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जानें, स्पॉन्डिलाइटिस का प्राकृतिक उपचार, कारण और लक्षण

Posted 21 October, 2023

जानें, स्पॉन्डिलाइटिस का प्राकृतिक उपचार, कारण और लक्षण

स्पॉन्डिलाइटिस क्या है?

स्पॉन्डिलाइटिस, जिसे कभी-कभी "स्पॉन्डिलोअर्थराइटिस" कहा जाता है, गठिया का एक रूप है जो आम तौर पर रीढ़ की हड्डी में होता है, हालांकि यह अन्य जोड़ों को भी प्रभावित कर सकता है। वास्तव में, "स्पॉन्डिलाइटिस" शब्द संबंधित बीमारियों के समूह से जुड़ा हुआ है जिनकी प्रगति और लक्षण तो समान हैं, लेकिन ये बीमारियां शरीर के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं। रीढ़ की हड्डी के गठिया को स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। दर्द और जकड़न जो गर्दन से शुरू होकर पीठ के निचले हिस्से तक जारी रहती है, स्पॉन्डिलाइटिस कहलाती है। इसके परिणामस्वरूप रीढ़ की विकृति भी हो सकती है जिससे झुकी हुई मुद्रा हो सकती है। स्पॉन्डिलाइटिस एक ऐसी स्थिति है जो दुर्बल कर देती है और व्यक्ति को दिन-प्रतिदिन की सामान्य गतिविधियों को करने से रोकती है। स्पॉन्डिलाइटिस उम्र या लिंग के बावजूद कई लोगों को प्रभावित करता है। दर्द, जकड़न, रीढ़ की हड्डी का बढ़ना, लिगामेंट और टेंडन में दर्द के अलावा, व्यक्ति थकान, बुखार, भूख न लगना, आंखों का लाल होना जैसी अन्य स्थितियों से भी पीड़ित हो सकता है।

यह कशेरुक (वर्टिब्रे: कई कशेरुक मिल कर रीढ़ की हड्डी बनाती हैं) की गंभीर सूजन का कारण बनती है, जो अंततः गंभीर पीड़ा और अक्षमता का कारण बनती है। कई गंभीर मामलों में, सूजन के कारण रीढ़ की हड्डी पर एक नई हड्डी बन सकती है (बोन स्पर)। इससे शारीरिक विकृति भी हो सकती है। इसमें, पीठ में कशेरुक एक साथ फ्यूज हो जाते हैं जिससे कूबड़ होता है और लचीलेपन में कमी आती है। कुछ मामलों में, इससे पसलियां भी प्रभावित होती हैं जिससे सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। स्पॉन्डिलाइटिस महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करता है।

 

स्पोंडिलोसिस और स्पॉन्डिलाइटिस में क्या अंतर है?

हालांकि दोनों स्थितियां यानी स्पॉन्डिलाइटिस और स्पोंडिलोसिस का रीढ़ की हड्डी पर प्रभाव पड़ता है, लेकिन अंतर हैं। जबकि स्पॉन्डिलाइटिस का रीढ़ पर एक सूजन-संबंधी प्रभाव पड़ता है, स्पोंडिलोसिस का अपक्षयी प्रभाव होता है। पूर्व में कशेरुकाओं के बीच जोड़ों की सूजन की विशेषता होती है, जबकि बाद वाला इंटरवर्टेब्रल डिस्क और रीढ़ की हड्डी के अध: पतन को दर्शाता है जो बोनी स्पर्स के गठन को दर्शाता है।

 

एंकिलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस:

इसमें रीढ़ और पेल्विस में सूजन आ जाती है जिससे पीठ में सूजन भी हो जाती है। यह आमतौर पर 45 साल की उम्र में शुरू होता है और यह ज्यादातर समय निरंतर गतिविधि से बेहतर होता है लेकिन आराम करने से नहीं।

जैसे-जैसे समय बीतता है सूजन से एंकिलोसिस हो सकता है जो रीढ़ में नई हड्डी का निर्माण होता है। इस प्रकार रीढ़ की हड्डी को स्थिर स्थिति में स्थिर करना।

 

एंटरोपैथिक गठिया:

यह सूजन आंत्र रोग से जुड़ा हुआ है। इसमें आंत की सूजन होती है और इसमें आंत्र शामिल होता है जो फिर से एंटरोपैथिक गठिया की एक प्रमुख विशेषता है। इसके लक्षणों में पेट दर्द, वजन घटना, दीर्घकालिक दस्त, मल में खून आना शामिल हैं।

 

सोरियाटिक गठिया:

इसमें हाथ-पैर के जोड़ों में लगातार सूजन और दर्द बना रहता है। कुछ लोगों में सोरियाटिक अर्थराइटिस के कारण त्वचा पर रैशेज भी हो जाते हैं। कभी-कभी रीढ़ में अकड़न भी होती है।

 

प्रतिक्रियाशील गठिया:

प्रतिक्रियाशील गठिया में आंत या मूत्र पथ में संक्रमण होता है। इससे जोड़ों, आंखों, जननांगों, मूत्राशय, श्लेष्मा झिल्ली में सूजन और दर्द भी हो सकता है।

 

किशोर स्पोंडिलोआर्थराइटिस:

ये लक्षण बचपन में शुरू होते हैं और सामान्य स्पॉन्डिलाइटिस की तरह दिखते हैं। इसमें टेंडन या लिगामेंट के मिलने वाली जगह पर सूजन आ जाती है।

 

स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण क्या हैं?

ज्यादातर समय स्पॉन्डिलाइटिस उम्र से संबंधित समस्याओं के कारण होता है और वे किसी भी सटीक लक्षण का अनुभव नहीं करते हैं।स्पॉन्डिलाइटिस के सबसे आम लक्षण हल्के दर्द और जकड़न हैं जो एक निश्चित अवधि के बाद और लंबे समय तक बैठने से खराब हो सकते हैं।

कुछ गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं जिनमें शामिल हैं:

  • खराब समन्वय।
  • मांसपेशियों में दर्द या ऐंठन।
  • रीढ़ की हड्डी को हिलाने पर चटकने या पीसने जैसा महसूस होना।
  • हाथ या पैर में कमजोरी।
  • मूत्राशय या आंत्र नियंत्रण पर नियंत्रण का नुकसान।
  • चलने में कठिनाई या संतुलन खोना।
स्पॉन्डिलाइटिस के कारण -

वर्तमान में स्पॉन्डिलाइटिस का कारण अज्ञात है। अधिकांश स्पॉन्डिलाइटिस से ग्रस्त लोगों में एचएलए-बी 27 (HLA-B27) नामक जीन पाया जाता है। यद्यपि इस जीन वाले लोगों को स्पॉन्डिलाइटिस होने की आशंका अधिक होती है, लेकिन यह ऐसे में भी पाया जाता है जिनमें ये जीन नहीं होता। यह विकार अनुवांशिक होता है, इसलिए इसके होने में जेनेटिक्स भी एक भूमिका निभाते हैं। यदि किसी व्यक्ति के परिवार में इस बीमारी का इतिहास है तो उसे स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित होने की अधिक आशंका रहती है। स्पॉन्डिलाइटिस से जुड़े कुछ कारण निम्नलिखित हो सकते हैं :

  • जोड़ों और ऊतकों में पहले से सूजन, जो स्पॉन्डिलाइटिस से होने वाली समस्याओं को और बढ़ा सकती है।
  • व्यायाम न करना मोटापे से ग्रस्त होना।
  • धूम्रपान।
  • अत्यधिक शराब पीना।
  • कमर की पुरानी समस्याएं जैसे डीजेनेरेटिव डिस्क या स्पाइनल स्टेनोसिस।
स्पॉन्डिलाइटिस का प्राकृतिक उपचार-
  • योग करना स्पॉन्डिलाइटिस में अत्यंत उपयोगी माना जाता है।
  • रेंज-ऑफ-मोशन (गति सीमा) अभ्यास, साथ ही ताकत-प्रशिक्षण अभ्यास, स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं। ये दोनों अभ्यास जोड़ों को मजबूत कर सकते हैं और उन्हें अधिक लचीला होने में मदद कर सकते हैं। डॉक्टर आपको एक शारीरिक चिकित्सक के पास भी भेज सकते हैं ताकि आप सीख सकें कि इन अभ्यासों को सही सुरक्षित तरीके से कैसे किया जाए।
  • स्ट्रेचिंग आपके जोड़ों को अधिक लचीला बनाती है और ताकत में सुधार करती है। इससे जोड़ों में कम दर्द होता है और गति सीमा बेहतर होती है।
  • रीढ़ की हड्डी में अकड़न से खराब मुद्रा की समस्या हो सकती है। समय के साथ, रीढ़ की हड्डी में फ्यूजन के चलते कूबड़ की समस्या हो सकती है। अच्छी मुद्रा के अभ्यास से इसका जोखिम कम किया जा सकता है।
  • हीटिंग पैड या गर्म पानी से स्नान रीढ़ और अन्य प्रभावित जोड़ों में दर्द और अकड़न को कम करने में मदद करता है। आइस पैक जोड़ों में सूजन और दर्द को कम करता है।
  • एक्यूपंक्चर दर्द और स्पॉन्डिलाइटिस के अन्य लक्षणों में राहत दे सकता है। इसमें दर्द में राहत देने वाले प्राकृतिक हार्मोन को सक्रिय किया जाता है।
  • मालिश आरामदेय और उत्साहवर्धक होने के अलावा, आपको लचीलापन बनाए रखने और गति सीमा में सुधार करने में मदद करती है। मालिश चिकित्सक अवश्य बताएं कि आप स्पॉन्डिलाइटिस से ग्रस्त हैं। उन्हें रीढ़ की हड्डी के आसपास की संवेदनशील बिंदुओं का पता रहता है।
  • स्पॉन्डिलाइटिस का एक उपचार स्वस्थ जीवनशैली भी है।
  • लचीलापन और गति सीमा को बनाए रखने में आपकी सहायता के लिए दैनिक व्यायाम और मुद्रा अभ्यास के लिए कहा जाता है। निम्न अभ्यासों में से प्रत्येक स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
  • तैराकी गहरी।
  • सांस लेना।
कब जाएं डॉक्टर किए पास?

अगर आपको निचली पीठ या कूल्हों में दर्द होता है जो सुबह बढ़ जाता है और उससे रात सोने में भी परेशानी रहती है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। अगर आप या कोई प्रियजन हार्ट फेल होने के लक्षणों का अनुभव करते हैं जैसे कि सीने में दर्द, सांस की तकलीफ, थकान और कन्फ्यूजन, तो तुरंत एम्बुलेंस कॉल करें।

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जानें, एड़ी की हड्डी बढ़ने के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 20 October, 2023

जानें, एड़ी की हड्डी बढ़ने के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

एड़ी की हड्डी बढ़ना क्या है?

एड़ी की हड्डी बढ़ना एक ऐसी स्थिति है जिसमें एड़ी और पंजे के बीच के हिस्से में कैल्शियम के जमा होने के कारण हड्डी जैसा उभार हो जाता है। यह समस्या ज़्यादातर एड़ी के आगे के हिस्से में शुरू होती है और फिर पांव के अन्य हिस्सों को प्रभावित करती है। एड़ी की हड्डी बिना वजह भी बढ़ सकती है या इसका किसी समस्या से सम्बन्ध भी हो सकता है। यह उभार आमतौर पर, एक इंच के चौथाई हिस्से जितने लम्बे होते हैं इसीलिए ज़रूरी नहीं है कि आपको यह दिखें। एड़ी की हड्डी बढ़ने से एड़ी के आगे के हिस्से में दर्द, सूजन और जलन जैसे लक्षण होते हैं।

एड़ी की हड्डी बढ़ने का पता लगाने के लिए डॉक्टर शारीरिक परीक्षण और एक्स रे करते हैं। इस समस्या से बचने के लिए सही नाप के जूते पहनें, अधिक व्यायाम करने से पहले वार्म-अप करें और एक स्वस्थ वज़न बनाए रखें। एड़ी की हड्डी बढ़ने के इलाज के लिए दवाओं, शारीरिक व्यायाम, “ब्रेसेस” और कुछ मामलों में "सर्जरी" का उपयोग किया जाता है।

 

एड़ी की हड्डी बढ़ने के लक्षण-

एड़ी की हड्डी बढ़ने के लक्षण निम्नलिखित हैं-

ज़्यादातर एड़ी की हड्डी बढ़ने के कोई लक्षण नहीं होते और इससे दर्द भी नहीं होता। एड़ी की हड्डी बढ़ने के लक्षण निम्नलिखित हैं -

  • एड़ी के आगे के हिस्से में जलन व सूजन होना।
  • प्रभावित क्षेत्र गर्म महसूस होना।
  • सुबह खड़े होने पर बहुत तेज़ दर्द होना।
  • दिन के समय एड़ी में हल्का दर्द होना।
  • एड़ी के निचले हिस्से में एक छोटा हड्डी जैसा उभार दिखना।
  • एड़ी के निचले हिस्से में हाथ लगाने से दर्द होना जिसके कारण नंगे पैर न चल पाना।
  • एड़ी की हड्डी बढ़ने का मुख्य लक्षण होता है दर्द, लेकिन हर व्यक्ति को अलग-अलग प्रकार का दर्द हो सकता है।

एड़ी की बढ़ी हुई हड्डी वाले क्षेत्र में मौजूद ऊतक कभी-कभी सूज जाते हैं, जिससे अन्य लक्षण भी होते हैं, जैसे-

  • दौड़ते या पैदल चलते समय दर्द होना।
  • लम्बे समय के बाद खड़े होने या पंजे का इस्तेमाल करने पर चाक़ू भोंकने जैसा चुभने वाला बहुत तेज़ दर्द हो सकता है।
  • कभी-कभी यह दर्द हल्का हो जाता है लेकिन दौड़ने या उछलने से बढ़ जाता है।
  • दर्द की वजह हड्डी बढ़ना नहीं बल्कि ऊतकों का बढ़ना होता है।
  • लोगों को ज़्यादा समय बैठे रहने के बाद खड़े होने पर तेज़ दर्द होता है।
  • कभी-कभी लोगों को सुबह उठकर खड़े होने पर एड़ी में सुई चुभने जैसा दर्द होता है और बाद में यह दर्द हल्का हो जाता है।
एड़ी की हड्डी बढ़ने का कारण-

एड़ी की हड्डी के बढ़ने का कारण होता है "प्लैंटर फेशिया" (एड़ी और पंजे बीच के भाग को सहारा देने वाला एक मोटा ऊतक) के ऊपर अधिक दबाव बनना या चोट लगना। ज़्यादातर शोधकर्ताओं के अनुसार, एड़ी और पंजे के बीच की जगह व अन्य ऊतकों को नुक्सान से बचाने के लिए हमारा शरीर एड़ी की हड्डी बढ़ने की प्रक्रिया करता है। "प्लैंटर फेशिया" में मोच और चोट लगने से शरीर प्रभावित क्षेत्र को ठीक करने के लिए वहां कैल्शियम एकत्रित करने लगता है, ज़रूरत से अधिक कैल्शियम एकत्रित हो जाने पर एक हड्डी जैसा उभार बन जाता है।

 

एड़ी की हड्डी बढ़ने के जोखिम कारक-
  • जूते - पुराने, किसी के द्वारा पहने गए या सही नाप के जूते न पहनने से पांव में मोच या चोट लग सकती है, जिससे एड़ी की हड्डी बढ़ती है।

  • चाल - गलत या असामान्य तरीके से चलने से आपके पांव के कुछ हिस्सों पर अधिक दबाव बनता है जिससे मोच आती है और एड़ी की हड्डी बढ़ती है।

  • वजन - वजन ज़्यादा होना से पांव के नीचे के लिगमेंट पर अधिक दबाव बना रहता है, जिससे एड़ी की हड्डी बढ़ती है।

  • ज़्यादा देर खड़े रहना - लम्बे समय तक खड़े रहने या रोज़ाना भारी सामान उठाने से पांव में अत्यधिक दबाव बनता है, जिससे एड़ी की हड्डी बढ़ती है।

  • उम्र - 40 साल व उससे अधिक उम्र के लोगों में एड़ी की हड्डी बढ़ना अधिक आम है क्योंकि उम्र के बढ़ने से "लिगामेंट" (Ligament - एक रेशेदार और लचीला ऊतक जो दो हड्डियों को आपस में जोड़ता है) का लचीलापन कम होता जाता है।

  • लिंग - पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को एड़ी की हड्डी बढ़ने की समस्या अधिक होती है क्योंकि महिलाओं के ज़्यादातर जूते असुविधाजनक होते हैं।

एड़ी की हड्डी बढ़ने का प्राकृतिक इलाज -

एड़ी की हड्डी बढ़ने के लिए निम्नलिखित प्राकृतिक उपचार किए जा सकते हैं -

 

नॉन-सर्जिकल उपचार (Non-surgical treatments)
  • नंगे पैर न चलें - जब आप नंगे पैर चलते हैं, तो आपके "प्लैंटर फेशिया" पर अधिक दबाव पड़ता है, इसीलिए नंगे पैर न चलें।

  • पतावा - जूतों के अंदर लगने वाला विशेष रूप से बनाया गया पतावा एड़ी के दबाव को कम करता है।

  • आरामदायक जूते - आरामदायक और पैर को सहारा देने वाले जूते पहनने से पांव पर दबाव और दर्द कम होता है।

  • सूजन कम करने वाली दवाएं (Anti-inflammatory medication) - सूजन कम करने वाली दवाओं से सूजन में सुधार आता है।

  • कोर्टीसोन (Cortisone) के टीके - कोर्टीसोन के टीके से प्रभावित क्षेत्र में सूजन और दर्द कम होते हैं। अगर मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली दवाओं से असर नहीं होता है, तो कोर्टीसोन के टीके एक अच्छा विकल्प हैं।

  • बर्फ - बर्फ से दर्द और सूजन में आराम आता है।

  • आराम - पर्याप्त आराम करने और पांव पर दबाव कम डालने से प्रभावित क्षेत्र में दर्द और सूजन ठीक हो सकती है।

  • स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज - पिंडली की मांसपेशियों को स्ट्रेच करने वाले व्यायाम से दर्द कम होता है।

ऊपर बताए गए तरीके आमतौर पर प्रभावशाली होते हैं और सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन कुछ गंभीर मामलों में एड़ी की बढ़ी हुई हड्डी के लिए सर्जरी का उपयोग किया जा सकता है।

 

कब जाएं डॉक्टर के पास?

अगर आपको निम्नलिखित लक्षण होते हैं, तो तुरंत अपने डॉक्टर को दिखाएं -

  • घरेलू उपचार से भी आराम न मिलना।
  • प्रभावित हिस्से पर दबाव न बनाने पर भी दर्द होना।
  • अत्यधिक दर्द के कारण चल न पाना।
  • पंजे और एड़ी सुन्न होना।
Reference Links-

Mewar hospital’s website- https://mewarhospitals.com, last accessed on 9-12-2022.

Lybrate- https://www.lybrate.com/hi/topic/heel-pain , last accessed on 9-12-2022.

Reliva- https://reliva.in/heel-pain-treatment-hindi/ , last accessed on 9-12-2022.

My Upchar- https://www.myupchar.com/disease/heel-spur , last accessed on 9-12-2022.

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क्या होता है फाइब्रोमायल्जिया? जानें बचाव और प्राकृतिक उपचार

Posted 19 October, 2023

क्या होता है फाइब्रोमायल्जिया? जानें बचाव और प्राकृतिक उपचार

फाइब्रोमायल्जिया क्या है?

फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) या फाइब्रोमायल्जिया सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है, जो पूरे शरीर में दर्द का कारण बनती है। फाइब्रोमायल्जिया से पीड़ित लोग अक्सर अत्यधिक थकान या नींद, मूड या याद्दाश्त संबंधी समस्याओं का सामना करते हैं। पुरुषों की तुलना में फाइब्रोमाइल्जिया महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है. इसके कारण होने वाला दर्द, अत्यधिक थकान और नींद की कमी दैनिक कार्यों के करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त लोग अक्सर सोने के बाद भी थके हुए जागते हैं, भले ही वे लंबे समय से सो रहे हों. इसमें नींद अक्सर बाधित होती है और इससे ग्रस्त कई रोगियों को अन्य नींद के विकार जैसे स्लीप एप्निया और रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम होते हैं।

 

फाइब्रोमायल्जिया के लक्षण -

फाइब्रोमायल्जिया के निम्नलिखित लक्षण होते हैं -

व्यापक दर्द-

फाइब्रोमायल्जिया के दर्द को अक्सर एक निरंतर होने वाले हलके दर्द के रूप में वर्णित किया जाता है जो कम से कम तीन महीने तक रहता है। व्यापक दर्द उसे माना जाता है जो आपके शरीर के दोनों तरफ और कमर के ऊपर नीचे भी हो।

 

थकान-

फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त लोग अक्सर सोने के बाद भी थके हुए लगते हैं, भले ही वे लंबे समय से सो रहे हों। इसमें नींद अक्सर दर्द से बाधित होती है और फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त कई रोगियों को अन्य नींद के विकार जैसे कि रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम और स्लीप एप्निया होते हैं।

 

अन्य समस्याएं-

फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त कई लोग डिप्रेशन, सिरदर्द और पेट के निचले हिस्से में दर्द या ऐंठन का अनुभव कर सकते हैं।

 

फाइब्रोमायल्जिया के कारण -

मेडिकल शोधकर्ताओं और डॉक्टरों को अभी तक यह पता नहीं लग पाया है कि फाइब्रोमायल्जिया का क्या कारण होता है। हालांकि, दशकों के शोध के बाद, निम्नलिखित कुछ कारकों को फाइब्रोमायल्जिया के होने का कारण माना जाता है:-

 

संक्रमण-

पहले की बीमारियों से फाइब्रोमायल्जिया हो सकता है या इसके लक्षणों को बिगाड़ सकता है।

 

अनुवांशिक कारक-

फाइब्रोमायल्जिया अक्सर अनुवांशिक होता है। यदि आपके परिवार में किसी व्यक्ति को फाइब्रोमायल्जिया है, तो इसे विकसित करने के लिए आपका जोखिम अधिक है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस समस्या में कुछ आनुवंशिक बदलाव भूमिका निभा सकते हैं हालाँकि, उन जीनों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है।

 

आघात-

शारीरिक या भावनात्मक आघात का अनुभव करने वाले लोगों को फाइब्रोमायल्जिया हो सकता है। इस स्थिति को पोस्ट ट्रोमैटिक तनाव विकार से जोड़ा गया है।

 

तनाव-

आघात की तरह, तनाव आपके शरीर में महीनों और वर्षों तक प्रभाव कर सकते हैं। तनाव को हार्मोनल गड़बड़ी से जोड़ा गया है जो कि फाइब्रोमायल्जिया का कारण सकता है।

 

फाइब्रोमायल्जिया के जोखिम कारक क्या होते हैं?

फाइब्रोमायल्जिया के लिए जोखिम कारक निम्नलिखित हैं -

लिंग -

पुरुषों के मुकाबले अक्सर महिलाओं में फाइब्रोमायल्जिया अधिक पाया जाता है।

 

परिवार का इतिहास -

अगर आपके किसी रिश्तेदार को फाइब्रोमायल्जिया है, तो आपको भी यह विकसित होने की अधिक संभावना होती है।

 

रूमेटिक रोग -

यदि आपको एक रूमेटिक रोग है, जैसे कि रूमेटाइड आर्थराइटिस या लुपस, तो आपको फाइब्रोमायल्जिया विकसित होने की अधिक संभावना हो सकती है।

 

फाइब्रोमायल्जिया से बचाव -

फाइब्रोमायल्जिया को रोका नहीं जा सकता। उचित उपचार और जीवन शैली में परिवर्तन आपके लक्षणों की आवृत्ति और गंभीरता को कम करने में मदद कर सकते हैं। फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त लोग सिंड्रोम को रोकने के प्रयास की बजाय आवृत्ति लक्षणों को रोकने का प्रयास करते हैं। आप लक्षणों की उत्तेजना को रोकने के लिए कई चीजें कर सकते हैं। जैसे कि -

  • पर्याप्त नींद लें।
  • भावनात्मक और मानसिक तनाव कम करें।
  • नियमित व्यायाम करें।
  • एक संतुलित आहार खाएं।
  • अपने लक्षणों की निगरानी करें।
फाइब्रोमायल्जिया के प्राकृतिक उपचार-
  • व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं, व्यायाम की थकान अच्छी नींद दिलाने में मदद करेगी।
  • हेल्दी और बैलेंस डाइट लें।
  • काम के साथ-साथ अपनी पसंद की चीज़ों पर भी फोकस करें जिससे तनाव दूर होगा।
  • एक्यूपंक्चर।
  • ध्यान (मेडिटेशन)।
  • योग।
  • नियमित व्यायाम।
  • रात में पर्याप्त नींद लेना।
  • मसाज थेरेपी।
  • एक संतुलित आहार लेना।
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हाथ में दर्द क्या है? जानिए इसके कारण एवं उपचार

Posted 12 September, 2023

हाथ में दर्द क्या है? जानिए इसके कारण एवं उपचार

हाथ मांसपेशियों, हड्डियों, रक्त वाहिकाओं, नसों और त्वचा से मिलकर बना होता है। मांसपेशियां हाथ को गति प्रदान करती हैं जबकि नसें हाथ की संवेदना और गति को नियंत्रित करती हैं। वहीं रक्त वाहिकाएं पूरे हाथ के रक्त प्रवाह में मदद करती हैं। कभी-कभी किसी कारणवश पूरे हाथ में या हाथ के किसी विशेष हिस्से में दर्द की शिकायत होने लगती हैं। यह दर्द हल्का या तीव्र होने के साथ-साथ अचानक भी हो सकता है। इस दर्द के कारण हाथों के ऊतकों या जोड़ों में किसी भी प्रकार की परेशानी जैसे जलन, झनझनाहट या सनसनी महसूस हो सकती है। जिसे मेडिकल भाषा में पेरेस्थेसिया कहा जाता है। आमतौर पर पेरेस्थेसिया अस्थायी या स्थायी क्षति या नसों पर दबाव के कारण होता है, जो हाथों से रीढ़ की हड्डी तक संवेदना संदेश ले जाते हैं।

 

हाथ में दर्द के कारण-

गठिया-

अर्थराइटिस हाथ के दर्द का मुख्य कारण है। यह शरीर में कहीं भी दिखाई दे सकता है लेकिन अक्सर हाथों और कलाई में पाया जाता है।

ऑस्टियोआर्थराइटिस आमतौर पर वृद्ध लोगों को प्रभावित करता है। इस स्थिति में जोड़ों की छोर को कवर करने वाला लचीला पदार्थ, जिसे उपास्थि (Cartilage) कहते हैं। वह अपनी जगह से खिसक या टूट जाते हैं। इससे जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है।

रूमेटाइड गठिया एक पुरानी स्थिति है, जो शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करती है। इससे जोड़ों में सूजन आ जाती है, जिससे दर्द और अकड़न होने लगती है। यह अक्सर हाथों से शुरू होकर शरीर के दोनों तरफ समान जोड़ों को प्रभावित करता है।

 

कार्पल टनल सिंड्रोम-

कार्पल टनल सिंड्रोम कलाई पर अधिक तनाव के कारण होता है। विशेष रूप से बार-बार कलाई को हिलाने-डुलाने से होता है। यह सूजन और निशान का कारण बनता है। यह कलाई से गुजरने वाली नसों को संकुचित करते हैं। जिसे माध्यिका तंत्रिका कहते हैं। यह स्थिति दर्द का कारण बनती है, जो रात में बढ़ जाती है। साथ ही हथेलियों, अंगूठे और उंगलियों में झनझनाहट उत्पन्न करती है।

 

डी कर्वेन टेनोसाइनोवाइटिस-

डी कर्वेन टेनोसाइनोवाइटिस एक दर्दनाक स्थिति है, जो अंगूठे के आसपास के टेंडन को प्रभावित करती है। यह अंगूठे के आधार के आसपास के दो रंध्रों की सूजन क्षेत्र में सूजन का कारण बनती है। यह सूजन नसों पर दबाव डालती है, जिससे अंगूठे के आधार के आसपास दर्द एवं झनझनाहट की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

 

गठिया-

गठिया की स्थिति तब होती है जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति जब कुछ देर के लिए आराम करता है तो यूरिक एसिड जोड़ों में इकठ्ठा होकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। जिससे व्यक्ति को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है। गठिया की समस्या ज्यादातर बड़े पैर के अंगूठे के आधार या जोड़ को प्रभावित करता है। लेकिन यह पैरों, घुटनों, बाहों और कलाई में कहीं भी हो सकता है।

 

ल्यूपस-

ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसका अर्थ है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती है और स्वस्थ ऊतकों को नुकसान पहुंचाती है। जिससे शरीर में जलन और सूजन होने लगती हैं। इस सूजन के कारण जोड़ों के आसपास की पतली परत मोटी हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप हाथों और पैरों में दर्द और सूजन हो जाती है।

 

चोट-

खेलकूद, वाहन से गिरने एवं मकान निर्माण के दौरान हाथ में चोट लगना बहुत आम बात हैं। यदि इसे ठीक रूप से इलाज न किए जाने पर हाथ का चोट या फ्रैक्चर स्थिति को खराब कर सकता है। लेकिन यह फ्रैक्चर जो ठीक से ठीक नहीं हो पाते, आगे चलकर एक गंभीर दर्द का कारण बनते हैं।

 

पेरिफेरल (परिधीय) न्यूरोपैथी-

पेरिफेरल न्यूरोपैथी एक ऐसी बीमारी है, जो हाथों में कमजोरी, दर्द और सुन्नता का कारण बनती है। यह समस्या तब होती है जब परिधीय तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। वैसे तो कई कारक परिधीय तंत्रिका क्षति का कारण बन सकते हैं। जिसमे मुख्य रूप से मधुमेह, दर्दनाक चोट, संक्रमण और चयापचय संबंधी समस्याएं शामिल हैं।

 

हाथ दर्द का इलाज-

हाथ दर्द का इलाज दर्द के कारण पर आधारित है। इसलिए हाथ में होने वाले दर्द के कारण का इलाज करने से हाथ में दर्द से राहत मिलती है।

 

अर्थराइटिस के सामान्य उपचार में शामिल निम्नलिखित हैं-

  • दर्द और सूजन के लक्षणों का इलाज करने के लिए दवाएं।
  • लंबे समय तक स्टेरॉयड इंजेक्शन।
  • जॉइंट स्पलिंट।
  • शल्य चिकित्सा।
  • व्यावसायिक चिकित्सा / फिजियोथेरेपी।
  • गर्म सिकाई।

कार्पल टनल सिंड्रोम के सामान्य उपचारों में शामिल हैं-

  • गर्म पट्टी।
  • असहज गतिविधियों से बचें।
  • बर्फ या आइस पैक से नियमित रूप से सिकाई करें।
  • ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दर्द निवारक दवाएं ।
  • एनेस्थेटिक्स या स्टेरॉयड के इंजेक्शन लें।
  • मौखिक स्टेरॉयड का सेवन करें।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • एक्यूपंक्चर थेरेपी।
  • शल्य चिकित्सा।
गाउट के सामान्य उपचारों में शामिल हैं-

दर्दनाक गठिया के इलाज के लिए बाजारों में कई दवाएं उपलब्ध हैं। जिसमें नॉन स्टेरॉइडल एंटी इंफ्लेमेंटरी मेडिसिन (एनएसएआईडी) और कोल्सीसिन शामिल हैं। साथ ही इन दवाओं के साथ-साथ गर्म तेल मालिश (औषधीय रूप से ) या गर्म सिकाई करना बेहद लाभकारी होता हैं।

 

ल्यूपस के सामान्य उपचारों में शामिल हैं-

ल्यूपस का कोई इलाज नहीं है। लेकिन ऐसे कई उपचार हैं, जिसका उपयोग करके ल्यूपस के लक्षणों को रोकने में मदद मिल सकती हैं। यह निम्नलिखित हैं:

  • गर्म या ठंडा सिकाई।
  • एनएसएआईडी।
  • फिजियोथेरेपी या व्यावसायिक चिकित्सा।
  • दर्दनाक गतिविधियों से बचें।
पेरिफेरल न्यूरोपैथी के सामान्य उपचारों में शामिल हैं-
  • तंत्रिका दर्द के इलाज के लिए प्रिस्क्रिप्शन दवाएं।
  • प्रिस्क्रिप्शन दर्द निवारक।
  • मिर्गी-रोधी दवा।
  • अवसाद रोधी यानी एंटी डिप्रेसेंट मेडिसिन।

हाथ दर्द के घरेलू उपचार-

हल्दी-

हल्दी में सूजन रोधी गुण पाया जाता है। इसके अलावा यह प्राकृतिक दर्द निवारक का काम करती है। इसके लिए एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर पिएं। ऐसा करने से हाथ दर्द से राहत मिलती है।

 

सूरज की रोशनी-

अपने शरीर को विटामिन डी की पूर्ति के लिए प्रतिदिन कुछ समय तक सूरज की रोशनी अर्थात धूप में बैठें। क्योंकि ऐसा करने से जोड़ों को ऑस्टियोआर्थराइटिस क्षति से बचाव होता है।

 

ग्रीन टी-

रोजाना 2-3 कप ग्रीन टी का सेवन गठिया से लड़ने में बहुत ही मदद करता है। दरअसल इसमें पाए जाने वाला एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण हाथ का दर्द कम करने में सहायक होते हैं।

 

तैराकी-

तैरना प्रतिरोध प्रशिक्षण का एक कम प्रभाव वाला रूप है, जो पूरे शरीर को संलग्न करता है। यह स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और दर्द को कम करने का एक सुखद तरीका है।

 

गर्म और ठंडा सिकाई-

अपने हाथ में होने वाले दर्द को दूर करने के लिए गर्म और ठंडा सिकाई एक प्रभावी तरीका है। इसके लिए प्रतिदिन 3 से 4 घंटे के अंतराल पर आइस पैक या गर्म पट्टी लगाएं। ऐसा कम से कम 20 मिनट तक करें। ऐसा करने से दर्द कम होता है।

 

मालिश-

हाथ दर्द को दूर करने के लिए तेल की मालिश को कारगर उपाय माना जाता है। इसके लिए सरसों, लैवेंडर या जैतून का तेल में से किसी भी तेल को हल्का गर्म करके दर्द वाले हिस्सें और उसके आसपास की मांसपेशियों की मालिश करें। ऐसा करने से हाथ दर्द से राहत मिलती है।

 

डॉक्टर के पास कब जाएं?

निम्न परिस्थितियां होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें:

  • हाथ में गंभीर, लगातार एवं आवर्ती दर्द का अनुभव होने पर।
  • घरेलू उपचार करने से भी दर्द में सुधार न दिखाई देने पर।
  • हाथ में दर्द के साथ-साथ अन्य लक्षण जैसे बुखार या थकान होने पर।
  • प्रभावित जोड़ों की गति में कमी आने पर।
  • कुछ हड्डी विकृतियाँ जैसे असामान्य गांठ दार वृद्धि या असामान्य स्थायी झुकना आदि।
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पेल्विक पेन (श्रोणि दर्द) के कारण, निदान और उपचार

Posted 29 July, 2023

पेल्विक पेन (श्रोणि दर्द) के कारण, निदान और उपचार

पेल्विक पेन को हिंदी में श्रोणि का दर्द और आम बोल-चाल की भाषा में पेडू में दर्द के नाम से जाना जाता है। यह दर्द मुख्य रूप से पेट के निचले हिस्से में होता है। आमतौर पर इस दर्द का मुख्य कारण कोई अंतर्निहित समस्या या पेट में गड़बड़ी हो सकती है। जिसके लक्षणों के आधार पर पेल्विक पेन गंभीर या हल्का हो सकता है। कभी-कभी पेल्विक पेन किसी विशिष्ट स्थान पर तेज या छुरा घोंपने वाला दर्द या तो फैलने वाला सुस्त दर्द भी हो सकता है।

सामान्यतः पेल्विक पेन की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक देखने को मिलती है। ज्यादातर मामलों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पेल्विक पेन का अनुभव होता है। वहीं, महिलाओं में होने वाला पेल्विक पेन का दूसरा सबसे आम कारण यौन अंतरंगता (जिसे हनीमून सिंड्रोम भी कहा जाता है) है। इस प्रकार का पेल्विक दर्द महिलाओं के पेट के निचले हिस्सों जैसे कि गर्भाशय, अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय ग्रीवा या योनि पथ को प्रभावित करता है। जबकि पुरुषों में इसका कारण प्रोस्टेट की समस्या, मूत्राशय की समस्या या संभोग के दौरान पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों में किसी भी प्रकार का तनाव हो सकता है।

 

पेल्विक दर्द के कारण-

पुरानी श्रोणि दर्द का कारण ढूंढना एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है। साथ ही इसे निर्धारित करने के लिए कई प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। पेल्विक दर्द के सामान्य कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं-

  • मासिक धर्म या ओव्यूलेशन के दौरान पेट में ऐंठन या मरोड़।
  • एंडोमेट्रियोसिस, एक ऐसी स्थिति जिसमें ऊतक जो सामान्य रूप से गर्भाशय ग्रीवा के आंतरिक भाग को ढकता है। उसमें सूजन हो जाती है और गर्भाशय की गुहा के बाहर विकसित होने लगता है जिससे गर्भाशय ग्रीवा की सूजन हो जाती है।
  • पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी), प्रजनन अंगों का एक संक्रमण है। यह अक्सर यौन संचारित बैक्टीरिया के कारण होता है।
  • इंटरस्टिशियल सिस्टिटिस (दर्दनाक मूत्राशय सिंड्रोम), पेशाब करने की अचानक इच्छा से जुड़ी एक स्थिति।
  • गर्भाशय में फाइब्रॉएड या ट्यूमर।
  • पेल्विक फ्लोर विकार, जिसमें मांसपेशियों की कमजोरी भी शामिल है। जिससे पेशाब को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।
  • आईबीएस, पेट दर्द या बार-बार मल त्याग की स्थिति।
  • मूत्र पथ संक्रमण (यूटीआई), एक संक्रमण जो मूत्र पथ और मूत्राशय की सूजन का कारण बनता है।
  • पथरी।
  • खाद्य असहिष्णुता या अन्य जीआई समस्याएं।
  • वुल्वोडनिया या महिला के बाहरी जननांगों में दर्द।
  • डायवर्टीकुलिटिस, बड़ी आंत की सूजन वाली स्थिति।
  • प्रोस्टेटाइटिस, प्रोस्टेट की सूजन।
  • क्लैमाइडिया और गोनोरिया जैसे एसटीआई।
  • अपेंडिसाइटिस, या अपेंडिक्स का संक्रमण।
  • एक्टोपिक गर्भावस्था, जिसमें भ्रूण गर्भाशय के बाहर संलग्न होता है।
  • ओवरियन सिस्ट।

पेल्विक दर्द के जोखिम कारक-

आम तौर पर पेल्विक पेन का अनुभव कोई भी व्यक्ति कर सकता है। इस दर्द के अधिकांश कारण बाहरी स्रोतों जैसे बैक्टीरिया एवं अन्य शारीरिक समस्याएं हो सकते हैं। साथ ही कुछ कारक ऐसे होते हैं, जो पेल्विक दर्द की संभावना को बढ़ा सकते हैं। वह निम्नलिखित हैं:

  • मासिक धर्म लंबे समय तक आना।
  • अनियमित या अधिक मात्रा में रक्त का स्राव होना।
  • अधिक धूम्रपान करना।
  • पीआईडी, गर्भपात, यौन शोषण, एंडोमेट्रियोसिस या नसबंदी का इतिहास।
  • चिंता या अवसाद।
पेल्विक दर्द के निदान-

वैसे तो कई बीमारियां पैल्विक दर्द का कारण बन सकती हैं। ऐसे में चिकित्सक सबसे पहले पेल्विक दर्द का कारण का पता लगाने के लिए कुछ जांच करवाने की सलाह देता है। जिसमें शामिल जांच निम्नलिखित हैं-

 

श्रोणि परीक्षण-

इसके माध्यम से संक्रमण, असामान्य वृद्धि और श्रोणि तल की मांसपेशियों के लक्षण का पता चलता है। इसके लिए डॉक्टर प्रभावित अंगों की जांच करता है। इस परीक्षण के दौरान दर्द या कोई अन्य असुविधा महसूस होती है, तो तुरंत अपने चिकित्सक को बताएं।

 

प्रयोगशाला परीक्षण-

इस परीक्षण के दौरान डॉक्टर क्लैमाइडिया या गोनोरिया जैसे संक्रमणों की जांच के लिए परामर्श देता है। इसके अलावा यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन की जांच के लिए डॉक्टर मरीज के ब्लड काउंट और यूरिन टेस्ट की जांच कराने की सिफारिश करता है।

 

अल्ट्रासाउंड-

यह परीक्षण आपके शरीर के अंदर संरचनाओं की सटीक तस्वीरें बनाने के लिए उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है। यह प्रक्रिया गर्भाशय, अंडाशय या फैलोपियन ट्यूब में गांठ या सिस्ट का पता लगाने के लिए बहुत उपयोगी है।

 

अन्य इमेजिंग परीक्षण-

असामान्य संरचनाओं या वृद्धि को देखने के लिए डॉक्टर पेट के एक्स-रे, कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी), या चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) की सिफारिश कर सकता है।

 

लैप्रोस्कोपी-

इस सर्जरी के दौरान डॉक्टर मरीज के पेट में एक छोटा चीरा लगाता है और एक छोटे कैमरे (लैप्रोस्कोप) से जुड़ी एक पतली ट्यूब लगाता है। इस प्रकार लैप्रोस्कोप की मदद से डॉक्टर को पैल्विक अंगों को देखने और असामान्य ऊतक या संक्रमण के लक्षणों का पता लगाता है। एंडोमेट्रियोसिस और पुरानी श्रोणि सूजन की बीमारी का पता लगाने के लिए यह प्रक्रिया बहुत उपयोगी है।

 

कैसे करें रोकथाम?

पेल्विक पेन का होना बहुत आम बात है। ज्यादातर यह महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़ी समस्या होती है। हालांकि कुछ सावधानी बरतकर श्रोणि दर्द के जोखिम को कम किया जा सकता है-

  • सुरक्षित संभोग करने से यौन संचारित रोगों से बचा जा सकता है। इसलिए एसटीआई/एसटीडी के संचरण को रोकने के लिए कंडोम और अन्य बाधा विधियों का उपयोग करें।
  • अधिक घर्षण से बचने के लिए संभोग करते समय स्नेहक का प्रयोग करें। जिससे श्रोणि दर्द की समस्या कम होती है।
  • किसी भी तरह की असुविधा या अन्य लक्षण दिखाई देने पर तुरंत अपने चिकित्सक से परामर्श लें।
  • धूम्रपान से परहेज करें।
  • अपने चिकित्सक से इस विषय पर भी चर्चा करें, क्या मौखिक गर्भनिरोधक दवाइयां एक विकल्प हो सकता है।
  • फाइबर युक्त आहार का सेवन करें। ताकि मल त्याग करने में किसी भी तरह की असुविधा न हों।
  • अधिक खांसने से पेल्विक मांसपेशियों पर दबाव पड़ सकता है जिससे गंभीर पैल्विक दर्द के साथ-साथ हर्निया भी हो सकता है।

पेल्विक दर्द का इलाज-

पैल्विक दर्द का उपचार दर्द की तीव्रता और दर्द की कारण के आधार पर किया जाता है। कभी-कभी पैल्विक दर्द का इलाज एंटीस्पास्मोडिक और दर्द निवारक दवाओं से किया जाता है। यदि दर्द पैल्विक अंगों में किसी समस्या का परिणाम है, तो उपचार में सर्जरी या अन्य प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं। इसके अलावा यदि दर्द मांसपेशियों में साधारण खिंचाव हो तो फिजियोथेरेपी मदद कर सकती है।

 

पेल्विक दर्द के घरेलू उपचार-

  • पेल्विक दर्द का इलाज अक्सर ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाओं से किया जाता है। लेकिन कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  • कुछ मामलों में पेल्विक दर्द को आराम करने से भी ठीक हो जाता है। वहीं थोड़ा चलना और हल्का व्यायाम अधिक फायदेमंद होता है।
  • इससे राहत पाने के लिए अपने पेट पर गर्म पानी की एक बोतल रखें। साथ ही गर्म पानी से स्नान करना भी लाभदायक होता है।
  • इसके लिए अपने पैरों को उठाएं। यह पैल्विक दर्द और पीठ के निचले हिस्से या जांघों को प्रभावित करने वाले दर्द को दूर करने में मदद कर सकता है।
  • प्रसवपूर्व योग और ध्यान का प्रयास करें, जो दर्द कम करने में मदद करता है।
  • इसके लिए विलो छाल जैसी जड़ी-बूटियां का सेवन करें। यह पेल्विक दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकती हैं।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

सामान्य पैल्विक दर्द चिंता का कारण नहीं हो सकता है। लेकिन, यदि दर्द गंभीर है या एक सप्ताह से अधिक समय लें, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

  • पेशाब में खून आने पर।
  • दुर्गन्धयुक्त पेशाब का स्राव होने पर।
  • पेशाब करने में असुविधा महसूस करने पर।
  • मल त्याग करते समय कठिनाई होने पर।
  • पीरियड्स के दौरान अधिक रक्त का स्राव होने पर।
  • कपकपी या ठंड लगने पर।

 

Written By - Jyoti Ojha

Approved By- Dr. Meghna Swami

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कंधे में दर्द के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 23 November, 2022

कंधे में दर्द के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

आज के दौर में कंधे दर्द की समस्या बेहद आम हो गयी है। इतनी आम कि यह बुजुर्गों की अपेक्षा बच्चों और युवाओं में अधिक देखने को मिलती है। इस समस्या के मुख्य कारण हैं- गलत मुद्रा में उठना, बैठना या सोना, गलत तरीके से भारी वजन उठाना और शारीरिक गति विधियां कम करना आदि होता है। इन अनियमित दिनचर्या के कारण कंधों की मांसपेशियों में अकड़न आ जाती है। जिससे कंधों में दर्द होना शुरू हो जाता है।

कभी-कभी इसे छोटी समस्या मानकर नजर अंदाज कर देने से यह एक असहनीय दर्द का कारण बन जाता है। परिणामस्वरूप कंधे को हिला पाना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा व्यक्ति के जीवन में और कई अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

क्या होता है शोल्डर पेन?

शोल्डर पेन एक हड्डियों से जुड़ी समस्या होती है। जिसके होने पर कंधों में गंभीर दर्द होता है। यह समस्या किसी को भी हो सकती है। आजकल लगभग सभी व्यक्तियों को कंधे के दर्द जैसी परेशानी से गुजरना पड़ता है। दरअसल कंधा एक बॉल और सॉकेट जॉइंट है जो हाथों को आगे-पीछे ले जाने का काम करता हैं। यह शरीर का सबसे गतिशील अंग है। जिसमें किसी कारणवश स्थिरता की कमी आती है। कंधे में स्थिरता की कमी के कारण यह चोट और दर्द का शिकार हो जाता है। कंधे का दर्द एक शारीरिक समस्या है जिसमें जोड़ या मांसपेशियां, टेंडन और जोड़ को सहारा देने वाले स्नायुबंधन प्रभावित होते हैं।

रोटेटर कफ क्या है और रोटेटर कफ की चोट को कैसे पहचानें?

रोटेटर कफ कंधे के जोड़ की रक्षा करता है और सिर के ऊपर बाजुओं की गति में मदद करता है। आमतौर पर यदि रोटेटर कफ में सूजन आ जाती है,तो इस स्थिति में दर्द सामने के हिस्से में या कंधे के बाहर होता है। यह दर्द आमतौर पर तब अधिक गंभीर होता है जब व्यक्ति अपने हाथ को सिर के ऊपर उठाता है। इसे दूर करने के लिए फिजियोथेरेपी या व्यायाम की आवश्यकता पड़ती है।

कंधे दर्द के कारण

 

खराब मुद्रा

जब कोई व्यक्ति अपने शोल्डर को खराब मुद्रा में हिलाता हैं। इस स्थिति में कंधे के जोड़ की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है। इससे कंधे में दर्द होता है।

चोट या आघात

गर्दन या बाजुओं की हड्डी में पुरानी चोट की वजह से भविष्य में व्यक्ति शोल्डर पेन से ग्रसित हो सकता हैं।

बुढ़ापा या नेचुरल डिजनरेशन

गठिया, क्षतिग्रस्त कफ रोटेटर एवं कार्टिलेज एक सामान्य अपक्षयी रोग है। गठिया एक प्रकार की अपक्षयी बीमारी है, जो शरीर के जोड़ों में सूजन का कारण बनती है। यह अक्सर शरीर के भार को वहन करने वाले जोड़ों, जैसे कूल्हों और घुटनों में होता है। कभी-कभी यह कंधे के जोड़ की सूजन हो सकती है। जिससे कंधो में असहनीय दर्द होता है।

रेपेटिटिव ओवरहेड गतिविधि

कंधे की मांसपेशियों एवं हड्डियों को एक ही दिशा और गति में दोहराते रहने से भी कंधे में दर्द शुरू हो जाता है। क्योंकि ऐसा करने से शोल्डर टेंडन्स और शोल्डर ब्लेड्स के बीच की दूरी कम होती जाती है। इसके अलावा पिंचिंग, जिसे अक्सर इंपिंगमेंट सिंड्रोम कहा जाता है। यह भी कंधे के दर्द का कारण होता है।

किसी प्रकार की बीमारी

मधुमेह, हाइपोथायरायडिज्म, रूमेटाइड गठिया, परिधीय न्यूरोपैथी जैसे रोगों से भी कंधे में दर्द उत्पन्न होते हैं।

पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस

यह गठिया का सबसे आम रूप है। यह व्यक्ति के कंधों सहित किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है। इस स्थिति में हड्डियों के बीच का कार्टिलेज टूट जाता है और एक दूसरे से रगड़ने लगता है। इससे कंधे में दर्द और अकड़न होती है।

कंधे के दर्द के लक्षण-

कंधे के दर्द में मुख्य रूप से कंधे के आसपास के क्षेत्रों में दर्द होता है। इसके अलावा अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं जो इस प्रकार हैं:

  • कंधों को हिलाने में असमर्थता महसूस करना।
  • जोड़ों के आस-पास की त्वचा को छूने पर गर्माहट या दर्द का आभास होना।
  • मांसपेशियों में ऐंठन होना।
  • कंधों में अकड़न या खिंचाव होना।
  • लम्बे समय तक चक्कर आना।

कंधे के दर्द की रोकथाम कैसे करें?

  • कंधे संबंधित कुछ व्यायाम रोटेटर कफ की मांसपेशियों और टेंडन को फैलाने में मदद करते हैं। इसलिए इसे किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।
  • यदि पहले कभी कंधे की समस्या रही है, तो भविष्य में होने वाली चोटों से बचने के लिए व्यायाम करने के बाद उस जगह पर 15 मिनट तक बर्फ लगाएं।

कंधे के दर्द का इलाज

 

एंटी इंफ्लेमेंटरी मेडिसिन

कंधों के दर्द एवं सूजन को कम करने के लिए कुछ दवाएं जैसे एडविल (इबुप्रोफेन के लिए) और एलेव (नेप्रोक्सन के लिए) शामिल हैं। यह दोनों दवाएं डॉक्टर द्वारा निर्धारित हैं और लेबल के अनुसार उपयोग करने के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।

गर्म सिकाई करें

किसी भी तरह के दर्द से राहत पाने के लिए गर्म पानी से सिकाई करना एक अच्छा विकल्प है। इससे रक्त का संचरण भी ठीक हो जाता है। गर्म पानी से शावर लेना भी कंधे के दर्द में फायदा करता है। इसके अलावा कंधे दर्द से राहत पाने के लिए इलेक्ट्रिक हीटिंग पैड का उपयोग किया जा सकता है। ध्यान रखें कि यदि इलेक्ट्रिक हीटिंग पैड का उपयोग कर रहे हैं, तो इसे उच्च ताप के बजाय मध्यम आंच पर सेट करें।

आइस पैक

आइस पैक (ice pack) कई तरह के दर्द में मदद करता है। इसलिए आइस पैक को प्रभावित अंग पर लगाने से काफी आराम मिलता है। इसके अलावा आइस पैक कंधे या शरीर के अन्य किसी हिस्से में दर्द के साथ सूजन को भी खत्म करता है।

सेंधा नमक

एक कटोरी एप्सम साल्ट (सेंधा नमक) को हल्के गर्म पानी से भरे बाथटब में डालें। जबतक पानी की गर्माहट रहे तब तक बाथटब में बैठे रहें। ऐसा करने से शोल्डर पेन में आराम मिलता है।

मालिश करें

अपने कंधे की नियमित मालिश और कुछ शोल्डर संबंधी व्यायाम करने से दर्द कम होता है।

 

कंधे के दर्द का घरेलू इलाज

 

मेहंदी और लौंग का तेल

किसी पात्र में मेहंदी और लौंग के तेल को मिलाकर लगभग दो मिनट तक उबालें। फिर उसे आंच से हटाकर कुछ देर के लिए रख दें। हल्का गर्म होने पर एक रुई के टुकड़े को इस मिश्रण में डुबोएं। फिर इसे अपने कंधे पर हल्के हाथों से लगाकर उस जगह को अच्छी तरह से एक पट्टी से लपेट दें। ऐसा करने से कंधे के दर्द से राहत मिलती है।

नींबू और शहद

नींबू और शहद के मिश्रण को रोजाना खाली पेट लें। ऐसा करने से भी दर्द में सुधार होता है।

मेन्थॉल क्रीम

मेन्थॉल क्रीम या मलहम से कंधे की मालिश करने से निश्चित रूप से दर्द और इससे जुड़ी परेशानी से राहत मिलती है।

कंधे दर्द के लिए कुछ शारीरिक व्यायाम

नियमित व्यायाम और स्ट्रेचिंग आपके कंधों को मजबूत और लचीला बनाते हैं।

पेंडुलम स्ट्रेच

  • सर्वप्रथम खड़े होकर कमर के बल झुकें।
  • इसके बाद अपने कंधे के दर्द वाले हाथ को सीधे नीचे की ओर लटकाएं।
  • अपनी गर्दन को आराम दें।
  • अपनी बाहों को एक सर्कल में 20 बार तक घुमाएं।
  • ऐसा दिन में लगभग 5 से 10 बार करें।

ओवरहेड शोल्डर स्ट्रेच

  • इस स्ट्रेच को करने के लिए सर्वप्रथम सावधान मुद्रा में खड़े हो जाएं।
  • अब अपनी कोहनी मोड़ें और अपनी बाहों को अपने सिर के ऊपर उठाएं। इसके अलावा अपने हाथों को अपने सिर के ऊपर या पीछे भी रख सकते हैं।
  • इसके बाद अपनी कोहनी को पीछे ले जाने के लिए अपने कंधे के ब्लेड को धीरे से मोड़ें।
  • अब 20 बार घुमाएं। इसका अभ्यास दिन में 5 से 10 बार करें।

अपर बॉडी स्ट्रेंथनिंग

  • इस स्ट्रेच को करने के लिए सर्वप्रथम पैरों के बीच दूरी बनाकर खड़े हो जाएं। इस दौरान अपने शरीर को सीधा रखें।
  • अब अपने दोनों हाथों में भार या डंबल पकड़ें।
  • फिर अपनी हथेलियों को नीचे की ओर रखते हुए उन्हें अपने कंधे के स्तर पर ले आने के लिए अपने हाथों को उठाएं।
  • इस स्थिति में 3-4 सेकंड तक रहे।
  • फिर अपनी मूल अवस्था में आ जाएं।
  • ऐसा कम से कम 5 से 10 बार करें।
  • ध्यान रखें इस स्ट्रेच को तब करें जब आपके कंधे का दर्द कम हो जाएं।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

आमतौर पर हल्का कंधे दर्द को कुछ घरेलू उपाय करके या कुछ सावधानियां बरतकर ठीक किया जा सकता है। लेकिन यदि यह दर्द लगातार बना रहे या घरेलू उपाय करने पर इसमें कुछ सुधार न हो। इस स्थिति में तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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Shoulder Pain: Causes, Symptoms and Home Remedies

Posted 08 July, 2022

Shoulder Pain: Causes, Symptoms and Home Remedies

Shoulder is a complex ball and socket joint that can move in multiple directions. It is the most movable part of the body. With this great strength comes a lack of stability. The lack of stability in the shoulder makes it prone to injury and pain. Shoulder pain is a physical discomfort in the shoulder which includes the joint itself or the muscles, tendons, and ligaments that support the joint. It is protected by a rotator cuff.

What is a rotator cuff & how to recognize a rotator cuff injury?

A rotator cuff protects the shoulder joint and helps in the movement of arms over your head. If the rotator cuff is inflamed, the pain usually occurs in front part or outside the shoulder. This pain is usually more severe when you raise your hand or lift something above your head. The pain can be severe enough to prevent you from completing even the simplest of tasks. Pain at night is common and can be bad enough to wake you up. It can also get worse lying down or on one side.

Causes of Shoulder pain

  • Poor postureWhen you perform a rounded shoulder stand or any poor posture, the shoulder joint is placed in a position that allows compression of the bursa, muscles, and tendons in the shoulder. It causes shoulder pain.
  • TraumaTrauma can cause shoulder pain. Outstretched arms or sides, falling from a two-wheeled vehicle, sudden movements while trying to avoid a fall, all of these can cause sudden injury and fracture or injure the ligaments of the shoulder. It can also cause shoulder dislocation, leading to shoulder pain.
  • Aging or Natural DegenerationA common degenerative disease is rotator cuff degenerative disease. Arthritis is a degenerative disease that causes inflammation in one of the joints in the body. It occurs most often in the weight-bearing joints of the body, such as the hips and knees. Sometimes inflammation of the shoulder joint can occur, causing severe pain and limitation of movement.
  • Repetitive overhead activityAs you reach overhead, the distance between the shoulder tendons and the shoulder blades decreases. The tendon can then be clamped under the shoulder blade. This pinching, often referred to as impingement syndrome, can be painful.
  • Medical illnessDiseases such as diabetes, hypothyroidism, rheumatoid arthritis, peripheral neuropathy have more diseases of the shoulder joint.
  • OsteoarthritisThis is the most common form of arthritis. It can affect any joint, including your shoulders. The cartilage between bones breaks down, and rubs against each other. This can cause pain and stiffness in the shoulder.
  • Heart attackIn case of a heart attack, the supply of blood to the muscles of the heart is blocked which results in severe chest pain that can spread into the shoulders, neck and back too. If your shoulder hurts and you have difficulty in breathing or experience chest tightness, you may need immediate medical attention.

Symptoms of Shoulder pain

  • A little pain occurs while moving the shoulder which reduces the movement.
  • A feeling may arise that the joint is slipping backwards into the socket or that the shoulder is actually dislocated (displaced).
  • Lack of movement after shoulder dislocation.

Treatment for Shoulder pain

  • Anti-inflammatory medicationsMedicines include Advil (for ibuprofen) and Aleve (for naproxen). Both are prescribed by a doctor and are relatively safe to use according to the label.
  • Apply heat to your shoulderYou can take a gentle hot shower to reduce shoulder pain for about 5 to 10 minutes. Often patients experience shoulder pain due to sleep. A good hot shower can certainly help with this pain or you can use an electric heating pad. If using an electric heating pad, set it to medium heat, not high heat.
  • Apply ice to your shoulderIce massage is good for treating shoulder pain. For this, Use an ice pack as ice should not be in direct contact with the skin for more than 5 minutes because of the real possibility of frostbite.
  • Salt bathRock salt is effective for shoulder pain or any pain or discomfort in the body. Therefore, fill a bathtub with warm water and add rock salt to it. Taking a bath with this helps to relieve shoulder pain.
  • MassageA regular massage to your shoulder and by doing some shoulder exercises might help in reducing the pain.

Home remedies for Shoulder pain

  • Rosemary and Clove oilBoil rosemary and clove oil in a saucepan for two minutes. Remove from the stove and let it rest. Dip a cotton flake, in this mixture, place it on your shoulder and wrap the area well with a bandage. Leave it overnight to relieve shoulder pain.
  • Lemon and HoneyMix lemon and honey until you get a hard and homogeneous mixture. Take it on an empty stomach every day until you see improvement.
  • Menthol creamMassaging the shoulder with menthol cream or ointment will surely help in relieving pain and discomfort.

How to prevent shoulder pain?

  • Some shoulder exercises can help stretch rotator cuff muscles and tendons. A physical therapist or occupational therapist can show you how to do it right.
  • If you've had shoulder problems in the past, apply ice for 15 minutes after your workout to prevent future injuries.
  • Once you have bursitis or tendinitis, doing a simple range of motion exercises every day can prevent your shoulder from freezing.

Exercises for Shoulder pain

Regular exercise and stretching can make your shoulders strong and flexible:

Pendulum stretch

  • Stand up and bend at the waist.
  • Let your arm hang straight down on the injured side.
  • Keep your neck relaxed.
  • Wave your arms in a circle up to 20 times.
  • Do this 5 to 10 times a day.

Overhead shoulder stretch

  • Sit or stand for this shoulder extension.
  • Bend your elbows and raise your arms above your head. You can also place your hands above or behind your head.
  • Gently bend your shoulder blades to move your elbows back.
  • Continue up to 20 repetitions. Practice it 5 to 10 times a day.

Upper body strengthening

  • As pain reduces, try to lift weight machines or free weights.
  • Lie on your right side with your left hand on your side.
  • With the weight on the left arm and the forearm across the stomach, lift the forearm up.
  • Keep your elbow near your side.

When to see a doctor?

Unless you have a serious injury or the pain is sudden and persistent, you can usually treat shoulder pain without seeing a doctor. If after two weeks of self-medication you feel that the pain is not improving, you should see a doctor or physical therapist.

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Pelvic Pain: Causes, Diagnosis and Treatment

Posted 29 June, 2022

Pelvic Pain: Causes, Diagnosis and Treatment

Pelvic pain occurs mainly in the lower abdomen. The pain can be severe or mild depending upon its underlying causes and symptoms. It can either be a sharp or stabbing type of pain in a specific place or a dull ache that spreads.

Pelvic pain is more common in females as compared to males. Most commonly females experience pelvic pain during menstrual cycle and second most common cause of pelvic pain in females is sexual intimation (also known as honeymoon syndrome). This type of pelvic pain can be a sign of problem with organs in your pelvic area, such as uterus, ovaries, fallopian tubes, cervix or vaginal tract. Whereas in males, the cause can be prostate problem,urinary bladder issues or any type of exertion to the pelvic floor muscles during sexual intercourse.

Causes of Pelvic Pain

Finding the cause of chronic pelvic pain can be a long process and involves several procedures for determining it. Common causes of pelvic pain include-

  • Menstrual cramps during menstruation or ovulation.

  • Endometriosis, a condition in which the tissue that normally covers the internal part of the cervix gets inflamed and grow in outer region of the cervical lip leading to swelling of cervix.

  • Pelvic inflammatory disease (PID), an infection of the reproductive organs that is often caused by sexually transmitted bacteria.

  • Adhesions or scar strips that can form as part of the healing process after an injury or surgery.

  • Interstitial cystitis (painful bladder syndrome), a condition associated with a sudden urge to urinate.

  • Uterine fibroids or tumors in the uterus.

  • Pelvic floor disorders, including muscle weakness that makes it difficult to control urination.

  • Irritable bowel syndrome or IBS, a condition characterized by abdominal pain or frequent bowel movements.

  • Urinary tract infection (UTI or bladder infection), an infection that causes inflammation of the urinary tract and bladder.

  • Kidney stones.

  • Food intolerance or other GI problems.

  • Vulvodynia or pain in the female external genitals.

  • Diverticulitis, a condition characterized by inflammation of the large intestine.

  • Prostatitis, inflammation of the prostate.

  • STIs, such as chlamydia and gonorrhea.

  • Appendicitis, or infection of the appendix.

  • Ectopic pregnancy, where the embryo attaches outside the uterus.

  • Ovarian cysts.

Risk factors of Pelvic Pain

Basically anyone can experience pelvic pain. Some conditions, such as endometriosis, are believed to have a genetic component, but most causes of pelvic pain come from external sources, such as bacteria, or isolated cases.

Some of the factors that can increase the chances of pelvic pain are:

  • Longer menstrual cycle.

  • Irregular or heavy menstrual periods.

  • Smoking.

  • History of PID, miscarriage, sexual abuse, endometriosis, or sterilization.

  • Previous diagnosis of anxiety or depression.

Diagnosis for Pelvic Pain

Determining what is causing your chronic pelvic pain often involves a process of elimination, as many diseases can cause pelvic pain.

Tests or exams your doctor might take-

Pelvic exam-This may show signs of infection, abnormal growth, or tight pelvic floor muscles. Your doctor will examine the tender area. Tell your doctor if you experience any discomfort during this test, especially if the pain is similar to how you feel.

Laboratory tests-During a pelvic exam, your doctor may ask a laboratory to check for infections such as chlamydia or gonorrhea. Your doctor may also order blood tests to check your blood count and urine tests to check for urinary tract infection.

Ultrasound-This test uses high-frequency sound waves to create accurate pictures of structures inside your body. This procedure is very useful for finding lumps or cysts in the uterus, ovaries or fallopian tubes.

Other imaging tests-Your doctor may recommend an abdominal X-ray, computed tomography (CT), or magnetic resonance imaging (MRI) to look for abnormal structures or growths.

Laparoscopy-During this surgery, your doctor makes a small incision in your abdomen and places a thin tube attached to a small camera (laparoscope). A laparoscope allows your doctor to look at your pelvic organs and determine abnormal tissue or signs of infection. This procedure is very useful for detecting endometriosis and chronic pelvic inflammatory disease.

Prevention

Pelvic pain is very common and can be associated with menstruation. However, you can reduce your risk of pelvic pain by-

  • Practicing safe intercourse and using condoms and other barrier methods to prevent the transmission of STIs/STDs.

  • Use lubricants while having sexual intercourse to avoid high friction that can lead to pelvic pain.

  • Visit your doctor regularly and discuss any discomfort or other symptoms.

  • Avoiding smoking.

  • Discussing whether oral contraceptives could be an option for you.

  • Go for a more fibrous diet to make sure that excretion of stools remains easy and normal as constipation and applying excessive pressure while defecating can cause severe pelvic pain.

  • Profuse coughing can cause excessive pressure over pelvic muscles that can lead to severe pelvic pain as well as hernia.

Treatment for Pelvic Pain

Treatment for pelvic pain varies depending on the cause, intensity of pain, and how often the pain occurs. Sometimes pelvic pain is treated with medications like antispasmodics and painkillers. If the pain is the result of a problem with any of the pelvic organs, treatment may include surgery or other procedures. Physiotherapy can help if there is simple muscle stretch.

Home Remedies for Pelvic Pain

Pelvic pain is often treated with over-the-counter pain relievers, but be sure to consult your doctor before taking any medication.

In some cases, rest can help. For others, gentle movement and light exercise are more beneficial. Try these tips:

  • Place a bottle of hot water on your abdomen to see if it helps relieve cramps, or take a warm bath.

  • Lift your legs. This can help relieve pelvic pain and pain affecting the lower back or thighs.

  • Try yoga, prenatal yoga, and meditation, which can also help with pain.

  • Take herbs such as willow bark, which can help relieve pain.

Get your doctor's approval before trying the aboveduring pregnancy.

When to see a doctor?

Normal pelvic pain may not be a cause for concern. If the pain is severe or lasts more than a week, make an appointment with your doctor.

You should see a doctor if you experience-

  • Blood in urine

  • Urine with an unpleasant smell

  • Difficulty urinating

  • Inability in bowel movement

  • Bleeding between periods

  • Fever

  • Chills

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Heel Spurs: Symptoms, Causes and Home Remedies

Posted 14 June, 2022

Heel Spurs: Symptoms, Causes and Home Remedies

Heel spurs (calcaneal spurs) are bony bumps (protrusions) of calcium deposits that form on the heel bone. They are often the result of long-term stress on the tendons that attach to the heel bone. The bumps often occur as a result of Achilles tendinopathy and plantar fasciitis, as the associated tendon attached to the heel bone repeatedly pulls on the bone. This causes micro-injury and the body tries to heal itself by growing abnormal bone growth and turns into calcified bumps known as heel spurs.

Symptoms of Heel Spurs

Common symptoms associated with this condition include-

  • Pain in the heel of one or both feet. The pain can be sharp, throbbing, or dull.

  • Pain while walking barefoot or having difficulty in walking.

  • Feeling of a small bony swelling at the bottom or back of the heel.

  • Tenderness.

  • Stiffness in the joints of the feet and ankles.

  • Pain while working or doing any activity.

  • Numbness, burning, and tingling when the nerves are affected by the spur.

  • Limited range of motion and mobility in the joints.

Causes of Heel Spurs

Heel spurs occur due to overuse or overtraining. This training puts extra stress on the muscles and ligaments around the heel and ankle, ultimately putting undue pressure on the heel bone and causing these spurs.

The most common causes of heel spurs include-

  • Overuse and overtraining.

  • Inadequately worn shoes and high heels.

  • Low levels of strength, mobility, and flexibility in the legs.

  • Muscle dysfunction.

  • Stiff legs with poor mobility and flexibility, not enough to absorb shock.

  • Excessive pronation of the ankles and feet.

  • Leg length difference.

  • Knocked knees.

  • Abnormal walking and running patterns.

  • Achilles tendinopathy and plantar fasciitis.

Risk Factors of Heel Spurs

If you have plantar fasciitis or Achilles tendinitis for more than 6-8 weeks, you are at increased risk of developing heel spurs.

There are certain groups of people who are more likely to develop heel spurs than others. These include-

  • Women who wear high heels can shorten the Achilles tendon over time.

  • Older people, as the flexibility of the plantar fascia decreases over time and the heel’s protective fat pad, which helps soften and protect the heel bone, also thinns.

  • Active runners, jumpers and joggers, as the heel bone experiences more stress during exercise, especially if you train on a hard surface for years.

What if I ignore my Heel Spurs?

It is important to pay attention to the cause of heel pain. If you ignore this pain for too long, you could end up in a severe condition or you may need surgery. You will also have a long recovery period that can prevent you from exercising and completing daily activities.

Prevention

There are a number of factors that you can follow to reduce your risk of developing heel spurs-

  • Wear shoes with soft and shock-absorbing soles that fit well.

  • Choose the right shoes for daily activities.

  • Warm up and stretch before exercising or doing activities.

  • Do not press on heel pain as this can cause long term problems. If you are in pain, rest and freeze the area and see a podiatrist if the pain persists.

Diagnosis for Heel Spurs

Heel spurs are not always painful and are not always visible to the naked eye. Sometimes heel spurs have no symptoms, the only way to tell if you have heel spurs is with an X-ray or another foot or ankle injury diagnosis.

 

Treatment for Heel Spurs

When podiatrists formulate a treatment for heel spurs, they try to reduce inflammation and irritation while preventing future injury. Here are some options for non-surgical treatment-

  • Ice or cold compress.

  • Night splints.

  • Cortisone injection.

  • Protective boots.

  • Anti-inflammatory and analgesic drugs.

  • Custom orthotics.

  • Rest.

  • Stretching.

  • Physical therapy.

  • Shoes for heel spurs.

Podiatrists always seek conservative treatment options for your heel pain. However, in certain cases surgery may be needed to remove the heel spur or relax the plantar fascia.

Home Remedies for Heel Spurs

 

Epsom Salt Bath-

Epsom salt is also called magnesium sulphate and is a helpful remedy in heel spurs. Magnesium is mostly stored in the bones of our body. For this, sprinkle some epsom salt in water and dip your feet in it. You can also gently massage your heels to get relief in heel spurs.

Essential oils-

Pure essential oils like rosemary or lavender are beneficial in reducing the pain and even coconut and olive oil are helpful due to their anti-inflammatory properties. Coconut oil also acts as a natural moisturizer that softens the heels.

Apple cider vinegar-

Apple cider vinegar can cure any pain related to skin problems. It is known to remove excess calcium from the bones and brings relief. For this, soak your feet in a warm bath with a few drops of apple cider vinegar.

Baking soda-

Baking soda is effective in reducing the heel pain. It also makes the skin brighter. For this, make a paste by mixing half a teaspoon of baking soda in water and apply it to your heels.

Flaxseed oil-

Flaxseed oil is rich in alpha-linolenic acid (a form of omega-3 fatty acid) that fights inflammation. For this, pour some flaxseedoil in warm water and soak a towel in it. Wrap a towel around your heels and place a heating pad over it. Leave it for at least an hour and avoid moving during this time.

 

When to see a doctor?

See your doctor or podiatrist right away if you have-

  • Severe pain and swelling near the heel, unable to bend your foot downward or walk normally.

  • Heel pain accompanied by fever, tingling or numbness in the heel.

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Hand Pain: Know its Causes and Treatment

Posted 03 June, 2022

Hand Pain: Know its Causes and Treatment

Hand is made up of muscles, bones, blood vessels, nerves and skin. Muscles provide movement while the nerves control sensation and movement of the hand. The blood vessels provide constant blood flow to and from the fingertips throughout the hand.

Hand pain Hand pain may be described as throbbing, tingling, numbness, soreness, or stiffness including any kind of discomfort in the tissues or joints of the hands. A burning or tingling sensation in the hands is often called paresthesias. Paresthesias are caused by temporary or permanent damage or pressure on the nerves that carry sensation messages from the hands to the spinal cord.

Causes of Hand Pain

Arthritis-

  • Arthritis is the main cause of hand pain. It can appear anywhere in the body but is often found in the hands and wrists.
  • Osteoarthritis usually affects older people. Joint cartilage is a slippery tissue that covers the ends of bones and allows joints to move smoothly. When reduced, painful symptoms may develop.
  • Rheumatoid arthritis is a chronic condition that can affect many parts of the body. This causes inflammation in the joints, which leads to pain and stiffness. It often starts in the hands and affects the same joints on both sides of your body.

Carpal tunnel syndrome-

  • Carpal tunnel is a narrow canal made of ligaments and bone located at the base of the arm. It contains the median nerve and tendon which is responsible for finger movement.
  • Carpal tunnel syndrome can be caused by irritated tendon thickening, inflammation, or anything that can cause swelling in the area.
  • Symptoms of carpal tunnel syndrome begin gradually and can worsen if not treated. Signs include frequent burning and itching in the palms and fingers. Pain is felt around the thumb, index and middle finger.

De Quervain's Tenosynovitis-

De Quervain's tenosynovitis is a painful condition that affects the tendons around the thumb. Swelling of the two tendons around the base of your thumb causes inflammation in the area. This inflammation puts pressure on nerves, causing pain and tingling around the base of the thumb.

Gout-

Gout, a complex form of arthritis, is a very painful disease that can affect anyone. People with gout experience attacks of joint pain that are sudden and severe. Gout mostly affects the joint at the base of the big toe, but it can occur anywhere in the feet, knees, arms, and wrists.

When you have gout in your hands, you experience attacks of biting type pain, burning, redness, and tenderness. Gout often wakes up people at night. You can feel your hands burning.

Lupus-

Lupus is an autoimmune disease, meaning that your immune system mistakenly attacks healthy cells and damages healthy tissue. Joint pain and stiffness are the first signs of lupus.

When lupus breaks out, inflammation occurs throughout the body. This inflammation causes the thin lining around the joints to thicken, resulting in pain and swelling in the hands and feet.

Traumatic Injury-

Hand injuries are very common during sports, construction, and falls. Hand fractures can heal poorly if not treated properly. Fractures that don't heal properly can permanently change the structure and performance of the hand.

Peripheral Neuropathy-

Peripheral neuropathy is a disease that causes weakness, pain, and numbness in the hands. Peripheral neuropathy happens when the peripheral nerves are damaged.

Several factors can cause peripheral nerve damage, including diabetes, traumatic injury, infection, and metabolic problems.

Treatment for Hand Pain

The treatment of hand pain is based on the cause of the pain. Therefore, treating the cause helps to relieve the pain in the hand.

Common treatments for arthritis include-

  • Medicines to treat signs of pain and swelling.
  • Long-term anesthesia or steroid injections.
  • Joint splint.
  • Surgery.
  • Occupational therapy / physiotherapy methods.
  • Hot compressors.

Common treatments for carpal tunnel syndrome include-

  • Splint.
  • Avoid uncomfortable activities.
  • Use ice or an ice pack.
  • Over-the-counter (OTC) pain relievers.
  • Receiving injections of anesthetics or steroids.
  • Take oral steroids.
  • Exercise and stretching.
  • Acupuncture.
  • Surgery.

Common treatments for De Quervain's tenosynovitis include-

  • Splint.
  • Apply ice or cold compress.
  • Taking over-the-counter pain relievers, such as ibuprofen or aspirin.
  • Avoid painful areas and pinching movements.
  • Doing physical therapy or occupational therapy.
  • Surgery.

Common treatments for Gout include-

Several medications are available to treat painful gout attacks, including nonsteroidal anti-inflammatory drugs (NSAIDs) and colchicine and along with medicines one can go for hot oil massage(medicated) or compressors.

Common treatments for lupus include-

There is no cure for lupus, but there are many treatments that can help you manage the symptoms. These are-

  • Hot or cold compress.
  • Over-the-counter pain relievers.
  • NSAID.
  • Physiotherapy or occupational therapy.
  • Avoid painful activities.
  • Peripheral Neuropathy.

Common treatments for peripheral neuropathy include-

  • Prescription drugs used to treat nerve pain.
  • Over-the-counter pain relievers.
  • Prescription painkillers.
  • Anti- epileptic  medication.
  • Antidepressants.

Home remedies for Hand Pain

Turmeric-

Turmeric is an effective anti-inflammatory. You can take turmeric milk or simply take a turmeric supplement.

Sunlight-

Try getting sunlight to help your body produce vitamin D as it protects your joints from osteoarthritis damage.

Green tea-

Drinking 3 to 4 cups of green tea daily is very effective in fighting arthritis and reduces hand pain due to its antioxidant and anti-inflammatory properties.

Swimming-

Swimming is a low-impact form of resistance training that engages the entire body. It is a soothing way to improve your health and reduce pain.

Hot and cold compress-

Taking hot and cold compresses is an effective way to relieve pain in your hand (depending on the type of pain in your hand).

Massage-

Try massaging the painful area and the muscles around it. Sometimes massaging your arm or hands can help relieve pain.

When to visit a doctor?

You should immediately see a doctor if-

  • You experience severe, persistent, or recurring pain in your hand.
  • Pain doesn’t improve with home treatment.
  • It occurs with other symptoms, such as arm pain, fever, or fatigue.
  • If there is any loss of movement in any of the affected joints.
  • If there are some boney deformations like abnormal nodular growth or abnormal permanent bending there.
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Leg pain: Types, Causes, Symptoms and Home remedies

Posted 12 April, 2022

Leg pain: Types, Causes, Symptoms and Home remedies

Our legs help the body bear the weight of the whole body. Carrying out daily activities such as working while standing for long hours causes leg pain. Sometimes this pain increases so much that it is very difficult to bear. Usually, the main cause of leg pain is muscle fatigue. Due to the lack of nutrients in the body, the problem of foot pain begins.

Leg pain means that there is tension, pressure and numbness in the leg muscles that makes it difficult for a person to move.

Types of leg pain

 

Neurological Pain-

Leg pain due to any damage related to the nervous system is known as neurological pain. In addition, leg pain is caused by damage to the sciatic nerve (the longest nerve in the body that runs through the spine to the legs) and other nerves.

Vascular Pain-

Vascular pain is a type of pain caused by deep vein thrombosis (DVT-blood clots in veins) and peripheral artery disease (blockage of blood flow due to varicose veins). Leg pain due to arterial problems is also of this type.

Musculoskeletal Pain-

Musculoskeletal pain is a type of pain caused by problems related to  the muscles, joints, bones and ligaments (tissues that connect two bones).

The following conditions arise in musculoskeletal pain;

  • Stiffness of muscles due to excessive pressure or tension.
  • Muscles swelling due to deep injury.
  • Problems related to joint pain.
  • Bone fractures or bone diseases such as osteoporosis (fragility of bones).

Causes of Leg pain

  • Due to shin splints (overuse of the outer part of the lower leg bone).
  • The hairline fracture in the bone.
  • Taking diuretics or cholesterol-lowering drugs.
  • Muscle damage caused by injury.
  • Deficiency of calcium, potassium, sodium and magnesium in the blood.
  • Having dehydration
  • Due to muscle fatigue or tension due to excessive exercise or sitting in one place.

Other causes of Leg pain

  • Inflammation in the joints caused by arthritis
  • Cellulitis (infection of the skin and soft tissues)
  • Peripheral artery disease (a disorder related to blood flow to the legs)
  • Blood clotting due to prolonged bed rest
  • Due to varicose veins ( enlarged veins)
  • Osteomyelitis (infection of the bones)
  • Due to nerve damage (common in diabetics and those who use alcohol and cigarettes)

Symptoms of Legpain

  • Pain while walking, standing, moving and at rest
  • Prickling in the affected area
  • Swelling of feet
  • Muscle cramps
  • Burning sensation in the affected area
  • Stiffness in the body
  • Discomfort and pain in moving the legs
  • Difficulty sitting in the toilet
  • Stinging feeling in the affected area

Home remedies for Leg pain

 

Rock salt-

Rock salt works by regulating nerve signals and relaxing muscles. To do this, take warm water in a bucket and add one to two teaspoons of rock salt. Now keep the legs in this water for some time. By doing this you will get relief in leg pain.

Mustard oil-

Leg pain starts when the muscles are tense or tired. In such a situation, massaging the leg proves to be a comfortable option which gives instant effect. Mustard oil can be used for massage directly or by cooking oregano and garlic in it.

Turmeric-

Turmeric is rich in many medicinal properties. Therefore, mixing one spoon of turmeric powder in a glass of milk and drinking it in the morning and evening provides relief in leg and knee pain. Apart from this, mixing two spoons of turmeric in sesame oil and applying the prepared paste on the leg for half an hour also provides relief in pain. This also strengthens the bones.

Clove-

Clove is very beneficial in tooth and gum pain as well as knee and leg pain. For this, massage the leg lightly with clove powder or clove oil on the painful area.

Fenugreek-

The use of fenugreek seeds is effective for the pain of knees and legs. It is analgesic and anti-inflammatory in nature. Therefore, after eating half to one spoonful of fenugreek powder in the morning and evening, it provides relief in the pain of knees and feet.

Eucalyptusoil-

Eucalyptus oil helps in reducing neuralgia. Smelling this oil or mixing it with any other oil provides relief in leg pain.

Ice pack-

Leg pain can also be relieved by the use of ice. To use, take 2-3 pieces of ice in a cloth. Now massaging the legs with this bundle gives relief in pain.

Exercising-

According to research conducted by NCBI, breathing exercises help in getting rid of pain in hands, legs and nerves.

 

When to go to the doctor?

According to experts, use home remedies for pain in legs and knees. But if the problem and pain persists and there is no proper benefit from them, go to the doctor without any delay. Apart from this, if the pain is due to fracture or if the pain is accompanied by swelling, redness, warmth, fever and weight loss, then see an orthopedic doctor immediately.

 

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Back Pain: Symptoms, Causes, and Treatment

Posted 24 January, 2022

Back Pain: Symptoms, Causes, and Treatment

Problem of back pain has become very common due to following modern food habits and wrong lifestyle as nowadays it is seen more in children and young people than in elderly people. The main reasons for this problem are working on the computer for long hours, using cell phones for a long time, standing for a long time, running for long hours and lifting heavy weight in the wrong way etc.

What is back pain?

When a person starts feeling a stretch in the upper, middle and lower parts of the back, then the person gradually suffers from back pain. The lower part of the spine carries most of the weight of the body. Back pain can be due to the lack of metabolic chemicals present in the body. This problem can also arise due to a fracture in the spine or weakening of bones. Due to which there is more pressure on the spinal cord, which comes in the form of pain. Back pain mainly depends on the functioning of bones, nerves, muscles and ligaments.

Symptoms of Back pain

Following are the common symptoms of back pain;

  • Pulled muscle and stiffness in the lower back
  • Back pain while waking up in the morning
  • Severe pain in the lower back while getting up and sitting
  • Swelling in the lower back
  • Weight loss
  • Back injury, trauma, or a blow
  • Difficulty in urinating and passing stools
  • Numbness around the hip or thigh when pressure is applied to the middle of the spinal cord.

Causes of Back pain

 

Vertebral disc-

Each vertebra in the spinal cord is connected by discs. If the vertebrae breaks, then there is pressure on the nervous system of the body. As a result, pain occurs in the back.

 

Disk bulge -

Sometimes a herniated disc puts pressure on the body's nervous system. As a result, pain starts in the lower part of the spine.

 

Abnormal curvature of the spine –

Usually, the length of the spine increases with age but on the other hand, there is more growth in one part of the spine, and less growth in another. Due to irregular growth, the physical balance gets disturbed due to which the body becomes afflicted with back pain and other serious diseases.

 

Spinal cancer-

A tumor that develops on the spinal cord puts pressure on the body's nervous system. As a result of which back pain can arise.

 

Lack of calcium in the body-

Our body needs all kinds of nutritious values because these values make the body healthy. It also contains calcium, whose main function is to strengthen bones but if a person does not consume calcium rich elements, then that person may have to face many diseases including back pain.

 

Arthritis-

People suffering from osteoarthritis have to face problems in knees, hips, lower back, neck and joints of hands. In this condition, the substance covering the ends of the joint is called flexible cartilage. It slips or breaks. This results in extreme pain, swelling and difficulty in moving the joints. Spinal stenosis (narrowing of the spine) may also develop in some cases due to which the area around the spine becomes narrower.

 

Spinal cord infection-

Due to infection in the spinal cord,severe pain starts in the lower part of the spine and the person also experiences fever.

 

Home remedies for Back pain-

 

  • Ginger-

Soak ginger in hot water and keep it for some time then mix honey in that water and drink it. By doing this, it gives relief from back pain or pain in other parts of the body. Massage the back or the affected part with ginger oil to get instant relief.

  • Garlic-

Take at least 8 to 10 cloves of garlic and make a paste and apply it on your back. By doing this, it gives relief from back pain in a few days.

 

  • Ice pack-

Ice packs help in many types of pain. Therefore, applying an ice pack on the affected part gives great relief. It eliminates swelling along with back pain.

 

  • Mustard, Lavender or Olive oil-

Massage the back by heating any of the oil like mustard, lavender or olive oil with the thumb with light hands. By doing this, it provides quick relief in back pain.

 

  • Sendha salt-

Put a bowl of Sendha salt in a bathtub filled with lukewarm water. Sit in the bathtub as long as the water is hot. By doing this, it provides relief in back and other body pains.

 

  • Fenugreek powder-

Mix a teaspoon of fenugreek powder and a teaspoon of honey in a glass of warm milk and drink it as a sip of tea. Doing this, it gives relief from back pain.

 

  • Tulsi-

For the treatment of back pain, drinking black salt in a decoction made from tulsi is effective.

 

  • Khus khus-

Mix some quantity of khus khus and sugar in milk and drink it twice a day, it provides relief in back pain.

 

When to see a doctor?

If the back pain lasts more than two weeks and keeps you away from participating in daily activities, then you should consult the doctor. If the pain is severe, you should see a doctor immediately.

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पैर दर्द के प्रकार, कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 24 May, 2022

पैर दर्द के प्रकार, कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

शरीर के लिए हर एक अंग का अपना अहम स्थान होता है। हमारे पैर भी इन्हीं अंगों में शामिल हैं। जो पूरे शरीर का भार संभालने, चलने और भागने में शरीर की सहायता करते हैं। इन दैनिक क्रियाओं के कारण तो कई बार बैठे-बैठे, ज्यादा चलने-फिरने और कई घंटों तक खड़े रहकर काम करने से पैरों में दर्द होने लगता है। कुछ परिस्थियों में यह दर्द इतना बढ़ जाता है कि इसे बर्दाश करना भी बेहद मुश्किल होता है। आमतौर पर पैरों में दर्द होने का मुख्य कारण मांसपेशियों का थकना होता है। इसके अलावा कई बार शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने से भी पैर दर्द की समस्या होने लगती है। किसी को भी पैरों के दर्द जैसी तकलीफ से ज्यादा न गुजरना पड़े, इसलिए वेदोबी के इस लेख में हम टांगों अर्थात पैरों में दर्द होने के कारण और उनके घरेलू इलाज के बारे में बात करेंगे।

 
क्या है पैरों का दर्द?

पैरों के दर्द को जानने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि दर्द होता क्या है? असल में दर्द, तंत्रिका तंत्र द्वारा दिमाग को भेजा गया एक संकेत होता है। जो व्यक्ति को इस बात के बारे में बताता है कि शरीर में कुछ तो सही नहीं है। इस दौरान व्यक्ति को दर्द प्रभावित क्षेत्र में जलन, चुभन, ऐंठन और झुनझुनी जैसी स्थिति महसूस होती है। इस आधार पर पैरों में दर्द होने का मतलब है- पैरों की मांसपेशियों में तनाव, दबाव और झनझनाहट की ऐसी स्थिति बनना, जिससे व्यक्ति को चलने-फिरने में परेशानी होती है।

 
पैर दर्द के प्रकार-
न्यूरोलॉजिकल पेन (Neurological Pain)-

तंत्रिका तंत्र से संबंधित रोग या क्षति की वहज से होने वाले पैरों के दर्द को न्यूरोलॉजिकल पेन कहा जाता है। इसके अलावा साइटिक नर्व (शरीर में मौजूद सबसे लंबी नर्व, जो रीढ़ से होकर पैरों तक जाती है) और अन्य नर्व की क्षति से होने वाले पैरों के दर्द को भी न्यूरोलोजिकल पेन की श्रेणी में शामिल किया जाता है।

 
वस्कुलर पेन (Vascular Pain)-

डीप वेन थ्रोम्बोसिस (नसों में खून का जमना) और पेरिफेरल आर्टरी डिजीज (नसों के पतला होने पर रक्त प्रवाह का रुकना) के कारण होने वाले दर्द को वस्कुलर पेन बोला जाता है। आर्टरी यानी धमनी से जुड़ी परेशानियों की वजह से होने वाले पैरों के दर्द को भी इसी प्रकार में शामिल किया जाता है।

 
मस्कुलोस्केलेटन पेन (Musculoskeletal Pain)-

मांसपेशियों, जोड़ों, हड्डियों और लिगामेंट (दो हड्डियों को आपस में जोड़ने वाला ऊतक) से जुड़ी परेशानियों की वजह से पैदा होने वाले पैरों के दर्द को मस्कुलोस्केलेटन पेन कहा जाता है। मस्कुलोस्केलेटन पेन में निम्नलिखित स्थितियां सामने आतीं हैं।

  • अधिक दबाव या तनाव की वजह से मांसपेशियों का कठोर होना।
  • गहरी चोट के कारण मांसपेशियों में सूजन आना।
  • जोड़ों के दर्द से जुड़ी समस्या।
  • हड्डियों का टूटना या ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का नाजुक होना) जैसे हड्डी संबंधी रोग।
पैरों में दर्द के कारण-
  • डिहाइड्रेशन होना।
  • खून में कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम और मैग्नीशियम की कमी होना।
  • चोट लगने से मांसपेशियों में आने वाली क्षति के कारण।
  • मूत्रवर्धक या कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवाओं का सेवन करना।
  • हड्डियों में हेयर लाइन का क्रैक पड़ना।
  • शिन स्पलिंट (निचले पैर की हड्डी के बाहरी हिस्से का अधिक उपयोग) के कारण।
  • अधिक व्यायाम या एक जगह पर बैठे रहने के कारण मांसपेशियों में थकान या तनाव की वजह से।
पैरों में दर्द के अन्य कारण-
  • अर्थराइटिस की वजह से जोड़ों में सूजन के कारण।
  • सेलुलाइटिस (त्वचा व नर्म ऊतकों से जुड़ा संक्रमण)।
  • पेरिफेरल आर्टरी डिजीज (पैरों में रक्त प्रवाह से संबंधित एक विकार)।
  • लंबे बेड रेस्ट के कारण खून का जमना (जैसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस)।
  • वैरिकोज वेन्स (नसों में सूजन) के कारण।
  • ऑस्टियोमायलिटिस (हड्डियों का संक्रमण)।
  • नसों की क्षति के कारण (डायबिटीज रोगियों व शराब और सिगरेट का सेवन करने वालों में आम)।
पैरों में दर्द के लक्षण-
  • चलने, खड़े होने, हिलने-डुलने और आराम करते समय दर्द होना।
  • प्रभावित क्षेत्र में चुभन होना।
  • पैरों में सूजन आना।
  • मांसपेशियों में ऐंठन होना।
  • प्रभावित क्षेत्र में जलन होना।
  • शरीर में अकड़न होना।
  • पैरों चलाने एवं हिलाने में काफी तकलीफ और दर्द का सामना करना।
  • प्रभावित क्षेत्र में झुनझुनी का एहसास होना।
  • शौचालय में बैठने में परेशानी होना।
  • प्रभावित क्षेत्र में डंक लगने जैसा महसूस होना।
पैरों में दर्द का घरेलू उपचार-
सेंधा नमक की सिकाई-

सेंधा नमक नर्वस सिग्नल्स को नियंत्रित करके, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने का काम करता है। इसके लिए एक बाल्टी में गुनगुना पानी लेकर और उसमें एक से दो चम्मच सेंधा नमक डालें। अब इस पानी में कुछ देर के लिए पैर को डालकर रखें। ऐसा करने से पैरों के दर्द में आराम मिलेगा।

 
मालिश करना-

पैरों की मांसपेशियों में तनाव आने या उनके थक जाने पर पैरों में दर्द होने लगता है। ऐसे में पैरों की मालिश करना एक आरामदायक विकल्प साबित होता है। जिसका इंस्टेंट असर देने को मिलता है। मालिश हेतु सरसों के तेल का सीधा उपयोग या उसमें अजवायन और लहसुन को पकाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

 
हल्दी का उपयोग-

हल्दी कई औषधीय गुणों से भरपूर होती है। इसलिए एक ग्लास दूध में एक चम्मच हल्दी पाउडर को मिलाकर सुबह-शाम पीने से पैर और घुटनों के दर्द में आराम मिलता है। इसके अलावा तिल के तेल में दो चम्मच हल्दी मिलाकर, तैयार लेप को आधे घंटे के लिए पैरों पर लगाने से भी दर्द में लाभ होता है। इससे जोड़े भी मजबूत होते हैं।

 
लौंग का इस्तेमाल-

दांत व मसूड़ों के दर्द, घुटने और पैरों के दर्द में लौंग काफी लाभकारी होती है। इसके लिए दर्द वाली जगह पर लौंग पाउडर या लौंग तेल से पैरों की हल्के हाथ से मसाज करें।

 
मेथी का उपयोग-

मेथी दाना का प्रयोग घुटनों और पैरों के दर्द के लिए असरदार होता है। यह दर्द की गोली की तरह ऐनलजेसिक एवं एंटी-इंफ्लामेट्री होता है। इसलिए सुबह-शाम दाना मेथी के पाउडर को आधा से एक चम्मच खाने के बाद गर्म पानी पीने से घुटनों और पैरों के दर्द में आराम मिलता है।

 
नीलगिरी तेल का प्रयोग-

नीलगिरी का तेल नसों के दर्द को कम करने में मददगार साबित होता है। उपयोग हेतु इस तेल को सूंघने या किसी अन्‍य तेल में मिलाकर मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है।

 
बर्फ की सिकाई-

बर्फ के इस्तेमाल से भी पैरों के दर्द को छूमंतर किया जा सकता है। उपयोग हेतु बर्फ के 2-3 टुकड़ों को एक कपड़े में रखकर, पोटली बना लें। अब इस पोटली से पैरों की मसाज करने से दर्द में आराम मिलता है।

 
धीमी सांस वाली एक्सरसाइज-

एनसीबीआई द्वारा किए गए शोध के अनुसार, ब्रीथिंग एक्सरसाइज हाथ-पैरों और नसों में होने वाले दर्द से छुटाकारा दिलाने में मदद करती है। क्योंकि यह एक्सरसाइज ऑटोनॉमिक फंक्शन (नर्वस सिस्टम से जुड़ी) में सुधार करने का काम करती है। जिससे हाथ-पैरों के दर्द में आराम मिलता है।

 
कब जाएं डॉक्टर के पास?

विशेषज्ञों के अनुसार पैर और घुटनों में दर्द होने पर घरेलू उपचार अपनाएं। लेकिन इनसे उचित लाभ न होने पर बिना देर किए डॉक्टर के पास चले जाएं। इसके अलावा यदि दर्द फ्रेक्चर की वजह से है या दर्द के साथ सूजन, लालिमा, गर्माहट, बुखार और वजन कम हो रहा है तो फ़ौरन ऑर्थोपीडिक डॉक्टर को दिखाएं।

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What is Sprain? Know its Symptoms and Treatment

Posted 09 December, 2021

What is Sprain? Know its Symptoms and Treatment

Any type of injury to the ligament etc. is called a sprain. Ligaments are hard, flexible and fibrous tissues that work to connect two bones together in a joint. During a sprain, the ligament may be slightly injured or it may separate completely. Due to a sprain, a person has to face pain. These are usually not a big problem and quite common but improper handling may lead to the problem getting worse. Sprains are often caused by lack of exercise, calcium deficiency, potassium deficiency or injury. Due to sprain, pain and cramps arise in the muscles of the person which causes discomfort to the person. This problem can happen to anyone, anywhere, people of any age.

 

Symptoms of Sprain

The symptoms of a sprain are listed below-

  • Pain around the affected joint.
  • Inability to use the joint normally or put weight on it.
  • Swelling and feeling of pain when touched.
  • A feeling of Warmness at the place where the skin is red and swollen.

 

Causes of Sprain
  • Work beyond capacity.
  • Sudden change in direction or speed. Falling somewhere or landing the wrong way.
  • Collision with an object or person.
  • If you suddenly put weight on the front part of your foot, you can sprain your ankle. An ankle sprain can occur if all of the body's weight suddenly falls on the ankle. An ankle sprain can often come from walking or running in rough or uneven terrain.
  • Sprains also occur while playing sports, which involve sudden rapid and low speed.
  • When a person takes part in sports for the first time, he is more likely to get a sprain because his muscles have not felt so much tension before.
  • Experienced athletes can also have this problem. When they overuse their muscles because the increased demands on the use of their muscles can cause sudden sprains.
  • Children who are taking part in sports are also more prone to sprain etc. because they are developing physically.

 

Tests for Sprain

After a brief physical exam to check for sprains, doctors recommend an X-ray. With the help of an X-ray, any type of break or fracture in the body can be detected. If X-rays does not provide conclusive reports, doctors may request other tests, such as an MRI.

 

Home remedies for Sprain
Use rock salt to cure sprain-

Rock salt is anti-inflammatory and helps in reducing muscle pain and cramps. It contains magnesium naturally which removes bone pain. This salt draws out the fluid and provides relief from swelling. Therefore, to cure sprain, take two cups of rock salt and mix it in a bucket of lukewarm water. Now take a bath with this water or sit by putting the affected part in the water. Repeat this process until the swelling of the sprain subsides. However, always keep in mind that people who are suffering from heart and BP problems should not use rock salt.

 

Castor oil is useful in curing sprain-

Castor oil has many medicinal properties which reduce bone pain. For people suffering from arthritis, massaging with castor oil is good for reducing inflammation and cramps. Apart from this, it is beneficial to use castor oil to cure sprains. Apply castor oil in a clean cloth and apply it to the affected area and cover it with something. Now place a hot water bottle over it and remove it in a few minutes. After this, massage the area with light hands. Repeat this process once daily throughout the day until your sprain is completely healed.

 

Cure with apple cider vinegar-

Apple cider vinegar has antibacterial properties along with a good amount of antioxidants which reduces swelling and pain. Apple cider vinegar reduces the risk of many diseases and also relieves sprains. To use it, take a bath by pouring warm water in a bucket, adding two spoons of apple cider vinegar to it or keep the affected area immersed in this water for a while to reduce swelling and pain. Do this once a day.

 

Benefits of olive oil for sprains-

There are some compounds in olive oil that are anti-inflammatory. With its help, the sprain of the feet gets cured easily. This oil is used for many diseases because it is beneficial for health. To use olive oil, slightly warm this oil and massage the affected area with a light hand. Massaging with olive oil provides quick relief from sprains. Do this at least four to five times a day.

 

Use of clove oil-

The way clove oil is used for teeth related problems. In the same way, this oil also helps in curing the problem of sprains because it has some anaesthetic properties that work to reduce inflammation and its pain. For this, take one or two teaspoons of clove oil and leave it for some time. After this, apply the oil to the affected area with light hands and massage it for some time. This procedure provides relief from muscle pain.

 

Use of Onion for Ankle Injury-

Onion has natural anti-inflammatory properties that help to reduce the pain of ankle injury, fingers, and arthritis. To use onion, cut it into small pieces and put this chopped onion in a cotton cloth, tie it on the affected area and leave it for at least two hours. Do this process once a day.

 

Use of Aloe Vera Gel-

Aloe vera gel is used to cure sprains. Massaging with aloe vera gel provides relief from sprains. Apart from this, ayurvedic medicine of aloe vera is given in case of sprain in the feet of the players so that they can get rest soon. If you want to take ayurvedic medicine of aloe vera, then definitely consult a doctor.

 

Treatment of Sprain
Rest-

Rest your affected joint when the sprain occurs. Try not to put pressure on the sprain until it heals. In this case, the joint gets enough time to heal.

 

Ice-

Swelling and burning can be reduced with the help of ice. Never apply ice directly to the skin. Wrap it in a thin towel or cloth first. Then apply it to the affected area first for 20 minutes and then remove it for 20 minutes. Repeat this process as often as possible within the first 24 to 48 hours of getting the sprain.

 

Pressure-

Inflammation can also be reduced with the help of pressure. In fact, swelling can be reduced by wrapping the affected joint tightly with a bandage. However, do not wrap too tightly because it can also stop the supply of blood in the body.

 

Keep it above the heart level-

When sprained, try to keep the affected joint at a height above the level of the heart. This can also help reduce swelling. If the injury is in the knee or ankle, the patient is required to lie on a bed or couch for 2 days after the injury.

 

When to go to the doctor?
  • Pain, swelling, or stiffness that doesn't get better for 2-3 days.
  • Due to damage to one bone, it is unable to work properly with the other bone.
  • When the ligaments that hold the bones together are torn.
  • On frequent sprains.
  • Experiencing more pain in a straight bone or joint.
  • Tingling or numbness around the joint.
  • When the damaged muscle is not able to move at all because in this case the muscle is completely torn from inside. After which the person needs immediate medical care.
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Foot Pain- Types, Causes, Symptoms and Home remedies

Posted 17 March, 2022

Foot Pain- Types, Causes, Symptoms and Home remedies

Each part of the body has its own important place. Our feet are also included in these organs which help the body to handle the weight of the whole body, walk and run. Due to these daily activities, many times the legs start to hurt due to sitting, moving and working for many hours. In some circumstances, this pain increases so much that it is very difficult to tolerate it. Usually, the main reason for pain in the legs is muscle fatigue. Apart from this, sometimes the problem of foot pain also starts due to a lack of nutrients in the body.

 

What is Foot Pain?

Before knowing about foot pain, it is important to understand what is pain? Basically, pain is a signal sent by the nervous system to the brain which tells the person that something is not right in the body. During this, the person feels a burning, prickling, cramping and tingling condition in the pain-affected area. On this basis, pain in the feet means that there is such a condition of tension, pressure and tingling in the muscles of the feet due to which the person has trouble walking.

 

Types of Foot Pain

Neurological Pain-

Pain in the legs due to disease or damage related to the nervous system is called neurological pain. Apart from this, pain in the legs is caused by damage to the sciatic nerve (the longest nerve in the body, which runs through the spine to the legs) and other nerves. It is also included in the category of neurological pain.

 

Vascular Pain-

Vascular pain is the pain caused due to deep vein thrombosis (clotting of blood in the veins) and peripheral artery disease (stopping blood flow due to dilation of the veins). Pain in the legs due to problems related to the arteries is also included in this type.

 

Musculoskeletal Pain-

Pain in the legs due to problems related to muscles, joints, bones and ligaments (the tissue that connects two bones) is called musculoskeletal pain. The following conditions arise in musculoskeletal pain-

 
  • Stiffness of muscles due to excessive pressure or tension.
  • Swelling of muscles due to deep injury.
  • Problems related to joint pain.
  • Bone fractures or bone diseases such as osteoporosis (fragility of bones).

Causes of Foot Pain

  • Deficiency of calcium, potassium, sodium and magnesium in the blood.
  • Muscle damage caused by injury.
  • Taking diuretics or cholesterol-lowering drugs.
  • Cracking of the hairline in the bones.
  • Due to shin splints (overuse of the outer part of the lower leg bone).
  • Due to muscle fatigue or tension due to excessive exercise or sitting in one place.

Other causes of Foot Pain are-

  • Inflammation in the joints due to arthritis.
  • Cellulitis (infection involving the skin and soft tissues).
  • Peripheral artery disease (a disorder related to blood flow to the legs).
  • Blood clotting due to prolonged bed rest (eg deep vein thrombosis).
  • Due to varicose veins (swelling of veins).
  • Osteomyelitis (infection of the bones).
  • Due to nerve damage (common in diabetics and those who use alcohol and cigarettes).

Symptoms of Foot Pain

  • Pain when walking, standing, moving and at rest.
  • Prickling in the affected area.
  • Swelling of feet.
  • Muscle cramps.
  • Burning sensation in the affected area.
  • Stiffness in the body.
  • There is a lot of discomfort and pain in walking and moving the legs.
  • Tingling feeling in the affected area.
  • Difficulty sitting in the toilet.
  • Stinging feeling in the affected area.

Home remedies for Foot Pain

Rock salt concoction-

Rock salt works by regulating the nervous signals and relaxes the muscles. For this, take lukewarm water in a bucket and add one to two teaspoons of rock salt to it. Now keep the feet in this water for some time. By doing this you will get relief from foot pain.

 

Massage-

Pain in the feet starts when the muscles of the feet are tense or tired. In such a situation, foot massage proves to be a comfortable option that gives instant effect. Mustard oil can also be used directly for massage or by cooking oregano and garlic in it.

 

Use of turmeric-

Turmeric is rich in many medicinal properties. Therefore, mixing one teaspoon of turmeric powder in a glass of milk and drinking it in the morning and evening provides relief in foot and knee pain. Apart from this, mixing two spoons of turmeric in sesame oil and applying the prepared paste on the feet for half an hour also provides relief in pain.

 

Use of cloves-

Clove is very beneficial in tooth and gum pain, knee and foot pain. For this, massage the feet lightly with clove powder or clove oil on the painful area.

 

Use of Fenugreek-

The use of fenugreek seeds is effective for the pain of knees and feet. It is analgesic and anti-inflammatory like a pain pill. Therefore, after eating half to one spoonful of fenugreek powder in the morning and evening, drinking warm water provides relief in knee and foot pain.

 

Use of Eucalyptus Oil-

Eucalyptus oil proves to be helpful in reducing neuralgia. Smelling this oil or mixing it with any other oil gives relief in pain.

 

Ice training-

Foot pain can also be relieved by the use of ice. To use, make a bundle by keeping 2-3 pieces of ice in a cloth. Now massaging the feet with this bundle gives relief in pain.

 

Slow breathing exercise-

According to research conducted by NCBI, breathing exercises help in getting rid of pain in the hands, legs and nerves because this exercise works to improve the autonomic function (related to the nervous system) due to which the pain of hands and feet gets relief.

 

When to go to the Doctor?

According to experts, adopt home remedies for pain in the feet and knees but if there is no proper benefit from them, go to the doctor without delay. Apart from this, if the pain is due to a fracture or if the pain is accompanied by swelling, redness, fever and weight loss, then see an orthopaedic doctor immediately.

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Heel pain- Symptoms, Causes and Home remedies

Posted 13 December, 2021

Heel pain- Symptoms, Causes and Home remedies

Heel pain is a very common foot problem. The victim usually has pain under the heel (plantar fasciitis) or behind it (Achilles tendinitis). In many cases, heel pain is quite severe and unbearable, but it does not pose any threat to your health. Heel pain is usually mild and gets better on its own. However, in some cases, the pain can be constant and persist for a long time. The heel bone (calcaneus) is the largest of the total 26 bones of the human foot. The structure of the human heel is such that it can comfortably bear the weight of the body. When our heel hits the ground while walking or running, it absorbs the pressure on the foot and enables us to move forward. Experts say that walking 1.25 times more bodyweight and running 2.75 times more, puts more pressure on the feet. Due to this, the heel becomes weak and pain starts in it. This pain can also be caused by arthritis, infection, an autoimmune problem, trauma, a neurological problem, or some other systemic condition (a condition that affects the whole body).

 

In Ayurveda, heel pain is called Vatakantaka. It is mainly caused by Vata and Kapha doshas. Vata is sometimes aggravated by the consumption of foods that increase Vata dosha and Kapha dosha and due to excessive exercise, sports and running. Therefore, in Ayurveda, Vata and Kapha doshas are considered to be the causes of heel pain. The pain of the ankles often remains while getting up in the morning, people sometimes ignore this pain as a common pain, but it can be harmful. If there is pain in the ankle only after getting up every morning, then it is a sign of Plantar Fascitis because of which many people have to deal with heel pain every day. In the absence of treatment, it can become a serious problem and the person may have to face difficulty in daily activities and movement.

 

Symptoms of Heel pain

  • Burning sensation along with pain in the lower part of the feet or a feeling of protruding from the heel for some time.
  • Stiffness with pain in the soles of the feet.
  • Unbearable pain in the ankles after getting up from sleep.
  • Pain in legs when standing for a long time.
  • Raised feeling of soles or heels.
  • Mild swelling or redness in the leg.
  • Stiffness in the bottom of the feet.

Causes of Heel pain

Rise of uric acid

The biggest reason for heel pain in youth is the increase in uric acid. Uric acid in the body usually increases in that condition. The increased amount of uric acid over a period of time starts to accumulate in the form of crystals in the joints of the body. The result of which comes in the form of sudden joint pain. It mainly affects the bones of the ankles, knees, hands and wrists in which the bones become weak and disorders arise in them.

 

Sprain and flesh burs 

Sprains and strains are usually injuries caused by physical activity. These injuries may be minor or severe depending on the accident that happened to the victim which becomes a cause of heel pain.

 

Fracture

A fracture breaks a bone and requires emergency medical attention. This is also one of the main causes of heel pain.

 

Spondylitis

Spondylitis is a form of arthritis, which mainly affects the spine. This causes severe inflammation in the vertebrae, resulting in the onset of long-lasting heel pain.

 

Reactive arthritis

It is a type of arthritis and results from an infection in the body due to which there is pain in the heel.

 

Plantar fasciitis

Plantar fasciitis occurs when too much pressure on your feet damages the plantar fascia ligament (the tissue that connects the heel bone to the toes). Due to this, the heel becomes hard and there is pain in it.

 

Achilles tendinitis

In Achilles tendinitis, pain or swelling occurs due to damage to the vein connecting the calf muscles to the heel.

 

Osteochondroses

Osteochondrosis directly affects bone development in children and adolescents due to which there is pain in the heel.

 

Home remedies for Heel pain

Turmeric provides relief from heel pain

The anti-inflammatory properties of turmeric help reduce inflammation in the body. Therefore, turmeric is very beneficial in ankle pain. It works in both pain and inflammation. Make sure to use turmeric in the diet, along with drinking turmeric mixed with milk also provides relief in pain.

 

Ice compress is beneficial in heel pain

Apply ice cubes on the affected area about four to five times a day. For this, wrapping a piece of ice in a cloth and applying it to the painful area provides quick relief from pain.

 

Ginger decoction gives relief from heel pain

Boil finely chopped ginger in two cups of water. After boiling well, when the water remains only one cup, then make it lukewarm, mix two to three drops of lemon juice and one spoon of honey and consume it. Ginger helps in relieving both pain and inflammation.

 

Vinegar removes heel pain

Vinegar helps in curing symptoms like swelling, sprains and cramps. Mix two tablespoons of vinegar and one teaspoon of salt or rock salt in a bucket of warm water, then dip your feet in it for about twenty minutes, it provides relief from pain.

 

Rock salt reduces heel pain-

Mix two to three tablespoons of rock salt in a tub of warm water and put your feet in it for 10 to 15 minutes. It provides relief in heel pain and swelling.

 

Clove oil removes heel pain-

Gently massage the painful area with clove oil. This increases blood flow and relaxes the muscles. Clove oil is very beneficial if there is any kind of pain in the feet.

 

Stretching is beneficial in heel pain-

Do stretching regularly. Fold a towel and place it under your soles, now lift the ankles upwards and stretch the feet. Repeat this process for 15-30 seconds in both legs one by one. It gives benefit in pain.

 

Aloe Vera gel is an effective remedy for heel pain-

Put aloe vera gel in a vessel and heat it on a low flame. Add Nausadar and turmeric to it, when it starts releasing water, apply it on the ankles with cotton when it becomes lukewarm. Now tie it, and use it at night. Consuming it daily for 30 consecutive days gives relief.

 

Heel pain treatment with Ayurvedic herbs

Chitrak-

The root of this herb is mainly used to reduce heel pain. To get relief from pain, a paste prepared from the root of Chitrak is applied to the affected area. Chitrak produces heat on the affected area and increases blood flow and accelerates metabolic processes. It reduces ama from the heel due to which the pain is reduced.

 

Castor-

It has analgesic, laxative and nerve relaxant properties. It is one of the main herbs that reduce inflammation. Castor is also called the "King of Vata disorders" because it is useful in catharsis (diarrhoea), removal of ama from the body and in clearing aggravated vata dosha. It provides relief from pain and swelling in joints. Hence, it is used to control diseases like sciatica, rheumatism, heel spurs, plantar fasciitis and Achilles tendon bursitis.

 

Ayurvedic treatment for heel pain through karma or therapy

Virechana karma-

In virechana karma, the body is detoxified. In this, the digestive system is detoxified with the help of medicines. After this, sweat is removed by the method of sweating due to which the body is detoxified. By doing this, the balance of Vata is created and there is relief from pain in the heel.

 

Abhyanga karma-

In abhyanga karma, medicated oils are continuously dropped on the body. It is done by pouring oil on the affected area or on sensitive points which give relief from heel pain.

 

Raktamokshan-

Raktamokshan is one such Ayurvedic therapy, in which the contaminated blood is removed from the body. In this process, blood is extracted from the affected area by the leech. After this, when the leech completely sucks the blood, turmeric is put on the leech and they are freed from the skin. This gives relief to heel pain.

 

Lep Karma-

To perform lep karma, a paste of medicines is prepared which is applied to the area affected by heel pain. For this, making a mixture of Vacha, amla and barley and applying it to the affected area provides relief. Asafoetida paste is effective in plantar fasciitis.

 

Remedies to prevent Heel pain

Safety while playing sports-

Warm-up thoroughly before doing any activity that puts excessive pressure on the heels. Wear good quality shoes during sports.

 

Wear the right footwear-

To avoid heel pain, shoes that reduce the pressure on the heel during walking prove to be very helpful, such as pads under the heel. Make sure the shoes fit your feet and have a comfortable sole. If a particular shoe hurts your heel, don't wear it.

 

Don't be barefoot-

Be sure to wear shoes when walking on hard ground.

 

Lose more weight-

An overweight person puts more pressure on their heels when walking or running, so, try to lose weight.

 

When to go to the Doctor?

  • Fever accompanied by heel pain.
  • Being unable to walk normally.
  • Persistent heel pain persists even after a week.
  • Swelling and severe pain near the heel.
  • Numbness and tingling in the heel with pain and fever.
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एड़ी में दर्द के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 24 May, 2022

एड़ी में दर्द के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

एड़ी का दर्द पैर की एक बहुत ही आम समस्या है। पीड़ित को आमतौर पर एड़ी के नीचे (प्लान्टर फ़ेशियाइटिस- plantar fasciitis) या इसके पीछे (अचिल्लेस टेन्डिनाइटिस - Achilles tendinitis) दर्द होता है। कई मामलों में एड़ी का दर्द काफी गंभीर और असहनीय होता है, लेकिन यह आपके स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करता है। एड़ी का दर्द आमतौर पर हल्का होता है और अपने आप ठीक हो जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में दर्द निरंतर और लम्बे समय तक बना रह सकता है। मनुष्य के पैरों की कुल 26 हड्डियों में से एड़ी की हड्डी (calcaneus) सबसे बड़ी होती है।

मानव की एड़ी की संरचना इस प्रकार की होती है कि वह आराम से शरीर के वजन को उठा सके। चलते या दौड़ते समय जब हमारी एड़ी जमीन से टकराती है, तो यह पैर पर पड़ने वाले दबाव को सोंख लेती है और हमें आगे की ओर बढ़ने में सक्षम बनाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि शरीर के वजन से 1.25 गुना ज़्यादा चलने और 2.75 गुना ज्यादा दौड़ने के कारण पैरों पर अधिक दबाव पड़ता है। इसके चलते एड़ी कमजोर हो जाती है और इसमें दर्द होने लगता है। गठिया, संक्रमण, एक स्वप्रतिरक्षित समस्या (autoimmune problem) आघात यानी तनाव से सम्बंधित एक समस्या, न्यूरोलॉजिकल (स्नायु संबंधी) समस्या या कुछ अन्य प्रणालीगत स्थिति (ऐसी स्थिति जो पूरे शरीर को प्रभावित करती है) के कारण भी यह दर्द हो सकता है।

आयुर्वेद में एड़ी में होने वाले दर्द को वातकण्टक कहा गया है। यह मुख्य रूप से वात एवं कफ दोष के कारण होता है। वात दोष एवं कफ दोष को बढ़ाने वाले आहार के सेवन से तथा अत्यधिक व्यायाम, खेल-कूद, भाग-दौड़ के कारण कभी-कभी वात बढ़ जाता है। अत: आयुर्वेद में वात एवं कफ दोष एड़ियों के दर्द के कारण माने गए हैं। एड़ियों का दर्द अक्सर सुबह उठते वक्त रहता है, लोग कई बार इस दर्द को एक आम दर्द समझ्कर नजर अन्दाज कर देते है लेकिन यह हानिकारक हो सकता है। अगर हर रोज सुबह उठने के बाद ही एड़ियों में दर्द रहता है, तो यह प्लानटर फैसिटिस (Plantar Fascitis) होने का संकेत है। जिसकी वजह से कई लोगों को रोज एड़ी के दर्द से जूझना पड़ता है। उपचार के अभाव में यह एक गंभीर समस्या बन सकती है और व्यक्ति को दैनिक कार्यों एवं चलने-फिरने में तकलीफ का सामना करना पड़ सकता है।

 
एड़ी में दर्द होने के लक्षण
  • पैरों के निचले हिस्से में दर्द के साथ जलन या कुछ समय के लिए एड़ी से बाहर निकलता हुआ महसूस होना।
  • पैरों के तलें में दर्द के साथ जकड़न।
  • सोकर उठने के बाद एड़ियों में असहनीय दर्द।
  • ज्यादा देर तक खड़ा रहने पर पैरों में दर्द।
  • तलवे या एड़ी का उठा हुआ महसूस होना।
  • पैर में हल्की सूजन या लाल होना।
  • पैरों के तल में जकड़न या कड़ापन।
एड़ी में दर्द के कारण
यूरिक एसिड का बढ़ना-

युवाओं में एड़ी में दर्द का सबसे बड़ा कारण यूरिक एसिड का बढ़ाना है।शरीर में यूरिक एसिड आमतौर पर उस स्थिति में बढ़ता है।जब हम प्रोटीन डायट का सेवन बहुत अधिक करने लगते हैं।इसके अलावाजब लिवर प्रोटीन को पचा नहीं पाता तो भीयूरिक एसिडबढ़ता है।यूरिक एसिड की बढ़ी हुई मात्रा एक समय के बाद शरीर के जोड़ों में क्रिस्टल के रूप में जमने लगती है। जिसका परिणाम अचानक होने वाले जॉइंट पेन के रूप में सामने आता है। इसमें मुख्य रूप से एडियां, घुटने, हाथ और कलाई की हड्डियां प्रभावित होती हैं। जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें विकार उत्पन्न होने लगता है।

 
मोच और मांस फटना –

मोच और खिंचाव आमतौर पर शारीरिक गतिविधियों के कारण लगने वाली चोटें होती हैं। पीड़ित के साथ हुए हादसे के आधार पर यह चोटें मामूली या गंभीर होती हैं। इसके कारण एड़ी में दर्द होता है।

 
फ्रैक्चर –

फ्रैक्चर में हड्डी टूट जाती है और आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यह भी एड़ी में दर्द होने के मुख्य कारणों में से एक है।

 
स्पांडिलाइटिस (spondylitis)–

स्पांडिलाइटिस गठिया का एक रूप है, जो मुख्य रूप से रीढ़ को प्रभावित करता है। यह बर्टिब्रे (कशेरुकाओं) में गंभीर सूजन का कारण बनता है, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक चलने वाला एड़ी में दर्द शुरू होता है।

 
रिएक्टिव गठिया –

 यह गठिया का एक प्रकार है और शरीर में होने वाले संक्रमण से उत्पन्न होता है। इस कारण भी एड़ी में दर्द होता है।

 
प्लान्टर फ़ेशियाइटिस (Plantar fasciitis) –

 प्लान्टर फेशियाइटिस तब होता है, जब आपके पैरों पर बहुत अधिक दबाव पड़ने से प्लान्टर फेशिया लिगमेंट ( टिश्यू जो एड़ी की हड्डी को पंजो से जोड़ते हैं) को नुकसान पहुंचता है। इसके कारण एड़ी सख्त हो जाती है और उसमें दर्द होता है।

 
अचिल्लेस टेन्डिनाइटिस (Achilles tendinitis)–

अचिल्लेस टेन्डिनाइटिस में पिंडली की मांसपेशियों को एड़ी से जोड़ने वाली शिरा के क्षतिग्रस्त होने के कारण उसमें दर्द या सूजन हो जाती है।

 
ऑस्टेओकोंड्रोसेस (Osteochondroses) –

ऑस्टेओकोंड्रोसेस प्रत्यक्ष रूप से बच्चों और किशोरों की हड्डियों के विकास को प्रभावित करता है। जिस कारण एड़ी में दर्द होता है।

 
एड़ी में दर्द के घरेलू उपाय
एड़ी में दर्द से राहत दिलाती है हल्दी-

हल्दी का एंटी इंफ्लैमटोरी गुण शरीर में सूजन को कम करने में मदद करती है। इसलिए हल्दी एड़ियों के दर्द में बहुत फायदेमंद है। यह दर्द एवं सूजन दोनों में काम करती है। आहार में हल्दी का इस्तेमाल जरूर करें साथ ही दूध में हल्दी मिलाकर पीने से भी दर्द में लाभ मिलता है।

 
एड़ी के दर्द में फायदेमंद है बर्फ का सेंक-

दिन में लगभग चार से पांच बार प्रभावित जगह पर बर्फ का टुकड़ा लगाएं। इसके लिए एक कपड़े में बर्फ के टुकड़े को लपेटकर दर्द वाली जगह पर लगाने से दर्द से जल्दी आराम मिलता है।

 
एड़ी के दर्द से राहत दिलाता है अदरक का काढ़ा-

अदरक को बारीक काटकर दो कप पानी में डालकर उबालें। अच्छी तरह उबल जाने पर जब पानी एक कप ही रह जाए तब गुनगुना होने पर इसमें दो से तीन बूंद नींबू का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें। अदरक दर्द एवं सूजन दोनों से ही राहत दिलाने में मदद करता है।

 
एड़ी के दर्द को दूर करता है सिरका-

सिरका (Vinegar) सूजन, मोच और ऐंठन जैसे लक्षणों को ठीक करने में मदद करता है। गर्म पानी की एक बाल्टी में दो बड़े चम्मच सिरका और एक छोटा चम्मच नमक या सेंधा नमक मिलाएं फिर इसमें अपने पैरो को लगभग बीस मिनट के लिए डुबा कर रखने से दर्द से आराम मिलता है।

 
एड़ी के दर्द को कम करता है सेंधा नमक-

गर्म पानी के एक टब में दो से तीन बड़े चम्मच सेंधा नमक मिलाकर इसमें अपने पैरों को 10 से 15 मिनट के लिए डाल दें। इससे एड़ी के दर्द और सूजन में आराम मिलता है।

 
एड़ी के दर्द को दूर करता है लौंग का तेल-

लौंग के तेल से धीरे-धीरे दर्द वाली जगह पर मालिश करें। इससे रक्त प्रवाह तेज होता है और मांसपेशियों को आराम मिलता है। पैरों में किसी भी तरह का दर्द होने पर लौंग का तेल बहुत लाभदायक होता है।

 
एड़ी के दर्द में लाभदायक है स्ट्रेचिंग-

नियमित रूप से स्ट्रेचिंग करें। एक तौलिए को मोड़कर अपने तलवों के नीचे रखें अब एड़ियों को ऊपर की तरफ उठाएं और पैर को स्ट्रेच करें। एक-एक करके दोनों पैरो में 15-30 सेकेण्ड के लिए ये प्रक्रिया दोहराये। इससे दर्द में लाभ मिलता है।

 
एड़ी के दर्द का कारगर उपाय है एलोवेरा जेल-

एक बर्तन में ऐलोवेरा जैल ड़ालकर धीमी आंच पर गर्म करें। इसमें नौसादर और हल्दी ड़ालें, जब यह पानी छ़ोड़ने लगे तो इसे हल्का गुनगुना होने पर रुई से एड़ियों पर लगा लें। अब इसे बांध लें, और इसे रात को प्रयोग करें। लगातार 30 दिनों तक प्रतिदिन सेवन करने से आराम मिलता है।

 
आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां द्वारा एड़ी के दर्द का उपचार
एड़ी में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां-

इस जड़ी-बूटी की जड़ प्रमुख तौर पर एड़ी में दर्द को कम करने के लिए इस्‍तेमाल की जाती हैं। दर्द से राहत पाने के लिए चित्रक की जड़ से तैयार लेप को प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है। चित्रक प्रभावित हिस्‍से पर गर्मी पैदा करती है और रक्‍त प्रवाह को बढ़ाती है एवं चयापचय प्रक्रियाओं को तेज करती है। यह एड़ी से अमा को घटाती है।जिससे दर्द कम होता है।

 
अरंडी-

इसमें दर्द निवारक, रेचक और नसों को आराम देने वाले गुण होते हैं। यह सूजन को कम करने वाली मुख्‍य जड़ी-बूटियों में से एक है। अरंडी को “वात विकारों का राजा” भी कहा जाता है। क्‍योंकि यह रेचन (दस्‍त), शरीर से अमा को निकालने और बढ़े हुए वात दोष को साफ करने में उपयोगी है। यह जोड़ों में दर्द और सूजन से राहत दिलाती है। इसलिए साइटिका, रुमेटिज्‍म, एड़ी की हड्डी बढ़ने, प्लान्टर फेशियाइटिस और अचिल्लेस टेंडन बर्सिटिस जैसी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।

 
कर्म या थेरिपी के द्वारा एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज-
विरेचन कर्म-

विरेचन कर्म में शरीर को डिटॉक्सीफाई किया जाता है।इसमें औषधियों के द्वारा पाचन तंत्र को डिटॉक्सीफाई किया जाता है। इसके बाद स्वेदन विधि के द्वारा पसीना निकलवाया जाता है।जिससे बॉडी डिटॉक्स होती है। ऐसा करने से वात का संतुलन बनता है और एड़ी में दर्द से आराम मिलता है।

 
अभ्यंग कर्म-

अभ्यंग कर्म में औषधीय तेलों को शरीर पर लगातार गिराया जाता है। एड़ी में दर्द के लिए अभ्यंग कर्म के लिए पिंड तेल का इस्तेमाल होता है। इसे प्रभावित स्थान पर या संवेदनशील बिंदुओं पर तेल डाल कर किया जाता है। जिससे एड़ी में दर्द से राहत मिलती है।

 
रक्तमोक्षण-

रक्तमोक्षण एक ऐसी आयुर्वेदिक थेरेपी है, जिसमें शरीर से दूषित ब्लड को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में जोंक के द्वारा प्रभावित स्थान से खून निकाला जाता है। इसके बाद जब जोंक पूरी तरह से खून चूस लेती है तो जोंक पर हल्दी डाल कर उन्हें, त्वचा से छुड़ाया जाता है। इससे एड़ी के दर्द में राहत मिलती है।

 
लेप कर्म-

लेप कर्म करने के लिए औषधियों का लेप तैयार किया जाता है।जिसे एड़ी केदर्द से प्रभावित स्थान पर लगाया जाता है। इसके लिए वच, आंवला और जौ का मिश्रण बनाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से राहत मिलती है। प्लांटर फेशियाइटिस में हींग का लेपन प्रभावी होता है।

 
एड़ी में दर्द से बचाव के उपाय-
खेल खेलते समय सुरक्षा-

एड़ी पर अत्यधिक दबाव ड़ालने वाली कोई भी गतिविधी करने से पहले अच्छी तरह से वार्मअप कर लें। खेल के दौरान अच्छी किस्म के जूते पहनें।

 
ठीक फुटवियर पहनें-

एड़ी के दर्द से बचने के लिए चलने के दौरान एड़ी पर पर पड़ने वाले दबाव को कम करने वाले जूतें काफी मददगार साबित होते हैं, जैसे-एड़ी के नीचे लगाने वाले पैड। सुनिश्चित करें कि जूते आपके पैरों के अनुकूल हों और उनका तल (sole) आरामदायक हो। अगर किसी विशेष जूते से आपकी एड़ी में दर्द होता है, तो उसे न पहनें।

 
नंगे पांव न रहें-

कठोर जमीन (धरातल) पर चलते समय जूते अवश्य पहनें।

 
अधिक वजन कम करें –

अधिक वजन वाले व्यक्ति द्वारा चलते या भागते समय उनकी एड़ी पर अधिक दबाव पड़ता है। ऐसे में वजन घटाने की कोशिश करें।

 
कब जाएं डॉक्टर के पास?
  • एड़ी में दर्द के साथ-साथ बुखार होने पर।
  • सामान्य रूप से चलने में असमर्थ होने पर।
  • एक सप्ताह के बाद भी लगातार एड़ी दर्द के बने रहने पर।
  • एड़ी के पास सूजन और गंभीर दर्द होने पर।
  • एड़ी में सुन्नता और झनझनाहट के साथ दर्द और बुखार होने पर।
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