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वत्सनाभ के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

वत्सनाभ के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

2022-07-30 00:00:00

वत्सनाभ एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। यह बच्छनाभ या ऐकोनाइट परिवार से सम्बंधित है। इसलिए इसे भारतीय एकोनाइट (Indian aconite) के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में वत्सनाभ की जड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। अपने औषधीय गुणों के कारण वत्सनाभ आयुर्वेदिक चिकित्सा में उत्तम दर्जे की औषधि मानी जाती है।

वत्सनाभ स्वाद में तीखा, कड़वा और कसैला होता है। इसकी कंदमूल यानी जड़ का उपयोग औषधि के तौर पर उपयोग किया जाता है। यह जड़ी-बूटी सर्दियों में अधिक गुणकारी होती है। वत्सनाभ को अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसके एकोनिटम फेरॉक्स, मीठा विष, मीठा तेलिया, बचनाग, वचनाग, कठ विश, वासनोभी, विश, विचनग इत्यादि नाम हैं। लेकिन ज्यादातर आम बोल-चाल की भाषा में इसे मीठा तेलिया के नाम से पुकारा जाता है।

आयुर्वेद में वत्सनाभ का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार, वत्सनाभ का कायाकल्प प्रभाव होता है, जो त्रिदोष, विशेष रूप से वात और कफ को संतुलित करता है। यह पाचन में सुधार करता है। यह सर्दी से राहत दिलाने का काम करता है। साथ ही शरीर में पोषण प्रदान करके ताकत बढ़ाता है। आमतौर पर वत्सनाभ का इस्तमाल खांसी, बुखार, अस्थमा, अपच, एनोरेक्सिया, स्प्लीन (तिल्ली रोग), और गठिया के आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है।

वत्सनाभ के कुछ उपचारक गुण निम्नलिखित हैं

  • एंटी पिरेटिक (ज्वरनाशक)।
  • डायफोरेटिक (पसीना कम करने वाला)।
  • एनोडाइन (पीड़ा-नाशक)।
  • एंटी इंफ्लेमेंटरी (सूजनरोधी)।
  • आम पाचक (डिटॉक्सिफायर)।
  • म्यूकोलाईटिक।
  • मूत्रवधक (ड्यूरेटिक)।

वत्सनाभ के फायदे

  • बवासीर के इलाज में सहायकवत्सनाभ अपने त्रिदोष संतुलन गुणों के कारण बवासीर के प्रबंधन में सहायक होता है। इसके दीपन और पाचन गुण पाचन तंत्र को स्वस्थ्य बनाए रखने का कामकरते है। इसके अलावा वत्सनाभ अपने वात संतुलन गुणों के कारण दर्द और सूजन को कम करने में भी मददगार है।
  • दस्त रोकने में कारगरडायरिया, जिसे आयुर्वेद में अतिसार के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति को दिन में कई बार पतले दस्त का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर यह स्थिति वात दोष के असंतुलन के कारण होती है, जो पाचन अग्नि के काम में बाधा उत्पन्न करती है। साथ ही यह अग्निमांड्य (कमजोर पाचन अग्नि) का कारण बनती है। इसके अलावा दस्त बनने का अन्य कारक दूषित भोजन, गंदा पानी, विषाक्त पदार्थ (अमा) और मानसिक तनाव होते हैं। वत्सनाभ अपने वात संतुलन गुणों के कारण दस्त के इलाज में मदद करता है। इसके दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पचन (पाचन) गुणों के कारण यह पाचक अग्नि को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
  • पाचन में सुधार करता हैअपच का मुख्य कारण अग्निमांड्य (कमजोर पाचक अग्नि) होता है। वत्सनाभ में मौजूद पित्त, दीपन और पचन गुण अग्नि (पाचन अग्नि) को बढ़ाकर पाचन में सुधार करने में मदद करते हैं।
  • अस्थमा को ठीक करता हैअस्थमा होने का मुख्य दोष वात और कफ हैं। वत्सनाभ बलगम के निर्माण और संचय को रोकता है। इस प्रकार यह अपने वात और कफ के संतुलन करने वाले गुणों के कारण अस्थमा के लक्षणों का इलाज करता है।
  • मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायकवत्सनाभ मधुमेह के उपचार के लिए बेहद प्रभावी औषधि है। क्योंकि इसमें एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होता है। यह आंतों से कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को धीमा करता है। जिससे रक्त शर्करा और इंसुलिन के स्तर को संतुलित रखने में मदद मिलती है।

वत्सनाभ के अन्य लाभ

  • वत्सनाभ रतौंधी, नेत्र संक्रमण, ओटाइटिस और दृष्टि के उपचार में उपयोगी है।
  • यह सिरदर्द और साइटिका को दूर करने के लिए एक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • यह त्रिदोष, विशेष रूप से वात और कफ को संतुलित करता है।
  • एनोरेक्सिया, तिल्ली विकार के उपचार में सहायक होता है।
  • यह बिच्छू और सांप के काटने से होने वाले जहर को कम करता है।
  • यह अन्य औषधियों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है।

वत्सनाभ का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां

  • वत्सनाभ एक जहरीली जड़ी बूटी है। इसलिए इसे केवल चिकित्सकीय देखरेख में ही सेवन करें।
  • वत्सनाभ का सेवन अम्लीय और नमकीन खाद्य पदार्थों के साथ करने पर एलर्जी का कारण बन सकता है। इसलिए, वत्सनाभ का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरुर लेनी चाहिए।
  • वत्सनाभ स्वाभाविक रूप से विषैला होता है। जिसके कारण यह भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान इसके सेवन से बचें।
  • एनोरेक्सिया, तिल्ली विकार के उपचार में सहायक होता है।

वत्सनाभ के दुष्प्रभाव

इसका सेवन अधिक मात्रा में करने से कई दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। जो निम्नलिखित हैं

  • मतली
  • उल्टी
  • थकान
  • सिरदर्द
  • सिर का चक्कर
  • शुष्कता
  • धुंधली दृष्टि
  • पेरेस्टेसिया (हाथ, पैर या शरीर के किसी अन्य हिस्सों में जलन या चुभन महसूस होना)।

यह कहां पाया जाता है?

वत्सनाभ मूल रूप से पूर्वी हिमालय, मध्य नेपाल से उत्तरी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश से असम तक पाई जाती है। यह 2100-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। इसके फूलों की अवधि अगस्त से अक्टूबर तक होती है।

Disclaimer

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