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जानें, चोपचीनी और इसके लाभों के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, चोपचीनी और इसके लाभों के बारे में

भारत में चोपचीनी का प्रयोग मसाले के रूप में होता है। लेकिन इसके अलावा भी चोपचीनी के कई फायदे हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, चोपचीनी एक उत्तम दर्जे की जड़ी-बूटी है। जिसका उपयोग अनेक रोगों की रोकथाम के लिए किया जाता है। चोपचीनी सिर दर्द, यौन रोग, जोड़ों के दर्द, चर्म रोग जैसी कई बीमारियों को कम करने के लिए एक अच्छा उपाय है। कुछ लोग चोपचीनी को चोबचीनी के नाम से भी जानते हैं।

 
क्या है चोपचीनी?

चोपचीनी एक कांटेदार पौधा है। जो मोटे प्रकंद (rhizome) और फैलाव वाला होता है। यह पौधा जमीन पर फैलते हुए ही बढ़ता है। इसके पत्ते नुकीले और अण्डाकार होते हैं। इसके फूल आकार में छोटे और सफेद रंग के होते हैं। इसके फल गोलाकार मांसल, रसयुक्त और चमकीले लाल रंग के होते हैं। इसकी जड़ कंद के समान, भारी गांठदार और रेशे वाली होती हैं।

चोपचीनी का स्वाद तीखा और कड़वा होता है। यह प्रकृति से गर्म होती है। जो पचने में हल्की, वात, पित्त तथा कफ को शान्त करने वाली होती है। यह भूख को बढ़ाने, मल-मूत्र को साफ करने और शरीर को ताकत देने का काम करती है। यह यौवन तथा यौनशक्ति को बनाए रखती है। यह गैस, कब्ज, शरीर दर्द और गठिया आदि जोड़ों के दर्द को ठीक करती है।

सबसे अच्छी चोपचीनी की पहचान उसके रंग से होती है। अर्थात वह रंग में लाल या गुलाबी होती है। इसका स्वाद मीठा होता है। यह चिकनी और चमकदार होती है। यह अंदर तथा बाहर से एक ही रंग की होती है। इसके अलावा इसको पानी में डालने पर यह उसमें डूब जाती है।

 
चोपचीनी के फायदे:
यूरिक एसिड के लिए-

कुछ दिनों तक नियमित रूप से चोपचीनी के चूर्ण को आधा चम्मच सुबह खाली पेट और आधा चम्मच रात को सोते समय सादे पानी से लेने से यूरिक एसिड (Uric Acid) की समस्या कम होने लगती है।

 
दमा के ल‍िए-

करीब 100 ग्राम चोपचीनी को 800 मिलीलीटर पानी में डालकर, उसे तबतक उबाले जबतक पीना घटकर 300 मिलीलीटर शेष न रह जाए। अब इसे ठंडा करके छान लें। इस काढ़े की रोज 25 ग्राम से 75 ग्राम मात्रा का सेवन करने से श्वास रोग (दमा) में फायेदा मिलता है।

 
गठिया रोग के लिए-

चोपचीनी को दूध में उबालकर इसमें इलायची, मस्तंगी और दालचीनी को मिलाकर सुबह-शाम लेने से गठिया रोग में लाभ मिलता है। इसके अलावा चोपचीनी और गावजबान को मिलाकर काढ़ा बनाकर, उससे घुटनों की मालिश करने से घुटनों का दर्द और हड्डियों की कमजोरी खत्म होने लगती है।

 
कूल्हे से पैर तक के दर्द के लिए-

चोपचीनी को थोड़ा दरदरा या मोटा पीसकर, उसे रात के समय पानी में भिगोकर रख लें। सुबह उस चोपचीनी को आधा पानी खत्म होने तक उबालकर, छानकर एवं थोड़ा ठण्डा होने पर पिएं। इससे कुल्हे से पैर तक का दर्द कम होता है।

 
स्वप्नदोष की समस्या के लिए-

चोपचीनी शरीर की कमजोरी को दूर करके स्वप्नदोष की परेशानियों को दूर करने में सकारात्मक भूमिका निभाती है। इसके अलावा इसके नियमित उपयोग से वीर्यपात से भी निजात पाने में मदद मिलती है।

 
पौरुष शक्ति के लिए-

चोपचीनी में मोचरस, सोंठ, कालीमिर्च, सौंफ, दोनों मूसली और वायविडंग को बराबर मात्रा मिलाकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण का 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करके ऊपर से मिश्री वाला दूध पिएं। ऐसा करने से पौरुष शक्ति में सुधार और शुद्धि‍करण होता है। इसके अलावा चोपचीनी में मौजूद रसायन गुण शरीर के वीर्यदोष को दूर करने में भी मदद करते हैं।

 
सिफलिस के लिए-

चोपचीनी के चूर्ण को नियमित रूप से सुबह-शाम लेने से उपदंश में फायेदा होता है। वहीं, उपदंश का जहर ज्यादा फैलने पर चोबचीनी का काढ़ा बनाकर या उसमें फांट शहद मिलाकर पीना अच्छा रहता है।

 
चोपचीनी के कुछ अन्य फायदे-
  • चोपचीनी के चूर्ण में मक्खन और मिश्री मिलाकर सेवन करने से सिरदर्द में आराम मिलता है।
  • चोपचीनी के चूर्ण का सेवन शहद के साथ करने से त्वचा के विकारों में फायेदा मिलता है।
  • चोपचीनी चूर्ण में शक्कर, मिश्री और घी मिलाकर सेवन करके, ऊपर से गाय का दूध पीने से भगन्दर (Fistula) रोग में फायेदा मिलता है।
  • चोपचीनी के चूर्ण को शहद के साथ लेने से कम्पवात (पार्किन्सन), पक्षाघात (लकवा) और वात दोष के कारण होने वाले रोगों से बचा जा सकता है।
  • चोपचीनी के चूर्ण में मक्खन, मिश्री और शहद मिलाकर खाने से कण्ठमाला (ग्वायटर) रोग में लाभ मिलता है।
  • चोपचीनी चूर्ण में दो गुना शक्कर मिलाकर, दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता समाप्त होती है और बल की वृद्धि होती है।
  • चोपचीनी तेल से जोड़ों और गठिया की मालिश करने से गठिया और जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।
चोपचीनी हेतु सावधानियां-
  • गर्म प्रकृति वाले लोग (जिनका पेट गर्म रहता हो) को चोपचीनी का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।
  • चोपचीनी के सेवन के उपरांत कोई समस्या होने पर अनार या उसके जूस का सेवन करना अच्छा रहता है।
चोपचीनी कहां पाई जाती है?

चोपचीनी भारत के पहाड़ी इलाकों जैसे- उत्तराखण्ड, असम, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और मणिपुर के क्षेत्रों में पाई जाती है। यहां पर चोपचीनी 1500-2400 मीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है। इसके अलावा यह चीन, जापान, म्यांमार और नेपाल में भी पाई जाती है।

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क्या होता है गुड़मार? जानें, इसके फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

क्या होता है गुड़मार? जानें, इसके फायदे और नुकसान

गुड़मार एक प्रकार का आयुर्वेदिक पेड़ है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में हज़ारों साल से इसके पत्तों का उपयोग किया जाता रहा है। यह डायबिटीज, मलेरिया और सर्पदंश के इलाज में उपयोगी है। यह जड़ी-बूटी शर्करा (Sugar) के अवशोषण को रोकने में मदद करती है। गुड़मार का उपयोग डायबिटीज के अलावा अन्य बीमारियों के उपचार के लिए भी किया जाता है जैसे- वजन कम करने और लिपिड कम करने में मदद करना आदि। इसके अलावा इसमें एंटीएलर्जेनिक और एंटीवायरल गुण भी होते हैं। गुड़मार त्वचा में जलन और सूजन को कम करता है। इस तरह यह मुक्त कणों (Free Radicals) के हानिकारक प्रभावों से शरीर की रक्षा करने में मदद करता है। इसका उपयोग अस्थमा, आंखो की समस्याओं, ऑस्टियोपोरोसिस, हाइपरकोलेस्टेरोलिया, कार्डियोपैथी, कब्ज, माइक्रोबियल संक्रमण, अपच आदि के इलाज में किया जाता है। गुड़मार का वैज्ञानिक नाम है- जिमनामा सिल्वेस्टर (Gymnema sylvestre)।

गुड़मार के पेड़ आकार में बहुत बड़े होते हैं और इनकी शाखाएं पतली और रूएदार होती हैं। इसके पत्‍ते छोटे और समतल होते हैं। इसके डंठल 0.6 से 1.2 सेमी. होते हैं। इनके पत्‍तों का आकार अंडाकार होता हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। इसके बीज पीले और भूरे रंग के होते हैं।

 
गुड़मार के फायदे-
गुड़मार है डायबिटीज में लाभदायक- 

गुड़मार में कुछ एंटी-एथेरोस्‍लेरोटिक गुण होते हैं। जिससे यह धमनियों में वसा के जमाव को रोकता है। इसके अलावा गुड़मार रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है। गुड़मार का सेवन लिपिड की मात्रा को कम करने में मदद करता है। यह टाइप 2 डायबिटीज में बहुत लाभकारी है। गुड़मार की पत्तियों में ऐसे गुण होते हैं। जिससे मीठा खाने की तलब कम होती है। साथ ही इससे टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित व्यक्तियों में हाइपरग्लायसेमिया नियंत्रित होता है। इस तरह यह टाइप 2 डायबिटीज को कम करने का कारगर उपचार है।

 
गुड़मार रखे कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित-

रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा  बहुत अधिक बढ़ने से हृदय रोग का जोखिम बढ़ सकता है। इसे कम करने के लिए दुनिया भर में गुड़मार का उपयोग किया जाता है। गुड़मार हानिकारक एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड को कम करने में मदद करता है। गुड़मार में कुछ एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। जो हानिकारक कोलेस्ट्रॉल और आंतों में ट्राइग्लिसराइड के अवशोषण से बचाते हैं। इसके अलावा यह ब्लड शुगर के स्तर को कम करने और मीठा खाने की तलब रोकने में भी लाभकारी है। जिससे वसा का अवशोषण और लिपिड स्तर प्रभावित हो सकता है।

 
गुड़मार करे ब्लड प्रेशर को कम-

हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) से भारत में 20 लाख से भी अधिक वयस्क प्रभावित हैं। यह एक महत्वपूर्ण समस्या है जिससे स्ट्रोक, दिल का दौरा, हृदय रोग, हृदय गति रुकना, किडनी का काम करना बंद करना और अन्य गंभीर स्थितियां पैदा होती हैं। हाई ब्लड प्रेशर के सामान्य लक्षणों में गंभीर सिरदर्द, मतली, उल्टी, नाक से खून बहना आदि शामिल हैं। चूंकि गुड़मार में जिम्नेमिक नाम का एसिड होता है। जो शरीर में मौजूद प्रोटीन एंजियोटेंसिन (रक्तचाप को बढ़ाने के लिए जाना जाता है) की गतिविधि रोकने में मदद करता है। जिससे ब्लड प्रेशर कम करने में मदद मिलती है।

 
गुड़मार है पीसीओडी में उपयोगी-

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओडी) महिलाओं की ओवरी (अंडाशय) से जुड़ी समस्या है। इसमें महिलाओं में यौन हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं। यह समस्या आम तौर पर मोटापे की शिकार महिलाओं में पाई जाती है। उनमें से 30-40 प्रतिशत महिलाएं ग्लूकोज सहिष्णुता के स्तर से प्रभावित पाई जाती हैं। गुड़मार में एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। जो कार्बोहाइड्रेट और शर्करा खाने की तलब को कम करते हैं। जिससे मोटापा कम करने में मदद मिलती है।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम या पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में बांझपन की समस्या भी हो सकती है। इसलिए पीसीओएस को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त आहार और पूरक पदार्थों का सेवन करना फायदेमंद होता है।

 
गुड़मार रखे लिवर को सुरक्षित-

गुड़मार से बने पूरक पदार्थ लिवर की सुरक्षा के लिए टॉनिक का काम करते हैं। तमिलनाडु के मदुरै स्थित सिरुमलै पहाड़ियों में रहने वाली पलीयार जनजातियां पीलिया के इलाज के लिए गुड़मार की पत्तियों का उपयोग करती हैं। क्योंकि इसमें लिवर को ठीक करने वाले गुण होते हैं।

 
गुड़मार रखे त्वचा को स्वस्थ-

गुड़मार में बैक्टीरिया-रोधी गुण होते हैं। जिनका उपयोग त्वचा विकारों और संक्रमणों के इलाज के लिए किया जाता है। डायबिटीज में ऐसी परेशानियां होना आम है। गुड़मार का उपयोग त्वचा पर सफेद दाग (ल्यूकोर्डमा) के प्राकृतिक उपचार तौर पर किया जाता है। इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों में किया जाता है।

 
गुड़मार है वजन घटाने में लाभकारी-

मोटापा शरीर में चर्बी और कार्बोहाइड्रेट जमा होने के कारण होता है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों में मोटापा अनुवांशिक और आम होता है। एक परिकल्पना के अनुसार डायबिटीज, जिम्नेमिक एसिड और मोटापे के बीच संबंध है। कुछ शोधों में पाया गया कि गुड़मार के अर्क से पशुओं और मनुष्यों में वजन कम करने में मदद मिलती है।

 
गुड़मार है गठिया में सहायक-

गुड़मार गठिया जैसी बीमारियों का लोकप्रिय पारंपरिक उपचार है। इसके सेवन से गठिया उभरने से रोकने में मदद मिलती है। इसमें जलन और सूजन को कम करने वाले गुण होते हैं। जिससे गठिया के इलाज में मदद मिलती है। गुड़मार अच्छे किस्म का मूत्रवर्धक (diuretic) भी है। इससे वजन कम करने में मदद मिलती है।

 
गुड़मार के नुकसान-
  • गुड़मार ब्लड शुगर को कम करने में बेहद प्रभावी है। इसलिए ब्लड शुगर कम करने वाली दवाओं के साथ इसका सेवन करना असुरक्षित हो सकता है।
  • इसके अधिक सेवन से सिरदर्द, मतली और चक्कर आना जैसे दुष्प्रभाव दिख सकते हैं।
  • जिन्हें मिल्कवीड (जिन पौधों से दूधिया रस निकलता है) से एलर्जी हो उन्हें इससे बचना चाहिए।
  • गर्भवती या स्‍तनपान (pregnant or lactating) कराने वाली महिलाओं और छोटे बच्‍चों के लिए इसे सुरक्षित नहीं माना जाता। इसलिए इन्‍हें गुडमार का सेवन करने से बचना चाहिए।
कहां पाया जाता है गुड़मार?

गुड़मार के वृक्ष भारतवर्ष के विभिन्‍न भागों जैसे- मध्‍यभारत, पश्चिमी घाट, कोकण, त्रावणकोर क्षेत्र के वनों में पाए जाते हैं।

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क्या होता है चित्रक? जानें, इसके विभिन्न नाम और फायदों के बारे में

Posted 14 December, 2021

क्या होता है चित्रक? जानें, इसके विभिन्न नाम और फायदों के बारे में

आपने आज तक कई तरह की जड़ी-बूटियां या औषधियों के बारे में सुना होगा, उन्हें देखा होंगा और बहुतों को इस्तेमाल में भी लाया होगा। लेकिन आज हम आपको एक जड़ी-बूटी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे शायद ही आप लोग पहले परिचित हों। इसका नाम है “चित्रक”। इस जड़ी-बूटी का नाम तेजतर्रार जानवर ‘चीते’ के नाम पर रखा गया है। क्योंकि चीते की तरह इस जड़ी-बूटी के औषधीय गुण भी बहुत तेज होते हैं। चित्रक देखने में एक झाड़ीदार और बहुत ही साधारण-सा पौधा लगता है। लेकिन असल में यह बहुत ही उपयोगी होता है। आयुर्वेद के अनुसार चित्रक कई बीमारियों के इलाज में कारगर साबित होता है।

 
क्या है चित्रक?

चित्रक एक साधारण-सा पौधा है। जो लंबे समय तक हरा-भरा रहता है। इसका तना छोटा होता है। वहीं, इसकी जड़ से बहुत सी चिकनी डालियां निकली होती हैं। इस पौधे के पत्ते हरे रंग के और आकार में गोल होते हैं। सितंबर से नवंबर के बीच में इस पौधे में फूल लगते हैं। जो बैंगनी, लाल, नीले और हल्के सफेद रंग के होते हैं। इन फूलों के रंग के आधार पर चित्रक की तीन प्रजातियां होती हैं- सफेद चित्रक, लाल चित्रक और बैंगनी या नीले चित्रक। इन तीनों चित्रक में से सफेद चित्रक को सबसे अधिक उपयोगी माना जाता है।

 
चित्रक के विभिन्न नाम-

चितरक, चितामूला, चित्रमुलमू, चीता, चित्रुक, चितापारु, वाहिनी, कोटूबेली, चित्रा, चितालकड़ी, कोदिवेली, सितारक, शीताराज, प्लम्बैगो ज़ेलनिका (Plumbago Zeylanica) आदि।

 
चित्रक के फायदे-

चित्रक को कई अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर आयुर्वेदिक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसप्रकार चित्रक के विभिन्न गुणों को निम्न प्रकार देखा व समझा जा सकता है।

 
  • चित्रक एक कफ नाशक जड़ी-बूटी है। जो शरीर में जमा कफ को बाहर निकलने और ज्वर को खत्म करने में मदद करती है।
  • चित्रक की छाल के चूर्ण का सेवन छाछ के साथ करने से बवासीर रोग में आराम मिलता है।
  • नीले चित्रक की जड़ के चूर्ण का उपयोग करना सिर दर्द में लाभप्रद साबित होता है।
  • लाल चित्रक को दूध में पीसकर लेप करने से खुजली की समस्या कम होती है।
  • चित्रक त्रिदोष नाशक औषधि है। जो वात, कफ और पित्त को शांत करने में मदद करती है।
  • प्रतिदिन इसकी जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीना मधुमेह रोग में फायेदा करता है।
  • नीले चित्रक की जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से कालाजार के बुखार में फायदा मिलता है।
  • लाल चित्रक की जड़ की छाल को तेल में पकाकर, छानकर लगाने से पक्षाघात यानी लकवा और गठिया रोग में लाभ होता है।
  • चित्रक के सेवन से कष्टसाध्य क्षय रोग, बैक्टीरिया, खांसी और गांठों के रोगों में लाभ होता है। वैद्य या चिकित्सक की सलाहानुसार चित्रकादि लेह का सुबह-शाम सेवन करने से दम फूलना, खांसी और हृदय रोग में भी लाभ होता है।
  • नीले चित्रक की जड़ और बीज को पीसकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण का इस्तेमाल दांतों पर मलने के लिए करें। ऐसा करने से पायरिया रोग में लाभ मिलता है और दांतों की सड़न दूर होती है।
  • नाक से खून आना अर्थात नकसीर की समस्या में सफेद चित्रक के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर लेने से नकसीर में लाभ मिलता है। वहीं इसके चूर्ण का लेप बनाकर गठिया रोग में इस्तेमाल करना भी अच्छा रहता है।
  • चित्रक की जड़ के चूर्ण में काली मिर्च चूर्ण, पिप्पली चूर्ण और सोंठ को मिलाकर सेवन करने से बुखार और खांसी जल्दी ठीक होती है।
  • लिवर संबंधी रोगों में चित्रक का उपयोग करना फायदेमंद साबित होता है। चित्रक कामला (पीलिया) जैसे रोग में लिवर की कोशिकाओं को स्वस्थ बनाकर पीलिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
  • नीले चित्रक में बाल और भूख को बढ़ाने एवं भोजन को पचाने वाले गुण होते हैं। इसके अलावा यह कब्ज, बवासीर, कुष्ठ और पेट के कीड़ों का इलाज करने में भी मददगार साबित होता है।
  • आंवला, चित्रक, हल्दी, अजमोदा और यवक्षार को बराबर मात्रा में पीसकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को चाटने से गले की खराश दूर होती है।
  • चित्रक सूजन, कृमि (आंतों के कीडे़), बवासीर, खांसी, गैस, संग्रहणी और कोढ़ को खत्म करने का काम करता है।
  • इसकी जड़ के चूर्ण को सिरका व दूध में मिलाकर लेप करने से चर्म रोगों में फायेदा मिलता है।
  • चित्रक एक आमपाचन है। जो आंतों से मल को बाहर निकालकर बाद में स्तम्भन करने का काम करता है।
  • चित्रक का नियमित सेवन करने से स्तनों की शुद्धि होती है और रक्तशोधक होता है।
  • लाल चित्रक और देवदारु को गोमूत्र के साथ पीसकर लेप करने से फाइलेरिया अर्थात हाथीपांव (श्लीपद) में आराम मिलता है।
  • चित्रक की जड़, ब्राह्मी और वच के समान भाग का चूर्ण बनाकर दिन में दो से तीन बार देने से हिस्टीरिया (योषापस्मार) में फायेदा होता है।
चित्रक के नुकसान-
  • चित्रक अधिक गर्म औषधि है। इसलिए इसका सेवन हमेशा सीमित मात्रा में करना चाहिए।
  • लाल चित्रक में गर्भ को गिराने वाले गुण होते हैं। इसलिए इसका प्रयोग गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
  • चित्रक का अधिक मात्रा में सेवन करने से पक्षाघात यानी लकवा एवं मृत्यु भी हो सकती है।
  • किसी बीमारी से ग्रस्त होने पर चित्रक का सेवन चिकित्सक की सलाहानुसार ही करना चाहिए।
कहां पाया जाता है चित्रक?

मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, खासिया पहाड़ और श्रीलंका में चित्रक अधिक देखने को मिलता है।

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Importance and benefits of Giloy (Guduchi)

Posted 17 March, 2022

Importance and benefits of Giloy (Guduchi)

Medicinal plants have existed long before human birth. Since ancient times, man has been using different types of plants to get rid of diseases. Most of the plants from which the medicine is obtained are wild. One of these plants is also Giloy, which is commonly found in wild shrubs. The roots, stems, leaves, flowers, fruits, seeds and bark of these plants are used for healing.

 
Importance of Giloy in Ayurveda

Giloy has been considered a classy herb in Ayurveda that is why it is also called the queen of herbs. Giloy is also known by other names like Guduchi, Amrita, Madhuparni, Amrutalata etc. Giloy is a multi-year creeper. Its leaves are like betel leaves and fruits are like peas. Giloy leaves are bitter, astringent and pungent in taste. Alkaline is abundant in Giloy. Other biochemical substances found in it are steroids, flavonoids, lignans, carbohydrates. Due to its high nutrient content, Giloy is used to manufacture many herbal, ayurvedic and modern medicines.

According to Ayurveda, the vine of Giloy also absorbs the properties of the tree on which it climbs that's why Giloy's vine climbed on the neem tree is considered best in terms of medicine. For this reason, it is also known as Neem Giloy. Therefore its effect increases even more. The main property of both these medicines is immunity building (the ability to fight disease). It has the ability to maintain the balance of all the three doshas of the body i.e. Vata (air disease), Pitta and Kapha (mucus) and prevent all kinds of diseases caused by its outbreak. It also pacifies the types of diseases like Kaas (cough), Trishna (excessive thirst), Shool (abdominal pain) etc. Apart from this, due to continuous consumption of Giloy, it also provides relief in diseases like heart-related diseases, joint pain and arthritis etc.

 
Benefits of Giloy (Guduchi)
Helps in increasing platelets

Giloy is considered an elixir for the treatment of dengue. Due to dengue fever, platelets in the body start decreasing continuously. In such a situation, taking a pill or decoction of Giloy and consuming it in the morning and evening increases the platelet count. Apart from this, drinking a decoction of basil with Giloy, dry ginger, chhoti pippali and jaggery is also beneficial in dengue.

 
Helpful in getting rid of viral fever-

Giloy is antipyretic, that is, consuming Giloy is good for the treatment of chronic fever. Giloy has anti-oxidation properties, which are helpful in improving health and fighting dangerous diseases. Giloy increases the blood platelets of the body. It also reduces the symptoms of viral infection and fever. For this, take 4-6 cm long giloy and 400 ml water. Boil the water and giloy together till about one-third of the water remains. Drinking this water strengthens the immune system and provides relief from frequent colds and fever.

 
Helpful in purifying the blood-

When toxins are added to the body, that action is called bad blood. Antibacterial and antiviral properties are found in Giloy which help in removing the toxic particles from the body. For this, drink Giloy juice. By doing this, the toxic particles are passed out through urine which purifies the blood.

 
Effective in increasing immunity-

If a person is constantly ill, then the main reason for this may also be his weak immunity. In such a situation, consuming decoction or juice of Giloy is very beneficial. The medicinal properties present in it purifies the blood, maintain healthy cells, fight against bacteria and free radicals that damage the body which helps in boosting immunity.

 
Provide relief in stomach disorders-

All diseases like abdominal pain, bloating, bloating, gas and acidity arise that affect the whole body. Giloy is a better option as a home remedy to get rid of these diseases. For this, consuming giloy extract or juice cures stomach related disorders. Its regular consumption helps in healing the digestive system.

 
Helpful in controlling diabetes-

According to experts, Giloy acts as a hypoglycemic agent which plays an important role in controlling type-2 diabetes. Apart from this, some antioxidant elements are found in it which reduces the increased level of blood sugar in the body. It also increases the secretion of insulin and reduces insulin resistance. In this way, it is a very useful medicine for diabetic patients.

 
In the treatment of joint pain, arthritis-

Anti-arthritic properties are found in Giloy which is effective in getting relief from arthritis. Especially for those who are suffering from joint pain, consuming Giloy is very beneficial. For this, mix 2 to 3 spoons of Giloy juice in a cup of water and consume it on an empty stomach in the morning. Apart from this, mixing honey in the decoction of Giloy can be consumed twice a day after meals.

 
For swelling-

Giloy is rich in antioxidants and minerals which help reduce inflammation and oxidative stress. Apart from this, the anti-inflammatory effect present in Giloy also helps in reducing and preventing inflammation.

 
Helpful in curing skin disorders-

Giloy is very beneficial in skin-related disorders like blemishes, scabies, itching, spots, wrinkles etc. It has antioxidant, anti-microbial, anti-inflammatory properties etc. which help in getting rid of skin related problems. For this, making a paste of the stem of Guduchi and applying it to the affected area to cure skin disorders.

 
Beneficial for eyes-

Giloy is an effective medicine for the eyes. For this, make a paste by mixing honey and rock salt in Giloy juice. Now apply this paste to the eyes like kajal. By doing this, the weakness of the eyes is removed. With this, make a decoction by mixing Triphala in Giloy juice. Now mixing one gram of Pippali powder and honey in 10-20 ml decoction and taking it in the morning and evening improves eyesight. Along with this, diseases like eye pain, prickling, swelling and redness of eyes, cataract etc. get cured soon.

 
For ear disease-

Make a thin paste of Giloy stem and make it lukewarm. Now put it 2-2 drops in the ear twice a day. By doing this the ear wax (dirt) gets removed.

 
Beneficial in jaundice-

If a person is suffering from jaundice, he can also consume Giloy. In such a situation, grind it by taking 20-30 leaves of Giloy. Now, mix that paste in a glass of fresh buttermilk and give it to the patient.

 
Side effects of Giloy
  • People who are already patients with low blood pressure should avoid consuming Giloy because it reduces blood pressure which may worsen the patient's condition.
  • Even before any surgery, Giloy should not be consumed in any form because it lowers blood pressure, which can increase difficulties during surgery.
  • Giloy significantly reduces the level of blood sugar. Therefore, people with low blood sugar levels should not consume Giloy.
  • Giloy can sometimes over-stimulate the immune system, resulting in symptoms of autoimmune disorders such as lupus, multiple sclerosis, and rheumatoid arthritis. Therefore, people suffering from autoimmune disorders should avoid its consumption or consume Giloy only after consulting a doctor.
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जानें, चीड़ के अद्भुत फायदों के बारे में

Posted 17 March, 2022

जानें, चीड़ के अद्भुत फायदों के बारे में

उत्तराखंड या हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में कई लोगों ने चीड़ के ऊंचे ऊंचे पेड़ जरूर देखे होंगे। आयुर्वेद में इस पेड़ को सेहत के लिए बहुत अच्छा माना गया है। इस पेड़ की लकड़ियां, उससे निकालने वाला तेल और चिपचिपे गोंद का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है। इस पेड़ से प्राप्त गोंद को गंधविरोजा भी कहा जाता है। इस पेड़ की लम्बाई 30-35 मीटर होती है। इसका तना गहरे भूरे रंग और खुरदुरा गोल आकर का होता है। इसके पत्ते 3 के गुच्छे में होते हैं जिनकी लम्बाई 20-30 सेमी होती है। ज्यादातर लोग चीड़ को उसकी लम्बाई और पत्तियों के आकार से ही पहचान लेते हैं। चीड़ के फल देवदारु के फल की भांति ही होते हैं लेकिन यह आकार में थोड़े बड़े, शंक्वाकार और पिरामिड आकार के नुकीले होते हैं। चीड़ का वानस्पतिक नाम Pinus roxburghii Sargent (पाइनस् रॉक्सबर्घियाई) है। वहीं, इसे अंग्रेजी में चीर पाईन (Chir pine) और इमोडी पाईन (Emodi pine) कहते हैं।

 
चीड़ के फायदे-
मुंह के छालों के लिए-

मुंह में छाले होने पर चीड़ के पेड़ से निकलने वाले गोंद का काढ़ा बनाकर कुल्ला करना छालों के लिए अच्छा होता है। ऐसा करने से मुंह के छाले जल्द ठीक होते हैं।

 
पेट के कीड़ों के लिए-

पेट में कीड़े होने के बाद होने वाले दर्द से बचने और भूख न लगने जैसे लक्षणों को कम करने के लिए चीड़ के तेल में विडंग के चावलों का चूर्ण मिलाकर कुछ देर धूप में रख दें। बाद में इस मिश्रण को पीने से आंत के कीड़े कम होते हैं।

 
पेट फूलने के लिए-

जो लोग पेट फूलने की दिक्कत से परेशान रहते हैं। उन्हें चीड़ के तेल को पेट पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से पेट फूलने और बवासीर जैसी समस्याएं कम हो जाती हैं।

 
कान के लिए-

कान के दर्द, सूजन और कान से निकलने वाले स्राव को कम करने के लिए चीड़ एक फायदेमंद औषधि है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार देवदारु, कूठ और सरल (चीड़) के काष्ठों पर क्षौम वत्र लपेट कर तिल तैल में भिगोकर जलाने से मिलने वाले तेल की एक से दो बूंदों को कान में डालने से कान का दर्द, सूजन और स्राव में जल्दी आराम मिलता है।

 
सांस की नली के लिए-

सांस की नली में सूजन होना एक बड़ी परेशानी है। इसके लिए आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीड़ के तेल से छाती की मालिश करने से सांस नली की सूजन कम होती है साथ ही सर्दी-खांसी में भी आराम मिलता है।

 
लकवा के लिए-

पिप्पली और इसकी जड़, सरल (चीड़) और देवदारु का पेस्ट बनाकर 1-3 ग्राम मात्रा में 2 गुना शहद मिलाकर पीने से लकवा रोग में आराम मिलता है। लेकिन इसका सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही करना चाहिए।

 
घाव के लिए-

चीड़ के पेड़ से निकलने वाले गोंद को घाव के लिए अच्छा माना जाता है। इसके लिए गोंद को पीसकर सीधे घावों पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से घाव जल्दी भर जाते हैं। इसके अलावा चीड़ के गोंद को घाव पर लगाने से रक्तस्राव (ब्लीडिंग) बंद हो जाता है और घावों में पस भी नहीं पड़ता।

 
दाद-खाज एवं खुजली के लिए-

चीड़ के गोंद (गंधविरोजा) को दाद एवं खुजली पर लगाने से दाद व खुजली की समस्या ठीक हो जाती है। इसलिए इस तरह की समस्या होने पर चीड़ का इस्तेमाल करना अच्छा घरेलू उपाय माना जाता है।

 
बच्चों की पसली चलने पर-

छोटे बच्चों को सर्दी लगने और निमोनिया होने पर उनकी पसलियां चलने लगती हैं। ऐसे समय पर चीड़ के तेल में बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर बच्चों की मालिश करना अच्छा होता है। इस तेल की मालिश करने से शरीर को गर्माहट मिलती है। जिससे बच्चों को शीघ्र आराम मिलता है।

 
चीड़ के उपयोगी हिस्से-
  • तेल
  • लकड़ी
  • गंधविरोजा (गोंद)
  • तैलीय निर्यास
चीड़ का पेड़ कहां पाया जाता है?

चीड़ का पेड़ हिमालयी क्षेत्रों में कश्मीर से भूटान तक 450-1800 मी तक की ऊंचाई पर, कुमाऊं में 2300 मी तक की ऊंचाई पर, शिवालिक पहाड़ी क्षेत्रों में, ऊटी और अफगानिस्तान में भी पाया जाता है।

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What is Gudmar? Know its Benefits and Side effects

Posted 14 December, 2021

What is Gudmar? Know its Benefits and Side effects

Gudmar (Gymnema Sylvestre) is a type of Ayurvedic tree that is a well-known remedy in Ayurveda as its leaves have been used in Ayurvedic medicine for thousands of years. It is useful in treating diabetes, malaria and snakebite. This herb helps in preventing the absorption of sugar. Gudmar is also used for the treatment of diseases other than diabetes, such as helping to lose weight and lowering lipids. Apart from this, it also has antiallergenic and antiviral properties. Gudmar reduces skin irritation and inflammation. In this way, it helps in protecting the body from the harmful effects of free radicals. It is used in the treatment of asthma, eye problems, osteoporosis, hypercholesterolemia, cardiopathy, constipation, microbial infections, dyspepsia, etc.

 

Gudmar trees are very large in size and their branches are thin and ruddy. Its leaves are small flat, oval in shape and its stalk is 0.6 to 1.2 cm. Its flowers are yellow in colour while the seeds are brown and yellow.

 

Benefits of Gudmar

Gudmar is beneficial in diabetes-

Gudmar, also known as Sugar destroyer has some anti-atherosclerotic properties which prevent the deposition of fat in the arteries. Apart from this, the consumption of gudmar helps in reducing the number of lipids. It is very beneficial in type 2 diabetes. Gudmar leaves have certain properties due to which the urge to eat sweets decreases. It also controls hyperglycemia in people suffering from type 2 diabetes. In this way, it is an effective treatment to reduce type 2 diabetes.

 

Keeps cholesterol in control-

Having too much cholesterol in the blood can increase the risk of heart disease. To reduce it, gudmar is used around the world. Gudmar helps in reducing harmful LDL cholesterol and triglyceride. It has some antioxidant properties which protect against the absorption of harmful cholesterol and triglyceride in the intestines. Apart from this, it is also beneficial in reducing the level of blood sugar and controlling the urge to eat sweets.

 

Gudmar reduces blood pressure-

Hypertension(high blood pressure) affects more than two million adults in India. This is a significant problem that can lead to stroke, heart attack, heart disease, heart failure, kidney failure, and other serious conditions. Common symptoms of high blood pressure include severe headache, nausea, vomiting, nose bleeds, etc. Gudmar contains an acid called gymnemic which helps in inhibiting the activity of angiotensin (known to increase blood pressure) protein present in the body which helps in reducing blood pressure.

 

Gudmar is useful in PCOD-

Polycystic Ovarian Syndrome (PCOD) is a problem related to ovaries in women. In this, the sex hormones in women become unbalanced. This problem is usually found in obese women. Among them, 30-40 per cent of women are found to be affected by the level of glucose tolerance. Gudmar has anti-oxidant properties which reduce the urge to eat carbohydrates and sugars which further helps in reducing obesity.

 

Women with polycystic ovarian syndrome or PCOS may also have infertility problems. Therefore, it is beneficial to consume a suitable diet and supplements to control PCOS.

 

Gudmar keeps the liver safe-

Supplements made from gudmar act as a tonic to protect the liver. The Paliyar tribes living in the Sirumalai hills of Madurai in Tamil Nadu use the leaves of gudmar for the treatment of jaundice because it has liver-healing properties.

 

Keep the skin healthy-

Gudmar has anti-bacterial properties which are used to treat skin disorders and infections. Such problems are common in diabetes. Gudmar is used as a natural remedy for white spots on the skin (leukoderma) and is used in cosmetics.

 

Gudmar is beneficial in weight loss-

Obesity is caused by the accumulation of fat and carbohydrates in the body. Obesity is genetic and common in people with diabetes. According to one hypothesis, there is a relationship between diabetes, gymnemic acid and obesity. Some research has found that gudmar extract helps in reducing weight in animals and humans.

 

Gudmar is helpful in arthritis-

Gudmar is a popular traditional remedy for ailments like arthritis. Its consumption helps in preventing the emergence of gout. It has anti-inflammatory properties which help in the treatment of gout. Gudmar is also a good diuretic and thus helps in reducing weight.

 

Side effects of Gudmar

  • Gudmar is extremely effective in lowering blood sugar. Therefore, it may be unsafe to consume it along with medicines that lower blood sugar.
  • Side effects such as headache, nausea and dizziness may appear due to its excessive consumption.
  • Those who are allergic to milkweed (plants from which a milky sap) should avoid it.
  • It is not considered safe for pregnant or lactating women and young children. Therefore, they should avoid consuming Gudmar.

Where is Gudmar found?

Gudmar trees are found in the forests of different parts of India like- Madhya Bharat, Western Ghats, Konkan, Travancore region.

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गुग्गुल के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

गुग्गुल के फायदे और नुकसान

गुग्गुल एक राल जैसा पदार्थ होता है। जो पेड़ से प्राप्त होता है। यह बहुत अधिक गर्मी के दौरान पौधे द्वारा उत्सर्जित एक गोंद राल होती है। यह पौधा एक छोटे पेड़ के रूप में बढ़ता है और इसकी ऊंचाई 4-5 फीट तक होती है। इसकी शाखाएं कांटेदार होती हैं। ताजा गुग्गुल नरम और चिपचिपा होता है जो सूखने पर एक ठोस पदार्थ बन जाता है। गुग्गुल गर्म तासिर का और कड़वा होता है। गोंद प्राप्त करने के लिए इसके पौधे के मुख्य तने में गोलाई में कट लगाया जाता है। इन कट के माध्यम से सुगंधित तरल पदार्थ एक सुनहरे भूरे रंग या लाल भूरे रंग में तेजी से ठोस हो जाता है। यह प्राप्त राल ही गुग्गुल होती है। जो औषधीय उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती है। गुग्गुल में विटामिन, एंटीऑक्सिडेंट, क्रोमियम जैसे अनेक घटक होते हैं। जो कई रोगों को दूर करने में मदद करते हैं। खासतौर पर इसको पेट की गैस, सूजन, दर्द, पथरी, बवासीर, पुरानी खांसी, यौन शक्‍ति में बढ़ोत्तरी, दमा, जोडों का दर्द, फेफड़ों की सूजन आदि रोगों को दूर करने में उपयोग किया जाता है।

 

गुग्गुल के फायदे:

डायबिटीज में असरदार-

डायबिटीज के मरीजों के लिए गुग्गुल काफी फायदेमंद होता है। गुग्गुल इंसुलिन के प्रोडक्शन को सही करने का काम करता है। यह ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है और पेनक्रियाज को प्रोटेक्ट करता है। जिससे इंसुलिन का प्रोडक्शन सही होता है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को एक चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ इसे जरूर लेना चाहिए।

 

कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है-

गुग्गुल में रक्त को शुद्ध करने और फिर से जीवंत करने वाले गुण होते हैं। यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है और विषाक्त पदार्थों के संचय के कारण होने वाले त्वचा रोगों को ठीक करने में मदद करता है। गुग्गुल शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार और लिपिड स्तर को नियंत्रित करता है। यह कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के स्तर को कम करने में भी लाभदायक होता है।

 

गुग्गुल बेनिफिट्स फॉर वेट लॉस-

मोटापा हृदय रोग, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, पीसीओएस और अन्य चयापचय विकारों का मुख्य कारण है। गुग्गुल को विशेष रूप से वजन घटाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसीलिए वजन घटाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए इसका सेवन अच्छा माना जाता है।

 

त्वचा के लिए उपयोगी-

अल्सर और घावों का इलाज करने के लिए गुग्गुल का प्रयोग किया जाता है। इसे नारियल के तेल में मिलाकर प्रभावित त्वचा के हिस्से पर उपयोग किया जाता है।

 

एसिडिटी को करे दूर-

1 चम्मच गुग्गुल का चूर्ण एक कप पानी में मिलाकर रख दें। लगभग एक घंटे के इसे बाद छान लें। खाने के बाद इस मिश्रण का सेवन करने से एसिडिटी खत्म हो जाती है।

 

जोड़ों के दर्द में आराम-

शरीर में हड्डियों से जुड़ी किसी भी परेशानी के होने पर गुग्गुल का सेवन करना लाभदायक होता है। इसके चूर्ण को एक चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लेने से सूजन, चोट के बाद होने वाले दर्द और टूटी हड्डियों को जोड़ने में मदद मिलती है।

 

सूजन को करे दूर-

गुग्गुल में इन्फ्लेमेशन गुण मौजूद होता है। जो दर्द और सूजन में राहत देने में मदद करता है। इसके चूर्ण का सेवन करने से शरीर के तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने में भी बहुत मदद मिलती है।

 

छाले-घाव में असरदार-

मुंह के छाले होने पर गुग्गुल को मुंह में रखें या गर्म पानी में घोलकर दिन में 3 से 4 बार इससे कुल्ला व गरारे करें। ऐसा करने से मुंह के अंदर के घाव, छाले व जलन ठीक हो जाते हैं।

 

गंजापन से मिल जाएगा छुटकारा-

जो लोग गंजेपन से परेशान हैं। वह लोग गुग्गुल के सिरके को सुबह-शाम नियमित रूप से सिर पर वहां लगाए जहां बाल नहीं हैं। इसे रोज लगाए जब तक बाल आने न शुरू हो।

 

पेट की बीमारी में फायदेमंद-

अगर किसी को कब्ज की शिकायत हो तो उसके लिए गुग्गुल का चूर्ण फायदेमंद होता है। इसके लिए लगभग 5 ग्राम गुग्गुल में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण को मिलाकर रात में हल्के गर्म पानी के साथ लें। इससे पुराने से पुराना कब्ज भी दूर हो जाएगा।

 

गुग्गुल के नुकसान-

  • मासिक धर्म के दौरान गुग्गुल रक्त के प्रवाह को उत्तेजित और गर्भाशय के आकार को कम करता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान इसके उपयोग से बचना चाहिए।
  • गुग्गुल थायरॉयड के कार्य को प्रभावित करता है। इसलिए निष्क्रिय या अतिरक्त थायरॉयड में सावधानी से इसका उपयोग करें।
  • इसका अधिक मात्रा में सेवन करना लिवर के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए लिवर रोग या आंतो की सूजन वाले रोग में गुग्गल का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए।
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी इसके सेवन से पहले अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

गुग्गुल कहां पाया और उगाया जाता है?

समस्त भारत के शुष्क एवं पथरीले भागों में यह मुख्यत राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, आसाम तथा उत्तर प्रदेश में पाया जाता है।

 
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गोक्षुर (गोखरू) के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

गोक्षुर (गोखरू) के फायदे और नुकसान

कई ऐसे जंगली पौधे, जो घरों और बगीचों के आसपास देखने को मिलते हैं। उनमें से एक गोखरू का पौधा भी है। यह पौधा देखने में जंगली पौधे की तरह ही लगता है। इसमें पीले रंग के छोटे फूल खिलते हैं। जिनके फल कांटे की तरह और हरे रंग के होते हैं। गोक्षुर एक संस्कृत नाम है। जिसका शाब्दिक अर्थ “गाय का खुर” होता है। इसका नाम गोक्षुर इसलिए पड़ा क्योंकि इसके फल में ऊपर की सतह पर छोटे-छोटे कांटें होते हैं। यह पौधा शुष्क जलवायु में उगता है। गोक्षुर का वैज्ञानिक नाम ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus terrestris) है। जो जीगोफिलसी परिवार से संबंध रखता है। इसे गोखरू,गुड़खुल, त्रिकंत आदि नामों से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि गोक्षुर की उत्पत्ति स्थान भारत है। लेकिन व्यापक रूप से भारत के अलावा अफ्रीका, एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप के कुछ हिस्सों में भी इसे उगाया जाता है। इसलिए इस जड़ी बूटी का इस्तेमाल भारतीय आयुर्वेद के अलावा पारंपरिक चीनी चिकित्सा में भी किया जाता है।

 
गोक्षुर (गोखरू) के औषधीय गुण-

आयुर्वेद में गोक्षुर (गोखरू) के विभिन्न भाग जैसे बीज, जड़,  फूल, पत्ता, टहनियां आदि को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। वहीं, इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में भी औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गोक्षुर (गोखरू) की तासीर गर्म और स्वाद में कड़वा होता है। जिसके कारण यह बुखार निवारक, कृमि नाशक, शारीरिक कमजोरी को दूर करने में मदद करता है। इसके अलावा  यह प्यास, त्रिदोष और वात पीड़ा को भी दूर में भी सहायता करता है। इसके फल में मूत्रवर्धक, यौन संबंधित समस्याओं को दूर करने के गुण पाए जाते हैं। इस औषधि के जड़ों का उपयोग खांसी, अस्थमा, एनीमिया और आंतरिक सूजन के उपचार में किया जाता है। इसके अलावा इस पौधे की राख का इस्तेमाल गठिया के उपचार में भी लाभप्रद साबित होता है। आयुर्वेद में गोक्षुर को बल बढ़ाने वाली पौष्टिक औषधियों में प्रधान स्थान प्राप्त है।

 
गोखरू के फायदे:
मूत्र त्याग की कठिनाई को दूर करता है-

यूरिन पास करने में कठिनाई कई वजहों से हो सकती है। यदि इसका कारण प्रोस्टेट न हो तो गोखरू की जड़ का चूर्ण अपने ड्यूरेटिक्स गुणों के कारण इस कठिनाई में मदद करता है। यह यूरिन को उचित बहाव के साथ पास होने देता है। इसके अलावा गोखरू की जड़ के काढ़ा का सेवन करने से पेशाब में होने वाली सभी प्रकार की परेशानियों में लाभ होता है।

 
मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभप्रद-

गोखरू का प्रयोग स्त्रीरोग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों और एंडोमेट्रियम के लिए एक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून आने की समस्या मे गोखरू की जड़ के चूर्ण में मिश्री या मधु मिलाकर सेवन करना फायदेमंद होता है। ऐसा करने से मासिक धर्म नियमित होता है।

 
पौरुष शक्ति के लिए-

गोखरू का सेवन करने से शीघ्रपतन, वीर्य की कमी, धातु दुर्बलता और पुरुषों में होने वाली कमजोरी में लाभ मिलता है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह का शारीरिक या अंदरूनी कमजोरी महसूस करता है। विशेष रूप से सेक्सुअल स्टैमिना की, तो ऐसे में उनके लिए गोक्षुर का सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि गोक्षुर में पाए जाने वाले तत्व शरीर की अंदुरुनी कमजोरी को दूर कर सेक्सुअल स्टैमिना को बढ़ाने में मदद करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गोखरू में बल्य और वृष्य का गुण भी पाया जाता है। जो धातुओं या ऊतकों को पुष्ट करने में मदद करता है। इसके लिए गोक्षुर के पाउडर को दूध या गर्म पानी के साथ पीएं । ऐसा करने से मनुष्य की शक्ति बढ़ जाती है।

 
खिलाड़ियों एवं एथलीटों के लिए फायदेमंद-

गोक्षुर का अहम फायदा खिलाड़ियों एवं एथलीट परफॉरमेंस में सुधार के लिए माना जाता है। दरअसल, गोखरू में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी और एंटी-इंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। जो शारीरिक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं। साथ ही गोखरू का सेवन खिलाड़ियों को हृदय संबंधी समस्याओं से बचाता है। विशेषज्ञों के अनुसार गोखरू का सेवन शारीरिक क्षमता बढ़ाने, खासकर वजन उठाने वाले खिलाड़ियों में सक्रिय भूमिका निभाता है।

 
पाचन शक्ति के लिए-

पाचन और एसिडिटी की समस्या को दूर करने के लिए गोखरू का सेवन करना एक बढ़िया उपाय है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। गोखरू   फल के चूर्ण और पीपल पाउडर से बने काढ़े को सिप करके पीने से पाचन शक्ति में सुधार होता है।

 
सांस संबंधी बीमारी या दमा के लिए-

शरीर में कफ दोष बढ़ने के कारण भी श्वास सम्बंधित समस्याएं पैदा होने लगती है। चूंकि गोखरू में कफ शामक गुण पाए जाते हैं। इसलिए गोखरू का उपयोग श्वास संबंधी रोग और उसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है। इसके लिए 2 ग्राम गोखरू के फल चूर्ण को 2-3 नग सूखे अंजीर के साथ दिन में तीन बार कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वास संबंधी रोग या दमा में लाभ मिलता है। 

 
पेचिश (दस्त) के लिए-

गोक्षुर के औषधीय गुण पेचिश (दस्त) जैसी समस्या में लाभप्रद साबित होते हैं। यदि अतिसार (पेट चलने का रोग) पतला, सफेद और बदबूदार है। तो ऐसे में गोक्षुर फल चूर्ण (गोखरू चूर्ण) को मट्ठे (छाछ) के साथ दिन में दो बार खिलाएं। ऐसा करने से आमातिसार या पेचिश में लाभ मिलता है। 

 
दिल के स्वास्थ्य के लिए-

गोक्षुर एंटीऑक्सिडेंट से प्रचुर होता है। जो कार्डियोप्रोटेक्टिव कार्यों को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। यह ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के बढ़े हुए स्तर को कम करने एवं कंट्रोल करने में मदद करता है। साथ ही एथेरोस्क्लेरोसिस और अन्य हृदय संबंधी बीमारी की रोकथाम में भी मदद करता है।

 
जोड़ों के दर्द एवं अर्थराइटिस में फायदेमंद-

गोखरू फल के चूर्ण में एंटी अर्थ रितिक प्रभाव होता है। जो जोड़ों के दर्द एवं गठिया रोग से राहत दिलाने में मदद करता है। गोखरू रक्तचाप में सुधार करके गठिया के लक्षणों को कम करता है। वहीं इसके एंटीनॉसिसेप्टिव और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया से होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 
एक्जिमा के लिए-

एक्जिमा को एटॉपिक डर्मेटाइटिस (Atopic dermatitis) के नाम से भी जाना जाता है। एक्जिमा एक प्रकार का त्वचा संबंधित विकार है। जिसमें व्यक्ति के  त्वचा पर खुजली होने लगती है और घाव भी हो सकते हैं। गोखरू के फल में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाया जाता है। जो एक्जिमा के खतरे को कम करने में सहायक होता है।

 
त्वचा के लिए-

गोखरू फल के चूर्ण त्वचा को चमकदार बनाने के भी काम करते हैं। दरअसल, गोखरू यानी गोक्षुर के अर्क का इस्तेमाल कर क्रीम तैयार की जाती है।  जिसमें एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा गोखरू के चूर्ण का लेप करने से त्वचा संबंधित विकार ठीक होते हैं। साथ ही त्वचा मुलायम और चमकदार होती है।

 
गोक्षुर (गोखरू) के उपयोग-
  • गोक्षुर के पाउडर को दूध या गर्म पानी के साथ पिया जाता है।
  • गोखरू के सूखे पाउडर और अदरक के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर काढ़े के रूप में सेवन किया जाता है।
  • गोक्षुर के अर्क का भी सेवन किया जाता है।
  • गोक्षुर का अर्क त्वचा पर भी इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसके तने से काढ़ा बनाकर पिया जाता है।
  • इसके पाउडर को मट्ठे के साथ मिलाकर पिया जाता है।
  • इसे कैप्सूल या टेबलेट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • शहद युक्त मिश्रीत गोक्षुर के चूर्ण में पानी के साथ लेप बनाकर स्किन पर लगाया जाता है।
गोक्षुर के नुकसान-
  • इसका अधिक सेवन हेपटोटोक्सिसिटी यानी खराब लिवर (hepatotoxicity) का कारण बन सकता है।
  • गोखरू का अधिक सेवन टेस्टोस्टेरोन को आवश्यकता से अधिक बढ़ा सकता है। जो हृदय स्वास्थ्य के लिए घातक होता है।
  • यदि महिलाएं इसका अधिक सेवन करती हैं तो उनकी यौन संबंधों में रुचि कम हो सकती है।
  • गोक्षुर के चूर्ण का अधिक सेवन करने से न्यूरो टॉक्सिसिटी (नर्वस सिस्टम को हानि) का कारण बन सकता है।
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चिया बीज के फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

चिया बीज के फायदे और उपयोग

छोटा पैकेट बड़ा धमाका, यह डायलॉग चिया बीज पर बिल्कुल फिट बैठता है। वहीं, चिया सीड्स के लिए यह कहना भी कतई गलत नहीं होगा कि ‘देखन में छोटन लगे, असर करे भरपूर’ अर्थात छोटे से दिखने वाले चिया के बीज कई गुणों से भरपूर है। यह शरीर को स्वस्थ रखने के अलावा कई बीमारियों के लक्षणों को कम करने में भी मदद करता है।

 

चिया बीज को कई खाद्य पदार्थों से अधिक फायदेमंद माना जाता हैं। इसलिए इसे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए काफी अच्छा माना जाता है। चिया बीज कई औषधीय गुणों से प्रचुर होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व गंभीर बीमारियों से बचाने और स्किन की सेहत को बरकरार रखने का काम करते हैं। यह बीज चिंता, अवसाद, कमजोर इम्यूनिटी, उच्‍च कोलेस्‍ट्रॉल, हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, अल्सर और सूजन जैसी बीमारियों के इलाज में फायदा करता है। चिया बीज में ओमेगा-3, फाइबर, प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, कैल्शियम और फैटी एसिड अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं। इसलिए इसको वजन घटाने, स्वस्थ गर्भावस्था (Pregnancy) और प्रजनन क्षमता (Fertility) को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

 

क्या होता है चिया बीज?

असल में चिया बीज (chia seed) का नाम लेते ही दिमाग में छोटे-छोटे काले रंग के दानों की तस्वीर नजर आने लगती है। इसके अलावा चिया बीज सलेटी और सफेद रंग के भी होते हैं। जो देखने में तुलसी के बीज की तरह लगते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ‘साल्विया हिस्पैलिका’ है। इसे कई देशों में मैक्सिकन चिया और साल्बा चिया के नाम से भी जाना जाता है। पिछले कुछ समय से चिया बीज को सेहतमंद डाइट का अहम हिस्सा माना जा रहा है। क्योंकि यह ओमेगा-3 फैटी एसिड, फाइबर, प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट का बहुत अच्छा और सेहतमंद आधार है। इसलिए चिया बीज को सुपरफूड भी कहा जाता है। चिया बीज को डाइट में कई तरीके जैसे कि स्मूदी, ग्रेनोला बार, ब्रेकफास्ट आदि तौर पर खाया जाता हैं।

 

चिया बीज के फायदे;  

वजन को कम करने के लिए-

चिया बीज में प्रोटीन एवं फाइबर होता है। जो मोटापे को कम करने में मदद करता है। दरअसल चिया बीज में मौजूद प्रोटीन एवं फाइबर वसा के जमाव को रोककर चयापचय में सुधार करता है। न्यूट्रिशन रिसर्च एंड प्रैक्टिस द्वारा किए गए शोध के अनुसार, प्रतिदिन सुबह के नाश्ते में चिया बीज का सेवन कुछ समय के लिए भूख को शांत करता है। वहीं, जर्नल ऑफ फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि चिया बीज में मौजूद हाई प्रोटीन भूख के एहसास को कम कर वजन कम करने में मदद करता है। इसलिए वजन कम करने के लिए हमें नियमित रूप से चिया बीज का सेवन करना चाहिए।

 

हड्डियों एवं दातों के लिए उपयोगी-

चिया बीज हड्डियों और दातों को मजबूत बनाए रखने के लिए सहायक साबित होते हैं। क्योंकि इसमें कैल्शियम और मैग्नीशियम एवं विटामिन की उच्च मात्रा पायी जाती है। जो हड्डियों के विकास में सहायता कर, ऑस्टियोपोरोसिस (कमजोर और नाजुक हड्डियों) की बीमारी को रोकने में मदद करती हैं। एनसीबीआई के एक शोध में माना गया है कि कैल्शियम से समृद्ध चिया बीज हड्डियों के अलावा दांतों के लिए भी काफी कारगर सिद्ध होते हैं। इसलिए हड्डियों के विकास और दातों को मजबूती प्रदान करने के लिए चिया बीज का सेवन करना अच्छा माना जाता है।

 

डायबिटीज एवं उच्च रक्तचाप में लाभप्रद-

चिया बीज डायबिटीज और उच्च रक्तचाप की समस्या में भी लाभप्रद होते हैं। जर्नल ऑफ फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि चिया बीज में मौजूद फाइबर, अनसैचुरेटेड फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट (मुक्त कणों के प्रभाव को रोकने वाला) गुण संयुक्त रूप से बढ़े हुए ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा चिया बीज में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड कैल्शियम और सोडियम की अधिकता के कारण यह बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए चिया के बीज का सेवन इस रोग के इलाज में पौष्टिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

हृदय के लिए फायदेमंद-

हृदय को स्वस्थ रखने में चिया बीज बहुत लाभप्रद होता है। इसमें अच्छी मात्रा में आयरन और विटामिन ए पाया जाता है। जो दिल की धामियों को स्वस्थ रखने में सहायता करता है। इसलिए प्रतिदिन चिया बीज का सेवन करने से हृदय सम्बंधित तमाम परेशनियां जैसे अनियमित दिल का धड़कना और हार्ट ब्लॉकेज आदि का खतरा कम हो जाता है।

 

कैंसर रोगी के लिए फायदेमंद-

यूपीएसएफ मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट के अनुसार, चिया बीज अल्फा-लिनोलिक एवं अल्फा-लिनोइक एसिड से समृद्ध होते हैं। जो एक प्रकार का ओमेगा-3 एसिड होता है। यह गुण स्तन कैंसर को रोकने में मदद करते हैं। इसके अलावा चिया बीज सामान्य स्वस्थ्य कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुंचाए कैंसर कोशिकाओं का खात्मा करते हैं। इसलिए स्वस्थ्य कोशिकाओं के विकास एवं कैंसर कोशिकाओं को नष्ट के लिए चिया बीज का सेवन करना अच्छा विकल्प माना जाता है।

 

स्वस्थ्य इम्यूनिटी के लिए-

चिया बीज में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जो संक्रमण से लड़ने में सहायक होते हैं। साथ ही यह शरीर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस प्रकार यह इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाने में मदद करते हैं। इसलिए रोजाना अपने आहार में चिया बीज को शामिल करें। ऐसा करने से तमाम बीमारियों से बचा जा सकता है।

 

एनर्जी बढ़ाने में मददगार-

ब्रेकफास्ट करना सबसे जरूरी इसलिए होता है, क्योंकि यह शरीर को पूरे दिन काम करने की एनर्जी देता है। इसलिए सभी लोगों को नाश्ता जरूर करना चाहिए। इस दौरान पौष्टिक आहार लेना बेहद जरूरी होता हैं। जो शरीर को ऊर्जा और स्फूर्ति प्रदान करता है। इसलिए सेहतमंद ब्रेकफास्ट में चिया बीज शामिल करना अच्छा विकल्प माना गया हैं। इसमें मिलने वाली एनर्जी शरीर को पूरे दिन एक्टिव रखने में मदद करती है। क्योंकि चिया बीज में विटामिन बी, ज़िंक, आयरन और मैग्नीशियम जैसे पौष्टिक आहार पाए जाते हैं। जो शरीर में एनर्जी देने में सहायक होते हैं।

 

प्रजनन क्षमता के लिए-

चिया बीज में मौजूद ओमेगा-3 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड पुरुषों में स्पर्म सेल्स (शुक्राणु कोशिकाओं) को बढ़ाने का काम करता है। जिससे पुरुषों की प्रजनन क्षमता में सुधार होता है।

 

गर्भावस्था के लिए-

चिया बीज में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इसमें पाए जाने वाले कैल्शियम और मैग्नीशियम गर्भवती महिला के स्वास्थ्य और भ्रूण की हड्डियों के विकास में मदद करते हैं। इसके अलावा मैग्नीशियम जन्म के समय शिशु के वजन में होने वाली कमी और गर्भवती के बढ़ते रक्तचाप को रोकने में भी मदद करता है।

 

प्रदूषण और सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाव के लिए-

प्रदूषण की वजह से श्वास और फेफड़ों से संबंधित बीमारियां होती हैं। ऐसे में चिया बीज का सेवन करना अच्छा रहता है। क्योंकि चिया बीज में मौजूद विटामिन-डी शरीर को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने और कई गंभीर बीमारियों को दूर करता है। इसके अलावा चिया बीज के तेल में मौजूद डीएचए और ईपीए यूवी किरणों की वजह से होने वाले सनबर्न, टैनिंग, एजिंग आदि समस्याओं को भी दूर करते हैं।

 

सेहतमंद त्वचा और स्वस्थ बालों के लिए-

चिया बीज का तेल त्वचा की सुंदरता में निखार लाने का काम करता है। इसमें मौजूद ओमेगा-3 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) का प्रयोग त्वचा संबंधित कई रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। इससे मुंहासे, रैशेज, लालिमा और त्वचा संबंधित अन्य समस्याओं को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त चिया बीज के तेल में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड त्वचा के साथ बालों की स्थिति को भी बेहतर बनाता है।

 

चिया बीज के नुकसान-

  • चिया बीज फाइबर से समृद्ध होता है। इसलिए इसका अधिक मात्रा में सेवन करना कब्ज और गैस की समस्या पैदा कर सकता है।
  • यदि कोई व्यक्ति संवेदनशील है और उसे नई चीजों से एलर्जी हो जाती है। ऐसे में वह व्यक्ति डॉक्टर या विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही चिया बीज का सेवन करे।
  • चिया बीज में खून को पतला करने का गुण पाया जाता है। इसलिए यदि कोई पहले से ही खून पतला करने की दवा का सेवन कर रहा हैतो उसे इसके सेवन से बचना चाहिए।
  • जिन लोगों की हाल ही में सर्जरी हुई हो, उन्हें चिया बीज का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • ब्लीडिंग डिसऑर्डर के समय भी इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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Evidence-based Reasons to Trust Ayurveda

Posted 14 December, 2021

Evidence-based Reasons to Trust Ayurveda

The efficacy of Ayurveda and its products has always been a controversial topic. People think of it as pseudo-science and dismiss its potency. Now, all of us have seen our mothers applying turmeric if they accidentally injure themselves with a knife while working in the kitchen. Haven’t you?

 

That happens because turmeric has a great healing capacity to cure. If turmeric can work then, why do we not believe in other herbs used in Ayurveda?

 

Further we will see several evidence-based reasons that would give us a reason to question our conscience. Just because Ayurveda works on a different plane does not mean it’s completely a fuss.

 

What is Ayurveda

Composed of two words i.e., “Ayu” is life and “Veda” is science or knowledge, Ayurveda is the Science of life. Almost 5000 years old, originated from India, Ayurveda is a holistic approach to mental and physical health. It remains one of the oldest medical systems that are still widely used and practiced in our homes. It is the treatment of illnesses by using natural ingredients, herbs, minerals, and other natural remedies provided by nature.

 

Ayurveda pays attention to mental well-being as it works by balancing the body’s doshas (Vata, Pitta, and Kapha). These doshas, when in perfect harmony leads to a healthy body. A disbalance in these doshas leads to several short-term as well as long term diseases.

 

Unlike allopathic treatment, which works to suppress the symptoms of immediate illness, Ayurveda works on the root cause of the illness and heals the body to prevent further illnesses. This is due to the belief of Ayurveda that treats the ailments completely and not by suppressing it. It heals the body and regulates overall health. 

 

Text-based Evidence of Ayurveda

Our history is known to us through the medium of books. The main classics of Ayurveda i.e, The Ashtanga Hridaya of Vagbhata, Charaka Samhita, Sushruta Samhita give detailed descriptions of more than 700 herbs and 6,000 formulations. These formulations are strictly in appropriate proportions to provide relief.

 

These classics also offer detailed guidance about lifestyle, nutrition, and diet according to the individual constitution (body Prakriti) and by the seasons.

 

What are the different techniques in Ayurveda?

Ayurveda uses a wide range of treatments which includes Panchakarma (five actions), Yoga, Sound Therapy, Breathing exercises, Herbal medicine, Massage, as well as Acupuncture.

 

Each of these therapies is further divided into several other types. Take, for example, massage. Massage in Ayurveda is done with oils, pastes (lep), food ingredients, leaves, Kadha, medicated fumes. Each of these has a different technique and procedure of application. These are penetrated deep into the skin and provide relaxation. 

 

The principle of action is solely dependent upon the nutritional value of the ingredients used while massaging. The technique of massage is also an important factor.

 

How are Ayurvedic treatments effective in treating lifestyle diseases?

Lifestyle diseases such as diabetes, blood pressure, obesity, and hypertension occur due to unhealthy eating habits and the routine of life. This creates a disbalance (disrupts Vata, Kapha, and Pitta). Ayurveda is the process of healing through treating the disbalances of the body. It cures diseases by resetting the body’s biological rhythms.

 

The medication offered for these lifestyle diseases in Ayurveda is coupled with changes in your lifestyle and practising yoga. This helps in rectifying the root cause of the problem. Ayurvedic medicines are herbal medicines extracted from natural ingredients.

 

Believing in home remedies but not in Ayurveda?

Not everything needs to be consumed to be effective in healing. Likewise, Ayurvedic ingredients work wonders on applying as the external application further gets into action to produce the desired results.

 

When we repeat OM, we feel a vibration in the body. The repetition of Om provides us with a sense of relief and serenity, helping us get rid of anxiety. Now, some of us might question how listening can take away our anxiety and stress. This happens because the sound waves of Om affect our nerves and help in relaxing the muscles of the nerves.

 

A Note to Conclude

We have been blinded by the west to the extent that allopathic treatment seems to be magical while treatment originated in India seems bogus to us.

 

Our belief is so dependent on the convenience that we would use home remedies but when it comes to believing in the origin of those remedies, we would out rightly negate it altogether.

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जानें, चौलाई के बेहतरीन फायदों के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, चौलाई के बेहतरीन फायदों के बारे में

चौलाई को राजगिरा के नाम से भी पहचाना जाता है। इसका अधिकांश उपयोग व्रत के समय में किया जाता है। लेकिन बीते कुछ समय से इसके स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए इसका प्रयोग दैनिक आहार के लिए भी होने लगा है। चौलाई में चाशनी मिलाकर लड्डू और चिक्की बनाकर खाया जाता है।

 
क्या है चौलाई?

चौलाई को रामदाना और राजगिरा भी कहा जाता है। यह छोटे-छोटे बीज होते हैं। जो चौलाई के पौधे पर फलते-फूलते हैं। इन बीजों के पक जाने पर पौधों को काटकर इन बीजों को बाहर निकाला जाता है। चौलाई का वैज्ञानिक नाम अमरंथुस (Amaranthus) और अंग्रेजी में इसे अमरंथ के नाम से जाना जाता है। आज चौलाई को किराने की दुकान या सुपर मार्केट कहीं से भी खरीदा जा सकता है। चौलाई को चौलाई के लड्डू, चौलाई की चिक्की, चौलाई का हलवा आदि कई रूप में खाया जाता है।

 
चौलाई के फायदे:
पाचन तंत्र के लिए-

चौलाई शरीर के पाचन तंत्र को मजबूत करने और उसकी सक्रियता बढ़ाने में मदद करती है। क्योंकि चौलाई के बीजों में पाए जाने वाला फाइबर शरीर के पाचन एंजाइमों को सक्रीय बनाता है। इसके अतिरिक्त चौलाई शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का काम भी करती है।

 
प्रोटीन के स्रोत के रूप में-

चौलाई में सभी आवश्यक 9 अमीनो एसिड और बेहद दुर्लभ माने जाने वाला लाइसिन नाम का एमिनो एसिड प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। शरीर में लाइसिन का मुख्य काम कैल्शियम का अवशोषण, चोटों की रिकवरी, स्नायु प्रोटीन का निर्माण और एंटीबॉडीज, एंजाइमों एवं हार्मोन का उत्पादन करना होता है। वहीं चौलाई में मौजूद प्रोटीन्स की सहायता से शरीर में महत्व और कोशिकाओं का निर्माण भी होता है।

 
वजन कम करने के लिए-

चौलाई शरीर में इंसुलिन के स्तर को प्रभावशाली तरीके से कम करने का काम करती है। इसके अलावा यह हार्मोन को रिहा करके व्यक्ति को भरे पेट का एहसास भी कराती है। इसलिए चौलाई को वजन कम करने के लिए एक अच्छा विकल्प माना जाता है।

 
प्रतिरोधक क्षमता के लिए-

चौलाई में जिंक की अच्छी मात्रा मौजूद होती है। जो इम्यून सिस्टम को और बेहतर करने का काम करती है। इसके अलावा चौलाई में विटामिन-ए भी पाया जाता है। जो शरीर में इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करता है।

 
हड्डियों के लिए-

चौलाई कैल्शियम से समृद्ध खाद्य पदार्थ है। और चूंकि कैल्शियम हड्डियों के लिए एक जरूरी खनिज होता है। इसलिए चौलाई का सेवन हड्डियों से संबंधित समस्याओं जैसे ऑस्टियोपोरोसिस आदि से बचाने में मदद करता है। इसके अलावा चौलाई हड्डियों को रिपेयर करने और मजबूती प्रदान करने का काम भी करती है।

 
सूजन के लिए-

चौलाई में एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी इंफ्लेमेटरी जैसे सूजन को कम करने वाले गुण पाए जाते हैं। जो सूजन से संबंधित परेशानियों को कम करने का काम करते हैं। इसके अलावा चौलाई सेलुलर झिल्ली को भी ऑक्सीडेटिव के नुकसान से बचाने का काम करती है।

 
शुगर के उपचार के लिए-

चौलाई का इस्तेमाल शुगर के उपचार के लिए भी किया जाता है। चूंकि चौलाई में इंसुलिन के स्तर को कम करने की क्षमता होती है। इसके अलावा यह शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में भी मदद करती है। इस प्रकार चौलाई को मधुमेह के मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ माना जाता है।

 
कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित के लिए-

चौलाई में फाइबर भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। जो शरीर में हाई कोलेस्ट्राल को नियंत्रण कर, धमनियों को सख्त होने से बचाता है। इसलिए कोलेस्ट्रॉल की समस्या से ग्रस्त लोगों के लिए चौलाई का सेवन एक अच्छा विकल्प माना जाता है।

 
आंखों के लिए-

चौलाई में विटामिन्स की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। जो आंखों के स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए चौलाई आंखों के संक्रमण, धब्बे-दाग, अधः पतन और मोतियाबिंद के खतरों को कम करने में मदद करती है।

 
बालों के लिए-

चौलाई में एक लाइसिन नाम का अमीनो एसिड मौजूद होता है। जो आमतौर पर व्यक्ति के शरीर में नहीं बन पाता। इस अमीनो एसिड की खास बात है कि यह कैल्शियम की दक्षता में सुधार करके बालों को मजबूती देने का काम करता है। परिणामस्वरूप बालों का झड़ना कम होता है। इसलिए बालों के लिए चौलाई को अच्छा माना जाता है।

 
सीलिएक से बचाने में मददगार-

सीलिएक रक्ताल्पता से संबंधित बीमारी है। जो आंतों में विकार पैदा करके पोषक तत्वों के पाचन को मुश्किल बनाती है। लेकिन चौलाई में कुछ ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो इस समस्या को दूर करने का काम करते हैं। इसलिए चौलाई को सीलिएक का एक सफल उपचार माना जाता है।

 
चौलाई का उपयोग-
  • चौलाई का हलवा बनाकर खाया जाता है।
  • चौलाई को घी में भूनकर दूध के साथ उबालकर पिया जाता है।
  • चौलाई को लड्डू बनाकर खाया जाता है।
  • जो लोग मीठा कम खाते हैं। वह लोग इसका सेवन खिचडी के रूप में करते हैं।
  • चौलाई को खीर बनाकर भी खाया जाता है।
  • भूनी हुई चौलाई में चाशनी मिलाकर, उसकी पट्टी बनाकर खाया जाता है।
  • चौलाई का इस्तेमाल सूजी के रूप में गुझिया के लिए भी किया जाता है।
चौलाई के नुकसान-
  • चौलाई का अधिक सेवन ब्लड प्रेशर और किडनी स्टोन के खतरे को बढ़ा सकता है। इसलिए इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
  • चौलाई में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। इसलिए इसके अधिक सेवन से पेट फूलने और पेट में ऐंठन जैसी समस्या हो सकती है। इसलिए इसके अधिक सेवन से बचना चाहिए।
  • चौलाई में लाइसिन नाम का अमीनो एसिड मौजूद होता है। लेकिन कुछ बच्चे और लोग लियोसिन को सहन नहीं कर पाते। जिससे उन्हें पेट दर्द की शिकायत हो सकती है। इसलिए इसके अधिक सेवन से परहेज करें।
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Know about Chamomile tea and its Benefits

Posted 14 December, 2021

Know about Chamomile tea and its Benefits

Tea is one of the essential beverages of our daily life. There are many types of tea available in the market today that range from simple tea to lemon tea, green tea, mint tea, ginger tea, black tea etc. There is also chamomile tea in these teas whose name before today, many people would not even have heard but chamomile tea is a herbal tea which is a treasure trove of health benefits for the body. This tea is prepared from the flowers of chamomile and has anti-spasmodic and anti-inflammatory properties which work to reduce stress, regulate sleep, protect the skin and soothe menstrual cramps. Apart from this, it also helps in boosting immunity and reducing stomach bloating.

 
What is Chamomile Tea?

Chamomile tea is prepared from the flowers of chamomile. It is a plant belonging to the Asteraceae family. To prepare this tea, chamomile flowers are first dried, then they are boiled in water. Chamomile tea has been used for medicinal purposes since ancient times. Apart from this, chamomile flowers have also been used for Ayurvedic and natural remedies and poultices.

Today, tea bags of chamomile tea are easily available in many markets and malls which is used in the same way as green tea. Chamomile tea has been used for years because of its pleasant taste and health benefits. Many nutrients are found in this tea like flavonoids, anti-inflammatory, powerful antioxidants and healing properties. Apart from this, amounts of potassium, vitamin A, calories, fluoride, carbohydrates, magnesium, folate and calcium are also found in it. Due to all these properties which are very important and beneficial for health, it is also consumed as a medicinal drink.

 
Benefits of Chamomile Tea
For anxiety and better sleep

Chamomile tea contains a flavonoid called apigenin which has sedative effects that enhance the effect of sleep which help a person to have a good sleep. Apart from this, chamomile tea also has anticonvulsant properties which calm the mind, works to remove anxiety.

 
For diarrhoea and stomach related problems

Chamomile tea helps to relax the muscles that carry food to the intestine due to which the person gets relief from stomach pain and gas. At the same time, chamomile tea also has the ability to inhibit the bacteria called Helicobacter pylori that cause stomach ulcers. Apart from this, drinking chamomile tea by mixing other herbs like fennel, mint, liquorice and vervain can also control diarrhoea.

 
For diabetes and glycaemic

Chamomile tea works by regulating sugar levels in the body, increasing the effect of glycogen in the liver and preventing the build-up of a sugar compound called sorbitol in red blood cells. It maintains the level of insulin in the body which helps in controlling blood sugar. Apart from this, chamomile tea also works to protect the cells of the pancreas from damage caused by oxidative stress due to an increase in blood sugar. It works by reducing the bad cholesterol (LDL) of the body and increasing the effectiveness of insulin. Thus, this tea also aids in glycaemic control.

 
For chronic inflammation and cancer

Chronic inflammation is the inflammation inside the body, which causes damage to tissues or cells and causes diseases like cancer. This inflammation is usually caused by an increase in the amount of nitric oxide in the body which requires an effective anti-inflammatory agent to prevent or control. Since chamomile tea contains flavonoid anti-inflammatory agents which reduces the effect of nitric oxide in the body and provide relief from inflammation. Thus, this tea also helps in the treatment of cancer.

 
For bones

Osteoporosis is a common process due to ageing which happens to most people. In this disease, the bones become weak by losing nutrition due to which the risk of breaking bones easily increases. Selective estrogen receptor modulators are used to prevent or avoid the progression of this problem for which chamomile tea is also used because it has anti-estrogenic properties which work to strengthen bones.

 
For a healthy heart

The increase in cholesterol in the body and sugar in the blood are the main causes of heart disease. Therefore, to keep the heart healthy for a long time, it is advisable to keep cholesterol and blood sugar under control. For this, it is considered good to consume chamomile tea because this tea works to reduce increased blood sugar and bad cholesterol (LDL) due to which the risk of heart disorders is reduced.

 
For skin

Chamomile tea has anti-inflammatory properties which protect the skin from rashes, sunburns and many types of bacterial infections. Apart from this, its anti-inflammatory properties also help in reducing inflammation of the skin.

 
Side effects of Chamomile Tea
  • People who are allergic to flowers of the daisy family should avoid consuming chamomile tea because they can also be allergic to it.
  • Pregnant women should also stay away from chamomile tea because by consuming this tea during pregnancy, urine muscles can be tight and harm the fetus growing in the womb.
  • Chamomile tea thins the blood. Therefore, people taking blood-thinning medicines should take them only on the advice of the doctor.
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क्या है चंद्रप्रभा वटी? जानें, इसके फायदों के बारे में

Posted 24 May, 2022

क्या है चंद्रप्रभा वटी? जानें, इसके फायदों के बारे में

चंद्रप्रभा वटी एक बहुत ही प्रसिद्ध और लाभप्रद आयुर्वेदिक औषधि है। इसके नाम से ही उसके गुणों को समझा जा सकता है। चंद्र यानी चंद्रमा और प्रभा यानी उसकी चमक। अर्थात चंद्रप्रभा वटी के सेवन से शरीर में चंद्रमा जैसी कांति या चमक और बल पैदा होता है। इसलिए वह बीमारियां जिनके उपरान्त शारीरिक कमजोरी महसूस होती है। उन बीमारियों की दवाओं के साथ चंद्रप्रभा वटी भी दी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार चन्द्रप्रभा वटी स्त्री-पुरुष दोनों वर्ग के लिए उपयोगी एवं फायदेमंद साबित होती है। चंद्रप्रभा वटी कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद भी करती है।

 
क्या है चन्द्रप्रभा वटी?

आयुर्वेद में चंद्रप्रभा वटी बेहद लोकप्रिय और उपयोगी वटी है। जो शुद्ध गुग्गुलू, शुद्ध शिलाजीत, मिश्री, लोह भस्म, काली निशोथ, दन्तीमूल, बंसलोचन या तबाशीर, तेजपत्र, दालचीनी, छोटी इलायची के बीज, वच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोए, देवदारु, अतिविषा-अतीस, दारुहल्दी, हल्दी, पीपलामूल, चित्रक, धनिया, हरड़, बहेड़ा, आमला-आंवला, चव्य, विडंग, गजपीपली, काली मिर्च, पिप्पली, शुंठी, स्वर्णमाशिक भस्म, स्वर्जिका क्षार (सज्जी क्षार), यवक्षार, सैंधव लवण, सौवर्चल लवण, विड लवण जैसी जड़ी-बूटियों से मिलकर बनी होती है। चंद्रप्रभा वटी के उपयोग से शरीर को कई बीमारियों बचाया जा सकता है जैसे कि गुर्दे की पथरी, पेशाब में रुकावट, मूत्राशय, बार-बार पेशाब आना, महिलाओं की समस्या, स्वप्नदोष इत्यादि।

 
चन्द्रप्रभा वटी के फायदे-
जोड़ों में दर्द के लिए

चंद्रप्रभा वटी के उपयोग से घुटनों का दर्द, जोड़ों का दर्द, पैरों की सूजन आदि से भी छुटकारा पाया जा सकता है। क्योंकि इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं, जो दर्द से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं। 

 
शरीर की स्फूर्ति के लिए

चंद्रप्रभा वटी के नियमित सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है और शक्तिशाली बनता है। क्योंकि अधिक थकान महसूस होने पर चंद्रप्रभा वटी एक टॉनिक के रूप में काम करती है।

 
उच्च रक्तचाप के लिए

चंद्रप्रभा वटी में मौजूद कई औषधियां उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसलिए इसके सेवन को उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए भी बढ़िया माना जाता है।

 
किडनी संबंधी रोग के लिए

किडनी की समस्या होने पर मूत्राशय से संबंधित परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं। परिणामस्वरूप मूत्र आने में जलन, पेट में जलन, मूत्र का रंग लाल होना और अधिक दुर्गंध आना जैसी कई समस्यां होने लगती हैं। इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए चंद्रप्रभा वटी का सेवन करना सेहत के लिए अच्छा रहता है।

 
प्रजनन क्षमता के लिए

पुरुष और महिला में से किसी की भी प्रजनन क्षमता कम होने पर चंद्रप्रभा वटी उस क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है। चंद्रप्रभा वटी को एक गर्भाशय टॉनिक भी माना जाता है। क्योंकि इसमें कई ऐसे तत्व हैं जोकि गर्भाशय को रोकने के लिए बेहद लाभप्रद माने जाते हैं।

 
यूरिक एसिड के लिए

यदि किसी व्यक्ति को यूरिक एसिड की समस्या है तो उसे ठीक करने में चंद्रप्रभा वटी बेहद लाभदायक होती है। यह शरीर में यूरिक एसिड को स्थिर करके किडनी को स्वस्थ रखती है और किडनी के कामकाज को बढ़ावा देती है।

 
तनाव के लिए

चंद्रप्रभा वटी काम के बोझ और उसके कारण होने तनाव कम एवं दूर करने में भी मदद करती है।

 
वीर्य वृद्धि के लिए

चंद्रप्रभा वटी महिला और पुरुष दोनों के लिए लाभदायक है। इसलिए जिन पुरुषों में वीर्य की कमी होती है। जिसके कारण बच्चा पैदा करने में समस्या आती है। उन पुरुषों के लिए चंद्रप्रभा वटी काफी फायदेमंद मानी जाती है। इसके सेवन से वीर्य की मात्रा की बढ़ती है और वीर्य को गाढ़ा होने में भी मदद मिलती है।

 
नपुंसकता और स्वप्नदोष के लिए

जिन पुरुषों को नपुंसकता और स्वपनदोष की समस्या होती है। उनके लिए चंद्रप्रभा वटी का नियमित सेवन वरदान साबित होती है। जो उनकी नपुंसकता और स्वप्नदोष की समस्या को दूर करने में मदद करती है।

 
चंद्रप्रभा वटी के साइड इफेक्ट

चूंकि चंद्रप्रभा वटी पूर्ण रूप से एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसलिए इसका कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता। लेकिन इसका ओवरडोज लेने पर शरीर में इन साइड इफेक्ट्स को देखा जा सकता है।

  • पेशाब में जलन होना।
  • सांस लेने में दिक्कत होना।
  • डायरिया (दस्त) की समस्या।
  • मतली, उल्टी की समस्या आदि।
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Know about Bhumi Amla and its Benefits

Posted 14 December, 2021

Know about Bhumi Amla and its Benefits

Bhumi Amla is known for its medicinal properties for the treatment of many diseases. It helps in curing problems like fever, cough, itching, phlegm, and excessive thirst. Apart from this, bhumi Amla is considered a divine medicine for loss of appetite, sexual arousal, gastric acid and other stomach problems, kidney stones and all kinds of liver diseases. Antiviral properties and antioxidants are present in bhumi Amla.

 
What is Bhumi amla?

Bhumi amla is astringent and sweet in taste. It is obtained from small plants produced during the rainy season. After flowering and fruiting in autumn, its plants dry up in the summer season. The fruit obtained from this plant, which is called bhumi Amla in common language, is round in appearance and small in size. Therefore, it is also called Bhudhatri and Bhumyamal in some places. The botanical name of bhumi Amla is Phyllanthus niruri.

 
Benefits of Bhumi Amla
For eye disease

Grinding bhumi amla with rock salt and water in a copper vessel, applying it outside the eyes is beneficial in diseases related to eyes.

 
For headache

Mixing ingredients like bhumi Amla, Pippali, Sariva, Red Sandalwood and Atis in ghee and taking it regularly provides relief in headaches.

 
For mouth ulcers

Gargling with a decoction made from bhumi amla leaves cures mouth ulcers quickly.

 
For intestinal diseases

Dry the bhumi amla in the shade and keep it coarsely ground and cook 10 grams bhumi amla in 400 ml water till it reduces to less than one-fourth. Now drink this water every morning on an empty stomach and at night one hour before meals. Doing this helps in the quick healing of intestinal wounds and ulcers.

 
For Menstrual disorders

Grinding bhumi amla seeds and drinking with washed rice water twice or thrice a day is beneficial in menstrual disorders. By doing this, there is also a reduction in excessive blood flow during menstruation.

 
For swollen breasts

Grinding bhumi Amla Panchang and applying it on the breasts helps in reducing the swelling of the breasts.

 
For Tuberculosis

Cooking bhumi amla, red sandalwood, pippali, sariva and atis in ghee and taking it is beneficial in tuberculosis.

 
For cough
  • Heat 50 grams bhumi Amla Panchang in half a litre of water and cook it till it becomes one fourth. Now taking one spoonful of this decoction twice a day provides relief in respiratory diseases.
  • Mixing ingredients like bhumi Amla, Pippali, Sariva, Red sandalwood and Atis in ghee, taking regular intake also provides relief in cough.
For stomach disease
  • Boil the leaves of bhumi amla in water and filter that water and drink it, it provides relief in stomachache.
  • Make a decoction of the leaves and root of bhumi amla and take it twice a day, it is beneficial in ascites disease.
  • Heat 50 grams bhumi Amla Panchang in half a litre of water and cook it till it becomes one fourth. Now taking one spoon of this decoction thrice a day is beneficial in ascites disease.
For diarrhoea
  • Heat 50 grams bhumi Amla Panchang in 400 ml water and cook it till it becomes one fourth. Now add 5 grams of fenugreek powder to it and drink it slowly. Doing this provides relief in diarrhoea.
  • Boil 20 grams bhumi amla leaves in 200 ml water, filter it and sip it slowly, it ends diarrhoea.
For fever
  • Grind soft leaves of bhumi amla with black pepper, then make tablets of it and take one tablet twice a day. This helps in curing fever.
  • Mixing ingredients like bhumi Amla, Pippali, Sariva, Red Sandalwood and Atis in ghee and taking it regularly also provides relief in fever.
  • Cooking Bala, bhumi Amla, Gokhru, Nimb, Parpat, and Nagarmotha in ghee and taking it, is also beneficial in a high fever.
 
For itching
  • Grinding the leaves of gooseberry, adding salt to it and applying it on the itchy area ends itching.
  • Grinding the tender leaves of gooseberry on the injury and applying it provides relief to the injury and its pain.
 
For respiratory disease
  • Gooseberry is very beneficial in respiratory diseases. Grind the root of bhumi amla with the help of water. Now add sugar candy or honey and consume it. It is beneficial in respiratory diseases through the nasal passages.
  • Heat 50 grams bhumi Amla Panchang in half a litre of water and cook it till it becomes one fourth. Now taking one spoonful of this decoction twice a day provides relief in respiratory diseases.
To cure wounds
  • It is good to wash the wound with a decoction made from bhumi Amla leaves.
  • Applying the juice of bhumi amla on the wound heals the wound quickly.
  • Applying a paste of bhumi amla leaves on the wound heals quickly.
  • To cure the swelling of the wound, ground Amla Panchang with rice water can be applied to the wound.
Useful parts of Bhumi Amla
  • Leaves of Bhumi amla
  • Bhumi amla root
  • Panchang of Bhumi Amla
Where is Bhumi Amla found?

Gooseberry is found in almost all places of India. Actually, it grows as a weed in humid places. Its plants are found up to an altitude of about 900 meters.

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जानें, कैमोमाइल चाय और इसके फायदों के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, कैमोमाइल चाय और इसके फायदों के बारे में

चाय हमारे दैनिक जीवन के जरूरी पेय पदार्थों में से एक है। आज बाजार में तमाम तरह की चाय मौजूद हैं। इनमें साधारण चाय से लेकर लेमन टी, ग्रीन टी, मिंट टी, जिंजर टी, ब्लैक टी आदि शामिल हैं। इन्हीं चाय में एक कैमोमाइल टी भी है। जिसका नाम आज से पहले, बहुत लोगों ने सुना भी नहीं होगा। लेकिन कैमोमाइल टी एक हर्बल चाय है। जो बॉडी के लिए स्‍वास्‍थ्‍य लाभों का खजाना है। यह चाय कैमोमाइल नाम के फूलों से तैयार की जाती है। कैमोमाइल चाय में एंटी-स्पाज्मडिक (antispasmodic) और एंटी-इन्फ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं। जो तनाव को कम करने, नींद को नियंत्रित करने, त्वचा की रक्षा करने और मासिक धर्म में होने वाली ऐंठन (menstrual cramps) को शांत करने करने का काम करते हैं। इसके अलावा यह चाय इम्यूनिटी को बूस्ट करने और पेट की सूजन को कम करने में भी मदद करती है।

 
क्या है कैमोमाइल टी?

कैमोमाइल टी को कैमोमाइल नाम के फूलों से तैयार किया जाता है। यह एस्टरेसिया परिवार से संबंधित पौधा होता है। इस चाय को तैयार करने के लिए पहले कैमोमाइल फूलों को सुखाया जाता है, उसके बाद उन्हें पानी में उबाला जाता है। पुरातन काल से कैमोमाइल चाय को चिकित्सकीय उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके अलावा कैमोमाइल के फूलों को भी आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपचार एवं प्रलेप (poultices) के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।

आज कई बाजार और मॉल्स में कैमोमाइल चाय के टी बेग्स आसानी से मिल जाते हैं। जिनका उपयोग ग्रीन टी की तरह ही किया जाता है। कैमोमाइल चाय सुखद स्वाद और स्‍वास्‍थ्‍य लाभों के कारण वर्षों से इस्तेमाल की जाने वाली औषधि है। इस चाय में फ्लेवोनोइड, एंटीइंफ्लेमेटरी, शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और हीलिंग गुण जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें पोटेशियम, विटामिन ए, कैलोरी, फ्लोराइड, कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम, फोलेट और कैल्शियम आदि की मात्रा भी पाई जाती हैं। चूंकि यह सभी गुण  स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहद महत्वपूर्ण और फायदेमंद होते हैं। इसलिए आज इसका सेवन एक औषधीय पेय के रूप में भी किया जाता है।

 
कैमोमाइल टी के फायदे
एंग्जायटी और बेहतर नींद के लिए

कैमोमाइल चाय में एपिजेनिन नामक फ्लेवोनोइड मौजूद होता है। जिसमें नींद का प्रभाव बढ़ाने वाले सेडेटिव प्रभाव (sedative effects) पाए जाते हैं। जो मनुष्य को अच्छी नींद देने में मदद करते हैं। इसके अलावा कैमोमाइल चाय में एंटीकन्वल्सेंट गुण भी मौजूद होते हैं। जो दिमाग को शांत कर, चिंता (एंग्जायटी) को दूर करने का काम करते हैं।

 
डायरिया और पेट संबंधी समस्याओं के लिए

कैमोमाइल चाय खाने को आंत तक ले जाने वाली मांसपेशियों को रिलैक्स करने में मदद करती है। जिससे व्यक्ति को पेट दर्द और गैस से राहत मिलती है। वहीं, कैमोमाइल चाय में पेट में अल्सर फैलाने वाले हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नामक बैक्टीरिया को रोकने की भी क्षमता होती है। इसके अलावा कैमोमाइल चाय में सौंफ, मिंट, लिकोरिस और वर्वेन जैसी अन्य हर्ब को मिलाकर पीने से डायरिया को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

 
मधुमेह और ग्लाइसेमिक के लिए

कैमोमाइल चाय शरीर में शुगर के स्तर को नियंत्रित कर, लिवर में ग्लाइकोजन के प्रभाव को बढ़ाने और लाल रक्त कोशिकाओं में सॉर्बिटॉल नामक शुगर कंपाउंड को बढ़ने से रोकती है। वहीं, यह शरीर में इंसुलिन के स्तर को बनाए रखती है। जिससे ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके अलावा कैमोमाइल टी, ब्लड शुगर के बढ़ने से अग्न्याशय की कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से होने वाली क्षति से बचाने का काम भी करती है। यह शरीर के खराब कॉलेस्ट्रोल (LDL) को कम और इंसुलिन के प्रभाव बढ़ाने का काम करती है। इस प्रकार यह चाय ग्लाइसेमिक नियंत्रण में भी सहायता करती है।

 
क्रोनिक इन्फ्लेमेशन और कैंसर के लिए

क्रोनिक इन्फ्लेमेशन (Chronic inflammation) शरीर के अंदर की उस सूजन को कहते है, जो टिश्यू या सेल्स को नुकसान पहुंचाकर कैंसर जैसे रोग का मुख्य कारण बनती है। शरीर में यह सूजन आमतौर पर नाइट्रिक ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से होती है। जिसे रोकने या नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावी एंटीइन्फ्लेमेटरी एजेंट की जरूरत होती है। चूंकि कैमोमाइल चाय में फ्लेवोनोइड एंटीइंफ्लेमेटरी एजेंट मौजूद होता है। जो शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड के प्रभाव को कम करने और इन्फ्लेमेशन से आराम दिलाता है। इस प्रकार यह चाय कैंसर के उपचार में भी मदद करती है।

 
हड्डियों के लिए

बढ़ती उम्र के कारण ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या होना एक सामान्य प्रक्रिया है। जो अधिकांश लोगों के साथ होती है। इस बीमारी में हड्डियां पोषण खोकर कमजोर हो जाती है। जिससे हड्डियों का आसानी से टूट जाने का खतरा बढ़ जाता है। इस समस्या को बढ़ने से रोकने या बचने के लिए सेलेक्टिव एस्ट्रोजन रिसेप्टर मोड्यूलेटर (selective estrogen receptor modulators) का उपयोग किया जाता है। जिसके लिए कैमोमाइल टी को भी इस्तेमाल में लाया जाता है। क्योंकि इसमें एंटी-एस्ट्रोजेनिक प्रभाव पैदा करने वाले गुण मौजूद होते हैं। जो हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करते हैं।

 
स्वस्थ दिल के लिए

शरीर में कोलेस्ट्रॉल और खून में शुगर का बढ़ना, हृदय रोग के मुख्य कारण होते हैं। इसलिए हृदय को लंबे समय तक स्वस्थ रखने के लिए कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर नियंत्रित रखने सलाह दी जाती है। इसके लिए कैलोमाइल टी का सेवन करना अच्छा माना जाता है। क्योंकि यह चाय बढ़े हुए ब्लड शुगर और खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को कम करने का काम करती है। जिससे हृदय विकार का खतरा कम हो जाता है।

 
त्वचा के लिए

कैमोमाइल टी में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। जो त्वचा पर पड़ने वाले रैशेज, सनबर्न और कई प्रकार के बैक्टीरियल संक्रमण से बचाने का काम करते हैं। इसके अलावा यह एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण त्वचा की सूजन को कम करने में भी मदद करते हैं।

 
कैमोमाइल टी के नुकसान
  • जिन लोगों को डेजी परिवार के फूलों से एलर्जी है। उन्हें कैमोमाइल टी के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि उन्हें इससे भी एलर्जी हो सकती है।
  • गर्भवती महिलाओं को भी कैमोमाइल टी से दूरी बना लेनी चाहिए। क्योंकि गर्भावस्था में इस चाय का सेवन करने से यूरिन मसल्स टाइट और गर्भ में पल रहे भ्रूण को नुकसान हो सकता है।
  • कैमोमाइल चाय रक्त को पतला करती है। इसलिए खून को पतला करने वाली दवाइयों का सेवन करने वाले लोगों को इसका सेवन डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए।
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Benefits and Side effects of Gokshura

Posted 14 December, 2021

Benefits and Side effects of Gokshura

There are many wild plants that grow around homes and gardens. One of them is Gokshura also known as Tribulus terrestris in western countries. This plant bears small yellow flowers that bloom in it and its fruits are like thorns and green in color. Gokshura is a Sanskrit name which means "cow's hoof" in literal sense. It is named Gokshura because its fruit has small thorns on the upper surface. This plant grows in a dry climate. It is also known by other names like Gokhru, Gudkhul, Trikant etc. It is believed that the origin of Gokshura is India but it is widely grown in parts of Africa, Asia, Middle East and Europe apart from India. Therefore, this herb is used in traditional Chinese medicine apart from Indian Ayurveda.

 
Medicinal properties of Gokshura

In Ayurveda, various parts of Gokshura like seeds, roots, flowers, leaves, twigs etc. are considered extremely beneficial for health. At the same time, due to its nutritious and curative properties, it is also used as a medicine in Ayurveda for many diseases. Gokshura is hot and bitter in taste due to which it is fever preventive, anthelmintic, and helps in curing physical weakness. Apart from this, it also helps in curing thirst, tridosha and vata pain. Its fruit has diuretic properties. The roots of this medicine are used in the treatment of cough, asthma, anemia and internal inflammation. Apart from this, the use of ash from this plant also proves beneficial in the treatment of arthritis. In Ayurveda, Gokshura has a prominent place among nutritious medicines that increase strength.

 
Benefits of Gokshura
For difficulty while urinating

Difficulty passing urine can be due to many reasons. If the cause is not prostate, then the powder of the root of gokshura helps in this difficulty due to its diuretic properties. It allows urine to pass with proper flow. Apart from this, taking a decoction of the root of gokshura is beneficial in all kinds of problems related to urination.

 
Beneficial in menstrual disorders

Gokshura is used to cure various gynecological problems and to treat menstrual disorders in women. It acts as a tonic for the uterine muscles and endometrium. In the problem of excessive bleeding during menstruation, mixing sugar candy or honey in the powder of the root of gokshura is beneficial, by doing this, the menstruation becomes regular.

 
For enhancing sexual power

By taking gokshura, there is benefit in premature ejaculation, lack of semen, mental weakness and weakness in men. If a person feels any kind of physical or internal weakness, especially for sexual stamina, consuming gokshura is very beneficial for them because the elements found in Gokshura help in increasing sexual stamina by removing the internal weakness of the body. According to Ayurveda, the quality of Balya and Vrushya is also found in Gokhru which helps to reinforce metals or tissues. For this, drink Gokshura powder with milk or warm water.

 
Beneficial for sportspersons and athletes

The significant benefit of Gokshura is believed to improve the performance of players and athletes. Actually, gokhru has immunomodulatory and anti-inflammatory properties which help in increasing physical capacity. Also, the consumption of gokshura protects players from heart-related problems. According to experts, the consumption of gokshura plays an active role in increasing physical stamina, especially in weight lifting athletes.

 
For Digestive Power

Consuming gokhru is a great remedy to overcome the problem of digestion and acidity. It helps in increasing digestive power. Sipping a decoction made from the powder of Gokhru fruit and peepal powder and drinking it improves digestion power.

 
For respiratory disease or asthma

Due to the increase of Kapha dosha in the body, breathing problems also arise. Since phlegm sedative properties are found in gokshura, therefore, the use of gokshura helps in reducing respiratory diseases and their symptoms. For this, taking 2 grams powdered fruit powder with 2-3 pieces of dried figs thrice a day for a few days provides relief in respiratory diseases or asthma.

 
For dysentery

The medicinal properties of Gokshura prove beneficial in problems like dysentery. If the diarrhoea is thin, white and foul-smelling, feed Gokshura Phal Churna (Gokhru Churna) with buttermilk twice a day.

 
For heart health

Gokshura is rich in antioxidants which help in improving the cardioprotective functions. It helps in reducing and controlling the increased levels of blood pressure and cholesterol and also helps in the prevention of atherosclerosis and other cardiovascular diseases.

 
Beneficial in joint pain and arthritis

Gokshura fruit powder has an antiarrhythmic effect which helps in relieving joint pain and arthritis. Gokshura reduces the symptoms of arthritis by improving blood pressure. At the same time, its antinociceptive and anti-inflammatory properties help in reducing the pain and swelling caused by arthritis.

 
For eczema

Eczema is also known as atopic dermatitis. Eczema is a type of skin disorder in which the person's skin starts itching and there may also be wounds. Gokshura fruit has anti-inflammatory properties which are helpful in reducing the risk of eczema.

 
For skin

Gokshura fruit powder also works to make the skin glowing. Certain skin creams are prepared using the extract of Gokhru. It has anti-viral, anti-bacterial and anti-inflammatory properties. Apart from this, skin-related disorders are cured by applying the powder of Gokhru making the skin soft and glowing.

 
Uses of Gokshura
  • Gokshura powder is drunk with milk or hot water.
  • Dried powder and ginger powder are boiled in a glass of water and consumed in the form of a decoction.
  • Gokshura extract is consumed and also used on the skin.
  • A decoction is made from its stem and drunk.
  • Its powder is mixed with whey and drunk.
  • It is used in the form of capsules or tablets.
  • The powder of Gokshur mixed with honey is made into a paste and applied to the skin.
Side effects of Gokshura
  • Its excessive consumption can cause hepatotoxicity.
  • Excessive consumption can increase testosterone more than necessary which is dangerous for heart health.
  • Excessive consumption of Gokshura powder can cause neurotoxicity (damage to the nervous system).
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Learn about the Amazing Benefits of Pine

Posted 17 March, 2022

Learn about the Amazing Benefits of Pine

In the hilly areas of Uttarakhand or Himachal, many people must have seen the tall pine trees. In Ayurveda, this tree is considered very good for health. The wood, oil and sticky gum of this tree are used as medicines. The gum obtained from this tree is also called Gandhviroja. The length of this tree is about 30 to 35 meters, the stem is dark brown in colour and has a roughly round shape. Its leaves are in clusters of 3 whose length is 20-30 cm. Most people recognize pine by its length and the shape of the leaves. The fruits of pine are similar to that of deodar but they are slightly larger in size, conical and pyramidal in shape. The botanical name of pine is Pinus roxburghii Sargent.

 
Benefits of Pine
For mouth ulcers

If there is a blister in the mouth, making a decoction of the gum coming out of the pine tree and gargling it is good for ulcers. By doing this, mouth ulcers are cured soon.

 
For stomach worms

To avoid the pain caused by stomach worms and reduce the symptoms like loss of appetite, mix powdered rice with pine oil and keep it in the sun for some time. After drinking this mixture, intestinal worms are reduced.

 
For flatulence

People who are troubled by the problem of flatulence should apply pine oil to the stomach. By doing this, problems like flatulence and piles are reduced.

 
For ear

Pine is a beneficial medicine to reduce ear pain, swelling and discharge from the ear. According to ayurvedic experts, putting one to two drops of oil obtained by burning cedarwood, kuth and pine wood, soaked in sesame oil, and putting one to two drops of the oil in the ear provides quick relief in earache, swelling and discharge.

 
For windpipe

Inflammation in the respiratory tract is a big problem. For this, Ayurvedic experts believe that massaging the chest with pine oil reduces inflammation of the respiratory tract and also provides relief in cold and cough.

 
For paralysis

Make a paste of Pippali and its root, pine and cedarwood and mix honey 2 times the quantity of the above ingredients and consume 1-3 grams, it provides relief in paralysis. However, it should be consumed only on the advice of an ayurvedic doctor.

 
For wound

The gum extracted from the pine tree is considered good for wounds. For this, the gum should be ground and applied directly to the wounds. By doing this the wounds heal quickly. Apart from this, by applying pine gum to the wound, the bleeding stops.

 
For ringworm and itching

The problem of ringworm and itching is cured by applying pine gum (Gandhviroja) on ringworm and itching.

 
Useful parts of Pine trees
  • Oil
  • Wood
  • Gandaviroza (gum)
  • Oily output
Where is the pine tree found?

The pine tree is found in the Himalayan regions from Kashmir to Bhutan at altitudes up to 450-1800 m, in Kumaon at altitudes up to 2300 m, in the Shivalik hills, Ooty and also in Afghanistan.

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जानें, भुई आंवला और इसके फायदों के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, भुई आंवला और इसके फायदों के बारे में

भुई आंवला अपने औषधीय गुणों के चलते तमाम रोगों के इलाज हेतु जाना जाता है। यह बुखार, खांसी, खुजली, कफ, अधिक प्यास लगना जैसी परेशानियों को ठीक करने में मदद करता है। इसके अलावा भूख की कमी, कामोत्तेजना, गैस्ट्रिक एसिड एवं पेट की अन्य समस्याएं, किडनी की पथरी और लिवर के हर तरह के रोग के लिए भुई आंवला को दिव्य औषधि समझा जाता है। भुई आंवला में एंटीवायरल प्रॉपर्टीज व एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं। जो सेहत के अलावा कुष्ठ रोग में भी फायदा करते हैं।

 
क्या है भुई आंवला?

भुई आंवला स्वाद में कसैला और मीठा होता है। यह वर्षा-ऋतु के समय उत्पन्न होने वाले छोटे-छोटे पौधों से प्राप्त होता है। इसके पौधे शरद्-ऋतु में फूलने-फलने के बाद गर्मी के मौसम में सूख जाते हैं। इस पौधे से प्राप्त होने वाला फल, जिसे आम भाषा में भुई आंवला कहते हैं, देखने में धात्रीफल की तरह गोल और आकार में छोटा होता है। इसलिए इसे कुछ जगह पर भूधात्री और भूम्यामल भी कहा जाता है। भुई आंवला का वानस्पतिक नाम फाइलैन्थस यूरीनेरिया (Phyllanthus urinaria) है। जिसे भूमि आंवला भी कहा जाता है।

 
भुई आंवला के फायदे:
आंखों की बीमारी के लिए

भुई आंवला को सेंधा नमक और पानी के साथ तांबे के बर्तन में घिसकर, इसे आंखों के बाहर लगाने से आंखों से संबंधित रोग में फायदा मिलता है।

 
सिर दर्द के लिए

घी में भुई आंवला, पिप्पली, सारिवा, लाल चन्दन और अतीस आदि द्रव्यों को मिलाकर, नियमित सेवन करने से सिर दर्द में आराम मिलता है।

 
मुंह के छालों के लिए

भुई आंवला के पत्तों से बने काढ़े से कुल्ला करने से मुंह के छाले जल्दी ठीक होते हैं।

 
आंतों के रोग के लिए

भूमि आंवला को छाया में सुखाकर मोटा-मोटा कूटकर रख लें। अब 10 ग्राम भुई आंवला को 400 मिली पानी में तबतक पकाएं जबतक वह एक चौथाई से भी कम हो जाए। अब इस पानी का रोज सुबह खाली पेट और रात को खाने से एक घंटा पहले पिएं। ऐसा करने से आंतों के घाव और अल्सर को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।

 
मासिक के लिए

भुई आंवला के बीज को पीसकर, चावलों के धुले हुए पानी के साथ दिन में दो या तीन बार पीने से मासिक धर्म विकार में लाभ होता है। ऐसा करने से मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तप्रवाह में भी कमी होती है।

 
स्तनों की सूजन के लिए

भुई आंवला पंचांग को पीसकर, स्तनों का लेप करने से स्तनों की सूजन कम होती है।

 
टीबी के लिए

घी में भुई आंवला, लाल चन्दन, पिप्पली, सारिवा और अतीस को पकाकर, सेवन करने से टीबी रोग में फायदा होता है।

 
खांसी के लिए
  • 50 ग्राम भुई आंवला पंचांग को आधा लीटर पानी में गरम करें। और इसे एक चौथाई होने तक पकाएं। अब इस काढ़े का एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार सेवन करने से सांस के रोग में लाभ होता है।
  • घी में भुई आंवला, पिप्पली, सारिवा, लाल चन्दन और अतीस आदि द्रव्यों को मिलाकर, नियमित सेवन करने से भी खांसी में आराम मिलता है।
पेट रोग के लिए
  • भुई आंवला के पत्तों को पानी में उबालकर, उस पानी को छानकर पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है।
  • भुई आंवला के पत्ते और जड़ का काढ़ा बनाकर, दिन में दो बार पीने से जलोदर रोग में लाभ होता है।
  • 50 ग्राम भुई आंवला पंचांग को आधा लीटर पानी में गरम करें। और इसे एक चौथाई होने तक पकाएं। अब इस काढ़े का एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से जलोदर रोग में फायदा मिलता है।
दस्त के लिए
  • 50 ग्राम भुई आंवला पंचांग को 400 मिली पानी में गरम करें। और इसे एक चौथाई होने तक पकाएं। अब इसमें 5 ग्राम मेथी चूर्ण मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पीते रहें। ऐसा करने से दस्त में आराम लगता है।
  • 20 ग्राम भुई आंवला के पत्तों को 200 मिली पानी में उबालकर, छानकर थोड़ा-थोड़ा पीने से दस्त की समस्या ठीक होती है।
बुखार के लिए
  • भुई आंवला के कोमल पत्ते और इन पत्तों की एक चौथाई काली मिर्च लेकर पीस लें। फिर इसकी थोड़ी बड़ी गोलियां बनाकर दिन में दो बार 2-2 गोलियों का सेवन करें। ऐसा करने से बार-बार चढ़ने वाले बुखार में लाभ मिलता है।
  • घी में भुई आंवला, पिप्पली, सारिवा, लाल चन्दन और अतीस आदि द्रव्यों को मिलाकर, नियमित सेवन करने से भी बुखार में आराम मिलता है।
  • घी में बला मूल, भुई आंवला, गोखरू, निम्ब, पर्पट, और नागरमोथा को पकाकर, सेवन करने से भी तेज बुखार में फायदा होता है।
खुजली के लिए
  • भुई आंवला के पत्तों को पीसकर, इसमें नमक मिलाकर खुजली वाले हिस्से पर लगाने से खुजली कम होती है।
  • चोट पर भी भुई आंवला के कोमल पत्तों को पीसकर लगाने से चोट और उसके दर्द में लाभ मिलता है।
सांस की बीमारी के लिए
  • सांस से जुड़ी बीमारियों में भुई आंवला बहुत फायदेमंद होता है। भुई आंवला की जड़ को पानी की मदद से पीस लें। अब इसमें मिश्री या शहद मिलाकर सेवन करें। इससे नाक के रास्ते से सांस के रोग में फायदा होता है।
  • 50 ग्राम भुई आंवला पंचांग को आधा लीटर पानी में गरम करें। और इसे एक चौथाई होने तक पकाएं। अब इस काढ़े का एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार सेवन करने से सांस के रोग में लाभ होता है।
घाव सुखाने के लिए
  • भुई आंवला के पत्तों से बने काढ़े से घाव धोना अच्छा होता है।
  • भूमि आंवला के रस को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है।
  • भुई आंवला के पत्तों के पेस्ट को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
  • घाव की सूजन को ठीक करने के लिए भुई आंवला पंचांग को चावल के पानी के साथ पीसकर, घाव पर लगाया जा सकता है।
भुई आंवला के उपयोगी हिस्से
  • भुई आंवला के पत्ते
  • भुई आंवला की जड़
  • भुई आंवला पंचांग
  • भुई आंवला
कहां पाया जाता है भुई आंवला?

भारत के लगभग सभी स्थानों पर भुई आंवला देखने को मिलता है। दरअसल यह आर्द्र स्थानों में खरपतवार के रूप में पैदा होता है। लगभग 900 मीटर की ऊंचाई तक इसके पौधे मिलते हैं।

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