जानें, चालमोगरा तेल के फायदे, उपयोग के बारे में
2022-05-24 17:09:36
चालमोगरा को तुवरक भी कहा जाता है। यह एक औषधि है जिसका प्रयोग घाव को ठीक करने, उल्टी को रोकने और कुष्ठ रोग को कम करने में किया जाता है। खुजली, गले के रोग, डायबिटीज, सूजन सहित खांसी और सांसों संबंधी रोगों में भी चालमोगरा लाभदायक है। चालमोगरा के पेड़ तकरीबन 15-30 मीटर ऊंचे, सदाहरित और मध्यम आकार के होते हैं। यह वृक्ष नमी वाले स्थानों में पाए जाते हैं, जहां वर्षा अधिक होती है। इसके वृक्ष पर सफेद रंग के एकलिंगी पुष्प गुच्छों के रूप में खिलते हैं। चालमोगरा के फल में अनेक बीज होते हैं और इन्हीं बीजों से तेल प्राप्त किया जाता है। यह भूरे रंग का गाढ़ा तेल होता है। इस तेल से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती है। सर्दियों में यह घी के समान जम जाता है। यह तेल तिक्त और स्वाद में कटु होता है। यह विशेषरूप से चर्मरोगों में लाभदायक होता है। कफ, वात, दर्द, कृमि, प्रमेह आदि रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह तेल रक्त को साफ करता है। इसकी तासीर गर्म होती है। चालमोगरा का वानस्पतिक नाम हिडनोकार्पस वाइटियाना (Hydnocarpus wightianus) है।
चोलमोगरा तेल के फायदे एवं उपयोग;
चर्म रोग में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा तेल की 5-6 बूंदें शहद के साथ लेने से हर प्रकार का चर्म रोग ठीक हो सकता है। इस तेल का सेवन मक्खन, घी या मलाई में मिलाकर भी किया जाता है। इसका सेवन करते समय रोगी को फल और दूध ही लेना चाहिए। बस वह फल स्वाद में मीठा हो। इसके प्रयोग के समय नमक का प्रयोग पूर्णत: छोड़ देना चाहिए। तीखे मसाले, गुड़ और मिठाइयों का भी परहेज करना चाहिए। यदि इससे उल्टी आती हो या जी मिचलाने की समस्या हो तो इसका प्रयोग रोक देना चाहिए।
दाद और कुष्ठ रोग में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा के तेल को नीम के तेल या मक्खन में मिलाकर ‘दाद' वाले हिस्से पर मालिश करें। इसका प्रयोग कम-से-कम एक माह तक करें। 10 ग्राम तेल को वैसलीन या मक्खन में या नीम के तेल में मिलाकर रख लेना चाहिए। कुष्ठ रोग वाले व्यक्ति को पहले इस तेल की 8-10 बूंदें शहद या मक्खन के साथ दें। इससे उल्टी होकर शरीर के भीतर की गंद बाहर निकल जाएगी। उसके बाद इस तेल की 5-6 बूंदें दूध, मलाई, शहद या मक्खन में मिलाकर रोगी को सुबह-शाम भोजन के बाद दें। धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाते जाएं। चालमोगरा तेल को नीम तेल में मिलाकर ऊपर से लेप भी कर सकते हैं। ‘खाज-खुजली' में इसके तेल को एरण्ड तेल में मिलाकर उसमें गंधक, कपूर और नींबू का रस मिलाकर त्वचा पर लगाएं।
रक्त शोधन में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा तेल की 5 बूंदें मक्खन के साथ सुबह-शाम खाना खाने के बाद रोगी को देने से रक्त विकार दूर होने लगता है। और शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है।
आंखों के रोग में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा के बीजों को किसी बंद सकोरे में जला लें। अब उसे किसी अन्य बर्तन से ढक दें, ताकि इसका धुआं बाहर न निकले। उस धुएं से जो काजल प्राप्त हो उसमें चुटकी भर सेंधा नमक महीन पिसा हुआ, चार-पांच बूंदें तिल का तेल और चुटकी भर सुरमा मिला लें। इससे जो काजल या अंजन बने उसे रात में सोते समय सलाई से आंखों में लगाएं। इससे आंख के रोग जैसे रतौंधी, रोहे और आंखों की लाली ठीक हो जाती है।
गठिया में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा के बीजों का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में तीन बार खाने से भी गठिया रोग में आराम मिलता है।
जख्म और त्वचा की फटन में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा के बीजों को महीन पीस लें और उसे घावों पर लगा लें। त्वचा फटी हो तो नीम के तेल में मिलाकर इस मिश्रण का लेप कर लें। इससे जख्म में जल्द आराम मिलेगा।
टी.बी में चालमोगरा के फायदे-
क्षय रोग जिसे टी.बी भी कहते है। इसमें चालमोगरा तेल की 5-6 बूंदें कर प्रतिदिन दूध या मक्खन के साथ सेवन करें और इस तेल में मक्खन को मिलाकर छाती पर मलें। इससे टी.बी रोग में बहुत जल्द लाभ होता है।
शुगर में चालमोगरा के फायदे-
चालमोगरा फल की गिरी का चूर्ण एक चम्मच लेकर दिन में तीन बार ताजे पानी से सेवन करें। इससे यूरिन से शुगर जानी बंद हो जाती है। ध्यान रहें जब यूरिन से शुगर आनी बंद हो जाए तो इसका प्रयोग बंद कर दें।
नोट- इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक किसी योग्य चिकित्सक की देखरेख में ही करें। क्योंकि चालमोगरा आमाशय के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए इसका सेवन खाना खाने के बाद मक्खन के साथ ही करें।
अन्य त्वचा संबंधी फायदे-
- चालमोगरा में निम्ब तेल (नीम का तेल) या मक्खन मिलाकर दाद में मालिश करने से एक महीने में दाद ठीक हो जाता है। इसके लिए 10 मिली तेल को 50 ग्राम वैसलीन में मिलाकर रख लें और नियमित रूप से इसका प्रयोग करते रहें।
- चालमोगरा के तेल को एरण्ड तेल में मिला लें। इसमें गंधक, कपूर और नींबू का रस मिलाकर लगाएं। इससे खाज, खुजली रोग में लाभ होता है।
- चालमोगरा के बीजों को छिलके सहित पीसकर एरंड तेल में मिला लें। इसे खुजली पर लेप करने से खुजली की बीमारी ठीक होती है।
- चालमोगरा के बीजों को गोमूत्र में पीसकर दिन में 2-3 बार लेप करने से खुजली में लाभ होता है।
- चालमोगरा के पके बीज के तेल को लगाने से त्वचा विकारों में लाभ होता है।
चालमोगरा के नुकसान-
- चालमोगरा का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यह आमाशय को हानि पहुंचाता है। इसलिए इस तेल को मक्खन में मिलाकर भोजन के बाद ही लेना चाहिए।
- नुकसान की स्थिति में दूध-घी का सेवन करना चाहिए।
कहां पाया जाता है चालमोगरा?
चालमोगरा के वृक्ष दक्षिण भारत में पश्चिम घाट के पर्वतों पर पाए जाते हैं। इसके वृक्ष दक्षिण कोंकण और ट्रावनकोर में तथा श्रीलंका में बहुतायत से पाए जाते हैं