Posted 24 May, 2022
जानें, चोपचीनी और इसके लाभों के बारे में
भारत में चोपचीनी का प्रयोग मसाले के रूप में होता है। लेकिन इसके अलावा भी चोपचीनी के कई फायदे हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, चोपचीनी एक उत्तम दर्जे की जड़ी-बूटी है। जिसका उपयोग अनेक रोगों की रोकथाम के लिए किया जाता है। चोपचीनी सिर दर्द, यौन रोग, जोड़ों के दर्द, चर्म रोग जैसी कई बीमारियों को कम करने के लिए एक अच्छा उपाय है। कुछ लोग चोपचीनी को चोबचीनी के नाम से भी जानते हैं।
क्या है चोपचीनी?
चोपचीनी एक कांटेदार पौधा है। जो मोटे प्रकंद (rhizome) और फैलाव वाला होता है। यह पौधा जमीन पर फैलते हुए ही बढ़ता है। इसके पत्ते नुकीले और अण्डाकार होते हैं। इसके फूल आकार में छोटे और सफेद रंग के होते हैं। इसके फल गोलाकार मांसल, रसयुक्त और चमकीले लाल रंग के होते हैं। इसकी जड़ कंद के समान, भारी गांठदार और रेशे वाली होती हैं।
चोपचीनी का स्वाद तीखा और कड़वा होता है। यह प्रकृति से गर्म होती है। जो पचने में हल्की, वात, पित्त तथा कफ को शान्त करने वाली होती है। यह भूख को बढ़ाने, मल-मूत्र को साफ करने और शरीर को ताकत देने का काम करती है। यह यौवन तथा यौनशक्ति को बनाए रखती है। यह गैस, कब्ज, शरीर दर्द और गठिया आदि जोड़ों के दर्द को ठीक करती है।
सबसे अच्छी चोपचीनी की पहचान उसके रंग से होती है। अर्थात वह रंग में लाल या गुलाबी होती है। इसका स्वाद मीठा होता है। यह चिकनी और चमकदार होती है। यह अंदर तथा बाहर से एक ही रंग की होती है। इसके अलावा इसको पानी में डालने पर यह उसमें डूब जाती है।
चोपचीनी के फायदे:
यूरिक एसिड के लिए-
कुछ दिनों तक नियमित रूप से चोपचीनी के चूर्ण को आधा चम्मच सुबह खाली पेट और आधा चम्मच रात को सोते समय सादे पानी से लेने से यूरिक एसिड (Uric Acid) की समस्या कम होने लगती है।
दमा के लिए-
करीब 100 ग्राम चोपचीनी को 800 मिलीलीटर पानी में डालकर, उसे तबतक उबाले जबतक पीना घटकर 300 मिलीलीटर शेष न रह जाए। अब इसे ठंडा करके छान लें। इस काढ़े की रोज 25 ग्राम से 75 ग्राम मात्रा का सेवन करने से श्वास रोग (दमा) में फायेदा मिलता है।
गठिया रोग के लिए-
चोपचीनी को दूध में उबालकर इसमें इलायची, मस्तंगी और दालचीनी को मिलाकर सुबह-शाम लेने से गठिया रोग में लाभ मिलता है। इसके अलावा चोपचीनी और गावजबान को मिलाकर काढ़ा बनाकर, उससे घुटनों की मालिश करने से घुटनों का दर्द और हड्डियों की कमजोरी खत्म होने लगती है।
कूल्हे से पैर तक के दर्द के लिए-
चोपचीनी को थोड़ा दरदरा या मोटा पीसकर, उसे रात के समय पानी में भिगोकर रख लें। सुबह उस चोपचीनी को आधा पानी खत्म होने तक उबालकर, छानकर एवं थोड़ा ठण्डा होने पर पिएं। इससे कुल्हे से पैर तक का दर्द कम होता है।
स्वप्नदोष की समस्या के लिए-
चोपचीनी शरीर की कमजोरी को दूर करके स्वप्नदोष की परेशानियों को दूर करने में सकारात्मक भूमिका निभाती है। इसके अलावा इसके नियमित उपयोग से वीर्यपात से भी निजात पाने में मदद मिलती है।
पौरुष शक्ति के लिए-
चोपचीनी में मोचरस, सोंठ, कालीमिर्च, सौंफ, दोनों मूसली और वायविडंग को बराबर मात्रा मिलाकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण का 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करके ऊपर से मिश्री वाला दूध पिएं। ऐसा करने से पौरुष शक्ति में सुधार और शुद्धिकरण होता है। इसके अलावा चोपचीनी में मौजूद रसायन गुण शरीर के वीर्यदोष को दूर करने में भी मदद करते हैं।
सिफलिस के लिए-
चोपचीनी के चूर्ण को नियमित रूप से सुबह-शाम लेने से उपदंश में फायेदा होता है। वहीं, उपदंश का जहर ज्यादा फैलने पर चोबचीनी का काढ़ा बनाकर या उसमें फांट शहद मिलाकर पीना अच्छा रहता है।
चोपचीनी के कुछ अन्य फायदे-
- चोपचीनी के चूर्ण में मक्खन और मिश्री मिलाकर सेवन करने से सिरदर्द में आराम मिलता है।
- चोपचीनी के चूर्ण का सेवन शहद के साथ करने से त्वचा के विकारों में फायेदा मिलता है।
- चोपचीनी चूर्ण में शक्कर, मिश्री और घी मिलाकर सेवन करके, ऊपर से गाय का दूध पीने से भगन्दर (Fistula) रोग में फायेदा मिलता है।
- चोपचीनी के चूर्ण को शहद के साथ लेने से कम्पवात (पार्किन्सन), पक्षाघात (लकवा) और वात दोष के कारण होने वाले रोगों से बचा जा सकता है।
- चोपचीनी के चूर्ण में मक्खन, मिश्री और शहद मिलाकर खाने से कण्ठमाला (ग्वायटर) रोग में लाभ मिलता है।
- चोपचीनी चूर्ण में दो गुना शक्कर मिलाकर, दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता समाप्त होती है और बल की वृद्धि होती है।
- चोपचीनी तेल से जोड़ों और गठिया की मालिश करने से गठिया और जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।
चोपचीनी हेतु सावधानियां-
- गर्म प्रकृति वाले लोग (जिनका पेट गर्म रहता हो) को चोपचीनी का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।
- चोपचीनी के सेवन के उपरांत कोई समस्या होने पर अनार या उसके जूस का सेवन करना अच्छा रहता है।
चोपचीनी कहां पाई जाती है?
चोपचीनी भारत के पहाड़ी इलाकों जैसे- उत्तराखण्ड, असम, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और मणिपुर के क्षेत्रों में पाई जाती है। यहां पर चोपचीनी 1500-2400 मीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है। इसके अलावा यह चीन, जापान, म्यांमार और नेपाल में भी पाई जाती है।