रित कर रात को बार-बार पेशाब आने की स्थिति में मूत्राशय को मजबूत बनाने का काम करता है। यह ज्यादा पेशाब आने और बिस्तर को गीला करने की समस्या का भी उपचार करता है।
सुन्न और झुनझुनी की समस्या में फायदेमंद-
आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में वात संतुलन में गड़बड़ी होने के कारण असामान्य चुभन और झुनझुनी पैदा होने लगती है। ऐसे में अगरु का सेवन वात दोष पर सकारात्मक प्रभाव डालकर झुनझुनी और सुन्नपन को कम करता है। इसके लिए अगरु चूर्ण और सोंठ को त्रिफला काढ़े के साथ लेने की सलाह दी जाती है।
खुजली और एलर्जी में कारगर-
आयुर्वेद के अनुसार, अगरु छाल के चूर्ण को गाय के घी के साथ सेवन करने से एलर्जी और खुजली कम होती है। अगरु पित्ती (Hives) से जुड़े फोड़े-फुंसी को भी कम करने का काम करता है।
कहां पाया जाता है अगरु?
भारत में अगरु मेघालय, उत्तर-पूर्वी हिमालय, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा के पर्वतीय क्षेत्र और पश्चिमी बंगाल में करीब 500 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। असम में अगरु की खेती प्राचीन काल से ही होती आई है। इसके अलावा अगुरु का पेड़ फिलीपीन्स और मलेशिया में भी देखने को मिलता है।