जानें, पोलियो के लक्षण, कारण और घरेलु उपचार
2022-05-24 16:27:52
पोलियो या पोलियोमेलाइटिस (Poliomyelitis) एक गंभीर और संभावित घातक संक्रामक रोग है। यह आर.एन.ए. वायरस (पोलियो वायरस) से होने वाला रोग है। इसमें मेरुरज्जु (Spinal Cord) का वह हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है। जिससे मांसपेशियों को ताकत मिलती है। इस कारण मांसपेशियों में काम करने की शक्ति नहीं रहती और वह धीरे-धीरे पतली व कमजोर हो जाती हैं। पोलियो से पीड़ित व्यक्ति का अंग उम्र के साथ ठीक से विकसित नहीं हो पाता और शरीर के ढांचे पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। हालांकि पोलियो वायरस का असर मेरुरज्जु (Spinal Cord) और मस्तिष्क (Brain) के किसी भी भाग पर हो सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में क्षति मेरुरज्जु (Spinal Cord) के निचले हिस्से में होती है। इसका असर अधिकतर पैरों पर पड़ता है। एक या दोनों पैर अपनी ताकत खो बैठते हैं, जिससे बचपन में ही विकलांगता (दिव्यांग) पैदा हो जाती है। पोलियो वायरस एक संक्रमित व्यक्ति के शरीर से दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को गंभीर हानि पहुंचाता है। जिससे लकवा होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 99 प्रतिशत पोलियो को कम किया जा चुका है। लेकिन इससे अभी भी कई गरीब देश प्रभावित हैं। भारत की बात करें तो यूनिसेफ (UNICEF) ने भारत को 2011 में ही पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया था। फिर भी देश को पोलियो मुक्त बनाए रखने के लिए हर वर्ष एक निर्धारित समय पर पोलियो वैक्सीन लगाए जाते हैं।
पोलियो के प्रकार:
नॉन-पैरालिटिक पोलियो (Non-paralytic polio)-
यह पोलियो तंत्र तंत्रिकाओं में पहुंचकर अपनी गतिविधियों से केवल गर्दन और पीठ की ऐंठन का कारण हो सकता है। लेकिन इसके कारण लकवा से ग्रस्त होने की संभावना नहीं होती है। नॉन- पैरालिटिक पोलियो को अबो्र्टिव पोलियो (Abortive Polio) के नाम से भी जाना जाता है।
पैरालिटिक पोलियो (Paralytic polio)-
लगभग 1 प्रतिशत पोलियो के मामलों में लकवाग्रस्त पोलियो विकसित हो सकता है। पैरालिटिक पोलियो रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल पोलियो), मस्तिष्क तंत्र (बल्बर पोलियो), या दोनों (बल्बोस्पाईनल पोलियो) में लकवे का कारण बन सकता है। इसके शुरुआती लक्षण नॉन-पैरालिटिक पोलियो के समान ही होते हैं। लेकिन एक सप्ताह बाद यह गंभीर रूप लेने लगता है।
पोलियो के लक्षण:
नॉन-पैरालिटिक पोलियो-
नॉन-पैरालिटिक पोलियो के लक्षण आमतौर पर हलके फ्लू जैसे होते हैं और 1 से 10 दिन तक के लिए ही नजर आते हैं। जोकि निम्नलिखित हैं-
- बुखार
- गले में खराश
- सरदर्द
- उल्टी
- थकान
- मेनिनजाइटिस (Meningitis)
- पीठ दर्द या ऐंठन
- गर्दन में दर्द या ऐंठन
- बाहों (हाथों) या पैरों में दर्द या ऐंठन
- मांसपेशियों में कमजोरी
पैरालिटिक पोलियो के लक्षण-
दुर्लभ मामलों में, पोलियो वायरस संक्रमण से लकवाग्रस्त पोलियो हो सकता है। जो पोलियो रोग का सबसे गंभीर रूप है। इसमें प्रारंभिक लक्षण जैसे कि बुखार और सिरदर्द अक्सर नॉन- पैरालिटिक पोलियो के लक्षणों की तरह नज़र आते हैं। लेकिन एक सप्ताह के भीतर लकवाग्रस्त पोलियो के निम्न विशिष्ट लक्षण और संकेत दिखाई देने लगते हैं।
- सजगता की हानि।
- गंभीर ऐंठन और मांसपेशियों में दर्द।
- ढीले और पिलपिले अंग (कभी-कभी शरीर के एक तरफ पर)।
- अचानक लकवा मारना (अस्थायी या स्थायी)।
- विकृत अंग (खासकर कूल्हे, टखने और पैर)।
पोलियो रोग के बाद होने वाले लक्षण (पोस्ट पोलियो सिंड्रोम)
पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम आमतौर पर वह लक्षण होते हैं। जो किसी व्यक्ति को पोलियो होने के कुछ सालों बाद तक भी परेशान करते हैं, जैसे-
- मांसपेशियों में कमज़ोरी और जोड़ों में दर्द।
- हलकी-फुलकी गतिविधियों के बाद सामान्य थकान।
- सांस लेने या निगलने में समस्याएं।
- नींद से संबंधित श्वास विकार, जैसे स्लीप एपनिया।
- ठंड के प्रति संवेदनशीलता।
- संज्ञानात्मक समस्याएं, जैसे एकाग्रता और स्मृति सम्बंधित समस्याएं।
- अवसाद या मूड परिवर्तन।
पूर्ण लकवाग्रस्त स्थिति विकसित होना बहुत दुर्लभ है। पोलियो मामलों में से 1 प्रतिशत से कम मामलों में ही स्थायी लकवा (Permanent paralysis) होने की स्थिति उत्पन्न होती है। 5-10 प्रतिशत पोलियो के लकवाग्रस्त मामलों में, वायरस उन मांसपेशियों पर हमला करता है। जो सांस लेने में मदद करती हैं और यह मृत्यु का कारण बन सकता है।
पोलियो के कारण-
पोलियो वायरस, पोलियो की मुख्य वजह है। इसके फैलने की कई वजह हो सकती हैं, जिन्हें पोलियो के कारण में शामिल किया जा सकता है, जैसे-
- संक्रमित व्यक्ति से सीधा संपर्क।
- नाक और मुंह से निकले संक्रमित बलगम से संपर्क।
- संक्रमित मल से संपर्क।
पोलियो के जोखिम कारक-
पोलियो कारण के अलावा कुछ जोखिम कारक भी हैं, जो इस रोग के होने की वजह बन सकते हैं, जैसे-
- पोलियो का टीका न लगवाना।
- पोलियो से संक्रमित जगह पर जाना।
- अस्वच्छ वातावरण में रहने वाले बच्चे और शिशु।
पोलियो से बचने के घरेलु उपाय और परहेज
- प्रोटीन युक्त आहार लें।
- आहार में साबुत अनाज अवश्य शामिल करें।
- अधिक से अधिक फल और सब्जियां खाएं।
- दूध, दही और पनीर का सेवन करें।
- स्वास्थ्यवर्धक वसा लें (जैतून का तेल, नारियल तेल, सूरजमुखी का तेल आदि)
इनसे परहेज करें-
- शक्कर।
- सोडा।
- स्टार्च युक्त आहार।
- दर्द उत्पन्न करने वाली गतिविधियां सीमित करें।
- शरीर को गर्म बनाए रखें।
- धूम्रपान त्यागें।
पोलियो के लक्षणों को कम करने के आधुनिक उपाय-
एंटीबायोटिक्स-
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन के लक्षण (मूत्र मार्ग का संक्रमण) को कम करने के लिए।
हीटिंग पैड-
मांसपेशियों में दर्द और ऐंठन को कम करने के लिए।
दर्द निवारक दवाएं-
सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और ऐंठन को कम करने के लिए।
फिजिकल थेरेपी-
मांसपेशियों की ताकत और कार्यप्रणाली को बेहतर करने के लिए। इस दौरान कुछ गंभीर मामलों में आर्थोपेडिक सर्जरी भी की जा सकती है।
लकवा के घरेलू उपाय-
- नीम तेल की मालिश करने से लकवा में आराम पहुंचता है।
- काली मिर्च पीसकर तेल में मिलाकर लगाना लकवा में फायदेमंद होता है।
- सोंठ और सेंधा नमक पीसकर सूंघने से लकवा में लाभ मिलता है।
- लकवा (Paralysis) होने पर रोगी को कैल्शियम अधिक मात्रा में लेना चाहिए। उबले हुए पानी में शहद डालकर कुछ ठंडा होने पर रोगी को पिलाते रहने से कैल्शियम उचित मात्रा में मिल जाता है। इस प्रकार तीन सप्ताह तक इस प्रयोग को करते रहने से लकवाग्रस्त अंग की कार्य प्रणाली में सुधार आता है।
- लकवे में प्याज का उपयोग लाभकारी सिद्ध होता है।
- यदि किसी रोगी के एक ओर के अंग में लकवा हो गया हो तो 25 ग्राम छिला हुआ लहसुन पीसकर दूध में उबालें। खीर की भांति गाढ़ा होने पर उतारकर ठंडा हो जाने पर प्रतिदिन प्रातःकाल खाएं।