क्या है गोवर्धन पूजा का त्योहार
2022-05-24 19:03:20
दिवाली उत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा करने का विधान है। इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन को स्थापित करके विशेष रूप से गोवर्धन और गाय की पूजा की जाती है। इसके लिए पहले श्रद्धालुओं ने गोवर्धन की गोल आकृति निर्मित की थी। इसके बाद गोवर्धन भगवान का सिर व पैर निर्मित कर पूजन कार्य शुरू किया गया। आज आधुनिक युगकार शहरी क्षेत्र में यह प्रथा बेशक कम हो रही है। पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा आज भी कायम है।
क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा?
गोवर्धन पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को इंद्र के क्रोध से बचाया था। और उनके घमंड को दूर करने के लिए उन्होंने इंद्र की जगह पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। क्योंकि श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर गोकुल वासियों को मूसलाधार बारिश से बचाया था।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा-
इस पूजा के संबंध में जो कथा है उसमें पहले लोग बारिश के देवता इंद्र की पूजा करते थे। जिसपर भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों से इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था।
भगवान कृष्ण ने लोगों को बताया कि गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता है। गोवर्धन पर्वत ही बादलों को रोककर वर्षा करवाता है, जिससे कृषि उन्नत होती है। इसलिए उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए न कि इन्द्र देवता की।
इस बात को देवराज इन्द्र ने अपना अपमान समझा और गुस्से में आकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर संपूर्ण गोकुल वासियों की इंद्र के कोप (गुस्से) से रक्षा की थी।
आखिर क्यों होती है इस दिन गोबर की पूजा?
गोवर्धन पूजन के समय अक्सर लोगों के मन में एक जिज्ञासा बनी रहती है, कि इस पूजन में गोबर का प्रयोग क्यों किया जाता हैं अथार्त गोबर से ही क्यों गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है ? जो लोग भारतीय परंपरा को रूढ़िवादी परंपरा मानते हैं, उन्हें पर्वों के पीछे के वैज्ञानिक महत्वों को जानना चाहिए। क्योंकि भारतीय संस्कृति में पूजा-पाठ और त्योहारों के पीछे कई वैज्ञानिक महत्व भी छिपे हुए हैं। दरअसल, वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गोवर्धन का मतलब होता है- “गो संवर्धन” यानी गाय का संवर्धन। इसलिए इस विधि में गोबर की पूजा की जाती है।
गोवर्धन (गोबर) का वैज्ञानिक महत्व-
बारिश के मौसम में या बारिश के बाद कई तरह के कीड़े-मकोड़े और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं। जो विभिन्न तरह की बीमारियों के जन्म देते हैं। ऐसे में गोबर एक जबरदस्त एंटी-बैक्टीरियल तत्व है। जो इन कीड़े-मकोड़ों को मारने का काम करता है। और विभिनिन रोगों के बैक्टीरिया को खत्म करता है। पुराने समय से ही माना जाता है कि घर के आंगन में गोबर की लिपाई-पुताई से कई रोगों का खात्मा हो जाता है। साथ ही इसकी महक को सर दर्द के लिए भी अच्छा बताया जाता है।
गाय के गोबर से बैक्टीरिया मर जाते हैं और गोमूत्र को आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। इनसब कारणों से भी गोवर्धन की पूजा की जाती है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण बनाए जाते हैं। इससे घर के आंगन में शुद्धता आती है और हानिकारक बैक्टीरिया का खात्मा होता है। इसलिए गोवर्धन पूजा गोबर से करने का प्रावधान है।
गाय का गोबर है लक्ष्मी और अमृत तुल्य-
सनातन काल से गाय के गोबर को गौर, गणेश व गोवर्धन के रूप में पूजा जाता है। वेदों व शास्त्रों में भी गाय के गोबर को लक्ष्मी व अमृत तुल्य बताया गया है। कहा जाता है कि गाय में 33 करोड देवी देवताओं का वास होता है। आयुर्वेद में गाय के गोबर से कई प्रकार की औषधियां भी निर्मित की जाती हैं।
गाय के गोबर से नहीं निकल पातीं रेडियम की किरणें-
वैज्ञानिक तौर पर यह भी कहा जाता है, कि जहां पर गाय के गोबर से लिपाई-पुताई होती है। उस जगह से रेडियम की किरणें भी पार नहीं हो पातीं।
पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्रों में ग्वालों को गोवर्धन पूजन के दिन विशेष सम्मान दिया जाता था। क्योंकि भारतीय संस्कृति में गोबर को कभी संजीवनी बूटी से कम नहीं माना गया। इसलिए हम लोगों को पुरातन भारतीय संस्कृति से अभी भी जुड़े रहने की जरूरत है।