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रीठा के औषधीय लाभ, उपयोग और नुकसान

Posted 24 May, 2022

रीठा के औषधीय लाभ, उपयोग और नुकसान

रीठा आयुर्वेद की सबसे लोकप्रिय जड़ी-बूटियों में से एक है। यह प्राकृतिक और पुन: उपयोग किया जा सकने योग्य उत्पाद है। अधिकांशतः महिलाएं रीठा का इस्तेमाल करती हैं। यह बालों को झड़ने से रोकने और बालों को बढ़ाने आदि में फायदेमंद होता है। बालों को धोने के लिए भी रीठा के फलों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा रीठा के फलों को पानी में भिगोकर प्राप्त झाग को शरीर में लगाने से शरीर की जलन ठीक होती है। रीठा में प्राकृतिक कंडीशनिंग के गुण होते हैं। जो त्वचा को मॉइस्चराइज करने में मदद करते हैं। रीठा त्वचा के सूखेपन को रोकने में मदद करता है। संवेदनशील त्वचा वाले लोग भी रीठा से बने उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं। रीठा एक बहुत ही अच्छे क्लीन्ज़र के रूप में काम करता है। यह त्वचा को शांत और साफ करता है। होममेड फेसवाश के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। चेहरे पर रीठा लगाने से स्किन टोन और हल्की हो जाती है। इसे कई तरह के उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे कपड़े धोने से लेकर गहने चमकाने के लिए। इसके फायदे सिर्फ बालों तक सीमित नहीं हैं। यह हमारे स्वास्थ्य और त्वचा के लिए भी बहुत लाभकारी होता है।

 
रीठा के प्रकार

रीठा की मुख्यतः दो प्रजाति पाई जाती है-

सैपिनडस मूकोरोस्सी (Sapindus mukorossi)-

यह वृक्ष लगभग 15 मीटर ऊंचा होता है। इसके फूल सफेद और बैंगनी रंग के होते हैं। इसके फल गुदेदार, झुर्रीदार व चमकीले होते हैं। जो सूखने पर श्यामले रंग के हो जाते हैं। इस फल के बीज गोलाकार, शयामले रंग के होते हैं। इसके एक फल में तीन बीज होते हैं।

 
सैपिनडस त्रिफोलिटस (Sapindus trifoliatus)-

इस रीठा (soapnut) के फलों की आकृति वृक्काकार होती है। इसे अलग करने पर जुड़े हुए स्थान पर हृदयाकार चिह्न पाया जाता है। यह पकने पर थोड़ा लाल और भूरे रंग का हो जाता है। इसके फल एक साथ जुड़े होते हैं। इसके वृक्ष विशेषतः दक्षिण भारत में मिलते हैं।

 
रीठा के फायदे:
बालों के लिए रीठा के लाभ-
  • रीठा बालों की खूबसूरती बढ़ाता है और उन्हें स्वस्थ बनाता है। इसके लिए कपूर कचरी, नागरमोथा, आंवला और शिकाकाई के साथ मिलाकर, इसे बालों में लगाकर कुछ देर तक रखें और फिर बालों को धो लें। इससे बाल घने और लंबे हो जाते हैं।
  • रीठा से रूसी की परेशानी भी खत्म होती है। यानी डैंड्रफ आसानी से चला जाता है।
  • जूं की समस्या को खत्म करने के लिए रीठा को शिकाकाई और आंवले के साथ मिलाकर लगाएं।
  • अगर आपको स्कैल्प में जलन हो रही है। तो इसके लिए रीठा लाभकारी साबित होता है। इसके अलावा यह स्कैल्प पर जमी पपड़ी को भी दूर करता है।
  • बालों में रीठा शैम्पू के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए पहले रीठा को पानी में भिगोएं और बाद में इसका पेस्ट बना लें। फिर उस पेस्ट को बालों में लगाकर बाल धोने से फायदा होता है।
  • रीठा के उपयोग से बालों का झड़ना और बालों का उलझना कम होता है।
  • रीठा बालों को ठंडक पहुंचाने का काम करता है।
  • बालों में खुजली की परेशानी दूर करने में रीठा लाभकारी होता है|
रीठा के अन्य औषधीय लाभ-
  • अगर किसी को माइग्रेन या अधकपारी जैसी परेशानी है। तो उसे रीठा का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए रीठा के पानी में एक-दो काली मिर्च मिलाकर नाक में इसकी चार से पांच बूंदें डालें। इससे माइग्रेन में आराम मिलता है।
  • रीठा दांतों के इलाज के लिए अच्छा होता है। इसके लिए रीठा के बीजों को तवे पर जलाकर पीस लें। फिर इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई फिटकरी मिला लें। इस चूर्ण को दांतों पर मलने से दांतों के हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं।
  • अगर खांसी की परेशानी है। तो रीठा के चूर्ण का सेवन ज़रूर करना चाहिए। इसके लिए रीठा चूर्ण को त्रिकटु चूर्ण के साथ मिलाकर पानी में डाल कर छोड़ दें। फिर अगली सुबह में इस पानी की चार-पांच बूंदें नाक में डालने से काफी आराम मिलता है। इससे अंदर जमा हुआ कफ बाहर आ जाता है और सिर दर्द में राहत मिलती है।
  • जो लोग दमे से परेशान हैं। उनके लिए रीठा का उपयोग दमे में काफी लाभदायक होता है। दमा को ठीक करने के लिए इसके फल को पीसकर सूंघ लें। इसके अलावा रीठा की गिरी को पानी में मिलाकर, मथकर, उससे झाग निकलने पर उस पानी को दमा के रोगी को पिलाने से रोगी को आराम लगता है।
  • रीठा आंखों के लिए भी बेहतरीन तरीके से काम करता है। इसलिए जो व्यक्ति आंखों के दर्द या आंखों से पानी बहने की समस्या से परेशान है। उसे रीठा फल को पानी में उबालकर, उसे ठंडा करके उससे आंखों को धोएं, तो उसे काफी फायेदा मिलेगा।
  • अगर किसी महिला को मासिक धर्म की परेशानी है तो रीठा फल की छाल को महीन पीसकर उसमें शहद मिलाकर। इसे अपनी योनि के ऊपर रख लें। इससे मासिक धर्म यानी पीरियड के दौरान होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
  • रीठा एंटी इंफ्लेमेटरी होता है। इसलिए यह किसी भी प्रकार की सूजन को ठीक करने के लिए अच्छा होता है।
  • प्रसव से संबंधित परेशानी होने पर रीठा फल के झाग को योनि के पास रखने से राहत मिलती है।
  • जिन लोगों को मूत्र रोग की परेशानी होती है। उन्हें रीठा को रात भर पानी में भीगोकर एवं समय-समय पर साफ करके पीने से पेशाब में होने वाली जलन से राहत मिलती है।
  • बवासीर में रीठा का बीज बहुत कारगार साबित होता है। इसके लिए रीठा के बीज को निकालकर, उसे पानी डाल कर रात भर के लिए छोड़ दें। सुबह उस पानी को पीने से लाभ मिलता है। इसके अलावा फल के शेष भाग को तवे पर जलाकर, इसमें बराबर मात्रा में कत्था मिलाकर अच्छी तरह से पीस लें। अब इस चूर्ण को सुबह और शाम मक्खन या मलाई के साथ खाने से बहुत आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को कम से कम सात दिनों तक दोहराएं।
  • मिर्गी से परेशान व्यक्ति के लिए रीठा के बीज बेहद लाभदायक होते हैं। इसके लिए मिर्गी के रोगी को रीठा को पीस कर इसे सुंघाना होता है।
  • किसी ज़हरीले कीड़े के काटने पर रीठा को पीसकर, काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है। इसके अलावा रीठा को पानी में पकाकर पीडित व्यक्ति को पिलाने से ज़हर उल्टी के रूप में बाहर आ जाता है। वहीं, अगर ज़हर बिच्छू के काटने का हो तो इसके फल में तम्बाकू का चूर्ण मिलाकर खा लें। इससे बिच्छू के डंक का ज़हर उतर जाता है। इसके अलावा कई जगहों पर अफीम और बाकी तरह के नशे को उतारने के लिए भी रीठा का उपयोग होता है।
रीठा के नुकसान-
  • रीठा यूं तो बेहद फ़ायदेमंद है। लेकिन इसका ज़रूर से अधिक उपयोग करना नुकसानदायक हो सकता है।
  • रीठा उन लोगों के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं होता है, जो लोग गर्म प्रकृति में रहते हैं। ऐसे में उन्हें चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही इसका उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा रीठा के झाग को कभी भी आंखों में नहीं लगाना चाहिए।
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Know the Medicinal Benefits of Cedar (Deodar)

Posted 13 December, 2021

Know the Medicinal Benefits of Cedar (Deodar)

Deodar, known as cedar has an important status in Ayurveda for its usefulness and medicinal properties. A deodar tree can live for one hundred to two hundred years. The more space this tree gets, the more it grows. At the same time, the older the tree, the more are its usefulness and medicinal properties. Cedar is used for many diseases. The use of cedar trees helps in controlling earache, throat pain, headache, joint pain, diabetes etc.

 

What is Deodar?

Deodar trees are much bigger and taller than normal trees. In view, it becomes thick from below and thin like a cow's tail from above. The branches of this tree are inclined towards the earth. Its leaves are long and slightly rounded. Its flowers are arranged in clusters like castor. Wooden frames, doors, windows of this tree are installed in almost every house due to which that house remains a little fragrant.

 

Medicinal Benefits of Cedarwood

  • Decoction of cedar bark proves beneficial in respiratory diseases.
  • Decoction of cedarwood is beneficial in gonorrhoeic and syphilis.
  • The decoction of deodar is also beneficial for blood purification.
  • Drinking a decoction of the soft bark of cedarwood and dry ginger helps in controlling the heartbeat.
  • Rubbing its bark and applying it to the brain provides relief in headaches.
  • In case of itching in the body, grinding its bark in water and applying it like an ointment provides relief in itching.
  • Grinding the bark of cedarwood in water provides relief in joint inflammation.
  • Grinding the leaves of cedarwood, turmeric and guggul in water gives relief in swelling.
  • In case of ear pain, putting 2-3 drops of cedarwood oil in the ear provides relief.
  • Cedarwood oil proves beneficial in leprosy.
  • Cedarwood oil is beneficial for eczema or ringworm.

How does Deodar work?

Deodar is bitter and has astringent and pungent properties which help to remove the doshas related to Kapha and hair. Several parts of this plant have antibacterial, immunomodulatory, anti-apoptotic, anti-inflammatory, antispasmodic and anticancer properties which work in the body like this-

 

Insecticide: Helps kill insects.

 

Antiviral: Works to fight against viruses.

 

Astringent: Inhibits soft organic tissue.

 

Antiseptic: Works to inhibit the growth of disease-causing microorganisms.

 

Antispasmodic: Acts as a relaxant from muscle spasms.

 

Antifertility: Reduces fertility.

 

Anti-inflammatory: Helps in quick relief of inflammation.

 

Diuretic: Helps to pass urine easily.

 

Carminative: Relieves gas in the alimentary tract. It is used in colic pain and flatulence.

 

Precautions while using Cedarwood

If a person has any disorder, disease or medical condition, a person should avoid the consumption of cedar. Otherwise, it can worsen the situation.

 

People who are allergic to herbs should consult a doctor before consuming deodar.

 

People who are already taking any medicine should also refrain from consuming herbs because cedar can interact with the medicine in some conditions and worsen the situation. As a result, the person is at increased risk of getting side effects. Therefore, before using it, please consult a doctor.

 

Where is cedar found?

Deodar is a huge and tall tree whose bark and root are fragrant. This tree is found in the regions of North Baluchistan, Asia Minor, Afghanistan and the Himalayas. In India, this tree is found in the north-western Himalayas towards the east in Uttarakhand up to an altitude of 1800-3600 m.

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हिना (मेहंदी) के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

हिना (मेहंदी) के फायदे और नुकसान

हिना (मेहंदी) दुनिया भर के लोगों द्वारा कई अलग-अलग तरीकों से उपयोग की जाती है। हिना के फायदे बालों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत ज्‍यादा हैं। यह बालों को नरम और चमकदार (soft and shiny) बनाने में मदद करती है। हिना सबसे अच्‍छी बाल सौंदर्य सामग्रियों में से एक है। जिसे भारत ने अन्‍य देशों के साथ साझा किया है। सदियों से महिलाएं हिना के प्राकृतिक गुणों का उपयोग अपने बालों को मजबूत करने, उन्हें पोषण देने और सुंदर बनाने के लिए कर रही हैं। वह बालों के उपचार के लिए हिना के पत्‍तों का उपयोग करती हैं। आधुनिक महिलाएं बालों के उपचार (hair therapy) के लिए हिना पाउडर का उपयोग भी करती हैं। बालों के लिए हिना सबसे अच्‍छे विकल्‍पों में से एक इसलिए है। क्‍योंकि यह एक प्राकृतिक बालों को रंगने वाले एजेंट और कंडीशनर की तरह काम करती है। यह मेंहदी सिर दर्द से छुटकारा पाने, शरीर को साफ (detoxify) करने, नाखूनों में सुधार करने, त्‍वचा की रक्षा करने, बालों के स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने, शरीर को ठंड़ा करने, सूजन को कम करने और उपचार की गति बढ़ाने (speed healing) में मदद करती है।

हिना का यह नाम उस फूल के पौधे से लिया गया। जिससे यह डाई बनती है। औषधि के फायदे के लिए हिना तेल, छाल और बीज सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं। इसके पौधों में रसायन और पोषक तत्वों की उच्च सामग्री होने के कारण यह कई एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल, कसैले और एंटीवायरल प्रभाव देती है। एक हर्बल उपचार के रूप में हिना का पश्चिम में व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा है। जबकि पूर्वी संस्कृतियों में हजारों सालों से इसका उपयोग किया जाता रहा है। हिना का वैज्ञानिक नाम 'लॉसोनिया इनर्मिस' (lawsonia inermis) है और यह लिथेसिई (lythraceae) कुल का एक पौधा है। यह उत्तरी अफ्रीका, अरब देश, भारत तथा पूर्वी द्वीप समूह में पाया जाता है।

 
बालों के लिए हिना के फायदे-
बालों को डाइ करने के लिए-

हिना का सबसे आम इस्तेमाल है, बालों को डाइ करना। बाज़ार में मौजूद हेयर डाइंग प्रॉडक्ट्स की तुलना में यह काफ़ी सुरक्षित और केमिकल फ्री हैं। यह नैसर्गिक इन्ग्रीडिएंट हेयर डाइ के मुक़ाबले बेहद किफ़ायती भी है।

 
बालों का झड़ना कम होता है-

हिना स्कैल्प पर काफ़ी प्रभावी होती है। स्कैल्प पर हिना लगाने से बालों की सेहत दुरुस्त होती है। हिना के साथ मेथी भिगोकर लगाने से बालों का झड़ना बहुत कम हो जाता है।

 
बालों की गहराई से कंडीशन करती है-

हिना में अंडे, दही जैसे हाइड्रेटिंग इन्ग्रीडिएंट्स मिलाने पर यह बालों को नमी प्रदान करती है। यदि आप हिना का प्रयोग केवल बालों को कंडीशन करने के लिए कर रही हैं तो हिना पैक को कम से कम समय के लिए लगाएं।

 
डैंड्रफ़ से निजात दिलाती है-

हिना स्कैल्प से गंदगी और डैंड्रफ़ को हटाने में मदद करती है। नियमति रूप से हिना के इस्तेमाल से न केवल डैंड्रफ़ ग़ायब होता है। बल्कि वह वापस भी नहीं आता।

 
स्कैल्प की खुजली को नियंत्रित करती है-

हिना में नैसर्गिक ऐंटीफ़ंगल और ऐंटीमाइक्रोबिअल गुण होते हैं। जो स्कैल्प को ठंडक पहुंचाकर खुजली को कम करने में मदद करते हैं।

 
बालों को सेहतमंद और चमकीला बनाती है-

हिना में मौजूद टैनिन असल में बालों के कॉर्टेक्स में प्रवेश कर बालों को मज़बूत बनाते हैं। जिससे बालों को कम-से-कम क्षति पहुंचती है। नतीजतन बाल सेहतमंद रहते हैं और मुलायम व चमकीले नज़र आते हैं।

 
बालों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है हिना-

हिना बालों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है। यह बालों की त्वचा की बाहरी परत को सील कर, बालों को टूटने से रोकती है। यह बालों की चमक और उपस्थिति को बढ़ाती है। हिना बालों की रूसी को रोकती है। 50 ग्राम लीकोरिस और 50 ग्राम हिना को 2 लीटर ठंडे पानी में भिगोएं। अगली सुबह, जब यह मिश्रण अच्छी तरह से मिक्स हो जाए, तो इसको छान लें। यह मिश्रण बालों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। फोड़े या सिर के फफोले, सिर की खुजली और दो मुंहे बालों के मामले में यह उपाय बहुत प्रभावी होता है।

 
हिना के अन्य फायदे:-
नाखूनों को स्वस्थ रखती है हिना-

नाखूनों के नीचे के कटऑल्स और स्थान संक्रमण और बैक्टीरिया की उपस्थिति के लिए प्रमुख स्थान होते हैं। हिना द्वारा नाखूनों को स्वस्थ रखना बहुत ही अच्छा उपाय है। हिना की पत्तियों को पानी में उबाले और उस पानी को ठंडा करके पिएं। इससे नाखूनों को टूटने से रोकने और सूजन को कम करने में मदद मिलती है। नाखूनों पर हिना का पेस्ट लगाने से जलन, दर्द और संक्रमण दूर होता है।

 
त्वचा के लिए फायदेमंद है हिना-

हिना का रस और तेल उम्र बढ़ने और झुर्रियों के संकेतों को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। साथ ही यह त्वचा के भद्दे निशान और कालेपन को दूर करने के लिए भी उपयोगी है। क्योंकि यह एंटीवायरल और जीवाणुरोधी प्रभाव से परिपूर्णल होता है। जो शरीर के सबसे बड़े अंग ‘त्वचा’ की रक्षा करते हैं।

 
बुखार को कम करती है हिना-

आयुर्वेदिक परंपराओं के अनुसार, हिना बुखार को कम करने में सक्षम है। जब लोग बहुत अधिक बुखार से पीड़ित होते हैं। तो शरीर के समग्र तापमान को कम करना आवश्यक होता है। इसके लिए हिना कारगर उपाय है। यह पसीना लाकर बुखार को प्रभावी ढंग से कम करती है।

 
सिर दर्द में उपयोगी है हिना पौधे का रस-

हिना पौधे का रस सिर दर्द से राहत के लिए सीधे त्वचा पर लगाया जाता है। हिना में पाए जाने वाले यौगिकों के एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव, कोशिकाओं में तनाव को कम करने और स्वस्थ रक्त प्रवाह को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। जो सिरदर्द और माइग्रेन का एक सामान्य कारण है।

 
गठिया का इलाज करता है हिना तेल-

हिना तेल को गठिया और रूमेटिक दर्द के लिए उपयोग किया जाता है। बढ़ती उम्र के साथ शरीर के जोड़ अधिक दर्दनाक हो जाते हैं। इससे शरीर के कई अलग-अलग हिस्सों में दर्दनाक सूजन पैदा हो जाती है। ऐसे में सूजन या प्रभावित क्षेत्रों में हिना तेल लगाने से जोड़ों के दर्द और गठिया जैसे रोगों में ख़ास लाभ मिलता है।

 
मूत्र संक्रमण के उपचार में लाभकारी है हिना-

हिना पत्तियों के ताजा रस को 3-5 ग्राम चीनी और 10-15 मिलीलीटर दूर्वा के ताजा रस के साथ मिक्स करें। इस मिश्रण की 15 मिलीलीटर की खुराक दिन में 2 बार लें। यह मूत्र मार्ग के संक्रमण को ठीक कर, जलन से मुक्ति प्रदान करता है।

 
हिना के नुकसान-
  • हिना बालों की नमी को कम कर सकती है। कई बार इसका ज्यादा प्रयोग करने से बाल रुखे और बेजान से नजर आने लगते हैं। यदि आप रोजाना इसका इस्तेमाल करेंगे तो आपको समय-समय पर बालों को डीप कंडिशनिंग कराने की जरूरत पड़ सकती है।
  • हिना को बालों पर लगाना काफी मेहनत वाला काम है। इसमें काफी समय लगता है। अच्छी रंगत पाने के लिए इसे बालों पर कम से कम दो घंटे तक लगाए रखना आवश्यक होता है।
  • बाजार में मिलनेवाली सस्ती और मिलावटी हिना से संभलकर रहें। यह बालों को नुकसान पहुंचा सकती है। बहुत चटक हरे रंग वाले हिना पाउडर को खरीदने से बचें।
  • डाई के रूप में इसका ज्‍यादा उपयोग करने से कुछ लोगों को एलर्जी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है। जोकि मेंहदी के साथ मिलाए गए अन्‍य उत्‍पादों के कारण होती है।
  • हिना का उपयोग करने पर कुछ लोगों को खुजली या फफोले (Itching Or Blistering) जैसी एलर्जी हो सकती है। ऐसे में व्यक्ति को डॉक्‍टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
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Know about Hadjod and its Uses

Posted 13 December, 2021

Know about Hadjod and its Uses

In Ayurvedic treatment, Hadjod is mainly used to repair fractured bones. Its use provides strength to bones and joints. There are many antioxidant, pain reliever and bone-building properties present in Hadjod due to which the healing of the broken bone is accelerated, that's why Hadjod is also called bone joint in many places.

 

Apart from this, it is also used in the treatment of diseases like stomach problems, periods regulation, piles, eye diseases, epilepsy, leucorrhoea, sprains, gout, asthma, allergies, ulcers etc. According to some research, apart from making bones strong, it also works to protect against diseases like joint pain, heart disease, diabetes and stroke.

 

What is Hadjod

Because it helps in re-joining the fractured bones, it is also called asthi (bone) joint powder in some places. Its tree looks like a vine that is sweet, bitter, pungent, hot, small and big, dry, eliminating phlegm, and digestive power. Therefore it is also grown in parts of Asia and Africa. Apart from this, it is one of the most used medicinal plants in Thailand because almost all parts of this plant are used in Ayurvedic medicine.

 

The botanical name of Hadjod is Cissus quadrangularis that belongs to the family Vitaceae. It is known by the names of Edible stemmed vine, Winged tree vine, Veld grape, Hadsanghari, Chaturdhara, Hadjod or Hadjodi, etc.

 

Benefits of Hadjod

  • Drinking 5-10 ml juice of Hadjod lukewarm, is good for asthma and respiratory diseases.
  • Grind the unpeeled stem of Hadjod and urad dal, filter it in sesame oil and use it, it provides relief in arthritis.
  • Regular consumption of Hadjod for 15 days provides quick benefits in the healing of fractures.
  • It is common to start having joint problems as you get older. In such a situation, by consuming Hadjod, there is relief in arthritis and joint pain.
  • Since Hadjod is a digestive medicine in which some carminative properties are found due to which it proves helpful in increasing the digestive power.
  • Due to the medicinal properties of Hadjod, heating its leaves and compressing the spinal cord proves to be beneficial for spinal pain.
  • Turmeric has pain-relieving properties. Therefore, its consumption proves to be effective in curing body pain. For this, dry ginger, black pepper and Hadjod paste (1-2 grams) should be taken.
  • For a sprain, mix sesame oil in Hadjod and cook it well. Now filtering this oil and applying it to the affected area provides benefit in a sprain.
  • Applying the juice of Hadjod root on burn wounds and insect bites proves beneficial.
  • Hadjod also proves beneficial in reducing the bleeding caused by cuts.
  • Taking 2-4 ml juice of stem and root of Hadjod provides relief in bleeding of teeth, nostrils and piles.
  • Eating too much spicy food and irregular eating pattern causes stomach problems. In such a situation, Hadjod proves to be very helpful. For this, drinking 5-10 ml juice of Hadjod leaves mixed with honey cures digestion and provides relief in other stomach related problems.
  • Make a paste by grinding the stem and leaves of Hadjod, it provides relief in post-delivery pain.
  • White watery discharge in women is a major cause of weakness. For this, regular consumption of 5-10 ml juice of Hadjod helps in reducing the problem of white water in women.

Useful parts of Hadjod

  • Hadjod root
  • Hadjod bark
  • Hadjod leaf
  • Hadjod stem

Where is Hadjod found or grown?

In the tropical regions of India and the Western Himalayas, the Hadjod is found from Uttarakhand to the forests of the Western Ghats. Apart from India, Hadjod is also found in countries like Asia, Africa and Thailand.

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जानें, कालमेघ के आयुर्वेदिक महत्व, फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

जानें, कालमेघ के आयुर्वेदिक महत्व, फायदे और उपयोग

पुरातन काल से औषधीय पौधों का अस्तित्व रहा है। जिसका उपयोग मनुष्य रोग से छुटकारा पाने के लिए करता आया है। जिन पौधों से औषधि मिलती है। उनमें से अधिकतम पौधे जंगली होते हैं। इन्हीं पौधों में से एक कालमेघ भी हैं। जो आमतौर पर घरों के आस-पास, सड़कों के किनारे एवं जंगली-झाड़ियों में पाया जाता है। यह पौधा हरे रंग का और इसकी पत्तियों की बनावट मिर्च के पौधों तरह होती है। इसकी पत्तियों का स्वाद कड़वा होता है। इसलिए इसे बिटर के राजा (King of Bitter) के नाम से जाना जाता है। कालमेघ को कालनाथ, महातिक्त, हरा चिरेता (Green Chiretta) के नाम से भी जानते हैं। जिसका वैज्ञानिक नाम एंड्रोग्राफिस पैनिकुलाटा (Andrographis Paniculata) है।

 
कालमेघ का औषधीय महत्व-

कालमेघ एक औषधीय जड़ी-बूटी है। जिसका उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। कालमेघ स्वाद में जितना कड़वा होता है, उतना ही रोगों से लड़ने में फायदेमंद होता है। आमतौर पर कालमेघ का उपयोग बुखार, मुख्य रूप से डेंगू बुखार के इलाज के लिए किया जाता है। साथ ही यह फ्री रेडिकल्स से लड़ता है और इम्यूनिटी को भी बढ़ाता है। कालमेघ में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल गुण कॉमन कोल्ड, साइनसाइटिस और एलर्जी के लक्षणों का कम करने के लिए भी जाने जाते हैं। इसके अलावा कब्‍ज, भूख की कमी, आंतों के कीड़े, पेट की समस्‍या, त्‍वचा रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज कालमेघ का उपयोग किया जाता है। इसे अपने कड़वे एवं तीखे स्वाद के कारण ही बेहतर उपाए के लिए जाना जाता है। अत: आयुर्वेद इसे में उत्तम औषधि माना गया है।

 
कालमेघ के फायदे-

निम्न बातों से हम जानेंगे कालमेघ के फायदे के बारे में;

 
वायरल बुखार से छुटकारा दिलाने में मददगार-

आयुर्वेद में कालमेघ का उपयोग पुराने से पुराने बुखार के इलाज के लिए किया जाता है। कालमेघ में ऑक्सीकरण रोधी गुण होते हैं। जो स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और खतरनाक बीमारियों से लड़ने में सहायक होते हैं। इसके लिए 3 से 4 ग्राम कालमेघ के चूर्ण को पानी में तबतक उबालें जबतक पानी का लगभग एक चौथाई भाग जल न जाए। उसके बाद इस पानी को पिएं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और बार-बार होने वाली सर्दी-जुकाम एवं बुखार से छुटकारा दिलाता है। इसके अलावा कालमेघ में एंटीवायरल गुण भी पाया जाता है। जो खांसी, जुकाम, सर्दी जैसी वायरल इन्फेक्शन को रोकता है।

 
डेंगू और चिकनगुनिया के इलाज में कारगर-

कालमेघ को डेंगू और चिकनगुनिया के इलाज के लिए कारगर माना जाता है। डेंगू बुखार होने पर शरीर में प्लेटलेट्स लगातार कम होने लगती हैं। ऐसे में कालमेघ की गोली या काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्लेटलेट्स काउंट बढ़ती हैं। इसके अलावा कालमेघ, सोंठ, छोटी पिप्पली और गुड़ के साथ तुलसी का काढ़ा बनाकर पीना भी डेंगू में लाभप्रद होता है।

 
रक्त को साफ करने में सहायक-

कालमेघ का उपयोग खून को साफ करने में औषधि के रूप में किया जाता है। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं। जो विषैले कण को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करते हैं। इसके लिए कालमेघ और आंवला के चूर्ण को रात में भिगोकर रख दें। अब सुबह इसके पानी को छानकर सेवन करें। ऐसा करने से विषैले कण मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। जिससे रक्त की शुद्धि होती है।  

 
त्वचा के लिए फायदेमंद-

कालमेघ में एंटीबैक्टीरियल और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। जो त्वचा संबंधी कई समस्याओं को दूर करने में कारगर होते हैं। यह त्वचा की स्थिति जैसे मुंहासे, एक्जिमा, सामान्य शुष्क त्वचा के इलाज में मदद करते हैं। इसके लिए कालमेघ के पौधों को बारीक पीसकर पेस्ट लें। अब इस पेस्ट को प्रभावित अंगो पर लगाएं। ऐसा करने से यह मुंहासे और मुंहासे पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ता है। साथ ही स्वाभाविक रूप से स्वच्छ, स्पष्ट, चिकनी और चमकदार त्वचा प्रदान करता है। इसके अलावा इसके काढ़े से घावों को धोने से घाव भी जल्दी ठीक होते हैं।

 
कृमि संक्रमण से छुटकारा दिलाने में- 

कालमेघ में एंटीपैरासिटिक गुण होता है। जिससे पेट व आंतों में होने वाले कीड़ों को नष्ट करने में मदद मिलती है। जिससे यह पेट के कीड़ों के लिए अच्छी औषधि है। इसके लिए कालमेघ के काढ़े का सेवन करना फायदेमंद होता है।

 
कब्ज से दिलाएं छुटकारा-

कालमेघ का चूर्ण पेट में मरोड़, कब्ज, दस्त आदि समस्याओं में आराम दिलाने में कारगर साबित होता हैं। इसके लिए कालमेघ, आंवला और मुलेठी के चूर्ण को तबतक उबालें जबतक पानी का लगभग आधा भाग जल न जाए। इसके बाद उस पानी को अच्छे से छानकर दिन में दो बार पिएं। ऐसा करने से कब्ज की शिकायत को दूर किया जा सकता है।

 
डायबिटीज (मधुमेह) को करे कंट्रोल-

कालमेघ में एंटी-डायबेटिक गुण पाए जाते हैं। जो डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायता करता है। इसके लिए कालमेघ पौधे के अर्क का सेवन टाइप 1 डायबिटीज के लिए प्रभावी रूप से काम करता है। इसके अलावा यह अग्नाशयी (पैंक्रियास) बीटा-कोशिकाएं कार्यप्रणाली को बढ़ाती है। साथ ही कम सीरम इंसुलिन सांद्रता को बढ़ाता है, जबकि ऊंचा सीरम ग्लूकोज को घटाता है।

 
अपच, हार्ट बर्न में फायदेमंद-

कालमेघ का स्वाद बहुत कड़वा होता है। आमतौर पर ऐसी मान्यता है कि कड़वी जड़ी-बूटी पाचन क्रिया को उत्तेजित करने के लिए फायदेमंद होती है। साथ ही यह अपच, एसिड रेफल्स, जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं को दूर करने में मदद करती है। मिशिगन मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार कड़वी जड़ी-बूटियों को पेट एसिड और पाचन एंजाइमों के अलावा लार के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है। यह शरीर की पाचन स्वास्थ्य को बेहतर करती है।

 
रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार-

रोग-प्रतिरोधक क्षमता शरीर को स्वस्थ्य बनाए रखने का काम करती हैं। ऐसे में कालमेघ के सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। क्योंकि इसमें इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण पाया जाता है। जो प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से काम करता है।  जिससे सर्दी-जुकाम और अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है। इसके लिए कालमेघ के काढ़े का कुछ दिन सेवन करना होता है। जिससे शारीरिक कमजोरी दूर होती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। साथ ही वात एवं कफ से जुड़े रोगों से मुक्ति मिलती है।

 
अनिद्रा को दूर करने में सहायक-

अनिद्रा अर्थात नींद न आना कई कारणों से होती है। जिसमें चिंता, तनाव, अवसाद आदि शामिल है। ऐसे में कालमेघ का सेवन करना अच्छा होता है। कालमेघ के अर्क का सेवन करने से अनिद्रा की परेशानी दूर होती है। क्योंकि कालमेघ एंटी-स्ट्रेस की तरह काम करता है। जो तनाव को दूर करने में मदद करता है। जिससे अच्छी नींद आती है।

 
कालमेघ के उपयोग-
  • कालमेघ चूर्ण का सेवन पानी के साथ किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों के अर्क का सेवन किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों के पेस्ट को घाव पर लगाया जाता है।
  • कालमेघ की पत्तियों को जूस के रूप में भी पिया जाता है।
कालमेघ के नुकसान-
  • अतिसंवेदनशीलता (हाइपर-सेंसिटिविटी) वाले व्यक्तियों को कालमेघ का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को कालमेघ के अधिक सेवन से बचना चाहिए।
  • इसका अधिक मात्रा में सेवन एलर्जी उत्पन्न कर सकता है।
  • कालमेघ का अधिक सेवन लो बीपी और लो शुगर का कारण बन सकता है।
  • कालमेघ के अधिक सेवन से भूख में कमी आ सकती है।
  • दूसरी दवाओं के साथ कालमेघ का सेवन इंफेक्शन कर सकता है। इसलिए किसी भी प्रकार की दवाइयों का सेवन करते समय चिकित्सक के परामर्शानुसार ही कालमेघ का सेवन करें।
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क्या होती है कालीजीरी? जानें, आयुर्वेद में इसके महत्व और फायदों के बारे में

Posted 17 March, 2022

क्या होती है कालीजीरी? जानें, आयुर्वेद में इसके महत्व और फायदों के बारे में

कालीजीरी भृङ्गराज कुल की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। जो आकार में छोटी, स्वाद में कड़वी (तीखी) और तेज गंद्ध वाली होती है। इसलिए कालीजीरी को किसी भी तरह के भोजन बनाने में इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसको केवल दवा की तरह ही उपयोग किया जाता है। कालीजीरी को आयुर्वेद में सोमराजि, सोमराज, अरण्यजीरक,  तिक्तजीरक, वनजीरक, कृष्णफल आदि नाम से जानते हैं। वहीं अंग्रेजी इसे ब्लैक क्यूमिन (Black Cumin) कहा जाता है। लेकिन यह किसी भी तरह के जीरे और कलौंजी के परिवार से संबंध नहीं रखता हैं। कलौंजी को भी इंग्लिश में ब्लैक क्यूमिन कहते हैं। जिसका वानस्पतिक नाम निजेला सेटाइवा है। जो लैटिन शब्द नीजर (काला) से बना है। वहीं, कालीजीरी का वैज्ञानिक नाम, सेंट्राथरम ऐनथेलमिंटिकम (Centratherum Anthelminticum) है।

 

आयुर्वेद में कालीजीरी का महत्व-

कालीजीरी एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसमें कई तरह के पौष्टिक पदार्थ पाए जाते हैं। जो त्रिदोष (कफ, पित्त, वात) को शांत रखने में मदद करते हैं। साथ ही यह शरीर को रोगमुक्त भी करते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक में कालीजीरी कई तरह की बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। इसमें शरीर से ख़राब कोलेस्ट्रॉल निकालने के भी गुण होते है। यह डायबिटीज को भी नियंत्रित रखती है। इसमें कुछ एंटीऑक्सीडेंट भी होते है। जो कैंसर जैसी बीमारियों से शरीर को बचाते हैं। इसके सेवन से पेट के कीड़े, लिवर की समस्या, त्वचा संबंधित समस्या आदि कम होती हैं। अपने कड़वे एवं तीखे स्वाद के कारण ही इसे बेहतर उपाए के लिए जाना जाता है। इसलिए इसे आयुर्वेद में उत्तम दर्जें की औषधि माना गया है।

 

क्या हैं कालीजीरी के फायदे?

यह कुछ प्राकृतिक रसायनों में भी समृद्ध है जैसे- थॉमोक्विनोन, थेयमोल आदि। इसके अलावा इसमें और भी कई तत्व, विटामिन, क्रिस्टलीय निगेलोन, लोहा, सोडियम, पोटेशियम और फैटी एसिड से परिपूर्ण तत्व पाए जाते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक हैं।

 

कृमि संक्रमण से छुटकारा दिलाने में- 

कालीजीरी में कृमिनाशक एवं विरेचक गुण पाया जाता है। जो आंतों के कीड़ों को मारने और परजीवी संक्रमण से बचाने का काम करता है। इसके लिए इसके चूर्ण को अरंडी के तेल में मिलाकर सेवन करना फायदेमंद होता है।

 

त्वचा के लिए फायदेमंद-

कालीजीरी में रोगाणुरोधी और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। यह त्वचा की स्थिति जैसे मुंहासे, एक्जिमा, सामान्य शुष्क त्वचा और सोरायसिस के इलाज में मदद करते हैं। इसके लिए कालीजीरी और काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर सुबह व्यायाम करने के बाद सेवन करें। ऐसा करने से यह मुंहासे और मुंहासे पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ता है। साथ ही स्वाभाविक रूप से स्वच्छ, स्पष्ट, चिकनी और चमकदार त्वचा प्रदान करने में मदद करता है।

 

वजन को कम करने में लाभप्रद-

कालीजीरी में अधिक मात्रा में फाइबर होता है। जो पेट के मोटापे को नियंत्रित रखने का काम करता है। दरअसल यह शरीर में फैट को जमने नहीं देता। परिणामस्वरूप मोटापा नहीं बढ़ पाता। इसके लिए कालीजीरी, अजवाइन और मेथी के चूर्ण का मिश्रण प्रतिदिन 3.5 ग्राम की मात्रा में भोजन के 1 से 2 घंटे बाद गर्म पानी के साथ सेवन करना उत्तम होता है। इसके अलावा यह मिश्रण एसिडिटी को कम करने और पाचन क्रिया को सुधारने में भी मदद करता है।

 

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में-

कालीजीरी में अधिक मात्रा में ऑक्सीकरणरोधी (antioxidant) पाया जाता है। जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल का ऑक्सीकरण होने से बचाता हैं। जिससे शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नहीं बढ़ती है। इसके अलावा एंटी-ऑक्सीडेंट शरीर की कोशिकाओं को मुक्त कण (free-radicals) के कारण होने वाली क्षति से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं। साथ ही यह ब्लड ट्राइगलिसराइड को कम कर दिल से संबंधित बीमारियों से भी बचाते हैं।

 

डायबिटीज (मधुमेह) को करे कंट्रोल-

कालीजीरी में मौजूद अग्नाशयी (पैंक्रियास) बीटा-कोशिकाएं कार्यप्रणाली को बढ़ाती है। इसके अलावा यह कम सीरम इंसुलिन सांद्रता को भी बढ़ाती हैं। साथ ही ऊंचा सीरम ग्लूकोज को घटाती हैं। जिस वजह से यह डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायता करती हैं।

 

कैंसर को रोकने में सहायक-

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स के वजह से अनेक परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। जिनमें कैंसर भी शामिल है। चूंकि कालीजीरी में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स की समस्या को कम करते हैं। इसके अतिरिक्त कालीजीरी में थॉमोक्विनोन पाए जाते हैं। जो शरीर में कैंसर को बढ़ने से रोकने में सहायता प्रदान करते हैं।

 

रक्त को साफ करने में सहायक-

शरीर में विषाक्त पदार्थों का समावेश होने पर उस क्रिया को खराब रक्त कहा जाता है। कालीजीरी में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं। जो विषैले कण को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करते हैं। इसके लिए कालीजीरी के चूर्ण का गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। ऐसा करने से विषैले कण मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। जिससे रक्त की शुद्धि होती है।  

 

सूजन के लिए-

कालीजीरी एंटीऑक्सीडेंट से समृद्ध होता है। जो सूजन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा कालीजीरी में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव भी सूजन को कम करने और रोकने में सहायता प्रदान करता है।

 

मां का दूध बढ़ाने हेतु-

कालीजीरी को गर्भवती और स्तनपान करा रही महिलाओं के लिए सर्वोत्तम माना जाता हैं। क्योंकि यह मां के स्तनों में दूध की मात्रा को बढ़ाता हैं। इसके अलावा माताओं के शिशु जन्म उपरांत खोई हुई ताकत और स्फूर्ति को वापस लाने में भी मदद करता है।
 

कालीजीरी के नुकसान-

  • कालीजीरी की तासीर गर्म होती है। इसलिए इसका अधिक सेवन, पाचन संबंधी समस्या और हार्ट बर्न का कारण बन सकता है।
  • वातहर प्रभाव की वजह से इसका अधिक सेवन डकार, मतली आदि का कारण बन सकता है।
  • अतिसंवेदनशीलता (हाइपर-सेंसिटिविटी) वाले व्यक्तियों को कालीजीरी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को कालीजीरी के अधिक सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि इसका सेवन ज्यादा मात्रा में करने से गर्भपात या समय से पहले डिलीवरी होने की आशंका बढ़ जाती है।
  • किसी भी प्रकार की दवाइयों का सेवन करते समय चिकित्सक के परामर्शानुसार ही कालीजीरी का सेवन करें।
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काली मिर्च के औषधीय गुण और उपयोग

Posted 24 May, 2022

काली मिर्च के औषधीय गुण और उपयोग

काली मिर्च एक औषधीय मसाला (Spice) है। इसे पेपरकॉर्न भी कहा जाता है। यह दिखने में थोड़ी छोटी, गोल और काले रंग की होती है। इसका स्वाद काफी तीखा होता है। काली मिर्च की लता लंबे समय तक जीवित रहने वाली होती है। यह पान के पत्तों जैसी, तेजी से फैलने वाली और कोमल लता होती है। जो मजबूत सहारे से लिपट कर ऊपर बढ़ती है। काली मिर्च का प्रयोग भोजन में करने से बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं। ठंड के दिनों में बनाए जाने वाले सभी पकवानों में काली मिर्च का उपयोग किया जाता है। ताकि ठंड और गले की बीमारियों से शरीर की रक्षा हो सके। काली मिर्च नपुंसकता, रजोरोध यानि मासिक धर्म के न आना, चर्म रोग, बुखार तथा कुष्ठ रोग आदि में लाभकारी है। आंखों के लिए यह विशेष रूप से हितकारी होती है। जोड़ों का दर्द, गठिया, लकवा एवं खुजली आदि में काली मिर्च में पकाए गए तेल से मालिश करने से बहुत लाभ प्राप्त होता है। वैज्ञानिक रूप से इसे पाइपर नाइग्रम (Piper nigrum) कहा जाता है।

काली मिर्च में पेपराइन नामक रसायन होता है। जिसकी वजह से इसका स्‍वाद तीखा होता है। पेपराइन को जठरांत्र तंत्र (gastrointestinal tract या digestive tract) के लिए फायदेमंद माना जाता है। पाचन में सुधार के अलावा काली मिर्च शक्‍तिशाली एंटीऑक्‍सीडेंट भी है। इसलिए इसे खाने से पाचन क्षमता बढ़ती है और खाना भी अच्‍छी तरह से अवशोषित होता है। काली मिर्च शरीर के मेटाबोलिज्‍म द्वारा पैदा हुए ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस से निपटने में भी मदद करती है। स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक एवं खाने का जायका बढ़ाने वाले गुणों के कारण काली मिर्च को “मसालों का राजा” कहा जाता है। बाजारों में दो प्रकार की मिर्च बिकती है। इसमें एक है सफेद मिर्च और दूसरी है काली मिर्च। सफेद मिर्च, काली मिर्च का ही एक अलग रूप है। आधे पके फलों की काली मिर्च बनती है और पूरे पके फलों को पानी में भिगोकर, हाथ से मसलकर ऊपर का छिल्का उतार देने से वह सफेद मिर्च बन जाती है। छिल्का हट जाने से इसकी गरम तासीर भी कुछ हद तक कम हो जाती है। वहीं, इसके गुणों में कुछ सौम्यता आ जाती है।

 
काली मिर्च के औषधीय गुण-

काली मिर्च में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। जिसकी मदद से कई प्रकार के रोगों से शरीर को दूर रखने में सहायता मिलती है। साथ ही कई रोगों के इलाज में भी मदद मिलती है। इसमें मुख्य रूप से एंटी-फ्लैटुलेंस, ड्यूरेटिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, डाइजेस्टिव, मैमोरी इनहेंसर (याददाश्त बढ़ाने वाला) और पेन रिविलर गुण पाए जाते हैं। यह सभी गुण विभिन्न समस्याओं के इलाज में मदद करते हैं।

 
काली मिर्च के फायदे:
पाचन के लिए फायदेमंद-

आहार में काली मिर्च का उपयोग करने से पाचन संबंधी समस्याओं से निजात मिलती है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, काली मिर्च में पाए जाने वाला पाइपरिन अग्न्याशय यानी पेट के पाचन एंजाइमों को उत्तेजित कर पाचन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। वहीं, एक अन्य शोध से पता चलता है कि काली मिर्च से पैंक्रियाटिक लाइपेज, काइमोट्रिप्सिन और एमिलेज की गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। इन सभी को डाइजेस्टिव एंजाइम के रूप में जाना जाता है। इनसे पूरी पाचन प्रक्रिया बेहतर तरीके से काम करती है।

 
सर्दी-खांसी से दिलाती है राहत-

काली मिर्च के औषधीय गुण का असर सर्दी-खांसी पर सकारात्मक रूप से पड़ता है। इस संबंध में किए गए एक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, काली मिर्च को सर्दी-खांसी के लिए फोक मेडिसिन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पाइपरिन (Piperine) नामक कंपाउंड होता है। जो सर्दी-खांसी की समस्या से छुटकारा दिलाता है। साथ ही यह गले में खराश की समस्या का भी समाधान करने का काम करता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि काली मिर्च खाने से सर्दी-खांसी में राहत मिलती है।

 
कैंसर से करती है बचाव-

कैंसर जैसी घातक समस्या से बचने में काली मिर्च मदद करती है। काली मिर्च में एंटी-कैंसर गतिविधि पाई जाती हैं। इसके कारण काली मिर्च शरीर में कैंसर को पनपने से रोकती है। इसके अलावा काली मिर्च में मौजूद पाइपरिन की वजह से यह कीमोथेरेपी दवाई की तरह काम करती है। पाइपरिन कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकने का काम करता है। लेकिन अगर किसी को कैंसर है। तो उसे डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए। क्योंकि काली मिर्च सिर्फ कैंसर से बचाने में मदद कर सकती है। इसे कैंसर का इलाज न समझें।

 
वजन कम करने में सहायक-

काली मिर्च खाने से वजन कम करने में लाभ मिलता है। एक मेडिकल रिसर्च के दौरान कुछ हफ्तों तक काली मिर्च युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन किया गया। इससे भूख में किसी तरह का बदलाव हुए बिना शरीर में फैट और लिपिड का स्तर कम मापा गया। और शरीर का वजन कुछ कम हुआ। यह सब काली मिर्च में मौजूद पाइपरिन और एंटीओबेसिटी प्रभाव की वजह से होता है। इसलिए, काली मिर्च के औषधीय गुण के कारण वजन कम होता है।

 
डायबिटीज में लाभदायक-

काली मिर्च खाने के फायदे मधुमेह और ब्लड शुगर को सामान्य रखते हैं। काली मिर्च में एंटीहाइपरग्लाइसेमिक एजेंट होते हैं। जो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को कम करते हैं। इससे डायबिटीज के इलाज में मदद मिलती है।

 
जोड़ों के दर्द और गठिया के लिए कारगर-

काली मिर्च के गुण जोड़ों के दर्द और गठिया की समस्या को कम करते हैं। कई बार जोड़ों में दर्द और गठिया का मुख्य कारण सूजन होती है। जिससे छुटकारा दिलाने में काली मिर्च मदद करती है। काली मिर्च में मौजूद पाइपरिन में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीअर्थराइटिस प्रभाव पाया जाता है। जो सूजन की समस्या को कम कर गठिया की स्थिति में राहत पहुंचाता है।

 
धूम्रपान छुड़वाने में मददगार-

जो लोग धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं। उनके लिए काली मिर्च का उपयोग मददगार है। एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि काली मिर्च पाउडर की भाप लेने से धूम्रपान की तलब को धीरे-धीरे नियंत्रित किया जाता है।

 
काली मिर्च के उपयोग-
  • कई प्रकार के व्यंजन बनाते समय काली मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है।
  • काली मिर्च को सॉस बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
  • फास्ट फूड को तीखा बनाने के लिए ऊपर से काली मिर्च को छिड़का जाता है।
  • काली मिर्च की चाय बनाकर पी जाती है।
  • खांसी-जुखाम होने पर काली मिर्च पाउडर और शहद को मिलकर चाटा जाता है।
  • काली मिर्च को हल्दी पाउडर के साथ मिलाकर भी लेते हैं। जो शरीर द्वारा इसके अवशोषण को बढ़ाने में मदद करता है।
काली मिर्च के नुकसान-
  • काली मिर्च का अधिक सेवन करने से पेट में जलन हो सकती है।
  • काली मिर्च को आंखों के संपर्क में न आने दें। इससे आंखों में जलन होती है।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसके अधिक मात्रा में सेवन करने से बचना चाहिए।
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जानें, क्या होता है हड़जोड़ और इसके उपयोग के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, क्या होता है हड़जोड़ और इसके उपयोग के बारे में

हड़जोड़ को अस्थिसंहार, अस्थिसंधानक और अस्थि श्रृंखला नामों से भी जाना जाता है। इन सभी नामों का अर्थ हड्डी से संबंधित होता है। वहीं, आयुर्वेदिक उपचार में हड़जोड़ को मुख्य रूप से टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसके इस्तेमाल से हड्डियों और जोड़ों को ताकत मिलती है। दरअसल हड़जोड़ में एंटीऑक्सीडेंट, दर्द निवारक और हड्डी को जोड़ने वाले कई गुण मौजूद होते हैं। जिससे टूटी हड्डी की हीलिंग तीव्र होती है। इसलिए हड़जोड़ कई जगह पर हड्डीजोड़ भी कहा जाता है।

इसके अलावा हड़जोड़ पेट संबंधी समस्या, पीरियड्स रेगुलेट, पाइल्स, नेत्र से संबंधित रोग, मिर्गी, ल्यूकोरिया, मोच, गाउट, अस्थमा, एलर्जी, अल्सर आदि रोगों के उपचार में भी काम आता है। कुछ रिसर्च के अनुसार यह हड्डियों को मजबूत बनाने के अलावा जोड़ों के दर्द, हृदय रोग, डायबिटीज और स्ट्रोक जैसी बीमारियों से भी बचाने का काम करता है।

 
क्या है हड़जोड़?

क्योंकि हड़जोड़ टूटी हुई हड्डियों को फिर से जोड़ने में सहायता करता है। इसलिए हड़जोड़ को कुछ स्थानों पर अस्थि (हड्डी) जोड़ चूर्ण भी कहा जाता है। इसका पेड़ देखने में बेल की तरह होता है। जो मीठा, कड़वा, तीखा, गर्म, छोटे-बड़े, रूखी, कफ को खत्म करने वाला, पाचक और शक्ति रहित होता है। इसलिए इसे एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भी उगाया जाता है। इसके अलावा यह थाईलैंड में सबसे अधिक उपयोग में लाए जाने वाले औषधीय पौधों में से एक है। क्योंकि इस पौधे के लगभग सभी हिस्सों का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है।

हड़जोड़ का वानस्पातिक नाम सीस्सस क्वॉड्रंगुलारिस (Cissus quadrangularis Linn.) है। जो विटासिए (Vitaceae) परिवार से संबंध रखता है। इसे एडिबल स्टेमड वाइन (Edible stemmed vine), विंग्ड ट्री वाइन (Winged tree vine), वेल्ड ग्रेप (Veld grape), हड़संघारी, चतुर्धारा, हड़जोड़ या हड़जोड़ी, आदि के नामों से जाना जाता है।

 
हड़जोड़ के फायदे:
  • हड़जोड़ के 5-10 मिली लीटर रस को गुनगुना करके पीना, अस्थमा और सांस से संबंधित बीमारियों के लिए अच्छा होता है।
  • हड़जोड़ के छिलका रहित तना और उड़द की दाल को पीसकर, तिल के तेल में छानकर उपयोग करने से गठिया रोग में राहत मिलती है।
  • 15 दिनों तक हड़जोड़ का नियमित सेवन करने से टूटी हड्डियों के जुड़ने में जल्दी लाभ मिलता है।
  • उम्र बढ़ने पर जोड़ों से संबंधित परेशानी शुरू होना आम बात है। ऐसे में हड़जोड़ का सेवन करने से गठिया और जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
  • चूंकि हड़जोड़ एक डाईजेस्टिव औषधि है। जिसमें कुछ कार्मिनेटिव गुण पाए जाते हैं। जिस वजह से यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में मददगार साबित होता है।
  • हड़जोड़ के औषधीय गुणों के कारण इसके पत्तों को गर्म करके रीढ़ की हड्डी की सिकाई करना, रीढ़ की हड्डी के दर्द के लिए फायदेमंद साबित होता है।
  • हड़जोड़ में दर्दनिवारक गुण होते हैं। इसलिए इसका सेवन बदन दर्द को ठीक करने में कारगर साबित होता है। इसके लिए सोंठ, काली मिर्च और हड़जोड़ का पेस्ट (1-2 ग्राम) का सेवन करना चाहिए।
  • मोच आने पर हड़जोड़ स्वरस में तिल का तेल मिलाकर, उसे अच्छे से पका लें। अब इस तेल को छानकर प्रभावित हिस्से पर लगाने से मोच में फायेदा मिलता है।
  • जले हुए घाव और कीट के काटने पर हड़जोड जड़ के रस का लेप करना लाभप्रद साबित होता है।
  • कटने और छिलने पर होने वाली ब्लीडिंग को कम करने में भी हड़जोड़ लाभकारी सिद्ध होता है।
  • हड़जोड़ के 2-4 मिली तने और जड़ के रस को पीने से दांत, नासिका और बवासीर के रक्तस्राव में आराम मिलता है।
  • ज्यादा मसालेदार भोजन और असमय खाना खाने से पेट की समस्या होती है। ऐसे में हड़जोड़ का घरेलू इलाज काफी मददगार साबित होता है। इसके लिए 5-10 मिली हड़जोड़ पत्ते के रस में शहद मिलाकर पीना पाचन क्रिया को ठीक और पेट संबंधित अन्य समस्याओं में आराम करता है।
  • हड़जोड़ के तने और पत्तों को पीसकर लेप करने से डिलीवरी के बाद होने वाले दर्द में राहत मिलती है।
  • महिलाओं में होने वाला सफेद पानी का स्राव कमजोरी का बड़ा कारण होता है। ऐसे में हड़जोड़ के 5-10 मिली के रस का नियमित सेवन करना, महिलाओं की सफेद पानी की समस्या को कम करने में मदद करता है।
हड़जोड़ के उपयोगकारी भाग-
  • हड़जोड़ की जड़
  • हड़जोड़ की छाल
  • हड़जोड़ का पत्र या पत्ता
  • हड़जोड़ का तना
कहां पाया या उगाया जाता है हड़जोड़?

भारत के उष्ण प्रदेशों और पश्चिमी हिमालय में उत्तराखण्ड से लेकर पश्चिमी घाट के वनों तक हड़जोड़ पाया जाता है। भारत के अलावा एशिया, अफ्रीका और थाईलैंड जैसे देशों में भी हड़जोड़ को देखा जा सकता है।

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Types and Benefits of Green Cardamom

Posted 13 December, 2021

Types and Benefits of Green Cardamom

Be it Biryani, Kheer, Sweets or any other dish to eat! Cardamom is used in all to enhance the aroma and taste. Cardamom is mostly used as a spice and mouth freshener. It is also used to enhance the aroma of tea but the properties of cardamom are not limited only to enhance the aroma of dishes or remove bad breath. Apart from this, cardamom is also very effective in the treatment of cold-cough, vomiting, digestive and urinary problems etc.

 

Types of Cardamom

There are two types of cardamom- small cardamom and big cardamom. Small cardamom is used to remove bad breath, sweets, tea, kheer and other dishes while large cardamom is used as a spice. There is a difference in colour, taste and size in both small and large cardamom where small cardamom is green in colour and the colour of big cardamom is black. On the basis of their colours, in some places, people also know them as black cardamom and green cardamom.

 

Nutrients in Green Cardamom

Nutrients like calcium, magnesium, iron, carbohydrates, dietary fibres, potassium, and phosphorus are found in green cardamom. Apart from these, many such nutrients are present in cardamom, which are very beneficial for health.

 

Benefits of Small cardamom

For digestion-

Due to wrong eating habits, improper lifestyle, today every person faces the problem of indigestion, acidity, gas and constipation. In such a situation, the use of green cardamom can get rid of the problem of constipation and acidity because small cardamom has anti-inflammatory effects and stomachic (promotes appetite and improves digestion) properties which work to keep the digestive system healthy and reduce stomach irritation due to which it provides relief in acidity, indigestion, constipation and other stomach related problems.

 

To increase appetite-

Small cardamom improves the digestive system due to which the metabolism of the body works properly, as a result, hunger increases. Therefore, people who do not feel hungry should definitely consume small cardamom.

 

For oral health-

According to the Journal of Dental Research, green cardamom seed oil has an antiseptic (bacteria-killing) effect which works to eliminate the bacteria that cause bad breath in the mouth. On this basis, green cardamom also helps in removing oral infections, removing the bad smell of the mouth.

 

For diabetes-

According to research conducted by BMC Complementary Medicine and Therapies, green cardamom has antioxidant (free radical destroying effect) effects which help in reducing the increased blood sugar by increasing the activity of insulin in the body. Therefore, green cardamom is considered good for a person suffering from type-2 diabetes.

 

For Anxiety-

According to a research report published on the NCBI site, small cardamom helps in reducing anxiety and stress. Therefore, small cardamom is considered good for getting relief from anxiety.

 

For memory-

According to research published on the NCBI site, the medicinal properties present in small cardamom prove to be helpful in learning something new and increasing memory. hence it is used in tea or other food ingredients.

 

For body detoxification-

Green cardamom helps in flushing out the toxic and harmful substances present in the body. According to experts, both small and big cardamom has the ability to remove impurities from the body with the help of water. Therefore, both green and large cardamom is considered good for keeping the body free from toxins. 

 

Uses of small cardamom

  • Small cardamom is used in dishes like pulao, biryani, kheer.
  • It is also used to enhance the taste of sweets.
  • Green cardamom is also used by adding it to tea.
  • Small cardamom powder can also be used with lukewarm water and honey.

Side effects of green cardamom

  • Green cardamom helps in reducing high blood sugar. Therefore people with low sugar should not use it.
  • Since small cardamom works to improve the digestive system, consuming too much of it can cause diarrhoea.
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Aloe Vera- A plant for Various Cure

Posted 17 March, 2022

Aloe Vera- A plant for Various Cure

Aloe Vera (Aloe barbadensis miller), a plant that is commonly found in every household, is a wonder plant that is in use for thousands of years now for treating acne, wrinkles and various other skin problems due to its antibacterial, antiviral, and antiseptic and antioxidant properties. This plant is not only used for alleviating skin problems but is used for treating various health problems, each of which we will look at in detail in this article.

 

Aloe vera is a thorny, perennial plant that is pea-green in colour. It is mainly found in the dry regions of Africa, Europe, Asia, and America. Both the gel and the latex of aloe vera are useful. The gel of aloe vera is translucent & is bitter in taste and is well-known for its healing properties. This translucent gel comprises around 96% water, few organic and inorganic compounds, Vitamin A, B12, C and E as well as a type of protein that contains major amino acids found in the body.

 

Health Benefits of Aloe Vera

Promote wound healing-

Aloe vera gel helps to increase the amount of collagen in wounds and also change the composition of collagen. This leads to an increase in the cross cross-linking of collagen, thereby promoting wound healing.

 

Helps in improving blood sugar levels-

Oral intake of aloe vera can help reduce blood sugar and HbA1c in people with type 2 diabetes. Regular intake of aloe vera assists in stimulating the secretion of insulin which is helpful for people with diabetes.

 

For Gastroesophageal reflux disease(GERD) disease-

Gastroesophageal Reflux Disease (GERD) is a condition in which the stomach acid travels back from the stomach to the food pipe. Since Aloe Vera is a powerful detoxifier and has various anti-inflammatory properties that fight inflammation, it’s great for people having GERD. It is also beneficial in constipation due to its laxative properties.

 

For Dental problems-

Based on a study published in the Ethiopian Journal of Health Sciences, the extract of aloe vera is a safe and effective mouthwash that can be a good alternative to chemical-based mouthwashes. Aloe vera contains natural ingredients that include vitamin C, which can reduce plaque and provide relief in bleeding or swollen gums. Apart from this, it is also helpful in providing relief in canker sores.

 

In boosting metabolism which aids weight loss-

Aloe vera is rich in vitamins, minerals that support weight loss as well as amino acids, enzymes and sterols. All of these, not only helps in burning fat but also increases utilisation and absorption of nutrients by the body. It also contains vitamin B which helps to convert the stored fat into energy thereby boosting metabolism. This conversion of fat into energy leads to weight loss.

 

Benefits for Skin and Hair

For Psoriasis-

Aloe vera might prove to help reduce the symptoms of psoriasis. The lubrication properties of aloe vera might reduce the number of flare-ups and also keep the skin hydrated.

 

For Oily skin-

Aloe vera is a rich source of vitamin C, E and beta carotene and also has various anti-ageing qualities. It nourishes and moisturises the skin taking away the excess oil from the skin. Thus, it is great for people with oily skin.

 

For Herpes sores-

Aloe vera is rich in wound healing properties which may soothe and heal herpes lesions. For this, apply pure aloe vera gel extract directly to the affected area without diluting.

 

For Acne-

The anti-inflammatory effects of aloe vera are helpful in the treatment of inflammatory forms of acne. For this, apply aloe vera gel with cotton directly on the pimple regularly thrice a day.

 

For Anal fissures-

Aloe vera assists in healing the symptoms and anal fissures due to its pain-relieving properties. According to a few clinical studies applying a cream having aloe vera extract can help chronic anal fissures. For this, apply aloe vera gel on the affected area, multiple times a day.

 

For Dandruff-

Aloe vera gel has a moisturizing effect on dry skin and helps reduce skin irritation. Aloe vera contains enzymes that help reduce inflammation. It also has antioxidant properties that prevent damage to skin cells. For this, apply aloe vera gel directly on the scalp.

 

For Hair growth-

Using aloe vera helps in the growth of hair follicles and thus helps in boosting the regrowth of hair. Since aloe vera is rich in enzymes that stimulate new growth, it can effectively be used for hair growth. For this, various hair masks can be prepared by mixing aloe vera with fenugreek seeds, olive oil, or castor oil.

 

Uses of Aloe Vera

  • Aloe vera can be consumed by extracting the juice.
  • Aloe Vera gel can be used as a pack for the skin and hair.
  • The application of aloe vera gel provides relief from various ailments, as listed in the previous section of this article.
  • Various aloe vera supplements in the market are used for health benefits.
  • Aloe vera oil and powder are also used for skin & hair.

Side effects of using Aloe vera

  • Aloe Vera used in a sufficient amount has no harmful effects. However, excessive use may lead to burning and itching.
  • Oral use of aloe vera may lead to abdominal pain and cramps as it contains latex.
  • Excessive use of aloe vera on the skin may lead to drying of the skin.
  • Consumption of leaf extracts of aloe vera for a long time may cause acute hepatitis.
  • Those who use glucose-lowering medicines for heart problems should use Aloe vera only after consulting a doctor as it may reduce the glucose level alarmingly.
  • Oral consumption of Aloe vera, used in both gel and latex form may not be safe during pregnancy and for women who are breastfeeding. Therefore, they should use aloe vera only after taking advice from their doctor.
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Nutrients and Benefits of Banyan Tree

Posted 17 March, 2022

Nutrients and Benefits of Banyan Tree

Every day we see many trees on the roadside which gives us shade and oxygen. One of these trees is the banyan tree which is considered revered in India. This simple looking tree has many health benefits. Due to its medicinal properties, it also proves to be helpful in curing all physical problems. Hence, it has been used as a medicine in Ayurveda for years.

 

The scientific name of the banyan tree is Ficus bengalensis and is commonly used to treat diseases like dysentery, diarrhoea and piles. It effectively helps in removing female infertility and earache. Apart from this, banyan is also a good option for the treatment of teeth and gums.

 

About Banyan tree

Banyan tree comes under the category of evergreen trees. The height of this tree is about 21 meters and the length of its leaves is 10-20 centimetres. Many roots grow from their stems. Condensed milk comes out when the banyan leaves are broken. The banyan tree has the characteristic of being alive for hundreds of years. Its root, bark, leaves, flowers and fruits are used for various Ayurvedic benefits. In other and simple words, all parts of this tree are rich in medicinal properties which are used in Ayurveda.

 

Nutrients of Banyan Tree

Many nutrients are found in the banyan tree. It contains a good amount of glycosides, B sitosterol, leukocidin, ester, sterol, Friedelin and quercetin. Apart from these, flavonoids, bergapten, inositol, galactose, rutin, leucoplast, tannins, ketones, and polysaccharide sitosterol are also present in it.

 

Benefits of Banyan tree

For teeth and gums-

Banyan has antioxidant (inflammation) and anti-microbial (bacteria-destroying) effects which help in reducing tooth decay and inflammation of the gums. After chewing and softening the banyan root, using it as a scrub is good for teeth and gums. By doing this many problems related to teeth can be cured.

 

For immunity-

According to Ayurvedic experts, butanol, hexane, chloroform and water are present in banyan leaves. All these elements combined work to increase the immunity of the body. Therefore, consuming the leaves of the banyan tree is good for immunity.

 

For diarrhoea-

The milk from the banyan tree contains elements like serine, sugar, albumin, resin and malic acid which work to cure problems like diarrhoea, dysentery (blood with diarrhoea) and piles. Hence the milk of the banyan tree is considered good for diarrhoea.

 

For joint pain-

Sometimes the weakening of immunity also causes joint pain (arthritis) but according to Ayurvedic experts, butanol, hexane, chloroform and water are present in banyan leaves. All these elements combined work to increase the immunity of the body. Apart from this, banyan also has anti-inflammatory properties which help in reducing inflammation of the joints. Therefore, banyan has also been considered useful for joint pain (arthritis).

 

For diabetes-

The root of the banyan tree has hypoglycemic (blood sugar lowering) properties that help overcome diabetes. For this, it is advised to drink the extract of the root of the banyan tree.

 

For depression-

According to the research done on the banyan tree, there are such elements in the entire banyan tree, which can reduce anxiety and stress and increase mental capacity. Therefore, the benefits of banyan also include combatting depression.

 

For infertility and impotence-

Consuming milk from the banyan tree helps to increase sperm count in men and to overcome many sexual problems in women. Therefore, the milk of the banyan tree is considered a good alternative to infertility and impotence.

 

For haemorrhoids-

The milk from the banyan tree contains elements like serine, sugar, albumin, resin and malic acid which together works to cure problems like diarrhoea, dysentery (blood with diarrhoea) and piles. Hence, the banyan tree is said to be good for piles.

 

For hair-

Many times hair fall also starts due to bacterial infection. Since banyan has anti-microbial properties which reduce hair fall by removing the bacterial infection. For this, a paste of the bark and leaves of the banyan tree has to be made and applied to the hair. By doing this the hair can be kept healthy for a long time.

 

For skin-

Various parts of the banyan tree have anti-microbial and anti-inflammatory effects that prove to help remove many skin-related disorders. 

 

Uses of Banyan tree

  • Banyan fruit can be consumed directly.
  • Banyan milk is also consumed in some special situations.
  • A paste made from the banyan tree’s root, bark, and leaves can be used on the skin and hair.
  • Banyan milk and paste are used as an ointment.
  • The extracts of the bark, root and leaves of the banyan can be drunk.

Precautions while using Banyan Tree

  • On regular consumption of any medicine, use Banyan only after consulting a doctor.
  • People who are allergic to banyan bark, root, leaves and milk should also use it only after contacting the doctor.
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तुलसी के फायदे, उपयोग और औषधीय गुण

Posted 24 May, 2022

तुलसी के फायदे, उपयोग और औषधीय गुण

तुलसी एक औषधीय पौधा है। जिसमें विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। तुलसी में सभी रोगों को दूर करने और शारीरिक शक्ति बढ़ाने वाले गुण भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। इसलिए इस औषधीय पौधे को प्रत्यक्ष देवी कहा गया है। तुलसी के धार्मिक महत्व के कारण हर घर आगंन में इसके पौधे लगाए जाते हैं। तुलसी की कई प्रजातियां मिलती हैं। जिनमें श्वेत व कृष्ण प्रमुख हैं। इन्हें राम तुलसी और कृष्ण तुलसी भी कहा जाता है। चरक संहिता और सुश्रुत-संहिता में भी तुलसी के गुणों के बारे में विस्तार से वर्णन है। तुलसी का पौधा आमतौर पर 30 से 60 सेमी तक ऊंचा होता है और इसके फूल छोटे-छोटे सफेद और बैगनी रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जुलाई से अक्टूबर तक होता है। औषधीय उपयोग की दृष्टि से तुलसी की पत्तियां ज्यादा गुणकारी मानी जाती हैं। इन्हें सीधे तौर पर खाया जाता है। तुलसी के पत्तों की तरह तुलसी बीज के फायदे भी अनगिनत होते हैं। तुलसी के बीज और पत्तियों का चूर्ण भी प्रयोग में लाया जाता है। इन पत्तियों में कफ वात दोष को कम करने, पाचन शक्ति एवं भूख बढ़ाने और रक्त को शुद्ध करने वाले गुण होते हैं। इसके अलावा तुलसी पत्ते के फायदे बुखार, दिल से जुड़ी बीमारियां, पेट दर्द, मलेरिया और बैक्टीरियल संक्रमण आदि में बहुत फायदेमंद हैं। तुलसी के औषधीय गुणों में राम तुलसी की तुलना में श्याम तुलसी को प्रमुख माना गया है।

 
तुलसी के फायदे:
सिर दर्द से आराम दिलाती है तुलसी-

अक्सर सिर दर्द की समस्या से परेशान रहने वाले लोगों के लिए तुलसी तेल की एक-दो बूंदें नाक में डालना फायदेमंद होता है। इस तेल को नाक में डालने से पुराने सिर दर्द और सिर से जुड़े अन्य रोगों में आराम मिलता है।

 
कान के दर्द और सूजन में लाभदायक-

तुलसी की पत्तियां कान के दर्द और सूजन से आराम दिलाने में असरदार है। अगर कान में दर्द है तो तुलसी-पत्र-स्वरस को गर्म करके 2-2 बूंद कान में डालें। इससे कान दर्द से जल्दी आराम मिलता है। इसी तरह अगर कान के पीछे वाले हिस्से में सूजन (कर्णमूलशोथ) है। तो इससे आराम पाने के लिए तुलसी के पत्ते तथा एरंड की कोंपलों को पीसकर उसमें थोड़ा नमक मिलाकर गुनगुना करके लेप लगाएं। कान दर्द से राहत दिलाने में भी तुलसी के पत्ते खाने से फायेदा मिलता है।

 
साइनसाइटिस या पीनस रोग में लाभदायक-

साइनसाइटिस के मरीज तुलसी की पत्तियां या मंजरी को मसलकर सूघें। इन पत्तियों को मसलकर सूंघने से साइनसाइटिस रोग से जल्दी आराम मिलता है।

 
दांत दर्द से आराम-

तुलसी की पत्तियां दांत दर्द से आराम दिलाने में भी कारगर हैं। दांत दर्द से आराम पाने के लिए काली मिर्च और तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर दांत के नीचे रखने से दांत के दर्द से आराम मिलता है।

 
गले से जुड़ी समस्याओं में फायदेमंद-

सर्दी-जुकाम होने पर या मौसम में बदलाव होने पर अक्सर गले में खराश या गला बैठ जाने जैसी समस्याएं होने लगती हैं। तुलसी की पत्तियां गले से जुड़े विकारों को दूर करने में बहुत ही लाभप्रद हैं। गले की समस्याओं से आराम पाने के लिए तुलसी के रस को हल्के गुनगुने पानी में मिलाकर उससे कुल्ला करें। इसके अलावा तुलसी रस-युक्त जल में हल्दी और सेंधा नमक मिलाकर कुल्ला करने से भी मुख, दांत और गले के सब विकार दूर होते हैं।

 
सूखी खांसी और दमा से आराम-

तुलसी की पत्तियां अस्थमा के मरीजों और सूखी खांसी से पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत गुणकारी हैं। इसके लिए तुलसी की मंजरी, सोंठ, प्याज का रस और शहद को मिला लें और इस मिश्रण को चाटकर खाएं। इसके सेवन से सूखी खांसी और दमे में लाभ होता है।

 
पीलिया में लाभदायक है तुलसी-

पीलिया ऐसी बीमारी है। जिसका सही समय पर इलाज न करवाने से यह आगे चलकर गंभीर बीमारी बन जाती है। 1-2 ग्राम तुलसी के पत्तों को पीसकर छाछ (तक्र) के साथ मिलाकर पीने से पीलिया में लाभ होता है। इसके अलावा तुलसी की पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीने से भी पीलिया में आराम मिलता है।

 
डायरिया और पेट की मरोड़ से आराम-

गलत खानपान या प्रदूषित पानी की वजह से अक्सर लोग डायरिया की चपेट में आ जाते हैं। खासतौर पर बच्चों को यह समस्या बहुत होती है। तुलसी की पत्तियां डायरिया, पेट में मरोड़ आदि समस्याओं से आराम दिलाने में कारगर हैं। इसके लिए तुलसी की 10 पत्तियां और 1 ग्राम जीरा दोनों को पीसकर शहद में मिलाकर उसका सेवन करें।

 
पथरी दूर करने में फायदेमंद है तुलसी-

पथरी की समस्या होने पर भी तुलसी का सेवन करना फायदेमंद रहता है। इसके लिए तुलसी की 1-2 ग्राम पत्तियों को पीसकर शहद के साथ खाएं। यह पथरी को बाहर निकालने में मददगार होती है। हालांकि पथरी होने पर सिर्फ घरेलू उपायों पर निर्भर न रहें बल्कि डॉक्टर से भी परामर्श लेते रहे।

 
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार-

तुलसी के नियमित सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जिससे सर्दी-जुकाम और अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है। 20 ग्राम तुलसी बीज चूर्ण में 40 ग्राम मिश्री को पीसकर रख लें। सर्दियों में इस मिश्रण की 1 ग्राम मात्रा का कुछ दिन सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और वात एवं कफ से जुड़े रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा 5-10 मिली कृष्ण तुलसी-पत्र स्वरस में दोगुनी मात्रा में गाय का गुनगुना घी मिलाकर सेवन करने से भी वात और कफ से जुड़े रोगों से आराम मिलता है।

 
सांसों की दुर्गंध दूर करे तुलसी का उपयोग-

सांसों की दुर्गन्ध ज्यादातर पाचन शक्ति के कमजोर होने के कारण होती है। तुलसी अपने दीपन और पाचन गुण के कारण सांसों की दुर्गन्ध को दूर करने में सहायक होती है। इसमें अपनी स्वाभाविक सुगंध होने के करण भी यह सांसों की दुर्गन्ध का नाश करती है।

 
चोट लगने पर तुलसी का उपयोग-

चोट लगने पर भी तुलसी का उपयोग किया जाता है। क्योंकि इसमें रोपण और सूजन को कम करने वाला गुण होता है। तुलसी का यही गुण चोट के घाव एवं उसकी सूजन को भी ठीक करने में सहायक होता है।

 
तुलसी के नुकसान:
  • तुलसी खून को पतला करती है।
  • सर्जरी के तुरंत बाद तुलसी को नहीं खाना चाहिए।
  • हाइपोथायरायडिज्म न करें तुलसी का सेवन।
  • फर्टिलिटी को कर सकती है प्रभावित।
  • गर्भवती महिलाएं तुलसी का सेवन न करें।
तुलसी कहां पायी जाती है?

तुलसी के पौधे के लिए किसी ख़ास तरह के जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है। इसे कहीं भी उगाया जा सकता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि तुलसी के पौधे का रख-रखाव ठीक ढंग से न करने पर या पौधे के आसपास गंदगी होने पर यह पौधा सूख जाता है।

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Know about Chopchini and its Benefits

Posted 14 December, 2021

Know about Chopchini and its Benefits

Chopchini is a thorny plant that has a thick rhizome and spreading. This plant grows only by spreading on the ground. Its leaves are pointed and elliptical. Its flowers are small in size and white in colour. Its fruits are spherical fleshy, juicy and bright red in colour. Its roots are tuberous, heavily knotted and fibrous.

Chopchini has a pungent and bitter taste and is warm by nature. It is light to digest, pacifying Vata, Pitta and Kapha. It works to increase appetite, cleans stool and urine and gives strength to the body. It maintains youth and sexual power and cures joint pain. It is also helpful in problems like gas, constipation, body ache and arthritis.

The best Chopchini is identified by its colour that is, it is red or pink in colour. Its taste is sweet and is smooth and shiny. It is of the same colour inside and outside. Apart from this, when it is put in water, it sinks in it.

 
Benefits of Chopchini

Chopchini is used as a spice in India but apart from this, Chopchini has many benefits. According to Ayurveda, Chopchini is a classy herb that is used for the prevention of many diseases. Chopchini is a good remedy to reduce many diseases like headache, sexual dysfunction, joint pain, skin diseases. The various benefits of Chopchini are-

 
For uric acid-

Taking half a teaspoon of Chopchini powder regularly for a few days on an empty stomach in the morning and half a teaspoon with plain water at bedtime reduces the problem of uric acid.

 
For asthma-

Put about 100 grams of Chopchini in 800 ml of water, boil it till the drink reduces to 300 ml remains. Now let it cool down and filter it. Taking 25 grams to 75 grams of this decoction daily provides benefits in respiratory diseases (asthma).

 
For gout-

Boil chopchini in milk and mix cardamom, mastangi and cinnamon in it and take it twice a day, it provides relief in gout. Apart from this, making a decoction by mixing Chopchini and Gavajban, massaging the knees with it, ends knee pain and bone weakness.

 
For pain from hip to toe-

Grind chopchini a little coarsely, soak it in water at night and keep it. Boil that chopchini in the morning till half the water is gone, filter it and drink it after it cools down a bit. This reduces the pain from hip to toe.

 
For the problem of dreaming-

Chopchini plays a positive role in removing the weakness of the body and removing the troubles of dreaming. Apart from this, its regular use also helps in getting rid of ejaculation.

 
For masculine power-

Make a powder by mixing an equal quantity of mocharas, dry ginger, black pepper, fennel, both muesli and vavidang in chopchini. Now take 10 grams of this powder and drink sugar-candy milk mixed with this powder. By doing this, there is an improvement in masculine power. Apart from this, the chemical properties present in Chopchini also help in removing the semen defects of the body.

 
For syphilis-

Taking the powder of Chopchini regularly in the morning and evening is beneficial in syphilis. At the same time, it is good to drink a decoction of Chopchini or mix honey in it, if the venom of syphilis spreads excessively.

 
Some other benefits of Chopchini-
  • Taking the powder of Chopchini mixed with butter and sugar candy provides relief in headaches.
  • Taking Chopchini powder with honey is beneficial in skin disorders.
  • Mixing sugar, sugar candy and ghee in Chopchini powder and consuming it, or mixing it with cow milk and drinking it provides benefits in fistula disease.
  • Diseases caused by tremor (Parkinson), paralysis and vata dosha can be avoided by taking the powder of Chopchini with honey.
  • Taking the powder of Chopchini mixed with butter, sugar candy and honey provides benefit in goitre disease.
  • Mixing double the sugar of the Chopchini powder and taking it with milk ends physical weakness and increases strength.
  • Massaging the joints and arthritis with Chopchini oil is beneficial in arthritis and joint pain.
Precautions for using Chopchini
  • People with stomach problems should not consume Chopchini in large quantities.
  • If there is any problem after consuming Chopchini, it is good to take pomegranate or its juice.
Where is Chopchini found?

Chopchini is found in the hilly areas of India like Uttarakhand, Assam, West Bengal, Sikkim and Manipur. In these areas, Chopchini can be seen at an altitude of 1500-2400 meters. Apart from this, it is also found in China, Japan, Myanmar and Nepal.

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Benefits & Uses of Wheatgrass

Posted 14 December, 2021

Benefits & Uses of Wheatgrass

Nature has provided many things to fight every small and big problem related to health and there are various ingredients that have a positive effect on health. One of these nature-given gifts is "wheatgrass" which is used as medicine.

 

Almost everyone must have seen the wheat crop which is like green grass in the beginning. This green grass is called wheatgrass and is a member of the Tritcumaestivum Linn family. This green grass is very beneficial for health as it is rich in flavonoids, chlorophyll, vitamin-A and vitamin C. Apart from this, it also has anti-diabetic, obesity, anti-cancer and oxidative stress-reducing properties.

 

Benefits of Wheatgrass

For resistance-

Oligosaccharides are found in wheatgrass which is also considered as a short chain of sugar molecules. It contains a component called Malto heptose in which an immunomodulatory effect is found which works to activate the cells that improve immunity and avoid all kinds of diseases.

 

For teeth-

Vitamin C is found in abundance in wheatgrass which works to keep gums healthy and teeth strong. Apart from this, wheatgrass juice proves to be an excellent mouthwash for sore throat and pyorrhea. It prevents tooth decay and also reduces tooth pain.

 

For Digestion-

Wheatgrass is considered good for digestive problems. These troubles include stomach and intestinal ulcers, indigestion, constipation, flatulence, vomiting, nausea, acidity etc. Vitamin B is found in wheatgrass juice which helps in curing digestive disorders. The protein and amino acids are also present in wheatgrass which helps in providing strength to the digestive system.

 

For sugar present in the blood-

Wheatgrass has antihyperglycemic and antioxidant properties which keep the level of sugar present in the blood balanced and reduce the risk of diabetes. Therefore, the use of wheatgrass is good in diabetes.

 

For cholesterol-

The increase in cholesterol in the body gives rise to many health-related problems among which heart-related problems are the main ones. Since wheatgrass has hypolipidemic properties which help in increasing the beneficial cholesterol (HDL) by reducing the level of harmful cholesterol in the body. Therefore, using wheatgrass for cholesterol-related problems proves beneficial.

 

For swelling-

Often people have many problems due to injury or swelling on the joints, joint pain, osteoarthritis and bone problems. It is good to use wheatgrass to reduce such inflammations and problems because wheatgrass has anti-inflammatory properties which proved to be effective in relieving swelling and pain.

 

To lose weight-

A good amount of potassium is found in wheatgrass which helps in controlling body weight. Apart from potassium, it also contains many such nutrients, including fibre, which can help in weight loss. Therefore, wheatgrass is considered a good remedy for weight loss.

 

For gout problem-

Wheatgrass juice is helpful in reducing arthritis-related problems. It has anti-inflammatory properties which help in reducing the swelling and pain caused by arthritis.

 

For cancer cells-

According to research, anticancer properties are found in wheatgrass which helps to keep the risk of cancer away and prevent cancer-causing cells from growing. Therefore, using wheatgrass can prove beneficial to reduce the risk of cancer.

 

To protect from the ultraviolet rays of the sun-

The skin irritation caused by ultraviolet rays of the sun can be reduced with the help of wheatgrass because a component called chlorophyllin is found in wheatgrass which aids in the healing of skin wounds, burns and ulcers. Apart from this, vitamin-A is also found in wheatgrass juice which helps in getting rid of many skin related problems.

 

For hair-

Wheatgrass can also be used to reduce hair fall or baldness because it contains zinc which provides adequate nourishment to the hair due to which hair fall and baldness start reducing. The use of wheatgrass also stops the premature greying of hair. Along with this, the hair becomes long, thick and strong from the root by using it.

 

Uses of Wheatgrass

  • Wheatgrass can be used to make juice.
  • Wheatgrass juice is mixed with other juices and drunk.
  • Wheatgrass is used as a smoothie.
  • It is also consumed in powder form.
  • Wheatgrass powder is also consumed by mixing it with milk.
  • Wheatgrass paste is made and applied to the face.
  • Applying wheatgrass paste on the affected area with burns and swelling provides relief.
  • Applying wheatgrass paste on the affected area with burns and swelling provides relief.
  • Wheatgrass paste is used to reduce dark circles under the eyes.

Side effects of Wheatgrass

  • People who have low sugar level should consume wheatgrass with caution because it has an anti-hyperglycemic effect which works to reduce the level of sugar present in the blood. Therefore, consuming too much of it can reduce the sugar level very much.
  • A good amount of fibre is found in wheatgrass, therefore, excessive consumption of it can cause gas, bloating and cramps in the stomach.
  • Excessive consumption of wheatgrass juice can cause nausea.
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Benefits & Side effects of Guggul

Posted 14 December, 2021

Benefits & Side effects of Guggul

Guggul is a resinous substance that is obtained from the tree. It is a gum resin emitted by plants during extreme heat. This plant grows as a small tree and reaches 4-5 feet in height. Its branches are prickly. While the fresh guggul is soft and sticky, it becomes a solid substance when dried. It is hot and bitter. To obtain gum, a circular cut is made in the main stem of its plant. Through these cuts, the aromatic liquid rapidly solidifies to a golden brown or reddish-brown colour. The resin obtained is Guggul which is used for medicinal purposes. It contains many components like vitamins, antioxidants, and chromium, which help cure many diseases, especially diseases like gas, bloating, pain, stones, piles, chronic cough, increase in sexual power, asthma, joint pain, inflammation of lungs, etc.

 

Benefits of Guggul

Effective in diabetes-

Guggul is very beneficial for diabetic patients. It works by regulating the production of insulin and controls blood sugar and protects the pancreas due to which the production of insulin is correct. Therefore, diabetic patients must take a spoonful of it with lukewarm water in the morning and evening.

 

Regulates cholesterol-

Guggul has blood purifying and rejuvenating properties. It helps in removing toxins from the body and helps in curing skin diseases caused due to accumulation of toxins. Guggul improves the body's immune system and regulates lipid levels. It is also beneficial in reducing cholesterol and triglyceride levels.

 

Guggul Benefits for Weight Loss-

Obesity is the main cause of heart disease, diabetes, joint pain, PCOS and other metabolic disorders. Guggul is specially used for weight loss, that is why its consumption is considered good for people who want to lose weight.

 

Useful for skin-

Guggul is used to treat ulcers and wounds. It is mixed with coconut oil and used on the affected skin area.

 

Remove acidity-

Mix 1 teaspoon of guggul powder in a cup of water and keep it. Filter it after about an hour. Consuming this mixture after meals ends acidity.

 

Relief in joint pain-

Consuming guggul is beneficial if there is any problem related to bones in the body. Taking a spoonful of its powder with lukewarm water in the morning and evening helps in swelling, post-injury pain and healing of broken bones.

 

Remove swelling-

Guggul has anti-inflammatory properties which help in relieving pain and inflammation. Consuming its powder also helps a lot in strengthening the nervous system of the body.

 

Effective in blisters-

In case of mouth ulcers, keep guggul in the mouth or dissolve it in warm water and gargle with it 3 to 4 times a day. By doing this, sores, blisters and burns inside the mouth are cured.

 

Will get rid of baldness-

People who are troubled by baldness should apply Guggul's vinegar regularly in the morning and evening on the head where there is no hair. Apply it daily till the hair growth starts.

 

Beneficial in stomach disease-

If someone has a complaint of constipation, then the powder of guggul is beneficial for him. For this, mix 5 grams of Triphala powder in about 5 grams of guggul and take it with lukewarm water at night. This will also remove chronic constipation.

 

Side effects of Guggul

  • Guggulu stimulates blood flow during menstruation and reduces the size of the uterus, hence its use during pregnancy should be avoided.
  • Guggul affects the function of the thyroid, therefore use with caution in an underactive or overactive thyroid.
  • Consuming it in excess can be harmful to the liver. Therefore, guggul should be used with caution in liver disease or inflammatory bowel disease.
  • Breastfeeding women should also talk to their doctor before consuming it.

Where is Guggul found and grown?

In dry and rocky parts of India, it is mainly found in Rajasthan, Karnataka, Gujarat, Assam and Uttar Pradesh.

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गिलोय (गुडुची) के महत्व और फायदे

Posted 17 March, 2022

गिलोय (गुडुची) के महत्व और फायदे

औषधीय पौधों का अस्तित्व मनुष्य जन्म से काफी पहले का रहा है। पुरातनकाल से ही मनुष्य रोग से छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के पौधों का उपयोग करता आया है। जिन पौधों से औषधि मिलती है, उनमें से अधिकतम पौधे जंगली होते हैं। इन्हीं पौधों में से एक गिलोय भी हैं। जो आमतौर पर जंगली-झाड़ियों में पाई जाती हैं। इन पौधों की जड़, तना, पत्तियां, फूल, फल, बीज और छाल का उपयोग उपचार के लिए होता है।

 
आयुर्वेद में गिलोय का महत्व-

आयुर्वेद में गिलोय को उत्तम दर्जे की जड़ी-बूटी माना जाता है। इसलिए इसे जड़ी-बूटियों की रानी भी कहा जाता है। गिलोय को गुडूची, अमृता, मधुपर्णी, अमृतलता आदि नामों से भी जाना जाता है। गिलोय एक बहुवर्षीय लता होती है। इसके पत्ते पान की तरह और फल मटर के दाने जैसे होते हैं। गिलोय के पत्ते स्वाद में कड़वे, कसैले और तीखे होते हैं। गिलोय में क्षाराभ प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें पाए जाने वाले अन्य जैव-रासायनिक पदार्थ स्टेरॉयड, फ्लेवोनोइड, लिग्नेंट, कार्बोहाइड्रेट हैं। इनकी उच्च पोषक तत्व सामग्री के कारण, गिलोय का उपयोग कई हर्बल, आयुर्वेदिक और आधुनिक दवाओं के निर्माण के लिए किया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार गिलोय की बेल जिस पेड़ पर चढ़ती है उसके गुणों को भी अपने अंदर समाहित कर लेती है।  इसलिए नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय की बेल को औषधि के लिहाज से सर्वोत्तम माना जाता है। इसी कारण इसे नीम गिलोय के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता हैं। इन दोनों औषधियों का मुख्य गुण रोग-प्रतिरोधक (बीमारी से लड़ने की क्षमता) होती है। यह शरीर के तीनों दोष अर्थात वात (वायु रोग), पित्त और कफ (बलग़म) के संतुलन को बनाए रखने तथा इसके प्रकोप से होने वाली सभी तरह की बीमारियों को रोकने की क्षमता रखता है। यह कास (खांसी), तृष्णा (अधिक प्यास लगना), शूल (पेट दर्द) आदि प्रकार की बीमारीयों को भी शांत करता है। इसके अतिरिक्त गिलोय का निरंतर सेवन करने हृदय संबंधी रोग, जोड़ों के दर्द और आर्थराइट (गठिया) आदि जैसी बीमारियों में भी आराम पड़ता है।

 
गिलोय (गुडुची) के फायदे-
प्लेटलेट्स बढ़ाने में सहायक-

गिलोय डेंगू के इलाज के लिए अमृत मानी जाती है। डेंगू बुखार होने पर शरीर में प्लेटलेट्स लगातार कम होने लगती हैं। ऐसे में गिलोय की गोली या काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्लेटलेट्स काउंट बढ़ती हैं। इसके अलावा गिलोय, सोंठ, छोटी पिप्पली और गुड़ के साथ तुलसी का काढ़ा बनाकर पीना भी डेंगू में लाभप्रद होता है।

 
वायरल बुखार से छुटकारा दिलाने में मददगार-

गिलोय ज्वरनाशी है अर्थात पुराने से पुराने बुखार के इलाज में गिलोय का सेवन करना एक बेहतर विकल्प है। गिलोय में आक्सीकरण रोधी गुण होते हैं। जो स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और खतरनाक बीमारियों से लड़ने में सहायक होते हैं। गिलोय शरीर के रक्त प्लेट्स को बढ़ाता है। साथ ही वायरल इन्फेक्शन और  बुखार के लक्षणों को कम करता है। इसके लिए 4-6 सेमी लम्बी गिलोय को लेकर 400 मि.ली. पानी को में तबतक उबालें जबतक पानी का लगभग एक तिहाई भाग जल न जाए। उसके बाद उस पानी को पिएं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और बार-बार होने वाली सर्दी-जुकाम एवं बुखार से छुटकारा दिलाता है।

 
रक्त को साफ करने में सहायक-

शरीर में विषाक्त पदार्थों का समावेश होने पर उस क्रिया को खराब खून कहा जाता है। गिलोय में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं। जो विषैले कण को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करते हैं। इसके लिए गिलोय के जूस का सेवन करें। ऐसा करने से विषैले कण मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। जिससे रक्त की शुद्धि होती है।  

 
रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर-

यदि कोई व्यक्ति लगातार बीमार रहता है। जिसकी मुख्य वजह उसकी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) भी हो सकती है। ऐसे में गिलोय का काढ़ा या जूस का सेवन करना बेहद लाभप्रद होता है। इसमें मौजूद औषधीय गुण रक्त को साफ करके, हेल्दी कोशिकाओं को मेंटेन करके, शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टेरिया एवं फ्री रेडिकल्स से लड़ता है। जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

 
पेट विकारों में पहुचाएं राहत-

पेट में दर्द, सूजन, आफरा, गैस और एसिडिटी जैसी तमाम बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जो पूरे शरीर को प्रभावित करती हैं। इन रोगों से निजात पाने के लिए घरेलू उपाय के रूप में गिलोय एक बेहतर विकल्प है। इसके लिए गिलोय का सत्व या जूस का सेवन करने से पेट संबंधित विकार दूर होते हैं। इसका नियमित सेवन पाचन तंत्र को ठीक करने में मदद करता है।

 
मधुमेह (डायबिटीज) को नियंत्रण करने में मददगार-

विशेषज्ञों के मुताबिक गिलोय हाइपोग्लाईसेमिक एजेंट की तरह काम करती है। जो टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा इसमें कुछ ऐसे एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। जो शरीर में रक्तशर्करा के बढ़े स्तर को कम करती है। साथ ही यह इन्सुलिन का स्राव बढ़ाती है और इन्सुलिन रेजिस्टेंस को कम करती है। इस तरह यह मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी औषधि है।

 
जोड़ों में दर्द,गठिया के इलाज में-

गिलोय में एंटी-आर्थराइटिक गुण पाए जाते हैं। जो गठिया से आराम दिलाने में कारगर होती है। खासतौर पर जो लोग जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं। उन्हें गिलोय का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है। इसके लिए 2 से 3 चम्मच गिलोय जूस को एक कप पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट सेवन करें। इसके अलावा गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में दो बार भोजन करने के बाद सेवन भी कर सकते हैं।

 
सूजन के लिए-

गिलोय एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल्स से भरपूर होता है। जो सूजन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा गिलोय में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी का प्रभाव भी सूजन को कम करने और रोकने में सहायता करता है।

 
त्वचा विकारों को दूर करने में मददगार-

गिलोय त्वचा संबंधी विकार जैसे दाग, खाज, खुजली, धब्बे, झुर्रियां आदि में बेहद लाभदायक होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटी माइक्रोबियल, एंटी इंफ्लेमेंटरी आदि गुण पाए जाते हैं। जो त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए गुडुची के तने का लेप या पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगाने से त्वचा विकार ठीक हो जाते हैं।

 
आंखो के लिए फायदेमंद-

आंखों के लिए गिलोय कारगर औषधि है। इसके लिए गिलोय के जूस में शहद और सेंधा नमक मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को आंखों पर काजल की तरह लगाएं। ऐसा करने से आंखो की कमजोरी दूर होती हैं। इसके साथ गिलोय रस में त्रिफला मिलाकर काढ़ा बनाएं। अब 10-20 ml काढ़े में एक ग्राम पिप्पली चूर्ण एवं  शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से आंखों की रौशनी बढ़ती है। साथ ही आंखों के दर्द, चुभन, सूजन और आंखों का लाल होना, मोतियाबिंद आदि रोग शीघ्र ठीक हो जाते हैं।

 
कान के बीमारी के लिए-

गिलोय के तने का पतला पेस्ट बनाकर गुनगुना कर लें। अब इसकी 2-2 बूंदों को दिन में दो बार कान में डालें। ऐसा करने से कान का मैल (गंदगी) निकल जाता है।

 
पीलिया में फायदेमंद-

यदि कोई व्यक्ति पीलिया से पीड़ित है तो वह भी गिलोय का सेवन कर सकता है। इसके लिए गिलोय के 20-30 पत्ते लेकर पीस लें। अब उस पेस्ट को एक गिलास ताजी छांछ में मिलाकर मरीज को पिएं।

 
गिलोय के नुकसान-
  • जो लोग पहले से ही निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) के मरीज हैं उन्हें गिलोय के सेवन से परहेज करना चाहिए। क्योंकि गिलोय ब्लड प्रेशर को कम करती है। इससे मरीज की स्थिति बिगड़ सकती है।
  • किसी सर्जरी से पहले भी गिलोय का सेवन किसी भी रूप में नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह ब्लड प्रेशर को कम करती है जिससे सर्जरी के दौरान मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
  • गिलोय रक्त शर्करा के स्तर को काफी कम कर देता है। ऐसे में लो ब्लड शुगर वाले लोगों को गिलोय का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • गिलोय कई बार इम्यून सिस्टम को अधिक उत्तेजित कर सकता है। परिणामस्वरूप ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के लक्षण जैसे ल्यूपस, मल्टीपल स्केलेरोसिस और रूमेटाइड अर्थराइटिस आदि हो सकते हैं। इसलिए ऑटोइम्यून विकारों से पीड़ित लोगों को इसके सेवन से बचें या डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही गिलोय का सेवन करें।
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जानें, हरे धनिए के अनसुने फायदे, उपयोग और इसकी तासीर के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, हरे धनिए के अनसुने फायदे, उपयोग और इसकी तासीर के बारे में

सभी लोगों ने सब्जियों में डाल कर खूब हरा धनिया खाया है। खाना पकाने के बाद उसकी गार्निश करने के लिए हम लोग उसपर हरा धनिया डालते हैं। इससे न सिर्फ खाने की खूबसूरती बढ़ती है, बल्कि स्वाद भी बढ़ता है। असल में धनिया एक औषधीय पौधा है। जिसमें कई गुण पाए जाते हैं। इसका सेवन करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है। धनिया शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाने, कोलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने, डाइबिटीज और किडनी के साथ कई रोगों में लाभदायक होता है। इसमें वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन आदि मिनरल होते हैं। जो इसको अधिक पावरफुल बनाने का काम करते हैं। इसके अलावा हरे धनिया में फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, कैल्शियम, विटामिन सी और पोटोशियम आदि भारी मात्रा में पाएं जाते हैं।

 
हरे धनिए की तासीर-

हरे धनिया की तासीर ठंडी होती है। इसलिए गर्मियों के मौसम में इसका उपयोग करना सेहत के लिए फायदेमंद होता हैं। हरे धनिया का नियमित सेवन करने से पेट से जुड़ी समस्यओं में लाभ मिलता है। तासीर से ठंडा होने के कारण सर्दियों में धनिया को कम खाना चाहिए। अन्यथा इसका अधिक सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

 
हरे धनिए के फायदे-
पाचन शक्ति बढ़ाने में सहायक-

हरा धनिया खाने से न सिर्फ पेट की समस्याएं दूर होती हैं। बल्कि शरीर की पाचन शक्ति भी बढ़ती है। इसके अलावा दो चम्मच धनिया पाउडर को आधे गिलास पानी में डालकर पीने से पेट दर्द में भी राहत मिलती है।

 
प्रतिरोध क्षमता को करे बेहतर-

धनिया पत्तों से निकाले गए अर्क इथेनॉल में कई फ्लेवोनोइड यौगिक पाए जाते हैं। यह यौगिक इम्यूनोमॉड्यूलेटर की भांति काम करते हैं। जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होता है।

 
डायबिटीज में फायदेमंद-

हरा धनिया खाने से ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है। इसलिए मधुमेह से पीड़िता लोगों लिए हरा धनिया जड़ी-बूटी का काम करता है।

 
एनीमिया में आराम-

हरा धनिया आयरन से भरपूर होता है और शरीर में रक्त (खून) की मात्रा को बढ़ाने का काम करता है। जिसकी वजह से एनीमिया (खून की कमी) की समस्या दूर रहती है।

 
किडनी रोगों को कम  करने में असरदार-

हरा धनिया किडनी के लिए फायदेमंद होता है। क्योंकि धनिया में ऑक्सीडेंट, प्रोटीन और विटामिन आदि जैसे कई तत्व होते हैं। जो किड़नी के लिए लाभदायक होते हैं।

 
आंखों की रोशनी बढ़ाने में फायदेमंद-

हरे धनिया में पाए जाने वाला विटामिन ए आंखों के लिए अच्छा होता है। इसलिए नियमित रूप से इसका सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है।

 
वजन कम करने के लिए धनिया पत्ते हैं उपयोग-

धनिया पत्तों में क्वेरसेटिन (Quercetin) नामक फ्लेवोनोइड मौजूद होता हैं। इस क्वेरसेटिन में एंटीओबेसिटी गुण होते हैं। जो शरीर के वजन को कम करने में मदद करते हैं।

 
चक्कर की समस्या को कम करने में सहायक-

धनिया का सेवन चक्कर आने की समस्या को भी दूर करता है। यदि अधिक चक्कर आने पर हरा धनिया और आंवले के रस को एक गिलास पानी में मिला कर पी लें। इस प्रक्रिया को नियमित रूप से करने से चक्कर आने की समस्या से जल्द छुटकारा मिलता है।

 
कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार-

हरा धनिया न सिर्फ खाने को खुशबू देता है। बल्कि शरीर के कोलेस्ट्रॉल लेवल को भी कम करने में भी मदद करता है। इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसलिए कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित व्यक्ति के लिए हरे धनिया सेवन करना फायदेमंद उपचार है।

 
आखों से संबंधी समस्याओं में असरदार-

धनिया बीज में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। जो आंखों में होने वाली खुजली, लालिमा और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 
बालों के लिए लाभदायक-

हरे धनिया में मौजूद प्रोटीन और विटामिन बालों के विकास में मदद करते हैं। साथ ही यह बालों के झड़ने की समस्या को भी दूर करते हैं।

 
कैंसर से बचाव-

हरे धनिया में ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, विटामिन सी आदि मिनरल होते हैं। जो शरीर को कई तरह के कैंसर से बचाते हैं।

 
धनिया पत्तों का उपयोग-
  • धनिया पत्तों का इस्तेमाल सलाद के रूप किया जाता है।
  • धनिया पत्तों का उपयोग सब्जी और दाल के ऊपर टॉपिंग के रूप में किया जाता है।
  • धनिया पत्तों का इस्तेमाल चटनी बनाने के लिए किया जाता है।
  • धनिया पत्तों का उपयोग रायते और चावल की गार्निश करने के लिए किया जाता है।
  • धनिया पत्तों का प्रयोग लेमन राइस के ऊपर करने से यह स्वाद के साथ सेहत बढ़ाने में भी मदद करता है।
हरे धनिया का नुकसान-
  • जरूरत से ज्यादा हरा धनिया खाने से त्वचा पर एलर्जी (खुजली) की समस्या पैदा हो सकती है।
  • अधिक धनिए के सेवन से महिलाओं में मासिक धर्म से संबंधी समस्या पैदा होने का डर रहता है।
  • दमा से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी ज्यादा हरा धनिया खाना ठीक नहीं होता।
  • हरा धनिए फोटोसेंसेटिव होता है। इसलिए इसका अधिक सेवन करने से सनबर्न होने की समस्या बढ़ जाती है। जो एक समय के बाद स्किन कैंसर का कारण बन सकती है। इसके अलावा इसके अधिक प्रयोग से शरीर पर दाने, खुजली, चक्कर आना और सांस लेने में परेशानी सहित एलर्जी की शिकायत भी हो सकती है।
कहां पाया जाता है हरा धनिया?

हरे धनिए की खेती देश भर में की जाती है। क्योंकि यह एक आहार वाला पौधा है।

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What is Chitrak? Know about its Various names and Benefits

Posted 14 December, 2021

What is Chitrak? Know about its Various names and Benefits

You must have heard about many types of herbs or medicines to date, you must have seen them and many have also been used. But today we are going to tell you about a herb, which you are hardly familiar with before. Its name is "Chitrak". This herb is named after the flamboyant animal 'Cheetah' because like the cheetah, the medicinal properties of this herb are also very strong. The chitrak looks like a bushy and very simple plant but actually, it is very useful. According to Ayurveda, Chitrak proves to be effective in the treatment of many diseases.

 

What is a Chitrak?

Chitrak is a simple plant that remains green for a long time. Its stem is short and many smooth branches have come out from its root. The leaves of this plant are green in colour and round in shape. These plant flowers between September and November are purple, red, blue and light white in colour. Depending on the colour of these flowers, there are three types of Chitraks - white Chitraks, red Chitraks and purple or blue Chitraks. Of these three Chitraks, the white Chitrak is considered to be the most useful.

 

Different names of Chitrak

Chitraka, Chitamula, Chitramulmu, Cheetah, Chituk, Chitaparu, Vahini, Kotubeli, Chitra, Chitalkadi, Kodiveli, Sitarak, Shitaraja, Plumbago Zeylanica etc.

 

Benefits of Chitrak

  • Chitrak is used as an Ayurvedic medicine in combination with many other herbs. In this way, the various qualities of a Chitrak can be seen and understood as follows-
  • Chitrak is a cough suppressant herb that helps to get out the phlegm accumulated in the body and eliminates fever.
  • Taking the powder of Chitrak's bark with buttermilk provides relief in piles.
  • Using the powder of the root of Blue Chitrak proves beneficial in headaches.
  • Grinding red chitrak with milk and applying it reduces the problem of itching.
  • Chitrak is a remedy for tridosha. It helps in pacifying Vata, Kapha and Pitta.
  • Drinking a decoction of its root bark daily is beneficial in diabetes.
  • Taking a decoction of the root of blue Chitrak is beneficial in a fever of Kala-azar.
  • Cooking the bark of the root of Red Chitrak in oil, filtering and applying it is beneficial in paralysis and rheumatism.
  • Consumption of Chitrak is beneficial in painful tuberculosis, bacterial, cough and lump diseases. Taking Chitrakadi Leh in the morning and evening as per the advice of Vaidya or doctor is also beneficial in suffocation, cough and heart disease.
  • Make a powder by grinding the root and seed of blue Chitrak. Now use this powder to rub on the teeth. By doing this, there is a benefit in pyorrhea disease and tooth decay is cured.
  • In the case of bleeding from the nose, taking the powder of white chitrak mixed with honey provides relief in nosebleeds. Making a paste of its powder and using it in arthritis is also good.
  • Fever and cough are quickly cured by taking black pepper powder, pippali powder and dry ginger in the powder of the root of Chitrak.
  • Using Chitrak proves beneficial in liver-related diseases. Chitrak helps in reducing the symptoms of jaundice by making liver cells healthy in diseases like jaundice.
  • Blue chitrak has properties to increase hair and appetite and digest food. Apart from this, it also proves helpful in treating constipation, piles, leprosy and stomach worms.
  • Make a powder by grinding an equal quantity of Amla, Chitrak, Turmeric, Ajmoda and Yavakshar. Now, licking this powder ends sore throat.
  • Chitrak works to eliminate inflammation, worms, piles, cough, gas, hoarseness and leprosy.
  • Mixing the powder of its root with vinegar and milk and applying it provides benefits for skin diseases.
  • Regular consumption of Chitrak purifies the breasts and is a blood purifier.
  • Grinding red chitrak and cedarwood with cow urine provides relief in filariasis i.e. elephantiasis.
  • Make a powder of equal parts of Chitrak's root, Brahmi and Vacha and consume it twice or thrice a day, it is beneficial in hysteria.

Side effects of Chitrak

  • Chitrak is hot in potency, therefore, it should always be consumed in limited quantity.
  • Red Chitrak has the properties of aborting a child. Therefore, it should not be used by pregnant women.
  • Consuming Chitrak in excess can cause paralysis and even death.
  • When suffering from any disease, Chitrak should be consumed only as per the advice of the doctor.

Where is the Chitrak found?

Chitrak is more commonly seen in Madhya Pradesh, Bihar, Uttar Pradesh, Sikkim, Maharashtra, West Bengal, South India, Khasia Mountains and Sri Lanka.

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