जानें, क्रोमोथेरेपी (कलर थेरेपी) का महत्व और फायदे
2022-05-24 18:23:13
क्रोमोथेरेपी में मुख्य रूप से रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। क्रोमो शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है रंग। क्रोमोथेरेपी का मतलब है, रंगों के माध्यम से उपचार करना। इसे कलर थेरेपी, लाइट थेरेपी, कोलोरोलॉजी के नामों से भी जाना जाता है। वैसे तो कलर थेरेपी हजारों वर्षों से चलन में है, लेकिन पिछले कुछ समय में लोगों का झुकाव इस ओर अधिक बढ़ा है। इस थेरेपी की मदद से अवसाद, एक्जिमा, उच्च रक्तचाप, मासिक धर्म की समस्याएं आदि का इलाज सफलतापूर्वक किया जाता है।
क्या होती है कलर थेरेपी?
रंगों से बीमारियों का इलाज करना ही रंग चिकित्सा(color therapy) कहलाता है। यह वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति(Alternative medicine) का रूप है। यह एक ऐसा इलाज है, जिसमें दवा का प्रयोग नहीं किया जाता है। कलर थेरेपी शारीरिक ऊर्जा को संतुलन करने में मदद करती है।चिंता, तनाव, और भावनाओं से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में यह चिकित्सा काफी लोकप्रिय है। कलर थेरेपी के अनुसार मनुष्यों में कई विकार और रोग, शरीर के ऊर्जा केंद्रों या चक्रों के असंतुलन के कारण होते हैं। प्रत्येक रंग शरीर के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ा होता है। जो विभिन्न ऊर्जा केंद्रों के प्राकृतिक उपचार गुण होते हैं। इसलिए शरीर की प्रत्येक कोशिका को प्रकाश ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जब रंग प्रकाश के माध्यम से शरीर में सही तरीके से प्रवेश करते हैं, तो वह शरीर के उपचार गुणों को सक्रिय करते हैं। जिससे हीलिंग प्रोसेस काफी तेज होता है।
आयुर्वेद में कलर थेरेपी का महत्व-
आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर के चारों ओर एक प्रकार का भूमंडल होता है। जो शरीर के अंदर होने वाली जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनने वाला एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। रंगों में एक प्रकार की कंपन ऊर्जा पाई जाती है, जो कई रोगों के इलाज के लिए इस चुंबकीय क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया करती है। यह कंपन ऊर्जा शरीर के अंदर ऊर्जा- संचलन को पुनर्जीवित करने के लिए जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएं करती है। आज कलर थेरेपी भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रोगियों को ठीक करने के लिए इलाज का एक लोकप्रिय विकल्प बनती जा रही है।
शरीर के चक्र और उनका रंगों से संबंध
लोगों के शरीर में अलग-अलग चक्र होते हैं। जिन्हें ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। कलर थेरेपी में इस्तेमाल होने वाले रंग शरीर के इन चक्रों को प्रभावित करते हैं। जिससे शरीर को राहत मिलती है। भारतीय दर्शन के अनुसार शरीर में सात आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र है। जिसका सम्बन्ध रंगों से माना जाता है। जोकि निम्नलिखित हैं-
मूल चक्र (Root chakra)
इसे आधार चक्र भी कहा जाता है। यह मानव शरीर का शुरुआती चक्र है। इसका संबंध लाल रंग से है।
स्वाधिष्ठान चक्र (sacral chakra)-
नाभि से 2 या 3 इंच नीचे स्थित त्रिक चक्र को नारंगी रंग द्वारा दर्शाया जाता है। इस चक्र को प्रजनन, गुर्दे, अधिवृक्क (Adrenal) और आनंद के साथ जोड़ा जाता है। अंग्रेजी में इसे Sacral चक्र के नाम से जानते हैं।
सूर्य प्रतान चक्र(solar plexus)-
इस चक्र का स्थान नाभि से ऊपर और दिल के पास माना जाता है। इसका संबंध पीले रंग से बताया जाता है। इस चक्र को मुख्य रूप से पाचन अंगों से जोड़ा जाता है। यह सकारात्मक और कल्याण से जुड़ा हुआ है।
हृदय चक्र (heart chakra)-
इसका स्थान दिल के पास होता है। इस चक्र के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह दिल, फेफड़ों और इम्यूनिटी सिस्टम से जुड़ा होता है। यह चक्र हरे रंग से संबंध रखता है।
विशुद्धि चक्र (throat chakra)-
यह चक्र गले में स्थित होता है। इसका संबंध नीले रंग से माना जाता है। यह थाइरोइड से जुड़ा हुआ माना जाता है।
अजना चक्र (Ajna chakra) या आज्ञा चक्र-
इसका स्थान दोनों भौह के बीच माना जाता है। इसका संबंध गहरे नीले रंग (indigo) से होता है। इस चक्र को तीसरी आंखे के नाम से भी जानते हैं। यह पीनियल और पिट्यूटरी ग्रंथियों से संबंधित है। जो हमारी नींद और ज्ञान से जुड़ी होती है।
सहस्रार चक्र (crown chakra)-
इसका स्थान सिर में होता है। इसका संबंध बैगनी रंग से माना जाता है। इसको दिमाग, सपने और आध्यात्मिकता से जुड़ा माना जाता है।
कलर थेरेपी के रंग और उनके फायदे
कलर थेरेपी में कुछ खास रंगों को ही शामिल किया जाता है। जिनका अपना एक अलग महत्व और ढेर सारे फायदे होते हैं।
लाल रंग-
लाल रंग नारंगी की तुलना में अधिक उत्तेजक माना जाता है। इसका उपयोग ज्यादातर शारीरिक उपचार के लिए किया जाता है। क्योंकि इसके भावनात्मक प्रभाव चरम पर होते हैं। कलर थेरेपी में लाल रंग ब्लड सेल्स का निर्माण करने और मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए किया जाता है।
पीला रंग-
इस थेरेपी में पीला कलर बुद्धि और समझ को बढ़ाने का काम करता है। इस रंग का प्रयोग मुख्य रूप से खांसी, जुकाम, पीलिया, सूजन, तंत्रिका तंत्र की कमजोरी और लीवर संबंधित बीमारियों के उपचार में किया जाता है।
नीला रंग-
नीला रंग सत्य, आशा, विस्तार, स्वच्छता व न्याय का प्रतीक है। कलर थेरेपी में नीले रंग का इस्तेमाल पित्त, बुखार, स्त्री रोग, पेट में जलन, गर्मी, महत्वपूर्ण बल की कमी आदि समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त नीला एक ठंडा रंग है, इसका उपयोग आपको अधिक शांत और आराम करने में मदद कर सकता है। पर गहरा नीला रंग अकेलेपन को बढ़ाता है।
बैंगनी रंग-
बैंगनी रंग लाल व नीले रंग के मिश्रण से बनता है। इस रंग का प्रयोग यश, प्रसिद्धि व उत्साह प्रदान करने में किया जाता है। यह रंग रक्त शोधन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। दर्द, सूजन, बुखार व कार्य क्षमता की वृद्धि के लिए इस रंग का प्रयोग किया जाता है। बैंगनी रंग सुस्त मस्तिष्क को उत्सव व आशा प्रदान करता है।
हरा रंग-
हरा रंग सभी रंगों में सबसे संतुलित माना जाता है। कलर थेरेपी में भी इसको सबसे सुरक्षित रंग मानते हैं। जब मनुष्य उदास और निराश महसूस करता है तो हरा रंग आपकी मनोदशा में सुधार करता हैं। इसलिए चिकित्सा में हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इस थेरेपी के लिए शुद्ध हरे रंग का होना जरूरी है। क्योंकि हल्का हरा आपको चिंता में डाल सकता है।
नारंगी रंग-
इस रंग का इस्तेमाल त्वचा की चमक बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस रंग को साहस और ऊर्जा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इंडिगो रंग-
इस रंग को सेहत के लिहाज से काफी अच्छा माना जाता है। यह रंग आंख और नाक संबंधित रोगों के इलाज में कारगर सिद्ध होता है।
सफेद रंग-
यदि किसी भी व्यक्ति की रूचि किसी कलर में न हो तो वह इस चिकित्सा के लिए सफेद रंग का चयन कर सकता है। सफेद रंग हर बीमारी को जल्दी ठीक करने में सहायता करता है। सफेद रंग नेगेटिव सोच को दूर करने में सहायता करता है।