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क्या है एक्यूपंक्चर थेरेपी और इसके फायदे?

Posted 17 March, 2022

क्या है एक्यूपंक्चर थेरेपी और इसके फायदे?

एक्यूपंक्चर (Accupuncture) थेरेपी एक ऐसी पद्धति है जिसके दौरान शरीर में प्राकृतिक रूप से बने कुछ खास बिंदु पर पतली-पतली सुइयां चुभाई जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा करने से मरीजों को दर्द से आराम मिलता है। साथ ही कई अन्य समस्याओं में भी इसका लाभ मिलता है। एक्यूपंक्चर थेरेपी मूल रूप से चीनी उपचार की एक प्राचीन पद्धति है। इसके द्वारा शरीर में बहने वाले ऊर्जा के प्रवाह को की (Qi) और ची (Chi) के नाम से जाना जाता है।

 

आधुनिक काल में पश्चिमी देशों के विद्वान एक्यूपंक्चर (Accupuncture) बिंदुओं को शरीर की मांशपेशियों, नसों, संबंधित ऊतकों को उत्तेजित करने का तरीका मानते हैं। इस प्रकार की उत्तेजना में शरीर में प्राकृतिक दर्द निवारक का स्त्राव होता है। साथ ही रक्त का संचार भी ठीक होता है। 

 

वर्षों पुरानी चिकित्सा पद्धति है एक्यूपंक्चर

 

मान्यता के अनुसार चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति एक्यूपंक्चर (Acupuncture) का उपयोग लगभग 6000 वर्ष ईसा पूर्व से किया जा रहा है। आजकल इस चिकित्सा पद्धति को वैकल्पिक चिकित्सा उपचार (Alternative medicine treatment) के अंतर्गत भी इस्तेमाल किया जाता है।

 

क्या है एक्यूपंक्चर बिंदु?

 

हमारे शरीर के विभिन्न भागों में कई एक्यूपंक्चर (Accupuncture) बिंदु होते हैं। लेकिन मुख्य रूप से तीन ऐसे बिंदु होते हैं, जिनका उपचार के दौरान ज्यादा प्रयोग किया जाता है;

 

लार्ज इंटेस्टाइन 4

 

यह बिंदु अंगूठे और चारों अंगुलियों के बीच हथेलियों के मुलायम हिस्से में पाए जाते हैं।

 

लिवर 3

 

इस बिंदु का स्थान पैरों के पंजे के ऊपर, अंगूठे और उसके पास वाली उंगली के बीच होता है।

 

स्पलीन 6

 

इस बिंदु का स्थान पैर के आतंरिक हिस्सें में एड़ी से थोड़ा ऊपर होता है।

 

कैसे काम करता है एक्यूपंक्चर?

 

एक्यूपंक्चर के माध्यम से  शरीर की ऊर्जा को संतुलित करके तमाम परेशानियों का इलाज किया जाता है। इसमें शरीर में पतली सुइयां चुभाई जाती हैं। जो हार्मोन लेवल के साथ इम्यून सिस्टम को सही करने में सहायता करती हैं। एक्यूपंक्चर (Treatment with Acupuncture) शरीर में होने वाले दर्द से राहत दिलाता है। इस थेरेपी के माध्यम से शरीर के विशेष हिस्सों और बिंदुओं में सुई चुभाई जाती हैं। एक्यूपंक्चर के जरिए शरीर में ऊर्जा के असंतुलन को ठीक किया जाता है। सुई चुभाने की यह प्रक्रिया इंजेक्शन जैसा दर्द नहीं देती। क्योंकि इंजेक्शन और एक्यूपंक्चर (Accupuncture) में प्रयोग की जाने वाली सुई में काफी अंतर होता है।

 

एक्यूपंक्चर के लाभ;

 
  • इस चिकित्सा पद्धति से रोगी की रक्षा और रोग का निदान किया जाता है।
  • यह कष्ट रहित और कम खर्चीली चिकित्सा प्रणाली है।
  • इस चिकित्सा का उपयोग अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ भी किया जा सकता है।
  • यह एक सरल, सहज एवं प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान है।
  • एक्यूपंक्चर से जल्द लाभ मिलता है और इससे लगभग हर तरह के रोग का उपचार संभव है।
  • इसमें समय, धन व श्रम की बचत होती है।
  • शारीरिक व मानसिक प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है।
  • इसका प्रयोग करने से शरीर के सभी अंग तंत्र सुचारु रूप से कार्य करते हैं।
  • यह शरीर में आवश्यक तत्वों का प्रसार कर मांसपेशियों के तन्तुओं में स्फूर्ति तथा त्वचा में चमक पैदा करता है।
  • एक्यूपंक्चर से पुरुषों में होने वाली इनफर्टिलिटी (बांझपन) की समस्या का भी इलाज किया जाता है।
  • एक्यूपंक्चर गर्भधारण करने में मदद करता है। यदि कोई महिलाएं गर्भधारण करने के लिए कोई मेडिकल ट्रीटमेंट करवा रही हैं। तो उसके साथ एक्यूपंचर (Accupuncture) करें। इससे गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाती है।
  • एक्यूपंचर एवं एक्यूप्रेशर का उपयोग मोटापा कम करने के लिए एवं सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
  • अनेक रोग ऐसे होते हैं, जो किसी भी चिकित्सा पद्धति द्वारा ठीक नहीं हो पाते हैं। उन रोगों में भी एक्यूपंक्चर के कुछ सफल परिणाम प्राप्त हुए हैं।

उपचार के प्रति प्रभाव;

 
  • इस चिकित्सा के उपचार के बाद हल्का दर्द, रक्त निकलने व छिलने जैसी दिक्कत हो सकती है।
  • सुई चुभने वाले स्थान पर इंफेक्शन होने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • यदि सुई गलत जगह पर चुभ जाए तो शरीर के दूसरे अंग को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • यदि खून बहने की समस्या पहले से ही है तो यह चिकित्सा और खतरनाक साबित हो सकती है।
  • उपचार के बाद पतले दस्त शारीरिक सफाई का संकेत हैं। इसलिए इन्हें लेकर घबराएं नहीं।
  • इससे शारीरिक व मानसिक स्तर पर तीव्र परिवर्तन होता है। जिससे क्रोध, चिड़चिड़ापन उदासी और आनंद की अनुभूति कम-ज्यादा हो सकती है।
  • इस उपचार के बाद मूत्र त्याग की मात्रा बढ़ जाती है। पर कुछ दिनों में यह स्वयं ठीक हो जाती है। इसलिए इसे लेकर घबराएं नहीं।
  • उपचार के तुरन्त बाद नींद का आना स्वास्थ्य का संकेत है।

एक्यूपंक्चर की सीमाएं व सावधानियां;

 
  • इस चिकित्सा के लिए हवादार, साफ, शांत और अनुकूल वातावरण होना चाहिए।
  • हमेशा रोगी को बिठाकर या लिटाकर सुविधानुसार ही उपचार करें।
  • उपचार के समय रोगी व चिकित्सक दोनों तनाव रहित, शान्तचित्त स्थिति में होने चाहिएं।
  • टूटे-फूटे, चोट और ऑपरेशन वाले स्थान पर चिकित्सा नहीं करनी चाहिए।
  • चिकित्सा के दौरान अपने दोनों हाथ को अच्छी तरह से धो लें।
  • ऑपरेशन, फोड़े और घाव के स्थान पर 5-6 महीने तक इलाज नहीं करना चाहिए।
  • महिलाओं को मासिक धर्म के समय उपचार नहीं करना चाहिए।
  • एक्यू बिंदुओं पर सुई आदि से उपचार 30 मिनट से 1 घंटे तक या रोग के अनुसार ही लगाना चाहिए।
  • एक्यूपंक्चर का उपचार भोजन से एक घंटे पूर्व और भोजन करने के 2-3 घंटे बाद ही करवाना चाहिए।
  • 7 साल से कम उम्र तथा 70 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों को एक्यूपंक्चर उपचार नहीं कराना चाहिए।
 
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क्या है प्राकृतिक चिकित्सा या नेचुरोपैथी?

Posted 25 May, 2022

क्या है प्राकृतिक चिकित्सा या नेचुरोपैथी?

प्राकृतिक चिकित्सा को अंग्रेजी में नेचुरोपैथी (Naturopathy) कहते हैं। इस चिकित्सा पद्धति के तहत प्रकृति के पांच मूल तत्वों- पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु की मदद से रोगों का उपचार किया जाता है। इस चिकित्सा प्रणाली का उद्देश्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के प्रयोग से रोगों का मूल कारण समाप्त करना है। यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है बल्कि शरीर में उपस्थित प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक संपूर्ण जीवन-शैली है।

 

प्राचीन वेदों और ग्रंथों में भी नेचुरोपैथी (Naturopathy) का वर्णन मिलता है। पुराने समय में नेचुरोपैथी (Naturopathy) की मदद से ही रोगों को ठीक किया जाता था। नेचुरोपैथी (Naturopathy) की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस उपचार पद्धति से शरीर को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। इस प्राकृतिक चिकित्सा के दौरान न सिर्फ रोगों को सही किया जाता है। अपितु पंच तत्व का उचित प्रयोग करके व्यक्ति को रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रदान की जाती है।

 

प्राकृतिक चिकित्सा के मूल सिद्धांत–

 
  • सभी रोगों के कारण और उनकी चिकित्सा एक ही है। चोट, घाव और वातावरण जन्य परिस्थितियों (Atmospheric conditions) को छोड़कर सभी रोगों का मूलकारण और इलाज एक ही होता है।
  • शरीर में विजातीय (Heterogeneous) पदार्थो का जमाव रोगों को जन्म देता है और शरीर से उनका निष्कासन ही चिकित्सा है।
  • रोग का मुख्य कारण जीवाणु नहीं हैं। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोग जीवाणु के कारण पैदा नहीं होते। जीवाणु शरीर पर तभी हमला करते हैं,
  • जब शरीर में विजातीय पदार्थो का जमाव हो और उनके पनपने लायक वातावरण हो। अतः रोगों का मूल कारण विजातीय पदार्थ हैं, जीवाणु नहीं। जीवाणु किसी रोग का द्वितीय कारण है।
  • शरीर के स्व-उपचारात्मक प्रयास होने के कारण तीव्र रोग हमारे शत्रु नहीं मित्र हैं। जीर्ण रोग (स्थायी बीमारी) तीव्र रोगों के गलत उपचार से पैदा होते हैं ।
  • प्रकृति स्वयं सबसे बड़ी चिकित्सक है। शरीर में स्वयं को रोगों से बचाने और अस्वस्थ होने पर दुबारा स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता रखती है।
  • प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार रोग का नहीं बल्कि रोगी का किया जाता है।
  • इस प्राकृतिक चिकित्सा में जीर्ण रोग (Chronic disease) से ग्रस्त रोगियों का कम अवधि में भी सफल इलाज संभव है।
  • प्राकृतिक चिकित्सा की सहायता से शरीर में दबे रोग भी उभर कर ठीक हो जाते हैं।
  • इस प्राकृतिक चिकित्सा में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक (नैतिक) और आध्यात्मिक चारों पक्षों की चिकित्सा एक साथ संभव है ।
  • इसमें विशिष्ट अवस्थाओं का इलाज करने के स्थान पर पूरे शरीर की चिकित्सा की जाती है।
  • प्राकृतिक चिकित्सा बिना औषधियों के की जाती है। इसके मुताबिक ‘आहार ही औषधि’ है ।

प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा ठीक होने वाले रोग;

 
  • दमा (Asthma)
  • कब्ज (Constipation)
  • पक्षाघात (Paralysis)
  • पोलियो (Poliomyelitis)
  • उच्च रक्ताचाप (Hypertension)
  • निम्न रक्ताचाप – (Hypotension)
  • सोरायसिस (Psoriasis)
  • उलझन/व्याकुलता (Anxiety Neurosis)
  • मधुमेह (Diabetes)
  • अति अम्लता (Hyperacidity)
  • खाज (Scabies)
  • प्रत्यूर्जता संबंधी चर्म रोग (Allergic Skin Diseases)
  • दाद (Eczema)
  • पीलिया (Jaundice)
  • साइटिका (Sciatica)
  • सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस (Cervical Spondylosis)
  • मुख पक्षाघात (Facial Paralysis)
  • श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)
  • प्लीहा वृद्धि (Splenomegaly)
  • चिरकारी व्रण (Chronic Non-Healing Ulcers)
  • कुष्ठ रोग (Leprosy)
  • संधिवात (Rheumatoid Arthritis)
  • जठर शोथ (Gastritis)
  • मोटापा (Obesity)
  • मनोकायिक विकार (Psycho-somatic disorders)
  • यकृत सिरोसिस (Cirrhosis of liver)
  • गठिया (Gout)
  • अस्टियो-अर्थराइटिस (Osteo -Arthritis)

प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियां;

 

आहार चिकित्सा–

 

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार आहार ही मूलभूत ‘औषधि’ है। इसलिए आहार को उसके प्राकृतिक रूप में ही लेना चाहिए। मौसम के ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित अनाज अवश्य खाने चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए हमारा भोजन 20 प्रतिशत अम्लीय (acidic) और 80 प्रतिशत क्षारीय (Alkaline) होना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के इच्छुक लोगों को संतुलित भोजन ही लेना चाहिए।

 

उपवास चिकित्सा–

 

स्वस्थ्य रहने के प्राकृतिक तरीकों में उपवास को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार उपवास पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम की प्रक्रिया है। क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान पाचन प्रणाली विश्राम अवस्था में होती है। मस्तिष्क एवं शरीर के विकारों को दूर करने के लिए उपवास एक उत्तम चिकित्सा है। इससे कब्ज, पेट में गैस, पाचन संबंधी रोग, दमा, मोटापा, उच्च रक्तचाप और गठिया जैसे रोगों का प्रभाव कम किया जा सकता है।

 

मिट्टी चिकित्सा–

 

मिट्टी चिकित्सा का प्रयोग शरीर को शीतलता प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह बहुत ही सरल एवं प्रभावी चिकित्सा पद्धति है। इसके लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी साफ-सुथरी और जमीन से तकरीबन 3-4 फीट नीचे की होनी चाहिए। मिट्टी शरीर के दूषित पदार्थो को शरीर के बाहर निकाल देती है।

 

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में मुख्य रूप से मिट्टी की पट्टी और मिट्टी स्नान प्रक्रियाएं आती हैं। इससे कब्ज, तनावजन्य सिरदर्द, उच्च रक्तचाप और चर्मरोग जैसी बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।

 

जल चिकित्सा–

 

जल चिकित्सा एक उपचार पद्धति है। जिसमें पानी से इलाज किया जाता है। इसमें ठंडा और गर्म पानी या भाप का उपयोग करके शरीर के दर्द से राहत दिलाने और स्वास्थ्य को बनाए रखने वाले कार्य किए जाते हैं। जल चिकित्सा से रूमेटिक बुखार (गले से संबंधित बैक्टीरियल संक्रमण), अर्थराइटिस (गठिया) और जोड़ों की परेशानी का उपचार किया जा सकता है। यह उपचार पद्धति सामान्य रूप से लेकर हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपी विभाग तक की जाती है। जल चिकित्सा को अंग्रेजी में ‘हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy)’ कहते हैं।

 

मसाज चिकित्सा–

 

जितना महत्व आधुनिक दिनचर्या में आहार और व्यायाम का है। उतना ही महत्व मसाज का भी है। तेल, क्रीम या किसी अन्य चिकने पदार्थ (Greasy substance) को बॉडी पर हल्के हाथ से रगड़ना या मलना, मसाज (मालिश) कहलाता है। इस चिकित्सा में शरीर की मांशपेशियों और नरम ऊतकों को हाथों से आराम दिया जाता है। मालिश करने से मांशपेशियों के दर्द में आराम मिलता है और रक्त परिसंचरण में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मसाज करने से त्वचा और मस्तिष्क संबंधित बीमारियां कम होती हैं।

 

सूर्य किरण चिकित्सा–

 

सूर्य से प्राप्त होने वाली सतरंगी (बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल) किरणों के अलग-अलग चिकित्सीय महत्व हैं। स्वस्थ रहने तथा रोगों के विभिन्न उपचार में रंग प्रभावी ढंग से कार्य करते है। सूर्य किरण चिकित्सा स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होती है। इस चिकित्सा पद्धति में 45 से 60 दिन तक सूर्य के प्रकाश से गर्म हुए तेल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्री से विभिन्न रोगों का उपचार किया जाता है। पानी में रंगों को डालकर धूप में गर्म किया जाता है जिससे रोगों का उपचार होता है। इस उपचार से रक्त संचार तेज होता है। धूप से शरीर में विटामिन-डी बनता है। जो लकवा, गठिया, टीबी, दमा, चर्म रोग आदि बीमारियों में लाभदायक होता है।

 

वायु चिकित्सा–

 

इस चिकित्सा में वायु स्नान के माध्यम से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि स्वच्छ व ताजी हवा अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। प्रतिदिन 20 मिनट या उससे अधिक समय के लिए प्रत्येक व्यक्ति को वायु स्नान करना चाहिए।

 

वायु चिकित्सा की प्रक्रिया में, व्यक्ति को रोज़ाना कपड़े उतारकर या हल्के कपड़े पहनकर एकांतयुक्त ऐसे साफ-सुथरे स्थान पर चलना चाहिए, जहां पर्याप्त ताजा हवा उपलब्ध हो। गठिया, घबराहट, त्वचा व मानसिक विकारों के मामलों में वायु चिकित्सा लाभदायक होती है।

 

एक्यूप्रेशर चिकित्सा–

 

एक्यूप्रेशर (Naturopathy) एक प्राचीन उपचार पद्धति है। इसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव डालकर बीमारी को ठीक करने की कोशिश की जाती है। हमारे शरीर के मुख्य अंगों के दबाव केंद्र (Pressure Points) पैरों के तलवे और हथेलियों में होते हैं।

 

इन दबाव केंद्रों की मालिश (Massage) करने पर प्रेशर पॉइंट जिस अंग को प्रभावित करता है उससे जुड़ी बीमारी में राहत मिलती है। इन विशेष बिन्दुओं को ‘एक्यू बिन्दु’ (Acupressure points) कहा जाता है। उदाहरण के लिए- बाएं पैर में हृदय (Heart) का प्रेशर पॉइंट होता है और इस बिंदु पर हल्की मालिश करने से हृदय से जुड़ी बीमारी में आराम मिलता है।

 

एक्यूपंक्चर चिकित्सा–

 

एक्यूपंक्चर (Naturopathy) उपचार पद्धति में शरीर के विशिष्ट बिन्दुओं पर बारीक सुइयां चुभोकर एवं हिलाकर दर्द से राहत दिलाई जाती है। इसकी मदद से शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह को सही किया जाता है। परंपरागत चीनी चिकित्सा सिद्धांत के मुताबिक, एक्यूपंक्चर (Naturopathy) बिंदु शिरोबिंदुओं पर स्थित हैं। जिसके सहारे क्यूई (QI) नामक महत्वपूर्ण ऊर्जा शरीर में बहती है। एक्यूपंक्चर चिकित्सा का उपयोग मुख्य रूप से दर्द कम करने के लिए किया जाता है। 

 

चुंबक चिकित्सा–

 

चुंबक थेरेपी या मेग्नेट थेरेपी एक प्रकार की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है। जिसमें चुंबकों के उपयोग द्वारा इलाज किया जाता है। चुंबकीय चिकित्सा को हर आयु के व्यक्ति के लिए गुणकारी माना गया है। चुंबकीय चिकित्सा से शरीर के रक्त संचार में सुधार आता है।कुछ समय तक चुंबक को लगातार शरीर के संपर्क में रखने पर शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। जिससे शरीर की सभी क्रियाएं सुधर जातीं हैं और रक्त संचार बढ़ जाता है।

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What is Acupuncture Therapy and its Benefits?

Posted 17 March, 2022

What is Acupuncture Therapy and its Benefits?

Acupuncture Therapy is a method of treatment during which thin needles are pierced at certain points in the body naturally. According to experts, patients get relief from pain through this therapy. Along with this, this therapy can cure many other problems too.

 

Acupuncture therapy is an ancient method of Chinese treatment. The flow of energy flowing through it in the body is known as Ki (Qi) and Chi (Chi).

 

Acupuncture points are considered a way to stimulate the muscles. It also provides relaxation to the nerves, and related tissues of the body. This type of stimulation causes the release of natural pain relievers in the body. It also helps in improving blood circulation in the body.

 

Acupuncture is an age-old medical practice

 

According to belief, Traditional Chinese Medicine (TCM) method acupuncture has been in use for 6000 years BC. Nowadays this medical method is also used under Alternative Medicine treatment.

 

What is Acupuncture?

There are many acupuncture points in different parts of our body. But there are mainly three such points, which are used more during treatment. These are-

 

Large intestine 4

These points are found in the soft part of the palms between the thumb and forefingers.

 

Liver 3

This point is positioned above the paws of the feet, between the thumb and the finger near it.

 

Spleen 6

The location of this point is slightly above the heel in the inner parts of the foot.

 

How does Acupuncture work?

 

In this therapy thin needles are pierced in the body. This helps in balancing hormones. It also improves the functioning of the immune system. Treatment with acupuncture relieves pain in the body.

 
 
 

Through this therapy, needles are pierced in particular parts and points of the body. Acupuncture corrects the imbalance of energy in the body. This process of needling does not cause pain like an injection.

 
 
 

Benefits of Acupuncture

Acupuncture works to restore the flow of ‘Qi’(energy) in the body. The treatment has a restorative effect. It also calms the physical and mental body. This increases a sense of well- being. This ultimately helps the body in curing health related problems. These are as follows-

 
  • Acupuncture cures the problem of infertility in men.
  • Acupuncture and acupressure can also reduce obesity.
  • There are many diseases, which are not cured by any medical method. Acupuncture can cure those diseases too.
  • The therapy helps in diagnosing the disease. It also cures the problem.
  • It is a painless and inexpensive mode of treatment.
  • This therapy can also be used with other treatment methods.
  • It is a simple, easy, and natural therapy.
  • Acupuncture provides quick benefits. It can also treat almost every type of disease.
  • Increases physical as well as mental resistance.
  • By using it, all the organs of the body work smoothly.

Side effects of Acupuncture

  • After treatment with this therapy, there may be mild pain or bleeding.
  • Piercing of needle may also lead to infection.
  • Piercing of needle in the wrong place can also lead to damage.
  • If the bleeding problem is already there, then it can prove to be dangerous.
  • Diarrhoea after treatment is a sign of physical cleansing. 
  • This leads to rapid changes at the physical as well as mental levels. It reduces feelings such as anger, irritability, sadness.

Limitations and precautions of Acupuncture

 
  • People under 7 years of age and above 70 years of age should not undergo this treatment.
  • Acupuncture should be done before an hour of eating. It can also be done 2-3 hours after meals.
  • This therapy should be done in a well ventilated, clean, quiet, and conducive environment.
  • Always treat the patient at the convenience of sitting or lying down.
  • At the time of treatment, both the patient as well as the physician should be in a relaxed state of mind.
  • Medical treatment should not be done on fractures, injuries, and operated areas of the body.
  • During treatment, thoroughly wash your hands.
  • Women should not undergo treatment at the time of menstruation.
  • Treatment with needles etc. should be applied for 30 minutes to 1 hour. 
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Naturopathy: Basic Principles, Benefits, and Methods

Posted 21 December, 2021

Naturopathy: Basic Principles, Benefits, and Methods

Naturopathy, also known as “Nature cure” is a type of Alternative treatment. In this, treatment methods are the five basic elements of nature. These are earth, sky, fire, water, and air. The purpose of the Naturopathy system is to eliminate the root cause of diseases. The therapy uses the abundantly available elements in nature.

 

Naturopathy is also described in ancient Vedas and texts i.e., in the Sankhya Philosophy (one of the six major philosophies of the ancient Indian tradition). Earlier, diseases were cured only with the help of Naturopathy. The key feature of Naturopathy is that it does not cause any harm or pain to the body. The therapy also provides the ability to fight against diseases by effectively using the Panch elements properly.

 

Basic Principles of Naturopathy

The cause of all diseases and their treatment is the same. Except for the injuries and diseases related to environmental conditions, the cause of all diseases and their treatment is the same. Deposition of morbid matter in the body gives rise to diseases. Their removal from the body is known as the treatment.

The basic cause of the disease is not microorganisms such as bacteria, viruses, amoeba. These develop after the accumulation of foreign substances in the body. The body provides a favorable atmosphere for them to live and flourish. Therefore, the root cause of diseases is foreign matter, not bacteria. Bacteria is the secondary cause.

Due to the body’s self-healing efforts, acute diseases are our friends and not our enemies. Chronic disease arises from the wrong treatment done to cure acute diseases.

Nature itself is the greatest healer. The body has immense ability to protect itself from diseases. It also regains health in illnesses.

In naturopathy, the patient is treated and not the disease.

In naturopathy, it is possible to treat patients suffering from chronic diseases successfully and in a shorter duration.

Naturopathy cures suppressed diseases in the body.

In naturopathy, treatment of physical, mental, social (moral), and spiritual health is done

Naturopathy treats the whole body instead of treating specific health conditions.

Naturopathy is done without medicines. According to this, ‘food is medicine’.

Benefits

Naturopathy can cure various diseases such as-

 
  • Asthma
  • Stomach diseases such as gastritis and constipation
  • Paralysis (Hemiplegia)
  • Poliomyelitis
  • Hypertension
  • Hypotension
  • Psoriasis
  • Mental illnesses such as anxiety neurosis
  • Diabetes
  • Hyperacidity
  • Scabies
  • Allergic Skin Diseases
  • Eczema
  • Jaundice
  • Sciatica
  • Cervical Spondylosis
  • Facial Paralysis
  • Leucorrhea
  • Splenomegaly
  • Chronic Non-Healing Ulcers
  • Leprosy
  • Rheumatoid Arthritis
  • Obesity
  • Psycho-somatic disorders
  • Cirrhosis of liver
  • Gout
  • Osteo-Arthritis

Different methods of Naturopathy

Diet therapy (Food as Medicine)

 

According to Naturopathy, diet is the basic ‘medicine’. Therefore, one should take a well-balanced diet. Consumption of fresh seasonal fruits, fresh green leafy vegetables helps to stay fit. Consuming sprouted grains is also beneficial. To be healthy, the food should ideally be 20 percent acidic and 80 percent alkaline.

 

Fasting therapy

 

Fasting is also very important for ensuring good health. According to natural practitioners, fasting is a process of complete physical as well as mental rest. It provides rest to the digestive system.

 

Fasting is the best medicine for curing brain and body disorders. Because of this, the effects of diseases such as constipation, stomach gas, and digestive diseases are reduced. It also cures asthma, obesity, high blood pressure, and arthritis.

 

Mud therapy

 

Mud therapy provides coolness to the body. This is a very simple as well as effective alternative medicine. The Mud used for this should be clean and obtained from about 3-4 feet below the ground. Mud removes the contaminants of the body and also provides relaxation by being outside the body.

 

The treatment method mainly comprises mud bandages and mud bathing procedures. Because of this, problems such as constipation, tension, headache are relieved. It also treats high blood pressure and skin diseases.

 

Water treatment

 

Hydrotherapy is a therapy that uses water for treatment. It uses cold and hot water or steam. It helps to relieve pain from the body and also maintain health.

 

Hydrotherapy treats rheumatic fever (bacterial infection of the throat), arthritis, and joint discomfort too. They normally do it in the Physiotherapy department of the hospital.

 

Massage therapy

 

The importance of massage in modern days is the same as diet and exercise. Massage is rubbing oil, cream, or any other greasy substance with a light hand on the body. This treatment provides relaxation to the muscles as well as soft tissues of the body with hands.

 

Massaging relieves muscular pain and also improves blood circulation. Besides, massaging skin also reduces diseases related to the brain.

 

Sun therapy

 

Satrangi (violet, blue, sky, green, yellow, orange, and red) rays from the sun have great significance in alternative medicine. Colors work effectively in various treatments and stay healthy. Sun therapy is very beneficial and also the easiest way of staying healthy.

 

In this medical system, we treat various diseases with oil, water, glycerin, sugar candy heated by sunlight for 45 to 60 days. The colors are added to the water. It is then heated in the sun, which cures diseases. This treatment also boosts blood circulation. Sunlight produces Vitamin D in the body. It is beneficial in curing diseases such as paralysis, arthritis, TB, and asthma. It also helps to cure skin diseases.

 

Air treatment

 

Air bath helps in achieving the maximum benefits from Air therapy. Fresh air is very important for good health. It helps at multiple levels. Every person should take an air bath for at least 20 minutes, every day.

 

In air therapy, a person should walk in a clean, secluded place where sufficient fresh air is available. We can do it either daily by taking off clothes or wearing light clothes. Air treatment is beneficial in cases of arthritis, nervousness, as well as skin diseases. It also helps to cure mental disorders.

 

Acupressure therapy

 

Acupressure is also an ancient treatment method. In this, we try to cure the disease by pressing on the important points of different parts of the body.

 

Pressure points of the primary organs of our body are in the soles and palms of the feet. The massage of these pressure centers helps to relieve the affected organ. It also relieve the disease related to it. These special points are acupressure points. For example, there is a pressure point of the heart in the left leg and a light massage at this point provides relief in heart disease.

 

ACUPUNCTURE THERAPY

 

The acupuncture treatment method provides relief from pain by pricking and shaking fine needles at specific points of the body. This helps in the flow’s correction of energy in the body. As per traditional Chinese medicine (TCM) theory, acupuncture points are at the meridians through which vital energy called Qi flows into the body. It ensures physical as well as mental wellbeing and also reduces pain.

 

Magnet therapy

 

Magnet therapy is also another type of alternative medicine. It uses magnets for treatment. We have considered magnetic therapy beneficial for people of all ages.

 

Magnetic therapy improves blood circulation in the body. The magnets produce heat in the body by keeping in constant contact with the body for some time. This improves all body functions and also increases blood circulation.

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एक्यूप्रेशर थेरेपी के फायदे और नुकसान

Posted 25 May, 2022

एक्यूप्रेशर थेरेपी के फायदे और नुकसान

प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में हजारों नसें, मांशपेशियां, धमनियां और हड्डियां होती हैं। इन सबके के साथ मिलने से शरीर का निर्माण होता है। ऐसा देखा गया है कि कई बार शरीर के कुछ बिंदुओं पर रक्त का संचरण ठीक तरीके से नहीं हो पाता है। जिसे दबाने पर वह पुनः खुल जाते हैं और ठीक तरीके से काम करने लगते हैं। एक्यूप्रेशर थेरेपी (Acupressure therapy) में शरीर के इन्हीं खास बिंदुओं को दबाया जाता है। जिससे बीमारियों का इलाज होता है।

 

पारंपरिक चीनी उपचार में हजारों वर्षो से एक्यूप्रेशर तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। पर आजकल इस तकनीक का उपयोग पूरे विश्व के लोग कर रहे हैं। जिस तरह से योग में प्राण (जीवन शक्ति) का महत्व होता है। वैसे ही चीनी उपचार में की (Qi), जीवन ऊर्जा का महत्व है। ऐसी मान्यता है कि शरीर में इन ऊर्जा का प्रवाह कुछ नालिकाओं के माध्यम से होता है, जिन्हे “मेरिडियन” कहते हैं। इस नालिकाओं में रुकावट होना असंतुलन बीमारी (चीनी भाषा में yin और Yang) और दर्द का कारण हो सकता है। एक्यूप्रेशर थेरेपी शरीर की असंतुलन बीमारियों को ठीक करके, जीवन ऊर्जा के प्रवाह में सुधार लाती है। जिससे शरीर अपनी प्राकृतिक स्वस्थ्य अवस्था में आ जाता है।      

 

एक्यूप्रेशर (मर्म चिकित्सा) क्या है?

 

एक्यूप्रेशर (Acupressure therapy) प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है। जिसे मर्म चिकित्सा के नाम से भी जाना जाता है। सुश्रुत संहिता में इसका उल्लेख मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की रक्तवाहिकाओं और स्नायुतंत्र (Nerve fibers) के सभी नाड़ियो के अंतिम सिरा हाथों और पैरों में हैं। जब सम्बंधित अंग के अंतिम सिरों को दबाने पर हैं तो ऊर्जा का संचार उस अंग तक पहुंच जाता है। परिणामस्वरूप वह अंग प्रभावित होता है और इस क्रिया के बीच का अवरोध दूर हो जाता है।

 

इस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग सिर दर्द, उच्च रक्तचाप, सूजन, जोड़ों का दर्द, मानसिक तनाव, लीवर की समस्या, सीने में भारीपन आदि विकृतियों (बीमारियों) को दूर करने में करते हैं। स्वस्थ्य व्यक्ति भी इस चिकित्सा का उपयोग निरोग रहने के लिए कर सकते हैं।

 

क्या है एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स?

 

शरीर में ऐसे अनेक प्रेशर बिंदु होते हैं, जिनका संबंध शरीर के दूसरे भागों से होता है। इन बिंदुओं के माध्यम से शरीर की विभिन्न हिस्सों पर दबाव डालकर बीमारियों का इलाज किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में इन पॉइंट्स को एक्यूप्रेशर पॉइंट्स कहा जाता है।

 

एक्यूप्रेशर पॉइंट के प्रकार और उनके फायदे;

 

जोइनिंग द वैली (Acupressure Point L.I. 4)–

 

हाथों में ये प्वॉइंट अंगूठे और पहली उंगली के बीच की चमड़ी वाली स्थान पर होते हैं। इस स्थान को दबाने से सिर दर्द, गर्दन में दर्द, दांतों का दर्द, कंधे का दर्द, आर्थराइटिस और कब्ज में लाभप्रद होता हैं।

 

पेरीकार्डियम (Acupressure Point P6)-

 

ये प्वाइंट हथेलियों से लगभग दो अंगुल नीचे कलाई पर होता है। यहां दबाने से बेचैनी, मोशन सिकनेस, उल्टी, पेट की गड़बड़ी और छाती के दर्द में आराम मिलता है।

 

थर्ड आई (Eye Point)-

 

ये प्वाइंट नाक के ऊपर और दोनों आइब्रो (भौंए) के बीच माथे पर होता है। इस स्थान पर दबाने से मानसिक शांति, याददाश्त, तनाव, थकान, आंख में दर्द और नींद की बीमारी में राहत मिलती है।

 

सी ऑफ़ ट्रंक्वालिटी (CV 17 Acupressure Point)-

 

इसका स्थान घुटनों के नीचे लगभग चार अंगुल की दूरी पर होता है। इस जगह पर दबाने से इनडाइजेशन, डायरिया, कब्ज़, पेट फूलना, गैस, पेट दर्द जैसी परेशानियों में आराम पहुंचाता है।

 

कमांडिंग मिडिल–

 

ये प्वाइंट पैरों में घुटनों के ठीक पीछे होता है। यहां दबाने से पीठ में दर्द, कमर में अकड़न, घुटनों में आर्थराइटिस, बैक और हिप्स के अलावा साइटिका में फायदा होता है।

 

शेन मैन (Shen Men Point)-

 

ये प्वाइंट कान के ऊपरी हिस्से में होता हैं। यहां दबाने से स्मोकिंग की लत, तनाव, डिप्रेशन, नींद की बीमारी में फायदा होता है।

 

सैकरल प्वाइंट्स–

 

अनेक एक्यूप्रेशर (Acupressure therapy) बिंदु रीढ़ की हड्डी के ठीक नीचे टेल बोन के पास होते हैं। यहां दबाने से साइटिका, लोवर बैक पेन, पीरियड्स की तकलीफ में आराम मिलता होता हैं।

 

बिगर रशिंग–

 

इस पॉइंट का स्थान पैरों में अंगूठे और बड़ी उंगली के बीच  होता है। यहां दबाने से सिर दर्द, आंखों की थकान, हैंगओवर में फायदा होता है। साथ ही इम्यून सिस्टम भी बेहतर बनता है।

 

कैसे करें एक्यूप्रेशर?

  • सबसे पहले किसी सुविधाजनक स्थान का चयन करें। अब अपनी आखें बंद करके लंबी सांस लें
  • उसके बाद एक्यूप्रेशर बिंदु पर धीरे-धीरे दबाते हुए मालिश करें।
  • मालिश कितनी बार करें इसका कोई नियम नहीं है। इसलिए अपनी सुविधा अनुसार इसका चयन करें।
  • प्रत्येक व्यक्ति इस चिकित्सा का प्रयोग स्वयं कर सकता है और किसी की मदद भी ले सकता है। लेकिन एक्यूप्रेशर (Acupressure therapy) के अच्छे जानकार से मालिश करवाना ज्यादा बेहतर होता है।

एक्यूप्रेशर थेरेपी के नुकसान;

 

वैसे तो एक्यूप्रेशर चिकित्सा का प्रयोग करने से केवल फायदे होते हैं। लेकिन व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर इसके कुछ दुष्परिणाम भी सामने आये हैं-

 
  • अधिक दबाव देने से शरीर के किसी भी अंग को नुकसान पहुंच सकता है और कम तीव्रता का दबाव दर्द को ठीक करने में असफल साबित हो सकता है।
  • गलत स्थान (acupressure point) पर दबाव डालने से जिस बीमारी के लिए एक्यूप्रेशर किया जा रहा है, उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि शरीर के अन्य अंग में दर्द हो सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं को पेट संबंधित एक्यूप्रेशर कराने से बचना चाहिए।
  • जख्म, सूजन, घाव होने पर एक्यूप्रेशर नहीं करना चाहिए है। इन स्थानों पर किया गया एक्यूप्रेशर गलत साबित हो सकता है।
  • इस चिकित्सा का प्रयोग भोजन, अल्कोहल या नशीले पदार्थों के सेवन के बाद नहीं करना चाहिए।
  • ज्यादा पुरानी बीमारी होने पर एक्यूप्रेशर थेरेपी से फायदे की जगह नुकसान हो सकता है।
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Salt therapy: Types, Benefits, and Process

Posted 21 December, 2021

Salt therapy: Types, Benefits, and Process

Salt therapy, also known as Halotherapy, is a form of alternative medicine. It is a natural therapy mainly known to treat respiratory problems such as asthma and bronchitis. Salt therapy can also relieve mental illnesses such as anxiety, stress, and depression. This therapy is completely drug-free. The therapy room for salt therapy is given the appearance of a salt cave. The patients are kept in the room for one hour after controlling the climate and temperature of the room.

 

In this therapy, during breathing, salt particles reach the lungs through the windpipe and treat the patient. Thus, this therapy is very helpful in healing the skin and cleaning the windpipe. Salt therapy is also considered beneficial in treating certain skin-related problems such as acne, eczema, and psoriasis.

 

Advantages of salt therapy

 
  • Dry salt has a great absorbing capacity and has natural anti-inflammatory as well as antibacterial properties. On inhaling salt, it causes mucus thinning. This facilitates dislodging and expulsion along with pathogens and pollutants.
  • Particles of dry salt help in stimulating the body’s natural cilia movement. Cilia help keep our airways clear of dirt and mucus, which makes breathing easy. Salt accelerates this process.
  • For the skin, dry salt can regulate the pH level, absorb the skin impurities, and provide a glow. It reduces inflammation and encourages natural exfoliation and regeneration.
  • With this therapy, small marks on the skin are removed, and the skin becomes shiny.
  • Pregnant women can also take advantage of this therapy.
  • After taking the therapy, the patient feels extra energy in the body.

Conditions treated with Halotherapy

 

Halotherapy can help relieve the respiratory, skin, and lifestyle conditions, such as-

 
  • Cold & Flu
  • Asthma
  • Hay Fever
  • Sleep & Snoring
  • bronchitis, sinusitis
  • Cures infections
  • Skin diseases such as tonsillitis, or fibroids
  • Mental problems such as anxiety, stress and depression
  • Eczema & Psoriasis

Types of salt therapy

 

There are two types of salt therapy –

 

Dry Salt Therapy –

 

During dry salt therapy, patients are kept in a man-made salt cave to control the temperature. In this salt room, a device called halogener serves to grind the salt. Due to which micro particles of salt are spread in the air it destroys bacteria.

 

Therefore, the salt particles inside the body by breathing gives relief from all kinds of infections. It is said that the microparticles of salt present in the atmosphere reduce inflammation by going inside the breath and cleaning the windpipe. Besides, they also help to dilute the mucus and absorb toxins present in the body. These salt particles are also considered beneficial for the skin, as the salt used in this therapy is naturally antibacterial.

 

Wet Salt Therapy –

 

Wet Salt Therapy uses salt and water. Therapists perform wet salt therapy in two ways-

 
  • Gargle with salt and water.
  • Bathing with salt water.

Method of salt therapy

 

During salt therapy, the therapist asks the patient to wear comfortable clothes such as light shirts, sleeveless T-shirts, and shorts to get the maximum benefit of salt therapy through the skin. The patient sits in a salt cave for about 45 minutes. The lights in the room are dim. The Halo Generator machine controls the salt particles of the room based on the patient’s illness.

 

The humidity and temperature (18–22 ° C) in the therapy room is similar to that of a marine location. While giving therapy, patients should inhale only 16mg of salt in an hour’s session.

 

SIDE-EFFECTS OF SALT THERAPY

 

Salt therapy has no known severe side effects. Since they do the therapy in a wellness clinic or spa, without professional medical staff.

 
  • Halotherapy might irritate the airwaves in asthmatic people.
  • This can further worsen coughing, wheezing, and shortness of breath.
  • Some people also get headaches during halotherapy.
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What is detoxification? Know its importance and methods

Posted 17 March, 2022

What is detoxification? Know its importance and methods

Detoxification is the physiological process by which the body is free from toxins. Toxins here mean substances that negatively impact health. It contains all the metals, chemicals, pollution, and artificial foods, which harm the body in any way.

 

We often take some important precautions to avoid these toxins. But it is not enough just to be careful. Because through water, food, and air, we are constantly exposed to many harmful organisms and pollutants. Therefore, it is not completely correct to say that we will avoid those substances only by taking precautions.

 

Importance of Detoxification-

 

Always remember the good things and forget the bad things. This helps to lead a happy life. In the same way, to keep the body healthy, it is also important to remove toxins from the body.

 

For this, the body needs to be detoxified. The following detoxification functions can naturally cleanse the body-

 
  • Try to give comfort to body parts through fasting.
  • Try to stimulate the liver to get the toxins out of the body.
  • Take out the toxins through the intestines, kidneys, and skin.
  • Improve circulation of blood.
  • Keep the body healthy with the necessary nutrients.

Process of Detoxification?

 

The excretory system performs the major task of detoxifying the body. The skin flushes out toxins through acne and perspiration. Despite this, numerous toxins remain in the body which can be removed by relaxing muscles through fasting and by some natural agents such as blood flow. The body also detoxifies itself round the clock which involves the excretion of toxins by the brain at bedtime.

 

Indications

 

When you feel sluggish, stressed, sleepy and irritable, you are not as healthy as you are at any other time. Through many other similar signals, the body indicates the need for detoxification. These are as follows:
 
  • Irritated skin
  • Bad stomach
  • Acidity (stomach gas) or bloating
  • Allergies
  • Unexplained fatigue
  • Irritability because of aroma
  • Bad breath
  • Peeping under the eyes
  • Low-grade infection
  • Menstrual problem
  • Mental confusion

Methods of detoxification

 

Drink plenty of water

 

Water is the best tool for detoxification of the body. Water is required in all the basic functions of the body. It is needed to produce saliva and tears, sweat, and remove waste. Therefore, drink 8-10 glasses of water a day.

 

Get Vitamin C-

 

Vitamin-C produces glutathione in the body. Glutathione is a type of liver compound that helps in removing toxins from the body. Therefore, to supply vitamin C to the body, drink one glass of lemonade every day. Also, use lemon and citrus fruits in food.

 

Eat fiber-rich diet-

 

Eat brown rice and fresh fruits and vegetables. Be sure to eat excellent detox foods such as beets, cabbage, radish, broccoli, and other types of cabbage. They are high in fiber. Juice and fresh fruit-vegetable juice also help in the detox process.

 

Adopt whole food-

 

Our food is the primary source of toxins and chemicals. So eat preservatives and colouring agent-free foods. For this, use unprocessed foods such as unpolished pulses, rice, and other organic varieties of grains.

 

Increase physical exertion-

 

Increasing physical activity helps in sweating. This works to flush out the toxins through the skin. Doing physical activity also releases hormones and chemicals in the muscles, which relaxes the body.

 

Breathe clean-

 

Breathing in a polluted environment causes pollutants to enter our bodies, which are quite harmful. So always try to keep the surrounding clean and pollution-free. Also, plant green plants around the houses and take care of them.

 

Besides, mildew, smoke, and microorganisms also make the home air more toxic than outside. Practice breathing exercises to circulate oxygen in the body at a faster rate.

 

Yoga-

 

Yoga improves bodily processes and also detoxifies the body parts. It is one of the most prominent methods of detoxification. Therefore, include at least one Yogasana in your daily routine. Yoga affects the body positively. Therefore, one must practise meditation and posture.

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सुजोक थेरेपी का सिद्धांत और उपचार

Posted 25 May, 2022

सुजोक थेरेपी का सिद्धांत और उपचार

ब्रह्मांड में सभी वस्तुएं पांच तत्वों से मिलकर बनी हैं। यहां तक की मानव शरीर भी। यह तत्व हैं अग्नि, जल, आकाश, वायु और पृथ्वी। जब भी इन तत्वों में असंतुलन पैदा होता है तो शरीर बीमार हो जाता है। ऐसे में प्रभावी अंग अपने से संबंधित जोड़ को सावधान होने का संकेत देते हैं। जिसके बाद जोड़ो में दर्द उत्पन्न होने लगता है। सुजोक थेरेपी इसी सिद्धांत पर कार्य करती है।

 

कई रोगों के समूल (समूह) को खत्म करके मरीज को स्वास्थ्य करने का काम सुजोक थेरेपी करती है। इसलिए इसे चमत्कारिक थेरेपी भी कहा जाता हैं। इस थेरेपी में माना जाता है कि मानव शरीर मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना है- एक सिर, दो हाथ, दो पैर।

 

इन पांचो अंगों का संबंध शरीर के बीच के हिस्सों से होता है। इसी तरह हाथ के पंजे से पांच उंगलियां जुड़ी होती हैं। इसके अतिरिक्त दोनों हाथों में तीन जोड़ होते हैं। जिन्हें कंधा, कोहनी और कलाई कहा जाता है। पैर में भी तीन जोड़ होते हैं। जिन्हे कुल्हा, घुटना और टखना कहा जाता है।

 

सुजोक थेरेपी का सिद्धांत?

 

सुजोक चिकित्सा पद्धति के सिद्धांत को सादृश्य सिद्धांत नाम से भी जाना जाता है। इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार मानव शरीर में बारह मार्गों से ऊर्जा का प्रवाह होता है। इन मार्गों को ‘मेरिडियन’ कहते हैं। जब यह प्रवाह सामान्य रूप से होता है तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है। लेकिन ऊर्जा के प्रवाह-मार्ग में रुकावट आने के कारण शरीर में बीमारियों का जन्म होता है। सुजोक चिकित्सा पद्धति द्वारा ऊर्जा के इसी प्रवाह को नियंत्रित करके मनुष्य को रोगों से मुक्त करने का प्रयास किया जाता है।

 

इन्हीं मेरेडियन के माध्यम से शरीर जीवन उपयोगी ऊर्जा ब्रह्मांड से ग्रहण करता है। इस चेतना शक्ति को विश्व के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे भारत में प्राण, आत्मा, जीव एवं प्राण-शक्ति कहते हैं। दूसरे देशों में इसे यूनिवर्सल लाइफ फोर्स एनर्जी, कॉस्मिक एनर्जी तथा चीन और जापान में ‘ची’, ‘की’ एवं शिआत्सु नाम से जाना जाता है।

 

सुजोक थेरेपी का उपचार-

 

शरीर की ऊर्जा में आए असंतुलन को ठीक करने के कई तरीके हैं। जैसे सुई से, बीज से, चुंबक से, मॉक्सा हर्ब से, जोड़ों की मसाज करके हाथ और पांव का इलाज किया जाता है। इस पद्धति द्वारा इलाज करने में दर्द नहीं होता। इस इलाज के दौरान कई रोगों में बीज या छोटे चुंबक को समस्या वाले क्षेत्र पर टेप से चिपका दिया जाता है। इसमें शरीर के आगे के हिस्से को हथेली की ओर और पीछे के हिस्से को हथेली के पीछे की ओर माना जाता है।

 

थेरेपी में किन टूल्स का होता है इस्तेमाल?

 

सुजोक थेरेपी के लिए अनेक टूल्स का प्रयोग किया जाता है। जो एक्यूप्रेशर में प्रयोग किए जाने वाले प्रोब या स्टिम्युलेटर टूल होते हैं। जिन्हें डायग्नोस्टिक स्टिक भी कहा जाता है। प्रोब या स्टिम्युलेट करने के बाद मसाजर, मॉक्सा हर्ब (Moxa herb) आदि से इलाज शुरू करता है। शरीर में दर्द, ब्लॉकेज, जोड़ों में दर्द, रीढ़ की हड्डी से संबंधित कोई परेशानी होने पर इस जड़ी-बूटी का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त गठिया, दमा, बंद नाक, कब्ज, एसिडिटी, मधुमेह जैसे कई रोगों में मॉक्सा हर्ब कारगर होती है।

 

थेरेपी में कितने तरह से होता है इलाज?

 

सुजोक चिकित्सा में दो तरीके से इलाज होता है। पहला- फिजिकल और दूसरा- मेटाफिजिकल। फिजिकल में शरीर के वह अंग आते हैं, जिन्हें हम देख सकते। इन अंगों को फिजिकल तरीके से ही स्टिम्युलेट करना होता है। मेटाफिजिकल में वह अंग आते हैं, जिन्हें हम देख नहीं सकते। शरीर में प्राण ऊर्जा, एनर्जी लेवल, चक्र, मेरीडियन, पंच तत्व आदि को संतुलित करने के लिए जो उपचार किया जाता है, उसे सिक्स की कहा जाता है। इसके उपचार से किसी भी तरह की कमी और अधिकता को संतुलित किया जा सकता हैं।

 

विभिन्न बीमारियों में सुजोक थेरेपी से उपचार

 

अस्थमा

 

इसमें कलाई और हथेली के जोड़ पर केंद्र में प्वाइंट खोजकर उसपर एक उंगली से एक मिनट तक तेज दबाव बनाएं। इससे सांस लेने की दिक्कत, कफ, और गले की खराश में आराम लगने लगता है। इसके अतिरिक्त अंगूठे के ठीक नीचे के बिंदु पर भी एक मिनट तक उंगली से तेज बदाव बनाने से भी कफ और फेफड़ों की समस्याओं में राहत मिलती है।

 

साइनस

 

साइनस से पीड़ित लोगों की नाक हमेशा बहती है या जाम हो जाती है। यहां किसी भी सिस्टम से अंदर नाक के कॉरेसपॉन्डिंग प्वॉइंट्स की पहचान की जाती है। फिर उस प्वॉइंट पर नीला रंग लगाया जाता है। जिसके बाद साइनस में आराम मिलने लगता है। इसके लिए 16 सिटिंग लेनी पड़ती हैं। इसमें कलर खुद-ब-खुद हीलिंग का काम करता है। कलर थेरेपी के बाद इलास्टिक रिंग मसाज का इस्तेमाल किया जाता है। यदि समस्या नाक बंद की है तो मसाज के लिए लाल रंग का प्रयोग किया जाता है। अंगूठे के उभरे हुआ हिस्सा को चेहरे की नाक माना जाता है। इसलिए रंगों का इस्तेमाल अंगूठे के इसी हिस्से में करते हैं। यह 0-30 सेकेंड तक करना होता है।

 

सर्वाइकल

 

सुजोक थेरेपी के अनुसार मानव शरीर में गर्दन के ऊपर चार से छह इंच का हिस्सा सर्वाइकल क्षेत्र कहलाता है। इस थेरेपी में हाथ को हथेली की तरफ पलटकर ऊपर से नीचे की ओर, अंगूठे का पहला और दूसरे जोड़ का हिस्सा सर्वाइकल क्षेत्र होता है। इन दोनों क्षेत्रों के बीचो-बीच मेरुदंड प्वॉइंट होता है। इसे दबाने पर दर्द महसूस होता है। इसलिए इलाज के रूप में लाल रंग का इस्तेमाल करते हुए इस प्वॉइंट पर दबाव देना चाहिए। इसके अतिरिक्त मरीज दोनों अंगूठों को अपनी ठोड़ी पर लगाते हुए ऊपर की ओर ले जाएं। और वहां कुछ सेकेंड या मिनट तक रोके। इसे प्रक्रिया को नियमित रूप से करने पर कुछ दिनों में आराम मिलने लगता है।

 

आर्थराइटिस

 

सुजोक थेरेपी के मुताबिक मध्यमा और अनामिका उंगलियों के ज्वॉइंट से बिंदुओं की पहचान की जाती है। यह दोनों उंगलियां पांव से संबंधित होती हैं। इनका पहला जोड़ कूल्हा, घुटने व टखने को रिप्रेजेंट करता है। आर्थराइटिस में भी दो तरह की प्रॉब्लम्स होती हैं। जिसमें पहली है- जोड़ों का जकड़ना। इसमें व्यक्ति को उठने-बैठने की समस्या और जोड़ों के लचीलेपन में रुकावट आ जाती है। ऐसे में उंगलियों को पेन-पेंसिल आदि से दबाने पर किसी प्वॉइंट पर दर्द का आभास होगा। इसलिए इस चिकित्सा में हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। दूसरी प्रॉब्लम है- घुटने या जोड़ों में बहुत दर्द की वजह से उठने-बैठने में मुश्किल होना। ऐसे में उंगलियों के प्वॉइंट पर लाल रंग का इस्तेमाल करना चाहिए।

 

माइग्रेन

 

सुजोक थेरेपी में सिर व मस्तिष्क से संबंधित हर रोग का इलाज किया जाता है। सुजोक के मुताबिक अंगूठे को चेहरा माना जाता है। इसलिए अंगूठे का सबसे ऊपरी हिस्सा माथा होता है। क्योंकि माइग्रेन या सिर दर्द का मुख्य वजह गैस होती है। इसके अलावा किसी को जोड़ों में तो किसी को रीढ़ की हड्डी में दर्द होता है। इसलिए अंगूठे के दाएं-बाएं (किनारे पर) स्थित प्वॉइंट पर भूरे रंग के मार्कर से प्रेशर देकर इलाज करना चाहिए। इसमें दोनों अंगूठों को मिला कर कुल 6 प्वॉइंट पर मार्कर का प्रयोग करते हैं। सुजोक थेरेपी का प्रयोग करने से पहले या बाद में चाय या कॉफी का इस्तेमाल करना अच्छा होता चाहिए।

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साल्ट थेरेपी के फायदे और प्रकार

Posted 25 May, 2022

साल्ट थेरेपी के फायदे और प्रकार

क्या है साल्ट थेरेपी?

 

साल्ट थेरेपी या हेलोथेरेपी (Halotherapy) एक प्राकृतिक चिकित्सा है। इसे मुख्य रूप से अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस संबंधी समस्याओं के लिए एक वैकल्पिक उपचार के रूप में जाना जाता है। साल्ट थेरेपी चिंता, तनाव और डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों से भी छुटकारा दिला सकती है।

 

यह थेरेपी पूरी तरह से ड्रग फ्री होती है। साल्ट थेरेपी के लिए थेरेपी रूम को नमक की गुफा का रूप दिया जाता है। यहां की जलवायु और तापमान को नियंत्रित कर मरीजों को एक घंटे तक रूम में रखा जाता है। इस थेरेपी में सांस लेने के दौरान नमक के कण सांस की नली से होते हुए फेफड़े तक पहुंचकर रोगी का उपचार करते हैं। इस प्रकार त्वचा को ठीक करने और सांस की नली को साफ करने में यह थेरेपी काफी मददगार होती है। त्वचा से संबंधित कुछ समस्याएं जैसे मुंहासे, एक्जिमा और सोरायसिस के इलाज में भी हेलोथेरेपी को फायदेमंद माना जाता है।

 

साल्ट थेरेपी के फायदे

  • साल्ट थेरेपी की मदद से क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, साइनोसाइटिस, सोरायसिस और एग्जाम आदि रोगों का इलाज संभव हैं
  • हेलोथेरेपी लेने के दौरान नमक के कण सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंचते हैं। जिससे संक्रमण की समस्या में राहत मिलती है।
  • त्वचा संबंधी रोग, टॉन्सिलाइटिस या फायब्रॉइड्स की समस्या में भी साल्ट थेरेपी लाभदायक है।
  • सॉल्ट थेरेपी चिंता, तनाव और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं को ठीक करती है।
  • इस थेरेपी से त्वचा पर होने वाले छोटे-मोटे निशान दूर हो जाते हैं और त्वचा चमकदार बनती है।
  • गर्भवती महिलाएं भी इस थेरेपी का लाभ उठा सकती हैं।
  • थेरेपी लेने के बाद रोगी शरीर में नई ऊर्जा महसूस करता है।
  • हेलोथेरेपी का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।

प्रकार

 

साल्ट थेरेपी दो प्रकार की होती है-

 

सूखी साल्ट थेरेपी–

 

सूखी साल्ट थेरेपी के दौरान मरीजों को एक मानव निर्मित नमक की गुफा में रख कर तापमान नियंत्रित कर दिया जाता है। इस नमक के कमरे में हेलोजेनर नामक उपकरण नमक को पीसने का काम करता है। जिससे नमक के सूक्ष्म कण हवा में फैल जाते हैं। नमक बैक्टीरिया का नाश करता है। इसलिए सांस के द्वारा शरीर के अंदर पहुंचे नमक के कणों से मरीजों को हर तरह के इंफेक्शन से राहत मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि वातावरण में मौजूद नमक के सूक्ष्म कण सांस द्वारा अंदर जाकर सूजन को कम करते हैं और सांस की नली को साफ करते हैं। इसके अलावा यह बलगम को पतला और शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करने में मदद करते हैं। नमक के यह कण त्वचा के लिए भी फायदेमंद माने जाते हैं, क्योंकि इस थेरेपी में उपयोग किया जाने वाला नमक प्राकृतिक रूप से एंटी-बैक्टीरियल होता है।

 

गीली साल्ट थेरेपी-

 

इस थेरेपी में नमक और पानी दोनों का उपयोग किया जाता है। गीली सॉल्ट थेरेपी को 2 तरीकों से कर सकते हैं। पहला- नमक और पानी से गरारा करना। दूसरा- खारे पानी से स्नान करना।

 

हेलोथेरेपी की विधि-

 

साल्ट थेरेपी के दौरान रोगी को हल्की कमीज, स्लीवलेस टी-शर्ट और शॉर्ट्स जैसे आरामदायक कपड़े पहनने को कहा जाता है ताकि त्वचा के माध्यम से नमक थेरेपी का ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सकें। मरीज को नमक की गुफा में 45 मिनट तक बैठाया जाता है। इस कमरे में कम रोशनी होती है। हैलो जेनरेटर मशीन की मदद से मरीज की बीमारी के आधार पर रूम के तमाम सॉल्ट पार्टिकल्स को नियंत्रित किया जाता है। थेरेपी रूम में नमी और तापमान (18-22 डिग्री सेल्सियस) समुद्री स्थान जैसा होता है। थेरेपी देते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है की एक घंटे के सेशन में मरीज सिर्फ 16 एमजी नमक ही इनहेल करें। हेलोथेरेपी को करने से किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं देखा गया है।

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क्या होता है डिटॉक्सिफिकेशन? जानें, इसके महत्व और तरीके

Posted 17 March, 2022

क्या होता है डिटॉक्सिफिकेशन? जानें, इसके महत्व और तरीके

डिटॉक्सिफिकेशन वह शारीरिक प्रक्रिया है जिसकी मदद से शरीर विषाक्त पदार्थों (Toxin) से मुक्त होता है। यहां विषाक्त पदार्थों का मतलब उन पदार्थों से है, जो स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसमें वह सभी धातुएं, रसायन, प्रदूषण और कृत्रिम खाद्य पदार्थ आते हैं, जो किसी भी तरह से शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं।

 

वैसे इन विषाक्त पदार्थों से बचने के लिए कुछ जरूरी सावधानियां बरती जा सकती हैं। लेकिन सिर्फ सावधानी बरतना या उसके सहारे पूरा जीवन निकालना काफी नहीं है। क्योंकि पानी, भोजन और हवा के माध्यम से हम और आप रोजाना कई हानिकारक जीवों और प्रदूषकों के संपर्क आते रहते हैं। इसलिए यह कहना पूरी तरह से ठीक नहीं है, कि केवल सावधानी बरतने से हम उन पदार्थों से बचे रहेंगे।

 

डिटॉक्सिफिकेशन का महत्व-

 

जिस तरह से हमेशा खुश रहने के लिए बुरी चीजों को भूलकर, अच्छी चीजों को याद रखना जरूरी होता है। उसी तरह से शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बॉडी से भी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना जरूरी है। इसके लिए शरीर को डिटॉक्सीफाई करने की जरूरत पड़ती है।

 

निम्नलिखित डिटॉक्सिफिकेशन कार्यों से शरीर की प्राकृतिक रूप से सफाई की जा सकती है;

 
  • उपवास के माध्यम से शरीर के अंगों को आराम देने की कोशिश करें।
  • विषाक्त पदार्थों को बॉडी से बाहर निकालने के लिए लिवर (यकृत) को उत्तेजित करने की कोशिश करें।
  • आंतों, गुर्दे और त्वचा के माध्यम से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालें।
  • रक्त के परिसंचरण में सुधार करें।
  • जरूरी पोषक तत्वों के साथ शरीर को स्वस्थ रखें।

कैसी होती है डेटॉक्स प्रक्रिया?

शरीर को डिटॉक्स करने का प्रमुख काम उत्सर्जन तंत्र करता है। त्वचा मुंहासे और पसीने के जरिए विषाक्त पदार्थों को बाहर करती है। इसके बावजूद भी बड़ी संख्या में विषाक्त पदार्थ शरीर में रह जाते हैं। उपवास के माध्यम से मांसपेशियों को आराम देकर और रक्त बहाव जैसे कुछ प्राकृतिक एजेंटों के द्वारा हटाया जा सकता है।  शरीर भी खुद को चौबीसों घंटे डिटॉक्स करता रहता है।जिसमें मस्तिष्क द्वारा सोते समय विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना शामिल है।

 

शरीर को डेटॉक्स की ज़रूरत के संकेत;

 

जब आप आलस, तनाव, नींद और चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं, तो उस समय उतने स्वस्थ नहीं होते जितना किसी और समय पर होते हैं। इसी तरह के कई संकेतों के माध्यम से शरीर विषहरण (डिटॉक्सिफिकेशन) के समय के बारे में बताता है। जोकि निम्नलिखित हैं-

 
  • त्वचा पर खारिश (irritated skin)।
  • खराब पेट।
  • अम्लता (पेट की गैस) यासूजन।
  • एलर्जी।
  • अस्पष्टीकृत थकान (Unexplained fatigue)।
  • सुगंध के कारण चिड़चिड़ापन।।
  • सांस से बदबू आना
  • आंखों के नीचे झांकियां होना।
  • निम्न श्रेणी का संक्रमण (low-grade infection)।
  • मासिक धर्म संबंधी समस्या।
  • मानसिक भ्रम की स्थिति।

डिटॉक्सिफिकेशन करने के तरीके;

खूब पानी पिएं-
 

शरीर के डिटॉक्सिफिकेशन के लिए पानी सबसे अच्छा उपकरण है। पानी की आवश्यकता शरीर के सभी बुनियादी कार्यों में पड़ती है।लार और आंसू का उत्पादन करने, पसीने की मदद करने और कचरे को हटाने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। इसलिए दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए।

 
विटामिन सीप्राप्त करें-
 

विटामिन-सी से शरीर में ग्लूटाथियोन (Glutathione) का उत्पादन होता है। ग्लूटाथियोन एक प्रकार का यकृत यौगिक होता है। जो विषाक्त पदार्थों को शरीर से दूर करने में मदद करता है। इसलिए शरीर में विटामिन-सी की पूर्ती करने के लिए हर दिन एक गिलास नींबू पानी का सेवन करें।साथ ही खाने में नींबू और खट्टे फलों का प्रयोग करें।

 
फाइबर युक्त आहार का सेवन करें-
 

ब्राउन राइस और ताजे फल-सब्जियां खाएं। बीट, गांठ गोभी, मूली, ब्रोकली और अन्य प्रकार की गोभी आदि उत्कृष्ट डिटॉक्स खाद्य पदार्थों का सेवन जरूर करें। इनमें फाइबर अधिक मात्रा में होता है। जूस और ताज़े फल-सब्जियों का रस भी डिटॉक्स प्रक्रिया में मदद करता है।

 
साबुत भोजन को अपनाएं-
 

हमारा भोजन ही विषाक्त पदार्थोंऔररसायनों काप्रमुख स्रोत है।इसलिए परिरक्षकों और रंग एजेंट मुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें। इसके लिए दाल, चावल और अनाज की अन्य जैविक किस्मों का प्रयोग करें।

 
शारीरिक परिश्रम बढ़ाएं-

शारीरिक गतिविधि बढ़ाने से पसीनाबनने में मदद मिलती है।जो त्वचा के जरिए विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है।शारीरिक गतिविधि करने से मांसपेशियों में हार्मोन और रसायन भी निकलते हैं, जो शरीर को आराम देते हैं।

 
स्वच्छ सांस लें-
 

प्रदूषित वातावरण में सांस लेने से प्रदूषक के तत्व हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं, जो काफी हानिकारक होते हैं। इसलिए आस-पास के वातावरण को हमेशा साफ और प्रदूषण रहित रखने की कोशिश करें।साथ ही घरों के आस-पास हरे पौधेलगाएं और उनका ध्यान रखें।

 

इसके अलावा पालतू जानवरों की रूसी, फफूंदी, धुआंऔर सूक्ष्मजीव भी घर की हवा को बाहर की तुलना में ज्यादा विषाक्त बनाते हैं। इसलिए इन कारणों से बचने का प्रयास करें और ऑक्सीजन को शरीर में अधिक तेज गति से प्रसारित करने के लिए लंबी सांस लें।

 
योगासन का सहारा लें-
 

योग एक शारीरिक व्यवस्था है। यह शारीरिक प्रक्रियाओं में सुधार करता है और शरीर के अंगों को डिटॉक्स भी करता है। योग डिटॉक्सिफिकेशन के सबसे प्रमुख तरीकों में से एक है। इसलिए दैनिक दिनचर्या में कम से कम एक योगासन जरूर करें।

 

योग शरीर को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसलिए व्यक्ति को ध्यान और आसन का अभ्यास जरूर करना चाहिए।

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फिटकरी

Posted 25 May, 2022

फिटकरी

हर घर में बहुत सामान्य रूप से फिटकरी का प्रयोग किया जाता है। अधिकांश लोगों को फिटकरी का नाम सुनते ही शेविंग के बाद इस्तेमाल की जाने वाली फिटकरी याद आती है। पर फिटकरी के यूज इससे कईं ज्यादा हैं।

 

असल में यह एक ऐसा पदार्थ  है, जो पानी को स्वच्छ बनाने से लेकर स्किन में चमक लाने जैसे कार्यों में मदद करती है। रंग के आधार पर लाल और सफेद फिटकरी को सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। 

 

क्या है फिटकरी? 

 

फिटकरी एक रंगहीन और पारदर्शी पदार्थ है। जो क्रिस्टल या दानेदान पाउडर के रूप में पाई जाती है। इसका स्‍वाद कसैला और हल्का मीठा होता है। इसे अंग्रेजी में एलम और साइंटिफिक भाषा में पोटैशियम एल्यूमीनियम सल्फेट कहा जाता है। साबुत नमक की तरह दिखने वाले इस पत्थर में कई औषधीय गुण होते हैं। जिसके कारण इसे चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत अहम माना गया है। 

 

आयुर्वेद में फिटकरी को सौराष्‍ट्री और फितकारी कहा जाता है। इसका उपयोग तमाम उपचारों के लिए किया जाता है। क्योंकि इसमें पीड़ाहर (दर्द हटाने वाला), ज्वरनाशक (बुखार उतारने वाला), होमियोस्टैटिक, डिटर्जेंट, संक्षारक, उत्तेजक और चिड़चिड़ाहट को दूर करने वाले गुण होते हैं। इसके अतिरिक्त यह सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होती है।

 

फिटकरी में पाए जाने वाले औषधीय गुण;

 
  • एंटीबायोटिक (सूक्ष्म जीवों को खत्म करने वाला)
  • एंटी इंफ्लेमेटरी (सूजन को कम करने वाला)
  • एस्ट्रिंजेंट (संकुचन पैदा करने वाला)
  • एंटी-ट्राइकोमोनस (प्रोटोजोआ इन्फेक्शन को कम करने वाला)
  • एंटीऑक्सीडेंट (मुक्त कणों के प्रभाव को नष्ट करने वाला)

फिटकरी के प्रकार और उनका इस्तेमाल;

 
पोटैशियम एलम-

पोटैशियम एलम को पोटाश एलम और पोटैशियम एलम सल्फेट भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल पानी को साफ करने के लिए किया जाता है।

 
अमोनियम एलम-

अमोनियम एलम एक सफेद क्रिस्टलीय पत्थर होता है। इसका प्रयोग आफ्टर शेव लोशन और हाथों से जुड़े प्रोडक्टों और व्यक्तिगत देखभाल संबंधी उत्पादों के निर्माण के लिए किया जाता है।

 
क्रोम एलम-

यह भी फिटकरी का ही प्रकार है। इसे क्रोमियम पोटैशियम सल्फेट भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल चमड़ा बनाने वाली प्रक्रिया में होता है।

 
सोडियम एलम-

यह फिटकरी का अकार्बनिक (Inorganic) कंपाउंड है। इसको सोडा-एलम भी कहा जाता है। इसका प्रयोग बेकिंग पाउडर बनाने और फूड एडिटिव के लिए किया जाता है। इसलिए इसे खाने वाली फिटकरी भी बोला जाता है।

 
सेलेनेट एलम-

यह भी फिटकरी का ही प्रकार है बस इसमें सल्फर की जगह सेलेनियम मौजूद होता है। इसलिए इसे एंटी-सेप्टिक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है।

 
एल्‍यूमीनियम सल्‍फेट-

इसे पेपरमेकर फिटकरी के रूप में भी जाना जाता है। पर तकनीकी रूप से यह फिटकरी नहीं है।

 

फिटकरी के फायदे;

 

दैनिक जीवन में फिटकरी सौंदर्य से लेकर गंभीर चोट, मांसपेशीय ऐंठन और मुंहासों जैसी कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्याओं को ठीक करने में फायदा करती है। चलिए जानते हैं फिटकरी के इसी तरह के कुछ अन्य फायदों के बारे में- 

 
दांतों के लिए बेहतर-
 

फिटकरी दांतों में होने वाले छेद या कैविटी को ठीक करने में मदद करती है। इसलिए इसका नियमित उपयोग दांतों के लिए अच्छा रहता है। इसके अतिरिक्त यह दांतों में लगने वाले कीड़े (Tooth worm) को भी दूर करती है। 

 
माउथवॉश के लिए उपयोगी-
 

टर्की के गाजी विश्वविद्यालय द्वारा की रिसर्च के अनुसार, फिटकरी दांतों पर जमा प्लाक को हटाने और लार में उपस्थित हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करने में सहायता करती है। इसलिए इसको माउथवॉश के लिए उपयोगी माना गया है।

 
शरीर की दुर्गन्ध हटाने में सक्षम-
 

फिटकरी तन की दुर्गन्ध हटाने में भी लाभकारी मानी जाती है। इसमें एंटीबैक्टीरियल (बैक्टीरिया को नष्ट करने वाला) गुण होता है। इसलिए पानी में इसको मिलाकर नहाने से तन की दुर्गन्ध पैदा करने वाले बैक्टीरिया खत्म होते हैं और शरीर की बदबू दूर होती है। फिटकरी के इसी गुण के कारण कई कंपनियां इसका इस्तेमाल डियोड्रेंट बनाने में करती हैं।

 
झुर्रियों और बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने में सक्षम-
 

एनसीबीआई के शोध के अनुसार यह एक प्राकृतिक एस्ट्रिंजेंट है। जो त्वचा में कसाव लाकर बेजान, रूखी और लटकी त्वचा को ठीक करने में सहायता करती है। इसके इसी गुण के कारण कई कॉस्मेटिक क्रीम में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

 
जुओं से दिलाए आजादी-
 

यह बालों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती है। यह बालों को जुओं से आजादी दिलाने का काम करती है। इसके लिए फिटकरी का पेस्ट बनाकर स्कैल्प (खोपड़) पर लगाना होता है। 

 
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन में लाभकारी-
 

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) से जुड़ी समस्याओं में भी यह फायदा करती हैं। दरअसल फिटकरी एक स्ट्रांग एस्ट्रिंजेंट है, जो रक्तस्राव वाले हिस्से पर प्रभावी रूप से कार्य करती है। किसी संक्रमण के कारण मूत्राशय से होने वाले रक्तस्राव को रोकने में फिटकरी मदद करती है। इसलिए यह यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन में भी लाभकारी सिद्ध होती है। बस कभी इसे सीधे प्राइवेट पार्ट पर न लगाएं। ऐसा करने से तेज जलन की समस्या हो सकती है। 

 
घाव के लिए सबसे बढ़िया औषधि-
 

यह को घाव भरने के लिए सबसे बढ़िया औषधि माना जाता है। इसके लिए फिटकरी को सीधे या पेस्ट के रूप में घाव पर एक से दो मिनट तक लगाकर रखें और उसके बाद पानी से धोएं। ऐसा करने से घाव पर मौजूद बैक्टीरिया मरते हैं और घाव जल्दी ठीक होता है।

 
मुंहासों के लिए फायदेमंद-
 

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ वूमेंस डर्मेटोलॉजी द्वारा की गई रिसर्च के अनुसार इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण होते हैं। जो रोम छिद्रों में कसाव लाकर मुंहासों की समस्या को ठीक करते हैं। क्योंकि रोम छिद्रों के बड़े होने के कारण ही मुंहासों की समस्या उत्पन्न होती है। और फिटकरी इन रोम छिद्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

 
आंख के फोड़े के लिए असरदार-
 

आंख के फोड़े को ठीक करने के लिए यह एक बढ़िया उपाय है। इसके लिए फिटकरी और चंदन का पेस्ट बनाकर आंख के फोड़े पर लगाएं। इससे आंख पर प्रभावी असर पड़ता है और फोड़ा उसी दिन फूट जाता है। जिसके बाद आंखों को काफी आराम मिलता है। 

 

फिटकरी के नुकसान;

 
  • पोटैशियम एलम का अधिक प्रयोग त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • इसका अधिक सेवन पुरुषों में वीर्य और फ्रक्‍टोज (semen and fructose) के स्तर को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • इसका लंबे समय तक सेवन करना कैंसर और अल्‍जाइमर (भूलने की बीमारी) का कारण हो सकता है।
  • एलम का अधिक प्रयोग पेचिश (Dysentery) और त्वचा के सूखापन जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।
  • नाजुक त्वचा पर इसके कारण चकते और लाली जैसी समस्या हो सकती है।
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Cupping Therapy: Procedure, Benefits, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Cupping Therapy: Procedure, Benefits, and Side-effects

Cupping Therapy, also known as Hijama, is an ancient healing therapy used for thousands of years. It is a form of Traditional and Chinese Medicine (TCM) to cure recurring pain in certain body parts. 

 

Therapists do this to ease the pain with the help of cups. A therapist places cups on several parts of the body such as the stomach, arms, back, or legs. The cups create suction which pulls the skin upward. It is one of the most effective ways to release the toxins from the body tissues and organs.

 

What is Cupping Therapy?

It is a technique where small glass cups or bamboo jars act as suction devices. Therapists place the cups on the affected areas of the body to disperse and break up stagnation and congestion. It works by drawing congested blood, or energy to the surface.

 

Therapists use glass cups for this therapy. The other cups used in the therapy are:

 
  • Plastic Cups
  • Bamboo Cups
  • Ceramic Cups
  • Metal Cups
  • Silicone Cups

Types of Cupping Therapy

 

Cupping is done by different techniques. The major types are-

 

Wet Cupping

 

In wet cupping, the skin is punctured and blood is drawn out in the suction process before the cups are placed.

 

In case of wet cupping, honey is applied to fix the cups as well as for the skin scarification, hence enhancing the process of healing. 

 

Dry Cupping

 

In dry cupping, the bottom of a glass cup is rinsed with methylated spirits, set alight, and placed over the skin. The flame stops the supply of oxygen, which causes a partial vacuum and the skin is sucked inside the glass.

 

Benefits of Cupping Therapy

 

Faster Pain Relief

 

Cupping can help in relieving recurring pains caused due to problems such as arthritis, lower back pain, etc. It also cures headache, dental pain, muscle pain, sciatica, etc.

 

Cupping increases blood circulation and mobility. This makes it an effective treatment for conditions like rheumatism, stiff neck, and shoulders.

 

Keeping the Skin Healthy

Cupping improves the blood flow in the skin and also increases the supply of oxygen and required nutrients for healthy skin. It also helps in reducing the relapse of acne and other skin diseases like eczema. 

 

Cupping therapy also helps in the expansion of the blood vessels to facilitate blood flow and also remove toxins from the surface of the skin.

 

Reduces Fatigue & provides relaxation

 

Cupping acts as massage and provides relaxation to the body. This makes it an effective treatment for reducing fatigue. 

 

Relief from Lung Diseases

 

Cupping is an effective remedy for treating lung disorders like asthma, bronchial congestion, chronic cough, and pleurisy.

 

Relieves Digestive Problems

 

Cupping helps provide relief in digestive problems caused due to malnutrition, chronic stress, or poor response of the immune system.

 

Healing Urinary Diseases

 

Cupping therapy can be used for treating urinary diseases such as urine retention, kidney stones, and abscess. Urine retention is also treated by placing the cups in the lumbar region.

 

Faster healing

 

Cupping increases the blood flow in the areas that need healing. The increased blood flow and energy also assists in faster healing.

 

Procedure of Cupping Therapy

During the procedure, a cup is placed on the skin, which is heated, or suction is created onto the skin. The cups to be placed are heated in fire using herbs, alcohol, or paper. These are directly placed into the cup. After the cup is heated, it is placed on the skin with the open side touching the skin.

 

Practitioners following modern cupping techniques use rubber pumps to create suction instead of traditional heating methods.

 

When the hot cup is placed on the skin, the trapped air inside the cup cools down and creates a vacuum. This draws the skin and muscle upward into the cup. The skin may turn red as a response to the change in pressure.

 

After the removal of the cups, the practitioner may cover apply ointment or bandages to the cupped areas. This is done to prevent infection. 

 

Cupping is also clubbed with acupuncture treatments. For best results, the patient may be asked to fast or eat only light meals 2-3 hours before a cupping session.

 

Pre- and post-procedure

 
  • Inform the patient properly about the procedure and what to expect post treatment.
  • It is essential to take the consent of the patient if required. 
  • Clean or disinfected the surface properly before performing the therapy.
  • Use new sterilized disposable needles/ surgical blades and disposable cups for wet cupping.
  • Check for skin abnormalities such as cracks, wounds, and temperature of the patient.
  • Therapists should check skin sensitivity.
  • Apply an antiseptic or moisturizer to prevent any possible infection after the procedure.
  • After hijama cupping, the dressing must be done.

Precautions of Cupping Therapy

  • Do not use it for inflamed or irritated skin. Do not perform it on or over arteries, veins, lymph nodes, eyes, or any fractures.
  • Avoid the therapy in pregnancy. Children, older adults, and people with certain health conditions should also stay away from cupping. 
  • People who are on blood-thinning medication should not get cupping therapy.

 Side-effects of Cupping Therapy

 
  • Cupping causes circular discolorations (usually fade in a few days or weeks). The side effects include pinching experienced during skin suction. 
  • Hijama may cause several problems such as burns, dizziness, nausea, swelling, and pain.
  • It also causes light-headedness, fainting, sweating, and skin pigmentation. 
  • It can also cause some rare adverse effects such as blisters, iron deficiency anemia, acquired hemophilia A, thrombocytopenia, and skin pigmentation. Infection, scarring, and blood loss may also occur with wet cupping.
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Air Therapy- Procedure, Techniques, and Benefits

Posted 21 December, 2021

Air Therapy- Procedure, Techniques, and Benefits

Air and water are among the basic elements of life on earth. Life exists on earth due to both of them. The human body is made up of the five elements of earth, sky, air, water, and fire. Among these, the air is considered the second fundamental element. Just as water is life, the air is the soul of living creatures. If we do not breathe for a few seconds, we often feel suffocated.

 

Therefore, air is a vital element for human beings to live. Air therapy helps human beings to treat all the diseases of the body through air intake.

 

Procedure of Air therapy

The maximum benefit of air therapy can be availed through an air bath. It is believed that clean and fresh air is very important for good health. Therefore, every person should take an air bath for 30 minutes or more daily. In the process of air therapy, a person should wear light clothing and walk in a secluded place where sufficient fresh air is available. This makes the blood flow faster. This therapy helps to overcome arthritis, skin disorders, nervousness, mental and other disorders.

 

Techniques of Air therapy

  • Air Bath
  • Breathing

 Air Bath

 

Air Bath is also known as Morning Walk or Air intake. In the common language, it is also called air eating or walking. Feeding fresh air to the body is called an Air Bath. It is an action through which both internal and external parts of the body are cleaned. If this activity is carried out by removing clothes or wearing light clothes, it proves to be beneficial for the body.

 

Breathing is very important for the pores of the skin too. The pores also breathe through the air. Wearing tight clothes all the time makes the body pale as the skin pores are closed due to fit clothes. These result in diseases like constipation, chest pain, gas, and diabetes.

 

Consuming air in this form is not only a necessity of life but also an art that is the best exercise in the world.

 

Breathing

 

Breathing is the direct source of getting air inside the body. The way it is done is an art that is a part of Air therapy. Different ways of breathing are-

 
  • Diaphragmatic Breathing- In this, the diaphragm muscle is designed to reduce the space in the abdominal cavity each time we intake the air. The stomach expands when we intake and that is why this is sometimes referred to as “belly breath”.
  • Thoracic Breathing- If the diaphragm doesn’t subside on inhaling, the chest must expand to take the air that has been sniffed into the lungs. This is the ideal way of practicing ashtanga yoga. However, it is quite unusual to make it a default breathing pattern.
  • Clavicular Breathing- Most people are not aware of the actual space taken by the lungs in the body. The upper part of each lung is above the collarbone. This type of breathing is the one in which the upper part of the lungs is filled with air. The clavicles are lifted when air is inhaled.
  • Paradoxical Breathing- This is a strange form of breathing, where the chest compresses on the air intake rather than expanding and vice versa. This is the natural mode of breathing widely practiced by the masses. If not so, one should be aware of their breathing patterns.

Benefits of Air therapy

Air therapy provides numerous benefits that help in multiple processes. Here are some benefits of Air therapy:

 

Respiration-

 

As air therapy is directly linked with breathing, it assists respiration by strengthening the respiratory system.

 

Since all the exercises associated with Air therapy are connected with lungs and breathing exercises. Therefore, fresh air not only helps the lungs but skin as well. It facilitates oxygen intake and throws out carbon dioxide. It boosts the process of respiration and makes it more efficient.

 

Blood circulation-

 

Air therapy helps in boosting the blood circulation in the body. It increases the flow of oxygen in the blood. This further helps in the better functioning of the body. The more the skin takes in the fresh air the better the body gets support in working properly.

 

Releases Body toxins-

Air therapy helps in releasing harmful toxins and waste material from the body. With the help of Air therapy, the toxins are shredded from the body in the form of sweating which makes skin as well as the body, healthier.

 

Glowing Skin-

 

Air therapy heals the body in multiple ways by releasing toxins from the body. In this process, the clogged pores are opened and they release waste from it. This promotes glowing and healthy skin.

 

Uplifts mood-

 

Fresh air is the best remedy for switching moods. Inhaling some fresh air takes up the stress and provides freshness to the body and mind. It allows mental peace. Hence, people look for a vacation to the hills for this purpose.

 

Air therapy makes a person feel light and attains a state of calmness which further uplifts his/her mood.

 

Precautions

  • People with problems such as high Blood pressure, hyperacidity, gastric ulcers & hernia should avoid these exercises.
  • Women in pregnancy should also avoid air therapy.
  • People who have recently had surgery should avoid breathing exercises for at least 6 months.
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8 types of intelligence - Vedobi Way

Posted 22 December, 2021

8 types of intelligence - Vedobi Way

Naturalistic Intelligence

We have seen before that how some people can develop anything, sometimes looks like they have a 'green thumb'. With the help of which they are easily associated with animals and some people are at home due to nature. Natural describes those who are sensitive to the natural world. They enjoy living outside the natural, nurturing, and exploring the environment. There are also people with high naturalistic intelligence who are very sensitive to small changes in nature and the environment around them.

 

Musical intelligence

Nowadays music-savvy people are usually more sensitive to sound and they often pick up on things that were not usually known to others. He then also has an excellent sense of ability to recognize rhythm and pitch. More often they do not play an instrument or engage in music as a profession.

 

Logical-mathematical intelligence

Of all our types of intelligence, logical-mathematical intelligence is the most similar, which we usually associate with general intelligence. People with this type of intelligence are very sharp in mathematics and work with marks. These people easily recognize the pattern and perform various processes in it. They have excellent reasoning skills and can often get themselves out of trouble. People with more logical-mathematical intelligence are often drawn to strategy and puzzle-solving games.

 

Existential intelligence

Nowadays intelligent people with a high degree of existence often think very deeply about daily events. They ask similar questions why are we here? And what does all this mean? Those people are often deep philosophical thinkers and can find answers to big questions from their minds. Their intelligence is often called spiritual or moral intelligence.

 

Interpersonal intelligence

Do you have a natural ability to connect well with others? Are you capable of identifies the circumstance of the people and social situations? So, the possibility is that you should have a high degree of mutual intelligence. People with this type of intelligence are often able to read the verbal and non-verbal signals, as well as to determine temperament and mood. They feel sympathetic while often this type of intelligence is found in leaders, politicians, social workers, life coaches, and psychologists.

 

Interpersonal skills

 
  • Verbal communication
  • Non-verbal communication
  • Listening skills
  • Problem solving
  • Decision making

Linguistic intelligence

 

Linguistic intelligence is a type of intelligence that is most shared by humans. This includes our ability to think and use these words to make us think. People with high linguistic intelligence are very good at putting their feelings and thoughts into words so that others and people can understand them. They are also prepared for reading, writing, and public speaking activities.

 

 kinaesthetic intelligence

People with high levels of physical-kinaesthetic intelligence have an excellent sense of timing and great body coordination as well as fine and gross motor skills. Those people can use their bodies to express feelings and thoughts. These people often play roles in dance, sports, and medicine. They use their bodies to solve problems and make them meaningful.

 

 Characteristics of Kinaesthetic

 

 They must touch everything.

 
  • They are also well coordinated.
  • Some people enjoy playing games more than books.

  Intrapersonal intelligence

 

Have you ever understood your thoughts and feelings, and can you use this understanding in your everyday life? So, you should probably have high intra-personal intelligence. Intra-personal intelligence refers to one's understanding and the human condition. They are known as 'self-smart' people and, despite having a deep understanding of their feelings, they are often quite shy. These philosophers, spiritual leaders, psychologists, and writers generally have high inter-personal intelligence.

 

Characteristics of Intrapersonal

 

Like to work alone

 
  • Reflective and self-aware
  • Instinctual

 The intrapersonal person learns better when he is working alone and working on individualized projects.

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Try this Vedic routine for 15 days and see the change!!!

Posted 22 December, 2021

Try this Vedic routine for 15 days and see the change!!!

The value of Routine and regularity in everything, be it regular physical activity, rest or work, routine is very clearly emphasized in Ayurveda science. After observing it in daily and seasonal rhymes of life, the practitioners of Ayurveda adapted this routine in their lifestyles. The practical advice goes herewith then flow:

 

Wake up early.

 

Waking up before sunrise is a must. With the rising sun, rises loving (sattvic) qualities in nature that bring peace of mind and freshness to the senses. Although sunrise varies according to the seasons, yet on average everyone should get up about 5:30 a.m. After waking up, look at your hands for a few moments, then gently move them over your face and chest down to the waist. This cleans the aura and energy that surrounds you.

 

Spend time and attention on your morning ablutions, including the daily self-massage.

 

If you can, just say a Prayer before Leaving the Bed. Clean the Face, Mouth, and Eyes. Just drink a glass of normalised room temperature water. Have a habit of storing that one glass of water a night before, in copper utensil for better mineral gain. Then evacuate with proper bowel movements. Exercise because regular exercise, especially yoga, improves circulation, strength, and endurance. This would definitely help you to relax and have sound sleep, improves digestion and elimination. Practice exercising daily to half of your capacity, that measures to the level until sweat forms on the forehead, armpits, and spine.

 

Gently scrape the tongue from the back forward. Clean your Teeth. Chewing a handful of sesame seeds helps receding gums and strengthens teeth. Chewing in the morning stimulates the liver and the stomach and improves digestive fire. Have a good bath, preferably with cold water as it is cleansing and refreshing. By removing sweat, dirt, and fatigue, it brings energy to the body, clarity to the mind, and holiness to your life. The regular use of natural scents, essential oils or perfumes actually brings freshness, charm, and joy in life. It also gives vitality to the body and improves self-esteem.

 

Watch your dietary intakes with Good elimination.

 

In summers or hot days, the daily intake of your meals should be comparatively lighter and rather more substantial in cold season. Start your day with a smoothie for breakfast each morning durin work days. At mid-morning and mid-afternoon just have a snack that contains protein, each day. Try to pack two types of snacks and a lunch for a daily office meal. Also, be habitual of keeping a big bottle for water on your desk which you can fill every morning, keeping in mind that you should finish it by the end of the day. Fill a thermos or a nice teapot with hot water, put in three or four green tea bags and let it steep. Keep on sipping that potion of tea throughout the day in addition to your water.

 

Eat a good, fibrous breakfast, and have lunch at noon, when the body's agni or digestive fires are at their peak.

 

Meditate twice a day.

 

Transcendental Meditation is a proven stress-reduction technique. It is important to meditate morning and evening for at least 15 minutes. You can meditate your accustomed way or you can also explore the Empty Bowl Meditation technique. Meditation brings balance and peace into your life. Sit down and close your eyes. Take a "just-for-me" break right now, right here. Disconnect from the outer world and tune in to your own self. Even if you do this for a minute, you will feel healed. All those who practice the technique of Transcendental Meditation quote that their daily 20-minute sadhana helps conquer stress and increase positive energy and a sense of well-being.

 

Go with the flow of nature as often as you can.

 

Breathe deep. The practice of mindful breathing improves the flow of oxygen and other vital nutrients to the tiniest channels of the body, giving you an instant sense of well-being. Bond with nature. Try to connect with the most intimate way with the earth through spending time with flowers, butterflies, and trees. Ayurveda believes we are all an integral part of this all eternity. This sense of connection is tremendously soothing, particularly for those of us who are under stress.

 

Sleep on time — never after 10:00 p.m.

 

According to sleep science of Ayurveda, disease and disorders develop as the result of accumulated ama, or toxins, in the body. Disturbed digestion is a result of physical ama, it forms the breeding ground for disease. The mental ama can impact resistance to day-to-day stress. Lack of good-quality sleep is a major factor in generating high levels of mental ama. Nature intended sleep as a nightly ritual of rest and rejuvenation. When sleep does not come easy or is disturbed, the day's piled-up stresses, or ama, fail to be cleansed. A sound sleep of a good night time is, on the other hand, is important for increasing ojas, the vital life force.

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Drying Hands after washing, a must habit to stay protected!

Posted 22 December, 2021

Drying Hands after washing, a must habit to stay protected!

As per several researches conducted by international science forums, the proper drying of hands after a good wash is a must and could be very vital in staying away from infections and viral diseases.

 

On wet skin, the transmission of microorganisms and bacteria is more likely to occur. Even in this current pandemic situation, the World Health Organisation (WHO) has advised everyone to regularly and thoroughly clean their hands. And this can either be done with an alcohol-based hand sanitiser or with soap and water.

 

Effective washing of hands is thought to be done with clean water and soap, rubbed together for at least 20 seconds, followed by rinsing. The use of 70% and above alcohol, glycerine and gel-based sanitizers is particularly important for hand washing to be more effective than soap as research has shown that washing with sanitizers significantly reduces the presence of microbes (viruses and bacteria) on hands. The one basic point of staying protected which is usually neglected and under looked is the process of Drying your hands.

 

It may be often considered as a secondary requirement, yet most of us are unaware that drying wet hands is important to keep out bacteria and contamination at bay from our hands. The process of drying hands right after washing is mainly critical because if your hands remain damp, they can spread 1,000 times more bacteria than dry hands!!

 

More reasons of why you should dry your hands clean:

  • Proper hand hygiene minimises respiratory infections by 16%. This includes washing your hands with Sanitizers or soap and water, then drying it completely.
  • Not just Corona, Influenza virus survives on hands and surfaces for up to 48 hours.
  • According to research, there can be around 1,000 and more bacteria residing per cm2 on your  hand; Our single hand may carry a population count of over 200 million bacteria, per square inch.
  • Bacteria like E.Coli multiply its population every 20 minutes and stay alive in your hands for up to 3 hours.

Remember, washing hands is important. Drying hands after washing is equally important. It only takes seconds for your hands to be contaminated. Learn the correct way to wash your hands effectively with this 8 steps hand washing label.

 

Stop the Urge!! Don’t wash too much

 

It's important to keep your hands clean so you can prevent illness and the spread of germs. But possibly, washing your hands too much with soap and water may have its adverse effects. If you have Obsessive Compulsive Disorder (OCD) or suffer from anxiety, you may feel the need to constantly wash your hands, even if you've just washed them and haven't done anything to contaminate them and often wash their hands repeatedly until they are chapped, raw and sometimes even bleeding." Ouch! If you feel obsessed with hand washing and you constantly feel the urge to grab the soap, avoid it and choose good gel-based sanitizer.

 

Dry them Right!

 

Drying hands with a hot air dryer and towels are problematic in hospitals. It can increase the risk of particles as well as microorganism dispersion in air and can contaminate the environment. Cloth roller towels, too, are not recommended as normal use of towels can further contaminate the hands when a person dries them next time, thus acting a source of pathogen transmission. For this, the best way to dry hands after cleaning are disposable paper towels. It is advisable for those who are visiting hospitals be it staff, patient or a visitor. The report said that usage of paper towel is the quickest and efficient method that will help remove residual moisture. And if there is no moisture, there are no germs. Avoid damp, keep your hands dry and stay safe and protected.

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Your Kid’s Health Needs Herbal Happiness

Posted 22 December, 2021

Your Kid’s Health Needs Herbal Happiness

For many of us, the awe of a new life to look for safe, natural, inexpensive means of nurture has become a must but what about this healthy herbal supplementation to your kid’s health.

 

Since ancient medic times, herbalists are who we are and how our families work, healing practiced around the kitchen table around the world and across the centuries. Thank the Good Green Earth that home herbal-ism happens as a reflex, intuition built on a foundation of herbal fluency that allows us to live healthy in every moment.

 

Many herbal references either start with adulthood implications, glossing over the unique needs of the mature crowd entirely. This ignores the incredible spiritual and transformation power of little lives, both in their daily personal growth and change, and in their powerful role within a family and community. Children this age often need our support as they explore the world and how their body relates to it, engage with other beings, and discover their own perceptions.

 

Choices of Herbs: A selective must!

 

In any given moment of using herbs, we must consider a good choice in advance. What herbs are useful for a dry, hacking cough, or a stuck, wet cough, or a cough with back pain or a sinus headache or postnasal drip? Of the many herbs for cough, which is the perfect herb or combination for this unique cough?

 

When we work with toddlers and young children, there are extra considerations, given that they are fierce but tiny, and in a more-or-less constant state of anabolism and mental and physical development.

 

The first question to consider when choosing an herb or creating a formula for the daycare and preschool set is this:

 

Is this herb traditionally used in young children?

 

It may sound obvious, but we live in a culture where the new thing is often confused with the best thing. It can be easy to forget amid the chaos of the next incredible panacea from across the globe featured in glossy magazines and the nightly news, but we do not want to be experimenting on our little ones, we want to reach for the right herb the first time.

 

When searching for the right herb for a child, the best place to look is tradition: what have people always used for this issue in a person this age? What did our ancestors use, in our current region or elsewhere? What do the native people in our area traditionally use? In using traditional remedies we turn to thousands of years of healing tradition for guidance, and stand together with those who came before in practicing the healing arts. There is power, honor, and love in upholding good traditions. There is also safety: allow those who have come before to teach you their accomplishments, instead of reinventing the wheel at your kitchen table.

 

The second question to consider for herb choice is: How welcoming is this herb?

 

Some herbs are so safe to consume that they’re food ingredients or spices, like burdock, nettles, peppermint, and fennel. Other herbs are not food but still extremely benign, like catnip, lavender, and anise-hyssop. Then there are herbs that are benign but definitively medicinal, like skullcap, passionflower, and bee balm. Beyond that there is a whole range of herbs, up to dose-dependent medicines that make you sick (or worse) in doses beyond a few drops of tincture. 

 

I think of this as how welcoming an herb is, as to a disorderly houseguest: peppermint and burdock will let me stumble around in muddy boots and leave dishes in the sink without reprimand, but the lovely lobelia demands a hostess gift and a deep bow to get through the door.

 

 For young children, the best herbs are food herbs, herbs that are not food. These herbs tend to be very safe and gentle.

 

The third question to consider for herb choice is: Is this the gentlest herb you can think of?

 

Young children tend to be very sensitive: to medicines, to genetics, to spiritual awareness, to interpersonal dynamics, unhealthy relationships, unspoken nuance, and the vast mysteries of the universe. We always start with a small amount of the gentlest herbs we can find in the hopes of bolstering their innate vitality and helping maintain balance in their little bodies, not overbalancing them or spinning them way out on an energetic limb.

 

The last question to consider for herb choice is:

 

How safe is this herb?

 

Part of critical thinking is a formal check-back: you think you have your herb, now check back intentionally to be sure that you couldn’t possibly harm anyone. What other actions does the herb have? Are there any known contraindications? If the child in questions is on pharmaceuticals, extreme caution is required to avoid any potential interactions; depending on the situation, a professional clinical herbalist with pediatric experience may be your best bet for medically fragile children. Avoid dose dependent herbs, and anything potentially dangerous or toxic.

 

Formula Construction: Stay Centered

 

Often, toddlers and young children do very well when given a simple (just one herb). Since they’re so sensitive to both nuance and intervention, we can often do a lot with a very small dose of the one right herb delivered in just the right way.

 

That said, sometimes they benefit from formulas. In these cases, it is essential to remember that this age group is both very receptive and in a constant state of growth and change, physically, mentally, and spiritually.

 

Balance:

 

Balance is at the heart of all schools of holistic medicine. It is a focus on nurturing our existing strengths and restoring areas that have eroded. We use herbs to maintain balance, or to return a system to balance when things get wonky, without overcompensating in the other direction.

 

Toddlers and young children are more sensitive and receptive than older children, teens, and adults, so it is extremely important to keep the principle of balance at the center of your mind when formulating for this age group. Choose gentle herbs with balanced or gentle energetics, and formulate with balance as a central focus.

 

Synergy:

 

The principle of synergy states that the whole is greater than the sum of its parts. This is pivotal in formulation, when we combine plants and ask them to work together for greater healing. For toddlers and young children, looking at traditional formulas for enlightenment as to ideal combinations is a good place to start. Trust your intuition about which herbs seem to magnify each other: hawthorn and rose, hyssop and bee balm, witch hazel and marshmallow—which combinations do you find the most powerful?

 

Remember that synergy can be enhanced by the route of administration, so consider how you will deliver your remedy. Will this be most powerful as a syrup, the soothing slide of honey accentuating the magic of elecampane? Or maybe a steam, taking advantage of thyme’s volatile oils as they evaporate into the ether? Not all things must be tea.

 

Electuaries

 

Electuaries are herbs that make a formula taste good, such as lavender, rose, licorice, elderberry, peppermint, etc. They drastically increase the efficacy of formulas for toddlers and young children, as demon-possessed orangutans thankfully haven’t lost their sweet tooth (and if your child is perfectly well-behaved when they don’t feel good, just keep that to yourself, thank you). Obviously, if the remedy tastes good, they’re more likely to take it.

 

 Consider synergy: what flavors enhance each other? Is that a sign that perhaps the herbs are boosting each other in other ways too?

 

A sweet taste is very appropriate for young children, as it appeals to their active anabolic nature, providing grounding nourishment to send medicine deep, along with a replenishing energy boost. They crave it for a reason, after all; all that growth and change requires a lot of input, and the brain lives on glucose.

 

Energetic Science

 

Young children’s energetic sciences are noticeably different from their older counterparts. They are more delicate and sensitive as a baseline. How they manifest illness and imbalance varies by the individual of course, but the incredible anabolism and transformation of this age tends itself toward a balanced state that is more toward the warm and moist part of the circle, with plenty of movement and little stagnation or constriction (we grow into that, lucky things).

 

 And Finally…

 

Pinpointing which herb is the most appropriate in a given situation is one of the main hurdles we must leap as we develop our skills as home herbalists. These decisions are especially fraught when we’re working with limited supplies, limited experience, and a furious toddler, perhaps on limited sleep. As you tailor your home apothecary to your family’s unique needs, I hope these tips are helpful for choosing appropriate herbs.

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STAY IMMUNE - THE VEDIC WAY!!

Posted 22 December, 2021

STAY IMMUNE - THE VEDIC WAY!!

In Ayurveda, Immunity theory is referred as ‘beej-bhumi’ theory, which means "seed and land." In this case, the body is analogous to the land, and infection or "bugs" are like seeds. According to Ayurveda, our IMMUNITY i.e., Vyadhikshamatva‟ is made up of two words; Vyadhi (disease) and Kshamatva  (suppress  or  overcome).

 

The Condition referred to as Vyadhi comes into existence as a consequence of non-equilibrium between Doshas (physiological factors i.e vata, pitta & kapha), Dhatus (tissues systems) and Malas (excretory products of body).  These factors, in them normal status is responsible in maintaining the physical and psychological health. 

The other word, Kshamatva is derived from, “Kshamus  sahane”  which  means  to  be patient or composed to suppress anger, to keep quite or to  resist.  Therefore ‘Vyadhikshamatwa’ means the factor which limits the pathogenesis and opposes the strength of diseases. The term is explained in two divisions:

 

(I) Vyadhi-balavirodhitvam: This is called as the strength or capacity of a human body to restrain or withstand the disease i.e.  the strength to resist any sort of progress of acquired disease. 

 
(II)  Vyadhi-utpadakapratibandhakatva:  The resisting power of the body competent enough
 

to prevent the occurrence and re-occurrence of the disease. 

 

These sub-types of Vyadhikshamatva commutative form the resistance which now. a day known as Immunity. There are nine factors mentioned in Ayurveda which promotes body towards incapability to resist the disease’s manifestation i.e.  factors responsible for decreasing immunity.

 
  1. Ati- Sthoola (Excessively obese persons
  2. Ati-Krisha (Excessively emaciated person)
  3. Anivista-Mamsa (Individual having improper musculature
  4. Anivista-Asthi (persons having defective bone tissues
  5. Anivista-Shonita (persons with defective blood
  6. Durbala (Constantly weak person
  7. Asatmya-Aaharopachita (Those nourished with unwholesome food)
 

Health, according to Ayurveda is a balanced expression of all five elements. The five elements in Ayurveda are described as Air, Fire, Water, Earth and Ether. The elemental system describes the functional relationship of all phenomena in nature.

 

Ayurveda Believes that symptoms are just imbalance in the body. They are not the disease. Treat the imbalance and the disease will never be there. The balance of all types like the physical balance, emotional balance, mental balance along with environmental mindfulness and spiritual progression is very well recognized in Ayurveda as a total health picture.

 

Ayurveda is based on balancing the elements Air, Fire, Water, Earth and Ether through diet, herbs, essential oils, breathwork, movement, emotional bodywork, meditation, crystals, and daily lifestyle practices. What remains undaunted and unchanged during the lifetime is the very basic constitution of the individual, as it is genetically determined. Since birth, that exact elementary combination, stays unchanged. However, the combination of elements that governs the continuous physio-pathological changes in the body alters in response to changes in the environment.

 
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