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वत्सनाभ के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 30 July, 2022

वत्सनाभ के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

वत्सनाभ एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। यह बच्छनाभ या ऐकोनाइट परिवार से सम्बंधित है। इसलिए इसे भारतीय एकोनाइट (Indian aconite) के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में वत्सनाभ की जड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। अपने औषधीय गुणों के कारण वत्सनाभ आयुर्वेदिक चिकित्सा में उत्तम दर्जे की औषधि मानी जाती है।

वत्सनाभ स्वाद में तीखा, कड़वा और कसैला होता है। इसकी कंदमूल यानी जड़ का उपयोग औषधि के तौर पर उपयोग किया जाता है। यह जड़ी-बूटी सर्दियों में अधिक गुणकारी होती है। वत्सनाभ को अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसके एकोनिटम फेरॉक्स, मीठा विष, मीठा तेलिया, बचनाग, वचनाग, कठ विश, वासनोभी, विश, विचनग इत्यादि नाम हैं। लेकिन ज्यादातर आम बोल-चाल की भाषा में इसे मीठा तेलिया के नाम से पुकारा जाता है।

आयुर्वेद में वत्सनाभ का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार, वत्सनाभ का कायाकल्प प्रभाव होता है, जो त्रिदोष, विशेष रूप से वात और कफ को संतुलित करता है। यह पाचन में सुधार करता है। यह सर्दी से राहत दिलाने का काम करता है। साथ ही शरीर में पोषण प्रदान करके ताकत बढ़ाता है। आमतौर पर वत्सनाभ का इस्तमाल खांसी, बुखार, अस्थमा, अपच, एनोरेक्सिया, स्प्लीन (तिल्ली रोग), और गठिया के आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है।

वत्सनाभ के कुछ उपचारक गुण निम्नलिखित हैं

  • एंटी पिरेटिक (ज्वरनाशक)।
  • डायफोरेटिक (पसीना कम करने वाला)।
  • एनोडाइन (पीड़ा-नाशक)।
  • एंटी इंफ्लेमेंटरी (सूजनरोधी)।
  • आम पाचक (डिटॉक्सिफायर)।
  • म्यूकोलाईटिक।
  • मूत्रवधक (ड्यूरेटिक)।

वत्सनाभ के फायदे

  • बवासीर के इलाज में सहायकवत्सनाभ अपने त्रिदोष संतुलन गुणों के कारण बवासीर के प्रबंधन में सहायक होता है। इसके दीपन और पाचन गुण पाचन तंत्र को स्वस्थ्य बनाए रखने का कामकरते है। इसके अलावा वत्सनाभ अपने वात संतुलन गुणों के कारण दर्द और सूजन को कम करने में भी मददगार है।
  • दस्त रोकने में कारगरडायरिया, जिसे आयुर्वेद में अतिसार के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति को दिन में कई बार पतले दस्त का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर यह स्थिति वात दोष के असंतुलन के कारण होती है, जो पाचन अग्नि के काम में बाधा उत्पन्न करती है। साथ ही यह अग्निमांड्य (कमजोर पाचन अग्नि) का कारण बनती है। इसके अलावा दस्त बनने का अन्य कारक दूषित भोजन, गंदा पानी, विषाक्त पदार्थ (अमा) और मानसिक तनाव होते हैं। वत्सनाभ अपने वात संतुलन गुणों के कारण दस्त के इलाज में मदद करता है। इसके दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पचन (पाचन) गुणों के कारण यह पाचक अग्नि को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
  • पाचन में सुधार करता हैअपच का मुख्य कारण अग्निमांड्य (कमजोर पाचक अग्नि) होता है। वत्सनाभ में मौजूद पित्त, दीपन और पचन गुण अग्नि (पाचन अग्नि) को बढ़ाकर पाचन में सुधार करने में मदद करते हैं।
  • अस्थमा को ठीक करता हैअस्थमा होने का मुख्य दोष वात और कफ हैं। वत्सनाभ बलगम के निर्माण और संचय को रोकता है। इस प्रकार यह अपने वात और कफ के संतुलन करने वाले गुणों के कारण अस्थमा के लक्षणों का इलाज करता है।
  • मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायकवत्सनाभ मधुमेह के उपचार के लिए बेहद प्रभावी औषधि है। क्योंकि इसमें एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होता है। यह आंतों से कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को धीमा करता है। जिससे रक्त शर्करा और इंसुलिन के स्तर को संतुलित रखने में मदद मिलती है।

वत्सनाभ के अन्य लाभ

  • वत्सनाभ रतौंधी, नेत्र संक्रमण, ओटाइटिस और दृष्टि के उपचार में उपयोगी है।
  • यह सिरदर्द और साइटिका को दूर करने के लिए एक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • यह त्रिदोष, विशेष रूप से वात और कफ को संतुलित करता है।
  • एनोरेक्सिया, तिल्ली विकार के उपचार में सहायक होता है।
  • यह बिच्छू और सांप के काटने से होने वाले जहर को कम करता है।
  • यह अन्य औषधियों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है।

वत्सनाभ का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां

  • वत्सनाभ एक जहरीली जड़ी बूटी है। इसलिए इसे केवल चिकित्सकीय देखरेख में ही सेवन करें।
  • वत्सनाभ का सेवन अम्लीय और नमकीन खाद्य पदार्थों के साथ करने पर एलर्जी का कारण बन सकता है। इसलिए, वत्सनाभ का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरुर लेनी चाहिए।
  • वत्सनाभ स्वाभाविक रूप से विषैला होता है। जिसके कारण यह भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान इसके सेवन से बचें।
  • एनोरेक्सिया, तिल्ली विकार के उपचार में सहायक होता है।

वत्सनाभ के दुष्प्रभाव

इसका सेवन अधिक मात्रा में करने से कई दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। जो निम्नलिखित हैं

  • मतली
  • उल्टी
  • थकान
  • सिरदर्द
  • सिर का चक्कर
  • शुष्कता
  • धुंधली दृष्टि
  • पेरेस्टेसिया (हाथ, पैर या शरीर के किसी अन्य हिस्सों में जलन या चुभन महसूस होना)।

यह कहां पाया जाता है?

वत्सनाभ मूल रूप से पूर्वी हिमालय, मध्य नेपाल से उत्तरी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश से असम तक पाई जाती है। यह 2100-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। इसके फूलों की अवधि अगस्त से अक्टूबर तक होती है।

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What is Yarrow? Know its Importance, Benefits, Uses and Side effects in Ayurveda

Posted 30 July, 2022

What is Yarrow? Know its Importance, Benefits, Uses and Side effects in Ayurveda

Yarrow is a perennial large flowering plant known by the scientific name Achillea millefolium. The flowers are yellowish white and arranged in clusters and have been used for their amazing health benefits since ancient times. It is also widely known as a nosebleed plant, because its leaves have the potential to thicken blood and control nosebleeds.

Importance of Yarrow in Ayurveda

In Ayurveda, Yarrow helps control fever by causing sweating due to its antipyretic and diaphoretic properties. Due to its antispasmodic properties, it is also used to treat diarrhea. Consuming yarrow leaves can also aid digestion due to its carminative properties.

Nutritional Values of Yarrow

Yarrow is a powerful therapeutic herb containing vitamins, minerals, flavonoids and antioxidants. Yarrow is packed with vitamins A, C, and minerals like iron, magnesium, and potassium.

Uses of Yarrow

Highly valued for its indispensable healing properties, yarrow is mainly consumed in the form of tea. Tea made from yarrow leaves helps treat fever by stimulating sweating due to its antipyretic and diaphoretic properties. The refreshing yarrow tea improves the digestive process due to its carminative properties and is used to treat diarrhea due to its antispasmodic properties. The whole yarrow plant is edible as it is a gentle herb and provides many health stimulants such as strong herbal tea, extracts or essential oils.

Yarrow has astringent properties which helps tighten skin and when mixed with some skin care products, treats skin problems such as acne. Due to its pain-relieving and anti-inflammatory properties, yarrow leaves can also be chewed for toothaches. In addition, the leaves and flowers of yarrow can be used fresh and dried and can be used as an aromatic spice in various culinary temptations.

Health Benefits of Yarrow

  • Heals woundIt is used to treat bleeding wounds, scars and other skin problems. Fresh yarrow leaves are wrapped or tied around a cut or wound, its healing properties helps speed up the healing process. Yarrow oil is endowed with antimicrobial properties and antioxidants which can be beneficial in treating various skin diseases. In addition, cleaning with a decoction of yarrow flowers is useful in the treatment of eczema.
  • Relieves in stressThe goodness of flavonoids and powerful alkaloids in yarrow can help relieve symptoms of depression and anxiety. The phytonutrients found in yarrow play an important role in reducing the secretion of corticosterone (a hormone that increases with stress). In addition, the essential oil is commonly used in aromatherapy to calm and relax the mind.
  • Reduces inflammationThis herbal remedy is known to reduce inflammation of the skin and liver. Yarrow tea is beneficial for treating skin infections, signs of aging, fatty liver disease, and fever.
  • Improves brain healthYarrow is a herbal remedy that helps to cure brain disorders such as multiple sclerosis. Yarrow is believed to have anti-seizure effects, which treat epilepsy. Adding this herbal tea to your diet is beneficial for improving memory also.
  • Improves digestionYarrow is primarily used to treat symptoms of Irritable Bowel Syndrome (IBS) such as abdominal pain, diarrhea, bloating and constipation. Loaded with a storehouse of flavonoids and alkaloids, this bioactive plant is renowned for relieving digestive problems and improving gut health.

Precautions and Side effects of using Yarrow

Yarrow is considered harmless. Even after using it for long, no known side effects were reported. However, when taken in excessive amounts, it can cause short-term side effects such as

  • Yarrow is possibly hazardous if taken orally during pregnancy as it may affect the menstrual cycle and cause miscarriage.
  • It can slow blood clotting. Consumption of yarrow might increase the risk of bleeding in people with bleeding disorders.
  • Yarrow may cause an allergic reaction in people sensitive to this flower. If you have allergies, be sure to consult your doctor before taking yarrow.
  • Drowsiness (Feeling abnormally sleepy).
  • Skin irritation.
  • Increased urination.

Where is it found?

Yarrow is widely grown in parts of North America, Europe and Asia. In India, Yarrow is found in the Himalayan region of Jammu and Kashmir, Himachal Pradesh and Uttarakhand.

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कोकिलाक्ष क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 18 July, 2022

कोकिलाक्ष क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

कोकिलाक्ष, जिसे आमतौर पर इक्षुरा या तालमखाना कहा जाता है। आयुर्वेद में यह एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। इसे कुली, इक्षुरा और इक्षुगंधा के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ है "भारतीय कोयल की तरह आंखें रखना"। कोकिलाक्ष पूरे भारत में जल स्रोतों, खेतों और दलदलों के आसपास पाया जाता है। इसका एक अलग गुण यह है कि कोकिलाक्ष के बीज पानी के संपर्क में आकर फूल जाते हैं और पतले हो जाते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण आयुर्वेद में इसका उपयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम हाइग्रोफिला ऑरीकुलाटा (Hygrophila auriculata) है। /p>

आयुर्वेद में कोकिलाक्ष का महत्व

जड़ी-बूटियों में अपना प्रमुख स्थान रखने वाली कोकिलाक्ष के पौधे के सभी भाग जैसे जड़, पत्तियां,फूल, तना और फल औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, कोकिलाक्ष वात और पित्त दोष को शांत करता है। इसमें मीठा स्वाद और ठंडी ताकत होती है। इस पौधे में ल्यूपोल, स्टिग्मास्टरोल और हाइड्रोकार्बन मौजूद होते हैं। इस पौधे के बीज स्टेरोल से भरपूर होते हैं और फूलों में एपिजेनिन ग्लुकुरोनाइड होता है।इसमेंएंटी-हाइपरयूरिसेमिक, एंटी-रूमेटिक, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एनाल्जेसिक, कार्मिनेटिव और हेपटोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं।

कोकिलाक्ष के स्वास्थ्य लाभ

  • मधुमेह में कारगर कोकिलाक्ष में पाए जाने वाले गुण इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं की रक्षा करके रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए, यह मधुमेह के उपचार में सहायक है।
  • रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगारकोकिलाक्ष का नियमित सेवन शरीर को मजबूत बनाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है। यह सेलुलर एंजाइम को सक्रिय करके शरीर की चयापचय क्षमताओं को बढ़ाता है। यह शरीर में घाव और सूजन से आसानी पूर्वक उबरने में भी मदद करता है।
  • पीलिया में सहायककोकिलाक्ष एंटी ऑक्सीडेंट और हेप्टोप्रोटेक्टिव गुणों से भरपूर है। यह लीवर को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाता है। यह पित्त स्राव को भी बढ़ाता है। इसलिए, यह पीलिया के इलाज में प्रभावी है।
  • मूत्र उत्पादन को बढ़ाता हैकोकिलाक्ष मूत्र उत्पादन में वृद्धि को बढ़ावा देता है। इसमें मूत्रवर्धक गुण पाए जाते हैं, जो पेशाब के दौरान होने वाली कठिनाई से राहत दिलाते हैं। इसके अलावा कोकिलाक्ष पौधे के बीजों का ठंडा जलसेक कम मूत्र उत्पादन से पीड़ित लोगों को दिया जाता है।
  • अच्छा यौन स्वास्थ्य बनाए रखता हैकोकिलाक्ष एक प्राकृतिक कामोद्दीपक है। इसलिए इसके बीजों का चूर्ण पुरुषों में अच्छे यौन स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए बेहद फायदेमंद होता है। यह शुक्राणुओं की संख्या और शक्ति को बढ़ाकर पुरुष प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।

कोकिलाक्ष के दुष्प्रभाव

  • कोकिलाक्ष का सीमित मात्रा में सेवन से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
  • गर्भावस्था के दौरान या स्तनपान कराने वाली माताओं को कोकिलाक्ष के सेवन से बचना चाहिए। या चिकित्सकीय देखरेख में उपयोग करें।
  • कोकिलाक्ष के चूर्ण को गोमूत्र में मिलाकर शरीर की सूजन (अनासरका) का इलाज किया जाता है।

यह कहां पाया जाता है?

कोकिलाक्ष एसेंथस परिवार का एक औषधीय पौधा है। यह प्रायः दलदली क्षेत्रों में उगता है और उष्णकटिबंधीय एशिया और अफ्रीका में पाया जाता है। भारत में, यह मुख्य रूप से जल स्रोतों और दलदली भूमि के पास देखने को मिलता है।

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मण्डूकपर्णी क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 18 July, 2022

मण्डूकपर्णी क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

मण्डूकपर्णी को आम बोलचाल की भाषा में गोटू कोला के नाम से जाना जाता है। यह एक प्राचीन सुगंधित बारहमासी जड़ी बूटी है। मंडुकपर्णी की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के दो शब्दों से हुई है। पहला ‘मंडूक’ जिसका शाब्दिक अर्थ मेढक और दूसरा ‘पर्णी' अर्थात पत्तियां होती है। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है किइसकी पत्तियों का आकार चमड़ी वाले मेंढक के पैरों जैसा दिखता है। मण्डूकपर्णी एक लता होती है जिसकी जड़ें शाखाओं की गांठों पर होती हैं। इसका वैज्ञानिक नाम सेंटेला एशियाटिका (Centella Asiatica) है।

मण्डूकपर्णी समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु में पाया जाता है और पूरे विश्व में इसकी खेती की जाती है। आमतौर पर यह एशियाई क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक फूल वाला पौधा है, जिसे खाने और चिकित्सीय प्रयोजन में प्रयोग किया जाता है।

मण्डूकपर्णी के औषधीय गुण

मण्डूकपर्णी में विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो कई शारीरिक समस्याओं के इलाज में मदद करते हैं। यह इस प्रकार हैं

  • एडाप्टोजेन (Adaptogen) - शरीर को तनाव मुक्त रखने में मदद करता है।
  • एनाल्जेसिक (Analgesic)- दर्द से राहत दिलाता है।
  • एंजियोजेनिक (Angiogenic)- नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण को बढ़ावा देता है।।
  • एंटी कंवलसेन्ट (Anticonvulsant)- दौरे को रोकने या राहत देने का काम करता है।
  • अवसाद रोधी (Antidepressant)- अवसाद से राहत दिलाता है।
  • सूजन रोधी (Anti-inflammatory)- सूजन को कम करता है।
  • ज्वरनाशक (Antipyretic / Antifebrile)- बुखार को प्रभावी ढंग से ठीक करता है।
  • एंटी रूमेटिक (Antirheumatic)- गठिया के लिए उपयोगी।
  • एंटी स्ट्रेस (Anti-stress)- तनाव दूर करता है।
  • एंटी कैंसर (Anticancer)- ट्यूमर के विकास को रोकता है।
  • एंटी अल्सर (Antiulcer)- अल्सर का इलाज करता है।
  • मूत्रवर्धक (Diuretics)- मूत्र के उत्सर्जन को बढ़ावा देता है।
  • डेपुरेटिव Depurative- शुद्ध करने वाला एजेंट है।
  • इम्यूनोमॉड्यूलेटरी (Immunomodulatory)- रोग-प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य प्रणाली में सुधार करता है।
  • शामक (Sedative)- शांति को बढ़ावा एवं नींद को प्रोत्साहित करता है।

आयुर्वेद में मण्डूकपर्णी का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार, तंत्रिका तंत्र का प्रबंधन वात द्वारा किया जाता है। वात असंतुलन खराब मानसिक सतर्कता का कारण बनता है। मण्डूकपर्णी अपने मध्य (मस्तिष्क-टॉनिक) गुणों के कारण मानसिक सतर्कता और याददाश्त में सुधार करने में मदद करता है।

मण्डूकपर्णी के फायदे

  • अपच के इलाज में कारगर मण्डूकपर्णी का सेवन करने से अग्नि (पाचन अग्नि) को बढ़ाने में मदद मिलती है। साथ ही इसके दीपन (भूख बढ़ाने वाले) गुणों के कारण भोजन के पाचन को आसान बनाता है। जिससे अपच का इलाज होता है।
  • चिंता कम करने में सहायकमण्डूकपर्णी अपनी गतिविधियों के कारण चिंता को कम करने में मदद करती है। यह उन मध्यस्थों के प्रभाव को कम करती है जो चिंता का कारण बनते हैं। यह व्यवहार परिवर्तन और हार्मोन रिलीज को संतुलित करके न्यूरोट्रांसमीटर के कार्य को भी नियंत्रित करती है।
  • मधुमेह को नियंत्रित करने में लाभप्रदमधुमेह त्रिदोष विकृति के कारण होता है। इससे शरीर में आम या टॉक्सिन्स का निर्माण बढ़ जाता है। ऐसे में मण्डूकपर्णी दोषों को संतुलित करती है। साथ ही शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है। यह पाचक होने के साथ साथ एक अग्नि दीपक या क्षुधावर्धक के रूप में भी कार्य करती है, जो उच्च रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में सहायक होता है । इस प्रकार, मंडुकपर्णी मधुमेह के उपचार में लाभकारी होती है।
  • मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) के इलाज में सहायकमूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) पित्त दोष में असंतुलन के कारण होता है। मण्डूकपर्णी का सेवन पित्त को संतुलित करता है और मूत्र प्रवाह को बढ़ाता है। इस प्रकार मूत्र का उत्पादन मूत्र पथ में सूजन या इक्कठे हुए टॉक्सिन्स दूर करने मदद करता है।
  • लीवर की समस्या से बचाता हैपित्त दोष में असंतुलन के कारण लीवर की समस्या होती है। जब पित्त कम हो जाता है, तो यकृत के कार्य प्रणाली में बाधा उत्पन्न होने लगता है। ऐसे में मण्डूकपर्णी पित्त दोष को संतुलित करती है। साथ ही उसके कार्यप्रणाली में सुधार करती है। जिससे यकृत की समस्याओं का इलाज होता है।

मण्डूकपर्णी के उपयोग

  • फटी एड़ियों के लिएमण्डूकपर्णी चूर्ण को 7 भाग सिक्त (bee wax)के साथ मिलाकर एड़ियों की दरारों पर लगाएं।
  • एकाग्रता के लिएमण्डूकपर्णी चूर्ण के 1 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करने से एकाग्रता बढ़ती है।
  • अवसाद के लिएमण्डूकपर्णी चूर्ण को मुक्ता पिष्टी और जटामांसी चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करने से अवसाद दूर होता है।
  • मानसिक क्षमताओं में सुधार के लिएमण्डूकपर्णी चूर्ण को घी में मिलाकर सेवन करना फायदेमंद होता है। यह मस्तिष्क को बढ़ावा देने में मदद करता है जिससे मानसिक क्षमताओं में वृद्धि होती है।
  • चिंता को कम करने के लिएशंखपुष्पी पाउडर के साथ मण्डूकपर्णी पाउडर का सेवन चिंता को कम करने में सहायक होता है।
  • अनिद्रा रोग के लिए3 ग्राम मण्डूकपर्णी चूर्ण को रात में सोते समय दूध के साथ लेने से अनिद्रा की समस्या दूर होती है।
  • घाव भरने मेंमण्डूकपर्णी का बाहरी प्रयोग घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।
  • मण्डूकपर्णी के दुष्प्रभाव

    • इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से सिरदर्द, मतिभ्रम और चक्कर आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
    • यह संवेदनशील लोगों को खुजली और लाल चकत्तों का कारण भी बन सकता है।
    • यह मासिक धर्म चक्र को प्रभावित करता है।
    • गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन न करें।

    यह कहां पाया जाता है?

    मण्डूकपर्णी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे भारत, श्रीलंका, चीन, मेडागास्कर और इंडोनेशिया में पाई जाती है।

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    कुचला क्या हैं? जानें इसके बारे में

    Posted 13 July, 2022

    कुचला क्या हैं? जानें इसके बारे में

    कुचला एक सदाबहार पौधा है, जो प्राचीन काल से ही अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। आमतौर पर इस पौधे के बीजों का उपयोग चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए उपचार के रूप में किया जाता है । इसका स्वाद कड़वा और गंध तेज़ होती है।

    इसका वैज्ञानिक नाम स्ट्राइक्नोस नक्स-वोमिका (strychnos nux-vomica) है। इसके अलावा कुचला को कई अन्य नामों से जाना जाता है, जिसमें कुछ विस्तिन्दु, काकातिंडुका, अजरकी, हब्बुल गुरब, कुसीला, कुचिला,नक्स वोमिका, कोंचला, झेर कोचला, ज़ेर कोचलू, मंजीरा, हेममुश्ती, इतोगी, कासरकेयी आदि हैं।

    आयुर्वेद में कुचला का महत्व

    आयुर्वेद के अनुसार, कुचला का प्रयोग करने से पहले उसे शुद्ध किया जाता है। शुद्धिकरण या शोधन को इतिहासों में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है इसकी शुद्धि के लिए गाय का मूत्र (गोमूत्र), गाय का दूध (गो दुग्ध) और गाय का घी (गो घृत) उपयुक्त माना गया है। इसमें कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। जिसके कारण यह कई तरह के शारीरिक और मानसिक संबंधित समस्याओं को दूर करने का काम करता है।

    कुचला भूख बढ़ाने और पाचन क्रिया को ठीक करने में मदद करता है। साथ ही कब्ज की समस्या में भी लाभ प्रदान करता है है। यह मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा होता है क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में सहायक होता है। कुचला मस्तिष्क के कार्य को नियंत्रित करके तनाव को कम करता है ,जिससे अनिद्रा की समस्या को दूर करने भी मदद होती है। यह अपने मूत्रवर्धक प्रभाव के कारण पेशाब के दौरान होने वाली जलन जैसी मूत्र संबंधी समस्याओं के इलाज में भी उपयोगी है। इसके अतिरिक्त यह अपने वाजीकरण या कामोत्तेजक गुणों के कारण स्तंभन दोष जैसी यौन समस्याओं के इलाज के लिए जाना जाता है।

    कुचला का प्रयोग किन रूपों में किया जाता है?

    कुचला को विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है। लेकिन आमतौर पर इसका इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरुरी होता है। इसका उपयोग निम्न उल्लेखित रूपों में किया जाता है

    • इसका उपयोग विभिन्न चिकित्सीय परिस्थितियों के इलाज के लिए कच्ची जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है।
    • कुचला का उपयोग तेल के रूप में भी किया जाता है।
    • कुचला गोलियों और पाउडर के रूप में भी उपलब्ध है।।

    कुचला के लाभ

    • नपुंसकता कुचला में मौजूद वाजीकरण या कामोत्तेजक गुणों के कारण, यह स्तंभन दोष को दूर मदद करता है। साथ ही यह शुक्राणुओं की संख्या और शक्ति को बढ़ाकर पुरुष प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
    • भूख बढ़ाता हैकुचला एक प्रभावी भूख उत्तेजक है। यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल गतिविधि को बढ़ाने, कब्ज को रोकने और पाचन तंत्र को सुधारने के लिए जाना जाता है। इसलिए भूख बढ़ाने के लिए कुचला बहुत उपयोगी साबित होता है।
    • अवसाद को कम करने में सहायककुचला को अवसाद के लक्षणों का इलाज करने के लिए जाना जाता है क्योंकि यह वात को प्रभवित ढंग से संतुलित करने में मदद करता है।
    • माइग्रेनकुचला को माइग्रेन के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
    • अस्थमाअस्थमा वात और कफ दोषों के असंतुलन के कारण होता है। यह दोनों असंतुलन मिलकर वायु को फेफड़ों में प्रवेश करने में मुश्किल बनाते हैं और सांस लेने में कठिनाई पैदा करते हैं। कुचला में कुछ यौगिक पाए जाते हैं, जिसमें कफ संतुलन गुण होते हैं। जो श्वसन क्रिया को सुचारु रूप से चलाने में मदद करते हैं। इस प्रकार यह अस्थमा के इलाज में सहायक होता है।
    • आमवात (Rheumatoid Arthritis)कुचला में सूजन कम करने वाले गुण (anti immflamatory properties) पाए जाने के कारण इसका इस्तेमाल आमवात में किया जाता है। आमवात के मरीज़ो में कुचला सूजन कम करने के साथ साथ अकड़ाहट में भी काफी आराम देता है जिससे मरीज़ को जोड़ों के दर्द में भी रहत मिलती है।
    • आम पाचक (Detoxification)कुचला एक अग्नि दीपन (पाचक अग्नि बढ़ने वाला) करने वाली औषधि है , जिसके कारण यह पेट में जमा हुए आम (toxins) का भी पाचन करता है।
    • चिंताकुचला अपने वात संतुलन गुणों के कारण चिंता को प्रबंधित और नियंत्रित करने में मदद करता है। यह चिंता के लक्षणों को काफी हद तक कम करता है।

    कुचला का उपयोग के दौरान बचाव और दुष्प्रभाव

    • यदि कोई लिवर की समस्या से पीड़ित हैं, तो इस स्थिति में कुचला के सेवन से परहेज करें।
    • गर्भावस्था एवं स्तनपान कराने वाली माताएं कुचला के सेवन से बचें।
    • कुचला के साथ एंटीसाइकोटिक दवाएं लेने से बचें।
    • हृदय रोग से पीड़ित मरीजों को कुचला का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरुर लें।

    यह निम्नलिखित दुष्प्रभाव का कारण बनता है

    • चक्कर आना।
    • उलटी लगना।
    • गर्दन और पीठ में अकड़न होना।
    • ऐंठन होना।
    • सांस लेने में तकलीफ महसूस करना।
    • शरीर में खुजली लगना।
    • बेचैनी होना।
    • मांसपेशियों में संकुचन होना।

    यह कहां पाया जाता है?

    यह समुद्र तल से 360 मीटर ऊपर देश के उष्णकटिबंधीय भागों में पाया जाता है। यह आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया, म्यांमार, श्रीलंका और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के नम पर्णपाती जंगलों में देखने को मिलता है।

    नोट: कुचला का प्रयोग केवल डॉक्टर के द्वारा निर्देशित मात्रा अनुसार ही करें।

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    कटेरी के फायदे और नुकसान

    Posted 12 July, 2022

    कटेरी के फायदे और नुकसान

    प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में कई तरह की जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता रहा है। जिसमें कई ऐसी जड़ी बूटियां हैं, जो अक्सर हमारे घरों , बगीचों और सड़कों के आस-पास देखने को मिलती हैं। लेकिन जानकारी के अभाव के कारण हम और आप उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। ऐसी ही एक जड़ी बूटी कटेरी या कंटकारी है। जिसका उपयोग शरीर को कई बीमारियों से दूर रखने में मदद करता है। कटेरी को कटीला, रेंगनी, रिगणी, कटाली, कटयाली, भटकटैया आदि नाम से भी जाना जाता है।

    कटेरी क्या है?

    कटेरी एक कांटेदार पौधा है। यह सोलानासेया (Solanaceae) परिवार से संबंध रखता है। जिसका वैज्ञानिक नाम सोलनम जैंथोकार्पम (Solanum xanthocarpum) है। कटेरी को अंग्रेजी में येल्लो बेरीड नाइटशेड (Yellow berried nightshade) के नाम से पुकारा जाता है। इसके फल आकार में गोल होते हैं और खाने योग्य होते हैं। वहीं, कटेरी के फूल नीले रंग के होते हैं। इसकी पत्तियां अंडाकार और यह कांटों से भरी होती हैं।

    आयर्वेद में कटेरी का महत्व

    वैसे तो कटेरी की कई प्रजातियां होती हैं। लेकिन आयुर्वेद में मुख्य रूप से तीन प्रजातियों (छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी और श्वेत कटेरी) का प्रयोग दवा बनाने में किया जाता है। इसकी जड़, पत्ते, फूल, फल और बीज में औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह प्रकृति से कटु या तीख़ा और तासीर से गर्म होता है। जिसके कारण कटेरी का उपयोग अस्थमा,श्वास रोग, खाँसी , नज़ला, पाचन विकार, कान की सूजन, बवासीर, पेशाब के दौरान दर्द और संक्रमण और यौन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए औषधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

    कटेरी के फायदे

    • खांसी के लिए कटेरी खांसी के उपचार के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। इस पर किए गए शोध के मुताबिक, कटेरी की जड़ में एक्सपेक्टोरेंट अर्थात बलगम को बाहर निकालने वाले गुण मौजूद होते हैं। जिसके कारण खांसी के इलाज के लिए कटेरी को आयुर्वेदिक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, कटेरी के बीज में भी कफ निकालने वाले गुण पाए जाते हैं। इसलिए कटेरी, गिलोय और पित्तपापड़ा मिश्रित काढ़े का सेवन शरीर की रोग प्रतिऱोधक क्षमता बढाने के लिए बेहद फायदेमंद होता है। नोट: किसी भी प्रकार के काढ़े का सेवन करने से पूर्व उसे बनाने की विधि एवं उसे पिने की मात्रा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेना अनिवार्य है।
    • बुखार के लिएबुखार को कम करने में कटेरी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। क्योंकि इसमें एंटीपाइरेटिक औषधीय गुण पाया जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, कटेरी की जड़ बुखार के इलाज में लाभकारी साबित होती है। यही नहीं, इस पर किए गए शोध में बताया गया है कि कटेरी की जड़ से बने रस को मट्ठे और अदरक के रस के साथ मिलाकर सेवन करने से बुखार में आराम पहुंचता है।
    • अस्थमा के लिएकटेरी अस्थमा के मरीजों में बेहद कारगर साबित होती है। इस पर किए गए शोध से पता चलता है कि कटेरी में एंटी अस्थमैटिक गुण मौजूद होतें हैं , जो अस्थमा के लक्षणों को कम करने में सहायक होते हैं।
    • सिरदर्द के लिएसिरदर्द से राहत पाने के लिए कटेरी का प्रयोग सालों से किया जाता रहा है। इसके लिए कटेरी का काढ़ा बनाकर पी लें। ऐसा करने से सिर दर्द की समस्या से तुरंत राहत मिलती है। इसके अलावा कटेरी के फल के रस को माथे पर लेप की तरह लगाने से भी दर्द से राहत मिलती है।
    • शमिर्गी के लिएमिर्गी एक मस्तिष्क संबंधी समस्या है। जिसमें व्यक्ति को बार-बार दौरे पड़ने लगते हैं। ऐसे में इससे बचाव के लिए कटेरी बेहद लाभकारी साबित होतीहै। दरअसल, कटेरी में सोलासोडीन नामक यौगिक पाया जाता है,जो मिर्गी के उपचार में काफी लाभप्रद साबित होता है। इसके अलावा कटेरी की पत्तियों में आक्षेपरोधी (anticonvulsant) गुण पाए जाते हैं ,जिससे मिर्गी के दौरे को रोकने में कुछ हद तक मदद मिलती है।
    • दांत दर्द के लिएएनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, दांत दर्द की समस्या को दूर करने के लिए कटेरी लाभकारी होती है। दांत दर्द होने पर कटेरी की जड़, छाल, पत्ते और फल को पानी में उबालें। अब इस मिश्रण को छानकर इस पानी से कुल्ला करें। ऐसा करने से दांत दर्द की समस्या से राहत मिलती। इसके अलावा कटेरी पर किए गए एक अन्य शोध से पता चलता है कि यह एनाल्जेसिक यानी दर्द निवारक गुणों से भरपूर हैं। इसलिए कटेरी के बीज के धुएं का उपयोग दांत एवं मसूड़ों के दर्द से निजात दिलाने में लाभकारी होता है।
    • पेट दर्द के लिएपेट दर्द को दूर करने में भी कटेरी बेहद असरदार साबित होती है। इसके लिए कटेरी के फूल के बीजों का सेवन करें। इसके अलावा कटेरी के फूल के बीजों को पीसकर, उसे छाछ में मिलाकर सेवन करें। ऐसा करने से पेट दर्द में लाभ मिलता है। साथ ही दस्त की समस्या होने पर इसके बीजों का सेवन करने से दस्त से भी छुटकारा मिलता है।
    • लिवर के लिएलिवर संबंधी समस्याओं के लिए कटेरी का सेवन लाभकारी होता हैं। ऐसा माना जाता है कि कटेरी लिवर के लिए बहुत अच्छा टॉनिक होता है। इससे बने काढ़े का सेवन करने से लिवर की सूजन और इंफेक्शन की समस्या से छुटकारा मिलता है।
    • बालों के लिएबालों की देखभाल और उसे हेल्दी बनाए रखने में कटेरी बेहद लाभदायक होती है। यह बालों केझड़ने की समस्या को कम करती है। झड़ते बालों एवं रुक्ष बालों की समस्या से निजात पाने के लिए कटेरी के लेप को बालों पर लगाएं। ऐसा करने से बालों की जड़ों को मजबूती मिलती हैं। साथ ही बालों के टूटने और गिरने की समस्या दूर होती हैं।
    • गंजापन के लिएआयुर्वेद शास्त्रों में गंजेपन के लिए कटेरी का प्रयोग अच्छा उपाय माना जाता है। इसके लिए श्वेत कंटकारी के फल का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर लेप बना लें। अब इस लेप बालों पर लगाएं। ऐसा करने से नए बाल निकल आते हैं। जिससे गंजेपन की समस्या दूर होती है।
    • दत्वचा संबंधी समस्याओं के लिएकटेरी त्वचा संबंधी समस्याओं को दूर करने में कारगर साबित होती है। यह त्वचा की कई समस्याएं जैसे दानें, चकत्ते, खुजली और लालिमा से छुटकारा दिलाता है। इसके लिए कटेरी की जड़ का पेस्ट बनाकर प्रभवित अंगों पर लगाएं।

    कटेरी का उपयोग

    • कटेरी के फल को अच्छी तरह से साफ करके सीधे तौर पर खाया जाता है।
    • इसके फल को सुखाकर भी खाया जाता है।
    • कटेरी का इस्तेमाल काढ़े के रूप में भी किया जाता है।
    • इसका सेवन चूर्ण के रूप में भी किया जाता है।

    कटेरी के नुकसान

    • कटेरी का काढ़ा अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी की शिकायत हो सकती हैं।
    • कटेरी के काढ़े को छोटे बच्चों को ना पिलाएं। ऐसा करने से बच्चों को पेट में दर्द हो सकताहै।
    • गर्भवती महिलाएं कटेरी का सेवन ना करें।
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    आयुर्वेद में कर्कटशृंगी के महत्व और फायदे

    Posted 12 July, 2022

    आयुर्वेद में कर्कटशृंगी के महत्व और फायदे

    आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कर्कटशृंगी वर्णन किया गया है। इसे आम बोल-चाल की भाषा में काकड़ासिंगी भी कहा जाता है। पुरातन काल से ही आयुर्वेदिक चिकित्सा में कर्कटशृंगी का प्रयोग कई गंभीर समस्याओं की रोकथाम के लिए किया जाता रहा है। इसके गुणों के कारण चिकित्सक इसका प्रयोग औषधि के रूप में करते हैं। यह प्राकृतिक जड़ी-बूटी सर्दी-जुकाम, श्वसन और पेट संबंधि समस्याओं को कम करने का काम करती है। इसलिए आयुर्वेद में कर्कटशृंगी को एक उत्तम दर्जे की औषधि माना जाता है।

    क्या है कर्कटशृंगी?

    जड़ी-बूटियों में अपना प्रमुख स्थान रखने वाली कर्कटशृंगी का प्रयोग औषधि के तौर पर किया जाता है हैं। कर्कटशृंगी को अंग्रेजी में गाल प्लांट (Gall Plant) कहते हैं। इसका वानास्पतिक नाम पिस्टेशिया चाइनेन्सिस (Pistacia chinensis) है। कर्कटशृंगी का पौधा ऐनाकार्डिऐसी (Anacardiaceous) परिवार से संबंधित है, जो एक प्रकार का शाकीय पौधा है।

    It can also be passed from person to person, but this is rare. When you come into contact with viral particles from an infected person, it is called human-to-human transmission. Coughing, sneezing, and airborne droplets can spread the infection.

    आयुर्वेद में कर्कटशृंगी का महत्व

    कर्कटशृंगी प्रकृति से गर्म और स्वाद में कड़वी होती है। इसमें कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। जो शरीर के त्रिदोष (कफ, पित्त, वात) को शांत रखने में मदद करते हैं। यह खांसी, बुखार, अस्थमा,श्वसन रोग और पेट से संबंधित समस्याओं आदि को दूर करने में कारगर साबित होती है। यह जड़ी-बूटी श्वास नली को स्वस्थ और दुरुस्त रखने का काम करती है। साथ ही कर्कटशृंगी कई तरह के वायरल, बैक्टीरियल एवं फंगल इंफेक्शन से शरीर की सुरक्षा करती है। इस औषधीय पौधे का प्रयोग बच्चों की बीमारियों के इलाज में बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसके अलावा कर्कटशृंगी वाजीकरण से संबंधित समस्याओं को दूर करने में भी सहायक होती है।

    कर्कटशृंगी के फायदे

    • खांसी को दूर करने में कारगरखांसी को दूर करने में कर्कटशृंगी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है,क्योंकि यह कफ दोष को संतुलित रखने का काम करती है। कर्कटशृंगी के पौधे की छाल से बने काढ़े को सुबह खाली पेट सेवन करने से एवं कर्कटशृंगी पौधे की छाल का चूर्ण और शहद कोसमान मात्रा में मिलाकर रात को सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से खांसी की समस्या दूर होती है।
    • श्वसन संबंधी समस्याओं में लाभप्रदकर्कटशृंगी का उपयोग अस्थमा को ठीक करने, गले और सांस की समस्याओं को कम करने के लिए औषधि के तौर पर किया जाता है। यह एक्सपेक्टोरेंट (श्वसन मार्ग से बलगम को साफ करने में सहायक) के रूप में कार्य करता है। 1-2 ग्राम कर्कटशृंगी चूर्ण में कायफल चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से श्वसन संबंधी समस्याओं में लाभ मिलता है।
    • बच्चों के लिए उपयोगीकर्कटशृंगी का सेवन बच्चों में होने वाले कई तरह के रोगों से निजात दिलाने में मदद करता है । आयुर्वेद चिकित्सा के मुताबिक, छोटे बच्चों में अधिक कफ दोष ही शरीर को प्रभावित करता है। इसलिए इन सभी बीमारियों से बचने के लिए रोजाना सुबह खाली पेट, आधा चम्मच (1ग्रा -1.5 ग्रा ) कर्कटशृंगी की छाल और आधा चम्मच पिप्पली के चूर्ण को मिलाकर गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। ऐसा करने से कफ दोष से संबंधित सभी समस्याओं में लाभ मिलता है।

    कर्कटशृंगी के अन्य लाभ

    • यह पेचिश और दस्त के उपचार में बेहद लाभकारी होता है। इसके लिए कर्कटशृंगी और बेलगिरी के चूर्ण को मिलाकर सेवन करना फायदेमंद होता है।
    • यह अपच के उपचार में सहायक होता है।
    • यह औषधि जठराग्नि को उत्तेजित करती है।
    • इसकी छाल से बने काढ़े का सेवन बुखार के इलाज में बेहद कारगर साबित होता है।
    • यह जड़ी-बूटी प्राकृतिक रूप से कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को कम करने में मदद करती है।
    • यह जड़ी-बूटी शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार करती है।
    • यह औषधि महिला प्रजनन प्रणाली के अच्छे स्वास्थ्य में समर्थन करती है।
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    झाऊ के फायदे और नुकसान

    Posted 11 July, 2022

    झाऊ के फायदे और नुकसान

    झाऊ एक सदाबहार पौधा होता है जो यूरोप, एशिया और अफ्रीका के कुछ देशो में पाया जाता है। यह टैमरीकेसी परिवार से संबंध रखता हैं। झाऊ के पत्तियों, फूलों, और जड़ों में विभिन्न प्रकार के घटक, जैसे सैपोनिन, ग्लाइकोसाइड्स, फ्लेवोनोइड्स, फिनोल, टैनिन, एल्कलॉइड, स्टेरॉयड आदि पाए जाते हैं। इन्हीं औषधीय गुणों के कारण झाऊ को आयुर्वेदिक उपचार में प्रयोग किया जाता हैं। झाऊ को झाबुक, तामारिक्सडियोका, टैंरिक्स गैलिका, इंडियन टैंरिक्स, झाओ, पिचुल, पक्के, अपलाह सिरुसावुक्कू, बहुग्रंथिह, झावुका, सिरु-कावुक्कू और कोटई-सी-कावुक्कू के नाम से भी जाना जाता है।

    आयुर्वेद में झाऊ का महत्व

    आयुर्वेद में झाऊ की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि यह विभिन्न समस्याओं को ठीक करने में मदद करता है। झाऊ में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण लिवर की रक्षा करने एवं लिवर की कोशिकाओं को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद करते हैं। झाऊ में वातहर गुणों की मौजूदगी के कारण यह पेट को आराम और पाचन तंत्र को मजबूती प्रदान करता है। झाऊ फ्लेवोनोइड्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है, जो तिल्ली (स्प्लीन) और लिवर की सूजन को कम करने में मदद करता है। झाऊ की जड़ों के लेप से घाव ठीक हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त झाऊ के रोपण, कषाय और कसैले गुण सूजन वाले ऊतकों को ठीक करते हैं। साथ ही यह मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। इसके एंटीफंगल और रोगाणुरोधी गुणों के कारण त्वचा की क्षति को संक्रमण से बचाया जाता है।

    झाऊ के फायदे

    • घाव भरने के लिएझाऊ की पत्तियों या फूलों के पेस्ट को प्रभावित जगह पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं क्योंकि इसमें पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट या टेरपेनोइड्स, ऊतकों की मरम्मत करके त्वचा को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। यह शीघ्रता से घाव भरने के लिए प्रभावित अंगों में रक्त की आपूर्ति को भी बढ़ाता है।
    • बुखार के लिएझाऊ की जड़ में मौजूद ज्वरनाशक गुण बुखार के इलाज में सहायक होते हैं। इसके लिए झाऊ की जड़ के चूर्ण का सेवन किया जाता है। ऐसा करने से शरीर का तापमान कम होता है और बुखार के लक्षण कम होने लगते हैं।
    • लिवर की समस्याओं को दूर करने में सहायकझाऊ लिवर या यकृत की समस्याओं का इलाज करने में सहायता करता है क्योंकि यह हेपेटोप्रोटेक्टिव गुणों से समृद्ध होता है। झाऊ में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट और फ्लेवोनोइड, मुक्त कणों (free radicals) के विरुद्ध एक ढाल के रूप में कार्य करता है, जिससे यकृत की क्षति को रोकने में मदद मिलती है। इसके लिए 1-2 ग्राम झाऊ चूर्ण (या अपने चिकित्सक के निर्देशानुसार) को पानी में मिलाकर दिन में एक या दो बार सेवन करें।
    • मसूड़ों से रक्त आने की समस्या को दूर करने में सहायकझाऊ में कषाय या कसैले गुण पाए जाते हैं जो मसूड़ों से रक्त आने की समस्या को दूर करते हैं। इसके अलावा यह सभी गुण सूजन और फंगस को कम करने में भी मदद करते हैं।
    • गुर्दे की पथरी का इलाज करने में कारगरझाऊ, गुर्दे की पथरी बनने की संभावना को कम करने के लिए बहुत ही उपयोगी है। झाऊ के म्यूरल या मूत्रवर्धक गुण गुर्दे की पथरी से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं और मूत्र उत्पादन को बढ़ाते हैं। इसके अलावा झाऊ में मौजूद औषधीय गुण संक्रमण को रोकने में सहायक होते हैं।
    • गैस्ट्रिक समस्याओं में उपयोगीपेट की समस्याओं के लिए झाऊ बेहद फायदेमंद होता है। इसके पाचन गुण गैस और पेट फूलने के इलाज में मदद करते हैं। साथ ही पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली में सुधार करते हैं। इस प्रकार यह पाचन तंत्र से गैस को बाहर निकालने में सहायक होता है।
    • त्वचा संक्रमण से छुटकारा दिलाने में मददगारझाऊ अपने एंटी फंगल गुणों के कारण फंगल संक्रमण का इलाज करने में मददगार होता है। इसके एंटी माइक्रोबियल गुण प्रभावित अंगों में कवक के विकास और रोगाणुओं की गतिविधि को रोकता है। इस प्रकार यह त्वचा में संक्रमण से छुटकारा दिलाने में बेहद फायदेमंद होता है।

    झाऊ का सेवन करते समय बरतें यह सावधानियां

    • स्तनपान कराने वाली महिलाऐं झाऊ का सेवन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
    • गर्भावस्था के दौरान झाऊ का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।

    झाऊ के दुष्प्रभाव

    वैसे तो इसके सेवन से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं, लेकिन इसे आवश्यकता से अधिक मात्रा में लेने से कुछ हानिकारक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। यदि नीचे दिए गए निम्न में से कोई भी दुष्प्रभाव दिखाई देता है, तो तुरंत अपने चिकित्सक से सलाह लें। आइए बात करते हैं इन लक्षणों के बारे में

    • तेजी से वजन कम होना।
    • जलन होना।
    • पेट में हल्का दर्द या मरोड़ होना।
    • चक्कर आना।

    क्या झाऊ को अन्य सप्लीमेंट्स के साथ लिया जा सकता है?

    यदि पहले से आप अन्य दवाएं या पूरक आहार ले रहे हैं तो डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद ही झाऊ का सेवन करें।

    यह कहां पाया जाता है?

    आमतौर पर झाऊ पश्चिमी एशिया के खारे इलाकों में पाया जाता है। इसके अलावा झाऊ सामान्य रूप से दक्षिण और पूर्वी भारत के तटीय क्षेत्रों में देखने को भी मिलता हैं।

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    Know the Importance, Benefits, and Side effects of Senna in Ayurveda

    Posted 11 July, 2022

    Know the Importance, Benefits, and Side effects of Senna in Ayurveda

    Senna, also known as cassia senna, is a plant that offers fruit and leaves with rich medicinal values. It has laxative properties which can helps to provide relief in constipation, liver problems, and reducing weight. We’ll know more about Senna through the section of this blog.

    Benefits of Senna

    • Helpful in constipationThe most effective action of senna leaves is to relieve constipation. Senna leaves contain compounds like sennosides which stimulate muscle contractions in the intestines. Contraction of intestinal muscles helps the stool to move through the bowels by providing them a downward push (motion) and relieves constipation. Sennosides also increase the secretion of water in the colon, which softens the stool and increases its volume, facilitating its downward movement.
    • Reduces inflammationSenna leaves contain a natural anti-inflammatory compound called resveratrol (the same compound that provides red wine's anti-inflammatory benefits). Therefore, senna leaves can help to reduce widespread chronic inflammation in the body but senna leaves are not approved for long-term use, it may not be the best choice for chronic treatment.
    • Helps in reducing weightSenna leaves enhance digestion by increasing the body metabolism rate. It removes accumulated toxins and stools from the body along with which it also helps in scraping out body fat.
    • Treats liver problemsMethanol extract in Senna leaves can reduce oxidative stress on the liver. It also helps to increase the amount of good cholesterol (HDL), reduce the amount of bad cholesterol (LDL) and triglycerides, and even prevent liver damage.
    • Ginger teaGinger has analgesic and antibacterial properties which removes swelling and pain. Therefore, using ginger tea containing honey or ginger in any form is beneficial for sinus.

    Precautions to be taken while using Senna

    • If you choose to use senna, use it as directed by your doctor.
    • You must chew the chewable senna tablet before swallowing.
    • Measure liquid medication carefully. Use the supplied dosing syringe or medicine dose measuring device (not a kitchen spoon).
    • Senna must show the result of enhancement in bowel movements within 6 to 12 hours after you consume it.
    • Senna can be dangerous if taken long term or in high doses.
    • Call your doctor if your constipation does not improve after 1 week of use, or if your constipation worsens.
    • Store at room temperature away from moisture, heat, and light.

    Side effects of Senna

    • Senna might cause allergic reactions such as hives, difficulty in breathing, swelling over face, hands or feet, vomiting, nausea, and delirium. Get emergency medical attention in such cases.
    • Stop using senna and call your doctor at once if you have rectal bleeding, lack of bowel movements within 12 hours of using senna, low potassium causes leg cramps, constipation, irregular heartbeat, chest tightness, increased thirst or urination, tingling or numbness, muscle weakness or lameness.

    Where is it found?

    Senna is found along the Nile and is widespread in southern and eastern India. It is also found in Egypt and Sudan.

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    Benefits and Uses of Shankhpushpi

    Posted 08 July, 2022

    Benefits and Uses of Shankhpushpi

    There have been many herbs in Ayurveda which have been used since ancient times for many ayurvedic preparations in which the seeds, bark, leaves and flowers are used to cure many diseases. Shankhpushpi is also one of these herbs which is commonly used in Ayurveda to keep the body healthy. Apart from this, Shankhpushpi also has many mental and physical health benefits. It is mainly used to strengthen the mind, enhance memory and intelligence. According to experts, it is beneficial for all in today's stressful environment. All parts of this plant including flowers, leaves, roots, stems and seeds are used as medicine.

    What is Shankhpushpi?

    Shankhpushpi is a medicinal plant (flower) found in the forests of rocky land. Its botanical name is Convolvulus pluricaulis. The flower of Shankhpushpi is generally found in three colors (white, blue and red) but white colored flowering plants are especially used as medicine. The seeds of this plant fall off in the winter season and mix in the soil and start germinating again on their own during the rainy days. Its stems spread to a length of about 1 to 2 feet, the root is 1 to 2 inches long and is like a finger in thickness. The crushed leaves of shankhpushpi smell like radish.

    Benefits of Shankhpushpi

    • To improve memoryShankhpushpi is called a nerve tonic in Ayurveda because it contains elements like tryptenoids, flavonol glycosides, anthocyanins and steroids. All these elements are helpful in brain development and memory improvement. For this reason, Shankhpushpi is used in memory loss. Grinding all the parts including the root of Shankhpushpi and mixing honey or sugar candy with milk or butter is beneficial. It also sharpens the intellect of a person.
    • Helpful in increasing concentrationShankhpushpi is considered a nootropic medicine, that is, a herb used for mental and intellectual development. According to experts, this medicine provides effective results in disorders related to attention, concentration, memory, intelligence and nervous system by relieving stress and enhancing mental capacity. For this reason, Shankhpushpi benefits in increasing concentration.
    • To relieve stressThe use of Shankhpushpi is considered beneficial to relieve stress. The nutrients present in it are known to promote brain health. Apart from this, anti-stress and antidepressant activities are found in Shankhpushpi, which helps in dealing with mental problems like stress and depression. For this, take a decoction of the panchang (five parts) of this plant or the powder of its root. This helps to relieve stress and get sound sleep.
    • Relieves weaknessApart from mental weakness, consumption of Shankhpushpi is also an effective remedy in removing physical weakness. In fact, in a research done on diabetic patients in this subject, it was found that people using Shankhpushpi were found to be mentally strong. Along with this, a lot of physical improvement was also seen in those people. Thus, it would not be wrong to say that regular use of Shankhpushpi proves to be effective in removing physical weakness as well.

    Beneficial in urinary disorders

    Shankhpushpi is a very beneficial medicine in urinary problems. Problems such as pain or burning while urinating, frequent urination, passing urine, etc., are cured by its consumption. For this, taking the powder of Shankhpushpi with cow's milk or butter, honey and buttermilk daily is beneficial.

    • Useful in blood in vomitingShankhpushpi also works like a medicine in stopping vomiting of blood. For this, take 4 spoons of shankhpushpi juice, 1 spoon of Giloy juice and 1 spoon of Durva grass juice daily.
    • For diabetic patientsConsumption of Shankhpushpi is beneficial for diabetic patients. It works by transmitting new energy to all the cells of the body and controlling diabetes. Therefore it is beneficial to take the powder of Shankhpushpi with cow's milk or water twice a day.
    • Helpful in curing cold, cough, fever and asthmaAs the weather changes, problems like cold, cough, fever and asthma start arising for which Shankhpushpi is an effective medicine. Consuming shankhpushpi juice with basil and ginger is beneficial for these problems. Along with this, drying the leaves of Shankhpushpi and using it like a hookah to get rid of fever, asthma and chronic cough is also beneficial.
    • Helpful in curing piles and constipationShankhpushpi is very effective in piles and constipation. It helps to clear the toxins accumulated inside the intestines due to which it provides relief in constipation and piles. Apart from this, Shankhpushpi works to maintain the balance of pitta dosha in the body which helps to cure acidity. For this, mix the juice of the leaves of Shankhpushpi in a glass of milk and consume it daily in the morning.
    • Beneficial in various gynecological problemsShankhpushpi is used to cure various gynecological problems and to treat menstrual disorders in women. It acts as a tonic for the uterine muscles and endometrium. In the problem of excessive bleeding during menstruation, it is beneficial to take the powder of shankhpushpi mixed with harad, ghee, shatavari and sugar. Its use makes menstruation regular.

    Uses of Shankhpushpi

    • The powder of Shankhpushpi is consumed with milk or lukewarm water.
    • Its powder is used with butter or honey.
    • The Panchang of Shankhpushpi is consumed in the form of decoction.
    • Shankhpushpi is also used in the form of syrup.

    Side effects of Shankhpushpi

    • Consumption of Shankhpushpi is prohibited for children under 3 years of age.
    • It should be avoided during pregnancy or take it under the supervision of a doctor.
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    Benefits, Uses and Side effects of Shalparni

    Posted 06 July, 2022

    Benefits, Uses and Side effects of Shalparni

    Shalparni (Desmodium gangeticum) is a shrubby plant with a woody stem and is 2-4 feet tall. Its branches are covered with fine hair. The leaves are monoecious, ovate, oval, blunt and hairy below and up to 15 cm long, the lower side of the leaves is light green.. The pods are thin, flat, curved, having 6-8 nodes and also have a hairy structure on top. This plant bears its flowers and fruits in August and November.

    Shalparni, being one of the Dashamoola herbs, is considered to be one of the most important Ayurvedic herbs used as an ingredient in many medicines. Shalparni is sweet, bitter, difficult to digest, oily, greasy and has a hot potency. It balances the tridoshas in the body. Shalparni leaves are similar to shaala leaves, which is why they are also called shalparni. This herb has a calming and soothing effect that regulates neurological imbalances. It has unique properties that can regulate the nervous system, veins and arteries.

    Importance of Shalparni in Ayurveda

    Shalparni is one of the most important herbs in Ayurveda. It is one of the Dashamoola herbs and is packed with innumerable Ayurvedic properties. This herb has anthelmintic, anti-catarrhal, digestive, diuretic, expectorant, antipyretic, tonic, antidiarrheal and gastric properties. In addition, using this herb is quite good for dealing with complications such as intestinal fever, respiratory complications and hemorrhoids.

    Benefits of Shalparni

    • Treats piles:Shalparni is effective in treating hemorrhoids (piles). It has anti-inflammatory as well as astringent properties that help relieve the symptoms of piles including itching and swelling around the anus.
    • Improves heart health:Shalparni has been found to reduce low-density lipoprotein (LDL or bad cholesterol) cholesterol levels while maintaining high-density lipoprotein (HDL or good cholesterol) and also helps maintain healthy blood cholesterol levels, blood pressure and the healthy heart. It is also believed that shalparni dilates blood vessels and strengthens the heart muscles.
    • Improves digestion:Shalparni is said to be a laxative and has anti-inflammatory properties. Thus, because it facilitates bowel movements, and relieves constipation. It helps to improve digestive health and provide relief from gastritis, diarrhea, nausea and flatulence. Shalparni is also recommended to treat anorexia (loss of appetite).
    • Increases immunity:Shalparni is called an excellent immune stimulant as it stimulates T cells, B cells, macrophages, etc. Along with its anti-inflammatory properties, it is excellent for boosting overall immunity.
    • Better sexual health:Shalparni can help improve sexual health, especially in men. It is a natural aphrodisiac and regular consumption of shalparni root powder in decoction form is said to help with many problems like premature ejaculation and loss of libido (sexual desire).
    • Prevents bronchitis:Shalparni is known to be hot. Consuming a decoction of shalparni root powder helps clear phlegm from the lungs, thereby relieving the symptoms of bronchitis.
    • Reduces diabetes:Shalparni lowers blood sugar and facilitates insulin secretion. Therefore it is useful in the treatment of diabetes.

    Good for dementia

    Dementia refers to a group of conditions characterized by impaired social thinking and behavior that interferes with the individual's daily functioning. Shalparni has proven useful in the treatment and control of dementia due to the presence of bioactive constituents that have anti-inflammatory properties and antioxidants. This helps to improve the signal transmission to the brain and help reduce neurological problems.

    Other benefits of Shalparni are

    • It is useful for relieving vomiting, fever and nausea.
    • Shalparni is beneficial in the treatment of shortness of breath, chronic respiratory diseases, asthma, bronchitis and other lung diseases.
    • It helps to relieve dysentery and diarrhea.
    • It provides relief from burning, flatulence and gastritis.
    • It helps boost immunity and promote a healthy weight.
    • It is used to treat imbalances caused by Vata doshas, especially heart disease.
    • It is helpful to treat kidney stones and postpartum complications.
    • It helps to remove moisture and heat from the liver and gallbladder.
    • It can be useful in treating seizures.

    Side effects of Shalparni

    • It is recommended to avoid using Shalparni while breastfeeding or during pregnancy.
    • Shalparni has been shown to lower blood sugar levels when taken with antidiabetic drugs, so it is advisable to avoid Shalparni by people having low sugar.

    Where is it found?

    It is a subtropical and perennial herb that is found in tropical Africa, Indian subcontinent, China, Japan, Myanmar, Thailand, Cambodia, Laos, Vietnam, Malaysia, Indonesia, Philippines and Australia. In India, it is typically found in the jungles of the Western Ghats to Sikkim.

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    Sal Tree: Benefits, Uses and Side effects

    Posted 06 July, 2022

    Sal Tree: Benefits, Uses and Side effects

    Sal tree also known as Shorea robusta, Salwa, Sakhwa, Kandar, Shal or shala tree. It belongs to the family of Dipterocarpaceae. Sal tree is especially worshiped in Hindu culture as it is mentioned as an incarnation of Lord Vishnu. It is also believed to be devout to Jainism and Buddhism.

    Importance of Sal tree in Ayurveda

    According to Ayurveda, taking powdered Sal tree with honey, helps treat female ailments such as metrorrhagia (bleeding at irregular intervals) and leucorrhoea (white discharge from the vagina) due to its sita (cold) and kashaya (astringent) properties. It also helps in joint pain and arthritis by relieving pain and inflammation due to its analgesic and anti-inflammatory properties.

    Benefits of Sal tree

    • Heal wounds:Roots of the Sal tree have astringent and cooling properties. Sal tree balances Vata and Pitta doshas that heals all types of bleeding, inflammation and wounds.
    • Cures ear infection:Karna roga hara found in Sal trees helps cure ear infection and relieves the pain caused by them. It has been considered useful in treating ear ailments since Ayurvedic times.
    • Lemon:Consuming lemon is very beneficial to get relief in motion sickness. Using it while traveling will reduce the problem of vomiting or nausea to some extent. Squeeze a lemon in a glass of water and drink it.
    • Removes bad body odor:Svedahara is a very strong element found in the Sal tree. It fights against excessive sweating of the body and thus one can effectively deal with bad body odor.
    • Treats diarrhea:One of the important elements in this tree is Grahi, which helps treat diarrhea by improving digestive problems. It has absorbent properties that have been shown to be effective in treating all intestinal disorders.
    • Helps Relieve Pain:Bhagnasandhanakrut, an essential element found in the Sal tree, helps repair fractures and cracks. It also treats the pain caused by the problem.
    • Relieves Itching:Itching or boils can cause discomfort to humans. Sphotahara and Kandunashana found in the Sal tree helps treat it effectively.
    • Prevents arthritis:Due to its analgesic or pain-relieving properties, Sal tree can be used to treat arthritis and helps treat any pain.
    • Boosts immunity:Sal trees boost the immune system, fight germs and protect the body from various infections. It also exhibits the presence of strong antibacterial, antiviral and antifungal properties, which are typical in preventing infections such as fever, cold, sore throat and other respiratory disorders.
    • Aids in weight loss:This herb reduces the buildup of LDL (low-density lipoprotein or bad cholesterol) in the body and increases metabolism which helps the body maintain a proper weight.

    Uses of Sal tree

    Sal tree can be used in the form of

    • Sal tree powder:Sal tree powder is used to treat diseases and health problems such as diarrhea, dysentery, indigestion, ulcers and arthritis. Its astringent, anti-inflammatory and analgesic properties help in treating ailments. This powder form is easy to mix and consume.
    • Sal tree paste:Sal tree is also available in paste form. This narrow tree form is mainly used externally to treat skin diseases, inflammation, scars and wounds.
    • Sal tree oil:Sal tree oil is mainly used to treat hair loss. Regular use of sal tree oil can help in the growth of thick and strong hair.

    Side effects of using Sal tree

    There are no side effects of the Sal tree. It is consumed primarily for ease in digestion, but also because it offers many health benefits. It is provided to breastfeeding mothers to increase milk production. However, if you are pregnant, it is always considered safe to consult a doctor before consuming.

    Sal barks, leaves or resin paste can cause allergies when taken with honey or rose water or if your skin is hypersensitive.

    Where is it found?

    Sal trees are grown in the lower Himalayas, Uttar Pradesh, Bihar, Jharkhand, Chhattisgarh, Assam, and Madhya Pradesh.

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    10 Health Benefits and Uses of Rose Flower

    Posted 04 July, 2022

    10 Health Benefits and Uses of Rose Flower

    Rose is a woody and thorny perennial plant, known mainly for its beautiful and fragrant nature. It is also called Indian cabbage rose. Rose is a small shrub that grows to a height of approx. 1.5-2m with spines and can reach up to 7m in height.

    This plant has sharp-toothed oval leaves and its fruit is fleshy and edible, which ripens to be called as rose hip. Roses come in various colors like pink, red, orange, yellow, white and black. Its scientific name is ‘Rosa centifolia.

    Rose has different names in different languages

    • In Hindi, it is called “Gulab”.
    • In Kannada, it is called “Gulabi Hoovu”.
    • In Telugu, it is “Gulabipuvvu”.
    • And In Sanskrit, it is “Satapatri”.
    Importance of Rose

    Rose is mainly used in commercial and medicinal purposes. It treats skin diseases, eye strain, stress, insomnia, diarrhea and hyperacidity due to its medicinal properties like anti-inflammatory, aphrodisiac, anti-depressant, astringent, antispasmodic, cleansing, anti- bacterial and antiseptic properties.

    Rose petals are made of methionine sulfoxide. Compounds like tannins and saponins are present in it. The whole plant produces kaempferol, quercetin and cyanide.

    Health Benefits of Rose
    • Relieves hyperacidity: Hyperacidity means an increased level of acid in the stomach. Regular intake of rose powder helps reduce acidity in the stomach due to its Sheeta (cold) properties.
    • Treats diarrhea: Rose powder helps your body absorb more nutrients and control diarrhea due to its Grahi (absorbent) properties.
    • Controls Menorrhagia (Heavy menstrual bleeding): Menorrhagia is due to vitiated Pitta dosha in the body. Rose helps in controlling heavy menstrual bleeding by balancing the Pitta dosha. This is due to its Sheeta (cold) and Kashaya (astringent) properties.
    • Treats skin inflammation or rashes: Rose helps in reducing the redness, inflammation or rashes on the skin due to its anti-inflammatory and antiseptic properties.
    • Reduces stress and treats insomnia: Rose is considered to be a mood freshener as it has anti-depressant and cleansing properties which soothes the mind and reduces stress and anxiety. Thus, it provides a good sleep.
    • Treats acne and pimples: Rose is useful for removing oil and dirt from the pores of the skin because it has astringent properties. It balances aggravated Pitta due to its Sheeta (cold) properties, thereby preventing pimples.
    • Helps in arthritis: Rose is useful in treating arthritis and related symptoms due to its anti-arthritic, anti-inflammatory and analgesic properties.
    • Useful in weight loss: Rose is useful for weight loss due to its Deepan (appetiser) and Pachan (digestion) properties. It absorbs toxins and helps flush them out of the body, which helps increase metabolism.
    • Relieves eye pain: Due to the Ropan (healing) and Sheeta (cold) properties of rose, it is known to relieve eye stress and eye pain with immediate effect.
    • Cures cough: Rose helps to get relief in cough due to its antitussive properties. It reduces the mild sore throat and bronchial infection.
    Uses of Rose
    • A dry paste made from its petals is very effective in the treatment of gastritis and duodenal ulcers, which can be consumed with milk.
    • The decoction made from rose buds is useful in constipation.
    • Rose tincture has an astringent effect which relieves diarrhea and colic pain.
    • Infusion made from rose petals is used to gargle.
    • Cream prepared from rose essential oil is effective in treating dry or inflamed skin.
    • Dried fruit of wild rose is rich in vitamin C which is effective in preventing scurvy.
    • Herbal tea made from rose petals is very good for controlling acidity and burning sensation in the body.
    • Rose essential oil is useful in aromatherapy for relieving insomnia and blood pressure.
    • Applying paste made of rose petals on the body helps regulate excessive sweating and provides a pleasant smell.
    Where is it found?

    About 150 original rose varieties and more than 2500 hybrid varieties of rose are found in India. It is grown in Tamil Nadu, Uttar Pradesh, Bihar, Karnataka, Maharashtra, Haryana, Jammu and Kashmir, West Bengal, Gujarat, Punjab, Madhya Pradesh and Andhra Pradesh.

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    Pittapapada: Benefits, Uses and Side effects

    Posted 29 June, 2022

    Pittapapada: Benefits, Uses and Side effects

    Pittapapada (Fumariaindica) is a common weed found throughout India in the plains and is an annual herb. It is used in ancient and traditional medicine. The word Pittapapada comes from Sanskrit and its English name is Fumitory. The English word is so named because of the flower appearance i.e. smoky appearance. Its scientific name is Fumaria Indica.

    It is known by various names such as fumaria parviflora, Varatika, Sukshma Patra, Shahtaraj, Vanshulpha, Parpatu, Chaturasigide, Bansulpha, Pitpapado, Dhamgajra, Pittapapara, Kallu Sabbasige, Shatara, Parpat

    Importance of Pittapapada in Ayurveda

    Pittapapada helps treat discomfort caused by itching, pain or swelling as it has Pitta balancing, Grahi (absorbent) and Sita (cold) properties. It helps reduce the symptoms of insect bites and also provides a cooling effect on the affected area.

    Pittapapada has reproductive, antiparasitic, anticholinesterase, laxative, sedative, dermatological, analgesic, hepatoprotective, gastric, antipyretic and anti-inflammatory properties. These are beneficial in treating jaundice, leprosy, convulsions, diarrhea, fever, syphilis, and skin infections. It has been useful in the treatment of liver obstruction and skin diseases.

    Benefits of Pittapapada

    Effective in diarrhea-

    Diarrhea is caused by improper diet, stress and intake of contaminated water which affects the digestive fire. This disturbs the Vata. Pittapapada has Grahi (absorbent) properties that help absorb the fluid produced. Pittapapada tends to reduce the frequency of loose bowel movements and absorb excess water loss.

    Prevents indigestion-

    Pittapapada enhances the taste of food, which helps in increasing and enhancing Agni and helps in the treatment of indigestion (agnimandya).

    Controls vomiting-

    Pittapapada is useful for vomiting due to the balancing properties of pitta and kapha. This helps prevent indigestion and reduces the frequency of backflow of toxins (Ama), thereby controlling vomiting.

    Useful in insect bite-

    Pittapapada has sita (cold) properties, so it helps soothe the insect bitten area, reducing swelling, pain and itching.

    Cures asthma-

    Pittapapada helps control asthma symptoms due to its kapha balancing properties. This helps to avoid imbalances in the doshas, ​​thereby preventing blockages leading to easy breathing.

    Helpful in constipation-

    Pittapapada can help in constipation due to its laxative properties. It stimulates the digestive tract and improves bowel movements.

    Increases appetite-

    Pittapapada helps treat loss of appetite due to the balancing properties of pitta-kapha. It helps prevent the formation of toxins (ama) and enhances the taste which further increases appetite.

    Uses of Pittapapada

    The use of Pittapapada is mentioned in Sushruta and Charaka. It is mentioned that it is used in blood diseases and fever and is also used to treat diseases such as urinary tract ailments and cough in Sushruta.

    Precautions and Side effects for using Pittapapada

    There are no scientifically proven side effects of this herb. It is advisable to consult a doctor and a gynaecologist about its use during pregnancy. It also has no side effects in children because it is one of the ingredients of a medicine called Aravindasavam. This is a drug used to strengthen a child's body, gain weight and improve digestion.

    • It is recommended to avoid using Pittapapada while breastfeeding or during pregnancy or consult a doctor before consuming.

    • It is recommended for diabetics to avoid consuming Pittapapada or consult a doctor before taking it.

    • Patients with heart disease are recommended to avoid using Pittapapada or consult a doctor before doing so.

    • Prolonged exposure to Pittapapada at low doses can cause some liver tissue damage. Therefore, patients with liver disease are advised to avoid Pittapapada or consult a doctor before using it.

    Where is it found?

    It is a small, branching plant that grows annually in the lower plains and hills and is found in the Himalayas, but only at an altitude of 2400 m. There are whitish flowers about 6-6 mm long. This plant has up to about 20 to 60 flowers on every spike.

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    Importance and Benefits of Peepal in Ayurveda

    Posted 22 June, 2022

    Importance and Benefits of Peepal in Ayurveda

    We often spot many trees on the roadside, gardens, and temples which provide us with shade and oxygen. One of these trees is the Peepal tree which is considered revered in India. It is also known for its huge size and dense shadow with many health benefits. Therefore, due to its medicinal properties, it also proves helpful in curing many types of problems. Therefore, it has been used as a medicine in Ayurveda for years.

    The scientific name of the Peepal tree is Ficus Religiosa. Peepal is commonly used to treat asthma, fever, colic, diarrhea, wound healing and skin diseases. It effectively helps in increasing sexual stamina and assist in conceiving. Apart from this, peepal is also considered great for the treatment of teeth and gum diseases.

    What is Peepal?

    Peepal trees are evergreen trees which are quite long, bearing a height of about 10-20 meters with many branches. Peepal trees live for hundreds of years. The bark of the old tree is torn white-brown in color. Its new leaves are soft, smooth and light red in color. Its fruits are small, spherical and smooth. It is green in raw state and purple in color when ripe. The root, stem, bark, leaves, and fruit are used in ayurvedic medicines.

    Nutrients of Peepal Tree

    A good amount of moisture content, fiber, fat, carbohydrate and protein are found in Peepal trees. Apart from this, calcium, iron, copper and magnesium are also found in it.

    Benefits of Peepal

    For asthma-

    Peepal is considered an effective medicine for asthma and respiratory diseases. Therefore, regularly using it is helpful in removing mucus and phlegm present in the bronchial tubes (respiratory tubes) due to which problems like cough, asthma, wheezing in the throat, difficulty in breathing and chest tightness are relieved to some extent. For this, grind peepal bark and ripe fruit and mix it in equal quantities. Now take half a teaspoon thrice a day. By doing this, mucus is cleared from the lungs and asthma and respiratory problems are removed.

    Effective in stomach ache-

    Consuming peepal is an effective remedy in the problem of stomach pain. The anti-inflammatory and analgesic (pain-relieving) properties present in it help in relieving abdominal pain. For this, grind peepal leaves and mix them with jaggery and make a cake and consume it. By doing this, stomachache and many stomach related problems get relieved. Apart from this, consuming peepal's kwath (decoction) is also beneficial.

    Beneficial in diarrhea

    Peepal bark has antibacterial properties which helps to cure problems like diarrhoea. Therefore, the consumption of extracts from the bark of the Peepal tree is considered good for diarrhea.

    For teeth and gums-

    Peepal has antioxidant and antimicrobial effects which help in reducing tooth decay and inflammation of the gums. Brushing with soft twigs of peepal or chewing on soft leaves of peepal is good for teeth and gums. This helps to relieve many problems related to teeth. Apart from this, bioactive compounds like flavonoids, alkaloids and steroids are found in the oil made from peepal leaves which effectively ensure healthy teeth and oral health.

    Beneficial for heart health-

    Peepal has been used for years to improve heart health. According to scientific research, if some leaves of peepal are soaked in water overnight and consumed the next day thrice a day, heart diseases can be avoided. Apart from this, peepal also reduces oxidative stress and inflammation. The cardioprotective properties present in it provides protection against heart diseases.

    For diabetes-

    Leaves of peepal trees have hypoglycemic (blood sugar lowering) properties which helps to overcome the problem of diabetes. Therefore, it is advised to drink the extract of the leaves of the Peepal tree.

    For infertility-

    The benefits of peepal tree help to overcome infertility and many other sexual problems in women. For this, after the end of the menstrual cycle, drink 1-2 grams of dried fruits of peepal with raw milk. It helps to boost the reproductive system. Therefore, the powder of Peepal tree is considered great for infertility.

    Helpful in purifying blood

    Peepal leaves are used in Ayurveda for blood purification. It helps in curing skin diseases by removing impurities from the blood due to its antibacterial and antiviral properties. Apart from this, according to the research done on it, drinking peepal's kwath or extract of its leaves purifies the blood.

    Aids in wound healing-

    Peepal leaves act as a medicine for wound healing. Scientific research done on this shows that tannins (a special property) present in peepal leaves increase the amount of collagen in the skin which aids wound healing.

    For skin-

    Various parts of the Peepal tree have anti-microbial and anti-inflammatory effects which are helpful in removing many skin-related disorders. Apart from this, protein is also found in peepal leaves which helps in keeping the skin healthy.

    Uses of peepal

    • Different parts of peepal are used to make a powder.

    • Peepal leaves are chewed raw like neem.

    • The extract of the bark, root and leaves of peepal can be extracted and drunk.

    • Peepal leaves are used to make a decoction.

    • A paste made from the root, bark and leaves of the Peepal tree is used on the skin.

    Side effects of Peepal

    • It is bitter in taste. Therefore, excessive consumption may cause vomiting or nausea.

    • Excessive consumption of peepal may increase the risk of prostate cancer and heart disease.

    • High amount of fiber is found in it therefore, excessive consumption of it can cause stomach pain and cramps.

     

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    Know the Amazing Benefits of Lodhra

    Posted 07 July, 2022

    Know the Amazing Benefits of Lodhra

    Lodhra is a medicinal tree, which belongs to the family Symplocaceae whose botanical name is Symplocos Racemosa. It is found in many places in India. Due to its medicinal properties, Lodhra is used in many types of medicines in Ayurveda. Traditionally, the root, bark and leaves of Lodhra are used for the treatment of many diseases. Generally it is known to cure problems related to diarrhoea, dysentery, liver, eyes and uterus.

    What is Lodhra?

    Lodhra trees are medium-sized and evergreen and have two species. First one is Lodhra and second is Pathani Lodhra. Its bark is thin and scaly while the leaves are circular or oval, 3 to 4 inches long. The stalks of its leaves are small and velvety. Its flowers are small in size and found in clusters in white and light yellow color and are fragrant. Generally, the flowers bloom from November to February. The fruits are purple in color and about 1 to 1.5 inches in size having 2-3 seeds inside. Its roots, bark, flowers and leaves are used in Ayurvedic medicine for treating many diseases.

    Benefits of Lodhra

    • Beneficial for eyesLodhra is traditionally used to cure eye problems. The antioxidant properties in it helps in relieving watery and sore eyes, swelling, redness and other eye diseases. For this, make powder by roasting Lodhra and Mahua in ghee. Now make a paste of this powder with milk and apply it on the eyelids. Apart from this, soak the roasted Lodhra powder in ghee or hot water in a cloth. After that, compress the eyes with this.
    • Effective in ulcerLodhra is considered an effective medicine in the treatment of ulcers because it has anti-ulcer properties, which are helpful in reducing the symptoms of ulcer. Apart from this, making a paste of Lodhra, Nigrodha, Khadira and Triphala and Ghee is beneficial to get relief in ulcers.
    • For oral healthLodhra has been used for years to ensure good oral health. According to a research conducted by NCBI, Lodha i.e. Lodhra is used in Ayurveda to treat bleeding gums. According to another research, the antibacterial properties present in it helps cure dental problems. For this, prepare a decoction using the bark of Lodhra and gargle with it. Doing this for a few days provides relief in bleeding gums and other dental problems. Apart from this, applying paste made from Lodhra, Masta, Rasanjana and honey on the affected areas is beneficial.
    • Useful in the treatment of PCOSIncreased levels of male hormones (androgens) in women's ovaries, i.e. adrenal glands, increase the chances of polycystic ovary syndrome (PCOS) due to which cysts (fluid-filled sacs) start forming in the ovaries of women which poses the risk of infertility or other related problems. The consumption of decoction made of Lodhra bark is an effective remedy for its treatment as it has an anti-androgenic effect. It helps to prevent ovarian cell dysfunction in polycystic ovary syndrome (PCOS) by reducing testosterone levels and also increasing fertility.
    • Helpful in removing vaginal infectionThe leaves of Lodhra have been used traditionally to cure sexual infections and many vaginal problems. To avoid this type of infection, dry the leaves of Lodhra and make a powder. Use this powder to make a paste by adding water. Now apply this paste in the vaginal area. It is a natural remedy to get rid of vaginal infections.
    • Beneficial for skinConsuming Lodhra is very beneficial for the skin. It removes many skin related problems as it has antibacterial properties which helps cure the infection by protecting the skin cells. It also protects the skin from damage caused by free radicals. Thus, it keeps the skin healthy and beautiful.

    Uses of Lodhra

    • The root, bark and leaves of Lodhra are used in the form of decoction or juice.
    • The powder made from its bark is consumed with water after meals.
    • The powder made from its seeds is also used for medicinal purposes.
    • A paste made from the bark and leaves of Lodhra is used for skin disorders.

    Side effects of Lodhra

    • Lodhra lowers the level of sugar present in the blood. Therefore, people taking diabetes medicines must consult a doctor before consuming it.
    • Lodhra has anti-androgen properties, which can reduce testosterone (male hormone). Therefore, men should avoid its consumption.
    • Do not consume it on an empty stomach. Doing so can cause stomach related problems like heaviness in the stomach, nausea, vomiting etc.
    • It should not be consumed during pregnancy.
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    Nisoth (Indian Jalap): Know its Benefits, Uses and Side effects

    Posted 29 June, 2022

    Nisoth (Indian Jalap): Know its Benefits, Uses and Side effects

    Nisoth, commonly known as Indian Jalap,is a plant that has many medicinal  properties and is used to treat various types of diseases. Nisoth is of two varieties - black and white among which,the white one is popularly used in the manufacturing of Ayurvedic medicines. Nisoth is an antipyretic and laxative plant, making it an excellent remedy for fever. It has the power to treat liver disease, heart problems, hemorrhoids, etc.

    Medicinal Properties of Nisoth

    Nisoth has various medicinal properties like anti-inflammatory, antimicrobial, anticancer, laxative, purgative, hepatoprotective and abortifacient properties.

    Benefits of Nisoth

    Treats constipation-

    Nisoth has strong Virechak (Purgative) and rechana (laxative) properties, thereby increasing bowel movements and helpingto pass stool easily.

    Eliminates worms-

    Nisoth helps fight worm infestations due to its Krimighna (Anti worms) properties.

    Cures cough and bronchitis-

    Nisoth has kapha balancing properties, which helps to relieve respiratory problems like cough, bronchitis, asthma, and shortness of breath caused by excessive phlegm.

    Reduces excess fat-

    Nisoth has shown good results in reducing excess fat and swelling in the body by removing excessive water and toxins from the body due to its Virechak (cleansing) and detoxifying properties.

    Treats piles-

    Nisoth helps in treating piles and provides relief in symptoms such as itching, burning and swelling in the anal region  due to its Virechak (cleansing) properties that helps in clearing  up the constipation.

    Helpful in arthritis-

    Nisoth can reduce joint swelling and relieves pain in various areas of the body, thushelping in reducing  the  problem of arthritis.

    Uses of Nisoth

    • The powdered root of nisothis given as a laxative torelieve the problem of common constipation and hemorrhoids. It is given along with Triphala.

    • It cleans Pitta and Kapha from the bowel.

    • Nisoth helps with skin diseases as it removes inflammatory accumulations of water from the blood. For this, it is combined with Manjishtha, Kutki, Punarnava and Neem.

    • Nisoth  mixed with guggulu, ginger and turmeric, iseffective in high cholesterol and obesity.

    • Nisoth mixed with ginger, becomes very useful in rheumatic and paralytic diseases, anemia, jaundice and inflammation.

    • It is given in a dose of 3 grams with Mishri for relieving jaundice.

    • The root paste of nisoth can be used  topically to treat vitiligo, other skin diseases, alopecia, cervical, lymphadenitis, hemorrhoids, fistulas and ulcers.

    Side effects and Precautions while using Nisoth

    There are some side effects of using Nisoth as a medicine. Sometimes it can affect blood sugar levels and can cause other complications if taken without instructions and precautions. Young children and pregnant women are especially at risk for this side effect.

    • Nisoth may react differently and cause harm to the body when combined with other drugs or medications.

    • Nisoth's laxative properties can cause diarrhea if taken in large amounts. Therefore, it is advised to consult a doctor before taking it.

    • Nisoth should not be taken in any form by children under 12 years of age.

    • People suffering from appendicitis should stay away from Nisoth as it can cause problems.

    • There is no sufficient evidence of the effect of nisoth in pregnancy and breastfeeding therefore it is best to avoid it during pregnancy and breastfeeding.

    Where is it found?

    Nisoth is found in Australia, Africa and Tropical Asia. In India, it is found near wild gardens, majorly growingup to 900 m tall.

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    Pashanbhed: A Popular Indian Drug

    Posted 18 June, 2022

    Pashanbhed: A Popular Indian Drug

    Pashanbhed is a popular Indian drug,made of two words , first is ‘pashan’ which means stone and second is ‘bhed’ that can be understood as ‘crushing or breaking’, which is a clear suggestive of the properties of pashanbhed that is breaking down the stone(kidney stone) for its removal from the body  It  is a succulent perennial herb that reaches a height of 50 cm. The leaves of Pashanbhed are round or ovate and are 5-15 cm long at flowering.

    The top and bottom of Pashanbhed are hairy and become almost hairless with age. The flowers are 3.2 cm in diameter and are white, pink, or purple in color and form a cymose panicle with flexible flowering stem. Its scientific name is Bergenia Ligulata.

    Importance of Pashanbhed

    Pashanbhed is useful in Ayurveda for its anti-inflammatory, antilithic, antiviral, antibacterial, diuretic, liver protective, antipyretic, analgesic, laxative, aphrodisiac, and abortifacient properties that helps to treat various diseases like kidney stones, fever, ulcer, blood pressure and cough.

    Benefits of Pashanbhed

    Treats kidney stones-

    Consuming Pashanbhed is considered very good for treating kidney stones. Due to its antiurolithiatic properties, it easily breaks up kidney stones and prevents stone formation.

    Useful in fever-

    Consuming Pashanbhed helps a person suffering from fever by inducing sweat and normalizing the body temperature due to its antipyretic properties.

    Cures ulcer-

    Due to its cytoprotective properties which protects the body from harmful toxins, consumption of Pashanbhed helps prevent and treat ulcers.

    Heal wounds-

    Pashanbhed roots have astringent and cooling properties which heals all bleeding, inflammation and wounds caused by external forces.

    Useful in diabetes-

    Pashanbhed roots have anti-diabetic properties. So, diabetics can also be  treated with Pashanbhed as it reduces  the glucose levels in a person.

    Cures cough-

    Pashanbhed has antitussive properties which helps in the removal of  bad toxins from the lungs that allows relaxed and easy breathing. Due to these properties, consumption of Pashanbhed is recommended to prevent and cure cough or other respiratory tract infections.

    Treats piles-

    Pashanbhed roots have laxative and cooling properties that help to prevent constant constipation that causes piles.

    Uses of Pashanbhed

    • Roots of the Pashanbhed plant can be ground and given with honey to children who have broken teeth.

    • Wounds, boils and burns can be healed by using a paste of dried Pashanbhed root (with lukewarm water) externally.

    • Pashanbhed juice or root paste can be taken to cure intestinal parasites and roundworms.

    • Decoction of fresh Pashanbhed roots can be used to treat urinary tract diseases and stomach disorders.

    • Pashanbhed root powder is effective in treating fever.

    • The juice extracted from Pashanbhed leaves can be used in the form of ear drops to treat earache.

    • A paste made from the roots of this plant can help in treating constipation.

    Side effects of using Pashanbhed

    Pashanbhed is an important herb in many formulations used to treat kidney diseases. However, rhizome acetone extract of Pashanbhed is known to be cardiotoxic in high doses and has a depressant effect on the central nervous system.

    Where is it found?

    Pashanbhed is a climbing plant that is found in moist areas of Himalayas, Afghanistan, Arunachal Pradesh, Sikkim, Bhutan and South Tibet.

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