जीवक के महत्व, फायदे और नुकसान
2022-11-25 00:00:00
जीवक को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मलैक्सिस एक्यूमिनाटा (Malaxis acuminata) के रूप में जाना जाता है। यह एक औषधीय पौधा है, जो मध्यम आकार का लगभग 4-12 इंच लंबा होता है। आमतौर पर इसके तने छोटे होते हैं। साथ ही यह गर्म जलवायु में तेजी से बढ़ते हैं। इसके पौधों पर गर्मियों के महीनों में पीले, हरे या बैंगनी रंग के फूल लगते हैं। इसकी कलियों को विशेष रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधि के तौर पर उपयोग किया जाता है। जीवक च्यवनप्राश बनाने के प्रमुख अवयवों में से एक होता है। इसके अलावा जीवक अष्टवर्ग चूर्ण, च्यवनप्राश रसायन, घृत, तैला, गुटिका, अगड़ा और अन्य कई तरह के आयुर्वेदिक औषधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी माना जाता है।
जीवक को भारत के विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिंदी में, इसे "जीवक" मलयालम और तमिल में "जीवाकम" और तेलुगु में "जीवाकामु" के नाम से पुकारा जाता है।
आयुर्वेद में जीवक का महत्व-
आयुर्वेदिक चिकित्सा में जीवक को वात और पित्त संतुलनकर्ता के रूप में जानते हैं। यह स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है। इसमें शीतल और कायाकल्प जैसे गुण मौजूद हैं,जो समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए फायदेमंद होते हैं।
जीवक में एल्कलॉइड, ग्लाइकोसाइड, फ्लेवोनोइड्स और बीटा-सिटोस्टेरॉल होता है। साथ ही इसमें पिपेरिटोन, ओ-मिथाइल बटाटासिन, 1,8-सिनेओल, सिट्रोनेलल, यूजेनॉल, ग्लूकोज, रमनोज, कॉलिन, लिमोनेन, पी-साइमीन और सेटिल अल्कोहल भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जीवक की कलियां एंटीऑक्सीडेंट, एंटी प्यूरेटिक, एंटी इंफ्लेमेंटरी, एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती हैं, जो कई बीमारियों को ठीक करने में मदद करती हैं।
जीवक के फायदे-
दस्त के लिए-
आयुर्वेद के अनुसार, अतिसार (दस्त) भोजन या पानी में अशुद्धियों या विषाक्त पदार्थों के कारण होता है। यह वात दोष के असंतुलन के कारण भी होता है जिससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है। इसका परिणाम खराब चयापचय होता है, जो दस्त का कारण बनता है। दरअसल जीवक को पित्त संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है, जो पाचन अग्नि को बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा जीवक में मौजूद वात संतुलन गुण पाचन तंत्र को मजबूत करता है। साथ ही यह दस्त को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
ब्रोंकाइटिस की समस्या के लिए-
ब्रोंकाइटिस ब्रोन्कियल ट्यूब में सूजन है, जो बलगम, खांसी, श्वास संबंधी समस्या और सीने में परेशानी का कारण बनता है। आयुर्वेद के अनुसार, ब्रोंकाइटिस असंतुलित वात और कफ दोष के कारण होता है। चूंकि जीवक में एंटी बैक्टीरियल, एंटी इंफ्लेमेंटरी और अन्य कई रसायन गुण पाए जाते हैं, जो ब्रोंकाइटिस को प्रबंधित करने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त जीवक के कफ और वात संतुलन गुण बलगम को निकालने का काम करते हैं। इस प्रकार यह ब्रोंकाइटिस को प्रबंधित करने में सहायक है।
यौन कमजोरी के लिए-
आयुर्वेद के अनुसार यौन समस्याएं वात दोष के असंतुलन के कारण होती हैं, जो मूल रूप से शरीर की ऊर्जा में असंतुलन है। जीवक को शक्तिशाली वात संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है। यह एक कामोत्तेजक के रूप में कार्य करता है। इसलिए यह यौन दुर्बलताओं में सहायक है।
कीट के काटने के लिए-
जीवक अपने शीतल गुणों के कारण शरीर में शीतलता प्रदान करता है। जीवक के शीतल और वात संतुलन गुण कीड़े के काटने से होने वाली जलन और दर्द से छुटकारा दिलाता हैं। यह कीड़े के काटने के जहरीले प्रभाव को भी कम करता है।
जोड़ों के दर्द के लिए-
जोड़ों का दर्द मुख्य रूप से वात दोष के असंतुलन के कारण होता है। जीवक को वात संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है। इसलिए यह जोड़ों के दर्द में कारगर साबित होता है।
जीवक का उपयोग-
- जीवक से बने चूर्ण को शहद या मिश्री के साथ सेवन हृदय रोगों में फायदेमंद होता है।
- जीवक के कलियों से बनाए गए जीवनिया घृत का उपयोग गाउट और असंतुलित वात से जुड़े अन्य रोगों के लिए किया जाता है।
- जीवक और अन्य जड़ी बूटियों को मिलाकर बनाए गए तेल का उपयोग गठिया और बुखार के इलाज के लिए किया जाता है।
- जीवक और अन्य औषधीय जड़ी बूटियों के साथ संसाधित अस्थाना वस्ती एनीमिया और मलेरिया के उपचार में उपयोगी है।
- देवदार, काकोली और जीवक का इस्तेमाल करके बनाया गया घृत बच्चों की शारीरिक कमजोरी को ठीक करने में उपयोगी है।
- पंचवल्कल, जीवक और हिवाना अगड़ा का लेप बनाकर शहद के साथ मिलाकर बाहरी उपयोग के लिए किया जाता है। इसे सांप द्वारा कांटे जाने वाले हिस्से पर लगाने से जहर कम होता है।
यह कहां पाया जाता है?
यह कंबोडिया, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में मूल रूप से पाया जाता है। भारत में, यह मुख्य रूप से समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय हिमालय के इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश तक 1200-2100 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।