आयुर्वेद में हिमसरा के महत्व, फायदे और दुष्प्रभाव
2022-05-24 12:40:26
हिमसरा जिसे अंग्रेजी में केपर बुश के नाम से जाना जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है। जो मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय देशों एवं आर्द्र जलवायु में पाया जाता है। हिमसरा एक प्रकार की जड़ी-बूटी है। जो गठिया के इलाज के लिए उपयोग की जाती है। क्योंकि इसमें वात संतुलन गुण मौजूद होते हैं। हिमसरा की कलियों में तीखा और एक अनूठा स्वाद होता है। जिसकी वजह से हिमसरा का उपयोग मसाले के रूप में भोजन बनाने में किया जाता है। इसके अलावा हिमसरा में कई ऐसे गुण भी मौजूद होते हैं। जिसके कारण यह सेहतमंद और कई रोगों के इलाज के लिए जाना जाता है। इसलिए इसे आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण पारंपरिक औषधि माना गया है। आइए इस लेख के माध्यम से इस जड़ी-बूटी के औषधीय गुणों के बारे में जानते हैं:
आयुर्वेद में हिमसरा का महत्व-
हिमसरा एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसकी जड़ से लेकर पत्तियां, कलियां और फूल सहित सभी भाग उपयोगी होते हैं। इसमें कई तरह के पौष्टिक पदार्थ पाए जाते हैं। जो त्रिदोष (कफ, पित्त, वात) को शांत रखने में मदद करते हैं। साथ ही यह शरीर को रोगमुक्त भी करते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक में हिमसरा कई तरह की बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। इसमें शरीर से ख़राब कोलेस्ट्रॉल निकालने के भी गुण होते है। यह डायबिटीज को भी नियंत्रित रखती है। इसमें कुछ एंटीऑक्सीडेंट भी होते है। जो कैंसर जैसी बीमारियों से शरीर को बचाते हैं। इसके सेवन से पेट के कीड़े, लिवर की समस्या, त्वचा संबंधित समस्या आदि कम होती है। अपने कड़वे एवं तीखे स्वाद के कारण ही इसे बेहतर उपाए के लिए जाना जाता है। इसलिए इसे आयुर्वेद में उत्तम दर्जें की औषधि माना गया है।
हिमसरा के पौष्टिक तत्व-
हिमसरा फ्लेवोनोइड्स, ग्लाइकोसाइड्स से समृद्ध है। इसमें शुगर कम करने वाले गुण, सैपोनिन, स्टार्च और टेरपेनोइड्स मौजूद होते हैं। इसमें अल्कलॉइड स्टैक्रिड्रिन, 3-हाइड्रॉक्सी स्टैक्रिड्रिन, ग्लूकोब्रैसिसिन, नियोग्लुकोब्रैसिसिन, 4-मेथॉक्सीग्लुकोब्रैसिसिन, ग्लूकोसाइनोलेट्स, ग्लूकोइबेरिन, ग्लूकोराफेनिन, सिनिग्रीन, ग्लूकोक्लोमिन और ग्लूकोकैपैंगटिन जैसे महत्वपूर्ण तत्व भी शामिल हैं। इसके अलावा हिमसरा में एंटीऑक्सिडेंट, एंटीवायरल, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी पाए जाते हैं।
हिमसरा के फायदे-
हिमसरा विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए उपयोगी है। जो इस प्रकार हैं:
गठिया के लिए-
हिमसरा की जड़ में विभिन्न घटक विद्यमान हैं। जिनमें मुख्य रूप से एंटी इंफ्लेमेंटरी और एंटीऑक्सिडेंट गुण पाए जाते हैं। जो पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड गठिया के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
मधुमेह के लिए-
ऐसा माना जाता है कि शुगर मधुमेह वात-कफ दोष के असंतुलन और अनुचित पाचन के कारण होता है। जो शरीर में अग्न्याशय की कोशिकाओं में विषाक्त पदार्थों के संचय और इंसुलिन के कार्य को बाधित करता है। चूंकि हिमसरा प्रकृति से कड़वी और वात-कफ को संतुलित करने वाली जड़ी-बूटी है। इसलिए यह मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसके अलावा हिमसरा पाचन में सुधार, इंसुलिन के सामान्य कार्य को बनाए रखने और मधुमेह के लक्षणों को दूर करने में भी मदद करती है।
फंगल इन्फेक्शन के लिए-
हिमसरा जड़ के अर्क में फ्लेवोनोइड्स होते हैं। जिसमें एंटिफंगल गुण पाए जाते हैं। जो कवक के विकास और प्रसार को रोकते हैं। यह फंगल संक्रमण को खत्म करने का काम करते हैं।
अल्जाइमर रोग के लिए-
हिमसरा अल्जाइमर रोग के लिए लाभकारी होता हैं। दरअसल, इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण मौजूद होते हैं। जिसकी वजह से यह तंत्रिका कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण मस्तिष्क में सुधार कर, याददाश्त को भी बढ़ाते हैं।
त्वचा के लिए-
हिमसरा समय से पहले आने वाले बुढ़ापा और झुर्रियों को रोकने में मदद करता है। इसके लिए हिमसरा की जड़ों का लेप को त्वचा पर लगाएं। इनमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-एजिंग गुण होते हैं। जो त्वचा की जलन और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
आंतों के कीड़े के लिए-
आंतों के कीड़ों के प्रबंधन में हिमसरा के पत्ते और फूल की कलियां उपयोगी होती हैं। इनमें फ्लेवोनोइड्स पाए जाते हैं। जिनमें कृमिनाशक गुण मौजूद हैं। जो शरीर से परजीवी (हेल्मिन्थ) और अन्य आंतरिक परजीवियों से छुटकारा दिलाने में सहायक होते हैं।
अस्थमा के लिए-
हिमसरा फल में फ्लेवोनोइड्स और पॉलीफेनोल्स पाए जाते हैं। यह एक तरह का ब्रोन्को रिलैक्सेंट गुण प्रदर्शित करते हैं जो अस्थमा को रोकने में मदद करते हैं। यह श्वसन मार्ग की मांसपेशियों को आराम दिलाने और सांस लेने में सुविधा प्रदान करते हैं।
वजन घटाने के लिए-
हिमसरा अपने मोटापा-रोधी गुणों के कारण कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को धीमा करने और चयापचय में सुधार करने का काम करते हैं। इसके अलावा हिमसरा में उष्ण (गर्म) और दीपन (भूख बढ़ाने वाले) गुण पाए जाते हैं। जो उचित पाचन को बनाए रखकर वजन को प्रबंधित करने में मदद करते हैं। हिमसरा पाचन अग्नि को बढ़ाता है और शरीर में विषाक्त पदार्थों के संचय को रोकता है।
ब्लड प्रेशर के लिए-
हिमसरा अपने मूत्रवर्धक गुणों के मौजूदगी के कारण रक्तचाप को कम करने में सहायक हो सकता है। यह शरीर में मूत्र उत्पादन को बढ़ाता है और शरीर से अतिरिक्त सोडियम को खत्म करने में मदद करता है। यह शरीर में अतिरिक्त तरल पदार्थ के निर्माण को रोकता है और रक्त वाहिकाओं में दबाव को कम करता है। जिससे रक्तचाप स्थिर रहता है।
घाव भरने के लिए-
जले हुए घाव पर हिमसरा के पत्तों का अर्क लगाने से आराम मिलता है। क्योंकि इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण घाव के संकुचन को बढ़ावा देते हैं और कोलेजन उत्पादन को बढ़ाते हैं। यह सूजन को भी कम करते है और हीलिंग बर्न प्रक्रिया को तेज करते हैं।
हिमसरा के सावधानियां और दुष्प्रभाव-
- हिमसरा उन लोगों के लिए एलर्जी का कारण हो सकता है। जो लोग सरसों के तेल या उसके परिवार के अन्य खाद्य पदार्थों के प्रति संवेदनशील हैं। ऐसे लोगों को हमेशा हिमसरा का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह ज़रूर लेनी चाहिए।
- इसका अधिक इस्तेमाल करने से त्वचा पर लाल चकत्ते, जलन या कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस हो सकता है।
- गर्भावस्था और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को हिमसरा के सेवन से बचना चाहिए।
- हिमसरा रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। इसलिए निम्न रक्चाप वाले लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए।
- हिमसरा रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है। इसलिए लो ब्लड शुगर वाले मरीजों को इसके सेवन नहीं करना चाहिए।
यह कहां पाया जाता है?
हिमसरा मूल रूप से अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया, यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। भारत में यह पंजाब और राजस्थान के क्षेत्रों से लेकर दक्कन प्रायद्वीप तक फैला हुआ है। इसके अलावा यह मैदानी इलाकों, निचले हिमालय और पश्चिमी घाटों में भी वितरित है।