Posted 24 May, 2022
लेरिंजाइटिस के कारण, लक्षण और घरेलू उपाय
मौसम में बदलाव के कारण संक्रमण का होना आम बात है। जिसके कारण लोगों को सर्दी, जुकाम और फ्लू (इन्फ़्लूएंज़ा) जैसी बीमारियां आसानी से घेर लेती है। यह अक्सर लेरिंजाइटिस होने का कारण बनते हैं। लेरिंजाइटिस किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। यह एक गला संबंधित रोग है, जो गले में संक्रमण के कारण होता है। इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति को मुंह से आवाज की जगह फुसफुसाहट या हल्की सी चीख जैसी आवाज निकलती है। लेकिन कुछ मामलों में आवाज बहुत कम अर्थात बैठ जाती है। यह रोग कम समय या लंबे समय तक परेशान कर सकता है। जिसे बदलते मौसम का संकेत मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को बोलने, गले में दर्द और निगलने में असुविधा होती है।
क्या है लेरिंजाइटिस
स्वर यंत्र (वॉइस बॉक्स) में होने वाली सूजन को लेरिंजाइटिस कहा जाता है। यह समस्या वॉइस बॉक्स की अधिक इस्तेमाल (ज्यादा बोलना) या संक्रमण के कारण होती है। दरअसल वॉइस बॉक्स को लैरिंक्स भी कहते हैं। लैरिंक्स के अंदर स्वर तंत्रियां होती हैं। जिसके खुलने या बंद होने से उत्पन्न होने वाली कंपन ध्वनि बनाती है। जब इसमें संक्रमण,अधिक बोलने या किसी अन्य कारणवश सूजन आ जाती है। जिसके कारण व्यक्ति के आवाज में परिवर्तन अर्थात सही आवाज नहीं निकल पाती है। कई बार तो आवाज को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा गला पूरी तरह बैठ भी जाती है। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में लेरिंजाइटिस के नाम से जाना जाता है।
लेरिंजाइटिस प्रकार-
बीमारी की अवधि के आधार पर इसे दो भागों में विभाजित किया गया हैं,जो निम्नलिखित हैं:
एक्यूट लेरिंजाइटिस (स्वरयंत्र शोथ) -
लेरिंजाइटिस का यह प्रकार 2-3सप्ताह या इससे कम समय तक रहती है। इसका अधिकतर मामले स्वर तंत्रियों पर दबाव या वायरल इंफेक्शन के कारण होते हैं। आमतौर पर एक्यूट लेरिंजाइटिस की समस्या गंभीर नहीं होती है। इसे कुछ सावधानियां बरतकर या घरेलू उपचार करके ठीक किया जा सकता है।
क्रॉनिक लेरिंजाइटिस (स्वरयंत्र शोथ)-
लेरिंजाइटिस का यह प्रकार 2-3 सप्ताह से भी अधिक रहता है। इसे दीर्घकालिक (क्रॉनिक) स्वरयंत्र शोथ माना जाता है। आमतौर पर इसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण, धूल, धूम्रपान करना या धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के आस-पास रहकर धुएं को अंदर लेना (सेकंड हैंड) और शराब होता है। क्रॉनिक लेरिंजाइटिस गंभीर समस्या का कारण बन सकता है। स्वर तंत्रियों में अधिक समय तक सूजन रहने से गांठ भी बन सकती है।
लेरिंजाइटिस के लक्षण-
युवाओं या वयस्कों में, गला बैठ जाना, आवाज का बंद हो जाना और गले में दर्द लेरिंजाइटिस के प्राथमिक लक्षण माने जाते हैं। इसके अलावा लेरिंजाइटिस के कुछ लक्षण वायरल इंफेक्शन की तरह भी होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- ऊपरी श्वसन तंत्र में संक्रमण का होना।
- गले में खराश या दर्द होना।
- लिंफ नोड्स में सूजन आना।
- सूखी खांसी आना।
- खाने, पीने या निगलने में दर्द होना।
- नाक का बहना।
- बुखार आना।
शिशुओं या बच्चों में लेरिंजाइटिस के लक्षण-
- अजीब आवाज वाली खांसी आना।
- सांस लेने में कठिनाई महसूस करना।
- रात में लक्षणों का बढ़ जाना।
- बुखार होना।
क्या होते हैं लेरिंजाइटिस के कारण?
एक्यूट लेरिंजाइटिस के कारण-
- लगातार बोलने या चिल्लाने से स्वर तंत्रियों में खिंचाव होने पर।
- वायरल संक्रमण होने पर।
- बैक्टीरिया संक्रमण जैसे डिप्थीरिया आदि होने पर।
क्रॉनिक लेरिंजाइटिस के कारण-
- चिल्लाने या आवाज का लगातार उपयोग (गायक) करने पर।
- रासायनिक धुएं या वायु प्रदूषण में सांस लेने से।
- धूम्रपान करने पर।
- शराब का अधिक सेवन करने पर।
- काली खांसी होने पर।
- पुरानी साइनसाइटिस होने पर।
- एसिड रिफ्लक्स (acid reflex) या गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग (GERD) होने पर।
लेरिंजाइटिस होने पर बरतें यह सावधानियां-
- शराब या कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन सीमित मात्रा में करें।
- धूम्रपान से परहेज करें। साथ ही सेकंड हैंड स्मोक से बचें।
- संक्रामक एवं प्रदूषित वातावरण में जाने से बचें।
- आइसक्रीम, दही, बर्फ के पानी का बिल्कुल सेवन न करें।
- तैलीय एवं वसायुक्त भोजन के सेवन से बचें।
- प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें।
- गुनगुने पानी का सेवा करें।
- नमक वाले गर्म पानी से गरारे करें।
- अपने आहार में साबूत अनाज, फल और सब्जियों को शामिल करें।
- ऊपरी स्वसन तंत्र संक्रमण से बचें। इसलिए अपने हाथों को बार-बार धोएं।
- सर्दी-जुकाम एवं अन्य वायरल इंफेक्शन से ग्रसित लोगों से दूरी बनाएं।
लेरिंजाइटिस के घरेलू उपाय-
सेब का सिरका-
सेब का सिरका लेरिंजाइटिस के लिए अच्छी दवाओं में से एक है। क्योंकि इसमें एसिटिक एसिड होता है जिसमें एंटीमाइक्रोबियल होता है, जो बैक्टीरिया और वायरस संक्रमण से लड़ता है। इससे राहत पाने के लिए दो चम्मच एप्पल साइड विनेगर और एक चम्मच शहद को एक कप गुनगुने पानी में मिलाकर पिएं।
प्याज है फायदेमंद-
लेरिंजाइटिस या गले में किसी ही तरह का संक्रमण हेतु प्याज का सिरप का सेवन करना अच्छा होता है। क्योंकि प्याज में एंटीऑक्सीडेंट गुण होता है। जो गले में होने वाली सूजन के लिए एक प्रभावी प्राकृतिक उपाय है। इसके अलावा यह गले में इंफेक्शन से राहत दिलाता है। इसके लिए 2से 3प्याज को काटकर पानी में उबालें। इस मिश्रण को तब तक पकाएं जब तक मिश्रण गाढ़ा न बन जाए। अब इस मिश्रण की कुछ मात्रा को गुने पानी में मिलाएं। उसके बाद उसमें एक चम्मच शहद और नींबू की कुछ बूंदों को मिलाकर सिप करके पिएं। ऐसा करने से लेरिंजाइटिस की समस्या में आराम मिलता है।
अदरक-
अदरक में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है। जो गले की सूजन और संक्रमण को दूर करता है। इसलिए किसी भी रूप में अदरक का उपयोग करना लेरिंजाइटिस हेतु फायदेमंद होता है।
गर्म पानी-
नमकयुक्त गर्म पानी संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करता है। साथ ही स्वर तंत्र एवं गले की सूजन का भी इलाज करता है। इसके लिए नमक वाले गर्म पानी से गरारे करें। इस उपाय को दिन में कई बार करें।
लहसुन-
लहसुन में एंटीसेप्टिक, एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो वायरस एवं बैक्टीरिया को दूर करने में मदद करता है। इसके लिए लहसुन की 2से 3 कलियों को अपने दातों के बीच रखकर इसका रस चूसने से फायदा होता है।
शहद युक्त मिश्रित चाय-
शहद युक्त मिश्रित चाय लेरिंजाइटिस के लिए अच्छे घरेलू उपचारों में से एक है। क्योंकि यह गले की परेशानी को कम करने में मदद करती है। इसलिए गले में सूजन या किसी भी तरह का संक्रमण होने पर शहद युक्त मिश्रित चाय कारगर साबित होती है।
नीलगिरी तेल-
नीलगिरी तेल लेरिंजाइटिस के लिए एक औषधि की तरह काम करती है। दरअसल इसमें मौजूद प्राकृतिक एंटीवायरल, एंटी बैक्टीरियल गुण गले की सूजन को कम करने में बेहद लाभकारी है। इसके लिए नीलगिरी तेल को भाप की तरह इस्तेमाल करना अच्छा माना जाता है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
- सांस लेने में तकलीफ होने पर।
- खासते वक्त बलगम में खून आने पर।
- लगातार बुखार रहने पर।
- गले में अधिक दर्द होने पर।
- निगलने में असुबिधा होने पर।
बच्चों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें:
- सांस लेने में तकलीफ या सांस लेते समय गले से आवाज आने पर।
- सामान्य से अधिक लार निकलने पर।
- खाने-पीने परेशानी होने पर।
- 103 F (39.4 C) से अधिक बुखार होने पर।