पित्तपापड़ा का आयुर्वेदिक महत्व और फायदे
2023-01-27 11:38:13
पित्तपापड़ा का वानस्पतिक नाम फुमरिया इंडिका होता है। आमतौर पर यह पूरे भारत के मैदानी इलाकों में पाया जाने वाला एक सामान्य खरपतवार है। लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा में यह एक स्वतः उगने वाली वार्षिक जड़ी बूटी है जो प्रायः सर्दियों के मौसम में चने एवं गेहूं के खेतों में आसानी से देखा जाता है। इसका उपयोग प्राचीन और पारंपरिक चिकित्सा में औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। पित्तपापड़ा को संस्कृत में पर्पट, कवच और पांशु और अंग्रेजी में फ्यूमिटरी के नाम से जाना जाता है। इस पौधे की बनावट गाजर के पौधे की तरह होती है। इसलिए कई स्थानों पर इसे गजरा घास या गाजर घास के नाम से जानते हैं। इसके अलावा पित्तपापड़ा को विभिन्न जगहों पर अलग-अलग नामों जैसे शाहतरा, धमगजरा, पित्तपापारा, वरटिका, सुषमा पात्र, शाहताराज, वंशुलफा, परपतु आदि से पुकारा जाता है।
आयुर्वेद में पित्तपापड़ा का महत्व-
पित्तपापड़ा खुजली, दर्द या सूजन के कारण होने वाली परेशानी का इलाज करने में मदद करता है। क्योंकि इसमें पित्त संतुलन, ग्राही और शीत (ठंडा) गुण होते हैं। यह कीड़े के काटने के लक्षणों को कम करने में मदद करता है और प्रभावित क्षेत्र पर शीतलन प्रभाव भी प्रदान करता है।पित्तपापड़ा में रिप्रोडक्टिव, एंटीपैरासिटिक, एंटीकोलिनेस्टरेज़, रेचक, शामक, डर्मेटोलॉजिकल , एनाल्जेसिक, हिपेटोप्रोटेक्टीवे , गैस्ट्रिक, एंटी पाइरेटिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण हैं। यह सभी गुण पीलिया, कुष्ठ, दस्त, बुखार, उपदंश और त्वचा संक्रमण के इलाज में फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा पित्तपापड़ा यकृत संबंधी समस्याओं के उपचार में उपयोगी है।
पित्तपापड़ा के फायदे-
बुखार के इलाज के लिए-
पित्तपापड़ा में एंटी पाइरेटिक और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं। जो बुखार कम में मदद करते हैं। इसके लिए पित्तपापड़ा के पंचांग का काढ़ा बनाकर 20-40 मि.ली. मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है। इसलिए हल्के और पीलिया जैसे बुखार में पित्तपापड़ा का प्रयोग किया जा सकता है।
अस्थमा को ठीक करने में लाभदायक-
पित्तपापड़ा अपने कफ संतुलन गुणों के कारण अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह ब्रोन्कियल ट्यूब (श्वसन नलियों) में मौजूद कैटरल (श्लेष्म) पदार्थ और कफ को हटाने में सहायक होता है। जिससे अस्थमा की समस्या कुछ हद तक ठीक हो जाती है। परिणामस्वरूप सांस लेने में आसानी होती है।
दस्त में कारगर-
दस्त, अनुचित आहार, तनाव और दूषित पानी के सेवन से होता है जो पाचन अग्नि को प्रभावित करता है। यह वात को असंतुलित करता है। पित्तपापड़ा में ग्रही (शोषक) गुण होते हैं जो उत्पादित द्रव को अवशोषित करने में मदद करते हैं। पित्तपापड़ा मल त्याग की आवृत्ति को कम करता है और अतिरिक्त पानी की कमी को अवशोषित करता है।
अपच के इलाज में सहायक-
पित्तपापड़ा में स्टैमिक प्रभाव होता है, जो भूख को बढ़ावा देकर पाचन में सुधार करता है। यह पाचन अग्नि को बढ़ाता है। जिससे अपच (अग्निमांड्य) गैस आदि के उपचार में मदद मिलती है।
उल्टी को रोकने में लाभप्रद-
पित्त और कफ के संतुलन गुणों के कारण पित्तपापड़ा उल्टी के लिए उपयोगी है। क्योंकि यह पाचन शक्ति को बढ़ाकर भोजन को पचने में मदद करता है और ब्लोटिंग जैसी समस्या को दूर करता है। इसके अतिरिक्त पित्तपापड़ा विषाक्त पदार्थों (अमा) के बैकफ्लो की आवृत्ति को कम करता है। जिससे उल्टी को नियंत्रित किया जाता है।
कीट के काटने में उपयोगी-
पित्तपापड़ा में शीत (ठंडा) गुण मौजूद होते हैं। इसलिए यह कीड़े के काटने वाले जगह को शांत करने का काम करता है। इसके अलावा पित्तपापड़ा में मौजूद एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण सूजन, दर्द और खुजली को कम करने में सहायक होता है।
कब्ज में असरदार-
पित्तपापड़ा अपने रेचक गुणों के कारण कब्ज को दूर करने में असरदायक होता है। यह पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है और मल त्याग में सुधार करता है। इस प्रकार यह कब्ज जैसी समस्याओं में लाभकारी होता है।
भूख बढ़ाने में कारगर-
पित्त-कफ के संतुलन गुणों के कारण पित्तपापड़ा भूख की कमी का इलाज करने में मदद करता है। यह विषाक्त पदार्थों (अमा) के गठन को रोकने में मदद करता है और भूख को और बढ़ाता है।
पित्तपापड़ा के नुकसान-
- पित्तपापड़ा का अधिक मात्रा में लंबे समय तक सेवन करने से लीवर के ऊतकों को कुछ नुकसान हो सकता है। इसलिए यकृत की बीमारी के रोगियों को इसका उपयोग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लेनी चाहिए।
- रोगियों को पित्तपाड़ा का सेवन डॉक्टर के परामर्शानुसार ही करें।
- रोग से पीड़ित व्यक्ति इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
- गर्भावस्था या स्तनपान करा रही माताओं को पित्तपापड़ा का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
यह कहां पाया जाता है?
पित्तपापड़ा एक छोटा, शाखाओं वाला पौधा है जो मैदानों और पहाड़ियों के निचले क्षेत्रों पाया जाता है। इसके अलावा पित्तपापड़ा समुंद्रतल से 2400 मीटर की ऊंचाई तक देखने को मिलता है।