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मोशन सिकनेस के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 24 July, 2023

मोशन सिकनेस के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

यात्रा के दौरान अक्सर लोगों को मतली और बेचैनी जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इसी परेशानी को मेडिकल भाषा में मोशन सिकनेस के नाम से जाना जाता है। इसमें उल्टी और बेचैनी के साथ-साथ पसीना आना, चक्कर आना और असहजता महसूस होती है। आमतौर पर इसका मुख्य कारण कार, ट्रेन, हवाई जहाज और विशेष रूप से नावों से यात्रा करना होता है। ऐसे में इससे जुड़ी जानकारी का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि इससे यात्रा के दौरान होने वाली समस्याओं को कुछ हद तक कम करने में मदद मिलती है। ज्यादातर यह समस्या 5-12 वर्ष के बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों में अधिक देखने को मिलती है। इसी उद्देश्य से इस लेख के माध्यम से मोशन सिकनेस के बारे में विस्तार पूर्वक अध्ययन करते हैं।

 

क्या होता है मोशन सिकनेस?

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि मोशन सिकनेस अर्थात गति की स्थिति में होने वाली शारीरिक असहजता (मुख्य रूप से उल्टी) होती है। सामान्यतः यह किसी दीर्घकालिक समस्या का कारण नहीं होती है। लेकिन इसके लक्षण व्यक्ति को परेशानी में डाल सकते हैं। खासकर जब आप लंबी यात्रा कर रहें होते हो। अधिकांश मामलों में शरीर उन स्थितियों के अनुरूप स्वयं को ढालने लगता है। जिससे यह समस्या उत्पन्न हो रही है। परिणामस्वरूप मोशन सिकनेस के लक्षणों में सुधार होने लगता है।

 

मोशन सिकनेस के लक्षण-

यूं तो मोशन सिकनेस का सबसे आम लक्षण मतली और बेचैनी होता है। इसके अतिरिक्त अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं। जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • किसी भी प्रकार की असहजता महसूस करना।
  • भोजन करने में रुचि न होना।
  • बार-बार जम्हाई आना।
  • मुंह में अधिक लार का स्राव होना।
  • खट्टी डकार आना।
  • तेज सिरदर्द होना।
  • धुंधलापन दिखाई देना।
  • शरीर को स्थिर न कर पाना।
  • चक्कर आना।
  • नींद आना।
  • लगातार उल्टी होने जैसा महसूस करना।
  • अधिक पसीना होना।
  • ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस करना।
  • गंभीर मामलों में चलने में असमर्थता होना।

मोशन सिकनेस क्यों होती है?

जब संवेदी तंत्र (आंतरिक कान, आंखें, मांसपेशियों व संयुक्त संवेदी रिसेप्टर्स )से मस्तिष्क को परस्पर विरोधी संदेश प्राप्त होते हैं। इस स्थिति में मोशन सिकनेस की समस्या उत्पन्न होती है और इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। आमतौर पर यह समस्या सफर के दौरान होता है। लेकिन यह सफर के बिना भी उत्पन्न हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति यात्रा में न होने पर भी यात्रा में होने का अहसास कर रहें हो या किसी चीज को चलते हुए देख रहें हो। इसके बाद भी उसको महसूस नहीं कर पा रहें हो। ऐसे में मस्तिष्क कई मिले जुले संकेतों का निर्माण कर लेता है। जिससे मोशन सिकनेस के संकेत और लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।

 

मोशन सिकनेस होने के कारण-

वैसे तो मोशन सिकनेस होने का कोई एक ज्ञात कारण नहीं होता है। इसके पीछे कई कारण होते हैं, जिसमें शामिल कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित है:

  • ऊंचाई वाले झूला झूलना।
  • पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करना।
  • यात्रा के दौरान अधिक समय तक एक ही मुद्रा में बैठे रहना।
  • यात्रा के दौरान अधिक भोजन करना।
  • बसों या हवाई जहाज में सफर करना।
  • यात्रा के दौरान खाली पेट रहना।
  • सफर करते समय अधिक पानी पीना।
  • यात्रा करने से पहले या दौरान मसालेदार और वसा युक्त भोजन का सेवन करना।

मोशन सिकनेस के जोखिम कारक-

  • वर्टिगो (चक्कर आना) मोशन सिकनेस का एक जोखिम कारक है।
  • वेस्टिबुलर संबंधी समस्या होने पर।
  • अंदरूनी कान को प्रभावित करने वाली बीमारी।
  • माइग्रेन की समस्या।
  • गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव।
  • मासिक धर्म को भी मोशन सिकनेस का जोखिम कारक माना जाता है।

मोशन सिकनेस होने पर करें बचाव-

  • यात्रा करते समय उल्टी करने वाले लोगों से बात करने या उनको देखने से बचें।
  • सफर के दौरान वसा युक्त और मसालेदार भोजन का सेवन न करें।
  • धूम्रपान और अन्य निकोटिन पदार्थों के सेवन से बचें।
  • यात्रा के दौरान किताब पढ़ने से बचें।
  • बसों में पीछे की ओर मुंह करके न बैठें।
  • यात्रा करते समय धीमी और गहरी सांस लें।
  • हवाई जहाज में सफर के दौरान खिड़की के पास वाले सीट पर बैठकर बाहर की ओर न देखें।

मोशन सिकनेस से बचने के कुछ घरेलू उपाय-

कच्चा अदरक-

मोशन सिकनेस से आराम दिलाने में अदरक का सेवन अच्छा उपाय हैं। एनसीबीआई के वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, अदरक मोशन सिकनेस से बचाने के लिए एक प्राकृतिक उपचारक है। क्योंकि इसके सेवन करने से गैस्ट्रिक डिसरिथमिया यानी पेट में होने वाले अजीब से अहसास और प्लाज्मा वैसोप्रेसिन (हार्मोन) की वृद्धि को रोकने में मदद मिलती है। इस प्रकार यह मोशन सिकनेस को कम करता है। इसके लिए यात्रा के दौरान अदरक के छोटे टुकड़ों को चबाना फायदेमंद होता है।

 

पुदीना-

पुदीना से बने कैंडिड या चाय के उपयोग से मोशन सिकनेस के लक्षणों को कम किया जा सकता है। इस संबंध में किए गए एक शोध के अनुसार पुदीने में एंटी एमेटिक प्रभाव मौजूद है, जो उल्टी और मतली के अहसास को कम करता है। इसके अलावा पेपरमिंट ऑयल की कुछ बूंदों को रुई में डालकर सूंघने से लाभ मिलता है।

 

नींबू है फायदेमंद-

मोशन सिकनेस से बचने या इसके लक्षणों को दूर करने के लिए नींबू का सेवन बेहद फायदेमंद होता है। यात्रा के दौरान इसका इस्तेमाल करने से उल्टी या मतली की समस्या कुछ हद तक कम होती है। इसके लिए एक गिलास पानी में नींबू रस मिलाकर सेवन करें। ऐसा करने से मोशन सिकनेस की समस्या दूर होती है। इसके अतिरिक्त नींबू को सूंघने से भी लाभ मिलता है।

 

अचार का करें सेवन-

अचार या इसका रस मोशन सिकनेस के लक्षणों से बचाता है। दरअसल, मोशन सिकनेस के कारण जी मिचलना, उल्टी होना, बेचैनी आदि लक्षण दिखते हैं। जिसकी वजह से शरीर में इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बिगड़ सकता है। परिणामस्वरूप समस्याएं और जटिल होती जाती है। ऐसे में अचार का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि यह शरीर के इलेक्ट्रोलाइट लेवल को नियंत्रित करता है।

 

कैमोमाइल टी-

कैमोमाइल टी का उपयोग भी मोशन सिकनेस के लिए अच्छा माना गया है। दरअसल यह डाइजेस्टिव रिलैक्सेंट के रूप में कार्य करता है। जिसके कारण पेट में होने वाले अजीब से अहसास एवं मोशन सिकनेस की अन्य समस्या को दूर करने में मदद मिलती है।

 

मुलेठी की जड़-

मुलेठी की जड़ मोशन सिकनेस के उपचार के लिए प्रभावी होती है। इससे जुड़ी शोध के अनुसार, मुलेठी की जड़ पेट की कई समस्याओं जैसे मतली और उल्टी को कम करती है। यह सभी समस्याएं मोशन सिकनेस के लक्षणों में शामिल हैं। ऐसे में मुलेठी की जड़ से बने काढ़े का सेवन मोशन सिकनेस के लिए अच्छा उपाय माना जाता है।

 

Written By- Jyoti Ojha

Approved By - Dr. Meghna Swami (BAMS)

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घरघराहट क्या है? जानिए इसके कारण, लक्षण और उपचार

Posted 23 August, 2022

घरघराहट क्या है? जानिए इसके कारण, लक्षण और उपचार

घरघराहट सांस लेते समय तेज सीटी या कर्कश आवाज होती है। ऐसी स्थिति तब होती है वायुमार्ग आंशिक रूप से अवरुद्ध हो जाते हैं। आमतौर पर सर्दी, ब्रोंकाइटिस या एलर्जी के कारण इसे अवरुद्ध किया जा सकता है। घरघराहट की आवाज निकलना किसी जटिल समस्या का संकेत होता है। यह निमोनिया, अस्थमा और हृदय गति रुकने का भी एक लक्षण है। इसलिए इसे बिना नजर अंदाज किए तुरंत जांच और इलाज करवाएं।

शिशुओं में घरघराहट की समस्या होना आम बात है क्योंकि 25% से 30% शिशुओं को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा वयस्कों में, धूम्रपान करने वालों और वातस्फीति (फेफड़ों की बीमारी) वाले लोग घरघराहट के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।

घरघराहट के प्रकार-

  • इंस्पिरेटरी घरघराहट-घरघराहट के इस प्रकार को केवल श्वसन चरण के दौरान सुना जाता है। जब कोई व्यक्ति श्वास अंदर लेता है तो श्वसन घरघराहट होती है। आमतौर पर यह अस्थमा से पीड़ित लोगों में देखने को मिलते हैं।
  • एक्सपेरेटरी घरघराहट-यह घरघराहट की आम समस्या होती है। इसमें सांस छोड़ने के दौरान घरघराहट होती है। अर्थात जब कोई व्यक्ति को वायुमार्ग में हल्की रुकावट होती है, तो घरघराहट का कारण बनती है।

घरघराहट होने के क्या कारण है?

घरघराहट के सबसे आम कारण निम्नलिखित हैं

  • अस्थमा-घरघराहट के लिए अस्थमा का समस्या मुख्य वजह माना जाता है। यह प्रायः पराग, मोल्ड, जानवरों या धूल जैसे वायुजनित एलर्जी के संपर्क में आने के कारण होती है। इसके अलावा वायरल बीमारियां अस्थमा के लक्षणों को और बदतर कर देती हैं।
  • सिस्टिक फाइब्रोसिस-सिस्टिक फाइब्रोसिस वाले लोगों में, गाढ़ा बलगम वायुमार्ग को बंद कर देता है। जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • ब्रोंकाइटिस-ब्रोंकाइटिस श्वसन संबंधी बीमारी है। इस स्थिति में श्वासनली (ब्रोन्कियल ब्रोन्कियल) में संक्रमण के कारण सूजन हो जाती है। जो घरघराहट का कारण बन सकता है।
  • वोकल कॉर्ड डिसफंक्शन (वीसीडी)-वीसीडी सांस लेने और छोड़ने के लिए वोकल कॉर्ड को खोलने के बजाय बंद कर देता है। जिससे फेफड़ों में वायु का प्रवेश या बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
  • एलर्जी की प्रतिक्रिया-एलर्जी की प्रतिक्रिया से घरघराहट होती है। जिसके कारण चक्कर आना, जीभ या गले में सूजन और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण नजर आते हैं।
  • दिल की धड़कन रुकना-दिल का दौरा घरघराहट या सांस की तकलीफ का कारण बनती है। यह घरघराहट आमतौर पर फेफड़ों में तरल पदार्थ के निर्माण के कारण होता है।
  • धूम्रपान-धूम्रपान से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है जो घरघराहट का कारण बनता है।

घरघराहट के लक्षण-

  • सांसों की कमी-यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसके कारण फेफड़ों में वायु का प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है। यदि यह समस्या अचानक उत्पन्न हो, तो यह घरघराहट का कारण बन सकता है।
  • खांसी-खांसी भी घरघराहट के लक्षणों में से एक है क्योंकि यह वायुमार्ग को अवरुद्ध कर देती है। यह बलगम पैदा करती है। जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है।
  • छाती में दर्दघरघराहट से पीड़ित लोगों में, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण वायुमार्ग में सूजन आ जाती है। जिससे सीने में जकड़न या दर्द होता है।
  • एनाफिलेक्सिस-यह एक गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया है, जो शरीर के कई अंगों को एक साथ प्रभावित करती है। इसमें जीभ या गले में सूजन वायुमार्ग के संकुचन के कारण होता है। अतः यह भी घरघराहट का कारण बनती है।
  • थकान-थकान या तनाव घरघराहट का एक अन्य लक्षण है। यह सांस की तकलीफ या नाक की भीड़ का कारण बनता है।

घरघराहट के जोखिम कारक-

घरघराहट के कुछ कारणों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कुछ संशोधित कारक हैं, जो सांस लेने में कठिनाई पैदा करने वाली बीमारियों के जोखिम को कम करते हैं। इसमें निम्न शामिल है:

  • धूम्रपान।
  • रसायनों के संपर्क में आना।
  • इनडोर और आउटडोर वायु प्रदूषण।

घरघराहट के लिए उपचार

  • प्राणायाम करें-नियमित रूप से प्राणायाम का अभ्यास करें। यदि कोई व्यक्ति प्राणायाम श्वास से अपरिचित हैं। इस स्थिति में धीमी और गहरी सांस लें। ऐसा करने से फेफड़ों की कार्यप्रणाली में सुधार होता है। साथ ही वायुमार्ग को आराम देने में मदद मिलती है।
  • धूम्रपान से बचें-धूम्रपान फेफड़ों को प्रभावित करता है। जिससे वायुमार्ग में सूजन होता है। ऐसे में पैसिव स्मोकिंग से बचें।
  • एयर क्लीनर-एचइपीए (HEPA) फिल्टर वाले एयर क्लीनर का इस्तेमाल करें। यह एलर्जी को कम करता है, जो अक्सर अस्थमा के दौरे का कारण बनता है।
  • ह्यूमिडिफायर-बेडरूम में ह्यूमिडिफायर भीड़भाड़ को दूर करने और घरघराहट की गंभीरता को कम करने में मदद करते हैं क्योंकि वह आर्द्रता का एक इष्टतम स्तर बनाए रखते हैं। इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए ह्यूमिडिफायर के पानी में पुदीने के कुछ बूंदों को मिलाएं।
  • एलर्जी की दवा-एलर्जी से पीड़ित लोगों को विभिन्न प्रकार की एलर्जी दवाओं से लाभ होता है। जिसमें मुख्य रूप से डिकॉन्गेस्टेंट, कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स गोलियां और एंटीहिस्टामाइन शामिल हैं।
  • नेजल स्प्रे-एचइपीए (HEPA)सीने में जकड़न, भीड़ और घरघराहट पैदा करने वाली सूजन से राहत दिलाने में नेजल स्प्रे कारगर साबित होते हैं।
  • इम्यूनोथेरेपी-बइम्यूनोथेरेपी एलर्जी से बचाने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करती है।
  • ब्रोन्कोडायलेटर्स-ब्रोन्कोडायलेटर्स एक प्रकार की दवा है, जो फेफड़ों की कार्यप्रणाली को सुधारने और वायुमार्ग को संकुचित करने से रोकने में मदद करती हैं। यह सीओपीडी और अस्थमा के कारण होने वाली घरघराहट में मदद करते हैं।

घरघराहट के घरेलू उपाय-

  • भाप लें-घरघराहट की समस्या में भाप लेना कारगर उपाय है। यह श्लेष्मा (म्यूकस) को साफ करने और वायुमार्ग को खोलने में बहुत प्रभावी होता है। इसके लिए मेन्थॉल या नीलगिरी के तेल की कुछ बूंदों को गर्म पानी में डालें। अब तौलिए से सिर को ढ़ककर भाप लें। ऐसा दिन में 3 से 4 बार करने से घरघराहट की समस्या से छुटकारा मिलता है।
  • गर्म पेय-शहद युक्त चाय या हर्बल टी घरघराहट की रोकथाम के लिए अच्छे घरेलू उपचारों में से एक है। क्योंकि यह वायुमार्ग को ढीला करने और भीड़ को कम करने में मदद करती है। इसलिए घरघराहट होने पर गर्म पेय पदार्थों का सेवन कारगर साबित होती है।
  • पुदीने की चाय या मेन्थॉल-पेपरमिंट टी या मेन्थॉल प्राकृतिक डिकॉन्गेस्टेंट हैं, जो वायुमार्ग के अवरुद्ध मार्ग को साफ करने में मदद करते हैं। इसलिए बलगम या गले की अवरुद्ध से राहत पाने के लिए पुदीने की चाय का सेवन काफी लाभप्रद होता है।
  • कच्चा प्याज-कच्चे प्याज में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण वायुमार्ग को साफ करने में मदद करते हैं। इसलिए अपने आहार में कुछ कच्चे प्याज को शामिल करें। ऐसा करने से फेफड़ों में सूजन को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही अवरुद्ध वायुमार्ग की सफाई होती है। जिससे घरघराहट का इलाज होता है।
  • सरसों का तेल-सरसों में सेलेनियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा इसमें विटामिन ए, बी कॉम्प्लेक्स, बीटा-कैरोटीन और ओमेगा 3 और 6 वसा के साथ-साथ एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण भी होते हैं। यह सभी गुण सभी अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसके लिए कपूर को सरसों के तेल में मिलाकर गर्म करें। अब इस मिश्रण से दिन में तीन बार 15 मिनट तक अच्छी तरह मालिश करें। ऐसा करने से रक्त संचार में सुधार होता है। साथ ही वायुमार्ग साफ होता है और सांस लेने में आसानी होती है।
  • अदरक-अदरक में एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो घरघराहट के लक्षणों को दूर करने में मदद करते हैं।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

केवल लक्षणों से घरघराहट के कारण का निदान करना अक्सर मुश्किल होता है। इसलिए घरघराहट की समस्या होने पर व्यक्ति को डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द और एनाफिलेक्सिस के लक्षणों के साथ अचानक घरघराहट शुरू हो जाती है। इस स्थिति में बिना देर किए तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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Porphyria: Symptoms, Causes and Treatment

Posted 19 July, 2022

Porphyria: Symptoms, Causes and Treatment

Porphyria is a group of disorders characterized by the buildup of porphyrin in the body, negatively affecting the skin and nervous system. Porphyrins are the main precursors of heme (an iron-containing pigment that is vital for the body organs) which the body requires to make heme.

Porphyria slows down the production of heme. Heme makes up part of the hemoglobin in the blood which carries oxygen to body tissues and gives color to the red blood cells. It is produced in the liver and bone marrow. The production of heme involves 8 different enzymes.

In porphyria, people are unable to fully convert porphyrin to heme because the body does not have enough of some of these enzymes. This results in the buildup of porphyrin in tissues and blood, causing damage to nerve cells and Cutaneous Porphyria primarily affecting the skin with typically no damage to nerve cells.

The specific names of some of the subsets of porphyria are

  • AminoLevulinic Acid Dehydratase-deficiency Porphyria (ALADP).
  • Acute Intermittent Porphyria (AIP).
  • Hereditary Coproporphyria (HCP).
  • Porphyria Cutanea tarda (PCT).
  • Harderoporphyria.
  • Erythropoietic Protoporphyria (EPP).

The most common form of acute porphyria is Acute Intermittent Porphyria (AIP) while the most common form of cutaneous porphyria is Porphyria Cutanea Tarda (PCT).

Symptoms of Porphyria

Symptoms of Acute Porphyria include

  • Chest pain.
  • Severe abdominal pain.
  • Nausea and vomiting.
  • Constipation or diarrhea.
  • Breathing problems.
  • Difficulty in urinating.
  • High blood pressure.
  • Seizures.
  • Rapid or irregular heartbeat.
  • Muscle pain.
  • Numbness.
  • Behavioral changes such as anxiety.
  • Hallucination.

Symptoms of cutaneous porphyria may result from sun exposure and may include

  • Sudden painful skin redness and swelling.
  • Burning pain caused by sensitivity to the sun and sometimes artificial light.
  • Itching.
  • Excessive hair growth in affected areas.
  • Red or brown urine.
  • Blisters on the hands, arms and face.
  • Fragile thin skin with changes in skin color.

Causes of Porphyria

Porphyria may be inherited or acquired. Most forms of porphyria are inherited.

In inherited form, the defective gene may be inherited in an autosomal dominant pattern (from one parent) or an autosomal recessive pattern (from both parents).

The acquired form may be triggered by

  • Excessive alcohol use.
  • Smoking.
  • Estrogen medication.
  • Liver disease.

When exposed to triggers, the body’s demand for heme production increases and may set in motion a process that causes the buildup of porphyrins.

Risk factors for Porphyria

Risk factors for porphyria include

  • Alcohol consumption.
  • Family history of porphyria.
  • Northern European ancestry.
  • Pregnancy.
  • Steroid hormones.
  • Viral infection.

Diagnosis of Porphyria

To make a diagnosis, the doctor will order blood urine or stool samples. Porphyria may be tricky to diagnose because the symptoms associated with the condition are similar to those of other diseases.

In some cases, the doctor may use imaging tests such as CT scan or X rays to make a diagnosis. Early diagnosis is important for handling the condition and avoiding any complications.

Treatment for Porphyria

No cure exists for the condition, but it is possible to manage symptoms. Effective management depends on the type you have.

For acute porphyria, treatment options include

  • Prescription or over-the-counter drugs for pain, nausea and vomiting.
  • Oral or intravenous injection of glucose.
  • Injection of hemin to reduce the production of porphyrin.

For cutaneous porphyria, treatment options include

  • Removal of blood to reduce the levels of iron.
  • Medications that reduce sun sensitivity.
  • Medications that absorb excess porphyrins.

To reduce the risk of an attack, it is important to understand certain environmental triggers. Triggers may vary from person to person and it may take time before you discover your triggers for an attack. Triggers may include

  • Stress.
  • Certain medications or antibiotics.
  • Use of recreational drugs.
  • Dieting or fasting.
  • Heavy consumption of alcohol.
  • Excessive exposure to sunlight.
  • Menstrual hormones.
  • Excess iron levels.
  • Infections or other illnesses.

Precautions to be taken in Porphyria

There is no cure for this disease, but eliminating triggers can prevent seizures and life-threatening conditions.

  • Drugs, alcohol and smoking should be avoided.
  • Staying out of sunlight is necessary in case of cutaneous porphyria.
  • Wear long sleeves, hats, coats, and other protective clothing to prevent the sunlight.
  • Diet plays an important role in preventing porphyria. Reducing consumption which increases blood pressure and following a diet recommended by a nutritionist will help in maintaining good health.

When to see a doctor?

Porphyria is a rare disease. Therefore, communicating with your doctor can help you make a decision about the treatment of the condition. Since this condition is triggered by many external factors, your doctor will advise you to take certain precautions to prevent attacks.

Patients suffering from porphyria should consult a medical team for a cure. This medical team includes

  • Genetic Counselor To find out the origin and possibility of passing this mutated gene on to your offspring and future generations.
  • HematologistTo diagnose and treat blood-related symptoms.
  • DermatologistFor the treatment of skin diseases.
  • HepatologistTreats liver diseases.
  • NeurologistTo control neurological symptoms.
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Monkeypox- A Rare Viral Disease

Posted 12 July, 2022

Monkeypox- A Rare Viral Disease

Monkeypox is a rare viral disease similar to smallpox in humans. It was discovered in 1958. Humans were first exposed to monkeypox in 1970. The disease is common in the tropical rainforests of Central and West Africa. Monkeypox virus belongs to the Orthopoxvirus genus of the family Poxviridae. Variola virus (which causes smallpox), vaccinia virus (used in the smallpox vaccine), and cowpox virus are the other significant members of the Orthopoxvirus genus.

What is Monkeypox?

Monkeypox is a viral zoonosis (a virus transmitted to humans from animals) and is considered a mild infection with symptoms such as fever, headache and rashes. People may be infected with monkeypox through contact with infected animals, especially sick or dead animals.

It can also be passed from person to person, but this is rare. When you come into contact with viral particles from an infected person, it is called human-to-human transmission. Coughing, sneezing, and airborne droplets can spread the infection.

Symptoms of Monkeypox

Symptoms of monkeypox are similar but milder than smallpox. Symptoms appear in 2 stages and usually last 2 to 4 weeks.

In stage 1, the following symptoms may occur

  • Fever.
  • Chills.
  • Swollen lymph nodes.
  • Headache.
  • Muscle ache.
  • Joint pain.
  • Back pain.
  • Fatigue.

In stage 2, a rash develops within 1 to 3 days (sometimes longer) of the onset of fever. The rash often starts on the face or limbs, but can also affect other parts of the body such as the arms, feet, mouth, and genitals.

The rash usually lasts between 14 and 28 days and goes through various stages before eventually forming a scab which then disappears.

Prevention for Monkeypox

The rash usually lasts between 14 and 28 days and goes through various stages before eventually forming a scab which then disappears.

There are many steps to prevent monkeypox virus

  • Avoid direct contact with animals that can transmit the virus. This includes sick or dead animals in areas where monkeypox is common.
  • Avoid contact with materials that have been in contact with sick animals.
  • Isolate infected people from others who may be at risk.
  • Practice hand hygiene after contact with infected people or animals. For example, washing your hands with soap and water or using an alcohol-based hand sanitizer.
  • Use personal protective equipment (PPE) when treating infected patients.
  • In addition, the smallpox vaccine is about 85 percent effective in preventing monkeypox.

How to diagnose Monkeypox?

  • A swab of skin or lesion secretions can easily be taken to identify monkeypox virus. Samples may be stored in a cool, dark place if refrigerated storage is not available.
  • Immunohistochemistry and electron microscopy are technical means of confirming the diagnosis. Quantitative PCR technique has proven reliable in detecting viruses. However, this technique is not available in rural Africa, where the disease occurs, and is therefore not very helpful in diagnosing monkeypox.
  • A new technique called Tetracore Orthopox Biothreat Alert, offers the possibility to identify the virus. This is useful in infectious areas as it doesn't require much expertise. Severe temperature conditions are not required to carry out the test.

Treatment for Monkeypox

There is no cure for monkeypox virus infection in humans. There are currently 3 antiviral compounds to treat monkeypox

  • ST-246It prevents viruses from being released from cells and has been shown to be effective in controlling infection with some orthopox viruses. It is not approved to treat monkeypox infection but is sometimes used to treat other orthopoxviruses infections.
  • CidofovirIt blocks enzymes involved in viral multiplication. However, this drug is toxic to the kidneys. It is tentatively approved for the treatment of other orthopox viral infections.
  • CMX-001It is a cidofovir compound which is not toxic to the kidneys. It has been shown to be effective in controlling the multiplication of various orthopoxviruses. It's still in development.The vaccine against the smallpox virus used for smallpox is also used as a vaccination tool. However, live virus is a cause for concern because complications can develop in some people with compromised immune systems. Inactivated vaccine viruses are also used, but these are not as effective as some of the compounds mentioned. Vaccinate a person in advance if they are known to work in an area prone to monkeypox infection. After contact with an infected person, vaccination is recommended within 4 to 14 days of exposure.

When to see a doctor?

If you are experiencing symptoms of monkeypox, and especially if you develop a rash with fever and swollen lymph nodes, you should isolate yourself from others and seek medical attention.

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