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जानें, क्या हैं अजवाइन के फायदे और नुकसान

Posted 25 May, 2022

जानें, क्या हैं अजवाइन के फायदे और नुकसान

सभी घरों में खाने का जायका बढ़ाने के लिए अजवाइन का इस्तेमाल किया जाता है। इसका प्रयोग घरो में मसाले, चूर्ण, काढ़े और पानी के रूप में किया जाता है। यह स्वास्थ्य को ठीक रखने में भी मदद करती है। इसलिए आयुर्वेद में इसको उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है।

 

क्या है अजवाइन

यह एक प्रकार का मसाला है। जो जीरा और सौंफ परिवार से संबंधित है। इसका पौधा हरे रंग का होता है। जिसकी पत्तियां पंख के समान और बीज अंडाकार होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ट्रेकिस्पर्मम अम्मी (Trachyspermum ammi) है। यह स्वाद में कड़वी और तीखी होती है। इसे तमिल में ओमम, कन्नड़ में ओम कलुगलु, तेलुगु में वामु और मलयालम में अयोधमकम व हिंदी में अजवाइन के नाम से जाना जाता है।

 

आयुर्वेद में अजवाइन का महत्व-

 

इसमें थाइमोल, सक्रीय एन्ज़ाइम्स जैसे कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। जो पेट संबंधित बीमारियों में बेहद लाभदायक होते हैं। इसका सेवन करने से पेट दर्द, गैस, उल्‍टी, खट्टी डकार और एसिडिटी में आराम मिलता है। साथ ही यह वजन घटाने में भी मदद करती है। इसलिए रसोईघर के अलावा आयुर्वेद में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

 

अजवाइन के फायदे;

 

गैस की समस्या दूर करे-

 

इसमें थाइमोल की मात्रा ज्यादा होती है। जो गैस्टिक रस के स्राव को बढ़ाता है। साथ ही भोजन को बेहतर तरीके से अवशोषित करने में सहायता करता है। जिसके कारण मल को त्यागने में आसानी होता है। परिणामस्वरूप कब्ज की समस्या में आराम मिलता है।

 

गर्भावस्था में फायदेमंद-

 

मुख्य रूप से अजवाइन गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद होती है। क्योंकि इस समय शरीर के हार्मोन्स में बदलाव होता है और गर्भाशय के कारण पाचन धीमा हो जाता है। जिससे पेट फूलना, आहार नली में गैस बनने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में अजवाइन का सेवन करना लाभदायक होता है। क्योंकि इसमें मौजूद सक्रीय एंजाइम पाचन गतिविधि में वृद्धि करते हैं। साथ ही आंत संबंधित समस्याओं को भी दूर करते हैं। 

 

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक-

 

अजवाइन का उपयोग बढ़ते कोलेस्ट्रॉल को कम करने में किया जाता है। इसके बीज में एंटीहाइपरलिपिडेमिक गुण पाया जाता है। जो शरीर के खराब कोलेस्ट्रोल (एलडीएल), ट्राइग्लिसराइड्स और टोटल लिपिड को कम करने में मदद करता है।

 

अस्थमा में लाभदायक-

 

एनसीबीआई की रिसर्च के अनुसार, अजवाइन में एंटीअस्थमा प्रभाव होता है। जो श्वसन प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और अस्थमा जैसी समस्याओं को कम करता है।

 

वायरल इन्फेक्शन में फायदेमंद-

 

अजवाइन में अधिक मात्रा में थाइमोल होता है। जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को भी बढ़ाने का काम करता है। जिससे जुकाम, फ्लू और अन्य वायरल इन्फेक्शन दूर होते हैं। इसलिए थाइमोल को अजवाइन का एंटीबैक्टीरियल गुण भी कहा जाता है।

 

कान के दर्द में लाभप्रद-

 

अजवाइन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीइंफ्लेमेंटरी यौगिक तत्व होते हैं। जो कान में इकट्ठे जमाव को हटाने में सहायता करते हैं। साथ ही अजवाइन में एंटीसेप्टिक गुण भी होता है। जो फूंसी-फोड़े के कारण होने वाले दर्द में राहत प्रदान करता है। 

 

स्तनपान के लिए फायदेमंद-

 

प्रसव (डिलीवरी) के बाद कुछ महिलाओं के स्तनों में ठीक तरह से दूध नहीं बन पाता है। जिस वजह से शिशु को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता। इस स्थिति में स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अजवाइन का सेवन करना अच्छा होता है। क्योंकि अजवाइन दूध स्राव को बेहतर करने में सहायता करती है।

 

उल्टी में लाभदायक-

 

उल्टी और मितली की समस्या होने पर अजवाइन का सेवन करना एक बेहतर विकल्प है। इससे उल्टी और मितली में आराम मिलता है।

 

जोड़ो के दर्द को कम करने में कारगर-

 

अजवाइन में मुख्यतः एंटीइंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। जो जोड़ों और गठिया दर्द को कम करने का काम करते हैं।

 

अजवाइन के नुकसान-

 
  • तासीर से गर्म होने के कारण कभी-कभी यह स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा कर देती है। इसलिए गर्मियों के मौसम में इसका सेवन कम से कम मात्रा में करें।
  • इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है। इसलिए अजवाइन का अधिक सेवन करने से पेट में गैस, मरोड़, पेट की सूजन (पेट फूलना) और एसिडिटी जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती हैं।
  • पेट में अल्सर, आतंरिक रक्तस्राव, अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis) से पीड़ित लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
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जानें, अलसी के औषधीय गुण और उपयोग के बारे में

Posted 25 May, 2022

जानें, अलसी के औषधीय गुण और उपयोग के बारे में

 

अलसी के औषधीय गुण – घर में बनने वाले कई प्रकार के खाद्य पदार्थों में अलसी का इस्तेमाल किया जाता है। अलसी के छोटे-छोटे बीजों में बहुत से ऐसे गुण और पोषक तत्व होते हैं, जो कई गंभीर बीमारियों से आराम दिलाने में सहायता करते हैं। जिस कारण अलसी को आयुर्वेद में उत्तम दर्जे की औषधि माना जाता है।

 

क्या है अलसी और ये कहां पाया जाता है?

अलसी के औषधीय गुण – अलसी मुख्य रूप से समशीतोष्ण (सामान्य तापमान वाले) जगह पर पाए जाने वाला एक रेशायुक्त पौधा हैं। जिसे “तीसी” के नाम से भी जाना जाता है। इसके बीजों का प्रयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है।

 

जो शरीर की सूजन, गठिया दर्द और कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। अलसी की पैदावार मुख्य रूप से भारत ,अर्जेंटीना, अमेरिका आदि देशों में होती है। मेडिकल साइंस के अनुसार, अलसी ओमेगा-3 फैटी एसिड का सबसे बड़ा स्रोत है। जो शरीर के लिए बेहद जरूरी होता है। अलसी को अंग्रेजी में फ्लैक्स सीड्स (Flax seeds) कहते है।

 

आयुर्वेद में अलसी का महत्व-

 

आयुर्वेद में अलसी को सुपरफूड कहा जाता है। क्योंकि इसमें एंटीफंगल, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीडायबिटिक, उच्चरक्तचापरोधी (Antihypertensive), एंटीट्यूमर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने वाले गुण पाए जाते हैं। आमतौर पर आयुर्वेद में अलसी के बीज, तेल, पाउडर और आटे का प्रयोग किया जाता है। अलसी का सेवन करना सांस, कंठ (गला), कफ, पाचन रोग आदि बीमारियों में फायेदा करता हैं।

 

अलसी के प्रकार–

 

अलसी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। पहली भूरी अलसी और दूसरी पीली या सुनहरी अलसी। अलसी के इन दोनों प्रकारों में ओमेगा-3 फैटी एसिड और पोषक तत्व बराबर मात्रा में पाए जाते हैं

 

क्या हैं अलसी के फायदे?

 

अलसी निम्नलिखित बिमारियों में लाभदायक होती है-

 

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक–

 

एनसीबीआई के शोध के मुताबिक अलसी शरीर से बैड कोलेस्ट्रॉल (LDL) और ब्लॉकेज को निकालकर ह्रदय संबंधी रोगों की संभावना को कम करती हैं। साथ ही यह गुड कोलेस्ट्रॉल (HDL) के स्तर को बढ़ाती है।   

 

हृदय के लिए फायदेमंद–

 

अलसी हृदय की नसों में पैदा होने वाले अवरोध (Atherosclerosis) को कम करके हृदय को स्वस्थ रखने का काम करती है। अलसी में एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) गुण पाए जाते हैं, जो शरीर के हार्मोन को नियंत्रित करते हैं। साथ ही कोशिकाओं को भी स्वस्थ रखने में सहायक करते हैं।

 

डायबिटीज में पहुंचाए राहत–

 

अलसी में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने वाला प्रभाव मौजूद होता है। दरअसल अलसी में मौजूद फाइबर और म्यूसिलेज (गोंद जैसा पदार्थ) शरीर में इन्सुलिन की मात्रा को नियंत्रित करता है। जिससे शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा कम होती है। परिणामस्वरूप डायबिटीज (मधुमेह) की समस्या ठीक होने लगती है।

 

पाचन में सहायक-

 

अलसी में घुलनशील फाइबर होता है, जो आंतों और पाचन-क्रिया में बेहद लाभदायक होता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार अलसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल मोटिलिटी (gastrointestinal -motility) में भी सहायक होती है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल मोटिलिटी वह प्रक्रिया है, जिसके तहत खाद्य पदार्थ संपूर्ण पाचन प्रक्रिया से होकर गुजरता है।

 

कब्ज में असरदार–

 

अलसी में भरपूर मात्रा में फाइबर मौजूद होता है, जो मल को ढिला करके कब्ज की समस्या निजात दिलाता है। इसलिए कब्ज की समस्या में अलसी एक बेहतर विकल्प है।

 

बालों को स्वस्थ रखने में सहायक–

 

अलसी का तेल बालों को मजबूती और विकास प्रदान करता है। साथ ही गंजापन और बाल झड़ने की समस्या को कम करता है। इसलिए बालों के लिए अलसी का उपयोग करना लाभदायक होता है।

 

ब्लड प्रेशर के नियंत्रण में कारगर–

 

अलसी में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड और फाइबर संयुक्त रूप से ब्लड प्रेशर को कम करने में सहायक करते हैं।

 

क्या हैं अलसी के दुष्प्रभाव?

 

निम्नलिखित परिस्थितियों में अलसी का प्रयोग निषेध हैं;

 
  • अलसी में ब्लड प्रेशर को कम करने वाला प्रभाव पाया जाता है। इसलिए लो ब्लड प्रेशर वाले मरीजों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • अलसी डायबिटीज (मधुमेह) को कम करती है। इसलिए लो ब्लड शुगर वाले लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए हैं।
  • ओमेगा-3 फैटी एसिड होने के कारण अलसी खून जमने की प्रक्रिया को धीमा करती है। इसलिए खून को पतला करने वाली दवाओं के साथ अलसी का सेवन चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
 
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Evidence based Health Benefits of Cinnamon

Posted 21 December, 2021

Evidence based Health Benefits of Cinnamon

Cinnamon (Cinnamomum Verum), popularly known as Dalchini in Hindi, is a popular condiment. It is easily accessible in every household due to its aroma and flavour. It is a great taste enhancer. The spice is great not only in adding flavour to the food but also has health benefits.

 

This ingredient is used traditionally for a variety of purposes. In this blog, we will know about the uses, health benefits, as well as side effects of Cinnamon.

 

What is it?

 

Cinnamon consists of the dried inner bark. It is brown in colour and has a warm sweet flavour and delicately fragrant aroma. 

 

Dalchini is used as a flavouring agent. It is used in a variety of foods, from confections to curries to beverages. It is also a popular ingredient in bakery goods in many places. The essential oil, distilled from its bark fragments, is used in food, liqueur, perfume, and drugs.

 

Cinnamon is used in several forms:

 
  • Used as supplements in the form of Capsules.
  • As spice for foods and beverages.
  • Used as oil for scent and flavour.

Types of Cinnamon

 

There are five types of Cinnamon:

 
  • True cinnamon or Ceylon cinnamon (Cinnamomum zeylanicum)
  • Indonesian cinnamon (Cinnamomum burmanni)
  • Vietnamese cinnamon (Cinnamomum Loureiro)
  • Cassia cinnamon or Chinese cinnamon (Cinnamomum aromaticum)
  • Malabar cinnamon (C. citriodorum)

Importance of Cinnamon in Ayurveda

 

In Ayurveda, Cinnamon is a prized and valuable ingredient.  Extensively used in the holistic treatments of Siddha, Unani, and Ayurveda. Due to its healing powers, it is a major ingredient used in ancient Chinese remedies.

 

The pungency and warmth of Dalchini are used for balancing both the Kapha and Vata doshas. Ayurveda considers dalchini as a provider of warmth and balanced stimulation for digestion, circulation of blood, mood, and sex drive.

 

Benefits of Dalchini

 

Manages Diabetes

 

Cinnamon is highly significant in ancient ayurvedic treatments. It is great for managing type-2 Diabetes as it regulates the production of insulin. It also reduces the insulin-resistance by the body, which further reduces the blood glucose level. 

 

Adding a pinch of Dalchini regularly to your diet can result in improved levels of your glycaemic level.

 

Coronary Artery Disease

The antioxidant properties of dalchini help in lowering the risk of narrowing of arteries. It also has anti-inflammatory property that regulates high blood pressure by providing relaxation to the narrowed blood vessels. This also helps in reducing the risk of coronary artery disease.

 

Relieves Cough and Cold

The penetrating of the spice removes the mucus ( imbalanced Kapha) from the body. The oil or powder extracted from the bark exhibits potent antitubercular activity. It is extremely beneficial for relieving cold, cough, and headache. It is also a useful remedy for asthma and tuberculosis.

 

Consuming Kadha made of Dalchini mixed with a few drops of honey and ginger juice twice or thrice a day would help clear the congestion of the throat.

 

Improves Digestion

Cinnamon has hot potency, which makes it a natural digestive. The bark of dalchini in powdered form boosts digestion. It also relieves in flatulence, abdominal pain, diarrhoea, dyspepsia, irritable bowel syndrome. It improves liver function as well. 

 

Sprinkling it to everyday foods removes AMA (toxic remains in the body due to improper digestion) from the body. It also improves the absorption of nutrients and also helps in burning belly fat.

 

Relieves Nasal Allergies

An allergy occurs as a result of an accumulation of toxins in the body due to improper digestion. Dalchini provides relief in symptoms of allergy when consumed with honey.

 

Dalchini prevents the formation of toxins due to its hot potency and also helps in balancing Kapha.  

 

Freshen Your Breath

The taste of dalchini freshens the breath. It also used in many commercial products. The natural anti-microbial properties also help in cleansing the mouth, which removes bad breath. Applying a pinch of cinnamon powder also cures toothache.

 

Side effects of Dalchini

 

Cinnamon is great in limited quantities, but when someone is allergic to it, it can cause several side effects too.  The side effects with overconsumption of Dalchini are-

 
  • Diarrhoea
  • Vomiting
  • Dizziness
  • Drowsiness
  • Inflammation

Where to find Cinnamon?

 

For better cinnamon production, It requires land with pure sand, sheltered and receiving constant rain. It also prefers heat with little temperature variation.

 

Dalchini cultivates in the part of the Western Ghats majorly in Kerala and Tamil Nadu. It is also native to Sri Lanka(formerly known as Ceylon).

 

It also cultivated in countries like West Indies as well as South America.

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अमलतास के फायदें और नुकसान

Posted 25 May, 2022

अमलतास के फायदें और नुकसान

अमलतास-प्राचीनकाल से ही कई ऐसे पेड़-पौधों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसमें अमलतास भी एक ऐसा पौधा है, जिसकी शाखा, छाल, पत्तियां और फलों को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसलिए इसको आयुर्वेद में विशेष दर्जा दिया गया है। 

 
अमलतास क्या है और यह कहां पाया जाता है?

अमलतास मध्यम आकार का पेड़ है। जो मैदानी भागों, निचले हिमालय श्रृंखला, विंध्य पर्वत तथा पूर्वोत्तर राज्यों के जंगलो में पाया जाता है। यह पेड़ दिखने में बहुत सुन्दर होता है। इसके हरे रंग के पत्ते और गहरे पीले रंग के फूल होते हैं। इसका फल लंबा, गोल और नुकीला होता है। इसका वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टूला है। पर भारत में यह अमलतास के नाम से ही प्रचलित है। देश-विदेश में इसे कैसिया, गोल्डन शावर, आदि नामों से जाना जाता है।  

 
आयुर्वेद में अमलतास का महत्व

आयुर्वेद में इसके फूल, पत्ते, फल और इसकी छाल का उपयोग रोगो को ठीक करने में किया जाता है। अमलतास (Amalatas) का उपयोग कब्ज, सर्दी, जुकाम, खासी, बुखार, घाव, त्वचा रोग आदि को ठीक करने में किया जाता है। इसके फल के गूदे का आमाशय के ऊपर मृदु प्रभाव पड़ता है। इसलिए कमजोर लोगों तथा गर्भवती स्त्रियों को विरेचक औषधि के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही अफारा (पेट फूलना), मुंह में पानी आना आदि लक्षणों में भी इसका उपयोग किया जाता है।

 
अमलतास के फायदें;
  • अमलतास शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायता करता है। इसलिए इसके छाल या फल को उबालकर छान लें। उसके बाद इसके रस का सेवन करें।
  • इसके गूदे का उपयोग मुंह के छालों को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसके गूदे को मुंह में रख कर चूसने से छाले जल्दी ठीक होते हैं।
  • यह घावों को भरने के लिए बहुत ही फायदेमंद औषधि है। इसके पत्ते को पीसकर दूध के साथ घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
  • इसकी जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से बुखार में राहत मिलती है।
  • यह त्वचा संबंधित रोगों के लिए बहुत ही उपयोगी जड़ी-बूटी है। इसके पत्ते को पीसकर प्रभावित जगह पर लगाने से दाद, खाज, खुजली से छुटकारा मिलता है।
  • अमलतास के पत्ते को काली मिर्च और नमक के साथ मिलाकर सेवन करने से कब्ज ठीक होती है। साथ ही पाचन क्रिया में भी सुधार होता है।
  • इसका प्रयोग छोटे बच्चों के पेट दर्द और अफारे की समस्या के लिए फायदेमंद होता है। हींग और अमलतास के गूदे का लेप बनाकर शिशु के नाभि पर लगाने से पेट दर्द, आफरे और कब्ज की समस्या में आराम मिलता है।
  • यह जोड़ों के दर्द और गठिया की समस्या को दूर करने में फायदेमंद होता है। इसके जड़ के चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से गठिया और जॉइंट पेन में आराम मिलता है।
  • अमलतास के फल के गूदे का काढ़ा बनाकर पीने से खांसी कम होती है।
अमलतास के नुकसान;
  • डायरिया से पीड़ित व्यक्ति को इसका सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • अमलतास का अधिक सेवन करने से दस्त की समस्या हो सकती है ।
  • किसी भी प्रकार के एलर्जी की समस्या इसका सेवन न करें।
  • गर्भवती महिलाएं इसका सेवन चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
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आयुर्वेद में अभ्रक का महत्व और फायदे

Posted 21 December, 2021

आयुर्वेद में अभ्रक का महत्व और फायदे

अभ्रक का परिचय
 

अभ्रक भस्म एक खनिज पदार्थ है। यह काले, भूरे और सफेद रंग का होता है। आयुर्वेद में अभ्रक भस्म का काफी महत्व है। इसके अलावा कई उद्योगों में भी अभ्रक का प्रयोग किया जाता है। इसलिए सदैव अभ्रक के शुद्ध रूप को ही औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। औषधि के लिए मुख्य रूप से काले रंग के अभ्रक को इस्तेमाल में लाया जाता है। क्योंकि इसे उत्तम दर्जे का अभ्रक माना जाता है। जिसे “वज्र अभ्रक” भी कहते हैं। इस अभ्रक में आयरन के गुण होते हैं। जिससे विभिन्न रोगों का उपचार होता है।

 
आयुर्वेद में अभ्रक भस्म का महत्व

आयुर्वेद में अभ्रक भस्म को प्राचीन दवा माना गया है। अभ्रक को अकेले या किसी दूसरे घटक के साथ प्रयोग में लाने से कई बीमारियों का नाश होता है। विशेषकर कफ संबंधी बीमारी, पेट संबंधी बीमारी, नसों की समस्या और पुरुषों के विकार आदि में अभ्रक बेहद लाभदायक होता है। इसके अतिरिक्त यह मधुमेह (डायबिटीज), कुष्ठ (लेप्रोसी), क्षय रोग (टीबी), लीवर की समस्या, हृदय रोग, वीर्यपात, नपुंसकता आदि में भी फायदा करता है। अभ्रक भस्म का सेवन करने से शरीर में आयरन की भी आपूर्ति होती है।

 
अभ्रक भस्म के फायदे–
 
  • अभ्रक के सेवन से शरीर मजबूत और शक्तिशाली बनता है।
  • यह एनीमिया (खून की कमी) को दूर करता है और रक्त धातु (Blood metal) को पोषित करता है।
  • अभ्रक लीवर संबंधी रोगों को दूर करता है।
  • इसके प्रयोग से कफ रोग ठीक होते हैं।
  • अभ्रक लेप्रोसी जैसे त्वचा संबंधी रोगों में आराम करता है।
  • डायबिटीज और रक्तचाप को बढ़ने से रोकने में अभ्रक लाभदायक है।
  • यह मूत्रघात और पथरी की समस्याओं के लिए एक लाभप्रद औषधि है।
  • इससे टीबी (क्षय रोग) और बवासीर जैसी बीमारियों का निवारण करता है।
  • अभ्रक शुक्राणुओं (वीर्य) की संख्या बढ़ाने में कारगर है।
  • इसके प्रयोग से शरीर में लोहे (आयरन) की कमी पूरी होती है।
  • अभ्रक से पुरानी खांसी और दमा जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।
  • यह पीलिया और नकसीर आदि समस्याओं में आराम करता है।
  • इससे पेट संबंधी दिक्कतों में आराम मिलता है।
  • यह आंखों की रोशनी बढ़ाने में सहायता करता है।
  • अभ्रक अनिद्रा (नींद न आना) की समस्या को ठीक करता है।
  • इससे चिड़चिड़ापन, अवसाद और तनाव कम होता है।
  • अभ्रक माइग्रेन और चक्कर आने की समस्या को दूर करता है।
  • यह श्वास संबंधी रोगों में आराम पहुंचाता है।
  • इससे एंजाइना पेक्टोरिस (एक प्रकार का सीने का दर्द) और घबराहट में आराम मिलता है।
  • अभ्रक कार्डियोमेगाली (हृदय की असामान्य वृद्धि) को ठीक करता है।
अभ्रक भस्म के नुकसान–
 
  • जरूरत से ज्यादा अभ्रक का सेवन करना दिल की धड़कनों को बढ़ा सकता है।
  • अभ्रक का अधिक उपयोग करना शरीर के लिए घातक साबित हो सकता है। इसलिए इसके उपयोग से पहले किसी आयुर्वेदिक या सामान्य चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
कहां पाया जाता है अभ्रक?
 

भारत के कई प्रदेशों जैसे राजस्थान के चित्तौड़ और भीलवाड़ा, झारखंड के गिरीडीह, बंगाल के रानीगंज, बिहार के हजारी बाग़ आदि में पाया जाता है। वज्राभ्रक (काला अभ्रक) भूटान, हिमालय, हिमाचल आदि में पाया जाता है। आयुर्वेद में हिमालय के अभ्रक को उत्तम, पूर्वीय देशों से मिलने वाले अभ्रक को मध्यम और दक्षिण पर्वतों से प्राप्त अभ्रक को निषिद्ध माना जाता है।

 
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अर्जुन और इसकी छाल का महत्व

Posted 25 May, 2022

अर्जुन और इसकी छाल का महत्व

अर्जुन एक सदाबहार पेड़ है (Importance of Arjuna), जो 60-80 फीट तक लंबा होता है। इसकी पत्तियां देखने में अमरुद की पत्तियों की तरह होती हैं। अर्जुन का वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया अर्जुना (Terminalia arjuna) हैं। इस वृक्ष का बड़े पैमाने पर औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। इसकी छाल (बाहरी परत) और रस को ज्यादातर जड़ी-बूटी के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी छाल का प्रयोग हृदय संबंधी समस्याओं, क्षय रोग (टीबी), कान का दर्द, सूजन, बुखार आदि के उपचार में किया जाता है।

 
आयुर्वेद में अर्जुन का महत्व (Importance of Arjuna)

आयुर्वेद के अनुसार अर्जुन तासीर से शीतल और स्वाद में कसैला होता है, जो हृदय, प्रमेह (डायबिटीज), मेद (मोटापा), व्रण (अल्सर), कफ और पित्त के अलावा कटने एवं छिलने पर, विष और रक्त संबंधी रोग से बचाता हैं। अर्जुन कार्डियोप्रोटेक्टिव (Cardioprotective) और हृदय की मांसपेशियों को बल देने और उनकी पोषण-क्रिया को बेहतर बनाने का काम करता है। इसलिए अर्जुन का प्रयोग मुख्‍य रूप से दिल से संबंधित रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसके प्रयोग से रक्त वाहिनियों से होने वाला रक्त स्राव कम होता है, जिससे सूजन कम होती है।

 

अर्जुन में कई प्रकार के पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ पाए जाते हैं, जो हड्डियों की समस्याओं में फायदा करते हैं। यह अल्‍सर (छाले) और मूत्र संबंधी रोगों के इलाज में भी लाभदायक होता है।

 
अर्जुन की छाल के फायदे;
 

अर्जुन की छाल का प्रयोग कई प्रकार की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता हैं। दरअसल अर्जुन में बहुत से एंटीऑक्सिडेंट और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो स्‍वास्‍थ के लिए बेहद प्रभावी और लाभकारी होते हैं।

 
हृदय रोग में लाभदायक–
 

अर्जुन में एंटी-एथेरोजेनिक (anti-atherogenic) गुण पाए जाते हैं, जो कोरोनरी धमनियों के प्‍लेक बिल्‍डअप (plaque build-up) को कम करने और हृदय कोशिकाओं के रक्त परिवहन में सुधार करने का काम करते हैं। अर्जुन हृदय आघात (Heart attack) को कम करने में भी मदद करता है। इसलिए अर्जुन की छाल को हृदय रोगों के लिए लाभकारी औषधि माना जाता है।

 
सीने के दर्द को कम करने में उपयोगी–
 

अर्जुन हार्ट अटैक के समय होने वाले सीने के दर्द को कम करता है। इसलिए दिल के दौरा से पीड़ित लोगों को इसकी छाल का सेवन जरूर करना चाहिए है। इसके सेवन से भविष्‍य में भी सीने के दर्द की संभावनाएं कम हो जाती हैं।

 
कोरोनरी धमनी के लिए फायदेमंद–
 

अर्जुन छाल का सेवन रक्त नसों और कोरोनरी धमनीयों (coronary arteries) की सूजन को कम करता है। इसका सेवन शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स, सीरम कोलेस्‍ट्रॉल, एथेरोजेनिक इंडेक्‍स और लिपोप्रोटीन को कम करता है, जो स्‍वास्‍थ को सकारात्मक रुप से प्रभावित करते हैं। अर्जुन की छाल कोरोनरी धमनी के अलावा कोलेस्‍ट्राल को भी कम करने में मदद करती है।

 
स्‍तन कैंसर के लिए लाभदायक औषधि–
 

अर्जुन की छाल में कासुआर्निन (Casuarinin) नामक एक रासायनिक घटक होता है, जो स्तन कैंसर के विषाणुओं की वृद्धि को रोकने में सहायता करता है। अर्जुन के एंटीऑक्सिडेंट गुण इस घटक को और प्रभावी बनाते हैं। इसलिए स्तन कैंसर के समय अर्जुन की छाल का सेवन करना फायदेमंद होता है।

 
अल्‍सर के लिए उपयोगी–
 

अर्जुन की छाल के टुकड़े को आठ घंटे पानी में भिगाकर इसका काढ़ा बनाएं और हल्का ठंडा होने के बाद इसका सेवन करें। इस तरह से अर्जुन की छाल का प्रयोग करने से पेट के अल्‍सर ठीक होते हैं और पेट स्‍वस्‍थ रहता है। दरअसल अर्जुन की छाल में मेथनॉल (Methanolic) हेलीकॉक्‍टर पिलोरी (helicobacter pylori) और लिपोपोलिसैक्‍साइड (lipopolysaccharide) तत्व होते हैं, जो गैस्ट्रिक अल्‍सर को रोकने में सहायता करते हैं।

 
क्षय रोग या टीबी में फायदेमंद–
 

अर्जुन का औषधीय गुण क्षय रोग (टीबी) के लक्षणों से आराम दिलाने में मदद करता है। इसके लिए अर्जुन की छाल, नागबला और केवांच (कौंच) के चूर्ण में शहद एवं घी मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से क्षय और खांसी जैसे रोगों में राहत मिलती है।

 
रक्तप्रदर (अत्यधिक रक्तस्राव) में उपयोगी–
 

महिलाओं में पीरियड्स के समय औसतन दिन से ज्यादा होने वाले रक्त स्राव को रक्तप्रद कहते हैं। ऐसे समय में एक चम्मच अर्जुन छाल के चूर्ण को एक कप दूध में डालकर दूध को आधे कप होने तक पकाएं। इसमें मिश्री घोलकर दिन में तीन बार सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

 
बुखार को कम करने में कारगर–
 

बदलने मौसम के कारण होने वाले बुखार और अन्य समस्याओं को ठीक करने के लिए भी अर्जुन की छाल को अच्छा माना जाता है।

 
  • बुखान आने पर अर्जुन की छाल का काढ़ा या चाय बनाकर पीने से बुखार में राहत मिलती है।
  • एक चम्मच अर्जुन छाल के चूर्ण को गुड़ के साथ लेने से भी बुखार का असर कम होता है।
मुंहासों के लिए फायदेमंद–
 

अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले एंटीऑक्सिडेंट त्‍वचा के संक्रमण को रोकने में मदद करते हैं। इसके लिए अर्जुन की छाल को पीसकर घोल के रूप में चेहरे पर लगाने से मुंहासे कम होते हैं। इसके अतिरिक्त अर्जुन वृक्ष के पत्तों को पीसकर उसमें शहद मिलाकर मुंहासों पर लगाएं और पंद्रह मिनट बाद गर्म पानी से मुहं धोएं। कुछ दिनों तक ऐसा करने से चेहरे के सभी मुंहासे खत्म हो जाएंगे।

 
दांतों के लिए लाभदायक–
 

अर्जुन की छाल मसूढ़ो के दर्द और खून बहने की समस्या में फायदा पहुंचाती है। इसी वजह से अर्जुन की छाल को टूथपाउडर (दंत मंजन) में भी इस्तेमाल किया जाता है।

 
यूरिनरी इन्फेक्शन में सहायक–
 

अर्जुन की छाल का सेवन यूरिनरी इन्फेक्शन (मूत्र संबंधी संक्रमण) में भी उपयोगी होता है। दरअसल अर्जुन की छाल में एंटीबैक्टीरियल प्रभाव पाया जाता है, जो मूत्र मार्ग में संक्रमण पैदा करने वाले सूक्ष्म बैक्टीरिया को नष्ट करने का काम करता है।

 
हड्डी जोड़ने में करे मददगार–
 

अर्जुन की छाल के फायदे हड्डी के दर्द को ठीक करने और टूटी हड्डी को जुड़ने में लाभकारी सिद्ध होते हैं। इसके लिए कुछ हफ्ते तक दिन में तीन बार एक कप दूध के साथ एक चम्मच अर्जुन छाल के चूर्ण का सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। वहीं हड्डी टूटने पर इसकी छाल को पीसकर, घी के साथ प्रभावित जगह पर लगाकर पट्टी बांधने से हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

 
कहां पाई जाती है अर्जुन की छाल? 
 

अर्जुन के पेड़ से ही अर्जुन की छाल प्राप्त होती है अथार्त अर्जुन के पेड़ की बाहरी परत को ही छाल कहा जाता है। अर्जुन का वृक्ष हिमालय की तराई और शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित नदी-नालों के किनारे सबसे ज्यादा में देखने को मिलता है। इसी प्रकार भारत में भी यह वृक्ष अन्य स्थानों पर मौजूद नदी-नालों के किनारे देखे जा सकते हैं।

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Reasons why Adoosa is considered an Important Ingredient in Ayurveda

Posted 21 December, 2021

Reasons why Adoosa is considered an Important Ingredient in Ayurveda

Adhatoda (Adhatoda Vasica), known as Adoosa in Hindi, is a shrubby medicinal plant. Its flowers are white. People also call it Vasa and Malabar Nut. The scientific name of Adoosa is Justitia Adhatoda. Adhatoda flower, leaves, and roots have great importance in Ayurveda as herbs. It helps in melting the phlegm and getting out of the body. 

 

Apart from this, the Malabar nut can cure diseases such as fever, cough, jaundice, etc. Adoosa also reduces the effect of a serious illness such as asthma. 

 

Importance of Adoosa in Ayurveda

Adoosa has great importance in Ayurveda because of its utility. Each part of this plant is useful in the treatment of several illnesses. It has anti-diabetic, anti-allergic, anti-ulcer, and antioxidants. It also contains anti-inflammatory, quinoline alkaloids, and vasicine properties. 

 

Adhatoda Vasica is an excellent Ayurvedic medicine for treatment. It balances Vata and Kapha. Adhatoda Vasica is mainly beneficial in diseases such as headaches, piles, urine, and eyes.

 

Benefits of Adoosa

Adhatoda Vasica is used to cure many types of diseases. It contains antioxidants and minerals, which are very effective and beneficial for health. Let’s know about some of its other benefits-

 

Beneficial for Diabetes-

 

Adhatoda Vasica is a useful herbal ingredient to prevent diabetes. Adhatoda Vasica has anti-diabetic properties that benefit in diabetes by lowering blood sugar. 

 

Effective in Curing Cold –

 

Adhatoda is also great for curing a cold. The anti-allergic and anti-phlegm properties help in curing the symptoms of cold. Apart from this, Adhatoda also helps in relieving respiratory diseases like asthma as well as bronchitis (trachea).

 

Beneficial for Ulcers-

 

According to NCBI (National Centre for Biotechnology Information) report, leaves of Adoosa have anti-ulcer properties that work to reduce stomach and mouth ulcers. 

 

Beneficial for Inflammation-

 

It is beneficial for the problem of inflammation. Adoosa contains Vasicine (alkaloids) that has anti-inflammatory properties. This has a positive effect on problems caused by inflammation. 

 

Beneficial for liver-

Adhatoda Vasica is great for ensuring liver health. Ethyl acetate in Adoosa has hepatoprotective (liver damage protector) properties. This works to keep the liver healthy.

 

Effective for skin-

 

Adhatoda Vasica is also beneficial for the skin. Applying leaves of Malabar nut is also beneficial for curing wounds. Besides, it also cures scabies and other skin problems. Use Kadha of Adoosa leaves.

 

Beneficial for stomach-

 

Adhatoda Vasica is also used to overcome problems related to digestion. Using Adhatoda cures various problems such as constipation, stomach gas, and flatulence. It is also beneficial in piles. 

 

Importance of Adoosa in Cholesterol level-

 

Adhatoda Vasica improves HDL (good cholesterol) levels by lowering LDL (bad cholesterol) present in the body. This is the best option for diseases such as diabetes and heart problems.

 

Relax in arthritis pain-

 

Adhatoda Vasica is good for reducing arthritis pain. It is also a great herb for reducing inflammation. It has anti-inflammatory properties that help reduce the inflammation of arthritis. Paste (lep) of Adhatoda leaves also cures inflammation quickly.

 

Effective in reducing stress-

 

Using Adhatoda is beneficial not only for physical health but also for mental health. Its use causes a chemical release of serotonin (the happy hormone) in the brain. This freshens up the mood by removing stress. Apart from this, Adhatoda Vasica is also beneficial for boosting memory.

 

Side-effects of Adoosa

Excessive consumption of Adhatoda can cause various problems such as irritation in the stomach, nausea, and vomiting.

 

Precautions

 
  • People with low blood sugar problems should avoid taking Adoosa.
  • Do not give it to children.
  • Do not consume Adhatoda with other medicines.
  • Adhatoda reduces blood sugar. Therefore, people with diabetes should use it with caution.
  • Avoid Adhatoda during pregnancy.
  • Breastfeeding women should also consult a doctor before taking it.

Where is Adoosa found?

 

Adhatoda is an evergreen shrub that bears white flowers. The height of the plant ranges from 2.2 to 3.5 meters. It is a self-growing plant. It grows all over India, excluding the hilly areas. Adoosa is most commonly grows in a cluster of bushes.

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Why is Colocynth(Indrayan) a useful herb in Ayurveda

Posted 21 December, 2021

Why is Colocynth(Indrayan) a useful herb in Ayurveda

In Ayurveda, there are many herbs that are useful to treat various illnesses. Colocynth (Indrayan) is a useful herb that has immense healing capacity. Each part of this plant is useful. Right from the roots to the stem, leaves, and the fruit we use it for treating various medical conditions. The fruits and seeds of Indrayan are often used to treat urinary infections. In this blog, we will see what is Indrayan and its benefits.

 

Indrayan (Citrullus colocynthis) is a creeper(climbing plant) that grows in sandy and arid soil (desert and semi-desert soil). It appears like a watermelon. It has several names that differ from region to region. To name a few, people call it colocynth, bitter apple, bitter cucumber, desert gourd, egusi, the vine of Sodom, and wild gourd.

 

Benefits of Indrayan

 
  • Indrayan is an antidote to bites of insects such as scorpion and snake.
  • Indrayan is effective in the treatment of ascites.
  • People use this herb for the treatment of lung infections and liver disorders.
  • Applying the pulp on the skin also cures skin problems such as pimples and acne.
  • The pulp or leaves of this herb is a folk remedy. It can treat cancerous tumors as well.
  • It is an excellent remedy to treat Diabetes and hypertension.
  • Colocynth curbs skin problems such as scrap and warts.
  • Kadha made of the whole plant mixed with fennel juice help indurations of the liver.
  • It is a natural blood purifier. 
  • Colocynth is also a good herbal remedy for rheumatic pain and arthritis.
  • It helps to kill intestinal worms and also eases constipation.
  • Indrayan is also beneficial to treat menstruation disorders such as menopause, leucorrhoea, scanty menses, and Amenorrhea.

Benefits of Indrayan fruit (Colocynth (Indrayan) useful)

  • We use the fruit pulp extract in the treatment of urinary tract infections (UTI).
  • The dry pulp of raw fruit has a cathartic action on the intestinal tract.
  • We use the fruit of Indrayan as a remedy for sore throat and skin infections.
  • Indrayan phal extract also provides relief to patients with painful diabetic neuropathy.

Where is Colocynth found?

 

Colocynth is native to India. Nowadays, it has naturalized across tropical and subtropical regions. It is widely naturalized in the parts of Australia and also in some other parts of the world including the southern USA.

 

Colocynth, a cost-effective biofuel 

 

Colocynth contains up to 47% oil which makes it an extremely cost-effective biofuel. It has the ability to substitute the requirement of low-cost feedstock. An added benefit of this herb is the ability to grow on marginal land.

 

With technology, this herb can extract oil. We can use the oil for the production of biodiesel.

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क्या है अपामार्ग(चिरचिटा) और इसके फायदे?

Posted 25 May, 2022

क्या है अपामार्ग(चिरचिटा) और इसके फायदे?

अपामार्ग (चिरचिटा) एक साधारण-सा पौधा है। जो घरों के आस-पास खाली जगहों पर, जंगलों में, झाड़ियों और अन्य स्थानों पर देखने को मिल जाता है। कोई विशेष पहचान न होने के कारण अधिकांश लोग इसे बेकार एवं झाड़ी समझते हैं। लेकिन असल में अपामार्ग एक जड़ी-बूटी है।

 

जिसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसलिए पाचनतंत्र विकार, दांतों की समस्या और घाव सहित तमाम तरह के रोगों के उपचार में अपामार्ग का प्रयोग किया जाता है। अपामार्ग को प्राय: चिरचिरा, चिरचिटा, लटजीरा, चिचड़ा नामों से भी जाना जाता है

 

क्या है अपामार्ग (चिरचिटा)?

 

आयुर्वेद के अनुसार अपामार्ग एक औषधीय जड़ी-बूटी है। इसके उगने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी है।अपामार्ग बारिश के मौसम में अंकुरित होता है। सर्दियों में फलता-फूलता है और गर्मियों में पूरी तरह बड़ा हो जाता है। इसी मौसम के अंत में यह पौधा फल सहित सूख भी जाता है। इसके बीज चावल जैसे और फूल हरी गुलाबी कलियों वाले होते हैं। अपामार्ग को एक तरह का कुख्‍यात पौधा भी कहा जाता है। क्‍योंकि इसके नुकीले बीज कपड़ों पर चिपक जाते हैं, जिन्हें निकालना मुश्किल होता है। इस रूप में इसके बीज पौधे की सुरक्षा के लिए ढ़ाल का काम करते हैं।

 

अपामार्ग (चिरचिटा) को कई आयुर्वेदिक दवाओं के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके इस्तेमाल से खांसी, मूत्र रोग, चर्म रोग सहित कई अन्य बीमारियों का उपचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त अपामार्ग का उपयोग शरीर को डिटॉक्सिफाई करने के लिए भी किया जाता है। अपामार्ग दो प्रकार का होता है। पहला- सफेद अपामार्ग और दूसरा- लाल अपामार्ग।

 

सफेद अपामार्ग- इसकी हरी रंग की डंठल और भूरी व सफेद रंग की पत्तियां होती हैं।

 

लाल या रक्त अपामार्ग- इसकी लाल रंग की डंठल होती है और लाल रंग की छींटों वाली पत्तियां होती हैं।

 

चिरचिटा के फायदे;

 

अपामार्ग (chirchita) में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। जो स्‍वास्‍थ्‍य संबंधित तमाम दिक्कतों को ठीक करने में मदद करते हैं। अपामार्ग में ट्राइटरपेनोइड सैपोनिन तत्व होते हैं। जिनमें ऑलिओलिक एसिड एग्लीकोन के रूप में मौजूद रहता है। इसके अतिरिक्त चिरचिटा में  पेंटेट्रियाकॉन्‍टेन, एंचेंटाइन, बीटाइन, ट्रिट्रीकॉन्‍टेन, 6-पेंटेट्रियाकोंटोनोन और हेक्‍साट्रियाकॉन्‍टेन भी मौजूद होते हैं। जो शरीर के लिए कई रूपों में फायदेमंद होते हैं। चलिए जानते हैं अपामार्ग से होने वालें इन फायदों के बारे में-

 

वजन कम करने में मददगार-

 

नियमित रूप से सुबह और शाम अपामार्ग (chirchita) का काढ़ा पीने से वजन नियंत्रित रहता है। शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल बढ़ने से वजन बढ़ता है। इसलिए अपामार्ग बढ़े हुए कोलेस्‍ट्रॉल को कम करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त यह शरीर में जमा वसा को भी कम करता है। परिणामस्वरूप शरीर का वजन धीरे-धीरे कम होने लगता है।

 

शरीर का रक्त बढ़ाने में कारगर-

 

चिरचिटा शरीर में रक्त की मात्रा को बढ़ाने में मदद करता है। क्योंकि शरीर में रक्त की कमी होना तमाम बीमारियों का कारण होता है। इसलिए उन तमाम बीमारियों से बचने के लिए अपामार्ग के पेस्‍ट को आहार में शामिल करना एक अच्छा विकल्प है।

 

अस्‍थमा को ठीक करने में सहायक-

 

अपामार्ग में अस्‍थमा जैसी श्वसन समस्‍याओं को ठीक करने वाले गुण होते हैं। दरअसल अपामार्ग वायु मार्ग को खोलकर सांस लेने में  होने वाली कठिनाई को कम करता है। इसलिए अपामार्ग के काढ़े का नियमित रूप से सेवन करना अस्‍थमा वाले मरीजों के लिए फायदेमंद होता है।

 

घाव उपचार में लाभदायक-

 

अपामार्ग (chirchita and its benefits) का पेस्ट हर तरह की चोट और घाव को ठीक करने की ताकत रखता है। इसके अलावा चिरचिटा में मौजूद पोषक तत्व उल्‍टी और मतली की समस्या को भी दूर करने में सहायता करते हैं।

 

कान के दर्द में फायदेमंद-

 

कान के संक्रमण और दर्द को ठीक करने के लिए लटजीरा (चिरचिटा) का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले अपामार्ग की ताजी पत्तियों को साफ पानी में धोएं। अब इन पत्तियों को पीसकर रस निकाल लें। इस रस की कुछ बूंदों को कान में डालने से कान के संक्रमण और दर्द दोनों ठीक होते हैं।

 

आंखों के लिए उपयोगी-

 

आंखों की समस्‍याओं को ठीक करने के लिए लटजीरा (अपामार्ग) का उपयोग किया जाता है। इसके लिए अपामार्ग की ताजा जड़ को अच्छी तरह से साफ करके गुलाब जल के साथ पीसकर रस निकाल लें। अब इस रस का इस्तेमाल आंखों के संक्रमण के लिए करें।

 

बवासीर में लाभप्रद-

 

अपामार्ग की पत्तियों का इस्तेमाल बवासीर के इलाज के लिए किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले अपामार्ग की ताजी पत्तियों को साफ पानी में धोएं। अब इन पत्तियों को पीसकर पेस्‍ट तैयार कर लें। इस पेस्‍ट में तिल का तेल मिलाकर प्रभावित क्षेत्र में लगाने से बवासीर के दौरान होने वाला रक्‍तस्राव और दर्द कम होता है।

 

दस्त में लाभदायक-

 

अपामार्ग की सूखी पत्तियों को पीसकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को मिश्री या शहद के साथ दिन में दो बार लेने से दस्त में आराम मिलता है। इसके अलावा हर तीन-तीन घंटे बाद इसकी पत्तियों का दो से तीन चम्मच रस पीने से भी दस्‍त के उपचार में सहायता मिलती है।

 

दांतों के दर्द में असरदार-

 
  • इस के रस में रूई को डुबाकर दांतों में लगाने से दांतों का दर्द कम होता है।
  • इसकी ताजी जड़ से दातून करने से भी दांतों का दर्द ठीक होता है। साथ ही दांतों की सफाई दातों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी और मुंह की बदबू भी दूर होती है।

चिरचिटा के कुछ अन्य फायदे-

 
  • इसके पत्तों से बने काढ़े से कुल्ला और गरारे करने से मुंह और गले के छाले ठीक होते हैं।
  • इसके काढ़े को पानी में मिलाकर नहाने से खुजली की समस्या ठीक होती है।
  • अपामार्ग (लटजीरा) के पत्तों को नग काली मिर्च और लहसुन के साथ पीसकर गोलियां बना लें। इन गोलियों का सेवन करने से ठंड लगकर चढ़ने वाल बुखार खत्म होता है।
  • इसकी ताजी जड़ को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी की समस्या में आराम मिलता है।
  • बराबर मात्रा में हल्दी की गांठ और अपामार्ग की जड़ को लेकर बारीक पीस लें। इसे हाथ-पैरों के नाखूनों और सिर पर तिलक की तरह लगाने से चेचक नहीं निकलता। इसके अतिरिक्त चेचक के निकलने पर अपामार्ग (चिरचिरा) की साफ जड़ को पीसकर चेचक के दानों पर लगाने से उनकी जलन कम होती है।

अपामार्ग के नुकसान

 
  • अपामार्ग की ओवरडोज (अधिक मात्रा) से जी मीचलाने और उल्टी आने की समस्या हो सकती है।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अपामार्ग के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि उनके लिए यह सुरक्षित नहीं माना जाता।
  • अपामार्ग (chirchita) की तासीर गर्म होती है इसलिए इसकी पत्तियों और जड़ों के पेस्ट को स्किन पर सीधे न लगाएं। इसे स्किन पर लगाने के लिए पानी या दूध जैसे ठंडे पदार्थ का इस्तेमाल करें।
  • 12 साल से कम उम्र के बच्चों को अपामार्ग नहीं देना चाहिए। यदि देना हो तो चिकित्सक के परामर्शानुसार कम मात्रा में ही दें।
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Fennel seeds- Importance & Benefits

Posted 21 December, 2021

Fennel seeds- Importance & Benefits

Fennel (Foeniculum vulgare), known as Saunf in Hindi, is a type of herbaceous plant which is one to two meters long. It bears yellow flowers that have fennel seeds. The seeds are light green and look like cumin seeds.

 

All parts of the plant (shoots, leaves, and seeds) are aromatic and used in flavoring to enhance the taste of food. It is used in spices, pickles, Kadha, etc. in homes.

 

Importance of Fennel Seeds in Ayurveda

 

Fennel seeds are cold in potency which keeps the body cool. The nutritious elements found in the seeds help to balance Tridoshas (Vata, Pitta, Kapha). Saunf also contains minerals like calcium, sodium, iron, and potassium. The major advantage of the fennel is to increase memory. Apart from this, regular intake of fennel seeds aids digestion.

 

Benefits of Fennel

 

Helps to clean the impurities in blood-

 

Fennel seeds have vitamin-C, antibacterial and antiviral properties. These help in removing the toxic particles. Therefore, consuming Saunf helps in cleaning the impurities in the blood by removing toxins.

 

Aids in weight loss-

 

Fennel contains a high amount of fiber which works to control abdominal obesity. Saunf does not allow the body to freeze fat. Obesity does not increase as a result.

 

Helpful in controlling blood pressure-

 

Saunf helps control blood pressure. The potassium present in it controls the amount of sodium in the blood and prevents its side effects. Saunf also contains nitrate and potassium which reduces blood pressure.

 

Effective in removing skin disorders-

 

Saunf is very beneficial in skin-related disorders like scars, scabies, itching, spots, wrinkles, etc. It has vitamin-C, vitamin-D, vitamin-K, antioxidant, etc. properties. These help in relieving skin related problems. Besides this, Saunf cures skin problems such as pimples and acne. Apply a paste made of fennel leaves or seeds. 

 

Helpful in controlling blood sugar level-

 

Low or high blood sugar levels both prove to be harmful to the body. Fennel is beneficial for controlling blood glucose. It contains antioxidants that control blood pressure in the body. Apart from this, taking Kadha made of Saunf daily is also beneficial for people suffering from diabetes.

 

Helps strengthen the digestive system-

 

Disturbances in the digestive system weaken the body’s immunity. This makes the body prone to many diseases. Regular intake of fennel helps to heal the digestive system. For this, after taking meals every day, mix sugar candy in the Saunf and consume it.

 

Helpful in boosting memory-

 

Saunf contains vitamin-B6, zinc, protein, magnesium, and flavonoids. These are the main memory-enhancing components. Therefore, Saunf intake is very beneficial for brain development and memory enhancement. Making Saunf tea also enhances memory and reduces mental stress.

 

Relief in stomach disorders-

 

Many diseases such as abdominal pain, bloating, gas and acidity affect the whole body. People use Saunf as a home remedy to get rid of these diseases. Consuming Saunf powder with lukewarm water relieves stomach disorders.

 

Side-effects of Fennel seeds

 
  • After excessive intake of Saunf, exposure to sunlight causes skin spots and rashes.
  • Saunf is cold in potency. Therefore, avoid fennel intake in problems of constipation.
  • Breastfeeding women should avoid Saunf intake.
  • People with hypersensitivity should avoid intake of fennel.
  • When taking any type of medicine, take Saunf according to the advice of the doctor.

 Uses of Fennel seeds?

 
  • Ginger powder mixed in Saunf seeds and leaves is used as a tea.
  • People use Saunf for enhancing the taste of chutney.
  • Saunf is used in pickles and spices.
  • Saunf adds aroma and taste to curries and parathas.
  • Leaves of Saunf are also used to prepare juice.
  • Mishri mixed with Saunf are excellent mouth fresheners.
  • Saunf, almond, and black pepper are used to make Kadha.
  • Fennel also enhances the taste of various north Indian cuisines.

 Cultivation of Fennel?

 

Fennel is native to Southern Europe and Southwestern parts of Asia. People consider it a weed in Australia and also in the regions of the United States.

 

Cultivation of Saunf in India happens in Madhya Pradesh, Rajasthan, and Uttar Pradesh. It is also cultivated in Bihar, Andhra Pradesh, and Karnataka.

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सौंफ का महत्व और फायदे

Posted 25 May, 2022

सौंफ का महत्व और फायदे

सभी घरों में खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए सौंफ का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग हम घरों में मसालें, अचार, काढ़ा इत्यादि के रूप में करते हैं। अपने गुणों के कारण अधिकांश लोग इसका प्रयोग माउथ फ्रेशनर के रूप में भी करते हैं।

 

इसके अतिरिक्त सौंफ पाचन क्रिया, पेट फूलना और अन्य पेट संबंधि समस्यओं को कम करने का काम करती है। इसलिए आयुर्वेद में इसको एक उत्तम औषधि माना जाता है।

 

क्या है सौंफ ?

 

जड़ी-बूटियों में अपना प्रमुख स्‍थान रखने वाली सौंफ के पौधे के सभी भाग जैसे जड़, पत्तियां और फल खाने योग्‍य होते हैं। इसके बीजों को अंग्रेजी में Fennel seeds कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम फोनिकुल वुल्गरे (Foeniculumvulgare) है। सौंफ का पौधा एपीएसइ(Apiaceae) परिवार से संबंधित है, जो एक   प्रकार का शाकीय पौधा है। जिसमें पीले रंग के फूल लगते हैं। इन्ही फूलों में सौंफ के बीज लगे होते हैं। इसके बीज का रंग हल्का हरा होता है और देखने में जीरे की तरह होते हैं। यह लम्बाई में एक से दो मीटर का होता है।      

 

आयुर्वेद में सौंफ का महत्व-

 

सौंफ की तासीर ठंडी होती है। जो शरीर को ठंडा रखती है। इसमें कई तरह के पौष्टिक पदार्थ पाए जाते हैं। जो त्रिदोष (कफ, पित्त, वात) को शांत रखने में मदद करते हैं। इसमें कैल्शियम, सोडियम, आयरन और पोटैशियम जैसे कई खनिज (मिनरल्स) तत्व भी पाए जाते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा याददाश्त बढ़ाना (Increase Memories) है। इसके अतिरिक्त सौंफ का नियमित सेवन स्वास्थ्य को चुस्त और तंदरुस्त रखता है।

 

सौंफ के फायदे;

 
रक्त को साफ करने में सहायक-
 

शरीर में विषाक्त पदार्थों का समावेश होने पर उस क्रिया को खराब खून कहा जाता है। सौंफ में विटामिन-सी, एंटी-बैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं। जो विषैले कण को बाहर निकालने में सहायता करते हैं। इसलिए इसका सेवन करने से विषैले कण मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। जिससे रक्त की शुद्धि होती है।  

 
वजन को कम करने में लाभप्रद-
 

सौंफ में अधिक मात्रा में फाइबर होता है। जो पेट के मोटापे को नियंत्रण रखने का काम करता है। दरअसल यह शरीर में फैट को जमने नहीं देती। परिणामस्वरूप मोटापा नहीं बढ़ पाता।

 
रक्तचाप नियंत्रित करने में मददगार-
 

सौंफ रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक होती है। क्योकि इसमें मौजूद पोटैशियम रक्त में सोडियम की मात्रा को नियंत्रित करता है और इसके दुष्प्रभाव से बचाता है। इसके अतिरिक्त इसमें नाइट्रेट भी पाया जाता है। जो पोटैशियम के साथ मिलकर बल्ड प्रेशर को कम करता है।

 
त्वचा विकारों को दूर करने में कारगर-
 

सौंफ त्वचा संबंधित विकार जैसे दाग, खाज, खुजली, धब्बें, झुर्रियां आदि में बेहद लाभदायक है। इसमें विटामिन-सी, विटामिन-डी, विटामिन-के, एंटीऑक्सीडेंट आदि गुण पाए जाते हैं। जो त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त इसके पत्तियों या बीजों का पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगाने से भी त्वचा विकार ठीक होते हैं। 

 
शुगर लेवल को नियंत्रण करने में मददगार-
 

रक्त में शर्करा का लेवल कम या अधिक होना दोनों ही शरीर के लिए हानिकारक साबित होता है। ऐसे में नियमित रूप से इसका सेवन करना चाहिए। क्योकि इसमें कुछ एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। जो शरीर में रक्तशर्करा को नियंत्रित रखते हैं। इसके अलावा मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए प्रतिदिन सौंफ का पानी या काढ़े का सेवन करना भी लाभप्रद होता है।

 
पाचन तंत्र को मजबूत करने में सहायक-
 

पाचन तंत्र में खराबी या गड़बड़ी होने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। जिससे शरीर तमाम बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। लेकिन सौंफ का नियमित सेवन पाचन तंत्र को ठीक करने में मदद करता है। इसके लिए प्रतिदिन भोजन करने के बाद सौंफ में मिश्री मिलाकर उसका सेवन करें।

 
याददाश्त बढ़ाने में मददगार-
 

सौंफ में विटामिन-बी 6, जिंक, प्रोटीन, मैग्नेशियम और फ्लेवोनोइड्स आदि तत्व होते हैं। जो याददाश्त बढ़ाने वाले मुख्य घटक हैं। इसलिए मस्तिष्क के विकास और याददाश्त बढ़ाने के लिए इसका सेवन बेहद लाभकारी होता है। इसकी चाय बनाकर पीने से भी याददाश्त बढ़ती है। साथ ही मानसिक तनाव कम होता है। 

 
पेट विकारों में पहुंचाए राहत –

पेट में दर्द, सूजन, आफरा, गैस और एसिडिटी जैसी तमाम बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जो पूरे शरीर को प्रभावित करती हैं। इन रोगों से निजात पाने के लिए घरेलू उपाय के रूप में यह एक बेहतर विकल्प है। सौंफ का चूर्ण बनाकर इसका गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से पेट संबंधित विकार दूर होते हैं। 

 

सौंफ के नुकसान;

 
  • इसका अधिक सेवन करने से पश्चात धूप के संपर्क में आने से त्वचा पर दाग, धब्बें और रैसेज होने लगते हैं।
  • सौंफ की तासीर ठंडी होती है। इसलिए कब्ज की समस्या में इसका सेवन करने से बचना चाहिए।
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए।
  • अति-संवेदनशीलता (हाइपर-सेंस्टिविटी) की समस्या वालो व्यक्ति को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • किसी भी प्रकार की दवाइयों का सेवन करते समय चिकित्सक के परामर्शनुसार इसका सेवन करें।

किन रूपों में होता है सौंफ का उपयोग?

  • इसके बीजों और पत्तियों में अदरक के चूर्ण को मिलाकर चाय के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • चटनी का स्वाद बढ़ाते के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
  • इसका उपयोग अचार के मसाले की जायका बढ़ाने में किया जाता है।
  • सब्जी और पराठों में इसका उपयोग किया जाता है।
  • सौंफ की पत्तियों का प्रयोग जूस के रूप में करते हैं।
  • मिश्री और इसका उपयोग माउथ फ्रेशनर के रूप में करते हैं।
  • सौंफ, बादाम और काली मिर्च का उपयोग ठंडाई बनाने में किया जाता है।  

कहां पाया जाता है सौंफ?

सौंफ उत्पादन का मूल स्थान यूरोप को माना जाता है। लेकिन यह एक व्यवसायिक मसाला है, इसलिए इसका उत्पादन पूरे विश्व में किया जाता है। भारत में समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई तक सौंफ की खेती की जाती है। भारत में इसका उत्पादन मुख्य रूप से  मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक आदि राज्यों में होता है।

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Amalbedha: Importance, Benefits, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Amalbedha: Importance, Benefits, and Side-effects

Amalbedha (Garcinia pedunculata), also known as Amalvet, is an evergreen plant. It has several medicinal properties. People add the dried fruits of Amalbedha to the diet to reap the benefits of Amalbedha.

 

The tree has a fluted trunk with short branches. The leaves of the tree are lanceolate with prominent midribs with male flowers that are light green. The female flowers are solitary while the roundish fruit has a diameter ranging between 8 and 12 cm. It has a juicy interior with edible arils.

 

Amalbedha in Ayurveda

Amalbedha has great ayurvedic importance. It is used to cure several problems for centuries. Amalvet cures diseases such as indigestion, respiration, and problems related to the liver and kidney.

 

Amalbedha has Ushna (hot potency) and tastes sour with Vipaka property or taste conversion after digestion. It helps in balancing the tridoshas by reducing the Kapha and Vata Dosha and increasing Pitta. Balanced tridoshas helps to cure several illnesses and problems.

 

Benefits

Manages Diabetes

 

Amalbedha has anti-diabetic properties. It reduces blood sugar by manifesting insulin-like action. It also prevents damage to the pancreatic cells due to its antioxidant properties and also reduces oxidative stress.

 

Helps in Weight loss

 

The ingredient is great for weight loss as it helps in lowering cholesterol and triglycerides levels due to its antioxidant properties. 

 

Indigestion

 

Amalbedha helps to cure indigestion. Its appetizer as well as digestive properties help in the digestion process by facilitating the breakdown of food. 

 

Amalvet has anti-oxidant properties, which help in digestion by regulating the enzymes. The ingredient acts as a catalyst to the enzymes that help in better functioning. 

 

Asthma

 

Amalbedha has various properties such as anti-bacterial and anti-inflammatory properties that ease the burning sensation in the neck. It also clears up the respiratory tract and helps in easing Asthma.

 

Ensures good liver health and kidney

 

Amalvet is good for the liver due to the hepatoprotective properties. The antioxidants prevent the liver cells from the damage caused by the free radicals. It also lowers the levels of certain enzymes (SGPT, SGOT) that increases in liver injury.

 

The ingredient is also great for kidneys as it contains Garcinol that prevents the deposition of crystals in the kidney. It also reduces inflammation due to the anti-inflammatory and antioxidant properties.

 

Prevents Nerve damage

 

The fruit of Amalvet has neuroprotective activity. The antioxidants reduce oxidative stress and prevent damage to the nerve cells by free radicals.

 

Precautions

Pregnancy and while breastfeeding

 

Not enough is known about the effect of Amalbedha leaves on a pregnant woman. Therefore, it is safe for the mother and the unborn child to not consume Amalbedha during pregnancy, and while breastfeeding.

 

Surgery

 

Amalbedha should be avoided in any form if a surgery is scheduled. It can pose a risk such as increased bleeding.

 

Side-effects

 

There are no known side effects of Amalbedha, and it is likely safe for consumption. However, avoid overdosing as it can cause liver damage or several other health conditions.

 

In case of any problem after consuming Amalbedha one should immediately see a doctor.

 
 
 
 
 

Where is it found?

 
 
 

Amalbedha is native to the south-eastern regions of Asia. It is found in certain regions of Myanmar and the north-eastern parts of India.

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औषधीय पौधों का अस्तित्व

Posted 25 May, 2022

औषधीय पौधों का अस्तित्व

औषधीय पौधों का अस्तित्व मनुष्य जन्म से काफी पहले का रहा है। पुरातनकाल से ही मनुष्य रोग से छूटकारा पाने के लिए तरह-तरह के पौधों का उपयोग करता आया है। जिन औषधीय पौधों से औषधि मिलती है, उनमें से अधिकतम पौधे जंगली होते हैं। इसलिए इन्हें हर कोई नहीं उगा सकता। इन औषधीय पौधों की जड़, तना, पत्तियां, फूल, फल, बीज और छाल का उपयोग उपचार के लिए होता है।

 

हमारे जीवन में औषधीय पौधों का महत्त्व-

 

औषधीय पौधों का महत्व उसमें पाए जाने वाले रसायन और उनकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है। औषधीय पौधों का उपयोग ज्यादातर दिमागी बीमारियों जैसे- मिर्गी, पागलपन तथा मन्द-बुद्धि के उपचार में किया जाता है। औषधि पौधे कफ, पीलिया, हैज़ा, पेट की जलन और वायु रोग आदि का शमन करते हैं। शरीर की पाचन शक्ति, रक्त शोधक क्षमता (खून को शुद्ध करना) को बढ़ाने और बुद्धि का विकास करने में भी मदद करते हैं। साथ ही मधुमेह, मलेरिया, त्वचा रोग और ज्वर आदि में लाभकारी होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ औषधीय पौधों का उपयोग भोजन में खुशबू, स्वाद, रंजक बढ़ाने में किया जाता है।

 

नीम-

नीम एक उच्च दर्जे की औषधि है। इसको औषधियों में एंटीबायोटिक माना जाता है। इस रूप में इसको घर का डॉक्टर कहना गलत नहीं होगा। यह टेस्ट (स्वाद) में भले ही कड़वा हो पर इससे होने वाले लाभ जरूर मिठास का अनुभव कराते हैं। नीम का पौधा भारी मात्रा में ऑक्सीजन प्रदान करता है। इसी वजह से इस पौधे के आस-पास की हवा ज्यादा स्वच्छ रहती है। वैसे तो नीम वह ऑलराउंडर है, जिसके पास हर बीमारी का इलाज है। पर अभी नजर डालते हैं इसकी कुछ महत्वपूर्ण बातों पर-

 
  • इसकी पत्तियां बुखार में फायदा करती हैं।
  • एक कप पानी में नीम की 4-5 पत्तियों को उबालकर पीना, गले के लिए काफी फायदेमंद होता है।
  • शरीर के जले हुए भाग पर नीम की पत्तियों को पीसकर लगाने से वह जल्दी ठीक होता है।
  • इसका पेस्ट दांतों के लिए अच्छा होता है।
  • कान के दर्द के लिए नीम का तेल फायदेमंद होता है।
  • यह तेल बालों के लिए भी अच्छा होता है।
  • नीम का पेस्ट फुंसी-फोड़े और दूसरे जख्मों पर भी लगाया जा सकता है।
  • बिच्छू, ततैया जैसे जहरीले कीटों के काट लेने पर नीम का पेस्ट लगाने से राहत मिलती है और ऐसा करने से कीड़े का जहर भी शरीर में नहीं फैलता।

तुलसी-

तुलसी के पौधे को हर इंसान लगाना पसंद करता है। क्योंकि घर के आंगन में तुलसी का पौधा रखना पूजनीय और शुभ माना जाता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक दवाओं में भी तुलसी को सबसे महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। दवा के रूप में तुलसी का उपयोग बहुत पहले से किया जाता रहा है। क्योंकि यह कई बीमारियों का रामबाण ईलाज है। इसलिए आयुर्वेदिक औषधि में तुलसी को विशेष महत्व दिया जाता है। पुराने समय में दादी-नानी के नुस्खों में भी तुलसी का उपयोग जरूर होता था। वैज्ञानिक तौर पर तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो बदलते मौसम में शरीर को होने वाली दिक्कतों से बचाने का काम करते हैं। आइए जानते हैं तुलसी के कुछ जरूरी उपचारों को-

 
  • खांसी, जुकाम या दस्त होने पर तुलसी का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है।
  • यह चोट को जल्दी ठीक करने की क्षमता रखती है।
  • तुलसी चेहरे की चमक बढ़ाने में भी फायदेमंद होती है।
  • यह मुंह से आने वाली दुर्गंध को दूर करने में सहायता करती है।
  • तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाती है।
  • तुलसी सर्दी-जुकाम के साथ बुखार में भी फायदा पहुंचाती है।
  • जुकाम होने पर तुलसी को पानी में उबाल कर भाप लेने से भी फायदा होता है।
  • महिलाओं को होने वाली अनियमित पीरियड्स की समस्या को कम करने में उपयोगी होती है।
  • यौन रोगों के इलाज में पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है।

धनिया-

हम सभी लोगों ने सब्जियों में डाल कर खूब हरा धनिया खाया है। खाना पकाने के बाद उसकी गार्निश करने के लिए लोग उसपर हरा धनिया डालते हैं। इससे न सिर्फ खाने की खूबसूरती बढ़ती है, बल्कि स्वाद भी बढ़ता है। असल में धनिया एक औषधीय पौधा है। जिसमें कई गुण पाए जाते हैं। इसका सेवन करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है। यह शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाने, कोलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने, डाइबिटीज, किडनी के साथ कई रोगों में लाभदायक होता है।

 

इसमें वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल्स होते हैं। जो इसको अधिक पावरफुल बनाते हैं। इसके अलावा हरे धनिये में फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, कैल्शियम, विटामिन-सी और पोटैशियम आदि भारी मात्रा में पाएं जाते हैं। आइए जानते हैं धनिया के कुछ घरेलु नुस्खों के बारे में-

 
  • धनिया मुंहासे और काले धब्बे को हटाने में मदद करता है। इसके लिए हरा धनिया और हल्दी का पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगाएं।
  • हरे धनिया का रस मुंह के छाले पर लगाने से छालों से निजात मिलती है।
  • साबुत सूखा धनिया चबाने से मुंह की दुर्गंध खत्म होती है।
  • धनिया के पत्तों के रस को माथे पर लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है।
  • हरा धनिया, कला नमक और जीरे की चटनी बनाकर खाने से कब्ज जैसी समस्या दूर होती है।
  • शरीर के किसी हिस्से में जलन या सूजन होने पर धनिये के पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है।

पुदीना-

पुरातन काल से ही पुदीने को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में देखा जाता है। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने और घाव को जल्दी ठीक करने के साथ अन्य रोगों से लड़ने का भी काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीना कफ और वात रोग को कम करके भूख बढ़ाने का काम करता है। पुदीने को विटामिन-सी, तांबा, मैंगनीज जैसे मिनरल्स का बड़ा स्त्रोत माना जाता है। साथ ही इसमें जीवाणु एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट जैसे गुण भी होते हैं। जो दस्त, अपच, बुखार, लीवर, पेट संबंधी बीमारियों को ठीक करने का काम करते हैं। पुदीने का इस्तेमाल मल-मूत्र संबंधित रोगों और शारीरिक कमजोरी को कम करने के लिए भी किया जाता है। पुदीने के फायदे-

 
  • पुदीने का रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
  • पुदीने का सेवन पेट संबंधी रोगों को कम करता है।
  • इसके पत्तों को चबाने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
  • इसके इस्तेमाल से बालों में रूसी, बालों का गिरना आदि समस्याएं कम होती हैं।
  • पुदीने में वातशामक और उष्ण गुण होते हैं, जो मासिक धर्म के दर्द और ऐंठन में राहत देते हैं। इसलिए पुदीना का इस्तेमाल मासिक धर्म के समय करना फायदेमंद होता है।

काली मिर्च-

आयुर्वेद में काली मिर्च को आला दर्जे की औषधि माना जाता है। इसमें मौजूद पेपरीन बॉडी में कुछ खास न्यूट्रिएंट्स (पोषक तत्त्व) की मात्रा बढ़ाकर बॉडी फंक्शन्स को बेहतर बनाने में मदद करती है। काली मिर्च की एंटीबैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइन्फ्लेमेटरी प्रॉपर्टी के कारण आयुर्वेद में इसे असरकारी औषधि माना गया है। जो वात एवं कफ दोषों को खत्म करने की ताकत रखती है। काली मिर्च इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करती है। यह अपच की समस्या को दूर कर भूख बढ़ाने में मदद करती है। काली मिर्च के सेवन से पेट के रोग खत्म होते हैं और लीवर भी स्वस्थ रहता है। काली मिर्च का तीखा और गर्म प्रभाव मुंह में लार बनाने का काम करता है। जो शरीर के विभिन्न स्रोतों से गन्दगी को बाहर कर स्रोतों को शुद्ध करती है। आइए जानते हैं इसके कुछ घरेलू उपचार के बारे में-

 
  • खांसी, जुकाम में काली मिर्च का सेवन बहुत ही फायदेमंद है।
  • गले में दर्द या खरास है तो भी काली मिर्च का उपयोग लाभ पहुंचाएगा।
  • काली मिर्च आंखो की रोशनी बढ़ाने में मदद करती है। इसके लिए आधा चम्मच घी में आधा चम्मच काली मिर्च पाउडर मिलाकर पेस्ट के रूप में सेवन करना चाहिए।
  • गैस की समस्या के लिए काली मिर्च बेहतर विकल्प माना जाता है।

एलोवेरा-

आयुर्वेद में एलोवेरा को घृतकुमारी के रूप में महाराजा का स्थान दिया गया है और औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी कहा जाता है। इसकी गिनती मुख्य औषधीय पौधों में होती है। एलोवेरा के जूस का सेवन करने से शरीर में होने वाले पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। जड़ी-बूटी के तौर पर एलोवेरा में कई गुण होते हैं। इसमें अमीनो एसिड की भरपूर मात्रा रहती है और विटामिन बी-12 की मौजूदगी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बनी रहती है। एलोवेरा त्वचा की देखभाल, बालों की खूबसूरती और घावों को भरने में मदद करता है। एलोवेरा चेहरे के लिए अमृत और औषधीय गुणों का भंडार है। आइए जानते हैं एलोवेरा के कुछ फायदों के बारे में-

 
  • एलोवेरा के इस्तेमाल से मुहांसे, रूखी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग-धब्बे और आखों के काले घेरों को दूर किया जाता है।
  • यह ब्लड शुगर को संतुलित रखता है। इसलिए मधुमेह (Diabetes) से पीड़ित लोगों के लिए एलोवेरा एक लाभदायक औषधि है।
  • एलोवेरा पेट के रोगों से लड़ने में सक्षम है।
  • यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
  • एलोवेरा का रस बालों में लगाने से बाल काले, घने और मुलायम रहते हैं।
  • यह जोड़े के दर्द में कारगर है।
  • एलोवेरा जेल महिलाओं को होने वाले वजाइना क्रश (Yeast Infection) से निजात दिलाने में भी मदद करता है।
  • इसमें एंटी इंफ्लामेट्री प्रॉपर्टीज होती हैं। जो स्किन में किसी भी तरह के रैशेज, सूजन और जलन नहीं होने देतीं।
  • महिलाओं या पुरुषों में से किसी को भी गुप्त भाग (Private Part) में जलन, खुजली या रैशेज होने पर भी एलोवेरा जेल का उपयोग किया जा सकता है।

चिरायता-

चिरायता को चिरेता भी कहा जाता है। यह मूल रूप से हिमालय में पाई जाने वाली औषधीय पौधों में शामिल है । जिसका उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। चिरायता का प्रयोग मादक और गैरमादक (alcoholic and non-alcoholic) पेय के लिए भी किया जाता है। इसलिए चिरायता को कड़वा टॉनिक भी बोला जाता है। चिरायता स्वाद में जितना कड़वा होता है, उतना ही रोगों से लड़ने में फायदेमंद होता है। आमतौर पर चिरायता का उपयोग बुखार, कब्‍ज, भूख की कमी, आंतों के कीड़े, पेट की समस्‍या, त्‍वचा रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। निम्न बातों से हम जानेंगे चिरायता के फायदे के बारे में-

 
  • चिरेता का उपयोग खून को साफ करने के लिए औषधि के रूप में किया जाता है।
  • चिरेता में एंटीवायरल गुण पाया जाता है। जो खांसी, जुकाम, सर्दी जैसी वायरल इन्फेक्शन को रोकता है।
  • इसका सेवन भूख बढ़ाने में मदद करता है।
  • चिरेता में स्वेरचिरिन (Swerchirin) नामक तत्व होता है। जो एंटी-मलेरिया के रूप में काम करता है।
  • चिरेता में एंटीपैरासिटिक गुण होता है। जिससे पेट व आंतों में होने वाले कीड़ों को नष्ट करता है।
  • यह शरीर के पाचन स्वास्थ्य को बेहतर करता है।
  • चिरेता जोड़ो के दर्द में के लिए भी अच्छा होत है।

इंद्रायण-

आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो अनगिनत बीमारियों के उपचार में सहायता करते हैं। इंद्रायण का वानास्पतिक नाम सिटुल्स कोलोसिंथिस (Citrullus colocynthis) है। जिसे कोलोसिंथ (Colocynth) के नाम से भी जाना जाता है। इंद्रायण का फल तरबूज के परिवार से संबंध रखता है। यह एक बारहमासी लता (बेल) है, जो भारत के बलुई क्षेत्रों के खेतों में उगाई जाती है। इंद्रायण के तीन प्रकार हैं। बड़ी इंद्रायण, छोटी इंद्रायण और लाल इंद्रायण। इसकी हर प्रकार की बेल पर लगभग 50-100 फल लगते हैं। जो कई तरह की स्वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। आइए जाने इन्‍द्रायन के कुछ स्‍वास्‍थ्‍य लाभों के बारे में-

 
  • इन्द्रायण का प्रयोग कील मुहांसो जैसी समस्या के लिए किया जाता है। इसके लिए जड़ों को पीसकर प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं।
  • इसमें एंटी-डायबिटिक गुण होते हैं, जो मधुमेह को कम करने में मदद करते हैं।
  • इंद्रायण ऑस्टियोआर्थराइटिस (जोड़ों की बीमारी) के दर्द और सूजन को कम करने में सहायता करता है।
  • इसका इस्तेमाल आंतो के कीड़ों को दूर करने के लिए जाता है।
  • इंद्रायण के तेल को सिर में लगाने से बालों का विकास होता है। साथ ही इन्द्रायण बालों की झड़ने और सफ़ेद होने वाली समस्या को कम करता है।

गिलोय (गुडुची)-

आयुर्वेद में गिलोय को उत्तम दर्जे की जड़ी-बूटी माना जाता है। इसलिए इसे जड़ी-बूटियों की रानी भी कहा जाता है। गिलोय एक बहुवर्षीय लता होती है। इसके पत्ते पान की तरह और फल मटर के दाने जैसे होते हैं। यह प्रमुख औषधीय पौधों में से एक है। गिलोय के पत्ते स्वाद में कड़वे, कसैले और तीखे होते हैं । गिलोय में क्षाराभ प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें पाए जाने वाले अन्य जैव-रासायनिक पदार्थ स्टेरॉयड, फ्लेवोनोइड, लिग्नेंट, कार्बोहाइड्रेट हैं। इनकी उच्च पोषक तत्व सामग्री के कारण, गिलोय का उपयोग कई हर्बल, आयुर्वेदिक और आधुनिक दवाओं के निर्माण के लिए किया जाता है।

 
  • गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाता है।
  • यह ज्वरनाशी है अर्थात पुराने से पुराने बुखार के इलाज में गिलोय का सेवन करना बेहतर विकल्प है।
  • गिलोय शरीर के रक्त प्लेट्स को बढ़ाता है और डेंगू बुखार के लक्षणों को कम करता है।
  • गिलोय में आक्सीकरण रोधी गुण होते हैं। जो स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और खतरनाक बीमारियों से लड़ने में सहायक होते हैं।
  • इससे रक्त शर्करा और लिपिड के स्तर को कम करता है। इसलिए टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को गिलोय के रस का सेवन करना लाभप्रद होगा।
  • गिलोय नेत्र विकारों के लिए फायदेमंद है।
  • इसके सेवन से शरीर का पाचन तंत्र मजबूत होता है।

अश्वगंधा-

अश्वगंधा प्राचीन काल से आयुर्वेद में उपयोग होने वाली एक कारगर औषधि है। सालों से इसका इस्तेमाल कई बीमारियों के लिए होता आया है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रयोग कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई छोटे-बड़े गुण निहित हैं। इसके अलावा अश्वगंधा शरीर में  एंटीऑक्सिडेंट की आपूर्ति करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) को मजबूत बनाता है। इसमें जीवाणुरोधी (antibacterial) और रोगरोधी (anticonvulsant) गुण भी होते हैं। जो शरीर और मस्तिष्क के लिए कई अन्य लाभ प्रदान करते हैं। अभी नजर डालते हैं अश्वगंधा के कुछ फायदों पर-

 
  • इसमें ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं। जो तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करते हैं।
  • अश्वगंधा के चूर्ण को गिलोय के साथ सेवन करने से बुखार से निजात मिलती है।
  • यह सूजन और जोड़ों के दर्द में राहत देने का काम करता है।
  • अश्वगंधा की जड़ों का पेस्ट घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
  • अश्वगंधा बॉडी में कोर्टिसोल के लेवल को कम करके बाल झड़ने की समस्या को कम करता है।
  • व्यक्ति के यौन संबंधी रोग के लिए अश्वगंधा रामबाण औषधि है। यह पुरुषों में शुक्राणु (Sperm) बढ़ाने में मदद करता है।

ब्रह्मी-

ब्राह्मी एक प्रकार का औषधीय पौधा है। ब्राह्मी का तना और पत्तियां मुलामय और गूदेदार होती हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं। भारत में इसे विभिन्‍न नामों से जाना जाता है जैसे- सफेद चमनी, सौम्‍यलता, वर्ण, नीरब्राम्‍ही, जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि। इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है।

 

आयुर्वेद में ब्राह्मी के सभी भागों को जैसे पत्ते, फूल, फल, बीज और जड़ आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसे ब्रेन बूस्टर के नाम से भी जाना जाता है। ब्राह्मी याद्दाश्त बढ़ाने के लिए नायाब औषधि है।

 

ब्राह्मी को एक तरह का नर्व टॉनिक भी माना जाता है। यह नसों की कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती है। इसका इस्तेमाल खून से संबंधी विकारों, बुखार, पीलिया, हिस्टीरिया, मिर्गी, उन्माद, खांसी, बाल झड़ने, मूत्राशय से संबंधी विकारों, मेमोरी लॉस के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर को कम करने, अनिद्रा और तुतलाहट को दूर करने के लिए किया जाता है। आइए जानते है ब्राह्मी के फायदे के बारे में-

 
  • यह शरीर में उपस्थित कोर्टिसोल के स्तर को कम करता है। इससे तनाव, थकान, चिंता को कम किया जाता है।
  • ब्राह्मी में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जो कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकते हैं।
  • ब्राह्मी का इस्तेमाल प्रतिदिन करने से पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
  • प्राकृतिक रूप से यह शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायता करता है।
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Black Seed Oil- Benefits, Uses, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Black Seed Oil- Benefits, Uses, and Side-effects

Black Seed Oil (Nigella Satva), also known as Kalonji Oil, is extracted from a small flowering plant. It is up to 20 to 30 cm long with divided, thin, sequential leaves containing five to ten petals. The fruits of Kalonji have tiny black seeds. Using black seeds in home remedies is famous for thousands of years. These cure many diseases.

 

 People use them in cooking to add flavour to curries, bread, and pickles. When eaten raw, the seeds have a bitter flavour that often tastes like cumin or oregano. Kalonji has various names such as black caraway, black cumin, black onion seed.

 

Why is Black Seed Oil Beneficial?

Kalonji seeds are a powerhouse of amino acids, iron, crude fibers, sodium, calcium, and potassium. Kalonji is also rich in Vitamin A, Vitamin B, Vitamin B12, Niacin, and Vitamin C.

 

The black seeds oil is a preferred choice as compared to other oils as it contains healthy fatty acids, vitamins, and minerals. It includes approximately 26% carbohydrates, 17% protein, 57% plant fats and oils.

 

Benefits of Black Seed Oil

 

 Beneficial for high blood pressure and Cholesterol patients

 

Taking black cumin seed extract for two months results in reducing high blood pressure. Kalonji oil is rich in nutrients and antioxidants which help to reduce blood pressure.

 

Taking kalonji oil reduces high cholesterol as well. It’s rich in linoleic acids and oleic acid that reduce bad cholesterol (LDL) and maintains healthier cholesterol levels in the body.

 

Improving rheumatoid arthritis symptoms-

 

The anti-inflammatory properties of black seed oil help to relieve symptoms of rheumatoid arthritis. Oral consumption of kalonji oil may help to reduce joint inflammation in rheumatoid arthritis.

 

 Decreasing asthma symptoms-

 

The anti-inflammatory properties of black seed oil may improve symptoms of asthma. Its effect in reducing inflammation in the airways may also help in easing bronchitis symptoms.

 

Reduces stomach problems-

 

The black seed oil also helps to relieve stomach pain and cramps. The oil is effective in relieving stomach bloating, gas, and ulcers as well.

 

Rich in antioxidants

 

Antioxidants may reduce inflammation and protect against several health problems. It may cure heart disease, Alzheimer’s disease, and cancer.

 

Black seed oil is rich in thymoquinone, which has potent anti-inflammatory and antioxidant effects. It may protect brain health.

 

Aids in weight loss

 

Kalonji may help reduce the body mass index (BMI) in individuals with obesity or type 2 diabetes.

 

Good for skin and hair

 

Besides medical uses, using black seed oil topically helps to treat a variety of skin conditions and also hydrates hair.

 

The antimicrobial and anti-inflammatory effects of kalonji oil may help in treating skin conditions such as acne, eczema, general dry skin, and psoriasis.

 

Uses of Black Seed Oil

 

 In Cooking

 

The flavour and aroma enhance the taste of various dishes. The seeds may be toasted and sprinkled on flatbreads like naan, biscuits, soups, curries, and stir-fries. Grind it and mix it with other seasonings like mustard, fennel, and cumin seeds.

 

For Beauty

 

Black seed oil is an essential ingredient in many cosmetic products. It helps to cure various skin problems which makes it a perfect solution to tackle skin diseases.

 

For Medicinal home remedies

 

Kalonji oil is effective in treating a lot of health conditions. Therefore, the use of oil and seeds is common in houses.

 

Side effects of Black Seed Oil

 

Kalonji doesn’t have any known side-effects. However, consumption in excess amount can cause various problems such as –

 
  • It may lower blood sugar levels or blood pressure. People with low blood pressure and low blood sugar should avoid it.
  • Its effect is not known for women who are breastfeeding. So, lactating mothers should avoid it.
  • Kalonji may hamper the blood clotting process during or after surgery.
  • It may also cause an allergic reaction when applied to the skin.

Where is Kalonji/ Black seed found?

 

Black seed is native to Eastern Europe in the regions of Cyprus, Bulgaria, and Romania, and Western Asia in Turkey, Iran, and Iraq. However, it is naturalized in parts of Europe, northern Africa, and eastern Myanmar.

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Alum- Properties, Benefits, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Alum- Properties, Benefits, and Side-effects

Alum, also known as Phitkari in Hindi, is a very commonly used substance in every household. Most people associate it as something used as an aftershave. But phitkari has much more benefits. Phitkari is a substance, which helps in making the water clean and providing a glow to the skin. Red and white phitkari are the most commonly used alum depending on the color.

 

What is Alum?

 

Phitkari is a colorless and transparent substance. It is found in the form of crystal or granulated powder. Its taste is astringent and mildly sweet. It is called potassium aluminum sulfate in the Scientific language. The stone, which looks like the whole salt, has innumerable medicinal properties. 

 

Due to the properties, it is very important in the field of medicine.

 

In Ayurveda, Phitkari is called Saurastri. It is used for various kinds of treatments. Alum has analgesic (pain reliever), antipyretic (fever reliever), homeostatic, corrosive, stimulant, irritant removing properties. It is also a major cleaning agent. In addition, Phitkari is also very beneficial for health.

 

Medicinal Properties found in Phitkari

  • Antibiotic (exterminating microorganisms)
  • Anti-inflammatory (inflammation reducing)
  • Astringent
  • Anti-trichomonas (reducing protozoan infections)
  • Antioxidant (destroying free radical effect)
  
 

Types of Alum and their Use

 
 
 

Potassium alum-

 

Also known as ‘potash alum’ and ‘potassium alum sulfate’. It is primarily used to clean water. 

 

Ammonium alum-

 

Ammonium alum is a white crystalline stone. This is a major ingredient in manufacturing after-shave lotion and personal care products.

 

Chrome alum-

 

Also known as chromium potassium sulfate, this type of phitkari has its use in the leather-making process.

 

Sodium alum-

 

It is an inorganic compound of alum, also called ‘soda alum. It is a major ingredient for making baking powder and also in food additives. Therefore, people also call it ‘eating alum’.

 
 
 

Selenate alum-

 

This type of Phitkari contains selenium instead of sulfur. Hence it is also used as an antiseptic.

 

Aluminum sulfate-

 

People also call it ‘papermaker alum’ but it is not Phitkari, technically.

 

Advantages of Alum

In daily life, Phitkari cures a number of health problems ranging from beauty to severe injuries, muscle spasms, and pimples as well. Let us know about some other similar benefits of Phitkari-

 

Good for teeth-

 

Phitkari helps in fixing cavities in teeth. Therefore, regular use of Phitkari is good for teeth. In addition, it also removes tooth worm. 

 

Useful for mouthwash-

 

According to research conducted by Turkey’s Ghazi University, Phitkari helps remove plaque deposited on teeth and eliminate harmful bacteria present in saliva. Therefore, Phitkari is useful for mouthwash.

 

Effective to remove body odor-

Phitkari is also beneficial in removing body odor. Phitkari has antibacterial properties. Therefore, bathing by mixing Phitkari in water eliminates the bacteria that cause the odor of the body and removes bad body odor. Due to this property of Phitkari, it is a major ingredient in manufacturing deodorants. 

 

Able to reduce the effects of wrinkles and aging-

 

According to NCBI research, Phitkari is a natural astringent. It helps to cure the lifeless, dry skin by tightening the skin. Due to the same properties of Phitkari, it is present in many cosmetic creams.

 

Freedom from lice-

 

Phitkari also has a positive effect on hair. It is also effective in curing the problem of lice. For this, apply phitkari paste on the scalp.

 

Beneficial in Urinary Tract Infection-

 

Alum also benefits in problems related to Urinary Tract Infection (UTI). Phitkari is a strong astringent which works effectively on the bleeding part. Phitkari helps to prevent bleeding from the bladder due to an infection. Never apply it directly to the infected area. Doing so can cause severe burns.

 

Best medicine for wounds-

 

Phitkari is one of the best medicine for healing wounds. For this, keep the Phitkari directly or as a paste on the wound for one to two minutes and then wash it with water. By doing this, the bacteria present on the wound die, and the wound heals quickly. 

 

Beneficial for acne-

 

According to research conducted by the International Journal of Women’s Dermatology, Phitkari has astringent properties. This fixes the problem of acne by tightening the pores. 

 

Effective for eye abscesses-

 

Alum is a good solution to cure eye boils. For this, make Phitkari and sandalwood paste and apply it to the boils of the eye. This is an effective remedy for eye abscesses.

 

Side effects of Alum

  • Excess use of potassium Phitkari can adversely affect the skin.
  • Excessive intake of Phitkari may negatively affect semen and fructose levels in men.
  • Prolonged consumption of Phitkari can cause cancer and Alzheimer’s (amnesia).
  • Excessive use of Phitkari causes dysentery and skin dryness.
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