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क्या है अतीस? जानें, इसके औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

क्या है अतीस? जानें, इसके औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

अतीस एक लोकप्रिय वन औषधि है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग कई बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। खासकर शिशु संबंधित विकारों के लिए अतीस को बेहद गुणकारी माना जाता है। यह फोड़ा-फुंसी, दस्त, सर्दी-खांसी, उल्टी जैसी कई बीमारियों में फायदा करती है। आइए थोड़ी और बात करते हैं इस अनजान वनौषधि के विषय में।

 
क्या है अतीस?

अतीस एक छोटा पौधा है। इसकी औसतन ऊंचाई एक से तीन फुट होती है। इससे निकलने वाली टहनियां सीधी और पत्तेदार होती हैं। इसके पत्ते नुकीले और दो से चार इंच चौड़े होते हैं। वहीं इसके फूल नीले, पीले और बैंगनी धारी वाले हरे रंग के होते हैं। अतीस के बीज भी इसके पत्तों की तरह नुकीले और चिकनी छाल वाले होते हैं। अतीस का पौधा थोड़ा जहरीला होता है। लेकिन इसके ताजे पौधे का जहरीला अंश केवल छोटे जीव जन्तुओं के लिए घातक होता है। क्योंकि इसका विषैला प्रभाव, इसके सूख जाने पर खुद उड़ जाता है। अतीस का वानस्पतिक नाम ऐकोनिटम हेटरोफाइलम (Aconitum heterophyllum Wall) और अंग्रेजी का नाम इंडियन एकोनाइट (Indian Aconite) है।

अतीस के औषधीय गुण-

आयुर्वेद के अनुसार अतीस की तासीर गर्म होती है। यह स्वाद में चरपरा और कड़वा होता है। अतीस बुखार, खांसी, उल्टी, पाचन संबंधी रोग, अतिसार, आम, विष, और कृमि रोग को नष्ट करने वाली औषधि है। वहीं, इसकी जड़ भी एक शक्तिवर्धक औषधि है। जो कफ, कब्ज, पाइल्स, ब्लीडिंग, भीतरी सूजन और कमजोरी में फायदा करती है।

 
अतीस के फायदे एवं उपयोग:
पाचन शक्ति के लिए-

पाचन और एसिडिटी की समस्या को दूर करने के लिए अतीस का सेवन करना एक बढ़िया उपाय है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। अतीस-जड़ के चूर्ण को पीपल चूर्ण या सोंठ के साथ मिलाकर, शहद के साथ चाटने से पाचन शक्ति में सुधार होता है।

 
फोड़े-फुंसी के लिए-

फोड़ा-फुंसी को जल्दी सुखाने अर्थात ठीक करने के लिए अतीस का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प है। अतीस के चूर्ण का सेवन करके ऊपर से चिरायते का अर्क पीने से फोड़े-फुंसी और त्वचा के अन्य रोगों में आराम मिलता है।

 
मुख रोग के लिए-

पाचन शक्ति कमजोर होने के कारण भी मुख रोग पैदा होते है। चूंकि अतीस में दीपन-पाचन का गुण पाया जाता है। इसलिए इसके इस्तेमाल से पाचन और मुख संबंधी रोगों से छुटकारा मिलता है।

 
सांस संबंधी बीमारी के लिए-

शरीर में कफ दोष बढ़ने के कारण भी श्वास सम्बंधित समस्याएं पैदा होने लगती है। चूंकि अतीस में कफ शामक गुण पाए जाते हैं। इसलिए अतीस का उपयोग श्वास संबंधी रोग और उसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

 
पेचिश (संग्रहणी) के लिए-

अतीस के औषधीय गुण पेचिश (दस्त) जैसी समस्या में लाभकारी सिद्ध होते है। यदि अतिसार (पेट चलने का रोग) पतला, सफेद और बदबूदार है। ऐसे में अतीस और शुंठी (सूखी अदरक) दोनों को 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर एक साथ कूट लें। अब इसे दो लीटर पानी में तबतक पकाएं जबतक यह आधा न हो जाए। फिर इसमें छौंक लगाकर नमक और अनार का रस मिलाएं। अब इस मिश्रण का थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में तीन से चार बार सेवन करें। इससे आमातिसार या पेचिश में लाभ मिलता है। इसके अलावा अतीस के चूर्ण को हरड़ के मुरब्बे के साथ खाने से भी संग्रहणी की समस्या दूर होती है।

 
सेक्सुअल स्टैमिना के लिए-

अतीस के चूर्ण को शक्कर युक्त दूध के साथ लेने से शरीर में वाजीकरण गुणों (काम शक्ति) की वृद्धि होती है।

 
शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए-
  • छोटी इलायची और वंशलोचन (Tabasheer) को पीसकर, उसमें अतीस चूर्ण को मिलाकर मिश्री युक्त दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। इस रूप में यह मिश्रण शरीर के लिए पौष्टिक और रोगनाशक साबित होता है।
  • अतीस चूर्ण में लौहभस्म और शुंठी-चूर्ण (सोंठ) को मिलाकर सेवन करने से बुखार के बाद होने वाली कमजोरी दूर होती है।
सर्दी-खांसी के लिए-
  • अतीस की जड़ को पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से खांसी में फायदा होता है।
  • अतीस, सोंठ, यवक्षार (Yavakshar) कर्कट श्रृंगी (Karkatshringi) और नागरमोथा (Cypriol) को पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिलता है।
उल्टी के लिए-
  • नागकेसर और अतीस चूर्ण के मिश्रण का सेवन करने से उल्टी में फायदा होता है।
  • लाल चंदन, खस, नागरमोथा(Cypriol), पाठा (Patha), नेत्रवाला (Pavonia Odorata), कुटज की छाल (इन्द्रजौ), चिरायता, कमल, धनिया, गिलोय, कच्चा बेल, अतीस और सोंठ आदि औषधियों से बने काढ़े में शहद डालकर पीने से उल्टी में शीघ्र आराम मिलता है।
रक्तार्श (खूनी बवासीर) के लिए-

तेज मसालेदार और तीखा खाने से पाइल्स होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि समय रहते इसमें सुधार न किया जाए तो यह रक्तार्श (खूनी बवासीर) में परिवर्तित हो जाता है। ऐसे में-

  • अतीस में राल और कपूर मिलाकर इसके धुएं की सिकाई से बवासीर के रक्तप्रवाह में कमी होती है।
  • अतीस, बिल्व ( कच्चा बेल), इद्रजौ (कुटज), कटुत्रिक, नागरमोथा (Cypriol) और धाय के फूल जैसी औषधियों का चूर्ण बनाकर, उसमें शहद मिलाकर सेवन करने से रक्तप्रदर (Metrorrhagia) में लाभ मिलता है।
अतीस का इस्तेमाल कैसे करें?

वैसे तो अतीस का इस्तेमाल उपरोक्त बताए गए उपयोगों के आधार पर ही करना चाहिए। लेकिन कोई व्यक्ति किसी बीमारी के उपचार हेतु अतीस का उपयोग कर रहा है तो उसे आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

 
कहां पाया जाता है अतीस का पौधा?

भारत में अतीस का पौधा हिमालय प्रदेश के पश्चिमोत्तर भाग में 2000-5000 मी. की ऊंचाई तक उच्च पर्वतीय शिखरों पर पाया जाता है।

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क्या है दंती? जानें, इसके फायदे एवं उपयोग

Posted 24 May, 2022

क्या है दंती? जानें, इसके फायदे एवं उपयोग

आयुर्वेद में दंती को एक प्रकार की औषधि माना गया है। सुश्रुत संहिता और चरक संहिता में भी दंती और इसके फायदों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार दंती पौधे के फूल, तना, फल और जड़ सब चीज सेहत के लिए अच्छी होती हैं। पेट की समस्या से लेकर दांतों से संबंधित रोगों तक दंती के फायदे देखे जाते हैं। आजकल बाजारों में दंती की जड़े (दंतीमूल) लकड़ी के टुकड़ों के रूप में मिलती हैं। 

 
क्या है दंती?

दंती एक तरह का पौधा है। जिसकी शाखाएं हरे और सफेद रंग की होती हैं। पत्तियां गोल आकार और 5-8 सेमी लम्बी होती हैं। दंती पौधे की औसतन ऊंचाई 90-180 सेमी तक होती है। वहीं इसके फूल हरे-पीले रंग और गुच्छों में उगते हैं। इसके फल रोयेंदार (Hairy) और अंडाकार होते हैं। दंती को अंग्रेजी में वाइल्ड क्रोटोन (Wild croton) और हिंदी में दन्ती, छोटीदन्ती, ताम्बा आदि नामों से जाना जाता है। वहीं, दंती का वानस्पतिक नाम बैलिओस्पर्मम सोलेनिफोलियम (Baliospermum solanifolium) है।

 
दंती के फायदे एवं उपयोग:
पेट की गैस के लिए-

गैस के कारण पेट फूलने या पेट में गैस का गोला जैसा महसूस होने वाली परेशानी को आयुर्वेद में गुल्म नाम दिया गया है। 5-10 ग्राम दंती की जड़ के पेस्ट को दही, छाछ, मण्ड, मद्य (मदिरा) आदि के साथ सेवन करने से गुल्म और पेट के अन्य रोगों में आराम मिलता है। इसके अलावा अजमोदा (सेलेरी) और सेंधानमक के साथ दंती तेल का सेवन करने से भी पेट संबंधी समस्याओं में लाभ मिलता है।

 
आंखों के लिए-

आंखों में दर्द होने पर दंती की जड़ का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर काजल के रूप में आंखों में लगाने से आंखों के दर्द में आराम मिलता है।

 
सांस से जुड़ी समस्या के लिए-

सांस की तकलीफ और फेफड़ों की सूजन को दूर करने के लिए दंती एक कारगर औषधि है। इसके लिए कुछ दिनों तक10-15 मिली दंती की पत्तियों से बने काढ़े का सेवन करें। ऐसा करने से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिलता है।

 
पेचिश के लिए-

पिप्पली, दन्ती और चित्रक (Chitrak) को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीस लें। अब इसे गुनगुने पानी के साथ लेने से पेचिश की दिक्कत कम होती है।

 
पेट साफ करने के लिए-

पेट का ठीक से साफ न होना कई बीमारियों को जन्म देता है। इसलिए दंती का इस्तेमाल लैक्सेटिव (विरेचक या पेट साफ़ करने की दवा) के रूप में किया जाता है। इसके लिए गन्ने के टुकड़ों को द्रवंती और दंती के पेस्ट में लपेटकर पुटपाक-विधि से पका लें। अब इनका रस निकालकर 10-15 मिली मात्रा में सेवन करें। ऐसा करने से पेट आसानी से साफ हो जाता है।

 
दांतों के लिए-

दंती की जड़, इन्द्रयव (Holarrhena pubescens), कासीस, सत्यानाशी मूल और वायविडंग को बराबर मात्रा में लेकर इसका चूर्ण बनाकर दांतों की मालिश करें। ऐसा करने से दांतों के कीड़े और दांतों की सड़न से छुटकारा मिलता है।

 
बवासीर के लिए-

दंती (Wild croton), पलाश (Tesu flower), निशोथ (Turpethum or Nishoth), चित्रक (Chitrak) और चांगेरी (Changeri) आदि की पत्तियों को घी या तेल में पकाकर सब्जी बना लें। अब इस सब्जी को दही के साथ खाने से बवासीर में आराम मिलता है। अच्छे परिणाम की प्राप्ति हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लें।

 
कहां पाया जाता है दंती का पौधा?

भारत में दंती का पौधा हिमालय में कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश में 600-1000 मी. की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसके अलावा कर्नाटक, बंगाल, असम, कोंकण, बिहार, दक्कन प्रायद्वीप, पश्चिमी घाटों एवं केरल के पहाड़ी क्षेत्रों में 1800 मी. की ऊंचाई तक दंती का पौधा पाया जाता है। वहीं, विश्व चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, जावा, थाईलैंड, मलय प्रायद्वीप और इंडो-मलेशिया के क्षेत्रों में दंती के पौधों को देखा जा सकता है।

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Turmeric- A Precious Medicinal Boon of Nature

Posted 15 December, 2021

Turmeric- A Precious Medicinal Boon of Nature

Turmeric (Curcuma longa) is a medicinal herb. Its plant is 5 to 6 feet long, turmeric is obtained from the roots of the plant. The many medicinal properties of turmeric have special importance in Ayurveda. Turmeric is helpful in curing many diseases. It helps to improve skin tone and relieve pain. It is considered a panacea for curing a cold and cough.

Turmeric is mainly used as a spice in India. It enhances the taste and colour of food. Along with being an immunity booster, it works as a shield to protect against many diseases. The scientific name of turmeric is Curcuma longa Linn. Turmeric is considered auspicious in Hinduism that is why it is used in every auspicious work like puja, havan, etc.

 
Importance of Turmeric in Ayurveda

According to Ayurveda, turmeric is a highly effective herb. Turmeric has many medicinal properties including anti-inflammatory, antioxidant, antitumor, antiseptic, antiviral, cardioprotective (heart-retaining properties), hepatoprotective (liver retaining properties), and nephroprotective (kidney retaining properties).

The use of turmeric is very beneficial for body composition. Turmeric is also rich in protein, iron, fibre, niacin, calcium, copper, vitamin E, potassium, magnesium and zinc, etc. In Ayurvedic texts, turmeric has been named Haridra, Varvarnini, Curcuma, Gauri, Crimighna, Yoshitapriya, Hardal, etc. 

 
Importance of Turmeric from Religious Point of View

Turmeric is also very important in religious processions. It is a medicine that has many types of divine properties. In religious terms, turmeric is said to be auspicious. It is believed that the use of turmeric brings financial prosperity to a person's life. Apart from this, it also works to eliminate negative energy.

 
Medicinal Properties of Turmeric
Effective in Curing Bone Diseases-

The use of turmeric cures various diseases of the bones, arthritis, vata, etc. Mixing turmeric in milk daily and drinking it provides a sufficient amount of calcium to the body and keeps the body warm. It provides relief to patients with osteoporosis (bone disease) and Rheumatoid (inflammation-related disorder). Turmeric is also used in the treatment of inflammation caused by arthritis.

 
Helpful in the Treatment of Diabetes-

Raw turmeric has the property of balancing insulin levels, which is very beneficial for a diabetic patient. Apart from insulin, turmeric also controls glucose levels in the body.

 
Beneficial in the Treatment of Respiratory Diseases-

Turmeric's fresh rhizome (the stem part of the plant) is used in the treatment of whooping cough. It contains volatile oil, which is also very useful in the treatment of bronchial asthma.

 
Helpful in Digestion-related Problems-

It improves digestive power and eliminates the gas produced in the stomach. It also cures stomach cramps.

 
Helpful in Urinary Disorders-

The rhizome (stem part of the plant) of turmeric is used in the treatment of various urinary infections. Turmeric is also helpful in the treatment of kidney stones.

 
Anti-Cancer Properties-

According to Ayurveda, raw turmeric has sufficient properties to fight cancer. Elements present in turmeric are associated with DNA from cancer cells and also reduce the side effects of chemotherapy.

 
Antibacterial, Antifungal and Antimicrobial Properties-

Various researches on turmeric have proved that it inhibits the growth of many types of bacteria, pathogenic fungi, and parasites.

 
Photoprotector Properties-

This property is only due to the anti-oxidation property of turmeric. Turmeric is very effective in protecting the skin from ultraviolet-beta rays emanating from the sun. It is also very useful in protecting against the harmful effects of gamma-rays (generated by radioactive atoms and nuclear explosions).

 
Anthelmintic Properties-

Turmeric is also known as Kermihara or Karminashak (intestinal killing agent). Turmeric juice has anthelmintic properties. In the rural areas of Nepal, turmeric powder or paste is boiled with light salt in water and this juice is consumed as an antiparasitic drug.

 
Turmeric as an Immunity Booster

According to experts, a regular intake of turmeric is very helpful in increasing the immunity of the body. Turmeric is a substance called lipopolysaccharide (endotoxin) which contains anti-bacterial, anti-viral, and anti-fungal agents, which boost our immunity.

 

In addition, the important component of turmeric, curcumin, can be rich in anti-inflammatory properties as well as acting as an immunomodulatory agent (agent affecting immunity). It also improves the functioning of various immune cells such as B-cells (white blood cells) due to which the body is able to fight against many diseases like allergy, cold-cough, diabetes, asthma, and heart disease.

 
Turmeric as a Cosmetic-

Turmeric is also very useful as beauty-enhancing products. Indian women have been using turmeric since ancient times to enhance their skin tone. Turmeric contains ingredients that cleanse the blood, enhance the appearance and make the skin fair and radiant. In Indian wedding ceremonies, turmeric paste is applied to enhance the beauty of the bride and groom.

 
Types of Turmeric

Many types of species of turmeric are found depending on the colour, size, and properties. Out of which the following four species are mainly used in medicine-

 
Curcuma longa (Common turmeric)

Curcuma longa is a commonly found variety of turmeric, which is especially used in spices and medicines. Turmeric plants of this species are 60-90 cm tall and have a red or yellow colour inside.

 

Curcuma aromatica is known as natural wild turmeric and is also known as Kasturi Manjal. It is used in manufacturing many types of cosmetics products.

 
Curcuma amada (Amba Haldi)-

Curcuma Amada Turmeric has a mango-like aroma. Hence it is called Aama or Amba Turmeric. Being fragrant, it is used in making chutneys, pickles, etc. Mango extracts (juice) are used to bring the smell of mangoes to sweets. 

 
Curcuma caesia (Black Turmeric)-

Curcuma Casia is called Black Turmeric. According to beliefs, this turmeric has miraculous properties. It is used to make many types of medicines like the ones used to treat cancer. Therefore, it is sold abroad at very high prices. This turmeric is used in healing as well as in astrology.

 
Use of Turmeric in Daily Life
  • Taking turmeric milk is very beneficial for the body, which increases immunity and protects the body from various diseases.
  • A little turmeric is also added to the green salad which increases the nutritional content of the salad.
  • Turmeric can be used as a home face pack to brighten the complexion.
  • It is also applied to the hair in the form of a hair mask, which makes the hair healthy.
  • A little turmeric can be added to the soup to make it more nutritious.
Side effects of Turmeric
  • Excess intake of turmeric can cause side effects. Oxalate (organic acid) is found in turmeric which can cause kidney stone problems.
  • Excessive consumption of turmeric leads to gastrointestinal problems.
  • Excess intake of turmeric can cause iron deficiency in the body, which increases the risk of anaemia disease.
  • Excess intake of turmeric can also be a cause of headaches and rashes on the skin.
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कपूर के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

कपूर के फायदे और नुकसान

कपूर एक प्रकार का जमा हुआ उड़नशील सफेद तैलीय पदार्थ है। कपूर में काफी तेज गंध होती है और यह एक अत्यंत ज्वलनशील पदार्थ है। निर्माण की प्रक्रिया के आधार पर और अलग-अलग देशों में कपूर के विभिन्न प्रकार देखने को मिलते हैं। कपूर रंगहीन, सफेद या पारदर्शी स्वरुप में चूर्ण या चौकोर आकृति का होता है। पूजा-पाठ आदि में कपूर का आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, कपूर का प्रयोग कई दवाइयां बनाने में भी किया जाता है। आयुर्वेद के कई ग्रंथों में पक्व, अपक्व और भीमसेनी तीन तरह के कपूर का जिक्र है। मुख्य रूप से दो तरह के कपूर प्रयोग में लाए जाते हैं। एक पेड़ों से प्राप्त होता है और दूसरा कृत्रिम रूप से रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है। कपूर के पेड़ की छाल से प्राप्त होने वाला कपूर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक रासायनिक यौगिक है। अपनी महक के लिए लोकप्रिय टरपीन (पौधों में विस्‍तृत रूप से पाए जाने वाला तत्‍व) से कपूर की गोलियां तैयार की जाती हैं। प्रकृति में, यह टरपीन पौधों की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। टरपीन को खाया नहीं जा सकता है लेकिन इसके इस्‍तेमाल से कई तरह के फायदे मिलते हैं।

कपूर एक सदाबहार पेड़ है। जो 60 फीट की ऊंचाई तक और बहुत तेजी से बढ़ता है। भारत में पाए जाने वाले कपूर के वृक्ष छोटे होते हैं और इनकी पत्तियां ढाई से 4 इंच लंबी होती हैं। इसके छोटे सफेद फूल होते हैं और इसका गोल आकार का फल जामुनी से काले रंग का होता है। पारंपरिक और पश्चिमी औषधि प्रणाली में कपूर को औषधीय और स्वास्थ्यप्रद गुणों के लिए जाना जाता है। कफ जमने, दर्द और सूजन जैसी कई समस्‍याओं से राहत पाने में कपूर मदद करता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार त्वचा के जलने और फंगल इंफेक्शन को ठीक करने में भी कपूर असरदार है।

 
कपूर के फायदे:
मुहांसों से छुटकारा दिलाता है कपूर का तेल-

कपूर त्वचा को टाइट करने का एक असरदार उपाय है। कपूर बैक्टीरिया के संक्रमण को रोक कर एक एंटी इंफेक्टिव एजेंट के रूप में कार्य करता है। एक अध्ययन के अनुसार कपूर तैलीय त्वचा वाले लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। जिससे यह मुहांसों के उपचार में बहुत उपयोगी है। इसके लिए टी ट्री ऑयल और कपूर आवश्यक तेल को मिक्स करें। अब एक कॉटन बड लें और इस घोल में डुबोएं। इसे प्रभावित त्वचा पर लगाएं।

 
खुजली व जलन में राहत दिलाता है कपूर-

खुजली व जलन जैसी समस्याओ के लिए भी कपूर एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है। कपूर खुजली वाली त्वचा में राहत प्रदान करने के लिए जाना जाता है। यह रोम छिद्रों द्वारा अवशोषित हो जाता है और त्वचा को ठंडक पहुंचाता है।

 
जली हुई त्वचा को ठीक करने में उपयोगी है कपूर-

कपूर जली हुई त्वचा को ठीक करने में मदद करता है। यह न केवल दर्द या जलन को ठीक करता है बल्कि घावों से भी शरीर को मुक्त करता है। क्योंकि कपूर तेल तंत्रिका को उत्तेजित करता है, जिससे त्वचा को ठंडक मिलती है। इसके लिए एक कप नारियल के तेल में दो क्यूब्स कपूर मिलाएं। अब प्रभावित क्षेत्र पर मिश्रण को नियमित रूप से लगाएं।

 
जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है कपूर-

जोड़ों और मांसपेशियों के आसपास दर्द में कपूर फायदेमंद होता है। एक अध्ययन के अनुसार कपूर तेल शरीर में एक वार्मिंग सेंसेशन पैदा करता है। जिसके परिणामस्वरूप नसों में विचलन (desensitization) होता है और दर्द से राहत मिलती है। शरीर में ऐंठन होने पर भी कपूर के तेल का इस्तेमाल करना, इसमें आराम पहुंचाता है।

 
मच्छरों को भगाने के लिए करें कपूर का उपयोग-

कई अध्ययन से पता चला है कि कपूर एक प्राकृतिक मच्छर रोधक पदार्थ है। इसके अलावा, कपूर का पारंपरिक रूप से पतंगों (moths) से छुटकारा पाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। इसलिए मच्छरों से बचने के लिए अपने घर के कोने में एक कपूर टैबलेट जलाएं।

 
कपूर के अन्य फायदे-
  • तुलसी के पत्तों के रस में कपूर को मिला कर दो-दो बूंद कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है।
  • नींबू के रस में कपूर को मिलाकर सिर पर लगाने से सिर का दर्द और भारीपन दूर होता है।
  • कपूर, जायफल और हल्दी को बराबर मात्रा में मिला कर उसमें थोड़ा पानी डालें। इस मिश्रण को पेट पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
  • पानी से भरी हुई बाल्टी में 10-12 कपूर की टिक्कियों को डाल लें। इसके बाद एड़ियों को पानी में 10-15 मिनट तक रखें। इससे एड़ियों की दरार भर जाएगी और पैर मुलायम हो जाएंगे।
  • कपूर के तेल को दिमाग पर लगाने और सूंघने से दिमागी तनाव दूर हो जाता है।
कपूर के नुकसान-
  • कई बार कपूर के तेल का सीधा इस्तेमाल त्वचा पर करने से जलन हो सकती है।
  • 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर कपूर का उपयोग नहीं करना चाहिए। यह उनके लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकता है।
  • गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कपूर के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
  • कपूर को मौखिक रूप से न लें यह बहुत जहरीला होता है।
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Indian mallow (Atibala)- Uses & Benefits

Posted 15 December, 2021

Indian mallow (Atibala)- Uses & Benefits

Indian mallow, commonly known as Atibala, is a straight and many-branched herb that grows about 1–2 m tall and is 0.3-0.9 cm in diameter. This herb can grow on roadsides, lakesides, beaches, dunes, and even in waste ground in warm, humid, and tropical areas. This herb is useful in the traditional medicine system as all parts of the plant are used for curing diseases. It works wonders in general debility, nervous disorders, headache, muscular weakness, heart diseases, and bleeding disorders.

It is known by various names. Some of the most common ones are Country Mallow, Chinese Bellflower, Indian Lantern Plant, Indian Mallow Abutilon, Indian Abutilon, Monkey Bush, Moon Flower, and Twelve O’clock Flower.

 
Importance of Atibala in Ayurveda

In Ayurveda, Atibala is considered balya which means “Very Powerful”, it increases strength, vigour, and vitality. It is used in the treatment of facial paralysis and joint disorders. Atibala pacifies Vata and Pitta and is used to treat various diseases and conditions.

Atibala has immunomodulatory, analgesic, antimicrobial, anti-inflammatory, antihyperlipidemic, diuretic, hepatoprotective, hypoglycemic, anti-malarial, anti-diarrheal, and wound healing properties. Due to these properties, it is abundantly used in the Ayurveda, Siddha, and Unani system of medicine for preparing various medicines.

 
Uses of Atibala
  • Extract of water-soaked dried seeds of Atibala is used as purgative.
  • Its leaves are used as a tonic.
  • The roots are taken as infusions of fever.
  • Its flowers are used for increasing semen production in men.
  • Atibala Powder mixed with coconut oil and made into a paste promotes healing of the wound.
  • Gargling with Atibala Decoction (Kadha) once or twice a day helps to get rid of the toothache.
Benefits of Atibala
Osteoarthritis-

Atibala is useful in reducing the pain in Osteoarthritis. Osteoarthritis is a condition that occurs due to aggravated Vata dosha, also known as Sandhivata which causes pain, swelling, and joint mobility. The Vata balancing property of Atibala aids in relieving the symptoms of Osteoarthritis-like pain and swelling in the joints.

 
Malnutrition-

Malnutrition occurs due to improper digestion or lack of nutrients in the body. Using Atibala regularly helps to cope up with Malnutrition as this herb provides strength to the body. For this, take one-fourth or half teaspoon of Atibala powder and mix it with honey or lukewarm water. Consume this at least once or twice a day after light meals to manage Malnutrition.

 
Urinary Tract Infection (UTI)-

In Urinary Tract Infection, Indian Mallow helps to control the burning sensation because of its cold and diuretic effect. It increases urine flow and reduces the symptoms of the disease like the feeling of burning sensation during urination.

 
Use in Gout-

The leaf extract of Atibala is known to reduce both acute and chronic inflammation. According to researchers, the samples collected from the Melghat region in Maharashtra showed that the leaf extracts of atibala could help in human red blood cell stabilization. They concluded that the extracts could certainly assist in the treatment of some inflammatory diseases.

 
Wound healing-

Atibala promotes the healing process of wounds and helps in quick recovery. It reduces swelling and restores the texture of the skin. Atibala powder paste and coconut oil helps in quick healing and reduces inflammation due to their healing and cold properties. Applying a paste made of Atibala powder and coconut oil once a day helps in boosting the wound healing process.

 
For toothache-

Mouth-related problems are generally a result of an imbalance in the Kapha. Since, Atibala has Kapha balancing properties, gargling with the Kadha made of the leaves of Indian mallow is beneficial for curing toothache as well as other mouth-related problems.

 
Wrinkles-

Wrinkles results due to ageing, dry skin, and loss of moisture. In terms of Ayurveda, it is due to aggravation in the Vata. Atibala helps in reducing wrinkles and provides moisture to the skin as it is oily in nature. Atibala, when used with honey provides a natural glow to the skin. For this take half to one teaspoon of Atibala powder and mix some coconut oil to it. Apply the obtained paste to the affected area once a day to control wrinkles.

 
For Sore Throat and Glands-

Take 10 grams of Indian mallow root and 2 grams of pepper cloves, grind them together and roll them into small pills. Take two pills in the morning and two in the evening followed by pala sugandhi juice. Also, applying Indian mallow root, pepper, and cloves paste on the throat and glands and bandaging helps to cure sore throat and reduces swelling in the glands.

 
For pain relief-

A study of the plant chemical composition of Indian mallow root found that a petrol extract contained linoleic acid, oleic acid, stearic acid, palmitic acid, lauric acid, myristic acid, capric acid, and caprylic acid. These fatty acids are commonly associated with providing relief against pain.

 
Precautions while using Atibala
  • As there is insufficient evidence for the effect of Atibala during breastfeeding, it is recommended to consult a physician before consuming Atibala during breastfeeding.
  • Patients with diabetes should also consult a doctor before taking Indian Mallow as its effect is not known on diabetic patients.
  • A female undergoes several hormonal changes during pregnancy. Consuming Atibala in pregnancy might have an adverse effect while consuming Atibala, therefore consult a physician or gynaecologist before its consumption.
  • Patients with heart disease should consult a physician or cardiologist before taking Atibala.
  • Patients having allergies to the skin should be vigilant while consuming Atibala.
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क्या होती है सेलेरी? जानें, इसके औषधीय गुण और फायदों के बारे में

Posted 24 May, 2022

क्या होती है सेलेरी? जानें, इसके औषधीय गुण और फायदों के बारे में

हम अपने दैनिक जीवन में कई तरह के पदार्थों का सेवन करते हैं। इसमें फल, फूल, मीट और शाक-सब्जी आदि चीजें शामिल हैं। इन्हीं खाद्य पदार्थों में से एक चीज है सेलेरी। जिसे अजमोद के नाम से भी जाना जाता है। सेलेरी में कई औषधीय गुण होते हैं। जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद और गंभीर समस्याओं से राहत दिलाने का काम करते हैं। यह वजन घटाने, रक्‍तचाप नियंत्रित करने, गठिया के दर्द को रोकने, कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने और विषाक्त पदार्थों को बाहर करने आदि में मदद करते हैं।

 
सेलेरी क्या है?

सेलेरी एक प्रकार का छोटा पौधा है। इसका ज्यादातर प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल भोजन को सजाने, जूस या सूप बनाने के लिए भी किया जाता है। देखने में यह कुछ-कुछ धनिया जैसा होता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका और मध्य-पूर्वी यूरोप में पाया जाता है। लेकिन इसके औषधीय गुणों के चलते आज पूरी दुनिया इसका उपयोग करने लगी है।

 
सेलेरी के औषधीय गुण-

विशेषज्ञों के अनुसार, सेलेरी में मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम, सोडियम, विटामिन-ए, सी, ई, बी-6, बी-9, विटामिन-के, आदि पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन पोषक तत्वों के अलावा सेलेरी में एंटीस्पास्मोडिक (मांसपेशियों में दर्द को ठीक करने वाला), सेडेटिव स्टीमुलेंट (दिमाग को शांत करने वाला), कार्मिनेटिव (गैस की समस्या से राहत दिलाने वाला), एंथेल्मिंटिक (परजीवी को नष्ट करने वाला), लैक्सेटिव (मल को ढीला करने वाला), ड्यूरेटिक (मूत्र को बढ़ाने वाला) जैसे औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। जो शरीर को तमाम बीमारियों से बचकर कई तरह से स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।

 
सेलेरी के फायदे;
वजन कम करने के लिए-

सेलेरी में कैलोरी की मात्रा कम और फाइबर की मात्रा अधिक होती है। जो वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। क्योंकि शरीर में पर्याप्त मात्रा में फाइबर होने पर पेट भरा हुआ लगता है। कारणवश खाने की तीव्र इच्छा नहीं होती। जिससे वजन को कंट्रोल करने में मदद मिलती है।

 
पाचन एवं कब्ज के लिए-

सेलेरी से संबंधित एक शोध में यह पाया गया है कि यह कब्ज की परेशानी को ठीक कर, पाचन स्वास्थ्य को बेहतर करने का काम करता है। क्योंकि सेलेरी में फाइबर और पानी पाया जाता है। जो पाचन क्रिया के लिए अच्छे होते हैं। इसलिए सेलेरी को पाचन एवं कब्ज के लिए कारगर औषधि माना जाता है।

 
बॉडी डिहाइड्रेशन के लिए-

चूंकि सेलेरी में भरपूर मात्रा में पानी पाया जाता है। जो शरीर को डिहाइड्रेशन की समस्या से बचाने का काम करता है। इसलिए शरीर के डिहाइड्रेशन के सेलेरी का उपयोग एक सरल उपाय है।

 
प्रतिरोधक क्षमता के लिए-

विशेषज्ञों के अनुसार, सेलेरी में एल्कलॉइड, फिनोलिक, और फ्लेवोनोइड यौगिक होते हैं। जो शरीर में इम्यूनो स्टिमुलेटिंग (प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला) प्रभाव को प्रदर्शित करने का काम करते हैं। इसी वजह से सेलेरी को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अच्छा माना जाता है।

 
एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण-

तमाम पोषक तत्वों की मौजूदगी की वजह से सेलेरी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाया जाता है। जो उपापचय, श्वसन और हृदय रोगों के साथ मानसिक विकारों को दूर करने में मददगार साबित होता है।

 
ब्लड प्रेशर के लिए-

एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) के अनुसार, सेलेरी के बीज में एंटी हाइपरटेंसिव प्रभाव मौजूद होता है। जो उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसलिए ब्लड प्रेशर की समस्या को कम करने के लिए सेलेरी को अच्छा माना जाता है।

 
आंखों के लिए-

सेलेरी बढ़ती उम्र के कारण होने वाली आंखों की परेशानियों से छुटकारा दिलवाने में मदद करती है। दरअसल सेलेरी में मौजूद विटामिन-सी, ल्यूटिन और ज़ेक्सैंथिन जैसे खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। जो बढ़ती उम्र के कारण होने वाले मैक्यूलर डीजेनरेशन (नेत्र रोग, जो अंधापन का कारण बन सकता है) को रोकने का काम करते हैं। इसलिए आंखों के स्वास्थ्य के लिए सेलेरी को कारगर औषधि माना जाता है।

 
कोलेस्ट्रॉल के लिए-

सेलेरी में 3-एन-ब्यूटिफ्थाथाइड नाम का एक रासायनिक यौगिक पाया जाता है। जो रक्त शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा यह संपूर्ण लिपिड प्रोफाइल को भी संतुलित करने का काम करता है। इस आधार पर सेलेरी का इस्तेमाल करना, कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में सहायता करता है।

 
गठिया और जोड़ों के दर्द के लिए-

सेलरी में एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव मौजूद होता है। जो जोड़ों की सूजन और दर्द जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। इस आधार पर कहा जाता है कि सेलरी का उपयोग गठिया और जोड़ों से संबंधित विकारों में मददगार साबित होता है।

 
अस्थमा के लिए-

सेलेरी में विटामिन और मिनरल्स के अलावा कई एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं। जो कई रोगों के इलाज में एक औषधि का काम करते हैं। जिसमें एक रोग अस्थमा भी है अर्थात सेलेरी में मौजूद तत्व अस्थमा के उपचार में मदद करने का काम करते हैं। इसलिए अस्थमा की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सेलेरी को एक अच्छा उपाय माना जाता है।

 
यौन क्षमता के लिए-

यौन क्षमता और सेलेरी के संबंध में किए गए एक शोध में पाया गया है कि सेलेरी में भरपूर मात्रा में पुरुष हार्मोन एंड्रोस्टेरोन मौजूद होता है। जो पुरुषों में उत्तेजना को बढ़ाने और उनके पसीने द्वारा हार्मोन फेरोमोन को निकालने का काम करता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, फेरोमोन महिलाओं में भी कामोत्तेजना को बढ़ाने में मदद करता है। इसलिए सेलेरी को महिला और पुरुष दोनों में यौन क्षमता बढ़ाने के लिए कारगर माना जाता है।

 
दिल के लिए-

एक रिसर्च के आधार पर, सेलेरी में फाइबर, प्रोटीन, तमाम विटामिन और फाइटोकेमिकल्स आदि मौजूद होते हैं। जो हृदय के स्वास्थ्य को लंबे समय तक अच्छा रखने का काम करते हैं इसलिए सेलेरी का इस्तेमाल दिल से संबंधित रोगों के लिए एक बेहतर विकल्प है।

 
बालों के लिए-

सेलेरी में सिनर्जेटिक और एंटी हेयरलॉस प्रभाव पाया जाता है। जो बालों को टूटने और झड़ने से बचाने के साथ उनकी जड़ों को मजबूत करने का काम करता है। इसलिए सेलेरी को बालों के लिए भी अच्छा माना जाता है।

 
त्वचा के लिए-

सेलेरी में मौजूद पानी और एंटीऑक्सीडेंट त्वचा को निखारने का काम करते हैं। वहीं, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल को खत्म कर, त्वचा की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाते हैं। पानी शरीर से विषाक्त पदार्थों को कम करने और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकाले में मदद करता है। इसके अतिरिक्त सेलेरी के बीजों का इस्तेमाल सोरायसिस जैसी त्वचा संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए किया जाता है। वहीं, इसके एसेंशियल ऑयल में एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होता है। जो त्वचा को बैक्टीरियल संक्रमण से बचाने में मदद करता है।

 
कैंसर के लिए-

विशेषज्ञों के अनुसार, सेलेरी में अपीजेनिन नामक तत्व होता है। जो कैंसर से बचाव एवं इलाज के लिए जाना जाता है। इस आधार पर सेलेरी को कैंसर के खतरों को कम करने के लिए अच्छा माना जाता है।

 
सेलेरी के नुकसान-
  • सेलेरी के जूस का अधिक सेवन करने से फोटो टॉक्सिसिटी यानी त्वचा संबंधी एलर्जी या अन्य परेशानियां पैदा हो सकती हैं।
  • बाजार में मिलने वाला सेलेरी पाउडर का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। क्योंकि इस पाउडर में कई अनावश्यक और हानिकारक पदार्थ हो सकते हैं। जो सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।
  • डायबिटीज पेशेंट्स को इसका इस्तेमाल करने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए क्योंकि सेलेरी के बीज में ब्लड शुगर को कम करने की क्षमता पाई जाती है। इसलिए इसकी अधिकता शरीर में ब्लड शुगर को अधिक कम भी कर सकती है।
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जानें, गुड़हल के फायदे के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, गुड़हल के फायदे के बारे में

गुड़हल पूरे भारत में पाया जाने वाला एक फूल है। जो घरों के आस-पास और बगीचे में पाया जाता है। यह कई रंगों जैसे लाल, गुलाबी, पीले और सफेद में देखने को मिलता है। इसकी आकृति घंटाकार और दिखने में सुंदर होता है। इसकी केसर बाहर निकली हुई होती है। कई जगहों पर गुड़हल को अड़हुल का फूल भी कहा जाता है। वहीं, बहुत से लोग इसे हिबिस्‍कस (Hibiscus) के नाम से भी जानते हैं। ज्यादातर गुड़हल के फूल का इस्तेमाल पूजा-पाठ आदि कामों के लिए किया जाता है। इसके अलावा गुड़हल हेल्‍थ के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है।

आयुर्वेद में सफेद एवं लाल रंग वाला गुड़हल फूल विशेष गुणकारी होता है। वहीं, आयुर्वेद के अनुसार गुड़हल का फूल तमाम पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होता है। क्योंकि इसमें विटामिन सी, मिनरल, फाइबर, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट आदि प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह पौष्टिक तत्व सांस और गला संबंधी तकलीफों को दूर करने, हाई ब्लड प्रेशर और बढे हुए कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसके अलावा यह फूल महिलाओं के बालों और त्वचा से जुड़ी समस्‍याओं को भी दूर करता है।

 
गुड़हल के फायदे:
रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक-

नवंबर 2008 में प्रकाशित अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि गुड़हल के पत्तों से बनी चाय उच्च रक्तचाप और दिल के मरीजों के लिए औषधि का काम करती है। इसका सेवन करने से दिल की गति सामान्य हो जाती है और शरीर रिलैक्स फील करती है। इसके लिए दिन में 2 बार गुड़हल की चाय का सेवन जरूर करना चाहिए। इसके अलावा जर्नल ऑफ एथनोफर्माकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि गुड़हल में एंटीहाइपरटेन्सिव और कार्डियोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं। जो उच्च रक्तचाप और दिल के मरीजों से पीड़ित लोगों के लिए अच्छा उपाय हैं।

 
एनीमिया के लिए-

अधिकतर महिलाओं में ब्लड लॉस और आयरन की कमी के कारण एनीमिया (शरीर में खून की कमी) होने लगती हैं। जिससे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता। ऐसे समय में रोगी को आयरन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करने की सलाह दी जाती है। ऐसे में गुड़हल के फूल एनीमिया के लिए बेहतर विकल्प हैं। क्योंकि गुड़हल में आयरन की भरपूर मात्रा पायी जाती है। साथ ही यह शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को बनाकर शरीर के विभिन्न अंगों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। इसके लिए प्रतिदिन दूध के साथ एक चम्मच गुड़हल का पाउडर लेना फायदेमंद रहता है।

 
सर्दी और जुकाम में असरदार-

हिबिस्कस की पत्तियों से बनी चाय सर्दी, जुकाम और खांसी जैसी समस्याओं में असरदायक होती है। दरअसल, इसमें प्रचूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। जोकि सर्दी और जुकाम से शरीर को बचाता है। इसके अलावा गुड़हल मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी- बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण सर्दी और जुकाम से बचाने में सहायता करते हैं।

 
मधुमेह (डायबिटीज) के लिए-

एक अध्ययन में पाया गया कि गुड़हल मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों के लिए दवा के रूप में काम करता है। क्योंकि गुड़हल की चाय में शामिल हाइपोलिपिडेमिक एवं हाइपोग्लिसेमिक गुण पाए जाते हैं। जो शरीर में ग्लूकोज के स्तर को कम करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा यह शरीर में पहुंच कर कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करता है। जोकि डायबिटीज या मधुमेह जैसी बीमारी को रोकने में मदद करता है।

 
कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक-

गुड़हल की चाय शरीर में कोलेस्ट्रॉल स्तर बनाए रखने में काफी मददगार साबित होती है। इसमें मौजूद पोषक तत्व धमनी में पट्टिका (plaque) को जमने से रोकती हैं। इसके अलावा गुड़हल LDL के स्तर को कम करने और HDL को बनाने में सहायक होती है। इस प्रकार से गुड़हल दिल संबंधी सभी बिमारियों में फायदेमंद होती हैं।

 
मासिक धर्म के लिए-

महिलाओं में होने वाले मासिक धर्म के अनियमितता को बनाए रखने के लिए गुड़हल का उपयोग बेहद कारगर सिद्ध होता हैं। क्योंकि इस दौरान महिलाओं के शरीर का एस्ट्रोजन का स्तर कम होने से हार्मोनल बैलेंस बिगड़ जाता है। जिससे महिलाओं के पीरियड्स सही समय पर नहीं आ पाते। ऐसे में उनके लिए गुड़हल की पत्तियों से बनी चाय का सेवन, एक अच्छा उपाय माना जाता है।

 
एंटीऑक्सीडेंट एजेंट के रूप में-

कई तरह के शारीरिक और मानसिक परेशानियों को दूर करने में एंटीऑक्सीडेंट के रूप में गुड़हल की पत्तियों से बनी चाय फायदेमंद होती है। ड्रग एंड केमिकल टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, गुड़हल  में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गतिविधि को बढ़ावा देने और उत्तेजित करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा गुड़हल की चाय ऑक्सीडेटिव डैमेज और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करने का काम भी करती है। जिससे डायबिटीज, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस, कार्डियोमायोपैथी, कैंसर और कंजेस्टिव हार्ट फेलियर जैसी कई अन्य समस्याओं का खतरा कम हो जाता है।

 
अवसादरोधी के रूप में-

हिबिस्कस चाय में विटामिन और खनिज पाए जाते हैं। जो अवसादरोधी के रूप में काम करते हैं। इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हिबिस्कस चाय का सेवन तंत्रिका तंत्र को शांत करने में सहायक होता है। साथ ही यह मन और शरीर में आराम की अनुमति पैदा करके चिंता और अवसाद को कम करता है।

 
बेहतर पाचन के लिए कारगर-

कई लोग पाचन क्रिया में सुधार के लिए गुड़हल की चाय पीते हैं। क्योंकि यह पेशाब और मल त्याग दोनों को नियमित करती है। आईओएस जर्नल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी एंड बायोकेमिस्ट्री में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक इसमें मूत्रवर्धक गुण पाए जाते हैं। इसलिए हिबिस्कस टी का सेवन कब्ज के इलाज और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम के स्वास्थ्य में सुधार के लिए भी किया जा सकता है।

 
किडनी स्टोन में मददगार-

यदि किसी व्यक्ति को किडनी स्टोन की समस्या है तो उसे गुड़हल की पाउडर या चाय का सेवन करना चाहिए। इससे किडनी स्टोन की समस्या में लाभ मिलता है। इसके लिए रोजाना रात में भोजन करने से 1 घंटा पहले चाय का सेवन करें।

 
मुंह के छालों के लिए-

मुंह में छाले होने पर कुछ भी खाने पर बहुत परेशानी होती हैं। इसके लिए रोज गुड़हल के 4-5 पत्तियों को चबाएं। ऐसा करने से मुंह के छालों में शीघ्र ही आराम मिलता है। इसके अलावा इससे मुंह में अधिक मात्रा में लार बनती है। जिससे पाचन शक्ति बेहतर होती है।

 
त्वचा के लिए फायदेमंद-

गुड़हल का इस्‍तेमाल चेहरे को ग्‍लोइंग और त्वचा की झुर्रियों से निजात पाने के लिए किया जाता है। क्‍योंकि गुड़हल एंटी-ऑक्‍सीडेंट और मॉइश्चराजिंग गुणों से भरपूर होता है। इसके अलावा गुड़हल में मौजूद विटामिन सी, शरीर में प्राकृतिक रूप से कोलेजन बनाने में सहायक होता है। इसलिए गुड़हल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक स्किन केयर प्रोडक्‍ट में भी किया जाता है।

 
मुंहासे और धब्बे दूर करने में सहायक-

गुड़हल का इस्तेमाल चेहरे से मुंहासे एवं धब्बे दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसके लिए गुड़हल फूल की पत्तियों को पानी में पीसकर उसमें शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएं। ऐसा करने से चेहरे के मुहांसे और धब्‍बे दूर हो जाते हैं। साथ ही चेहरा खिलने लगता है।

 
खुजली और जलन दूर करने में कारगर-

गुड़हल का फूल शरीर की सूजन, खुजली और जलन में आराम पहुंचाने का काम करता है। इसके लिए गुड़हल के ताजी पत्तियों को अच्छी तरह पीस कर सूजन एवं जलन वाली जगह पर लगाएं। ऐसा करने पर कुछ ही देर में आराम मिलता है। इस तरह से गुड़हल महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है। इसलिए अपने डेली रुटीन में गुड़हल की फूल या पत्तियों को शामिल कर सकते हैं।

 
बालों को पोषण देने में सहायक-

गुड़हल के फूल में एमीनो एसिड मौजूद होते हैं। जो बालों को पोषण प्रदान करने और उनकी ग्रोथ को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह एमीनो एसिड एक प्रकार का केरोटीन नामक प्रोटीन का उत्‍पादन करते हैं। जो कि बालों को मजबूत बनाते हैं। इसके लिए समान मात्रा में गुड़हल पाउडर और आंवला पाउडर लेकर पानी में मिक्‍स करके पेस्‍ट बनाकर बालों में लगाएं।

 
रूसी (डैंड्रफ) से आजादी-

गुड़हल एक शक्तिशाली घटक है। जो रूसी (डैंड्रफ) से छुटकारा दिलाने में मदद करता हैं। इसके लिए गुड़हल के फूलों और पत्तों को पीसकर पाउडर बनाकर उसमें आधा नींबू डालकर पेस्ट बनाएं। अब इस पेस्ट को बालों पर लगाएं और एक घंटे बाद बालों को धो लें। ऐसा करने से डैंड्रफ की समस्या से निजात मिलती है।

 
चमकदार बालों के लिए-

बालों की चमक बढ़ाकर उन्‍हें नरम और मुलायम बनाने के लिए गुड़हल एक अच्छा उपाय है। इसके लिए गुड़हल फूलों के पाउडर और एलोवेरा जैल को मिलाकर पेस्‍ट बनाएं। अब इस पेस्‍ट को हफ्ते में दो बार बालों पर लगाएं। ऐसा करने से आपके बाल मुलायम, मजबूत और घने होते हैं।

 
गुड़हल के नुकसान-
  • गुड़हल के चाय का इस्तेमाल उच्च रक्तचाप के लिए किया जाता है। इसलिए निम्न रक्तचाप अर्थात लो ब्लड प्रेशर के लोगों को इससे बचना चाहिए।
  • इसके उपयोग से नींद आती है। इसलिए वाहन ड्राइव एवं मशीन चलाते समय गुड़हल की चाय पीने से बचें।
  • गर्भवती महिलाओं को गुड़हल के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि इससे शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर कम होता है। जिससे रक्त संबंधी समस्याएं (पीरियड्स) उत्पन्न हो सकती हैं।
  • स्तनपान कराने वाली माताओं को गुड़हल का सेवन किसी भी नहीं करना चाहिए।
  • जो महिलाएं हार्मोन उपचार या उसकी दवाई ले रही हैं। उन्हें भी गुड़हल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा गर्भनिरोधक गोलियां ले रही महिलाओं को भी गुड़हल के सेवन से बचें।
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ग्रीन टी के प्रकार, फायदे और बनाने की विधि

Posted 17 March, 2022

ग्रीन टी के प्रकार, फायदे और बनाने की विधि

ग्रीन टी को कैमेलिया साइनेन्सिस पौधे से बनाया जाता है। इस पौधे की पत्तियों का उपयोग न सिर्फ ग्रीन टी बल्कि अन्य प्रकार की चाय जैसे – ब्लैक टी बनाने में भी किया जाता है। लेकिन मानव स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा प्रभावकारी ग्रीन टी होती है। ग्रीन टी में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स और फायदेमंद पॉलीफेनोल्स मौजूद होते हैं। ग्रीन टी का उत्पादन करने के लिए ताजे पत्तों को तोड़ने के बाद तुरंत भाप दी जाती है, ताकि ग्रीन टी का निर्माण किया जा सके। यह प्रक्रिया स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले प्राकृतिक पॉलीफेनोल्स को संरक्षित रखती हैं। वहीं, इसमें ब्लैक और ओलोंग टी की तुलना में अधिक कैटेचिन पाया जाता है, जो एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट होता है।

ग्रीन टी के सेवन से कई तरह के खतरनाक रोग जैसे कि कैंसर आदि से सुरक्षा मिलती है। यह पाचन तंत्र, मानसिक स्वास्थ्य और दिल की सेहत में सुधार लाती है। इसके सेवन से शरीर के तापमान को भी नियंत्रित रखा जाता है। वजन कम करने में ग्रीन टी बहुत ही ज्यादा फायदेमंद मानी जाती है। लिवर से संबंधित विकारों, टाइप 2 डायबिटीज और अल्जाइमर आदि रोगों पर भी ग्रीन टी का सकारात्मक असर पड़ता है। पारंपरिक चीनी और भारतीय चिकित्सा में ग्रीन टी या हरी चाय का इस्तेमाल रक्तस्राव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था।     

 
ग्रीन टी के प्रकार-

ग्रीन टी के उत्पादन, खेती और फसल की समय के अनुसार विभिन्न प्रकार के होते हैं। जिनमे से प्रमुख प्रकार निम्न है;

 
सेन्चा (Sencha):

यह ग्रीन टी का सबसे ज्यादा सेवन किया जाने वाला और एक जाना माना प्रकार है। इसका निर्माण आम प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। जिसमें पत्तियों को धूप में सुखाकर या भाप के द्वारा चाय को तैयार किया जाता है।

 
फुकमुशी सेन्चा (Fukamushi Sencha):

फुकमुशी का अर्थ होता है "लंबे समय तक उबला हुआ", यह ग्रीन टी का ही एक प्रकार है। जिसे सेन्चा के मुकाबले लंबे समय तक उबला जाता है। चूंकि इस प्रक्रिया में पत्तियों को भाप की गर्मी से पूरी तरह से उजागर किया जाता है। इसलिए वे पाउडर बन जाते हैं और चाय का स्वाद बढ़ जाता है और रंग गहरा हरा हो जाता है।

 
ग्योकुरो (Gyokuro):

यह पूर्ण सूर्य की बजाय छाया में उगाई जाती है और सेन्चा से अलग है। इस चाय की झाड़ियों को चुनने के लगभग 20 दिन पहले कपड़े या रीड स्क्रीन से ढक दिया जाता है।

 
क्यूबुसेचा (Kabusecha):

इस ग्रीन टी को चुनने से लगभग एक हफ्ते पहले, क्यूबुसेचा झाड़ियों को अधिकांश धूप की रोशनी से बचाने के लिए कपड़े से ढका जाता है।

 
माचा (Matcha):

यह भी ग्रीन टी का एक प्रकार है। इसको चाय की पुरानी पत्तियों से बनाया जाता है।

 
ग्रीन टी के फायदे-
दिमाग के लिए फायदेमंद है ग्रीन टी-

हमारे दिमाग को ठीक ढंग से काम करने के लिए स्वस्थ रक्त वाहिकाओं की जरूरत होती है। एक स्विस अध्ययन के अनुसार, जो लोग नियमित रूप से ग्रीन टी पीते हैं। उनके दिमाग के कार्य करने वाले स्मृति क्षेत्र में सुधार आता है। हरी चाय में मौजूद बायोएक्टिव यौगिकों के कारण न्यूरॉन्स पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियों की वजह से होने वाली क्षति कम हो सकती है। इसलिए दिमाग की स्मृति शक्ति को बढ़ाने और मानसिक रोगों से बचने के लिए ग्रीन टी पीना फायदेमंद है।

 
बालों के नुकसान को रोकने में लाभदायक है ग्रीन टी-

बालों की समस्याओं को कम करने के लिए ग्रीन टी पीना फायदेमंद है। क्योंकि इसमें कुछ शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जो बालों की समस्याओं को कम कर, उन्हें मजबूत करने में मदद करते हैं। ग्रीन टी में विटामिन बी (पांथेनोल) होता है। जो दो मुंहे बालों (split ends) की समस्या को कम करता है और बालों को मुलायम भी बनाता है।

 
वजन कम करती है ग्रीन टी-

दैनिक रूप से एक कप ग्रीन टी का उपयोग शरीर में वसा (विशेष रूप से पेट में) को कम करता है। यह शरीर में वसा की मात्रा, शरीर का वजन और कमर की चर्बी को कम करता है। इसके अलावा, ग्रीन टी में मौजूद कटेचिंस शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है। जिसके कारण अतिरिक्त कैलोरी जलाने में भी मदद मिलती है। ग्रीन टी शरीर के चयापचय को बढ़ाने में मदद करके, वजन घटाने के लिए फायदेमंद होती है। ग्रीन टी में कैफीन होता है और एक प्रकार का फ्लैवोनॉयड होता है। जिसे कैटेचिन कहा जाता है। जोकी एक एंटीऑक्सीडेंट है। केटेचिन अतिरिक्त वसा तोड़ने में मदद करता है। जबकि केटेचिन और कैफीन दोनों शरीर में ऊर्जा को बढ़ा कर, शरीर को चुस्त रखने में मदद करते हैं।

 
मधुमेह के लिए असरदार उपाय है ग्रीन टी-

ग्रीन टी मधुमेह (diabetes) से पीड़ित लोगों में रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर बनाए रखने में मदद करती है। ग्रीन टी में मौजूद पॉलिफैनोल्स और पोलिसच्चराइड्स (polysaccharides) जैसे यौगिक मधुमेह के दोनों प्रकार के लिए उपयोगी होते हैं। ग्रीन टी अग्न्याशय में इंसुलिन (Insulin) के उत्पादन को बढ़ाती है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियमित करती है और टाइप 1 मधुमेह से पीड़ित लोगों में ग्लूकोज को अवशोषित करती है। टाइप 2 मधुमेह में, लगातार हो रही रक्त शर्करा में वृद्धि के कारण अकसर आंखों, दिल और गुर्दे में जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। ग्रीन टी इस वृद्धि को रोकती है। इस प्रकार मधुमेह के रोगियों के लिए ग्रीन टी पीना अत्यंत लाभदायक है।

 
खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक है ग्रीन टी-

ग्रीन टी प्रभावी रूप से रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करती है। साथ ही खराब कोलेस्ट्रॉल और अच्छे कोलेस्ट्रॉल के अनुपात में सुधार करती है। यह कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (LDL) कोलेस्ट्रॉल यानी शरीर के लिए बुरे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है। साथ ही यह उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (HDL) यानी शरीर के लिए अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने में मदद करती है। इसके अलावा, ग्रीन टी धमनियों को साफ रखती है। जिससे दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा कम होता है।

 
उच्च रक्तचाप के लिए घरेलू उपचार है ग्रीन टी-

ग्रीन टी के नियमित सेवन से हाई बीपी का खतरा कम होता है। रक्तचाप आमतौर पर एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम (या एसीई) के कारण होता है। एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम (angiotensin-converting enzyme (or ACE) का उत्पादन किड़नी से होता है। रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए ACE अवरोधक के रूप में कई दवाइयां बाजार में उपलब्ध हैं। किन्तु ग्रीन टी एक प्रकृतिक ACE अवरोधक के रूप में काम करती है और रक्तचाप को नियंत्रित रखती है।

 
कैंसर को रोकने में सहायक है ग्रीन टी-

शोधकर्ताओं का मानना है कि ग्रीन टी में पॉलीफेनॉल का स्तर अधिक होता है। जो कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद करता है और उन्हें बढ़ने से रोकता है। हालांकि, ग्रीन टी कैंसर कोशिकाओं को किस प्रकार प्रभावित करती है यह अभी तक पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है। नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के द्वारा प्रयोगशाला में पशुओं पर किये गए अध्यन में पाया गया की चाय में मौजूद पॉलीफेनॉल ट्यूमर बढ़ने से रोक सकता है और पैराबैंगनी किरणों से होने वाली क्षति को भी कम करने में मदद करता है।

 
ग्रीन टी बनाने की विधि-
  • पहले पानी उबाल लें।
  • एक कप के लिए एक चम्मच पत्ती या एक टी बैग डालें।
  • फिर सीधे उबला हुआ पानी इस कप में डालें।
  • एक बार चाय को हिला लें।
  • डेढ़ से दो मिनट तक चाय के कप को ढक दें।
  • ध्यान रखें, दो मिनट से ज़्यादा रखने पर चाय कड़वी हो सकती है।
  • इसके बाद चाय को छान लें या टी बैग को निकाल दें।
ग्रीन टी के नुकसान-
  • कैफीन होने के कारण ग्रीन टी की अधिक मात्रा लेने से कुछ लोगों में अनिद्रा, पेट की ख़राबी, उल्टी, दस्त और अक्सर पेशाब आने जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
  • ग्रीन टी में टैनिन होते हैं। इसलिए खाने से पहले ग्रीन टी पीने से पेट में दर्द, मितली या कब्ज भी हो सकता है।
  • ग्रीन टी में मौजूद कटेचिंस भोजन से लोहे (iron) के अवशोषण (absorption) में कमी पैदा कर सकते हैं।
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जानें, हींग के फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

जानें, हींग के फायदे और उपयोग

सभी घरों में सब्जियों एवं दालों में हींग का उपयोग किया जाता है। यह भोजन की खुशबू और स्वाद को बढ़ा देती है। इसके अलावा भी हींग के अनेक ऐसे स्वास्थ्य लाभ हैं। जिसके कारण हींग का इस्तेमाल लगभग हर किचन में किया जाता है। हींग खाने को जल्दी पचाने में मदद करती है। इसके अतिरिक्त हींग उल्टी, पेट दर्द और अन्य पेट संबंधी समस्याओं को कम करने का काम भी करती है। इसलिए आयुर्वेद में हींग को एक उत्तम दर्जे की औषधि माना जाता है।

 
क्या होती है हींग?

हींग की कई प्रजातियां होती हैं। इसका पौधा 1.5 से 2.4 मीटर ऊंचा और सुगंधित होता है। यह कई वर्षों तक हरा-भरा रहता है। इसका तना कोमल होता है। इसके तने में ढेर सारी डालियां होती हैं। इसके तने और जड़ में चीरा लगाकर राल या गोंद प्राप्त किया जाता है, जिसे हींग कहते हैं। आमतौर पर हींग गहरे लाल एवं भूरे रंग की होती है। इसे भारत में कई नामों से जाना जाता है। इसे तमिल भाषा में पेरुंगायम, तेलगु में इंगुवा, मलयालम में कायम, मराठी में हींगा, कश्मीर में यांग के नाम से जाना जाता है।

 
हींग के फायदे;
पाचन क्रिया में सुधार-

हींग पाचन संबंधी समस्याओं को निपटने में मदद करती है। हींग का सेवन पाचन तंत्र से सभी हानिकारक विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। जिससे अपच जैसी समस्याएं होती हैं। यह पाचन प्रक्रिया को नियंत्रित और पेट के पीएच स्तर को सामान्य रखती है।

 
पेट विकारों में पहुंचाए राहत-

पेट में दर्द, सूजन, आफरा, गैस और एसिडिटी जैसी तमाम बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जो पूरे शरीर को प्रभावित करती हैं। इन रोगों से निजात पाने के लिए घरेलू उपाय के रूप में हींग एक बेहतर विकल्प है। इसके लिए  गुनगुने पानी के साथ हींग का सेवन करने से पेट संबंधित विकार दूर हो जाते हैं। इस संबंध में एनसीबीआई की वेबसाइट पर एक वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि हींग में एनाल्जेसिक गुण पाए जाते हैं। जो दर्द निवारक के रूप में काम करते हैं। इसलिए हींग का सेवन पेट के दर्द को कम करता है। इसके अलावा हींग गैस्ट्रिक रस के स्राव को बढ़ाती है और भोजन को बेहतर तरीके से अवशोषित करने में सहायता करती है। जिसके कारण मल को त्यागने में आसानी होती है। परिणामस्वरूप कब्ज की समस्या में आराम मिलता है।

 
ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के लिए-

ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसे श्वसन की समस्या से छुटकारा दिलाने में भी हींग का सेवन अच्छा होता हैं। इन समस्याओं के उत्पन्न होने का मुख्य वजह श्वसन नली में सूजन का होना है। हींग में एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी- बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण ब्रोंकाइटिस और अस्थमा से बचाने और इम्यूनिटी को बढ़ाकर संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं। इसके अलावा हींग में एंटीअस्थमा प्रभाव होता है। जो श्वसन प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और अस्थमा जैसी समस्याओं को कम करता है।

 
ठंड से बचाव-

हींग के गुणों में ठंड से बचाव भी शामिल है। हींग में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी- बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण ठंड से बचाने में मदद करते हैं। इसके लिए गुनगुने पानी में चुटकी भर हींग डालकर पीने से शरीर को ठंड से राहत मिलती है। इसके अलावा यह बलगम को मुंह से निकालकर ऊपरी श्वसनतंत्र को साफ करने का काम भी करती है।

 
सिरदर्द में असरदार-

हींग के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण सिरदर्द में असरदायक होते हैं। यह सिर की रक्त वाहिकाओं में आई सूजन को कम करने में सहायता करते हैं। इसके लिए गुनगुने पानी में हींग डालकर पीने से सिरदर्द में आराम मिलता है।

 
वजन को कम करने में सहायक-

हींग के पानी का सेवन शरीर में मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करता है। जो पेट के मोटापे को नियंत्रित रखने का काम करता है। दरअसल एक उच्च चयापचय दर का मतलब बेहतर वजन घटाने से होता है। इसलिए वजन को कम करने के लिए प्रतिदिन सुबह हींग के पानी का सेवन करना एक उत्तम उपाय है। 

 
एंटीऑक्सीडेंट के रूप में-

हींग कई तरह के शारीरिक और मानसिक परेशानियों को दूर करने में एंटीऑक्सीडेंट के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, हींग में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट याददाश्त की क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। इसके अलावा हींग ऑक्सीडेटिव डैमेज और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करने का काम भी करती है। जिससे डायबिटीज, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस, कार्डियोमायोपैथी, कैंसर और कंजेस्टिव हार्ट फेलियर जैसी कई अन्य समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। इसलिए हींग का सेवन शरीर के लिए अच्छा माना जाता है।

 
एंटीफंगल के रूप में-

हींग फंगस की समस्या में फायदेमंद होती है। एक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, हींग में एंटीफंगल गतिविधि पाई जाती है। जो शरीर में ट्राइकोफाइटन के विरुद्ध काम करती है। दरअसल ट्राइकोफाइटन एक तरह का फंगस होता है। जो त्वचा में खुजली और दाद (रिंगवार्म) का कारण बनता है।

 
एंटीडायबिटिक के रूप में-

एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, हींग के अर्क में एंटीडायबिटिक एक्टिविटी पाए जाती है। जो मधुमेह से प्रभावित पैंक्रिअटिक बी सेल (अग्नाशय के कोशिकाओं) के विरुद्ध सकारात्मक प्रभाव डालती है। इसके अलावा हींग रक्त शुगर को कम करने और सीरम इंसुलिन लेवल को बढ़ाने का काम करती है। इसलिए हींग का सेवन मधुमेह के लिए एक अच्छा विकल्प है।

 
पीरियड्स दर्द से राहत-

महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान कमर और पेट के निचले हिस्से के दर्द से छुटकारा पाने के लिए हींग एक बेहतरीन उपाय है। यह रक्त को पतला करने का काम करती है। साथ ही शरीर में रक्त के प्रवाह को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती है। जिससे पीरियड्स के दर्द से राहत मिलती है। इसके लिए हींग मिश्रित गुनगुने पानी पानी का सेवन करना चाहिए।

 
त्वचा के लिए लाभप्रद-

हींग का उपयोग त्वचा के लिए लाभप्रद होता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर पब्लिश एक वैज्ञानिक रिसर्च से पता चलता है कि हींग में फेरुलिक एसिड मुख्य रूप से पाया जाता है। जो एक तरह का एंटी-ऑक्सीडेंट होता है। शोध में यह भी पाया गया कि फेरुलिक एसिड चोट को ठीक करने वाली कोशिकाओं को सक्रिय करता है। साथ ही त्वचा को सूरज की यूवी किरणों से बचाता है। इसके अलावा त्वचा को जलन और डैमेज से भी छुटकारा दिलाने में मदद करता है।   

 
कैसे करें हींग का सेवन?
  • हींग को गुनगुने पानी में मिलाकर, सेवन किया जाता है।
  • हींग का इस्तेमाल सब्जी बनाते समय किया जाता है।
  • दाल में तड़का लगाने के लिए हींग का प्रयोग किया जाता है।
  • हींग का उपयोग अचार के मसाले का स्वाद बढ़ाने में किया जाता है।
  • इसे शहद और अदरक के रस में मिलाकर, सेवन किया जाता है।
  • हींग को गुड़ के साथ मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं।
हींग के नुकसान-
  • हींग की तासीर गर्म होती है। इसलिए इसका अधिक सेवन, पाचन संबंधी समस्या और हार्ट बर्न का कारण बन सकता है।
  • हींग का अधिक सेवन करने से त्वचा पर दाग, धब्बे और रैशेज होने लगते हैं।
  • अतिसंवेदनशीलता (हाइपर-सेंसिटिविटी) की समस्या वाले व्यक्ति को हींग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • इसकी अधिक मात्रा का सेवन मुंह में सूजन की वजह बन सकती है।
  • हींग का अधिक उपयोग करने से सिरदर्द भी हो सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं को हींग के अधिक सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि यह रक्त संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं।
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Medicinal Properties, Benefits and Uses of Ginger

Posted 15 December, 2021

Medicinal Properties, Benefits and Uses of Ginger

Ginger is used in every household because it adds a unique flavour to the savoury and also has many medicinal properties. Ginger provides energy to the body, therefore, it is used in many other things along with dishes. For thousands of years, ginger has been used as a medicinal herb in the Unani and Siddha medicine of Ayurveda.

The name of ginger comes among one of the major herbs in relieving the problem of nausea, vomiting, gas and flatulence. Ginger tea is most preferred in India because it provides warmth and vigour to the body. Ginger is used as a major ingredient in many popular dishes to enhance flavour.

 
What is Ginger?

Ginger is the stem of a plant growing in the ground that smells good and survives for many years. Its plant is about 90–120 cm high and soft and the body is white or yellow in colour and brown on the surface. Every year new branches emerge from its rhizome. Ginger has stripes and is split into one or several parts along with being circular. Due to its medicinal properties, for many years, ginger has been used in medicine powder, decoction, etc. 

 
Ayurvedic Importance of Ginger

Many medicinal properties of ginger have been reported in Ayurveda. It is very beneficial in loss of appetite, indigestion, vata-pitta dosha etc. Ginger is also beneficial in wounds, stones, fever, anaemia and urinary disease. The use of ginger is beneficial in diseases like the digestive system, inflammation, body pain, cold and cough. Not only this, in the diseases of heart disease, blood disorders, piles etc., the medicinal properties of ginger are also beneficial.

 
Benefits of Ginger
Helpful in relieving cough-

Ginger is a natural analgesic and pain reliever. Hence, it is used to soothe throat pain and irritation. It also helps in reducing cough, especially when its cause is the common cold. Ginger's intense heat function helps eliminate mucus from the lungs which are very helpful in relieving cough. To get relief from coughing, you can enjoy eating grated ginger or tea made from it. To reduce the coughing and boost the healing process, you can massage the chest and back with ginger oil.

 
Beneficial in nausea and vomiting-

Research has found that ginger has antiemetics (reducing the feeling of nausea and vomiting) effect due to which it can relieve nausea problems mainly after pregnancy and chemotherapy.

 
Effective in migraine-

Ginger has analgesic properties. These pain-relieving properties are helpful in the problem of migraine. Ginger juice works by controlling the acute pain of migraine and providing relief. Therefore, the consumption of ginger is beneficial for migraine sufferer.

 
Reduces pain-

Research by the University of Nebraska of the United States found that ginger has analgesic properties which have a wide impact on muscle pain caused by high tension in players. On the other hand, research conducted by the Shahid University of Tehran shows that ginger can control menstrual pain. Based on both these facts, it is said that the medicinal properties of ginger help in reducing the pain caused by muscle strain, tension and inflammation.

 
Strengthens the digestive system-

Ginger is helpful in relieving many problems like constipation, stomach pain, stomach cramps, torsion and gas. At the same time, it is also helpful in correcting the problem of indigestion. Therefore, ginger also works to relieve stomach related problems and strengthen the digestive system.

 
Controls diabetes-

Ginger helps in lowering blood sugar levels in the body and may increase the effect of insulin and other drugs used for treatment. Therefore, to control blood sugar, experts suggest that one teaspoon of ginger juice should be drunk in a glass of warm water in the morning. With this, various health-related complications related to diabetes can be limited to a great extent with the help of ginger. Regular intake of ginger can also decrease the protein levels of urine. Additionally, it also reduces excess water intake and urine output. Thus ginger reduces various types of hazards due to uncontrolled blood sugar.

 
Reduce Arthritis pain-

Ginger has impressive anti-inflammatory properties which help treat pain related to gout, rheumatoid arthritis and osteoarthritis. According to a 2001 study, ginger extract is highly effective in reducing the symptoms of osteoarthritis of the knee. For this, mix the hot ginger paste with turmeric and apply it to the affected area twice a day. Also, include raw or cooked ginger in your diet. Additionally, to calm the aching muscles and joints, add a few drops of ginger essential oil to the bathwater.

 
To promote heart health-

High in potassium, ginger intake has long been used to promote heart health. It lowers cholesterol levels, controls blood pressure and helps prevent blood clotting which further helps reduce the risk of various heart diseases. The good amount of manganese present in ginger helps to protect the heart, blood vessels, and urinary passages. Therefore, to maintain good heart health, you must include this herb in your regular diet.

 
Uses of ginger
  • Ginger is consumed mostly in tea.
  • In some households, ginger is also used to add the tempering to the vegetable.
  • Some people also like to eat ginger’s pickle.
  • In the absence of ginger, its powder (dry ginger) is also used on a large scale.
Side effects of Ginger
  • Excessive intake of ginger can cause diarrhoea, various stomach problems, burning sensation in the mouth and severe belching or nausea.
  • Overconsumption of ginger can slow blood clotting and increase blood thinning.
  • In some people, ginger can also cause severe allergic reactions such as difficulty in breathing, closure of the throat, swelling of lips and tongue, itching and rashes. Therefore, people who are allergic to ginger should avoid it.
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Benefits of Fenugreek Seeds

Posted 15 December, 2021

Benefits of Fenugreek Seeds

Fenugreek, commonly known as methi dana in Indian houses, is a herb that has been a staple in both Indian as well as European cuisine, along with other parts of Asia. It is popularly used in pickles and curries.

 

Fenugreek seeds are packed with essential vitamins, minerals, and fibres that are great for health. It contains proteins, carbohydrates, fat, magnesium, manganese, iron, vitamin A, vitamin C, vitamin B, riboflavin, thiamin, niacin, etc. All these nutrients make it an important and essential ingredient to be used in culinary and also as a home remedy to treat various health conditions.

 

Benefits of Fenugreek Seeds

For Diabetes-

Researches state that fenugreek seeds help control blood sugar in the body and decrease insulin resistance. Therefore, people with diabetes are often recommended to include fenugreek seeds in their diet. These seeds have a strong and positive effect on their health.

 

For Cholesterol-

Fenugreek seeds contain flavonoids that help lower the cholesterol level, especially the Low-Density Lipoprotein, commonly known as the bad cholesterol.

 

For Stomach Problems-

Fenugreek is a natural digestive tonic that can be great for people suffering from stomach problems. It helps to prevent constipation as well as digestive problems created by stomach ulcers and is also effective for treating gastritis, dyspepsia, and indigestion.

 

For Healthy Hair-

Fenugreek seeds are rich in proteins and nicotinic acid which makes the hair roots strong and repairs damaged hair follicles. It also contains lecithin which gives shine to the hair. Fenugreek seeds also have some medicinal properties that help to preserve the hair pigment and also delay greying of hair.

 

Menstrual cramps (dysmenorrhea)-

Consume 1800-2700 milligrams of fenugreek seed powder thrice a day for the initial 3 days of menstrual days. For the remaining two menstrual cycles, consume 900 milligrams three times daily. This reduces the pain in women with painful menstrual periods.

 

For Gut Strengthening-

Herbal tea made of fenugreek helps to strengthen the gut. For this Roast fenugreek seeds and cook them well with milk. Add a little sugar if needed. This is taken as a substitute for tea or coffee and it provides strength to the intestines and improves digestion power.

 

For Weight loss-

Fenugreek seeds may give a feeling of fullness by suppressing the appetite. This helps to reduce overeating and assists in weight loss.

 

For acne-

Regular consumption of fenugreek tea may help purify the blood and prevent infections. This may help keep the skin radiant, healthy, clear, and free of pimples. A paste made of fenugreek leaves can be applied to the affected area. Apply this paste at night and wash it off in the morning.

 

Other Benefits of Fenugreek seeds are-

  • Cholesterol levels-  Some evidence from the researches indicates that fenugreek seeds can lower cholesterol levels. 
  • Heartburn- One 2-week study in people with frequent heartburn found that fenugreek matches the effect of antacid medicine and reduces the symptoms of heartburn. 
  • Inflammation- Researches show that fenugreek seeds contain anti-inflammatory effects in rats and mice. Though more research is needed to prove its efficiency in humans.

Side-effects of Fenugreek Seeds

Fenugreek is safe in normal amounts in culinary use. However, excess consumption may lead to certain side effects such as-

 
  • Diarrhoea, upset stomach, bloating, gas, dizziness, and headache.
  • It may also cause coughing, nasal congestion, wheezing, facial swelling, and several severe allergic reactions in people having sensitive bodies.
  • It is avoided when the person is having bleeding disorders such as nasal bleeding.
  • It is best to avoid fenugreek when suffering from diarrhoea as it is a mild laxative.

Where is it Cultivated?

Fenugreek is native to South Asia and Southeastern Europe but is now widely found, including North and East Africa, China, Greece, and Ukraine.

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Dill- Benefits & Side effects

Posted 15 December, 2021

Dill- Benefits & Side effects

Dill is a famous name among healthy herbs. This herb works to promote physical and mental health. It has been used since ancient times as medicine, spices, and food items. Dill is rich in nutritional elements. Therefore, there are many benefits to health from its consumption. Health benefits of dill include relief in liver problems, intestinal gas, haemorrhoids, infections, gallbladder, menstrual cramps, treatment of insomnia, and healing digestion.

 
 

Dill is a year-round plant, which is like a weed. Its seeds and the whole plant are used as food items. For commercial purposes, it is used in the production of creams, lotions, perfumes, detergents, and soaps, etc. but dill originally serves as a medicinal herb as various medicines are prepared from it. It contains a good amount of vitamin-A, vitamin C, folate, iron, manganese, and minerals.

 

Benefits of Dill

Better for the digestive system-

Dill has fibre and flavonoids properties which act as bactericidal. In addition, dill also contains minerals and magnesium which works to give relief in stomach- related diseases like stomach pain, diarrhoea, constipation, etc. Dill also benefits digestive health.

 

Good for immunity-

Dill works to increase the immunity of the body. Its plants have antimicrobial properties which prevent the internal and external wound of the body from converting into an infection. The reason for a person getting infected again and again is his weak immune system. In such a situation, he should try to increase his immunity by using dill.

 

Useful in respiratory disorders-

Dill is used for treating respiratory problems. It contains components such as kaempferol, flavonoids, and monoterpenes which help to overcome respiratory problems. Dill is antihistaminic in nature which helps to relieve the sensations caused by histamine, cough, and allergies. Therefore, the use of dill prevents respiratory infections.

 

Effective in diabetes-

Dill has the potential to control diabetes due to its corticosteroid properties, it helps in reducing the fluctuations in lipids and insulin levels in case of diabetes.

 

Able to relieve insomnia-

The problem of insomnia worsens health in many ways because it is necessary to get good sleep for good health. Dill contains adequate amounts of minerals and vitamins which promote mental health and also fix insomnia problems. Vitamins and flavonoids present in dill accelerate hormone formation within the body which works to prevent insomnia by calming the brain.

 

Beneficial in hiccups-

A healthy person also gets upset due to long hiccups but dill is a beneficial medicine for the treatment of long or recurring hiccups. Actually, the real reason for hiccups is the gas or air trapped in the food pipe which repeatedly tries to move upwards. As a result, we start getting hiccups. The medicinal properties of dill work to eliminate flatulence and the gas produced in the food pipe which reduces the frequency of hiccups.

 

Essential for strong bones-

Calcium is the first need for bones which is found in plenty in dill. So dill helps in the development of bones. Regular intake of this is a good treatment for bone injury. Additionally, dill prevents diseases such as osteoporosis. Also, the use of dill as a spice reduces arthritis pain.

 

Beneficial in menstruation-

The benefits of dill are considered special for women. It helps to ease menstruation. This Ayurvedic component provides flavonoids to the body which promotes hormone formation to trigger menstruation. In this form, dill works to facilitate menstruation in women.

 

Side effects of Dill

  • Consuming plenty of dills can bring lower the blood sugar in the body significantly. Therefore, diabetic patients should consume it in moderation.
  • The dill serves to start the menstruating period. So, dill should not be consumed much at the time of breastfeeding and pregnancy because it can lead to miscarriage.
  • People who are allergic to carrot family plants should not consume it because dill can increase the response of that allergen.
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आयुर्वेद में जीरे का महत्व, फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

आयुर्वेद में जीरे का महत्व, फायदे और उपयोग

सभी घरों में व्यंजन का स्वाद बढ़ाने के लिए जीरे का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग घरों में मसालें, अचार, काढ़ा, चूर्ण और जीरे के चावल इत्यादि के रूप में करते हैं। अपने गुणों के कारण अधिकांश लोग इसका प्रयोग जीरा पानी के रूप में भी करते हैं। इसके अतिरिक्त जीरा पाचन क्रिया, पेटदर्द और अन्य पेट संबंधि समस्यओं को कम करने का काम भी करता है। इसलिए आयुर्वेद में जीरे को एक उत्तम औषधि माना जाता है।

क्या होता है जीरा? 

जीरा के बीजों को अंग्रेजी में क्यूमिन सीड्स (Cumin seeds) कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम क्यूमिनम सायमिनम (Cuminum cyminum) है। यह एक प्रकार का शाकीय पौधा होता है। जिसमें सफेद या लाल रंग के छोटे फूल लगते हैं। इन्हीं फूलों में जीरे के बीज लगे होते हैं। इसके बीज का रंग हल्के भूरे और देखने में सौंफ की तरह होते हैं। जीरे का पौधा एक से दो मीटर का होता है। इसका उपयोग सुगंधित जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है।     

आयुर्वेद में जीरे का महत्व-

जीरे की तासीर गर्म होती है। इसमें कई तरह के पौष्टिक पदार्थ पाए जाते हैं। जो त्रिदोष (कफ, पित्त, वात) को शांत रखने में मदद करते हैं। जीरे में कैल्शियम, सोडियम, आयरन और पोटैशियम जैसे कई खनिज (मिनरल्स) तत्व भी पाए जाते हैं। जीरा का सबसे बड़ा फायदा इम्यूनिटी बढ़ाना (Increase Immunity) है। गर्मी के मौसम में जीरे का प्रयोग दही, छाछ, शिकंजी के साथ करने से यह शरीर को ठंडा रखता है। इसके अतिरिक्त जीरा का नियमित सेवन स्वास्थ्य को चुस्त और तंदुरुस्त रखता है।

 

जीरे के फायदे;

पाचन शक्ति में सहायक-

पाचन तंत्र में खराबी या गड़बड़ी होने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। जिससे शरीर तमाम बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। लेकिन जीरे का नियमित सेवन पाचन तंत्र को ठीक करने में मदद करता है। इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम से पहले जीरे के पानी का सेवन करें।

 

रक्त को साफ करने में सहायक-

शरीर में विषाक्त पदार्थों का समावेश होने पर उस क्रिया को खराब खून कहा जाता है। जीरे में विटामिन-सी, एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं। जो विषैले कण को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करते हैं। इसके लिए जीरे के पानी का सेवन करें। ऐसा करने से विषैले कण मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। जिससे रक्त की शुद्धि होती है।  

 

वजन को कम करने में लाभप्रद-

जीरे में अधिक मात्रा में फाइबर होता है। जो पेट के मोटापे को नियंत्रित रखने का काम करता है। दरअसल जीरा शरीर में फैट को जमने नहीं देता। परिणामस्वरूप मोटापा नहीं बढ़ पाता। इसके लिए रोजाना सुबह व्यायाम से पहले जीरे के पानी का सेवन उत्तम होता है। इसके अलावा जीरे का पानी एसिडिटी को कम करने और शरीर को हाइड्रेट रखने में भी मदद करता है।

 

हृदय स्वास्थ्य के लिए-

जीरे में फास्फोरस, पोटैशियम, आयरन, मैंगनीज और जिंक जैसे खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। जो हृदय स्वास्थ्य को लंबे समय तक अच्छा रखने का काम करते हैं। यह पोषक तत्व शरीर में रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा यह रक्त कोशिकाओं के विकास के लिए भी जरूरी होते हैं। इस कारण, जीरे को हृदय के लिए अच्छा माना जाता है।

 

सर्दी-खांसी में असरदार-

जीरे के गुण में खांसी और सर्दी से बचाव भी शामिल है। जीरे में एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण खांसी और सर्दी से बचाने और इम्यूनिटी को बढ़ाकर संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं। इसके लिए जीरा पानी में अदरक डालकर पीने से खांसी और सर्दी से राहत मिलती है। इसके अलावा यह बलगम को मुंह से निकालकर ऊपरी श्वसन तंत्र को साफ करने का काम भी करता है।

 

पेट विकारों में पहुंचाए राहत-

पेट में दर्द, सूजन, आफरा, गैस और एसिडिटी जैसी तमाम बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जो पूरे शरीर को प्रभावित करती हैं। इन रोगों से निजात पाने के लिए घरेलू उपाय के रूप में जीरा एक बेहतर विकल्प है। इसके लिए जीरे का चूर्ण बनाकर, गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से पेट संबंधित विकार दूर होते हैं।

 

हड्डियों के लिए-

फास्फोरस और कैल्शियम हड्डियों के निर्माण और उनकी सेहत को बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं। चूंकि जीरे को कैल्शियम और फास्फोरस का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसलिए जीरे का सेवन करना हड्डियों के लिए अच्छा होता है।

 

सूजन के लिए-

जीरा एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल्स से भरपूर होता है। जो सूजन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा जीरे में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी का प्रभाव भी सूजन को कम करने और रोकने में सहायता करता है।

 

मधुमेह (डायबिटीज) को नियंत्रण करने में मददगार-

रक्त में शर्करा का लेवल कम या अधिक होना दोनों ही शरीर के लिए हानिकारक साबित होता है। ऐसे में नियमित रूप से जीरे का सेवन करना चाहिए। क्योकि इसमें कुछ ऐसे एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। जो शरीर में रक्तशर्करा को नियंत्रित रखते हैं। इसके अलावा मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए प्रतिदिन जीरे के पानी का सेवन करना भी लाभप्रद होता है।

 

गर्भावस्था में फायदेमंद-

मुख्य रूप से जीरा गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि इस समय शरीर के हार्मोन्स में बदलाव होता है और गर्भाशय के कारण पाचन धीमा हो जाता है। जिससे पेट फूलना, आहार नली में गैस बनने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में काले नमक युक्त जीरे पानी का सेवन करना लाभदायक होता है। क्योंकि इसमें मौजूद सक्रिय एंजाइम पाचन गतिविधि में वृद्धि करते हैं। साथ ही आंत संबंधित समस्याओं को भी दूर करते हैं। इसके अलावा जीरे का पानी मासिक धर्म में होने वाला दर्द और ऐंठन की समस्या से राहत दिलाने में सहायक होता है।

 

मां का दूध बढ़ाने हेतु-

जीरे में कैल्शियम और आयरन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। यह दोनों तत्व गर्भवती और स्तनपान करा रही महिलाओं के लिए सर्वोत्तम हैं। क्योंकि यह मां के स्तनों में की मात्रा दूध को बढ़ाता हैं। इसके अलावा माताओं के शिशु जन्म उपरांत खोई हुई ताकत और स्फूर्ति को वापस लाने में भी मदद करता है।

 

त्वचा विकारों को दूर करने में कारगर-

जीरा त्वचा संबंधी विकार जैसे दाग, खाज, खुजली, धब्बे, झुर्रियां आदि में बेहद लाभदायक होता है। इसमें विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-के, एंटीऑक्सीडेंट आदि गुण पाए जाते हैं। जो त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए जीरे पानी का लेप या पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगाने से त्वचा विकार ठीक हो जाते हैं।

 

बालों के लिए-

जीरे में एंटी-फंगल और एंटी-इंफ्लेमेटरी दोनों गुण मौजूद होते हैं। जो स्कैल्प और बालों को साफ करने का काम करते हैं। इसके लिए जीरे का एसेंशियल ऑयल एक अच्छा विकल्प है। इसके अलावा काले नमक युक्त जीरे पानी से बाल धोने पर बालों की कंडीशनिंग भी होती है।

 

किन रूपों में होता है जीरे का उपयोग?

  • जीरा के बीज और अदरक के चूर्ण को मिलाकर चाय या काढ़े के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • सब्जी बनाने से पहले जीरे का तड़के के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • दाल में तड़का लगाने के लिए जीरे का प्रयोग किया जाता है।
  • जीरे का उपयोग अचार के मसाले का जायका बढ़ाने में किया जाता है।
  • जीरे का उपयोग बंगाली मसाला (पंचफोरन) मिश्रण तैयार करने के लिए भी किया जाता है।
  • जीरा राइस का स्वाद बढ़ाने के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • इसका इस्तेमाल जीरे का चूर्ण और जीरे पानी के रूप में किया जाता है। 

जीरे के नुकसान-

  • जीरे का अधिक सेवन करने के पश्चात धूप के संपर्क में आने से त्वचा पर दाग, धब्बे और रैशेज होने लगते हैं।
  • अतिसंवेदनशीलता (हाइपर-सेंसिटिविटी) की समस्या वाले व्यक्ति को जीरे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • जीरे की तासीर गर्म होती है। इसलिए इसका अधिक सेवन, पाचन संबंधी समस्या और हार्ट बर्न का कारण बन सकता है।
  • वातहर प्रभाव की वजह से इसका अधिक सेवन डकार का कारण बन सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं को जीरे के अधिक सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि ज्यादा मात्रा में इसके सेवन से गर्भपात या समय से पहले डिलीवरी होने की आशंका बढ़ जाती है।
  • किसी भी प्रकार की दवाइयों का सेवन करते समय चिकित्सक के परामर्शानुसार जीरे का सेवन करें।

कहां पाया जाता है जीरा?

जीरे की खेती पूरे भारत में की जाती है। भारत में जीरे का उत्पादन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, बिहार और मध्यप्रदेश में बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है।  

 
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What is Danti? Know its Benefits and Uses

Posted 15 December, 2021

What is Danti? Know its Benefits and Uses

Danti has been considered a type of medicine in Ayurveda. The Sushruta Samhita and Charaka Samhita also elaborate on Danti and its benefits. According to Ayurveda, the flowers, stems, fruits and roots of the Danti plant are good for health. The benefits of Danti range from stomach problems to teeth related diseases. Nowadays, Danti roots (Dantimul) are found in the form of pieces of wood in the markets.

 

What is Danti?

Danti is a kind of plant whose branches are green and white in colour. The leaves are round in shape and 5-8 cm long. The average height of the Danti plant is about 90–180 cm, its flowers grow in greenish-yellow colour and bunches. Its fruits are hairy and oval. Danti is known by the names of wild crotons in English and Danti, Chhotidanti, Tamba etc. in Hindi. Dantis botanical name is Baliospermum solanifolium.

 

Benefits and Uses of Danti

For stomach gas-

The problem of feeling flatulence or gas spasm in the stomach due to gas is called gulm in Ayurveda. Taking 5-10 grams of paste of Danti root with curd, buttermilk, manda, alcohol, etc. provides relief in gulm and other diseases of the stomach. Apart from this, consuming Danti oil with celery and rock salt also helps in stomach problems.

 

For eyes-

Extract the juice of the root of Danti and mix honey in it and apply it in the eyes in the form of mascara, it provides relief in eye pain.

 

For respiratory problems-

Danti is an effective medicine to relieve shortness of breath and swelling of the lungs. For this, for some days, take a decoction made of 10-15 ml Danti leaves. This provides relief in respiratory problems.

 

For dysentery-

Grind equal quantities of Pippali, Danti and Chitrak with water. Now taking it with lukewarm water reduces the problem of dysentery.

 

To clean the stomach-

Lack of proper digestion leads to many diseases. Hence, Danti is used as a laxative (stomach cleansing medicine). For this, sugarcane pieces are wrapped in Dravanti and Danti paste and cooked using the Putpak method. Now extract the juice and consume 10-15 ml. By doing this, the stomach clears easily.

 

For haemorrhoids-

Cook the leaves of Danti (Wild croton), Palash (Tesu Flower), Nishoth (Turpethum), Chitrak and Changeri, etc. and prepare vegetables by cooking them in ghee or oil. Now eating this vegetable with curd provides relief in piles. Seek advice from an Ayurvedic doctor for best results.

 

Where is Dantis plant found?

Danti plant grows in India from Kashmir to Arunachal Pradesh in the Himalayas up to a height of 600-1000 m. Apart from this, Dantis plant is found up to a height of 1800 m in the mountainous regions of Karnataka, Bengal, Assam, Konkan, Bihar, Deccan Peninsula, Western Ghats and Kerala. These plants can be seen in areas of China, Myanmar, Bangladesh, Java, Thailand, the Malay Peninsula and Indo- Malaysia.

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अदरक के औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

अदरक के औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

हर घर की रसोई में अदरक का उपयोग होता है। क्योंकि अदरक में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। अदरक से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इसलिए अदरक का इस्तेमाल व्यंजनों के साथ और भी कई चीजों में किया जाता है। हजारों वर्षों से आयुर्वेद की यूनानी और सिद्ध औषधि में चिकित्सकीय तत्व के रूप में अदरक का इस्तेमाल किया जाता रहा है। जी मिचलाना, उल्टी, गैस और पेट फूलने की समस्या से राहत दिलाने में अदरक का नाम प्रमुख जड़ी-बूटियों के तौर पर आता है। भारत में अदरक की चाय को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। क्योंकि इससे शरीर को गर्मी और जोश मिलता है। कई लोकप्रिय व्यंजनों में स्वाद बढ़ाने के लिए प्रमुख सामग्री के रूप में अदरक का इस्तेमाल किया जाता है।

 
क्या है अदरक?

अदरक जमीन के अन्दर उगने वाले पौधे का तना है। यह सुगन्धित होता है। अदरक का पौधा कई वर्षों तक जीवित रहता है। यह लगभग 90-120 सेमी ऊंचा और कोमल होता है। हर साल इसके प्रकन्द (Rhizome) से नई शाखाएं निकलती हैं। इसका प्रकन्द सफेद या पीले रंग का होता है। जो बाहर से भूरे रंग का होता है। अदरक में धारियां होती हैं और यह गोलाकार होने के साथ-साथ एक या अनेक भागों में विभाजित होता है। बहुत सालों से औषधि चूर्ण, काढ़ा, गुटिका (गोली) तथा अवलेह आदि में अदरक का प्रयोग किया जाता रहा है।

 
अदरक का आयुर्वेदिक महत्त्व-

आयुर्वेद में अदरक के कई औषधीय गुण बताए गए हैं। भूख की कमी, बदहजमी, वात-पित्त दोष आदि में अदरक के औषधीय गुण बेहद लाभदायक होते हैं। घाव, पथरी, बुखार, एनीमिया और मूत्र रोग में भी अदरक फायदेमंद है। पाचन-तंत्र, सूजन, शरीर के दर्द, सर्दी- खांसी जैसी बीमारियों में अदरक के इस्तेमाल से फायदा मिलता है। इतना ही नहीं ह्रदय रोग, रक्त विकार, बवासीर आदि रोगों में भी अदरक के औषधीय गुण से लाभ होता है।

 
अदरक के फायदे;
खांसी को दूर करने में सहायक-

अदरक एक प्राकृतिक एनाल्जेसिक और दर्द निवारक है। इसलिए इसे गले के दर्द और जलन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह खांसी को कम करने में भी मदद करता है। खासकर तब, जब इसका कारक आम सर्दी हो। अदरक की तीव्र ऊष्म कार्यशीलता फेफड़ों से बलगम को खत्म करने में मदद करती है। जो खांसी से राहत दिलाने में अत्यंत सहायक है। खांसी से राहत पाने के लिए सीधे कटे हुए अदरक का सेवन या इससे बनी हुई चाय का आनंद उठा सकते हैं। उपचार प्रक्रिया तथा खांसी को कम करने के लिए आप अदरक के तेल से छाती व पीठ की मालिश कर सकते हैं।

 
मतली व उल्टी में लाभदायक-

मतली व उल्टी की समस्या में अदरक के इस्तेमाल द्वारा लाभ पाया जा सकता हैं। यह बात इंटीग्रेटिव मेडिसिन इनसाइट्स द्वारा किए गए एक शोध से प्रमाणित होती है। शोध में पाया गया कि अदरक में एंटीएमेटिक्स (मतली और उल्टी के आभास को कम करने वाला) प्रभाव पाया जाता है। इस प्रभाव के कारण अदरक मुख्य रूप से गर्भावस्था और कीमोथेरेपी के बाद होने वाली मतली की समस्या में राहत दिला सकता है।

 
माइग्रेन में असरदार-

अदरक में दर्दनिवारक गुण मौजूद होते हैं। यही दर्दनिवारक गुण माइग्रेन की समस्या में सहायक साबित होते हैं। अदरक का रस माइग्रेन के तीव्र दर्द को नियंत्रित कर आराम पहुंचाने का काम करता है। इसलिए माइग्रेन पीड़ित के लिए अदरक का सेवन लाभदायक होता है।

 
दर्द को कम करता है-

यूनाइटेड स्टेट के नेब्रास्का विश्वविद्यालय द्वारा एक शोध में पाया गया कि अदरक में एनाल्जेसिक (दर्दनिवारक) गुण पाया जाता है। जो खिलाड़ियों में अधिक तनाव के कारण होने वाले मांसपेशियों के दर्द पर व्यापक प्रभाव डालता है। वहीं, दूसरी ओर तेहरान के शाहेद विश्विद्यालय द्वारा किए गए शोध में यह माना गया कि अदरक मासिक धर्म के दर्द को नियंत्रित कर सकता है। इन दोनों तथ्यों के आधार पर कहा जाता है कि अदरक के औषधीय गुण मांसपेशियों में खिंचाव, तनाव व सूजन के कारण होने वाले दर्द को कम करने में मदद करते हैं।

 
पाचन तंत्र को मजबूत करता है-

अदरक कब्ज, पेट दर्द, पेट की ऐंठन, मरोड़ व गैस जैसी कई समस्याओं से राहत दिलाने में सहायक साबित होता है। वहीं, यह अपच की समस्या को ठीक करने में भी मददगार है। इसलिए अदरक पेट से संबंधी परेशानियों को दूर करने और पाचन तंत्र को मजबूत बनाने का भी काम करता है।

 
मधुमेह को नियंत्रित करता है-

अदरक शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है और इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली इंसुलिन और अन्य दवाओं के प्रभाव को बढ़ा सकता है। इसलिए रक्त शर्करा को नियंत्रित करने के लिए विशेषज्ञों का सुझाव है कि सुबह-सुबह एक गिलास गर्म पानी में अदरक के रस का एक चम्मच मिलाकर पीना चाहिए। इससे मधुमेह से जुड़ी विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को अदरक की मदद से काफी हद तक सीमित किया जा सकता है। अदरक का नियमित सेवन मूत्र के प्रोटीन का स्तर कम कर सकता है। इसके अतिरिक्त यह अधिक पानी के सेवन और मूत्र उत्पादन को भी कम करता है। इस प्रकार अदरक अनियंत्रित रक्त शर्करा के कारण विभिन्न प्रकार के खतरों कम करता है।

 
गठिया दर्द को कम करता है-

अदरक में प्रभावशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। जो वात-रोग (गाउट), संधिशोथ (रहेयूमेटॉइड आर्थराइटिस) और ऑस्टियोआर्थराइटिस से संबंधित दर्द का इलाज करने में मदद करते हैं। 2001 के एक अध्ययन के मुताबिक, घुटने के पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षणों को कम करने में अदरक का अर्क अति प्रभावी होता है। इसके लिए गर्म अदरक के पेस्ट को हल्दी के साथ मिलाकर दिन में दो बार प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं। साथ ही अपने आहार में भी कच्चे या पके हुए अदरक को शामिल करें। इसके अतिरिक्त दर्द कर रही मांसपेशियों और जोड़ों को शांत करने के लिए स्नान वाले पानी में अदरक एसेंशियल ऑयल (ginger essential oil) की कुछ बूंदों को मिलाएं।

 
हृदय के लिए स्वास्थ्यवर्धक-

अदरक का सेवन हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए लंबे समय से उपयोग किया जाता रहा है। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है, रक्तचाप को नियंत्रित करता है और ब्लड- क्लॉटिंग को रोकने में मदद करता है। जिससे विभिन्न हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में सहायता मिलती है। पोटेशियम में उच्च, अदरक दिल के स्वास्थ्य के लिए उत्कृष्ट होता है। अदरक में मौजूद मैंगनीज की अच्छी मात्रा, हृदय, रक्त वाहिकाओं और मूत्र मार्गों का संरक्षण करने में मदद करती है। इसलिए हृदय के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अपने नियमित आहार में इस जड़ी-बूटी को अवश्य शामिल करें।

 
अदरक का उपयोग-
  • अदरक का सबसे अधिक सेवन चाय के रूप में किया जाता है।
  • कुछ घरों में अदरक का उपयोग सब्जी में तड़का लगाने के लिए भी किया जाता है।
  • कुछ लोगों को अदरक के अचार का सेवन करना भी बेहद पसंद होता है।
  • वहीं, अदरक के अभाव में इसके पाउडर (सोंठ) का इस्तेमाल भी कई कामों में बड़े स्तर पर किया जाता है।
 
अदरक के नुकसान-
  • अदरक का अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्त, पेट की विभिन्न समस्याओं, मुंह में जलन और गंभीर डकार या उबकाई आदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
  • अदरक का अधिक सेवन ब्लड-क्लॉटिंग को धीमा कर सकता है और खून के पतलेपन को बढ़ा सकता है।
  • कुछ लोगों में अदरक गंभीर एलर्जी प्रतिक्रियाओं जैसे कि श्वास में कठिनाई, गले का बंद होना, होंठ व जीभ में सूजन, खुजली व रैशेज आदि का कारण भी बन सकता है। इसलिए जिन लोगों को अदरक से किसी भी प्रकार की एलर्जी, उन्हें इसके सेवन से बचना चाहिए।
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कॉफी के पोषक तत्व और फायदे

Posted 17 March, 2022

कॉफी के पोषक तत्व और फायदे

कॉफी एक प्रचलित पेय पदार्थ है। जिसे उसके अनूठे स्वाद और खुशबू के लिए जाना जाता है। इसलिए कई लोग अपने दिन की शुरुआत कॉफी के साथ करना पसंद करते हैं तो कई लोगों को शाम के वक्त कॉफी पीना अच्छा लगता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कॉफी से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति का संचार होता है। इसके अलावा कॉफी पीने से शारीरिक थकान और मानसिक तनाव को भी दूर किया जा सकता है। क्योंकि कॉफी शरीर के लिए बेहद लाभकारी होती है। इसके सेवन से सिर दर्द, मोटापा, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों को कम किया जा सकता है।

 

क्‍या होती है कॉफी?

यह एक पॉपुलर पेय पदार्थ है। जो कॉफिया अरेबिका (Coffea Arabica) नामक पेड़ पर लगे फल से तैयार की जाती है। इस पेड़ पर लगने वाली कॉफी बीन्स (फलियों) को भून एवं पीसकर पाउडर तैयार किया जाता है। इस पाउडर को ही सरल भाषा में कॉफी कहा जाता है। इस कॉफी पाउडर से कई प्रकार की कॉफी बनाई जा सकती हैं। जिसमें कैपेचीनो, एस्प्रेसो, कोल्ड कॉफी, ब्लैक कॉफी आदि बेहद लोकप्रिय हैं।

 

कॉफी के पोषक तत्व-

  • एंटीऑक्‍सीडेंट (Antioxidants)
  • फॉस्‍फोरस (Phosphorus)
  • मैग्‍नीशियम (Magnesium)
  • फोलेट (Folate)
  • पोटेशियम (Potassium)
  • मैंगनीज (Manganese)
  • विटामिन बी1 (thiamine)
  • विटामिन बी2 (riboflavin)
  • विटामिन बी3 (niacin)
  • विटामिन बी5 (pantothenic acid)

कॉफी पीने के फायदे-

वजन कम करने के लिए-

कॉफी में कैफीन मौजूद होता है। जो शरीर में भोजन से ऊर्जा बनने की क्रिया (मेटाबॉलिज्म) को बढ़ाता है। यह मेटाबॉलिज्म वजन को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा इन मेटाबॉलिज्म से पैदा होने वाली गर्मी भी मोटापे को नियंत्रित करने का काम करती है। इसलिए कॉफी को वजन कम करने के लिए एक अच्छा उपाय माना गया है।

 

तनाव के लिए-

विशेषज्ञों का मानना है कि कॉफी में मौजूद कैफीन तनाव को कम करने में सकारात्मक भूमिका निभाता है। क्योंकि इसके सेवन से शरीर में अल्फा-एमिलेज नामक एंजाइम्स में बढ़ोत्तरी होती है। जो तनाव को दूर करने में सहायता करता है। इसके अलावा महिलाओं के लिए भी अवसाद में जाने का डर कॉफी के गुण से कम हो जाता है।

 

त्वचा के लिए-

चूंकि कॉफी में मौजूद कैफीन स्किन में अच्छी तरह समाकर कोशिका स्तर पर काम करने में सक्षम होता है। जिससे इसका मुख्य घटक त्वचा को अल्ट्रावायलेट रेडिएशन के दुष्प्रभाव से बचाने का काम करता है। इसके अलावा कैफीन त्वचा कोशिकाओं में फैट जमने से रोकने में भी मदद करता है। इस आधार पर कॉफी त्वचा के लिए फायदेमंद साबित होती है। इसलिए कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में भी इसका उपयोग किया जाता है।

 

डायबिटीज के लिए-

विशेषज्ञों के अनुसार कॉफी में क्विनिक एसिड, क्लोरोजेनिक एसिड, ट्राइगोनलाइन और लिग्नन सेकियोसोलेराइकिनसोल जैसे तत्व मौजूद होते हैं। जो शरीर में ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म में सुधार करके ब्लड शुगर को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा कॉफी का नियमित सेवन शरीर में इंसुलिन की सक्रियता को बढ़ाकर, टाइप 2 डायबिटीज के जोखिमों को कम करने में मदद करता है। इस तथ्य के आधार पर मधुमेह को कम करने के लिए कॉफी का सेवन एक अच्छा विकल्प है।

 

ऊर्जा का स्तर बढ़ाने के लिए-

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन) की साइट पर पब्लिश रिपोर्ट के अनुसार, कॉफी पीने से सतर्कता (अलर्टनेस) और दैनिक गतिविधियों के प्रदर्शन में सुधार होता है। इसके अलावा कैफीन युक्त पेय पदार्थों का सेवन करने से मस्तिष्क संबंधी (कॉगनेटिव) गतिविधियों में भी सकारात्मक परिवर्तन होता है। इसलिए कॉफी को ऊर्जा बढ़ाने वाला पेय पदार्थ माना जाता है।

 

अल्जाइमर और डिमेंशिया के लिए-

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) की साइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अल्जाइमर एक आम मानसिक बीमारी है। इसके अंतर्गत याद रखने और सोचने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। जिसके कारण डिमेंशिया नामक मनोविकार भी पैदा होने लगता है। चूंकि कॉफी में मौजूद कैफीन, नर्वस सिस्टम को उत्तेजित कर, कॉगनेटिव (मानसिक) स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का काम करता है। यही वजह है कि अल्जाइमर और डिमेंशिया से सुरक्षा में कॉफी एक कारगर पदार्थ है।

 

पार्किंसंस के लिए-

पार्किंसंस एक प्रकार का दिमागी रोग है। जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। जिससे मस्तिष्क में मौजूद तंत्रिका कोशिकाएं डोपामाइन नामक तत्व का पर्याप्त मात्रा में निर्माण नहीं कर पातीं। परिणामस्वरूप व्यक्ति को चलने-फिरने और संतुलन बनाने में बेहद कठिनाई होती है। इस अवस्था को ही पार्किंसंस रोग कहा जाता है।

 

एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की साइट पर पब्लिश रिपोर्ट के मुताबिक, कॉफी में तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करने वाले न्यूरोस्टिमुलेंट और इसको सुरक्षा देने वाले न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण मौजूद होते हैं। वहीं कैफीन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक असर डालता है। इसी कारण कॉफी को पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए अच्छा माना जाता है।

 

कॉफी के नुकसान-

अमेरिकन फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन संस्था के मुताबिक, कभी-कभी कैफीन युक्त कॉफी की अधिकता कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां पैदा कर सकती हैं। जोकि निम्नलिखित हैं।

 
  • अनिद्रा (नींद न आना) की समस्या।
  • पेट का खराब होना।
  • धड़कन का तेज होना।
  • जी मिचलाना और मितली जैसा महसूस होना।
  • चिंता और घबराहट महसूस होना।
  • सिरदर्द होना।
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Benefits and Importance of Curry leaves

Posted 15 December, 2021

Benefits and Importance of Curry leaves

Curry leaves are also known as sweet neem and are used in most Indian dishes. Apart from enhancing the taste of the dishes, it is also a beneficial herb. The medicinal properties of curry leaves are extremely beneficial in diseases like diabetes, urinary disorders, liver, and diarrhea. Curry leaf trees are about 4-5 meters high, fragrant and small in size. The bark of its stem is smooth and dark brown. Its flowers are white in color and fragrant. Its fruits appear purple when ripe. A fragrant oil is extracted from its seeds and leaves. The botanical name of curry leaves is Murraya koenigii.

 
Importance of Curry leaves in Ayurveda

Many medicinal properties of curry leaves i.e. sweet neem have been described in Ayurveda. According to which curry leaves are helpful in removing diarrhea, diabetes, weight loss, hair growth, liver diseases and keeping the heart healthy. Apart from this, use of curry leaves is also beneficial on skin diseases like fever, herpes, itching, etc.

 
Benefits of Curry leaves
Beneficial in weight loss-

Curry leaves contain special ingredients such as dichloromethane, ethyl acetate, and Mahanimb. These elements are found to have the ability to reduce weight, lower cholesterol, and control triglyceride (a type of fat) levels. Therefore, the use of curry leaves is helpful in weight loss.

 
Beneficial in anemia disease-

According to experts, curry leaves have anti anemia properties which works effectively on anemia. In addition, curry leaves are a good source of minerals such as calcium, iron, zinc and vanadium. For this reason, it can be said that the use of curry leaves can be helpful in getting rid of anemia.

 
Helpful in diabetes-

Curry leaves have hypoglycemic (lowering sugar levels) properties. These properties are helpful in reducing the amount of sugar in the body. For this reason, it is said that the benefits of curry leaves in a regular diet are helpful in reducing the risk of diabetes.

 
Useful for liver-

Curry leaves contain elements such as tannins and carbazole alkaloids. According to experts, hepatoprotective properties are found in these elements, which increase the efficiency of the liver and is also helpful in reducing liver related problems like hepatitis and cirrhosis.

 
Prevention of diarrhea-

According to experts, the carbazole alkaloids found in curry leaves have an amazing ability to prevent diarrhea. Therefore, its regular intake can prove effective in getting rid of problems like diarrhea.

 
Beneficial for heart-

Curry leaves are a herbal medicine which is rich in vitamin C, antioxidant and anti inflammatory properties. Curry leaves have long been used as an effective Ayurvedic medicine for the treatment of cardiovascular diseases. Apart from this, curry leaves also act to control cholesterol which is very important to keep the heart healthy.

 
Controls cholesterol-

Curry leaves have antioxidant and anti-inflammatory properties along with vitamin C. According to a research conducted by experts, the use of curry leaves is helpful in reducing the amount of bad cholesterol from the body.

 
Beneficial for the skin-

The use of curry leaves also proves to be very beneficial for the skin. It is believed that due to some elements present in its oil, it helps to remove burns and bacterial infections. For this, a paste of its leaves should be applied on the affected area.

 
Hair regrowth-

According to experts, the nutrients found in curry leaf oil can also play an important role for hair. Applying curry leaf oil on hair strengthens hair roots. Its regular use helps in hair growth. At the same time, the benefits of curry leaves include getting rid of the problem of greying of hair.

 
Effective remedy for urinary disease-

The medicinal properties of curry leaves include the treatment of urinary disease. Consumption of curry leaves is beneficial in the case of urination related diseases. For this, juice of curry leaves should be drunk.

 
Uses of Curry leaves
  • Curry leaves can be used to enhance the taste of vegetables, lentils, sambar, rice and a variety of dishes.
  • You can also use it by making its sauce.
  • Fry curry leaves can also be used for food garnishing.
  • Its oil can be removed and applied to the hair.
  • Curry leaf oil can be applied on the skin.
  • Juice of curry leaves can also be consumed to protect against certain conditions such as a particular disease but before using this juice, expert advice must be taken.
 
Side effects of Curry Leaves
  • Although no major side effects have been observed with the consumption of curry leaves, its use in excess amounts may prove to be harmful.
  • Allergic effects can also be seen in some people. In such a situation its use should be discontinued.
  • Pregnant and lactating women must consult a doctor before using it.
 
Where are Curry leaves found?

Curry leaves are found all over India up to a height of 900 meters and are cultivated at an altitude of 1500 meters in Sikkim.

 
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Importance and Benefits of Country mallow

Posted 15 December, 2021

Importance and Benefits of Country mallow

Country mallow has been an Ayurvedic herb since ancient times whose botanical name is Sida cardifolia. Apart from this, Country mallow is also known as Sida Retusa, Bala, Khiranti etc. at various places. Country mallow means strength, that is, through which the body gets sufficient amounts of energy and strength. It has many health benefits and is used to increase the strength of bones, muscles and joints, increase semen, bladder and cardiovascular diseases and to increase overall strength in the body. Apart from this, an important beauty herb, Country mallow is also used in combination with Ashoka and Asparagus.

Although Country mallow is a medicine native to India, it has a long history in traditional use throughout the world. In Brazilian folk medicine it is used as an anti-inflammatory for asthma, bronchitis and nasal congestion. In Africa, it is also used for respiratory problems. Apart from the health benefits, Country mallow also has religious significance. This tree is discovered on only one day of the year. When the mother stays without water for 24 hours and is fasting for her son.

 
Importance of Country mallow (Country mallow) in Ayurveda-

In Ayurveda various parts of Country mallow like seeds, roots, bark, flowers, leaves etc. are considered very beneficial for health but due to its nutritional and curative properties, it is used as a medicine in Ayurveda for many diseases. Country mallow's bark is bitter, prevents fever, and destroys worms. Apart from this, it also removes thirst, Tridosha and Vata imbalances. Its root is beneficial in curing bleeding from the uterus. The milk of this plant provides benefits in urinary diseases. In Ayurveda, Country mallow has a prominent place in nutritional drugs.

 
Benefits of Country mallow (Country mallow)-
For Respiratory Health-

The phytochemicals in Country mallow are ephedrine, vasicinone, vasicine, and vasinicol, these act as bronchodilators and help to clear the airways and prevent wheezing. It can also be used as a decongestant of the nose and for the overall health of the upper airways of the lungs.

Removes the difficulty of urination-

Difficulty in passing urine may be due to several reasons. If the cause is not the prostate, the root powder helps in this difficulty due to its diuretics properties. This allows the urine to pass with proper flow. Apart from this, taking decoction of leaves of Country mallow containing sugar candy or honey is beneficial in all types of problems related to urination.

Beneficial in menstrual disorders-

Country mallow is used to relieve various gynecological problems and to treat menstrual disorders in women. It acts as a tonic for the uterine muscles and the endometrium. In the case of excessive bleeding at the time of menstruation, grinding ground roots or leaves of Country mallow with rice wash and consuming it, is beneficial. By doing this, menstruation becomes regular.

Beneficial in the problem of abnormal vaginal bleeding-

If someone has a problem related to blood circulation i.e, abnormal vaginal bleeding, urination, then make a decoction of the root of Country mallow and drink it twice a day. Consuming it will get rid of these problems.

For masculine power-

Taking Country mallow provides benefits in premature ejaculation, and lack of semen. According to Ayurveda, Country mallow and Vrishya are found in Country mallow which helps to reinforce tissues. For this, grinding the bark of Country mallow and the bark of mahua and consuming it with sugar candy or khand increases human power.

Beneficial in Arthritis-

Country mallow churna has an anti-arthritic effect which helps in relieving arthritis. It reduces the symptoms of arthritis by improving blood pressure. It has antinociceptive and anti-inflammatory properties that help in reducing the pain and inflammation caused by arthritis.

Helpful in healing wounds-

Country mallow is a very beneficial medicine for healing wounds because its leaves and flowers have the ability to control bleeding and infection. Therefore, Country mallow is used to cure any kind of injury, wound, bleeding and infection. For this, grinding leaves of Country mallow should be applied on the wound. This heals the wound quickly.

Beneficial in eye pain and swelling-

Grind the leaves of Country mallow and acacia and make its cake and tie it on the eye at bedtime at night, it cures pain, burning sensation and redness of the eyes.

Helpful in the treatment of diabetes-

Country mallow has the property of Sida controlling insulin levels which is very beneficial for the patient of diabetes. Apart from insulin, Country mallow's decoction also controls the level of glucose in the body. Therefore, it is good for diabetics to consume Country mallows decoction.

For stomach problems-

Country mallow works to improve the digestive system. Its roots and leaves help digest food by stimulating the secretion of saliva and other digestive juices. In addition, it also provides relief from the gas produced in the stomach. Apart from this, taking decoction made from the leaves of Country mallow gives relief in stomach problems.

For the treatment of hemorrhoids-

Country mallow is considered good for the treatment of bloody piles. Country mallow has anti-inflammatory properties which helps in reducing the inflammation on any part of the body. Therefore, grinding powder of root of Country mallow and taking it with honey provides relief in piles. Apart from this, the leaves of Country mallow are also given as a vegetable to the patients suffering from piles.

Beneficial in skin diseases-

Country mallow has anti-microbial and anti-inflammatory effects which are helpful in removing many skin and skin-related disorders. For this, grinding the leaves of Country mallow and squeezing its juice and massaging it on the body provides relief in skin and associated diseases.

 
When to avoid using Country mallow
  • Country mallow produces saliva in the mouth, therefore, do not consume it at night. Otherwise, saliva can be released from the mouth at bedtime.
  • Country mallow works to increase the menstrual flow. Therefore, do not consume it during periods. Otherwise, a problem of excess blood loss may occur.
  • At the time of pregnancy, consume it on the advice of the doctor.
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