पीपल के आयुर्वेद में महत्व और फायदे
2022-05-24 12:00:12
अक्सर सड़क किनारे,बाग-बगीचों,मंदिरों में हम कई ऐसे पेड़ देखते हैं। जो हमें छांव और ऑक्सीजन देते हैं। इन्हीं में से एक पेड़ है पीपल का पेड़। जिसे भारत में पूज्यनीय माना जाता है। साथ ही यह अपने विशाल आकार और घनी छाया के लिए भी जाना जाता है। सामान्य-सा दिखने वाले इस पेड़ के कई स्वास्थ्य लाभ हैं। इसलिए अपने औषधीय गुणों के कारण यह कई तरह के शारीरिक परेशानियों को दूर करने में भी सहायक साबित होता है। अतः इसका उपयोग सालों से आयुर्वेद में दवा के रूप में किया जाता रहा है।
पीपल के पेड़ का वैज्ञानिक नाम फिकस रेलिगिओसा (Ficus Religiosa) है। आमतौर पर पीपल का इस्तेमाल अस्थमा, बुखार, पेट के दर्द, दस्त, घावों को भरने एवं त्वचा संबंधी रोगों के इलाज के लिए होता है। यह सेक्सुअल स्टेमिना को बढ़ाने और गर्भधारण करने में प्रभावी रूप से मदद करता है। इसके अलावा दांतों और मसूड़ों के उपचार के लिए भी पीपल एक अच्छा विकल्प है।
क्या है पीपल?
पीपल का पेड़ सदाबहार वृक्षों (Evergreen tree) की श्रेणी में आता है। इस पेड़ की ऊंचाई लगभग 10-20 मीटर और अनेक शाखाओं वाला विशाल होता है। पीपल का पेड़ सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने की विशेषता रखता है। पुराने वृक्ष की छाल फटी हुई सफेद-श्यामले रंग की होती है। इसके नए पत्ते कोमल, चिकने और हल्के लाल रंग के होते हैं। इसके फल छोटे-छोटे गोलाकार और चिकने होते हैं। यह कच्ची अवस्था में हरे और पकने पर बैंगनी रंग के होते हैं। आयुर्वेदिक लाभ प्राप्त करने के रूप में इसकीजड़, तना, छाल, पत्तियां और फलों का प्रयोग किया जाता है।
पीपल पेड़ के पोषक तत्व-
पीपल के पेड़ में तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें मॉइस्चर कंटेंट, फाइवर, फैट, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की अच्छी मात्रापाई जाती हैं। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, आयरन,कॉपर और मैग्नीशियम भी पाए जाते हैं।
पीपल के फायदे-
अस्थमा के लिए-
अस्थमा एवं श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए पीपल प्रभावी औषधि माना जाता है। इसलिए इसका नियमित इस्तेमाल से ब्रोन्कियल ट्यूब (श्वसन नलियों) में मौजूद कैटरल (श्लेष्म या म्यूकस) पदार्थ और कफ को हटाने में सहायक होती है। जिससे खांसी, अस्थमा, गले में घरघराहट, सांस लेने में परेशानी और सीने में जकड़न जैसी समस्या कुछ हद तक ठीक हो जाती है। इसके लिए पीपल की छाल और पके फल को पीसकर समान मात्रा में मिला लें। अब इसकी आधा चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करें। ऐसा करने से फेफड़ों से बलगम साफ होती है और अस्थमा एवं श्वसन संबंधी समस्या दूर होती है।
पेट दर्द में कारगर-
पेट दर्द की समस्या में पीपल का सेवन कारगर उपाय है। इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेंटरी और एंटी एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण पेट दर्द को दूर करने में सहायता करता है। इसके लिए पीपल के पत्तों को पीसकर गुड़ में मिलाकर टिकिया बनाकर सेवन करें। ऐसा करने से पेट दर्द एवं पेट संबंधी कई समस्याओं में आराम मिलता हैं। इसके अलावा पीपल का क्वाथ (काढ़े) का सेवन भी लाभप्रद होता है।
डायरिया में लाभप्रद-
पीपल की छाल में एंटी बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो डायरिया, दस्त जैसी परेशानियों को ठीक करने का काम करते हैं। इसलिए पीपल पेड़ की छाल से निकलने वाले अर्क का सेवन डायरिया के लिए अच्छा माना जाता है।
दांत और मसूड़ों के लिए-
पीपल में एंटीऑक्सीडेंट (सूजन कम करने वाला) और एंटी-माइक्रोबियल (बैक्टीरिया को नष्ट करने वाला) प्रभाव मौजूद होते हैं। जो दांतों की सड़न और मसूड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। पीपल की नरम टहनियों से दातून करने या पीपल की नरम पत्तियों को चबाना दांत और मसूड़ों के लिए अच्छा होता है। ऐसा करने से दांतों से संबंधित कई दिक्कतों को दूर किया जा सकता है। इसके अलावा पीपल के पत्तों से बने तेल में फ्लेवोनोइड्स, एल्कलॉइड्स और स्टेरॉयड जैसे बायोएक्टिव यौगिक पाए जाते हैं। जो दातों और मौखिक स्वास्थ्य के लिए कारगर साबित होते हैं।
ह्रदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद-
पीपल का प्रयोग हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए सालों से किया जाता रहा है। एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, यदि पीपल की कुछ पत्तियों को रात में पानी में भिगोकर रखा जाए। अगले दिन इस अर्क का सेवन दिन में तीन बार करें। ऐसा करने से हृदय संबंधी बिमारियों से बचा जा सकता है। इसके अलावा पीपल ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और सूजन को भी कम करता है। साथ ही इसका कार्डियोप्रोटेक्टिव गुण हृदय रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है।
डायबिटीज के लिए-
पीपल पेड़ की पत्तियों में हाइपोग्लाइसेमिक (ब्लड शुगर को कम करने वाला) गुण मौजूद होता है। जो मधुमेह की समस्या को दूर करने में मदद करता है। इसके लिए पीपल पेड़ की पत्तियों का अर्क पीने की सलाह दी जाती है।
बांझपन के लिए-
पीपल के पेड़ का लाभ महिलाओं में होने वाली बांझपन और कई अन्य यौन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसके लिए पीरियड खत्म होने के बाद 1-2 ग्राम पीपल के सूखे फल के चूर्ण को कच्चे दूध के साथ पिएं। ऐसा कुछ दिनों तक करने से महिला गर्भधारण होती है। इसलिए पीपल पेड़ के चूर्ण को बांझपन का अच्छा विकल्प माना जाता है।
रक्त को शुद्ध करने में सहायक-
आयुर्वेद में पीपल की पत्तियों का इस्तेमाल रक्त के शुद्धिकरण के लिए किया जाता है। यह रक्त की अशुद्धता को दूर करके, त्वचा रोग को ठीक करने में मदद करता है। दरअसल इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा इस पर किए गए शोध के अनुसार पीपल के क्वाथ या इसकी पत्तियों के अर्क को पीने से रक्त शुद्ध होता है।
घाव भरने में सहायक-
घाव भरने के लिए भी पीपल के पत्ते एक औषधि की तरह काम करते हैं। इस पर किया गया वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि पीपल के पत्ते में मौजूद टैनिन पोस्सेस (एक विशेष गुण) कोलेजन की मात्रा को बढ़ाता है। जो घाव भरने के लिए बहुत जरूरी होते हैं।
त्वचा के लिए-
पीपल पेड़ के विभिन्न भागों में एंटी-माइक्रोबियल और एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव होते हैं। जो त्वचा संबधी कई विकारों को दूर करने में मददगार साबित होते हैं। इसके अलावा पीपल के पत्ते में प्रोटीन भी पाया जाता है। जो त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
पीपल के उपयोग-
- पीपल के विभिन्न भागों से बने चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
- पीपल की पत्तियों को नीम की तरह कच्चा चबाया जाता है।
- पीपल की छाल, जड़ और पत्तियों के अर्क को निकालकर पिया जा सकता है।
- पीपल के पत्ते से बने क्वाथ (काढ़े) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- पीपल पेड़ की जड़, छाल और पत्तियों से बने लेप को त्वचा पर इस्तेमाल किया जाता है।
पीपल के नुकसान-
- इसका स्वाद कड़वा होता है। इसलिए इसके अधिक सेवन से उल्टी या मतली हो सकती है।
- इसका अधिक सेवन प्रोस्टेट कैंसर और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है।
- इसमें फाइबर की अधिक मात्रा पाई जाती है। इसलिए इसका अधिक सेवन गैस, पेट दर्द एवं मरोड़ की समस्या उत्पन्न कर सकता है।