क्या है चुंबकीय थेरेपी? जानें, इसके लाभ और विधि
2022-05-25 18:11:18
चुंबकीय थेरेपी – चुंबक थेरेपी या मेग्नेट थेरेपी एक प्रकार की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है। जो दर्द और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए चुंबकों के उपयोग द्वारा की जाती है।
चुंबक क्या है?
चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) उत्पन्न करने वाले पदार्थ को चुंबक कहते हैं। चुंबकीय क्षेत्र अदृश्य होता है। चुंबक का प्रमुख गुण आस-पास की चुंबकीय वस्तुओं को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुंबकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करना होता है।
चुंबक के प्रकार ( चुंबकीय थेरेपी )
अधिकांश चुंबक निर्मित किये जाते हैं। किंतु कुछ चुंबक प्राकृतिक रूप से भी मिलते हैं। निर्मित किये गये चुंबक को उपचार के लिए मोटे तौर पर दो वर्गों में बांटा गया है। जिन्हें सुविधाजनक आकारों में शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रयोग हेतु तैयार किया जाता है।
अस्थायी चुंबक (विद्युतीय चुंबक)
अस्थायी चुंबक केवल तभी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं, जब इनके प्रयुक्त तारों में विद्युत (electricity) धारा प्रवाहित की जाती है। विद्युत धारा को समाप्त करते ही इनका चुंबकीय क्षेत्र लगभग शून्य हो जाता है। इसी कारण ये विद्युत चुंबक (एलेक्ट्रोमैग्नेट्) के नाम से भी जानी जाती हैं। इनको बनाने में किसी तथाकथित मृदु या नरम (soft) चुंबकीय पदार्थ का उपयोग किया जाता है। ताकि इसके चारो ओर तार को लपेट कर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित की जा सकें।
स्थायी चुंबक (प्राकृतिक चुंबक)
स्थायी चुंबक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के लिए विद्युत धारा की आवश्यकता नहीं होती। यह सामान्य परिस्थितियों में बिना किसी कमी के बना रहता है। इन्हें विचुंबकित (demagnetise) करने के लिये विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है। ये तथाकथित कठोर (hard) चुंबकीय पदार्थ द्वारा बनाए जाते हैं।
चुंबकीय चिकित्सा की पद्धतियां
मुख्य तौर पर चुंबकीय चिकित्सा की दो पद्धतियां प्रचलित हैं- पहली सार्वदैहिक (हथेलियों व तलवों पर प्रयोग होने वाली) और दूसरी स्थानिक (रोग ग्रस्त भाग पर उपयोग की जाने वाली)।
सार्वदैहिक प्रयोग
सार्वदैहिक प्रयोग के अनुसार उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव वाले चुंबकों का एक जोड़ा लिया जाता है। शरीर के विद्युतीय सह संबंध के आधार पर उत्तरी ध्रुव वाले चुंबक का प्रयोग शरीर के दाएं भागों पर आगे की ओर किया जाता है। जबकि दक्षिणी ध्रुव वाले चुंबक का प्रयोग शरीर के बाएं भागों, पीठ और निचले भागों पर किया जाता है। यह नियम चुंबकों के सार्वदैहिक प्रयोग पर ही लागू होता है। इस अवस्था में उत्तम परिणामों के लिए, जब रोग शरीर के ऊपरी भाग अर्थात नाभि से ऊपर हो तो हथेलियों पर चुंबकों को लगाया जाता है। जबकि रोग शरीर के निचले भागों अर्थात नाभि से नीचे हो तो चुंबकों को तलवों पर प्रयोग किया जाता है।
स्थानिक प्रयोग
स्थानिक प्रयोग में चुंबकों को रोग ग्रस्त स्थानों पर लगाया जाता है। जैसे- रीढ़ की हड्डी, घुटना, पैर, नाक और आंख आदि। इनमें रोग के प्रकार और तीव्रता के अनुसार एक, दो या तीन चुंबकों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पर घुटने तथा गर्दन में तेज दर्द होने पर दो चुंबकों को अलग-अलग घुटनों पर तथा तीसरे चुंबक को गर्दन की दर्दनाक कशेरुका (vertebral) पर लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त अंगूठे में तेज दर्द होने पर दोनों चुंबकों के ध्रुवों के बीच अंगूठा रखने से तुरंत आराम मिलता है। इस प्रयोग विधि को केवल स्थानिक रोग संक्रमण की अवस्था में प्रयोग किया जाता है।
चुंबकीय चिकित्सा के लाभ
- इस चिकित्सा को हर आयु के व्यक्ति के लिए गुणकारी माना गया है। चुंबकीय चिकित्सा से शरीर के रक्त संचार में सुधार आता है। कुछ समय तक चुंबक को लगातार शरीर के संपर्क में रखने पर शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। जिससे शरीर की सभी क्रियाएं सुधर जातीं हैं और रक्त संचार बढ़ जाता है।
- चुंबकीय चिकित्सा की मदद से शरीर के प्रत्येक अंग की पीड़ा और सूजन दूर हो जाती है। साथ ही थकावट और दुर्बलता में भी लाभ मिलता है।
- दांत की पीड़ा और मोच जैसे मामलों में भी चुंबक चिकित्सा का अधिक लाभ मिलता है। दर्द में चुंबकीय चिकित्सा जल्दी असर दिखाती है।
- इस चिकित्सा के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं होती। एक ही चुंबक का अनेक व्यक्तियों पर उपयोग किया जा सकता है। चुंबक को साफ करने, धोने या जंतुरहित (कीटाणु रहित) बनाने की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि त्वचा के संक्रामक रोगों की चिकित्सा में उपयोग हुए चुंबक की सफाई करनी जरूरी होती है।
- शरीर को चुंबक के उपचार की आदत नहीं पड़ती और इसका उपयोग अचानक बंद करने पर भी कोई समस्या नहीं होती।
- चुंबक में हर प्रकार की पीड़ा को घटाने के गुण होते हैं।
चुंबकीय चिकित्सा के लिए चुंबकों का चयन
चुंबक चिकित्सा के लिए उपयोग होने वाले चुंबक के आकार और डिज़ाइन का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि उसे शरीर के किस भाग पर लगाना है। क्योंकि शरीर के कुछ अंगों पर बड़े आकार के चुंबकों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। वहीं कुछ अंगों पर छोटे चुंबक ठीक प्रकार से काम नहीं करते। उदाहरण के तौर पर आंखों पर प्रयोग के लिए चुंबक का आकार छोटा और गोल होना चाहिए। दूसरी तरफ शरीर के अधिकतर भागों में पीड़ा या सूजन होने पर बड़े आकार की चुंबक की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए एक ही आकार-प्रकार के चुंबक का प्रयोग शरीर के विभिन्न भागों पर नहीं किया जा सकता।
और शक्ति के आधार पर चुंबकों का चयन किया जाए तो मस्तिष्क, हृदय और आंख जैसे कोमल अंगों पर अधिक शक्ति वाले चुंबक नहीं लगाने चाहिए। इसके विपरीत जांघों, कूल्हों और घुटनों जैसे कड़ी और बड़ी मांसपेशियों या हड्डियों के रोगों के लिए कम शक्ति वाले चुंबक पर्याप्त नहीं होते।
चुंबकीय उपचार की सावधानियां-
इस उपचार को लेते समय इस बात का खास ध्यान रखना जरूरी होती है कि रोगी का संपर्क जमीन और लोहे की वस्तु से न हो। लोहे की कुर्सी या पलंग इस चिकित्सा के लिए वर्जित है। जबकि लकड़ी की कुर्सी या पलंग इस चिकित्सा के लिए अच्छे माने गये हैं। इस उपचार में चुंबकों की स्थिति इस प्रकार रहनी चाहिए कि चुंबक का उत्तरी ध्रुव, उत्तर दिशा की ओर तथा दक्षिणी ध्रुव, दक्षिण दिशा की ओर रहे। इससे चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के समानांतर रहेगा और चिकित्सा अधिक प्रभावशाली बनेंगी।
चुंबकीय चिकित्सा का सिद्धांत-
यह चिकित्सा इस सिद्धांत पर आधारित है कि हमारा शरीर मूल रूप से एक विद्युतीय संरचना है। और प्रत्येक शरीर में कुछ चुंबकीय तत्व जीवन के आरम्भ से लेकर जीवन के अंत तक विद्यमान रहते हैं। चुंबकीय चिकित्सा पद्धति रक्त संचार प्रणाली के माध्यम से मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
चुंबकीय थेरेपी-“चुंबक अपना प्रमुख गुण यानि आकर्षक तत्व मानव–शरीर को भी प्रदान करता है। अत: यह मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाले विकारों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। बाल रोगों के लिए यह रामबाण चिकित्सा है। यह आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार के रोगों को नष्ट करता है।”
मानव शरीर में ऊर्जा के प्रमुख सात (स्थूल शरीर, आकाश शरीर, सूक्ष्म शरीर, मानस शरीर, आत्मिक शरीर, ब्रह्म शरीर और निर्वाण शरीर) केंद्र माने जाते हैं। इन पर चुंबकीय शक्ति का प्रभाव डाने पर शरीर के भीतरी विकार स्वयं दूर हो जाते हैं। जिससे व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है।
इस चिकित्सा से संबंधित एक सिद्धांत यह भी है कि “चुंबक रक्त कणों के साइटोकेम तथा हीमोग्लोबिन नामक अणुओं में निहित लौह–तत्वों पर अपना प्रभाव डालता है। जिससे रक्त के गुण और कार्य में लाभकारी परिवर्तन आता है। परिणांस्वरूप शरीर के अनेकों रोग ठीक हो जाते हैं।“
चुंबकीय उपचार की विधियां
चुंबकीय उपचार की निम्न तीन विधियां मुख्य हैं-
- रोग ग्रस्त अंग पर आवश्यकतानुसार चुंबक का स्पर्श करने से, चुंबकीय ऊर्जा संतुलित की जाती है। इससे स्थायी रोगों और दर्द में काफी राहत मिलती है।
- एक्युप्रेशर की रिफ्लेक्सोलॉजी के सिद्धान्तानुसार शरीर की सभी नाड़ियों के अंतिम सिरे, दोनों हथेलियों और दोनों तलवों के आसपास होते हैं। इन अंगों को चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र में लाया जाता है। इससे वहां जमें दूषित पदार्थ दूर हो जाते हैं और शरीर में रक्त एवं प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने लगता है। इस प्रकार शरीर रोगों से मुक्त होता है।
- इस विधि के तहत दोनों हथेलियों और तलवों के नीचे कुछ समय के लिए चुंबक को स्पर्श कराया जाता है। दाहिनी हथेली एवं तलवों के नीचे सक्रियता को संतुलित करने वाला उत्तरी ध्रुव तथा बाईं हथेली एवं तलवों के नीचे शरीर में सक्रियता बढ़ाने वाला दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिएं।
- चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र में किसी तरल पदार्थों को रखने से उसमें चुंबकीय गुण प्रकट होने लगते हैं। इसलिए दूध, जल, तेल आदि तरल पदार्थों में चुम्बकीय ऊर्जा का प्रभाव बढ़ाकर सेवन करने से काफी लाभ पहुंचता है।
चुंबकीय थेरेपी प्रयोग की अवधि-
चुंबकों का स्थानिक अथवा सार्वदैहिक प्रयोग 10 मिनट से 30 मिनट तक सही रहता है। पहले एक सप्ताह तक चुंबकों का प्रयोग केवल 10 मिनट तक करना चाहिए। फिर इस अवधि को धीरे-धीरे 30 मिनट तक बढ़ाना चाहिए। हालांकि चुंबक चिकित्सा का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। लेकिन कभी-कभी सिर का भारीपन, चक्कर आना, लार टपकना और उलटी आदि लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
कब न लें चुंबकीय थेरेपी?
- इंसुलिन पंप लेने की स्थिति में चुंबकीय थेरेपी का प्रयोग न करें।
- गर्भवती महिलायें चुंबकीय चिकित्सा का प्रयोग न करें।
- पेसमेकर का उपयोग करने पर इस चिकित्सा का प्रयोग न करें।
- एक्स-रे और एमआरआई करवाने पहले हर प्रकार के मेग्नेटिक उपकरणों को उतार देना चाहिए।