स्टोन फ्लॉवर (पत्थर फूल) के स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव
2023-04-03 14:19:33
स्टोन फ्लॉवर को आम भाषा में छड़ीला, दगड़ या पत्थर फूल के नाम से जाना जाता है। यह एक छोटा पौधा है, जो चट्टानों, दीवारों, पेड़ के तने और मिट्टी के बीच उगता है। इस पौधे का बाहरी हिस्सा श्यामल (हरे-काले) और अंदर से सफेद रंग का होता है। इसकी थैलस व्यास में 15 सेमी और आधार से शिथिल रूप से बंधी हुई होती है। यह गोल, भूरा सफेद और ऊपर से चिकना होता है। निचली सतह गहरे भूरे और बालों वाली होती है।
स्टोन फ्लॉवर मूल रूप से लाइकेन (शैवाल और कवक का एक सहजीवी समुदाय) है, जो परमेलियासी परिवार से संबंधित है। इसका वैज्ञानिक नाम परमेलिया पेरलाटा है। आमतौर पर इसका उपयोग भोजन के स्वाद और सुगंध को बढ़ाने के लिए मसाले के रूप में किया जाता है।
पत्थर फूल के अन्य नाम-
पत्थर फूल यानी स्टोन फ्लॉवर को मराठी में "दगड़ फूल", उर्दू में "छड़ीला", संस्कृत में "सिलापुस्पा या सीताशिव", गुजराती में "छडिलो", तमिल में "कल्पसी", तेलुगु में "राठी पुव्वु" और बंगाली में "शैलजा" आदि नामों से पुकारा जाता हैं।
आयुर्वेद में स्टोन फ्लॉवर का महत्व-
आयुर्वेद के अनुसार, स्टोन फ्लॉवर कषाय (कसैला), तिक्त (कड़वा), लघु (पाचन), स्निग्धा (प्रकृति से चिपचिपा), शीत (ठंडा) और कफ-पित्त संतुलन जैसे औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह सभी गुण उपचार में सहायक होते हैं। यह त्वचा रोग, खांसी, दमा और पेशाब में जलन के साथ-साथ कई अन्य चिकित्सीय स्थितियों को ठीक करते हैं।
स्टोन फ्लॉवर के फायदे-
यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) के इलाज में कारगर-
मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) मूत्र प्रणाली के किसी भी हिस्से में संक्रामक रोग है। यह मूत्राशय, गुर्दे या मूत्रमार्ग को प्रभावित करता है। जिसके कारण पेल्विक में गंभीर दर्द, दर्दनाक पेशाब या मूत्र में खून आदि की समस्या उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में स्टोन फ्लॉवर अपने एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुणों के कारण यूटीआई में राहत प्रदान करता है।
अस्थमा में मददगार-
वात-कफ संतुलन गुणों के कारण स्टोन फ्लॉवर अस्थमा के लिए एक अच्छा उपाय माना जाता है।
यूरोलिथियासिस के इलाज में मददगार-
यूरोलिथियासिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें मूत्राशय या मूत्र पथ में पथरी बन जाती है। ऐसे में स्टोन फ्लॉवर का सेवन कारगर होती है। दरअसल इसमें एंटी लिथियाटिक गुण मौजूद है, जो किडनी स्टोन को छोटे-छोटे कणों में तोड़ने का काम करता है। यह मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
मधुमेह में लाभकारी-
स्टोन फ्लॉवर मधुमेह के उपचार में उपयोगी है। क्योंकि इसमें फ्लेवोनोइड्स, फिनोल जैसे घटक पाए जाते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। यह कारण रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है।
त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभप्रद-
स्टोन फ्लॉवर त्वचा की जलन और चकत्ते से लड़ने में उपयोगी है। यह प्रकृति से सूजन-रोधी होता है। इसके अलावा स्टोन फ्लॉवर अपने जीवाणुरोधी गुणों के कारण त्वचा के संक्रमण से भी लड़ता है।
कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित करने में सहायक-
स्टोन फ्लॉवर में उच्च फेनोलिक यौगिक की उपस्थिति होती है। यह एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेंट होता है। यह गुण कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल या खराब कोलेस्ट्रॉल) को कम करने और उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल या अच्छे कोलेस्ट्रॉल) के स्तर को बढ़ाने के लिए उपयोगी है।
स्टोन फ्लॉवर का उपयोग-
- स्टोन फ्लॉवर से बने लेप को माथे पर लगाने से सिरदर्द की समस्या दूर होती है।
- इसके लेप को त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधी विकार जैसे पानी के स्राव के साथ खुजली, त्वचा की रंजकता आदि से राहत मिलती है।
- पत्थर फूल को पीसकर घाव पर लगाने से घाव शीघ्र भर जाते हैं।
- दस्त, प्यास और एनोरेक्सिया के इलाज के लिए स्टोन फ्लॉवर का ठंडा जलसेक 40-50 मिलीलीटर की मात्रा में दिया जाता है।
- स्टोन फ्लॉवर का सूखा चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करने से खांसी और दमा का इलाज होता है।
- इसके काढ़े 50-60 मिलीलीटर की मात्रा में जीरा पाउडर और मिश्री मिलाकर देने से गुर्दे की पथरी और जलन का इलाज होता है।
- बुखार के इलाज और हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए इस जड़ी बूटी का ठंडा जलसेक 40-50 मिलीलीटर की खुराक में दिया जाता है।
स्टोन फ्लॉवर के नुकसान-
- स्टोन फ्लॉवर का मसाला शरीर के चयापचय पर तत्काल प्रभाव डालता है। यह शरीर के तापमान में वृद्धि का कारण बन सकता है।
- कमजोर आंत और संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को इसका उपयोग से बचना चाहिए।
- अति संवेदनशील लोगों को इसके अधिक सेवन एलर्जी का कारण बन सकती है।
- गर्भवती या स्तनपान कराने वाली माताओं को स्टोन फ्लॉवर का किसी भी रूप में सेवन करने से पहले चिकित्सक से परामर्श जरुर लेना चाहिए।
कहां पाया जाता है स्टोन फ्लॉवर?
सामान्यतः स्टोन फ्लॉवर समशीतोष्ण उत्तरी और दक्षिणी हिमालय में मृत लकड़ी या चट्टानों पर पाया जाता है।