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गुलाब के फायदे

Posted 24 May, 2022

गुलाब के फायदे

घरों के बगीचों में लगा गुलाब का फूल न सिर्फ घर की खूबसूरती को बढ़ाता है बल्कि इसकी खुशबू मन को तरोताजा भी रखती है। इसकी खूबसूरती और रंग के साथ मनमोहक खुशबू का बेजोड़ मेल ही इसे फूलों का राजा बनाता है। गुलाब के पौधे में काटे होते हैं और कांटों के बीच सुंदर सा यह फूल सबके दिलों पर राज करता है। गुलाब के फूल को सुंदर और कोमलता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन सुंदरता के साथ गुलाब को स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि गुलाब फूल होने के अलावा एक जड़ी-बूटी भी है। इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। आयुर्वेद में भी इसकी महिमा बताई गई है। इसका उपयोग तोहफे के रूप में, औषधीय जड़ी-बूटी के रूप में, घरेलू दवाओं के रूप में, सौंदर्य उपचार के रूप में और कीड़े-मकोड़े एवं बिच्छू के काटने पर किया जाता है। कई कामों के लिए इस्तेमाल किए जाना वाले गुलाब जल को आम भाषा में रोज वाटर के नाम से जाना जाता है।

 
गुलाब के फायदे-

गुलाब के एक नहीं अनेक फायदे हैं। जिन्हें हम स्वास्थ्य के आधार पर, त्वचा के आधार पर, बालों के आधार पर देख और समझ सकते हैं। सरल भाषा में कहें तो गुलाब का प्रयोग संपूर्ण शरीर के लिए किया जा सकता है। इसमें मौजूद एंटीसेप्टिक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी माइक्रोबियल आदि गुण स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं। इसी वजह से गुलाब का इस्तेमाल स्किन टोनर, फेस मास्क, परफ्यूम, टूथपेस्ट, खाद्य पदार्थ और आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है। गुलाब जल का प्रयोग चेहरे के मुंहासे और दाग-धब्बों को हटाने अर्थात फेस को साफ करने के लिए भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त गिरते बालों को रोककर, उन्हें घना और खूबसूरत बनाने के लिए भी गुलाब का इस्तेमाल किया जाता है।

 
सेहत हेतु गुलाब के फायदे-
ओरल हेल्थ के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों को चबाने से मुंह में ताजगी का अहसास होता है। क्योंकि गुलाब और इसके जल में एंटी-फंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो मुंह में संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया के विकास को धीमा करके मुंह को लंबे समय तक साफ-सुथरा और ताजा रखते हैं।

 
पाचन शक्ति बढ़ाने हेतु-

गुलाब की पंखुड़ियों का प्रयोग लंबे समय से पाचन तंत्र को बेहतर कर दस्त, गैस, कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए किया जाता रहा है। गुलाब की पंखुड़ियां को खाने से कब्ज और पेट संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है। क्योंकि इसमें फाइबर की उच्च मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome) के उपचार हेतु भी किया जाता है।

 
तनाव और थकान हेतु-

गुलाब चिंता, थकान, तनाव आदि की वजह से होने वाले सिरदर्द को कम करने में मदद करता है। दरअसल गुलाब की पंखुड़ियों में एंटी डिप्रेसेंट गुण पाए जाते हैं। जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। जिससे चिंता, तनाव, थकान, सिरदर्द आदि में आराम मिलता है। गुलाब जल का इस्तेमाल अरोमाथेरेपी के लिए भी किया जाता है।

 
रक्त संचार बढ़ाने हेतु-

गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल रक्त संचार को बेहतर करने के लिए किया जाता है। क्योंकि गुलाब जल में मेंथॉल उच्च मात्रा में होता है। जो त्वचा में आसानी से अवशोषित (Absorb) होकर ब्लड फ्लो को बढ़ाने का काम करता है।

 
त्वचा हेतु गुलाब के फायदे-
मुंहासों को कम करने के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों में एंटी-माइक्रोबियल गुण मौजूद होते हैं। जो मुंहासे और उसके बैक्टीरिया से लड़कर स्किन को पिम्पल्स से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त गुलाब जल के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मुंहासों की सूजन को कम करने का काम करते हैं। इसके लिए कॉटन (रुई) की सहायता से गुलाब जल को संक्रमित हिस्से पर लगाना चाहिए।

 
झुर्रियों को कम करने के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों में विटामिन-ए पाया जाता है। जो झुर्रियों और महीन रेखाएं जैसे बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करने में सहायता करता है। इसके लिए गुलाब की पंखुड़ियों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं और कुछ देर बाद ठंड़े पानी से धो लें। ऐसा करने से यह त्वचा के छिद्रों को खोलता है। साथ ही स्किन के ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में भी मदद करता है।

 
त्वचा का रंग साफ करने के लिए-

कई बार धूप और यूवी किरणों की वजह से त्वचा का रंग काला पड़ने लगता है। ऐसे में गुलाब की पंखुड़ियों का पेस्ट या जल का इस्तेमाल करना त्वचा के लिए अच्छा होता है। क्योंकि गुलाब जल में मौजूद विटामिन-सी स्किन को साफ करने में सहायता करता है। दरअसल विटामिन-सी स्किन पर एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है। जो डिपिगमेंटेशन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने और त्वचा का रंग साफ करने में मदद करता है। इसके लिए गुलाब जल की कुछ बूंदों को हथेली में लेकर चेहरे और स्किन की अच्छे से मसाज करें।

 
फेस मास्क हेतु-

गुलाब जल, मुल्तानी मिट्टी और एलोवेरा को मिलाकर फेस पैक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। गुलाब में विटामिन-सी और विटामिन-ए जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो स्किन को यूवी रेडिएशन से बचाने, डर्मेटाइटिस और इन्फ्लेमेशन जैसी समस्याओं को दूर करने और लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं। इसके अलावा एलोवेरा स्किन को ठंडक पहुंचाने और मुल्तानी मिट्टी मृत कोशिकाओं को चेहरे से हटाकर उसे चमकदार बनाने का काम करती है।

 
प्राकृतिक टोनर हेतु-

गुलाब के पत्ते को पीसकर ग्लिसरीन में मिलाकर स्किन पर लगाना प्राकृतिक टोनर का काम करता है। क्योंकि ग्लिसरीन में पाए जाने वाला एंटी-बैक्टीरियल गुण मुंहासों को कम करता है और गुलाब में मौजूद मेंथॉल स्किन को ठंडक पहुंचाता है। इसके अलावा ग्लिसरीन त्वचा के पीएच लेवल को संतुलित रखने का काम भी करती है।

 
गुलाब के फायदे बालो के लिए-
बालों को झड़ने से रोकने में सहायक-

बालों की किसी भी तरह की समस्या में गुलाब की पत्तियां या गुलाब जल लाभदायक होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व बालों को स्वस्थ्य बनाने और उन्हें मजबूती प्रदान करने का काम करते हैं। गुलाब जल स्कैल्प (खोपड़ी) में आसानी से अवशोषित होकर रक्त संचार में सुधार और बालों के विकास में मदद करता है। जिससे बालों का झड़ना या गिरना कम होता है। इसके लिए रात को सोने से पहले गुलाब जल से सिर की अच्छी तरह से मालिश करें और सुबह बालों को धो लें। ऐसा नियमित करने से बालों का गिरना कम होता है और बाल घने एवं मजबूत बनते हैं। साथ ही रुसी की समस्या भी दूर होती है।

 
रूखे और बेजान बालों के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल रूखे और बेजान बालों की मरम्मत के लिए किया जाता है। इसके लिए गुलाब जल और ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिलाकर स्कैल्प (खोपड़ी) पर लगाकर 10 से 15 मिनट स्कैल्प की मसाज करें। अब आधे घंटे बाद बालों को धो लें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से बाल घने और मजबूत होते हैं।

 
गुलाब के अन्य लाभ-
  • गुलाब में विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। इसलिए गुलाब की पंखुड़ियां से बने गुलकंद को खाने से हड्डियां मजबूत होती है। साथ ही कब्ज की समस्या भी दूर होती है।
  • गुलाब के फूल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर गरारे करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से बवासीर में आराम मिलता है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर चूने के पानी और संतरे के रस में मिलाकर पिएं। ऐसा करने से गले में जलन, जी मिचलाना, सीने में जलन जैसी समस्याएं दूर होती हैं।
  • ज्यादा गर्मी लगने पर गुलाब की पंखुड़ियों में इलायची, काली मिर्च और मिश्री को पीसकर ड्रिंक बनाएं। इस ड्रिंक को पीने से शरीर में ठंडक बनी रहती है और गर्मी कम लगती है।
  • मासिक धर्म के अनियमितता और इस दौरान होने वाले पेट दर्द, ऐंठन और जलन में गुलाब की पंखुड़ियां से बना गुलकंद खाएं। इससे मासिक धर्म के अनियमितता में सुधार और अधिक रक्तस्त्राव की समस्या दूर होती है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर खाने से बदबूदार पसीने की समस्या दूर हो जाती है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर या चबाकर खाने से भूख न लगने की समस्या से निजात मिलती है।
  • लाल गुलाब के फूलों को पीसकर कीड़े-मकोड़े और बिच्छू के काटे हुए हिस्से पर लगाने से दर्द और सूजन में राहत मिलती है।
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Barley- Types, Advantages and Uses

Posted 20 December, 2021

Barley- Types, Advantages and Uses

Barley is not as popular as other grains but it was known as the king of grains once. After all, it contains all the minerals, vitamins and many other essential nutrients. Therefore, barley is considered good for curing many health problems.

 
What is Barley?

Barley is a type of food grain belonging to the grass family which has been produced since ancient times. Barley is mostly used for animal feed. Due to its medicinal properties and health benefits, some people also use it as a food diet. Barley contains minerals like iron, carbohydrates, magnesium, calcium, protein, thiamine, riboflavin, niacin, vitamin C and phosphorus. Today, barley has little less popularity than paddy and wheat, but it is still used for health benefits. This is the reason why it is cultivated even today in countries like India, America, Germany and Russia. The scientific name of barley is Hordeum vulgare and in Sanskrit, it is known as Yava. Barley yields are highest in temperate climates.

 
Effect of Barley

Barley has a cold effect which has a relieving effect on stomach problems. Apart from being cool in effect, it is also a good source of many minerals and nutrients which works to remove many health problems. So drinking barley sattu in summer is considered to be good for avoiding heat and getting many other health benefits.

 
Types of Barley

Barley Flour: This is the ground form of barley which is used as flour. Thus, it is used for making rotis of barley.

Grits: This is also barley flour, but this dough is slightly thicker than normal. The top layer of barley seeds is removed to prepare this dough.

Pearl Barley: This form of barley is mainly used in salads and soups. This is like a shining pearl in appearance. Its seeds are white and uniform. Therefore, this form of barley is also called the most beautiful form of Barley.

Flax: This is a common type of barley. It is prepared by flattening Barley seeds. This form of barley can be consumed in both cold and hot forms. It can also be eaten like oats.

Huld: It is also called the whole form of barley because to be used, it is simply cleaned lightly. Hence, it is one of the nutritious types of barley.

 
Benefits of Barley
To reduce the intensity of thirst-
 

Consuming barley in summer is good for the body because barley grass is rich in vitamin C and E. Apart from this, in Ayurveda, it is considered necessary to consume certain foods to remove pitta dosha (causing bile discoloration, which can also increase the heat in the body) and these foods include barley. Barley acts to provide coolness to the body due to its antioxidant effect and also controls the problem of intense desire to drink water again and again. On this basis, consuming barley is a good remedy to reduce the intense desire of thirst in summer.

 
For immunity-

The use of barley and its leaves work to increase the body's immunity. A barley- related NCBI report states that barley contains an element called beta-glucan and is found to have immunity-promoting properties in its leaves. On this basis, barley is considered good for increasing physical immunity.

 
For cold-cough-

Barley extract is considered a traditional medicine for cold and cough because the medicinal properties of barley are helpful in removing the problem of common cold and cough.

 
For digestive power and constipation-

Barley flour proves beneficial in increasing digestive power. According to the NCBI report on barley, dietary fiber present in barley is good for the health of flour. At the same time, extracts of fermented barley have a laxative (relieving constipation) effect which works to overcome the problem of constipation. Therefore, it is advisable to consume barley to increase digestive power and relieve constipation.

 
For weight loss-

Eating barley porridge helps control the weight gain because barley contains elements such as resistant starch, beta-glucan, tocols, polyphenols, dietary fiber, phytosterols and polysaccharides. Due to the presence of these elements, the antiobesity (weight reducing) effect is found in the properties of barley. At the same time, an element called beta glucan (a type of soluble fiber) present in barley works to control appetite by which weight can be prevented from increasing. Therefore, barley is good for weight loss.

 
For anemia-

Lack of iron in the body is considered to be the main cause of anemia (deficiency of red blood cells). Since barley is considered an iron-rich grain. Therefore, its intake eliminates the risk of anemia, meeting the iron deficiency in the body. For this, barley flour, porridge, sattu etc. can be used.

 
For liver-

Barley is beneficial to keep the liver healthy for a long time because barley contains elements such as hepatoprotection (liver-protecting), phenolics, pentosan, and beta-glucan which have positive effects on liver health.

 
For cardiovascular health-

The NCBI report related to barley states that barley contains a specific element called beta-glucan which works to reduce high BP by controlling increased cholesterol. At the same time, due to the problem related to the arteries, it also reduces the risks of heart disease. Therefore, barley is also considered beneficial for heart health.

 
Beneficial in pregnancy-

It is very important to have calcium, iron and folic acid in the body during pregnancy because iron is good for the physical and mental development of the fetus. Folic acid reduces the risks of birth defects in children. Calcium works to control preeclampsia (high blood pressure disorder) and diabetes in a pregnant woman. Therefore, it is good for a woman to consume barley during pregnancy because in barley, calcium, iron and folic acid are found in sufficient quantities.

 
For type-2 diabetes-

Barley flour is beneficial to overcome the problem of type-2 diabetes. Barley has phenolics, beta-glucan and antidiabetic (blood sugar lowering) effects which provide relief in type-2 diabetes.

 
Beneficial in UTI-

According to barley's NCBI report, the medicinal properties of barley have an antibacterial effect which helps to cure bacterial infections related to the urinary tract. In addition, the report also stated that the anti-inflammatory effect present in barley also helps in reducing inflammation of the bladder. Therefore, people suffering from urinary tract infection (UTI) are advised to use barley.

 
Uses of Barley
  • Barley sattu is drunk to avoid heat and also to boost digestion.
  • Roti made of barley flour is consumed.
  • Bread made of barley flour is consumed.
  • Barley porridge (sweet or salty) is eaten as a snack.
  • Barley seeds can be consumed as a soup.
  • The juice of barley leaves is used for drinking.
 
Side effects of Barley
  • Since barley has antidiabetic properties. Therefore, people taking diabetes medicine should use it with caution.
  • Since barley has laxative properties, excessive intake of it can cause diarrhea.
  • Since starch is present in barley. Therefore, excessive intake of it can cause constipation problems.
  • Some allergic effects are also found in barley. Therefore, some people may have allergic problems due to its consumption.
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अकरकरा के फायदे

Posted 24 May, 2022

अकरकरा के फायदे

दुनिया में तमाम ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती हैं। उन्हीं जड़ी-बूटियों में से एक अकरकरा भी है। जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी औषधि है। यह कई औषधीय और आयुर्वेदिक गुणों से समृद्ध होता है। इसी कारण आयुर्वेद में इसके चूर्ण का प्रयोग दवा के रूप में होता है। अकरकरा मुंह की बदबू, मसूड़ों का दर्द, दांतों का दर्द, सिर दर्द और हिचकी जैसी कई समस्याओं में फायदा करता है।

 
क्या है अकरकरा?

अकरकरा वर्ष-भर रहने वाली जड़ी-बूटी है। इसका साइंसटिफिकेट नेम एनासाइक्लस पाइरेथ्रम (Anacyclus Pyrethrum) है। इसकी जड़ें तीखी और थोड़ी सुगंधित होती हैं। जो अपने औषधीय गुणों के लिए जानी जाती हैं। इसलिए आयुर्वेद में अन्य भाग से ज्यादा इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है।

अकरकरा में उत्तेजक गुण पाए जाते हैं। इसलिए आयुर्वेद में इसको कामोत्तेजक औषधि कहा गया है। अकरकरा को समान गुण वाली दूसरी औषधि के साथ उपयोग में लाने से वीर्यवर्धक (शुक्राणु बढ़ाने) में मदद मिलती है। इसके अलावा यह कफ और शीत प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए भी विशेष औषधि है।

 
अकरकरा के फायदे;
अपच-

अकरकरा पाचन तंत्र को बेहतर बनाने का काम करता है। इसकी जड़ें लार और अन्य डाइजेस्टिव जूस के स्राव को उत्तेजित करके भोजन को पचाने में मदद करती हैं। साथ ही यह पेट में बनने वाली गैस से भी राहत दिलाता है।

 
अर्थराइटिस-

अकरकरा के चूर्ण में एंटी अर्थ रितिक प्रभाव होता है। जो गठिया रोग से राहत दिलाने में मदद करता है। अकरकरा रक्तचाप में सुधार करके गठिया के लक्षण को कम करता है। वहीं इसके एंटीनॉसिसेप्टिव और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया से होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 
पैरालिसिस-

पैरालिसिस (लकवा मारना) से बचाव के लिए दुनियाभर में अकरकरा का प्रयोग वर्षों से होता आया है। दरअसल, अकरकरा मास्टिकेटरी (भोजन चबाने वाली प्रक्रिया) को सक्रिय करके जीभ और गले की मांसपेशियों को क्रियात्मक बनाने का काम करता है। इसलिए अकरकरा को पैरालिसिस का अच्छा टॉनिक माना जाता है।

 
बुखार-

अकरकरा चूर्ण में एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं। जो बुखार उतारने में फायदा करते हैं। इसलिए हल्के और टाइफस जैसे बुखार में भी अकरकरा का प्रयोग किया जा सकता है।

 
याददाश्त-

अकरकरा में याददाश्त बढ़ाने वाला व्यवहार होता है। अकरकरा का इथेनॉलिक अर्क (Ethanolic extracts) मस्तिष्क के कोलिनेस्टरेज के स्तर में वृद्धि करके स्मरणशक्ति (Memory) में सुधार लाता है। इसी कारण अकरकरा का प्रयोग याददाश्त बढ़ाने के लिए किया जाता है।

 
हिचकी-

अकरकरा चूर्ण हिचकी को कम करने में मदद करता है। इसके लिए आधा चम्मच अकरकरा चूर्ण और शहद के मिश्रण का सेवन करें।

 
दांतों की समस्या-

अकरकरा में सियालगॉग (लार बनाने वाला) प्रभाव पाया जाता है। जो दांतों के दर्द, दांतों का पीलापन, डेंटल कैरिज और पायरिया जैसी समस्याओं से निजात दिलाता है। इसके अतिरिक्त हर्बल टूथपेस्ट में अकरकरा चूर्ण का इस्तेमाल करना भी दांतों के लिए अच्छा होता है।

 
हल्के चक्कर और सुस्ती के लिए-

अकरकरा का सेवन करने से सुस्ती और हल्के चक्कर जैसी परेशानियां दूर होती हैं। इसके लिए अकरकरा चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करें।

 
मासिक धर्म की समस्या-

अकरकरा अनियमित और देरी से होने वाले पीरियड्स की समस्या को कम करता है। इसके अतिरिक्त यह रुके हुए मासिक धर्म को भी ठीक करने में सहायता करता है। दरअसल, अकरकरा एम्मेनागॉग (Emmenagogue) की तरह कार्य करता है। जिससे मेंस्ट्रुअल का फ्लो बढ़ जाता है।

 
यौन स्वास्थ्य-

अकरकरा का उपयोग अच्छे यौन स्वास्थ्य के लिए भी किया जाता है। दरअसल, अकरकरा में उत्तेजक गुण पाए जाते हैं। जो कामेच्छा को बढ़ाकर इजेकुलेशन (वीर्य स्खलन) को धीमा करते हैं।

 
अकरकरा के कुछ अन्य गुण-
  • अकरकरा तनाव और सिरदर्द की परेशानी में लाभकारी सिद्ध होता है।
  • जुकाम के कारण होने वाले सिर दर्द में अकरकरा के फूल को चबाने से लाभ मिलता है।
  • अकरकरा की मूल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने और सीधे मूल को चबाने से दांतों का दर्द और दंतकृमि (दांत में कीड़ा लगना) रोग ठीक होते हैं।
  • समान मात्रा में छोटी पिप्पली चूर्ण और अकरकरा चूर्ण को लेकर उसमें थोड़ी भुनी हुई सौंफ मिलाएं। इस मिश्रण का आधा चम्मच सुबह-शाम भोजन करने के बाद सेवन करें। इससे पेट संबंधी कई समस्याएं ठीक होती हैं।
  • अकरकरा की जड़ या फूल को सिरके में पीसकर, उसमें शहद मिलाकर चाटने से मिर्गी की समस्या दूर होती है। इसके अलावा अकरकरा की जड़ का काढ़ा पीने से भी मिर्गी का वेग कम होता है।
 
कब न करें अकरकरा का सेवन?
  • अकरकरा मुंह में लार बनाने का काम करता है। इसलिए रात के समय इसका सेवन न करें। अन्यथा सोते वक्त मुंह से लार छूट सकती है।
  • अकरकरा मेंस्ट्रुअल फ्लो को बढ़ाने का काम करता है। इसलिए पीरियड्स के दौरान इसका सेवन न करें। अन्यथा अधिक ब्लड लॉस की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • चूंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि गर्भावस्था के दौरान अकरकरा का सेवन करना सुरक्षित होता है या नहीं। इसलिए प्रेगनेंसी के समय इसका सेवन करना उचित नहीं होगा।
 
कहां पाया जाता है अकरकरा?

भारत में अकरकरा हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके अलावा कुछ हिस्सों में इसकी खेती भी होती है। वहां वर्षा ऋतु की पहली बारिश पड़ते ही इसके छोटे-छोटे पौधे निकलने शुरू हो जाते हैं।

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आयुर्वेद में दारुहरिद्रा का महत्व, औषधीय गुण और फायदे

Posted 24 May, 2022

आयुर्वेद में दारुहरिद्रा का महत्व, औषधीय गुण और फायदे

दारुहरिद्रा को भारतीय बारबेरी, ट्री हल्दी आदि नाम से भी जाना जाता है। यह एक रसीली बेरी होती है, जो अक्सर ताजे फल के रूप में खाई जाती है। इसकी खेती अधिकांशतः खाद्य फलों के लिए की जाती है। असल में दारुहरिद्रा एक प्रभावी औषधीय पौधा है। जिसका अर्थ होता है- हल्दी के समान पीली लकड़ी। जिसे विभिन्न स्‍थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। दारुहरिद्रा को हिंदी में दारुहल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं। इसका वान‍स्‍पतिक नाम बर्बेरिस एरिस्‍टाटा डीसी (Berberis aristata Dc) है। जो बरबरीदासी (Berberidaceae) प्रजाति से संब‍ंधित है। इसके वृक्ष ज्यादातर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं। भारत में दारुहरिद्रा मुख्यतः समुंद्रतल से 6-10 हजार मीटर ऊंचाई पर, बिहार, नीलगिरि की पहाड़ियों और हिमांचल प्रदेश आदि स्थानों पर पाए जाते हैं।

दारुहरिद्रा एक झाड़ीदार पेड़ होता है। इसकी झाड़ी चिकनी और सदाबहार होती है। इसके वृक्ष की लंबाई 2 से 3 मीटर होती है। इसकी जड़ की छाल में एक पीले रंग का कटु (कड़वा) तत्व पाया जाता है। जिसे बेर्बेरिन कहा जाता है। दारूहल्दी में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में दारुहरिद्रा (दारूहल्दी) को उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है। त्वचा संबंधी विकारों से लेकर दर्द से राहत दिलाने और अन्य कई बीमारियों में दारुहरिद्रा मददगार साबित होता है।

 
आयुर्वेद में दारुहरिद्रा का महत्त्व-

आयुर्वेद के अनुसार दारुहरिद्रा स्वाद में कड़वी, स्वभाव से गर्म, वात-कफ नाशक, त्वचा के दोष, विषविकार, कान के रोग, नेत्ररोग, मुखरोग, गर्भाशय के रोग और ह्रदय के लिए गुणकारी होता है। यह ज्वर, क्रमी, कुष्ठ स्वास, बवासीर, खांसी, सूजन और दांत के कीड़े में लाभप्रद साबित होता है। दारूहल्दी में अनेक औषधीय गुण होते हैं। इन गुणों में एंटी- इंफ्लामेटरी (जलन विरोधी), एंटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, कार्डियोप्रोटेक्टिव (हृदय को स्वस्थ रखने वाला), हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर स्वस्थ रखने वाला) और नेफ्रोप्रोटेक्टिव (किडनी स्वस्थ रखने वाला) आदि गुण शामिल हैं।

अपने स्वभाव से गर्म होने के कारण दारुहरिद्रा पाचन तंत्र को दुरुस्त बनाता है। दारुहरिद्रा में कई पोषक तत्व और खनिज जैसे प्रोटीन, आयरन, फाइबर, कैल्शियम, तांबा, नियासिन, विटामिन-ई, पोटेशियम, मैग्नीशियम और जस्ता आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। जो शरीर को कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचाते हैं। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में दारुहरिद्रा को दार्वी, पर्जन्या, पर्जनी, पीता, पीतद्रु, पीतद, चित्रा, सुमलु आदि नाम दिए गए हैं।

 
दारुहरिद्रा के औषधीय गुण;
सूजन को दूर करने में कारगर-

दारुहरिद्रा में एंटी-ग्रेन्युलोमा और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो सूजन को रोकने में सहायक होते हैं। दारुहल्दी पर किए गए शोध से पता चलता हैं कि दारुहरिद्रा सूजन संबंधी बीमारियों का इलाज करने में मदद करता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डी का रोग) के मरीजों को राहत देता है। रयूमेटायड (सूजन संबंधी विकार) और गठिया के कारण उत्पन्न सूजन के उपचार में भी दारूहल्दी का उपयोग किया जाता है।

 
दस्त के इलाज के लिए-

दारुहरिद्रा पर किए गए शोध से पता चलता है कि इसमें हेपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोवास्कुलर, एंटीस्पास्मोडिक और एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं। इसलिए दस्त के समय इसका उपयोग किया जाता है। दारुहरिद्रा को पीसकर शहद में मिलाकर सेवन करने से दस्त में आराम मिलता है। इसके अलावा बच्चों के लिए पेट संबंधी संक्रमण या दस्त के इलाज के लिए भी शहद युक्त दारुहल्दी के चूर्ण का सेवन करना लाभप्रद होता है।

 
मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-

दारुहल्दी में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है। जो मधुमेह के रोगी के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा दारुहरिद्रा शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करता है। इसलिए दारुहरिद्रा के फल को अपने आहार में शामिल करना मधुमेह के लिए अच्छा होता है।

 
कैंसररोधी गुण-

आयुर्वेद के अनुसार दारूहल्दी में कैंसर से लड़ने के पर्याप्त गुण होते हैं। इसमें मौजूद तत्व कैंसर कोशिकाओं से डी.एन.ए. को बचाते हैं और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करते हैं।

 
बवासीर के इलाज के लिए-

दारुहरिद्रा खूनी बवासीर के इलाज के लिए एक अच्छा उपाय है। दारुहल्दी के पौधे में एंटी इंफ्लामेटरी गुण पाया जाता है। जो शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। दारुहल्दी चूर्ण का मक्खन के साथ प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

 
रक्त को साफ करने में मददगार-

दारुहरिद्रा में प्राकृतिक रक्‍त शोधक का गुण पाया जाता है। जो शरीर से अशुद्धियों (विषाक्त पदार्थों) को दूर करने में सहायता करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा के इस्तेमाल से इम्यूनिटी को भी बूस्ट किया जा सकता है।

 
बैक्टीरियारोधी, फंगसरोधी व सूक्ष्मजीवी रोधी गुण-

दारुहरिद्रा को लेकर किए गए विभिन्न शोधों से पता चलता है कि यह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, पैथोजेनिक (रोगजनक) फंजाई एवं पैरासाइट्स (परजीवी) की वृद्धि को रोकता है।

 
कृमिनाशक गुण-

दारूहल्दी को कृमिहरा या कृमिनाशक (आंतों के कीड़ों को मारने वाला) भी कहा जाता है। हल्दी के क्वाथ (काढ़ा) में कृमिनाशक गुण होता है। नेपाल के ग्रामीण इलाकों में दारुहरिद्रा के पाउडर या पेस्ट को पानी में नमक के साथ उबालकर इसके जूस को कृमिनाशक औषधि के रूप में सेवन किया जाता है।

 
इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में-

विशेषज्ञों के मुताबिक, दारुहरिद्रा का इस्तेमाल करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ती है। दारूहल्दी में लिपो-पॉलीसेकेराइड (एंडोटोक्सीन) नामक पदार्थ पाया जाता है। जिसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और एंटी-फंगल एजेंट होते हैं। जो इम्यूनिटी को बूस्ट करते हैं। इसके अलावा दारूहल्दी का महत्वपूर्ण घटक करक्यूमिन एंटी- इंफ्लामेटरी (जलन विरोधी) गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट (रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाला) की तरह भी काम करता है।

 
दारू हरिद्रा से घरेलू उपचार-
  • दारूहल्दी की जड़ से तैयार किए गए काढ़े को रोज सुबह-शाम पीने से बुखार में आराम मिलता है।
  • दारुहरिद्रा के चूर्ण को दही, मक्खन, चूने (किसी एक चीज) में मिलाकर आंखों के ऊपरी क्षेत्र पर लगाने से आंखों का संक्रमण प्रभावी रूप से दूर होता है।
  • शहद युक्त दारूहरिद्रा के काढ़े को सुबह-शाम पीने से दांतों और मसूढ़ों के रोग में शीघ्र लाभ मिलता है।
  • दारूहल्दी जड़ की छाल और सोंठ को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण का सेवन प्रतिदिन, 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार करें। ऐसा करने से दस्त में आराम मिलता है।
  • दारुहरिद्रा से बने हुए लेप को सूजन वाले हिस्से पर 2-3 बार लगाने से सूजन कम होती है और दर्द में भी आराम मिलता है।
  • इसके पेस्ट को चोट एवं घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है।
  • कपूर ,मक्खन और दारुहल्दी मिश्रित पेस्ट को फोड़े-फुंसी पर लगाने से लाभ मिलता है।
  • शहद में दारूहल्दी और दालचीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। अब 1 चम्मच की मात्रा में मिश्रित चूर्ण को रोज दिन में 3 बार सेवन करने से श्वेत प्रदर (स्त्रियों में होने वाली आम बीमारी) में लाभ मिलता है।
 
दारुहरिद्रा के नुकसान-
  • दारुहरिद्रा के अधिक सेवन से दस्त, पेट में ऐंठन और मतली जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।
  • गर्भवती महिला और गर्भवती होने के बारे में सोच रहीं महिलाओं को दारुहल्दी का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह अनुसार करना चाहिए।
  • यदि आप किसी विशेष प्रकार की दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो दारुहरिद्रा का उपयोग करने से पहले चिकित्‍सक की सलाह जरूर लें।
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Acacia: Benefits & Side effects

Posted 20 December, 2021

Acacia: Benefits & Side effects

There are many such herbs in the world, which are considered very beneficial for the body. Acacia is also one of those herbs which can live for years. The roots of acacia are very strong. Its leaves and flowers are rich in many medicinal properties and it is used in Ayurvedic remedies and medicines. Its green and thin twigs are used as toothbrushes which effectively clean the teeth. Its bark produces excellent quality gum which is full of medicinal properties and many diseases are treated by it due to which its powder is used as medicine in Ayurveda. Acacia provides relief in many problems such as bad smell from the mouth, gingivitis, toothache, headache, and a lot many diseases.

 

Importance of Acacia in Ayurveda

In Ayurveda, various parts of acacia like flowers, leaves etc. are considered very beneficial for the health of women. Due to its nutritious and curative properties, it is used as a medicine in Ayurveda for many diseases. Acacia is a tree which has many medicinal properties. Acacia trees have been used for thousands of years to get rid of diseases and to cure physical pain. It is quite beneficial mainly in gynecology, bleeding disorders and urinary-related diseases.

 

Acacia's bark is astringent, dry and cold in nature. Its flowers, leaves, fruits and bark are used to cure constipation, cold, cough, wounds, diabetes, throat diseases, skin diseases etc. Its bark has a mild effect on the stomach. Therefore, weak people and pregnant women should use it as an analgesic medicine. Apart from this, it can also be used in symptoms like Afara (flatulence), mouth watering.

 

Benefits of Acacia

Beneficial for teeth and oral health-

Acacia gum is used daily for oral hygiene. Its antimicrobial properties eliminate bacteria present in the mouth and prevent them from growing. Acacia is also known to remove plaque in the mouth and reduce gingivitis. For this, it is beneficial to chew the fresh bark of an acacia tree and toast it with its twigs. Apart from this, brushing with equal quantities of acacia bark, leaves, flowers and beans, cures diseases of teeth. In addition, it also cleans the teeth and gums and makes them strong.

 

For the treatment of diarrhea-

Research on Acacia shows that it has hepatoprotective, cardiovascular, antispasmodic and anti microbial properties. Hence it is used at the time of diarrhea. Grind the leaves of acacia and black cumin and consume it. It provides relief in diarrhea. Apart from this, taking decoction made of acacia bark is beneficial for the treatment of stomach infection or diarrhea.

 

Acacia for the treatment of cough-

Acacia is a good option for curing coughs. The medicinal properties found in it cures cough. For this, powder made of acacia leaf and stem bark can be taken with honey.

 

Effective in removing swelling-

Acacia has anti-granuloma and anti-inflammatory properties which are helpful in preventing inflammation. Research on Acacia suggests that it helps treat inflammatory diseases. It provides relief to patients with osteoporosis (bone disease). Acacia pods are also used in the treatment of inflammation caused by rheumatoid (inflammatory disorders) and arthritis.

 

Help to get rid of Leucorrhea-

If anyone has problems with white water or leucorrhoea, then take 1 teaspoon of acacia bark powder twice a day with cow's milk. Consuming it helps to get rid of these problems. Apart from this, soak the bark of acacia in water overnight and boil it the next day. Boil the water until it is reduced to half. Later filter it and fill it in the bottle. Now washing the vagina with this water provides relief in leucorrhoea and vaginal inflammation.

 

Beneficial in menstrual disorders-

Acacia is used to remove various gynecological problems and to treat menstrual disorders in women. It acts as a tonic for the uterine muscles and the endometrium. It is beneficial to drink a decoction of acacia bark in case of excessive bleeding at the time of menstruation. With its use, menstruation will become regular.

 

Strengthens the uterus-

In case of problems like infertility, uterine weakness, hormonal imbalance, stomach disease and pelvic pain, consume Acacia pod. In such a situation, a boil emerges in the trunk of an acacia tree, which is called a bandana of acacia. Grind it to make powder and take it from the next day after the end of menstruation, one can get rid of infertility problems.

 

Beneficial in the problem of abnormal vaginal blood-

If someone has problems related to blood circulation, abnormal vaginal bleeding, urination, then make a decoction of acacia bark and drink it twice a day. Consuming it will get rid of these problems.

 

For masculine power-

Toast 100 grams of Acacia Keekar and mix 500 grams of Ashwagandha in it. Now take one spoon of this mixture regularly for 15 days in the morning and evening. By doing this, you get benefit in premature ejaculation, lack of semen and metal debility. Apart from this, frying gum of acacia in ghee and making it a dish increases the stamina.

 

Beneficial in eye pain and swelling-

Grind the leaves of acacia and make its cake, tying it on the eye at night while sleeping, it cures eye pain, burning sensation and redness of the eyes. Apart from this, after grinding acacia leaf, mixing honey and applying this paste in the form of mascara to the eyes ends the problem of watery eyes.

 

Helpful in the treatment of diabetes-

Acacia has the ability to balance insulin levels which is very beneficial for the patient of diabetes. Apart from insulin, acacia pods also control glucose levels in the body. Therefore, consuming powder of Acacia pods is good for diabetes.

 

Help in reducing obesity-

Acacia is also very effective for reducing weight. Preliminary research suggests that obesity is reduced rapidly by consuming 30 grams of acacia powder daily.

 

 Anticancer properties-

According to Ayurveda, acacia has sufficient cancer fighting properties. The elements present in it are DNA from cancer cells and also reduce the side effects of chemotherapy.

 

It is helpful in healing the wound-

Acacia is a very beneficial medicine for healing wounds because acacia leaves and bark have the ability to control bleeding and infection. Therefore Acacia is used to cure any kind of injury, wound, bleeding and infection. For this, grinded acacia leaves should be applied on the wound. This heals the wound quickly.

 

For anxiety, depression and stress-

Acacia glue is used to reduce stress because it has antioxidant properties which help reduce oxidative stress. Oxidative stress is directly related to psychosis. Reduction of oxidative stress helps to reduce many mental diseases and problems like depression, stress and anxiety.

 

For the treatment of hemorrhoids-

Acacia pods are a good remedy for the treatment of bloody piles. Acacia has anti-inflammatory properties which helps in reducing the inflammation on any part of the body. Make a powder by grinding the Banda of acacia with black pepper. Now, taking this mixture with water daily is beneficial in piles.

 

Helpful in blood purification-

Acacia has the properties of a natural blood purifier which helps in removing impurities (toxins) from the body. Apart from this, immunity can also be boosted by the decoction of acacia bark.

 

Antibacterial, antifungal and antimicrobial properties-

Various research conducted on acacia shows that it inhibits the growth of many types of bacteria, pathogenic fungi and parasites.

 

Side effects of Acacia

Use of Acacia in sufficient quantities or as a medicine does not have any detrimental effect on the body. However, excessive use can have the following side effects-

 
  • It can worsen the amenorrhoea, that is, the problem of not having menstruation.
  • Consumption of acacia in excess can damage the liver and kidneys.
  • Pregnant women should not use Acacia because it can be harmful for them.
  • A patient of heart disease must consult a doctor before taking this herb.

Where is Acacia found?

Acacia is a tree originating in the desert. Apart from desert, acacia trees are found in the forests of Uttar Pradesh, Gujarat, Punjab, Rajasthan, Bihar, West Bengal, Maharashtra and Andhra Pradesh in India. It is also found as planted trees along with wild trees.

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जानें, अविपत्तिकर चूर्ण के लाभ और उपयोग

Posted 24 May, 2022

जानें, अविपत्तिकर चूर्ण के लाभ और उपयोग

अविपत्तिकर चूर्ण (AvipattikarChurna) एक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसे मुख्य रूप से एसिडिटी, बदहजमी और कब्ज जैसी पेट संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस चूर्ण में अदरक, कालीमिर्च, पिप्पली, आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागरमोथा, विदंगा, इलायची, तेजपत्ता और लौंग आदि कई प्राकृतिक जड़ी-बूटियां एवं प्राकृतिक अर्क शामिल है। यह चूर्ण पाचन एंजाइमों की निर्माण प्रक्रिया को तेज करता है।जो पोषक तत्वों को सोखने और आंतों की मूवमेंट में मदद करती है। अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन सेपाचन संबंधी कई बीमारियों मेंआराम पाया जा सकता है।

 

यह चूर्ण पेट के लिए एक एंटासिड के रूप में कार्य करता है। क्योंकि इसमें कार्मिनेटिव, ऐपेटाइज़र, पाचन उत्तेजक, एंटीथायलेटिक, एंटीऑक्सीडेंटऔर एंटी इंफ्लामेट्री जैसे गुण मौजूद होते हैं। यह सभी गुण कब्ज, चिड़चिड़ापन, सूजन, पेट कीजलन, मोटापाआदि के इलाज में सहायक होते हैं।

 

अविपत्तिकर चूर्ण के लाभ;

पाचन स्वास्थ्य में सुधार करता है-

अविपत्तिकर चूर्ण लेने से अपच को तुरंत ठीक किया जा सकता है। यह पेट की गड़बड़ी, मितली, खटास, सीने की जलन जैसे सभी लक्षणों को ठीक करता है। इसके अलावा नारियल पानी भी इन समस्याओं के लिए अच्छा होता है।

 

क्रॉनिक गैस्ट्राइटिस को कम करता है-

पेट की लाइनिंग की सूजन को गैस्ट्रिटिस कहा जाता है। अविपत्तिकर चूर्ण होने से पेट से एसिड को हटाने, सूजन को ठीक करने और पेट में म्यूकस लाइन्ड रुकावट को दोबारा खोलने में मदद मिलती है।

 

गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स बीमारी को रोकता है-

गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग एसिड रिफ्लक्स का एक पुराना रूप है।यहतब होता है जब पेट की चीजें भोजन नली में वापस आ जाती है और भोजन नली की लाइनिंग को परेशान करती है।जिससे सीने की जलन, गले में जलन, सीने में दर्द, खट्टा स्वाद आदि होता है। अविपत्तिकर चूर्ण इस प्रकार की बीमारियोंको रोकने में मदद करता है।

 

मूत्र त्याग की कठिनाई को दूर करता है-

यूरिन पास करने में कठिनाई कई वजहों से हो सकती है। यदि इसका कारण प्रोस्टेट न हो तो अविपत्तिकर चूर्ण अपने डियूरेटिक्स गुणों के कारण इस कठिनाई में मदद करता है। यह यूरिनकोउचित बहावके साथ पास होने देता है।

 

गुर्दे की पथरी को निकालता है-

हजरुल यहूद भस्मके साथ-साथ अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग करने से गुर्दे की पथरी को हटाने में मदद मिलती है।

 

नेफ्राइटिस और नेफ्रोटिक सिंड्रोम के इलाज के लिए प्रभावी है-

अविपत्तिकर चूर्ण नेफ्रैटिस और नेफ्रोटिक सिंड्रोम जैसे गुर्दे की बीमारी के इलाज में मदद करता है। यह किडनी, ग्लोमेरुली, ट्यूबल्सऔर इंटेस्टिनल टिश्यू की सूजन को कम करता है। यह खून में यूरिया के स्तर को भी कम करता है और उसेकंट्रोलमें रखता है।

 

अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग;

एंटासिड-

अविपत्तिकर चूर्ण एक बेहतरीन एंटासिड है। क्योंकि यह पेट की एसिडिटी के प्रभाव को बेअसर करता है। यह सीने की जलन, बदहजमी और पेट की परेशानी को आराम देने में भी उपयोग किया जा सकता है।

 

एंटी-लिथिएटिक-

अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से ऑक्सालेट का जमाव रुक जाता है।जिससे मूत्र के रास्ते को स्वस्थ रखने में मदद मिलतीहै।

 

भूख बढ़ाने वाला-

अविपत्तिकर चूर्ण एक बेहतरीन भूख बढ़ाने वाला एजेंट है। अविपत्तिकर चूर्ण को नियमित रूप से लेने पर भूख को बढ़ाने में मदद मिलती है।

 

एंटीऑक्सीडेंट-

यह शरीर में एक एंटीऑक्सीडेंटके रूप में काम करता है।जो शरीर से हानिकारक मुक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

 

एंटी-इंफ्लेमेटरी-

अविपत्तिकर चूर्ण में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं।जो दर्द और सूजन से आराम दिलाने में मदद करते हैं। 

 

अविपत्तिकर चूर्ण के नुकसान-

  • अविपत्तिकर चूर्ण का अधिकसेवन पेट दर्द को बढ़ा सकता है।
  • इसकी अधिक खुराक लेने सेपेट दर्द, पेट में ऐंठन और दस्त जैसे दुष्प्रभाव पैदा कर सकते हैं।
  • अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए। हालांकियह स्तनपान के लिए सुरक्षित है।
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Baheda: An Ingredient that Cures Diseases

Posted 20 December, 2021

Baheda: An Ingredient that Cures Diseases

Also known as Bibhitaki which means “the one that keeps away from diseases”, Baheda is one of the wonder ingredients that is a key ingredient in Triphala and is a trusted remedy to cure most health conditions. It is known by various other names such as Vibheetaki, Vibhita, Beleric Myrobalan, Bahedan, Bahera, Akaa, Akasaka, Bhomora, Bhomra, Bhaira, Bayada, Tare kai, Shanti Kayi, and Babelo. It is known by the scientific name of Terminalia bellirica.

 

Baheda is a large deciduous tree that is about 12-50 meters high and has a diameter of 3 meters. Its seeds are known as bedda nuts. The leaves are about 15 cm long and loaded with leaves toward the branch end.

 
Importance of Baheda
In Ayurveda

In Ayurveda, Baheda has immense importance as a medicinal herb and the same has been mentioned in various religious and ancient ayurvedic books. In the Charaka Samhita, fruits of baheda are mentioned to cure several diseases and enhance a person’s intellect and strength. It improves metabolism and reduces Ama by increasing the digestive fire. There are several remedies described in the Charaka Samhita, that use baheda as an ingredient for curing diseases.

 
Nutritional Properties

Baheda is rich in essential nutrients such as proteins, Vitamin C, and minerals like manganese, iron, copper, potassium, and selenium. It also contains chemical constituents like tannic acid, β-sitosterol, mannitol, ellagic acid, chebulagic acid, gallic acid, oxalic acid, phyllemblin, galactose, glucose, fructose, rhamnose, etc.  Due to the presence of these bioactive properties, Baheda portrays strong antioxidant, anti-microbial, anti-diarrheal, anti-asthmatic, antispasmodic, anti-cancer, anti-hypertensive, antipyretic, antitussive, and expectorant properties.

 

At present baheda is still used as an important medicinal herb. It is used in preparing various ayurvedic medicines such as constipation, cough, cold, and weight loss.

 
Benefits of Baheda
In Curing Cough and Cold

Baheda is a wonderful cure for cough and cold due to its Kapha balancing properties. It helps to control cough by releasing the mucus and clearing air passages, which helps to facilitate breathing.

 
Stomach problems such as constipation and Bloating

The laxative property of Baheda plays an important role in minimizing mucous and the extra fat in the stools and preventing them from sticking to the intestinal walls and thereby allowing assisting in easy bowel movement. This further helps to prevent constipation and stomach bloating.

 
Loss of Appetite and Weight loss

Baheda helps to manage the loss of appetite, thirst, and flatulence as it is hot in potency. It enhances the digestion process which helps in digesting the food easily. It also assists in weight loss as it improves metabolism and reduces Ama by increasing the digestive capacity. It also removes accumulated waste products in the intestine due to its laxative properties.

 
Weak Immunity

Baheda contains a lot of anti-bacterial, anti-viral, antifungal properties, as well as antioxidants and bioactive components which help in improving the immune system by fighting microbes and protecting the body against various infections.

 
Good for Skin
  • The fruit of Baheda has antibacterial properties which help to control acne and reduce scars.
  • Baheda oil also helps in healing wounds and injuries quickly due to its healing quality. Besides, it also prevents infection in the body.
 
Good for Hair

Baheda helps in promoting hair growth and also controls dandruff due to its Ruksha (dry) and Kashaya (astringent) properties. It helps in removing excess oil and keeps the scalp dry which prevents dandruff. It also contains a unique hair growth enhancer property that boosts hair growth and promotes thick and healthy hair.

 
Side effects of Baheda
  • Baheda should not be consumed in diarrhea, hyperacidity, gastritis, or loose motion due to its hot potency.
  • Baheda should be avoided during pregnancy and breastfeeding.
  • Baheda has glucose-lowering properties which may lower blood sugar levels, so it is generally advised to avoid Baheda if you are on antidiabetic medicines.
Where is it Found?

Bibhitaki is commonly found on plains and lower hills in Southeast Asia such as India, China, Sri Lanka, Nepal, Bhutan, Pakistan, Malaysia, and Indonesia. In India, it is found in many regions, mainly in Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Assam, Tamil Nadu, Kerala, Punjab, Andhra Pradesh, Maharashtra, Gujarat, and Odisha.

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बाकुची के फायदे और घरेलू उपचार

Posted 24 May, 2022

बाकुची के फायदे और घरेलू उपचार

बाकुची का पौधा एक औषधीय जड़ी-बूटी है। जो आकार में छोटा होता है। इस पौधे की औसतन ऊंचाई 3 से 4 फुट तक होती है। इस पौधे के बीज तिरछे, सपाट और भूरे रंग के होते हैं।जिनमें कड़वा स्‍वाद और अप्रिय गंध होती है। बाकुची पूरे भारत में उगती है और इसे आमतौर पर बाबची के रूप में जाना जाता है। यह बाबची फैबेसी (Fabaceae) प्रजाति का पौधा होता है। जिसका वानस्पतिक नाम सोरेलिया कोरीलीफोलिया (Psoraleacorylifolia)है।   

 
आयुर्वेद में बाकुची (बाबची) का महत्व-

आयुर्वेद के अनुसार बाकुची स्वाद में कड़वी, स्वभाव सेगर्म, वात-कफ नाशक, रुचिकारक, पित्तजनक, रक्त पित का नाश करने वाली, हृदय के लिए हितकारी होती है। यह ज्वर, क्रमी, कुष्ठ स्वास, बवासीर, खांसी, सूजन, पाण्डुरोग और दांत के कीड़े में लाभप्रद साबित होती है। बावची प्रकृति से एंटी-माइक्रोबियल है। इसके अलावा बाबची में कीमो-प्रोटेक्टिव, एंटी-इंफ्लामेटरी, एंटीऑक्‍सीडेंट,रवेदार पदार्थ सोरलेन और आइसो सीरलेन पाए जाते हैं।जिसके वजह से यह सफेद दाग, खाज, दाद, मुंहासों और झाइयां जैसे चर्म रोगों में बहुत गुणकारी पाया गया है। उपरोक्त तत्वों के मौजूदगी से बावची जीवाणुनाशक और कृमिनाशक भी होती है।इस पौधे की सबसे प्रभावी विशेषता यह है कि इसके औषधीय गुणों के कारण इसका हर हिस्‍सा (बीज,फल,फूल,जड़ और पत्तियां) उपयोगी होता है। लेकिन अधिकांश विकारों को दूर करने के लिए इसके बीजों का प्रयोग किया जाता है। 

 
बाकुची के फायदे;
त्वचा के लिए लाभप्रद-

बावची प्रकृति से एंटी माइक्रोबियल होता है।जो मुख्‍य रूप से त्‍वचा संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह सोरायसिस, ल्‍यूकोडर्मा, त्‍वचा संक्रमण, त्वचा के चकत्ते और एलर्जी आदि को रोकने में सहायक होती है।

 
बालों के पोषण में सहायक-

बाबची एक बेहतरीन हेयर टॉनिक है।इसलिए इसका इस्तेमाल बालों के झड़ने, अलोपेसिया अरीटा, स्पॉट बाल्डनेस (सर के कुछ हिस्सों में बालों का नहीं होना) जैसी समस्याओं के उपचार में किया जाता है। साथ ही बाकुची के प्रयोग से बालों के रंग और गुणवत्ता में भी सुधार होता है।

 
श्वसन रोगों में फायदेमंद-

बाकुची में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो संक्रमण के दौरान श्वसन तंत्र की सूजन और दर्द को कम करने में सहायक होते हैं। जिससे यह सर्दी, अस्‍थमा, डिस्‍पेनिया, नेफ्रैटिस, ब्रोंकाइटिस और अन्‍य विभिन्‍न प्रकार की श्वसन संबंधी बीमारियों में मददगार साबित होती है।

 
दांतों के लिए लाभप्रद-

दांत खराब होने और अन्‍य प्रकार की दांतों की संबंधी समस्‍या का इलाज करने के लिए बावची एक प्रभावी औषधि है। बाकुची चूर्ण या बाबची एसेंशियल ऑयल का प्रयोग दांतों के दर्द, सड़न और पायरिया जैसी समस्‍याओं का उत्‍कृष्‍ट उपाय है। यह दांतों की सड़न को रोकने में मदद करती है। क्योंकि बाबची में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैविटी से लड़ने में सहायता करते हैं।

 
कैंसर में सहायक-

बाकुची के बीजों में कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा इसके बीजों में बावाचिनिन, सोरेलन और सोरिलिफोलिनिन जैसे तत्व भी होते हैं। जोओस्टियोसार्कोमाऔर फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में मदद करते हैं।

 
रक्त को साफ करने में मददगार-

बाकुची में प्राकृतिक रक्‍त शोधक का गुण पाया जाता है।जो शरीर से अशुद्धियों (विषाक्त पदार्थों) को दूर करने में सहायता करता है। इसके अलावा बाबची के इस्तेमाल से इम्यूनिटी को भी बूस्ट किया जा सकता है।

 
यौन क्षमता बढ़ाने के लिए-

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार कमजोर यौन क्षमता वाले लोगों के लिए बाबची एक लाभदायक औषधि है। ऐसे में 4-8 ग्राम बाबची के बीज चूर्ण का सेवन करना लाभदायक होता है।ऐसा करने से वीर्य को जरूरी पोषण मिलते हैं और यौन क्षमता मजबूत होती है।

 
पेचिश और बवासीर के इलाज के लिए-

बाकुची के पौधे में एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण पाया जाता है। जोकि शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। बाकुची के चूर्ण का सेवन करने से पेचिश (Dysentery) की समस्या में आराम लगता है। इसके अलावा इसकी जड़ के चूर्ण को गुड़ के साथ प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर में भी लाभ होता है।

 
प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में कारगर-

बाकुची में एंटीऑक्सीडेंट और पर्याप्त मात्रा में मौजूद पोषक तत्व पाए जाते हैं।जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। इसके अलावा इसके बीजों से बना तेल एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि के रूप में काम करता है। यह बॉडी को ऑक्सीकरण से भी बचाता है। जिससे शरीर की इम्यूनिटी में सुधार होता है। 

 
बाकुची से घरेलू उपचार-
  • सफेद दाग को दूर करने के लिए बाकुची का उपयोग सदियों से किया जा रहा है। बाबची और काले तिल (समान मात्रा) के चूर्ण कोरोज सुबहएक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लेने और बावची तेल को सुबह-शाम सफेद दाग पर लगाने से लाभ होता है।
  • बाकुची पौधे की जड़ को पीसकर उसमें थोड़ी मात्रा में फिटकरी मिला लें। अब प्रतिदिन सुबह-शाम इससे मंजन करें। ऐसा करने से दांतों में होने वाला संक्रमण ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा बाबची तेल को दांत पर लगाने से दांत के कीड़े नष्ट हो जाते हैं ।
  • शरीर में किसी जगह पर गांठ बन जाती है जिससे त्वचा खराब दिखने लगती है।बाबची बीजों को पीसकर उस गांठ पर बांधने से गांठ बैठ जाती है।
  • मुंहासे, दाद,खाज और खुजली को ठीक करने के लिए बावची बीजों का तेल सुबह-शाम नियमित रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।
  • बाकुची बीजों के चूर्ण को अदरक रस के साथ दिन में तीन बार लेने से सर्दी-जुकाम में आराम मिलता है। ऐसा करने से कफ भी ढीला होकर बाहर निकल जाता है।
  • पेचिश में बाकुची की पत्तियों का साग नियमित रूप से सुबह-शाम खाने से लाभ मिलता है।
  • बाकुची,सोंठ और हरड़ कोसमान मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। आधा चम्मच मिश्रितचूर्ण का गुड़ के साथ प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
  • बाबची के पेस्ट या इससे बने तेल को फाइलेरिया (हाथी पांव) वाले अंग पर इस्तेमाल करने से फाइलेरिया में लाभ होता है।
  • पुनर्ववा के रस में आधा चम्मच बाबची चूर्ण को मिलाकर नियमित रूप से सेवन करना फायदेमंद होता है।
  • प्रतिदिन मूसली और बाकुची के चूर्ण का सेवन करने से बहरेपन (बाधिर्य) की बीमारी में लाभ मिलता है।
बाकुची के इस्तेमाल के दौरान बरतें यह सावधानियां-
  • सफेद दाग होने पर कुछ उत्पादों जैसे दही, अचार, मछली इत्यादि से बचना चाहिए।क्योंकि सफेद दाग (vitiligo treatment) जैसी समस्याओं के इलाज में बाकुची चूर्ण के साथ इन उत्पादों का सेवन निषेध है। सर्वोत्तम परिणाम के लिए बाकुची के सेवन के साथ बाबची एसेंशियल ऑयल का प्रयोग भी प्रभावित जगह पर करनाचाहिए।
  • पीलिया के दौरान बाकुचीका अधिक सेवन करने से उल्टी (वमन) हो सकती है।
  • बाकुची को उच्च खुराक और लंबे समय तक इस्तेमाल करने से हाइपरसिटी और गैस्ट्राइटिस हो सकता है।
  • बाकुची का उपयोग स्तनपान कराने वाली माताओं को चिकित्सकीय देखरेख में करना चाहिए।
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क्या हैं च्यवनप्राश खाने के लाभ? जानें

Posted 24 May, 2022

क्या हैं च्यवनप्राश खाने के लाभ? जानें

शायद हर बच्चे ने च्यवनप्राश खाया होगा और सिर्फ बच्चे ही क्यों कई बुजुर्ग आज भी इसका सेवन प्रतिदिन करते हैं। क्योंकि च्यवनप्राश एक ऐसी चीज है जो हर व्यक्ति, बच्चे और बुजुर्ग को तमाम तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। कोरोनाकाल के समय भी अपनी सेहत और शरीर को मजबूत रखने के लिए कई लोगों ने च्यवनप्राश को अपने दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाया है। क्योंकि च्यवनप्राश शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। दरअसल च्वयनप्राश तमाम जड़ी-बूटियों से बनने वाला एक आयुर्वेदिक उत्पाद है। जो शरीर को सर्दी-जुकाम से बचाने और इम्यूनिटी को मजबूत बनाने का काम करता है।

 
क्या होता है च्यवनप्राश?

च्यवनप्राश विभिन्न आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और अन्य सामग्री से तैयार किया गया एक प्रकार का जैम है। जो दिखने में काला या भूरे रंग का और स्वाद में मीठा, हल्का खट्टा और चरपरा (मसालेदार सा) होता है। आमतौर पर च्यवनप्राश का सेवन सर्दियों में अधिक किया जाता है। क्योंकि यह बॉडी को गर्म रखने और सर्दी-जुकाम से बचाने का काम करता है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि च्यवनप्राश को खाने के फायदे अन्य मौसम में नहीं हैं।

दरअसल च्वयनप्राश में कई आयुर्वेदिक औषधियां शामिल होती हैं। जो शरीर को तरह-तरह के लाभ पहुंचाती हैं। यही कारण है कि आजकल दादी-नानी के साथ-साथ डॉक्टर्स भी लोगों को बीमार होने पर च्यवनप्राश खाने की सलाह देते हैं। च्यवनप्राश का नियमित सेवन करना महिला और पुरुष दोनों के लिए बेहद लाभप्रद है।

 
च्यवनप्राश में मौजूद सामग्रियां-

च्यवनप्राश बनाने में कई औषधीय गुणों से युक्त जड़ी-बूटियों और विभिन्न पौधों के अर्क का प्रयोग होता है। हर कंपनी अपने ब्रांड का च्यवनप्राश बनाने के लिए तरह-तरह की सामग्रियों का इस्तेमाल करती हैं। जिनमें से कुछ सामान्य सामग्रियां हैं- आंवला, हल्दी, अश्वगंधा, लौंग, नीम, पिप्पली, बेल, सफेद चंदन पाउडर, तुलसी, सौंफ, दालचीनी, इलायची, केसर, अर्जुन, ब्राह्मी, शहद, घी आदि। इन सभी जड़ी-बूटियों में इम्यूनिटी बढ़ाने और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करने वाले गुण मौजूद होते हैं।  

 
च्यवनप्राश के फायदे;
एंटी-इंफ्लेमेटरी के तौर पर-

च्यवनप्राश सूजन को कम करने में मदद कर सकता है। क्योंकि इसको को एंटी-इंफ्लामेटरी माना जाता है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जिस च्यवनप्राश को बनाने में तिल का तेल, लौंग और अगुरु का इस्तेमाल किया जाता है। उसमें निश्चित तौर पर एंटी-इंफ्लामेटरी प्रॉपर्टीज होती हैं। जो इंफ्लामेशन (सूजन) को कम कर सकती हैं। इसके अलावा नागकेसर, अश्वगंधा और आंवला जैसी सामग्रियों में भी एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। इसलिए माना जाता है कि च्यवनप्राश सेंट्रल नर्वस सिस्टम (केंद्रीय तंत्रिका तंत्र) के कार्य सुधार में भी सहायता कर सकता है।

 
स्वस्थ हृदय के लिए-

च्यवनप्राश को कार्डियो टॉनिक माना जाता है। एनसीबीआई की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक च्यवनप्राश का नियमित सेवन दिल को मजबूत रखता और मांसपेशियों तक स्वस्थ रक्त प्रवाह को सुनिश्चित करके दिल की धड़कन को भी ठीक रखता है। इसलिए दिल संबंधी बीमारियों में च्यवनप्राश का सेवन करना लाभदायक होता है।

 
पाचन और चयापचय के लिए-

च्यवनप्राश का सेवन पाचन शक्ति में सुधार लाता है। क्योंकि च्यवनप्राश में मौजूद तेजपत्ता, दालचीनी, नागकेसर जैसी जड़ी-बूटियां चयापचय को सुधार कर गैस्ट्राइटिस (पेट की परत में सूजन व जलन) की समस्या, पेट की ऐंठन और दर्द के साथ गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल फंक्शन में सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। जिससे खाना अच्छे से पचता है और मल त्याग भी बेहतर तरीके से होता है। 

 
सर्दी-खांसी के लिए-

बदलते मौसम में सर्दी-खांसी का होना बहुत आम होता है। लेकिन च्यवनप्राश का नियमित सेवन करके इस समस्या से बचा जा सकता है। क्योंकि च्यवनप्राश में मौजूद शहद सर्दी-खांसी को ठीक करने और इम्यूनिटी को बढ़ाने में सहायता करता है। इसके अलावा च्यवनप्राश में मौजूद आंवला और अन्य जड़ी-बूटियों में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है। जो शरीर को तमाम तरह के वायरस और बैक्टीरिया संबंधी संक्रमण से बचाने में मदद करता है। इसलिए सर्दी-खांसी के प्रभाव को कम करने के लिए च्यवनप्राश का सेवन करना अच्छा विकल्प है।

 
रक्त साफ करने के लिए-

च्यवनप्राश का नियमित सेवन शरीर के रक्त को साफ करने का काम करता है। क्योंकि कई ब्रांड के च्यवनप्राशों में पाटला, तुलसी, हल्दी जैसे नेचुरल इंग्रेडिएंट्स मौजूद होते हैं। जो रक्त से विषैले तत्वों को निकालकर उसे प्यूरीफायर करने का काम करते हैं।

 
याददाश्त तेज के लिए-

च्यवनप्राश का लगातार सेवन करने से दिमाग तेज और याददाश्त अच्छी होती है। एनसीबीआई की साइट पर प्रकाशित रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक कई च्यवनप्राशों में एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव होते हैं। जो खोती याददाश्त को बढ़ाने में मदद करते हैं। क्योंकि च्यवनप्राश मस्तिष्क के सेल्स को पोषण देकर उसे तेज बनाने का काम करता है।

 
इम्यूनिटी के लिए-

इम्यूनिटी को मजबूत करना च्यवनप्राश का मुख्य कार्य है। जिससे शरीर जल्दी बीमार नहीं होता और इंफेक्शन व बैक्टीरिया से लगातार लड़ता रहता है। दरअसल च्यवनप्राश में मौजूद आंवला शरीर में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी इफेक्ट दिखाता है। जो जरूरत के हिसाब से शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करता है। इसके अलावा च्यवनप्राश बनाने में प्रयोग में आने वाला गाय का देशी घी और शहद में भी इम्यूनिटी को मजबूत करने वाले गुण पाए जाते हैं।

 
श्वसन संबंधी परेशानियों के लिए-

श्वसन से संबंधित समस्याओं से निपटने के लिए च्यवनप्राश का सेवन करना एक बढ़िया उपाय है। क्योंकि च्यवनप्राश में मौजूद पिप्पली शरीर को श्वसन संक्रमण से बचाने का काम करती है। बस इसके लिए च्यवनप्राश को हल्के गुनगुने पानी के साथ खाने की सलाह दी जाती है और दूध-दही से परहेज करने को कहा जाता है। क्योंकि सर्दी-खांसी के समय दूध-दही शरीर में बलगम (कफ) बनाने का काम करते हैं।

 
हड्डियों को मजबूत करने के लिए-

च्यवनप्राश का नियमित सेवन करने से कैल्शियम के बेहतर अवशोषण और प्रोटीन के संश्लेषण (सिंथेसिस) में सहायता मिलती है। जिससे दांत और हड्डियां मजबूत होती हैं। इसलिए च्यवनप्राश का सेवन दूध के साथ करना अच्छा होता है। इससे च्यवनप्राश दूध में मौजूद कैल्शियम को शरीर में अवशोषित करने में मदद करता है।

 
कोलेस्ट्रॉल के लिए-

च्यवनप्राश कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का काम करता है। यह शरीर में हाइपोलिपिडेमिक की भांति कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स (रक्त में मौजूद एक प्रकार का फैट) के स्तर को कम करता है। एनसीबीआई की शोध रिपोर्ट के अनुसार च्यवनप्राश बॉडी में कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, एलडीएल (कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन) में कमी और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) में वृद्धि करने में मदद करता है। इसलिए च्यवनप्राश के फायदों में कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण को भी रखा गया है।

 
च्यवनप्राश के नुकसान एवं सावधानियां-
  • च्यवनप्राश तासीर से गर्म होता है। इसलिए मुंह में छाले होने पर इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • अस्थमा या अन्य श्वसन संबंधी परेशानी से पीड़ित लोगों को च्यवनप्राश का सेवन दूध के साथ नहीं करना चाहिए।
  • ज्यादातर च्यवनप्राशों में आंवला होता है। जिसे रात के समय खाने से दांतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए रात में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं और डायबिटीज के मरीजों को च्यवनप्राश का सेवन डॉक्टर परामर्श के बाद करना चाहिए।
  • च्यवनप्राश बनाने में चीनी का प्रयोग किया जाता है। इसलिए मधुमेह से पीड़ित लोगों को इसका सेवन चिकित्सा परामर्शानुसार करना चाहिए।
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जानें, अशोक वृक्ष के औषधीय लाभ, उपयोग और नुकसान

Posted 24 May, 2022

जानें, अशोक वृक्ष के औषधीय लाभ, उपयोग और नुकसान

आयुर्वेद में अशोक के पेड़ को हेमपुष्प या ताम्रपल्लव कहा जाता है। अशोक वृक्ष के विभिन्न भाग जैसे फूल, पत्ता आदि को महिलाओं की सेहत संबंधी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है, लेकिन इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अशोक एक ऐसा वृक्ष है जिसमें कई गुण पाए जाते हैं। अशोक के पेड़ का उपयोग रोगों से छुटकारा दिलाने और शारीरिक दुख दूर करने के लिए हजारों साल से होता आ रहा है। यह मुख्य रूप से स्त्री रोग, रक्त बहने के विकारों और मूत्र संबंधित रोगों में काफी फायदेमंद है। अशोक की छाल कसैली, रूखी और स्वभाव से ठंडी होती है। अशोक के पत्ते लंबे होते हैं। जिसे लोग ताम्रपत्र कहते हैं। इसका फूल सुन्दर और सुगन्धित होता है। इसका फल फलियों के रूप में होता है। अशोक की छाल, पत्तों, फूलों और बीजों का प्रयोग दवा के लिए किया जाता है। इसकी छाल में टैनिन, कैटीकाल, उड़नशील तेल, कीटोस्टेरोल, ग्लाइकोसाइड, सेपोनिन, कैल्शियम और आयरन जैसे यौगिक पाए जाते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम सरका असोच (Saraca asoca) है।

अशोक वृक्ष को भारत, नेपाल और श्रीलंका में पवित्र माना जाता है। प्राचीन काल में शोक को दूर और प्रसन्नता लाने के लिए अशोक वाटिकाओं एवं उद्यानों का निर्माण कराया जाता था और इसी कारण अशोक के वृक्ष को शोकनाश, विशोक, अपशोक आदि भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़ को पवित्र एवं आदरणीय मानते ही हैं, साथ में बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दृष्टि से देखते हैं। क्योंकि कहा जाता है कि भगवान बुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था।

 
अशोक वृक्ष के फायदे-
मासिक धर्म संबंधी विकारों में अशोक के पत्ते के फायदे-

अशोक का प्रयोग स्त्रीरोग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों और एंडोमेट्रियम के लिए एक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून आने की समस्या में अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर पीना बेहद फायदेमंद होता है। इसके उपयोग से मासिक धर्म नियमित हो जाएगा।

 
गर्भाशय को मजबूत करता है अशोक का अर्क-

बांझपन, गर्भाशय की कमजोरी, हार्मोन का असंतुलन, पेट के रोग और पेडू का दर्द (Pelvic pain) जैसी समस्याएं होने पर अशोकारिष्ट का सेवन करें। क्योंकि अशोकारिष्ट को अशोक के अर्क से बनाया जाता है। इससे आपको इन समस्याओं में फायदा होगा।

 
लिकोरिया से निजात दिलाए अशोक के औषधीय गुण-

अगर किसी को सफ़ेद पानी आने या लिकोरिया (Leucorrhoea) की समस्या है तो 1 चम्मच अशोक की छाल के चूर्ण का प्रतिदिन दो बार गाय के दूध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

 
सूजन को दूर करता है अशोक का वृक्ष-

अंडकोष (testicles) में सूजन होने पर एक सप्ताह तक अशोक की छाल का काढ़ा प्रतिदिन दो बार पिएं। इसके सेवन से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।

 
पेट में दर्द से राहत दिलाता है अशोक की छाल का काढ़ा-

पेट में दर्द की समस्या है तो अशोक की छाल को पानी में उबालकर उसका काढ़ा बना लें और प्रतिदिन दो बार पिएं। इससे पेट दर्द से छुटकारा मिलेगा।

 
पथरी की समस्या में अशोक बीज के फायदे-

गुर्दे में पथरी की समस्या है तो अशोक के बीज को पीस लें और प्रतिदिन पांच-दस ग्राम की मात्रा का ठंडे पानी के साथ सेवन करें। इसके सेवन से पथरी की समस्या से निजात मिलेगा।

 
सांस संबंधी रोगों में लाभदायक है अशोक के बीज-

किसी को सांस रोग की समस्या है तो अशोक के बीजों का 65 मिली ग्राम चूर्ण पान के बीड़े में रख कर सेवन करें। इसके सेवन से कुछ ही दिनों में सांस रोग से छुटकारा मिल जाएगा।

 
योनि से असामान्य खून की समस्या में अशोक के पेड़ के लाभ-

अगर किसी को रक्त प्रदर, योनि से असामान्य खून निकलना, पेशाब से सम्बंधित समस्या है तो अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पिएं। इसके सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

 
अशोक वृक्ष के उपयोग
  • अशोक की छाल, फूल और बीज औषधीय रूप से उपयोग किए जाते हैं।
  • इसकी छाल का उपयोग पित्तदोष, योनि स्राव, जलन को ठीक करने के लिए किया जाता है।
  • अशोक वृक्ष के तने की छाल का उपयोग पेट के दर्द, पेचिश, अपच, बवासीर, अल्सर और गर्भाशय की समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है।
  • इसकी छाल से त्वचा के रंग को सही करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
  • अशोक के फूलों को पीस कर रक्त पेचिश, मधुमेह, सिफलिस और गर्भाशय टॉनिक के लिए उपयोग किया जाता है।
  • इसके बीजों का पाउडर बजरी (छोटे दाने वाली पथरी) और लगातार पेशाब की शिकायत में उपयोग किया जाता है।
  • इसके फलों को सुपारी के विकल्प के रूप में चबाया जाता है।
  • अशोक के वृक्ष को पवित्र माना जाता है। इसलिए इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है।
  • इसकी छाल का उपयोग आंतरिक रक्तस्राव के मामलों में किया जाता है।
अशोक के पेड़ के नुकसान-
  • अशोक का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग या दवा के रूप में इस्तेमाल शरीर पर कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं डालता। लेकिन इसका अत्यधिक प्रयोग एमेनोरिया (amenorrhoea) अर्थात मासिक धर्म के न होने की समस्या को और बिगाड़ देता है।
  • गर्भवती महिलाओं को अशोक वृक्ष का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनके लिए यह हानिकारक हो सकता है।
  • हृदय रोग के मरीज को इस जड़ी-बूटी को लेने से पहले चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
कहां पाया जाता है अशोक का वृक्ष?

अशोक के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र बाग-बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुन्दरता के लिए लगाए जाते हैं। यह वृक्ष पश्चिमी प्रायद्वीप में 750 मी की ऊंचाई पर मुख्यतः पूर्वी बंगाल, बिहार, उत्तराखंड, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में साधारण रूप से नहरों के किनारे व सदाहरित वनों में पाए जाते हैं।

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क्या होता है भृंगराज, जानें इसके फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

क्या होता है भृंगराज, जानें इसके फायदे और उपयोग

भृंगराज को हर्बल और आयुर्वेदिक चिकित्सा में “बालों का राजा” कहा जाता है। क्योंकि यह लगभग हर हेयर केयर प्रोडक्ट में इंग्रेडियंट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए आयुर्वेद में इसे केशराज भी कहते हैं। वैसे तो भृंगराज को परंपरागत रूप से बालों के विकास को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। लेकिन इसके अलावा भृंगराज एक बढ़िया जड़ी-बूटी है। जिसकी मदद से अनेक रोगों का उपचार किया जाता है। बुखार, उल्टी, डायबिटीज, आंखों की बीमारी, मुंह के रोग, घाव के उपचार, पेट संबंधित समस्याएं, खुजली आदि बीमारियों में इसके उपयोग से कई लाभ मिलते हैं। इसके अलावा इसका प्रयोग कीड़े-मकोड़े के काटने और सर्प दंश को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।

 
क्या होता है भृंगराज?

भृंगराज एस्टेरेसी (Asteraceae) कुल से संबंधित एक पौधा है। जिसे फॉल्स डेजी (False Daisy) के नाम से भी जाना जाता है।  भृंगराज की जड़, तना, पत्तियां और फूल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीहिस्टामिनिक (एलर्जी को दूर करने वाला), हेपटोप्रोटेक्टीवे (लिवर को स्वस्थ रखना) और एक्सपेक्टोरेंट (कफ और श्वास की बीमारी को दूर करना) जैसे कई औषधीय गुण होते हैं।

 
भृंगराज के फायदे-

भृंगराज के एक नहीं अनेक फायदे हैं। जिन्हें हम बालों के आधार पर, स्वास्थ्य के आधार पर, त्वचा के आधार पर देख और समझ सकते हैं। आइए बात करते हैं इन्हीं फायदों के बारे में;

 
बाल हेतु भृंगराज के फायदे
 
झड़ते बालों को कम करना-

बालों की हर समस्या में भृंगराज लाभदायक होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व बालों को स्वस्थ्य बनाने और उन्हें मजबूती प्रदान करने का काम करते हैं। इसके अलावा भृंगराज का तेल स्कैल्प (खोपड़ी) में आसानी से अवशोषित होकर रक्त संचार में सुधार और बालों के विकास में मदद करता है। इससे झड़ते और गिरते बालों का इलाज़ करने में आसानी होती है। भृंगराज के इस्तेमाल से बाल घने एवं मजबूत बनते हैं।

 
बालों की वृद्धि-

आयुर्वेद के अनुसार यह जड़ी बूटी स्कैल्प (खोपड़ी) में रक्त के संचार में सुधार करती है। जिससे बालों की जड़ों में भरपूर पोषक तत्व पहुंच जाते हैं। परिणामस्वरूप बालों की जड़ें मजबूत बनती हैं और बालों के विकास में सकारात्मक बढ़ोतरी होती है। इसके अतिरिक्त इस पौधे के सत्व भी बालों की वृद्धि को प्रोत्साहित करते हैं।

 
रूसी से आजादी के लिए-

भृंगराज स्किन की नमी को लंबे समय तक बनाए रखने का काम करता है। इसके इसी गुण के चलते इसका इस्तेमाल मॉइस्चराइजिंग उत्पादों में किया जाता है। भृंगराज में मेंथॉल, सिलेनियम और जिंक आदि मौजूद होते हैं। जो स्कैल्प पर एंटीफ्लैक गुणों (खोपड़ी पर पपड़ी बनने से रोकना) के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा भृंगराज बालों में ठंडक का अहसास कराता है और रूसी से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। इसलिए भृंगराज को लगभग हर हेयर केयर प्रोडक्ट में इस्तेमाल किया जाता है।

 
समय से पहले सफेद बाल होना-

भृंगराज बालों की प्राकृतिक रंग को बनाए रखने और असमय सफेद हो रहे बालों को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके लिए भृंगराज तेल को आंवले के तेल में मिलाकर नियमित रूप से बालों की मसाज करें। ऐसा करने से बालों का प्राकृतिक भूरा और काला रंग लंबे समय तक बना रहता है। परिणामस्वरूप बालों का समय से पहले सफेद होना कम हो जाता है।

 
त्वचा हेतु भृंगराज के फायदे-
 
त्वचा के लिए फायदेमंद-

भृंगराज त्वचा के लिए अच्छा होता है। यह त्वचा की सेहत का ध्यान रखने का काम करता है। इसमें मौजूद एंटीआक्सीडेंट, एंटी इंफ्लेमेंटरी, एंटी बैक्टीरियल गुण त्वचा को संक्रमण और अन्य परेशानियों से बचाने काम करते हैं। इसके अलावा इसमें पाए जाने वाला विटामिन ई भी त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसलिए भृंगराज तेल को किसी अन्य कैरियर तेल में मिलाकर त्वचा पर लगाने से फाइन लाइन, मुंहासे, झुर्रियां और एजिंग की समस्या दूर होती है।

 
घाव के उपचार और कीड़े-मकोड़े के काटने पर-

भृंगराज के पत्तों को तेल में पकाकर कटने, छिलने, चोट और अन्य घावों पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होते हैं। इसके अलावा किसी कीड़े-मकोड़े के काटने पर भृंगराज की पत्तियों का पेस्ट लगाने से जहर का असर कम हो जाता है।

 
विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में मददगार-

भृंगराज शरीर के विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में सहायता करता है। त्वचा से प्रदूषण के विषाक्त पदार्थ और गंदगी को हटाने के लिए भृंगराज तेल की मालिश करना एक अच्छा उपाय है। यह तेल डिटॉक्सिफायर और त्वचा क्लींजर के रूप में काम करता है। 

 
सेहत हेतु भृंगराज के फायदे-
 
बुखार के लिए फायदेमंद -

भृंगराज में एंटीबैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जो बुखार को दूर करने में कारगर होते हैं। इसके लिए भृंगराज की जड़, पत्तों और उसके डंठल का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए। ऐसा करने से बुखार का ताप कम होने लगता है।

 
सर्दी, खांसी (कफ) की रोकथाम हेतु-

भृंगराज के अर्क में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीमाइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं। जो खांसी की वजह बनने वाले कीटाणुओं को खत्म करने में मददगार साबित होते हैं। इसके अलावा भृंगराज अन्य हानिकारक कीटाणुओं को पैदा होने से भी रोकता है। इस प्रकार भृंगराज के अर्क का सेवन करने से खांसी और अन्य वायरल संक्रमण बीमारियों से राहत मिलती है।

 
बंद नाक और गले की बीमारी के लिए-

भृंगराज बंद नाक को खोलकर सांस लेने में होने वाली दिक्कतों को दूर करता है। यह लंग्स (फेंफडों) में ऑक्सीजन लेने की क्षमता में बढ़ोतरी करता है। इस तेल के इस्तेमाल से श्वसन तंत्र की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। भृंगराज से बने काढ़े से गरारे करने से जीभ की सूजन और दांतों से होने वाला रक्तस्राव कम होता है। वहीं भृंगराज के पत्तें को पीसकर गले पर लगाने से गले की सूजन जैसे कंठ रोगों में आराम मिलता है।

 
चिंता, अवसाद, तनाव से राहत -

भृंगराज का चूर्ण और पत्तियां चिंता, थकान, तनाव आदि की वजह से होने वाले सिरदर्द को कम करने में मदद करती है। क्योंकि भृंगराज में ऐसे सक्रिय तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के हार्मोनल संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। परिणामस्वरूप चिंता, तनाव, थकान, सिरदर्द आदि में आराम मिलता है। इसके लिए भृंगराज के पत्तों को तेल में अच्छे से पकाकर, छानकर ठंडा कर लें। अब इसे सिर पर लगाएं। ऐसा करने से सिर संबंधी विकारों में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त भृंगराज के प्रयोग से पारम्परिक दवाओं के दुष्प्रभाव से भी बचा जा सकता है।

 
पाचन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद-

भृंगराज पाचन स्वास्थ्य को अच्छा बनाता है। इसका सेवन आंत संबंधित क्रियाओं को बेहतर करता है। यह इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (पेट दर्द, कब्ज, डायरिया आदि) को ठीक करता है। इसलिए भृंगराज का नियमित सेवन करने से पाचन शक्ति को बढ़ावा मिलता है।

 
प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में कारगर-

आयुर्वेद में भृंगराज का उपयोग औषधीय गुणों की वजह से एनर्जी बूस्टर के रूप में किया जाता है। इसके सेवन से शरीर की इम्यूनिटी में सुधार होता है। यह शरीर में एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि के रूप में काम करता है। इसमें पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड होने के कारण यह बॉडी को ऑक्सीकरण से भी बचाता है। इसके अलावा भृंगराज का उपयोग शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।

 
पेचिश और बवासीर के इलाज के लिए-

भृंगराज के पौधे में एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण पाया जाता है। जोकि शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। भृंगराज के चूर्ण का सेवन करने से पेचिश (Dysentery) की समस्या में आराम लगता है। इसके अलावा इसकी जड़ के चूर्ण को दूध के साथ लेने से बवासीर में भी लाभ होता है।

 
लिवर की समस्या में फायदेमंद-

भृंगराज की पत्तियों और जड़ से निकले अर्क का इस्तेमाल लिवर संबधी विकार को ठीक करने के लिए किया जाता है। दरअसल भृंगराज में मौजूद वेडेलोलैक्टोन (wedelolactone), इरसोलिक (ursolic) और ओलिनोलिक एसिड (oleanolic acid) जैसे गुण लिवर संबंधी विकारों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। इसलिए भृंगराज को लिवर संबंधी परेशानी के लिए अच्छा माना है।

 
भृंगराज को किस रूप में उपयोग कर सकते हैं?
  • भृंगराज के अर्क को नारियल तेल में मिलाकर सिर की मसाज के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • स्नान करने से पहले भृंगराज तेल की कुछ बूंदें शैम्पू में मिलाकर बालों में लगा सकते हैं।
  • भृंगराज की पत्तियों के लेप (पेस्ट) को सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • भृंगराज तेल को जोड़ों के दर्द एवं सिर दर्द में इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों को अजवाइन के साथ सेवन करने से पित्ताशय की समस्या दूर होती है।
  • इसकी पत्तियों को पानी में उबाल कर काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भृंगराज के नुकसान-
  • जो व्यक्ति लो शुगर से पीड़ित है। उन्हें इसके सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि इसमें मौजूद गुण रक्त में ग्लूकोज के स्तर को कम कर देते हैं।
  • भृंगराज की तासीर ठंडी होती है। इसलिए सर्दी-जुकाम होने पर इसके तेल से सिर की मालिश न करें।
  • भृंगराज का अधिक सेवन से दस्त, पेट में ऐंठन और मतली जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • कब्ज की समस्या से पीड़ित लोगों को भृंगराज का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसमें मौजूद एंटीस्पास्मोडिक (antispasmodic) मल को चिकना होने से रोकता है। जिससे कब्ज की समस्या और गंभीर हो सकती है।
  • गर्भवती महिला और गर्भवती होने के बारे में सोच रहीं महिलाओं को भृंगराज का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना चाहिए।
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Importance of Avipattikara Churna in Ayurveda

Posted 20 December, 2021

Importance of Avipattikara Churna in Ayurveda

Avipattikara Churna is a Compound Ayurvedic Formulation that is used to treat stomach-related problems. It contains a mixture of several natural herbs such as Ginger, Kalimirch, Pippali, Amla, Harad, Baheda, Nagarmotha, Vidanga, Cardamom, Tejpatta, and Clove. All these ingredients contain numerous properties which help to treat various diseases. Avipattikara Churna is also important in Ayurveda due to its medicinal properties.

The Churna acts as an antacid and has carminative, appetizer, digestive stimulant, antilithiatic, mild diuretic, antioxidant, and anti-inflammatory properties. All these help in treating constipation, Irritable Bowel Syndrome, bloating, ascites, obesity, etc.

 
Importance of Avipattikara Churna in Ayurveda

Avipatti means “to get rid of digestive disorders” in Ayurveda. Avipattikara churna possesses strong antioxidant, anti-inflammatory, and carminative properties that help to cure imbalances related to pitta dosha. It pacifies pitta and aids in treating digestive problems such as diarrhea, constipation, gastritis, heartburn, indigestion, and ulcers, and other stomach-related problems.

 
Benefits of Avipattikara Churna
Indigestion-

Avipattikar Churna is effective in indigestion due to its appetizer(Deepan) and digestive (Pachan) properties, which help properly digest and relieve indigestion. For this, take 2-3 grams of churna and swallow with water or buttermilk. Repeat it once or twice a day after meals until symptoms start to reduce.

 
Constipation-

Due to the imbalance of Vata dosha, the intestines become dry due to the dry property of Vata dosha. This makes the stool dry and results in constipation. Avipattikara Churna helps to reduce constipation due to its vata balancing and laxative properties. For this, intake of 2-3 grams of Avipattikara Churna twice daily with lukewarm water will provide relief.

 
Acidity-

Acidity is a stomach condition in which the stomach produces acid in excess when the food is left undigested or due to the formation of Ama in the body which results in aggravated Pitta dosha. Avipattikara Churna reduces acidity as it has laxative and Pitta dosha balancing properties. It works as a cooling agent by controlling the acid production inside the body.

 
Kidney-related problems-

Avipattikara Churna lowers the risk of kidney problems by improving kidney function. Additionally, avipattikara churna has shown positive results in eliminating kidney stones. This churna can also treat nephritis by lowering inflammation of kidneys, tubules, glomeruli, and interstitial tissue.

 
Gastritis-

The natural healing properties of avipattikara churna flush out the acid from the intestine and boosts gut health, preventing further problems. Moreover, it also has significant anti-inflammatory properties which effectively pacifies the aggravated tissue layer of the gut.

 
Obesity-

Avipattikara Churna has appetizer and digestive properties that help to reduce fat accumulation. For this, take 3-4 grams, twice a day after meals with lukewarm water. For using it as a laxative, take it once at bedtime.

 
Gastroesophageal reflux disorder (GERD)-

Avipattikar churna provides relief from Gastroesophageal reflux disorder (GERD). Irritation occurs in the food pipe lining due to acid reflux which further results in heartburn, throat pain, and chest pain. Avipattikar churna prevents GERD as it ensures that the food reaches the stomach to the intestines through a proper passage.

 
Side-effects of Avipattikara Churna
  • Avipattikar Churna can worsen abdominal pain, so it is contraindicated in abdominal pain.
  • Use of this Churna is not recommended for those suffering from diarrhea.
  • Avipattikar Churna should not be used in pregnancy. However, it is safe to breastfeeding.
  • In case of excess dosage, it can cause following side effects-
  • Stomach pain
  • Abdominal cramps
  • Diarrhea
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मनुष्य के लिए चिरौंजी के फायदे

Posted 24 May, 2022

मनुष्य के लिए चिरौंजी के फायदे

घरों में चिरौंजी का ज्यादातर इस्तेमाल सूखे मेवों के रूप में किया जाता है। कुछ लोग मिठाइयां बनाने में चिरौंजी का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ लोग कोई मीठी डिश बनाने में। लेकिन क्या आप इस बात को जानते हैं कि दानों के रूप में दिखने वाली चिरौंजी सेहत और स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होती है। आयुर्वेद में भी चिरौंजी के इन फायदों के बारे में बताया गया है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों का मानना है कि चिरौंजी पुष्टिकारक पदार्थ है। जो शरीर की ताकत और यौन क्षमता बढ़ाने में मदद करती है।

 
क्या है चिरौंजी?

चिरौंजी का साइंटिफिक नेम बुकाननिया लानजान (buchanania lanzan) है। जो भारत के कई हिस्सों में पाई जाती है। चिरौंजी का पेड़ साल भर हरा रहता है। इसकी ऊंचाई लगभग 12-18 मी होती है। इसकी छाल मोटी और खुरदुरी होती है। चिरौंजी के इस पेड़ में कई औषधीय गुण होते हैं। जिस कारण आयुर्वेद में इसकी पत्ती, फल, बीज, जड़ और गोंद का प्रयोग कई तरह रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। जिस फल या दाने को चिरौंजी के नाम से जाना जाता है दरअसल वह इसके पेड़ के फल के बीज का अंदरूनी हिस्सा होता है। जिसे इसके बीज को तोड़कर निकाला जाता है।

 
चिरौंजी के फायदे;
प्रतिरोधक क्षमता के लिए-

इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार चिरौंजी बीज के अर्क का प्रयोग श्वेत रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने का काम करता है। और श्वेत रक्त कोशिकाएं इम्यून सिस्टम का मूल्यवान हिस्सा होती हैं। जो शरीर को बैक्टीरिया, पैरासाइट, फंगी (कवक) और वायरस के हानिकारक प्रभावों से बचाने का काम करती हैं। इस आधार पर चिरौंजी को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अच्छा माना जाता है।

 
कब्ज के लिए-

कब्ज के लिए चिरौंजी का उपयोग करना बेहतर होता है। क्योंकि चिरौंजी में लैक्सेटिव गुण मौजूद होता है। जो मल को ढीला करके बाहर निकालने में मदद करता है। इसलिए चिरौंजी का सेवन करना कब्ज की समस्या में राहत प्रदान करता है।

 
सिर दर्द के लिए-

सिर दर्द की समस्या में चिरौंजी के बीज का प्रयोग किया जाता है। दरअसल चिरौंजी में एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण होता है। जो सिर दर्द से राहत पहुंचाने का काम करता है।

 
डायरिया के लिए-

डायरिया में चिरौंजी का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की रिसर्च रिपोट के अनुसार चिरौंजी की जड़ में एस्ट्रिंजेंट (संकुचन पैदा करने वाला) प्रभाव होता है। जो दस्त की समस्या में राहत पहुंचाता है। इसके अतिरिक्त चिरौंजी पेड़ की छाल के चूर्ण को शहद के साथ लेने से डिसेंट्री (संक्रामक डायरिया) में भी आराम मिलता है।

 
डायबिटीज के लिए-

चिरौंजी से संबंधित शोध के अनुसार यह डायबिटीज की समस्या में फायदेमंद साबित होती हैं। दरअसल चिरौंजी की पत्तियों के अर्क में एंटीडायबिटिक प्रभाव मौजूद होता है। जो इन्सुलिन की सक्रियता को बढ़ाकर ब्लड शुगर को कम करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त चिरौंजी के बीज को भी मधुमेह के लिए उपयोगी माना गया है।

 
बालों के लिए-

बालों के लिए भी चिरौंजी को काफी प्रभावशाली माना गया है। चिरौंजी में कुछ ऐसे गुण मौजूद होते हैं। जो बालों की कंडीशनिंग करके इस उन्हें नर्म, मुलायम और चमकदार बनाने का काम करते हैं। साथ ही पर्याप्त नमी भी प्रदान करते हैं। इसलिए चिरौंजी पत्तियों के अर्क को हर्बल कंडीशनर में तौर पर प्रयोग में लाया जा सकता है।

 
त्वचा के लिए-

चिरौंजी को त्वचा के लिए अच्छा माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार चिरौंजी बीज के पेस्ट को गुलाब जल के साथ मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा में चमक आती है। जिससे स्किन स्मूथ और सॉफ्ट दिखती है। इसके अलावा चिरौंजी को चबाने से त्वचा की जलन कम होती है और इसके तेल का प्रयोग करने से त्वचा के दाग-धब्बे दूर होते हैं।

 
गठिया के दर्द और सूजन के लिए-

चिरौंजी, तिल, कमलनाल, मुलेठी और बेंत-मूल आदि को जरूर के हिसाब से बकरी के दूध में पीसकर लेप बना लें। अब इस लेप को जोड़ों के दर्द और सूजन वाले हिस्से पर लगाएं। इससे शीघ्र आराम मिलेगा।

 
यौन क्षमता बढ़ाने के लिए-

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार कमजोर यौन क्षमता वाले लोगों के लिए चिरौंजी एक लाभदायक औषधि है। इसलिए 5-10 ग्राम चिरौंजी के बीजों को पीसकर उसे मिश्री युक्त दूध के साथ लेना चाहिए। ऐसा करने से वीर्य को जरूरी पोषण मिलते हैं और यौन क्षमता मजबूत होती है।

 
नाक-कान से खून बहने पर-

कई लोगों को गर्मियों में नाक, कान से खून निकलने की समस्या होती है। ऐसे में उन्हें चिरौंजी के साथ पकाए दूध का सेवन करना चाहिए। इससे रक्तपित्त (नाक, कान से खून बहने) की समस्या ठीक होती है।

 
चिरौंजी के नुकसान-
  • चिरौंजी की पत्तियों में एंटीडायबिटिक (ब्लड शुगर कम करने वाला) गुण मौजूद होता है। इसलिए लो ब्लड शुगर से पीड़ित लोगों को इसके अर्क का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
  • चिरौंजी में लैक्सेटिव गुण अच्छे स्तर पर पाया जाता है। इसलिए इसका अधिक सेवन करने से दस्त की समस्या पैदा हो सकती है।
  • चिरौंजी बीज में एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) प्रभाव होता है। इसलिए इसका अधिक इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। क्योंकि शरीर में एनाल्जेसिक की मात्रा बढ़ने से थकान, कमजोरी और मतली-उल्टी की शिकायत हो सकती है।
  • जिन लोगों को नट्स से एलर्जी होती है। उन्हें चिरौंजी का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को चिरौंजी का सेवन चिकित्सक के परामर्शानुसार करना चाहिए। क्योंकि उन्हें इसके सेवन से स्वास्थ्‍यकर दिक्कतें हो सकती है।
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जानें, सोआ और उसके फायदों के बारे में

Posted 24 May, 2022

जानें, सोआ और उसके फायदों के बारे में

सोआ या डिल लिव्स (Dill leaves) हेल्दी हर्ब्स में एक फेमस नाम है। यह जड़ी-बूटी शारीरिक और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने का काम करती है। इसका इस्तेमाल प्राचीन समय से ही औषधि, मसाले और खाद्य पदार्थों के रूप में होता आया है। सोआ पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है। इसलिए इसके सेवन से सेहत को कई लाभ प्राप्त होते हैं। सोआ के स्‍वास्‍थ्‍य लाभों में जिगर (यकृत) की समस्‍याएं, आंतों की गैस, बवासीर, संक्रमण, पित्‍ताशय की थैली, मासिक धर्म की ऐंठन, अनिद्रा का उपचार और पाचन को ठीक करना आदि शामिल हैं।

 
क्या है सोआ?

सोआ वर्ष-भर रहने वाला पौधा है, जो जंगली घास की तरह होता है। इसके बीज और पूरे पौधे को खाद्य पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। व्‍यापारिक उद्देश्‍य से इसका प्रयोग क्रीम, लोशन, इत्र, डिटर्जेंट और साबुन आदि के उत्पादन में किया जाता है। लेकिन मूल रूप से सोआ औषधीय के रूप में काम आती है। इससे कई प्रकार की दवाओं का निर्माण होता है। इसमें विटामिन-ए, विटामिन-सी, फोलेट, आयरन, मैंगनीज और खनिज पदार्थ की अच्‍छी मात्रा होती है।

 
सोआ के फायदे;
पाचन तंत्र के लिए बेहतर-

सोआ में फाइबर और फ्लैवोनोइड्स गुण होते हैं, जो जीवाणुनाशक का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त सोआ में खनिज और मैग्‍नीशियम पदार्थ भी होता है। जो पेट संबंधित बीमारी जैसे पेट दर्द, दस्‍त, कब्‍ज आदि में राहत देने का काम करता है। सोआ पाचन स्‍वास्‍थ्‍य में भी फायदा करता है।

 
इम्यूनिटी के लिए अच्छा-

सोआ शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति (इम्यूनिटी) को बढ़ाने का काम करता हैं। इसके पौधों में एंटीमिक्राबियल (रोगाणुरोधी) गुण होते हैं। जो शरीर के आंतरिक और बाहरी घाव को संक्रमण में बदलने से रोकते हैं। किसी व्यक्ति का बार-बार संक्रमित होने का कारण उसका कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र है। ऐसे में उसे सोआ का इस्‍तेमाल करके अपनी प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

 
श्वसन विकार में उपयोगी-

सांस संबंधी समस्‍याओं के इलाज में सोआ का प्रयोग किया जाता है। इसमें केम्‍फेरोल, फ्लैवोइड्स और मोनोटेरपेन्‍स जैसे घटक होते हैं। जो श्वसन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते हैं। सोआ में प्रकृति रूप से एंटीस्टामिनिक भी होते हैं, जो हिस्टामाइन (histamine), खांसी और एलर्जी के कारण होने वाली संवेदना को दूर करने में मदद करते हैं। इसलिए सोआ का इस्तेमाल श्वसन संबंधी संक्रमण से बचता है।

 
मधुमेह में कारगर-

सोआ डायबिटीज को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है। अपने कोर्टेकोस्‍टेरॉइड्स गुण के कारण यह मधुमेह के मामलों में लिपिड्स और इंसुलिन के स्तर में होने वाले उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद करता है।

 
अनिद्रा को दूर करने में सक्षम-

अनिद्रा की समस्‍या सेहत को कई तरह से खराब करती है। क्योंकि अच्छे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए पूरी नींद लेना जरूरी होता है। सोआ में खनिज और विटामिन पर्याप्‍त मात्रा में होते हैं। जो मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के साथ अनिद्रा की समस्या को भी ठीक करते हैं। सोआ में मौजूद विटामिन्स और फ्लैवोनोइड्स शरीर के भीतर हार्मोन निर्माण में तेजी लाते हैं। जो मस्तिष्‍क को शांत करके अनिद्रा की रोकथाम का कार्य करते हैं।

 
हिचकी में लाभप्रद-

देर तक हिचकी आने से एक स्वस्थ्य व्‍यक्ति भी परेशान होने लगता है। लेकिन सोआ देर तक या बार-बार आने वाली हिचकी के उपचार के लिए लाभप्रद औषधि है। दरअसल हिचकी आने की असली वजह खाद्य नली में फंसी गैस या हवा होती है। जो बार-बार ऊपर की तरफ बढ़ने की कोशिश करती है। परिणामस्वरूप हमें हिचकी आने लगती है। सोआ के औषधीय गुण पेट फूलने और खाद्य नली में बनने वाली गैस को खत्म करने का काम करते हैं। जिससे हिचकी की आवृत्ति कम होती है।

 
मजबूत हड्डियों के लिए जरूरी-

हड्डियों के लिए कैल्शियम पहली जरूरत है। जोकि सोआ में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए सोआ हड्डियों के विकास में सहायता करता है। इसका नियमित सेवन ही हड्डियों की चोट का बढ़िया इलाज है। इसके अतिरिक्त सोआ ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) जैसी बीमारियों को शरीर में लगने से रोकता है। साथ ही मसाले के रूप में सोआ का इस्तेमाल गठिया दर्द को भी कम करता है।

 
मासिक धर्म में फायदेमंद-

सोआ के फायदे महिलाओं के लिए विशेष माने जाते हैं। यह महिलाओं में रुके हुए पीरियड्स को पुन; चलित करने में मदद करता है। असल में यह आयुर्वेदिक घटक बॉडी को फ्लेवोनोइड्स देता है। जो मासिक धर्म को ट्रिगर करने के लिए हार्मोन निर्माण को बढ़ावा देता है। इस रूप में सोआ महिलाओं को बेहतर मासिक धर्म देने का काम करता है।

 
सोआ के नुकसान;
  • सोआ का अधिक मात्रा में सेवन करना शरीर के रक्‍त शर्करा को काफी नीचे ला सकता है। इसलिए मधुमेह रोगियों को भी इसका सेवन कम मात्रा में करना चाहिए।
  • सोआ रुके हुए मासिक धर्म को शुरू करने का काम करता है। इसलिए स्‍तनपान और गर्भावस्‍था के समय सोआ का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे गर्भापात होने की संभावना बढ़ सकती है।
  • जिन लोगों को गाजर परिवार के पौधों से एलर्जी है। उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए। क्‍योंकि सोआ उस ए‍लर्जी की प्रतिक्रिया को अधिक बढ़ा सकता है।
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आयुर्वेद में ब्राह्मी का महत्व, फायदे एवं उपयोग

Posted 24 May, 2022

आयुर्वेद में ब्राह्मी का महत्व, फायदे एवं उपयोग

सदियों से ब्राह्मी का उपयोग आयुर्वेदिक और परंपरागत दवाओं में किया जाता रहा है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, ब्राह्मी शब्द ब्रह्मा से लिया गया है। अर्थात जो देवता ब्रह्मांड के उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं, उनके आधार पर इसका नाम रखा गया है। ब्राह्मी एक बारहमासी जड़ी-बूटी है। यह पौधा जलीय स्थानों जैसे नदियों, नालों, तालाबों के आस-पास पर स्वतः उग जाते हैं। जिसके कारण ब्राह्मी को जलनिम्बु के नाम से भी जाना जाता है। इसके पौधें पर सफेद रंग के एकलिंगी पुष्प गुच्छों के रूप में खिलते हैं। ब्राह्मी का वानस्पतिक नाम बाकोपा मोनिरी (Bacopa Monnieri) है।

 
क्या है आयुर्वेद में ब्राह्मी का महत्व?

आयुर्वेद के मुताबिक ब्राह्मी एक बढ़िया जड़ी-बूटी है। इसकी मदद से अनेक रोगों का उपचार किया जाता है। यह स्वाद में कटु (कड़वा) होती है। स्वाद में नीम जैसी कड़वी होने के कारण इसे जलनीम भी कहा जाता है। यह विशेष रूप से मस्तिष्क संबंधित बिमारियों में लाभदायक होती है। इसका उल्लेख विभिन्न धार्मिक और प्राचीन आयुर्वेदिक पुस्तकों में भी किया गया है। चरक संहिता में ब्राह्मी के पत्तियों का उल्लेख कई रोगों को ठीक करने और व्यक्ति की बुद्धि और शक्ति को बढ़ाने के लिए किया गया है। इसलिए ब्राह्मी को ब्रेन बूस्टर के नाम से जाना जाता है। ब्राह्मी वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को हराने वाली होती है। लेकिन इसका अधिकांश प्रयोग कफ से उत्पन्न रोगों को दूर करने में किया जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार ब्राह्मी का उपयोग तमाम रोगों जैसे बालों को पोषण, आंखों के लिए, नाक के रोग, गले के रोग, खांसी, खून के दोष एवं ह्रदय संबंधी रोगों में किया जाता हैं। ब्राह्मी के पत्ते कड़वे और वमन नाशक होते हैं, जो ब्रोंकाइटिस में भी फायदे करता है। यह चयापचय में सुधार करता है और पाचन क्रिया को दुरुश्त करता है।

 
ब्राह्मी के फायदे एवं उपयोग;
ब्राह्मी बढ़ाएं स्मरणशक्ति-

ब्राह्मी को प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में जाना जाता है। जो मस्तिष्क के विकास में न्यूरोप्रोटेक्टिव भूमिका निभाती है। इसका इस्तेमाल मानसिक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह एकाग्रता, समझ, ज्ञान और सतर्कता को बढ़ाने में सहायक होती है। इसलिए ब्राह्मी के चूर्ण को दूध या घी के साथ भी लिया जा सकता है।

 
ब्राह्मी से दूर करें अल्जाइमर-

अल्जाइमर मस्तिष्क संबंधी बीमारी होती है। जिसमें व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है। ऐसे में ब्राह्मी के चूर्ण का सेवन करना कारगर साबित होता है। क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटी कॉन्वेलसेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह गुण मस्तिष्क की कार्यक्षमता में सुधार करते हैं। इसके लिए नियमित रूप से एक से दो चम्मच ब्राह्मी के पाउडर को दूध में उबालकर उसे ठंडा करके पीने से अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसे मस्तिष्क विकार में आराम मिलता है।

 
ब्राह्मी करें अनिद्रा को दूर-

ब्राह्मी अनिद्रा की समस्या को दूर कर, रात की नींद को बेहतर करता है। इसमें मेलाटोनिन पदार्थ होता है, जो नींद को बढ़ाता है। यह अनियमित नींद की समस्या झेल रहे लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है। इसके अलावा ब्राह्मी के तेल का सेवन रक्त वाहिनियों की कार्य क्षमता बढ़ाने में भी काफी मदद करता है।

 
ब्राह्मी का उपयोग दिलाए चिंता, अवसाद, तनाव से राहत-

ब्राह्मी का चूर्ण और पत्तियां चिंता, थकान, तनाव आदि की वजह से होने वाले सिरदर्द को कम करने में मदद करता है। क्योंकि ब्राह्मी में ऐसे सक्रिय तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के हार्मोनल संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। परिणामस्वरूप चिंता, तनाव, थकान, सिरदर्द आदि में आराम मिलता है। साथ ही पारम्परिक दवाओं के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। इसके लिए ब्राह्मी के 2-3 पत्तियों को दिन में किसी भी समय चबाना चाहिए। इसके अलावा ब्राह्मी, शंखपुष्पी, बदामगिरी और इलायची से बने ठंडाई का सेवन करने से चिंता और थकान से आराम मिलता है।

 
बालों को झड़ने से रोकने में सहायक-

बालों की किसी भी तरह की समस्या में ब्राह्मी का तेल लाभदायक है। इसमें मौजूद पोषक तत्व बालों को स्वस्थ्य बनाने और उन्हें मजबूती प्रदान करने का काम करते हैं। इसके अलावा ब्राह्मी का तेल स्कैल्प (खोपड़ी) में आसानी से अवशोषित होकर रक्त संचार में सुधार और बालों के विकास में मदद करता है। जिससे बालों का झड़ने या गिरने का इलाज़ करने में आसानी होता है। इसका नियमित उपयोग करने से बालों का गिरना कम होता है और बाल घने एवं मजबूत बनते हैं।

 
ब्राह्मी का उपयोग त्वचा के लिए-

ब्राह्मी त्वचा के लिए बेहद अच्छा होता है। यह त्वचा की सेहत का ध्यान रखने का काम करता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट त्वचा संबंधित परेशानियों को दूर करता है। इसके साथ ही इसमें मौजूद एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल भी त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होता है। ब्राह्मी के तेल को त्वचा पर लगाने से फाइन लाइन, मुंहासे, झुर्रियों और एजिंग की समस्या दूर होती है। यह तेल त्वचा की लोच में सुधार करता है और इसकी नमी के स्तर को बनाए रखता है।

 
दर्द और सूजन में लाभप्रद-

ब्राह्मी में दर्द निवारक और एंटी-स्पास्मोडिक गुण मौजूद होते हैं। जो मांसपेशियों की ऐंठन और दर्द को दूर करने का काम करते हैं। इसलिए ब्राह्मी तेल से प्रभावित मांसपेशियों की मालिश करने से थकान का एहसास कम होता है और मांसपेशियां भी रिलैक्स फील करती हैं। इसके अतिरिक्त ब्राह्मी में पाए जाने वाला एंटीनोसिसेप्टिव गुण दर्द निवारक औषधि के रूप में काम करता है। इस गुण की वजह से ब्राह्मी को न्यूरोपैथिक दर्द की स्थिति में इलाज के रूप में प्रयोग किया जाता है।

 
श्वसन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद-

ब्राह्मी का अर्क (रस) एंटीऑक्सीडेंट और एडेप्टोजेनिक से समृद्ध होता है, जिसके प्रभाव से ब्राह्मी ब्रोंकाइटिस, साइनस और अस्थमा जैसी बीमारी को दूर करने में मदद करती है। ब्रोंकाइटिस में श्वासनली में जलन और सूजन होती है। जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। ब्राह्मी बंद नाक को खोलकर सांस लेने में होने वाली दिक्कतों को दूर करती है। यह लंग्स (फेंफडों) में ऑक्सीजन लेने की क्षमता में बढ़ोतरी करती है। इसके अलावा ब्राह्मी तेल के इस्तेमाल से श्वसन तंत्र की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। इसीलिए ब्राह्मी का प्रयोग इन्हेलर और जुखाम संबंधी दवाओं में किया जाता है।

 
विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में मददगार-

ब्राह्मी विषाक्त पदार्थों को खत्म करने के लिए शरीर की सहायता करती है। त्वचा से प्रदूषण के विषाक्त पदार्थ और गंदगी को हटाने के लिए ब्राह्मी तेल की मालिश एक अच्छा उपाय है। यह तेल डिटॉक्सिफायर और त्वचा क्लींजर के रूप में काम करता है।

 
प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में कारगर-

ब्राह्मी में एंटीऑक्सीडेंट और पर्याप्त मात्रा में मौजूद पोषक तत्व, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। इसके अलावा ब्राह्मी का अर्क (रस) या पत्तियों से बनी चाय एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि के रूप में काम करती है। यह बॉडी को ऑक्सीकरण से भी बचाता है। जिससे शरीर की इम्यूनिटी में सुधार होता है।

 
ब्राह्मी को किस रूप में उपयोग कर सकते हैं?
  • इसकी पत्तियों को पानी में उबाल कर काढ़े के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • ब्राह्मी की पत्तियों का लेप (पेस्ट) सूजन को कम करने में भी मदद करता है।
  • ब्राह्मी तेल को जोड़ों के दर्द एवं सिर दर्द में इस्तेमाल किया जाता है।
  • गर्दन और छाती पर लगाया जाने वाला ब्राह्मी की पत्तियों का लेप (पेस्ट) खांसी और निमोनिया में बहुत कारगर होता है।
  • ब्राह्मी की पत्तियों का रस बच्चों में दस्त से राहत देने के लिए चिकित्सक की देखरेख में दिया जाता है।
  • शहद युक्त ब्राह्मी की पत्तियों से बनी चाय पीने से दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ब्राह्मी का इस्तेमाल करते वक्त बरतें यह सावधानियां-
  • जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील है। उन लोगों को ब्राह्मी तेल का प्रयोग चेहरे और बालों पर पैच टेस्ट करने के बाद ही करना चाहिए। क्योंकि अधिक संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को इस तेल से एलर्जी की समस्या हो सकती है।
  • ब्राह्मी के अत्यधिक सेवन से दस्त के साथ ही पेट में ऐंठन और मतली जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।
  • गर्भवती महिला और गर्भवती होने के बारे में सोच रहीं महिलाओं को ब्राह्मी का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना चाहिए।
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Amaltas(Golden Shower Tree)- Benefits & Side-effects

Posted 20 December, 2021

Amaltas(Golden Shower Tree)- Benefits & Side-effects

Amaltas is a medium-sized tree that is found in the plains, lower Himalayan range, Vindhya mountains, and forests of the northeastern states. This tree is beautiful in appearance. It has green leaves and yellow flowers. Its fruit is long, round, and pointed. The botanical name of Amaltas is Cassia fistula, but in India, it is popularly known as Amaltas. It is also known by the names of Cassia, Golden Shower tree, Golden Rain Tree, etc.

This is one of those trees which has been used since ancient times for its medicinal properties. Its branches, bark, leaves, and fruits are all used as medicine. Therefore, Amaltas have great importance in Ayurveda.

 
Importance of Amaltas in Ayurveda

In Ayurveda, flowers, leaves, fruits, and bark are used to cure diseases. It effectively balances vata and pitta. Amaltas is used to cure constipation, cold, cough, fever, wounds, skin diseases, etc. The pulp of its fruit has a mild effect on the stomach. Therefore, weak people and pregnant women can use it as analgesics. In addition, it is also used in the symptoms of epilepsy, rheumatism, gout, etc.

It contains bioactive ingredients and strong purgative, anti-inflammatory, diuretic activity, antioxidants, antipyretic, astringent, carminative, antipruritic, and laxative properties.

 
Benefits of Amaltas
  • Amaltas helps in increasing the immunity of the body. For this, boil the bark or fruit and filter it. After that drink its juice.
  • Amaltas pulp is used to cure mouth ulcers. Blisters are cured quickly by sucking the pulp of Amaltas.
  • It is a very beneficial medicine for healing wounds. Grind its leaves and apply them to the wound with milk. This helps the wounds heal quickly.
  • Taking decoction(Kadha) of its root provides relief in fever.
  • It is a very useful herb for skin-related diseases. Grind its leaves and apply them to the affected area to get rid of ringworms and itching.
  • Amaltas is used on the skin due to the astringent properties. It causes contraction of cells which helps in tightening the pores. It also removes excess oil from the skin, preventing acne and pimples
  • Constipation is cured by taking Amaltas leaves mixed with black pepper and salt. This also improves digestion.
  • Its use is beneficial for stomach aches and pimples. Applying a paste of asafoetida and pulp on the navel of the baby provides relief in stomach ache, aphrodisia, and constipation.
  • Amaltas is beneficial in relieving joint pain and arthritis. Boil the powder of the root of Amaltas in milk and drink, it provides relief in arthritis and joint pains.
  • Make a decoction(Kadha) of the pulp of the fruit and take it, it reduces cough.
  • Amaltas is great for the treatment of urinary disorders like painful urination, urinary incontinence, and burning sensation while urinating.
Precautions and Side-effects of Amaltas
  • For people with hypersensitive skin, the paste of Amaltas leaves, bark, and fruit pulp should be mixed with honey, oil, or any other moisturizing cream before using.
  • Avoid the seeds of the flower as these are toxic. The flower should always be washed with cold water rather than hot water.
  • A person suffering from diarrhea should not take Amaltas.
  • Excessive intake of Amaltas can cause diarrhea.
  • Do not consume it in any kind of allergy.
  • Pregnant women should take Amaltas as per the consultation of a doctor.
  • It should also be avoided during breastfeeding.
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Achyranthes Aspera: An unwanted plant or a herb?

Posted 20 December, 2021

Achyranthes Aspera: An unwanted plant or a herb?

Achyranthes Aspera, known as Apamarg in Hindi, is an unwanted plant. It is found in empty places around houses, in forests, bushes, and other places. Most people consider it useless due to its unrecognized special identity. But in reality, Achyranthes Aspera is a useful herb.

The plant has immense capacity to treat various diseases due to its medicinal properties. Therefore, it is used in the treatment of diseases such as digestive disorders, dental problems, as well as curing wounds. Achyranthes Aspera is also known by the names Chirachira, Chirachita, Latjiira, and Chichra. 

 
What is Achyranthes Aspera (Chirchita)?

According to Ayurveda, Achyranthes Aspera is a medicinal herb. It possesses a very slow growth process. The plant sprouts during the rainy season thrive in winter and turn into a full-grown plant in summer. At the end of this season, this plant also turns dry along with fruits. It has rice-like seeds and the flowers have greenish pink buds.

Achyranthes Aspera is also called a kind of infamous plant due to its pointed seeds. These usually stick on clothes and are difficult to remove. These seeds, therefore, act as a shield for the protection of the plant. The herb is used for many ayurvedic medicines. Many other diseases including cough, urinary disease, skin disease are also treated with its use. Achyranthes Aspera is also used to detoxify the body.

 

There are two types of Achyranthes Aspera. These are-

 
White Achyranthes Aspera-

It has a green stalk and leaves of brown and white color.

Red or Blood Achyranthes Aspera-
 
It has a red-

colored stalk and leaves with red spores.

 
Advantages of Achyranthes Aspera

Achyranthes Aspera has numerous medicinal properties that help in curing all health-related problems. It contains triterpenoid saponin elements in which oleic acid is present as aglycone. Besides, chirchita also contains pentatriacontane, enchantine, betaine, tritriacontane, 6-pentatriacontane, and hexatriacontane. These are beneficial for the body in many ways.

 
Let us know about these benefits due to the ailment-
 
Helpful in losing weight-

Drinking Kadha made of chirchita regularly in the morning and evening keeps weight under control. Increased cholesterol in the body causes weight gain. Therefore, Achyranthes Aspera helps in reducing the increased cholesterol. Also, it reduces the fat stored in the body. As a result, the body weight starts decreasing gradually.

 
Effective in increasing blood of the body-

Achyranthes Aspera helps in increasing the amount of blood in the body. Lack of blood in the body is the cause of many diseases. Therefore, to avoid these diseases, it is essential to include chirchita paste or chirchita in the diet.

 
Help to cure asthma-

Achyranthes Aspera has healing properties for curing respiratory problems such as asthma. It reduces the difficulty in breathing by opening the airways. Therefore, regular consumption of Kadha made of the herb is beneficial for patients with asthma.

 
Beneficial in wound healing-

Achyranthes Aspera paste has the power to heal every type of injury and wound. Apart from this, the nutrients present in Chirachita also help in relieving the problem of vomiting and nausea. 

 
Beneficial in ear pain-

Latjira (Achyranthes Aspera) is used to cure ear infections and pain as well. For this, wash the fresh leaves of the unripe apamarg in clean water, then grind these leaves and extract the juice. Putting a few drops of this juice in the ear cures both ear infections and pain.

 
Useful for eyes-

Latjira (Achyranthes Aspera) is used to cure eye problems. For this, thoroughly clean the fresh root of Achyranthes Aspera and grind it with rose water and extract the juice. Now use this juice for eye infection. 

 
Beneficial in piles-

Achyranthes Aspera leaves are used to treat hemorrhoids. For this, first, wash the fresh leaves of the unripe in clean water. Now grind these leaves and prepare the paste. Mixing sesame oil in this paste and applying it to the affected area reduces bleeding and pain during piles.

 
Beneficial in diarrhea-

Grind a few dry leaves of Achyranthes Aspera and make powder. Taking this powder with sugar candy or honey twice a day provides relief in diarrhea. Apart from this, drinking two to three teaspoons of juice of its leaves after every three hours also helps in the treatment of diarrhea. 

 
Effective in toothache-

Immersing cotton in the juice of Achyranthes Aspera and applying it to the teeth reduces toothache. Toothache is also cured by brushing with the fresh root of apamarg. Along with this, teeth cleaning, weakness of gums, and smell of the mouth are also removed.

 
Some other advantages of Achyranthes Aspera-
  • Rinse and gargle with a Kadha made from the leaves of Achyranthes Aspera, it cures mouth and throat blisters.
  • Taking a decoction of Achyranthes Aspera mixed with water and taking bath can cure itching problems.
  • Grind the leaves of Achyranthes Aspera (Latjira) with ground black pepper and garlic and make tablets. Taking these pills ends cold and fever.
  • Grind the fresh root of Achyranthes Aspera and mix it in water and drink, it provides relief in stone problems.
Disadvantages of Achyranthes Aspera
  • Overdose (overdose) of Achyranthes Aspera may cause nausea and vomiting.
  • Pregnant and lactating women should avoid the intake of Achyranthes Aspera. It is not considered safe for them.
  • Achyranthes Aspera is hot in potency, so do not apply the paste of its leaves and roots directly on the skin. Apply it to the skin, use cold water or milk.
  • Children below the age of 12 years should not intake chirchita. If necessary, then only offer it in small quantities according to the consultation of a doctor.
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Ashoka tree- Medicinal Benefits, Uses and Side-effects

Posted 20 December, 2021

Ashoka tree- Medicinal Benefits, Uses and Side-effects

In Ayurveda, the Ashoka tree (Saraca asoca) is called Hempushp, or Tamrapallava. Although various parts of the Ashoka tree such as flowers, leaves, etc. are considered very beneficial for problems related to women. Due to its nutritious and healing properties, it is used as a medicine in Ayurveda for many diseases. Ashoka is a tree in which many qualities are found due to which it has been used for thousands of years to get rid of diseases and to remove physical suffering. It is quite beneficial mainly in gynecology, bleeding disorders, and urinary diseases. Ashoka's bark is astringent, dry, and cold in nature. Ashoka leaves are long, which is also known as Tamrapatra. Its flowers are beautiful and fragrant. Ashoka's bark, leaves, flowers, and seeds are used for medicine. Its bark contains compounds such as tannin, catechol, flammable oil, ketosteroid, glycosides, saponins, calcium, and iron.

Ashoka tree is considered sacred in India, Nepal, and Sri Lanka. In ancient times, Ashoka gardens were constructed to bring happiness and for this reason, the tree of Ashoka is also called Shokanash, Vishoka, Apashok, etc. Sanatani Vedic people in Hinduism consider this tree to be sacred and revered, but Buddhists also consider it special because it is said that Lord Buddha was born under the Ashoka tree.

 
Benefits of Ashoka tree
Benefits of Ashoka leaf in menstrual disorders-

Ashoka is used for removing various gynecological problems and to treat menstrual disorders in women. It acts as a tonic for the uterine muscles and the endometrium. In the problem of excessive bleeding at the time of menstruation, making a decoction(Kadha) of Ashoka's bark and drinking it is very beneficial. With its use, menstruation will become regular.

 
Ashoka extracts strengthens the uterus-

In case of problems like infertility, uterine weakness, hormonal imbalance, stomach disease, and pelvic pain, take Ashokarishta because Ashokarishta is made from extracts of Ashoka.

 
Medicinal properties of Ashoka provide relief in Leucorrhoea-

If anyone has problems with white water or leucorrhoea, then take 1 teaspoon of Ashoka's bark powder twice a day with cow's milk. Consuming it will get rid of these problems.

 
Ashoka tree removes swelling-

Drink Ashoka's bark decoction twice daily for a week when the testicles are swollen. The swelling of the testicles is reduced by its use.

 
Relief from stomach ache with decoction of Ashoka's bark-

If there is a problem with a stomach ache, then make the decoction(Kadha) of Ashoka's bark by boiling it in water and drinking it twice daily. This will relieve stomach pain.

 
Benefits of Ashoka seed in stone problem-

If there is a problem with stones in the kidneys, then grind Ashoka seeds and consume 5-10 grams daily with cold water. With this, you will get rid of the stone problems.

 
Ashoka seeds are beneficial in respiratory diseases-

If someone has a problem with respiratory disease, keep 65 milligrams of Ashoka's seeds powder in a betel leaf and consume it. With this, you will get rid of respiratory disease within a few days.

 
Benefits of Ashoka tree in the problem of abnormal vaginal bleeding-

If someone has problems related to blood circulation, abnormal vaginal bleeding, urination, then make a decoction of Ashoka's bark and drink it twice a day. Its use will get rid of these problems.

 
Uses of Ashoka tree
  • Ashoka's bark, flowers, and seeds have various medicinal uses.
  • Its bark is used to cure cholelithiasis, vaginal discharge, irritation.
  • The bark of the Ashoka tree trunk is also used to cure abdominal pain, dysentery, indigestion, hemorrhoids, ulcers, and uterine problems.
  • Its bark is also used to brighten skin complexion.
  • Flowers of the Ashoka tree are grinded and used for blood dysentery, diabetes, syphilis, and uterine tonic.
  • Its fruits are chewed as an alternative to betel nut.
  • The Ashoka tree is considered sacred and, therefore, is planted near temples.
  • A decoction (Kadha) of the bark of this plant is given in milk from the fourth day of menstruation until the bleeding stops.
  • Its bark is used in cases of internal bleeding.
Side-effects of Ashoka tree

Adequate use of Ashoka or used as medicine does not have any detrimental effect on the body but its excessive use further worsens the problem of amenorrhoea, which is the absence of menstruation.

  • Due to insufficient evidence of the effectiveness of Ashoka trees on pregnant women, they should not use them as it could be harmful to them.
  • A patient with heart disease must consult a medical practitioner before consuming this herb.
Where is the Ashoka tree found?

Ashoka trees are planted in gardens everywhere in India for beautification. These trees are found in the western peninsula at an altitude of 750m, mainly in eastern Bengal, Bihar, Uttarakhand, Karnataka, and Maharashtra, usually along the banks of canals and in evergreen forests.

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