हल्दी एक जड़ी-बूटी है। इसका पौधा 5 से 6 फुट का होता है, जिसकी जड़ों की गांठों से हल्दी मिलती है। इसमें बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में इसको उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है। त्वचा की रंगत निखारने से लेकर दर्द से राहत दिलाने तक, बहुत सी बीमारियों में यह बहुत मददगार होती है। सर्दी-खांसी के लिए इसे रामबाण ईलाज माना जाता है।
भारत में इसका प्रयोग प्रमुख तौर पर मसाले के रुप में किया जाता है। यह खाने का स्वाद और रंग बढ़ाती है। साथ में इम्यूनिटी बूस्टर ( रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाला ) होने के कारण यह बहुत से रोगों से बचाने का काम करती है। इसका वैज्ञानिक नाम कुरकुमा लोंगा ( Curcuma longa Linn ) है। हिंदू धर्म में इसे मंगलदायक तथा शुभ माना जाता है। इसी कारण हर पूजा जैसे शुभ कार्यों में इसका उपयोग होता है।
आयुर्वेद में हल्दी का महत्त्व-
आयुर्वेद के अनुसार हल्दी एक बेहद गुणकारी जड़ी-बूटी है। इसमें अनेक औषधीय गुण होते हैं जिनमें एंटी-इन्फ्लेमेटरी (जलन विरोधी), एंटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, कार्डियोप्रोटेक्टिव (हृदय को स्वस्थ रखने वाला गुण), हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर स्वस्थ रखने वाला गुण) और नेफ्रोप्रोटेक्टिव (किडनी स्वस्थ रखने वाला गुण) गुण प्रमुख हैं।
यह शरीर की संरचना के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसमें प्रोटीन, आयरन, फाइबर, नियासिन, कैल्शियम, तांबा, विटामिन-ई, पोटेशियम, मैग्नीशियम और जस्ता आदि गुण भी भरपूर मात्रा में होते हैं। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में इसको हरिद्रा, वरवर्णिनी, कुरकुमा, लौंगा, गौरी, क्रिमिघ्ना, योशितप्रिया, हरदल आदि नाम दिये गये हैं।
धार्मिक दृष्टि से हल्दी का महत्त्व-
धार्मिक कार्यों में भी इसका बेहद खास महत्व है। यह एक ऐसी औषधि है, जिसमें कई प्रकार के दैवीय गुण होते हैं। धार्मिक दृष्टि से हल्दी को घर में शुभ और मंगल लाने वाला कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि इसके प्रयोग से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक संपन्नता आती है। इसके अलावा हल्दी नकारात्मक उर्जा को भी खत्म करने का काम करती है।
हल्दी के औषधीय गुण;
हड्डियों के रोग को दूर करने में कारगर-
हल्दी के उपयोग से हड्डियों के विभिन्न रोग, गठिया, वात आदि दूर होते हैं। रोजाना दूध में इसे मिलाकर पीने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिलता और शरीर गर्म बना रहता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस ( हड्डी का रोग ) के मरीजों को राहत देता है। रियूमेटॉइड ( सूजन संबंधित विकार) गठिया के कारण उत्पन्न सूजन के उपचार में भी इसका उपयोग किया जाता है।
मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-
कच्ची हल्दी में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है, जो मधुमेह के रोगी के लिये अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा यह शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करती है।
सांस संबंधित रोगों के उपचार में लाभदायक-
हल्दी के ताजे राइजोम (पौधे का तने वाला हिस्सा) को कुकर खांसी या काली खांसी (Whooping cough) के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसमें वाष्पशील तेल (volatile oil) पाया जाता है, जो ब्रोंकियल अस्थमा (श्वास दमा) बीमारी के ईलाज में भी अत्यन्त उपयोगी होता हैं ।
पाचन-संबंधित समस्याओं में मददगार-
यह पाचन शक्ति को दुरुस्त कर पेट में बनने वाली गैस को खत्म करती है। साथ ही पेट में होने वाली मरोड़ को भी ठीक करती है।
मूत्रीय विकार में सहायक-
विभिन्न मूत्रीय संक्रमणों के उपचार में इसके राइजोम (पौधे का तने वाला हिस्सा) का प्रयोग किया जाता है। किड़नी की पथरी के उपचार में भी हल्दी सहायक होती है।
कैन्सररोधी गुण-
आयुर्वेद के अनुसार कच्ची हल्दी में कैंसर से लड़ने के पर्याप्त गुण होते हैं।इसमें मौजूद तत्व कैंसर कोशिकाओं से डी.एन.ए. को बचाते हैं और साथ ही कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करते हैं।
बैक्टीरियारोधी, फंगसरोधी व सूक्ष्मजीवी रोधी गुण –
हल्दी को लेकर किए गए विभिन्न शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, पैथोजेनिक (रोगजनक) फंजाई एवं पैरासाइट्स (परजीवी) की वृद्धि को रोकती है।
फोटोप्रोटेक्टर गुण-
यह गुण इसके ऑक्सीकरणरोधी (ANTIOXIDANT) गुण के कारण ही मिलता है। यह सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलट- बीटा किरणों से त्वचा को बचाने में बहुत प्रभावशाली है। गामा-किरणों (रेडियोधर्मी परमाणुओं और परमाणु विस्फोटों द्वारा उत्पन्न) से होने वाली हानि के बचाव में भी यह बहुत लाभदायक होती है।
कृमिनाशक गुण-
हल्दी को कृमिहरा या कृमिनाशक (आंतों के कीड़ों को मारने वाला गुण) भी कहा जाता है। इसके जूस में कृमिनाशक गुण होता है। नेपाल के ग्रामीण इलाकों में हल्दी के पाउडर या पेस्ट को पानी में हल्के नमक के साथ उबालते हैं तथा इस जूस को कृमिनाशक औषधि के रूप में सेवन किया जाता है।
इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में हल्दी-
विशेषज्ञों के मुताबिक, हल्दी का नियमित सेवन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने में बहुत सहायक है। इसमें लिपो पॉलीसेकेराइड (एंडोटॉक्सिन) नामक एक पदार्थ पाया जाता है। जिसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और एंटी-फंगल एजेंट होते हैं, जो हमारी इम्यूनिटी को बूस्ट करते हैं। इसके अलावाइसका महत्वपूर्ण घटक करक्यूमिन एंटी-इन्फ्लेमेटरी (जलन विरोधी) गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट (रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाले एजेंट) की तरह भी काम कर सकता है। इतना ही नहीं यह टी.वी. एवं बी-सेल्स (श्वेत रक्त कोशिकाएं) जैसे विभिन्न इम्यून सेल्स की कार्यप्रणाली को भी बेहतर बनाता है। जिससे शरीर कई तरह की बीमारियों जैसे- एलर्जी, सर्दी-खांसी, मधुमेह, अस्थमा और हृदय रोग से लड़ पाता है।
सौंदर्य वर्धक प्रसाधन के रूप में हल्दी-
हल्दी सौंदर्य को बढ़ाने वाले ब्यूटी प्रोडक्ट्स के रूप में भी अत्यंत उपयोगी है। प्राचीन काल से ही भारतीय महिलाएं इसका प्रयोग त्वचा की रंगत निखारने के लिए करती आई हैं।इसमें ऐसे तत्व होते हैं जो खून को साफ करते हैं, रंग-रूप को निखारते हैं और त्वचा को गोरा व कांतिमान बनाते हैं। भारतीय वैवाहिक समारोहों में भी वर-वधू के सौन्दर्य को निखारने के लिये हल्दी का पेस्ट लगाया जाता है।
कितने प्रकार की होती है हल्दी?
गांठ के रंग, आकर और गुण के आधार पर इसकी कई प्रजातियां (types or species) पाई जाती हैं। जिनमें से निम्नलिखित चार प्रजातियों का प्रयोग मुख्य रूप से चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।
कुरकुमा लोंगा (Curcuma longa) –
कुरकुमा लोंगा हल्दी की आम तौर पर पाई जाने वाली प्रजाति है, जो खास तौर से मसाले और औषधियों में उपयोग की जाती है। इस प्रजाति की हल्दी के पौधे 60-90 सेमी तक ऊंचे होते हैं और इसका रंग अंदर से लाल या पीला होता है।
कुरकुमा अरोमैटिका (Curcuma aromatica) –
कुरकुमा अरोमैटिका को प्राकृतिक जंगली हल्दी के रूप में जाना जाता है और इसे जंगली हल्दी भी कहते हैं। इसका उपयोग कई प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन के उत्पाद (ब्यूटी प्रॉडक्ट्स) बनाने के लिए होता है।
कुरकुमा अमाडा (Curcuma amada) –
कुरकुमा अमाडा हल्दी की गांठो में आम जैसी सुगंध होती हैं। इसलिए इसे आमा या आम्बा हल्दी कहते हैं। सुगंधित होने के कारण इसे चटनी आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है। मिठाईयों में आम की गन्ध लाने के लिए इसके अर्क (रस) का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त आम्बा हल्दी को गुम चोट का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है।
कुरकुमा केसिया (Curcuma caesia) –
कुरकुमा केसिया को काली हल्दी कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस हल्दी में चमत्कारिक गुण होते हैं। काली हल्दी का उपयोग कैंसर जैसी कई प्रकार की दवाइयां बनाने में होता है। इसलिए विदेश में यह बहुत अधिक दामों पर बिकती है। इस का उपयोग उपचार के साथ-साथ ज्योतिष और तंत्र विद्या में भी किया जाता है।
दैनिक जीवन में हल्दी का उपयोग-
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हल्दी-दूध का सेवन करना शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है, जो इम्यूनिटी बढ़ाकर शरीर को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाता है।
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ग्रीन सलाद पर भी थोड़ी सी हल्दी डाली जाती है, जिससे सलाद के पौष्टिक तत्व बढ़ते हैं।
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रंगत निखारने के लिए इसका उपयोग घरेलू फेस पैक की तरह किया जा सकता है।
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हेयर मास्क के रूप में भी बालों में इसको लगाया जाता है जिससे बाल स्वस्थ्य बनते हैं।
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सूप में थोड़ा इसे मिलाकर उसे अधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है।
हल्दी के नुकसान-
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हल्दी का अत्यधिक सेवन साइड इफेक्ट का कारण बन सकता है। इसमें ऑक्सालेट (ऑर्गेनिक एसिड) पाया जाता है। जिससे किडनी स्टोन की समस्या पैदा हो सकती है।
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आवश्यकता से अधिक इसका सेवन पेट संबंधी समस्याएं जैसे– गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (Gastrointestinal problems) आदि को जन्म देता है।
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हल्दी का सेवन ज्यादा करने से शरीर में आयरन की कमी हो सकती है, जिससे एनीमिया रोग का खतरा बढ़ जाता है।
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हल्दी का अधिक सेवन सिरदर्द और त्वचा पर रैशेज की समस्या का कारण भी हो सकती है।