डायरिया के कारण, लक्षण और घरेलू उपाय
2022-05-24 14:59:57
सर्दी-जुकाम, बुखार की तरह डायरिया भी एक प्रकार का मौसमी विकार है। इसका ज्यादातर प्रकोप गर्मी और बरसात के मौसम में देखने को मिलता है। जिसका अहम कारण गंदगी है। यह समस्या ज्यादातर छोटे बच्चों, नवजात शिशुओं और बुजुर्गो में होती है। डायरिया होने पर बच्चों एवं बुजुर्गों को दस्त और उल्टी की शिकायत होने लगती है। जिसकी वजह से शारीरिक कमजोरी होने लगती है। इसलिए समय रहते इसका इलाज न कराने पर यह गंभीर समस्या साबित हो सकती है।
डायरिया पाचन तंत्र संबंधित रोग है। जिसमे मरीज को दस्त यानी लूज मोशन शुरू हो जाते हैं। सामान्यतः यह दस्त दो से तीन दिन तक रहते हैं। कुछ मामलो में मरीज जल्दी भी ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ मामलो में मरीज जल्दी ठीक नहीं हो पाते। डायरिया मुख्य रूप से जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है। यह बैक्टीरिया वायरस अथवा पेरासाइट्स के कारण भी हो सकता है। इसके अलावा डायरिया सूक्ष्म जीव, कुछ दवाओं और अन्य रोगों के संक्रमण से भी होता है।
डायरिया के प्रकार-
डायरिया के मुख्य रूप से चार प्रकार होते हैं। जो निम्नलिखित हैं:
एक्यूट डायरिया (Acute diarrhoea)-
यह डायरिया का सामान्य रूप है। जो कई घंटों या कुछ दिनों तक रह सकता है। जिसमें बेहद लूज और पानी जैसे पतले दस्त होते हैं। आमतौर पर डायरिया का घरेलू उपचार किया जा सकता है। इसके लिए मरीज को पर्याप्त तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से यह समस्या खुद-ब-खुद कम हो जाती है।
लगातार होने वाला डायरिया (Persistent diarrhoea)-
डायरिया का यह प्रकार कम से कम दो सप्ताह तक रह सकता है।
दस्त में खून (Acute Bloody diarrhoea)-
इससे पीड़ित लोगों में पानी जैसे दस्त के साथ खून भी आता है। इसे पेचिश भी कहते है।
क्रोनिक डायरिया (Chronic diarrhoea)-
इस तरह का डायरिया दो से चार सप्ताह तक व्यक्ति को परेशान कर सकता है।
क्या होते हैं डायरिया के लक्षण?
वैसे डायरिया होने के कई लक्षण होते हैं। लेकिन इनके कारणों के आधार पर यह एक या इससे अधिक लक्षण देखने को मिल सकते हैं। आइए जानतें हैं इन्हीं लक्षणों के बारे में;
- लूज मोशन यानी पतला दस्त होना।
- पेट में मरोड़ होना।
- जी मिचलाना या उल्टी होना।
- शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) होना।
- बुखार आना।
- मल में खून आना।
यदि शिशुओं में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसे नजरअंदाज न करें। बल्कि डॉक्टर्स से तुरंत संपर्क करें-
- बार-बार दस्त के साथ उल्टी होना।
- कम पेशाब आना।
- बार-बार मुंह का सूख जाना।
- मितली होना।
- बुखार होना।
- मल में खून या मवाद आना।
- काला मल आना।
- चिड़चिड़ापन होना।
- सुस्ती महसूस करना।
- अधिक नींद आना।
- धंसी हुई आंखें आदि।
क्या होते हैं डायरिया होने के कारण?
दूषित भोजन या पानी-
डायरिया का मुख्य कारण गंदगी यानी दूषित भोजन और पानी का अंतर्ग्रहण होता है। जिसके माध्यम से शरीर में साल्मोनेला या एस्चेरिचिया नामक हानिकारक बैक्टेरिया प्रवेश कर जाते हैं। यह हानिकारक जीवाणु गैस्ट्रो-आंत्रशोथ का कारण बनते हैं। जिससे दस्त, कब्ज और कई पेट संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। इसके अलावा छोटे बच्चो में यह बैक्टेरिया (नोरोवायरस या रोटोवायरस) एवं पैरासाइट (गिअर्डिया इन्टेस्टनालिस) के कारण भी हो सकता है।
आंतों में इंफेक्शन (Intestinal Infection)-
आंतों में इंफेक्शन होने से भी कई बार डायरिया की दिक्कत शुरू हो जाती है। आंतों में होने वाली इस समस्या को गैस्ट्रोएंटेरिटिस (Gastroenteritis) कहते हैं। यह बीमारी वायरस, बैक्टीरिया, फूड प्वॉइजनिंग जैसे कारणों से होती है।
पेट में अल्सर (Stomach Ulcer)-
पेट में अल्सर होने से कुछ लोगों को मल त्यागने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वहीं, कुछ लोगों में यह अल्सर डायरिया (दस्त) का कारण भी बन जाते हैं।
इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (Inflammatory Bowel Disease)-
जब डाइजेस्टिव ट्रैक्ट (पाचन मार्ग) में क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन होता है तो इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (पेट दर्द रोग) होता है। जिसके कारण डायरिया की दिक्कत हो सकती है। कई बार इन परेशानियों की वजह से मल में मवाज (पस) या श्लेष्मा (म्यूकस) भी दिखता है।
- डायरिया होने के अन्य कारण-
- पेट में संक्रमण फैलने पर।
- वायरल इन्फेक्शन होने पर।
- शरीर में पानी की कमी (निर्जलीकरण) होने पर।
- व्यक्ति की पाचन शक्ति कमजोर होने पर।
- स्विमिंग करते वक्त दूषित पानी पेट में चले जाने पर।
- ज्यादा गर्म या नमी वाले मौसम में रहने पर।
- शिशुओं के दांत निकलने पर।
- दवाइयों के रिएक्शन होने पर।
- एस्पिरिन और एंटी इंफ्लेमेटरी दवाओं अधिक का उपयोग करने पर।
- अधपका हुआ और कच्चे मीट का सेवन करने पर।
डायरिया के समय बरतें यह सावधानियां-
- साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- वॉशरूम यूज करने के बाद हैंडवॉश ज़रूर करें।
- बारिश के मौसम में उबले हुए पानी का इस्तेमाल करें।
- खाना खाने से पहले हाथों को साबुन से अच्छी तरह से धोएं।
- भोजन को सही तरीके से स्टोर करें।
- प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें।
- प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी पिएं।
- बच्चों को समय से इसका वैक्सीनेशन करवाएं।
- अपने खान-पान के प्रति विशेष ध्यान दें।
- चाय, कॉफी, धूम्रपान आदि का सेवन कम करें।
- शराब के सेवन से बचें।
- तले-भुने एवं जंक फूड के सेवन से बचें।
क्या हैं डायरिया के घरेलू उपाय?
- डायरिया की शुरुआती दौर को खानपान के बदलाव से ठीक किया जा सकता है।
- आयुर्वेद में डायरिया होने पर चावल और मूंग दाल का पानी पीने की सलाह दी जाती है। वहीं, छोटे बच्चों को डायरिया होने पर दाल का पानी पिलाने की सलाह दी जाती है।
- भोजन में हरी सब्जियां, दाल, फल के रस आदि पोषक चीजों का प्रयोग करें।
- शहद को गुनगुने पानी के साथ लेने पर लूज मोशन यानी डायरिया की समस्या में आराम मिलता है।
- इसके अतिरिक्त शहद के साथ ओट्स, कॉर्न फ्लैक्स, हर्बल टी आदि का सेवन कर सकते हैं।
- डायरिया में नारियल का पानी पीना अच्छा विकल्प है। क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट और गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव गतिविधि होती हैं। जो गैस एवं पेट संबंधित विकारों में आराम पहुंचाती हैं। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करती हैं।
- आयुर्वेद में पेट संबंधी विकारों के इलाज में छाछ औषधि की तरह काम करती है। क्योंकि इसमें प्रोबेटिक गुण पाए जाते हैं। जो पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने का काम करते हैं।
- हल्दी को छाछ या दही में डालकर सेवन करने से लूज मोशन यानी डायरिया की समस्यां में लाभ मिलता है।
- सेब का सिरका डायरिया या लूज मोशन को रोकने में सहायक होता है। क्योकि इसमें प्राकृतिक एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं।
- पुदीना तेल और पुदीने की चाय पेट संबंधी विकारों में फायदेमंद होती है। इसका प्रयोग लंबे समय से दस्त, गैस, कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए किया जाता रहा है।
- कच्चे केले का सेवन भी डायरिया को रोकने में कारगर साबित होता हैं। क्योंकि केले में पेक्टिन नामक तत्व पाया जाता है। इसके अलावा कच्चे केले को उबालकर उसमें थोड़ा नींबू का रस और नमक मिलाकर सेवन करना भी औषधि की तरह काम करता हैं।
- कैमोमाइल चाय डायरिया को रोकने में औषधि का काम करती हैं। क्योंकि इसमें एंटी-डायरियल और एंटीस्पैस्मोडिक गुण पाए जाते हैं।
कब जाएं डॉक्टर के पास?
- शिशु एवं छोटे बच्चों को 24 घंटे में छह से ज्यादा बार लूज मोशन होने पर।
- लगातार उल्टी होने पर।
- कमजोरी होने पर।
- लगातार वजन कम होने पर।
- मल में खून आने पर।
- पेट में लगातार दर्द बने रहने पर।
- डिहाइड्रेशन होने पर।
- तेज बुखार या चक्कर आने पर।