सुजोक थेरेपी का सिद्धांत और उपचार
2022-05-25 18:14:42
ब्रह्मांड में सभी वस्तुएं पांच तत्वों से मिलकर बनी हैं। यहां तक की मानव शरीर भी। यह तत्व हैं अग्नि, जल, आकाश, वायु और पृथ्वी। जब भी इन तत्वों में असंतुलन पैदा होता है तो शरीर बीमार हो जाता है। ऐसे में प्रभावी अंग अपने से संबंधित जोड़ को सावधान होने का संकेत देते हैं। जिसके बाद जोड़ो में दर्द उत्पन्न होने लगता है। सुजोक थेरेपी इसी सिद्धांत पर कार्य करती है।
कई रोगों के समूल (समूह) को खत्म करके मरीज को स्वास्थ्य करने का काम सुजोक थेरेपी करती है। इसलिए इसे चमत्कारिक थेरेपी भी कहा जाता हैं। इस थेरेपी में माना जाता है कि मानव शरीर मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना है- एक सिर, दो हाथ, दो पैर।
इन पांचो अंगों का संबंध शरीर के बीच के हिस्सों से होता है। इसी तरह हाथ के पंजे से पांच उंगलियां जुड़ी होती हैं। इसके अतिरिक्त दोनों हाथों में तीन जोड़ होते हैं। जिन्हें कंधा, कोहनी और कलाई कहा जाता है। पैर में भी तीन जोड़ होते हैं। जिन्हे कुल्हा, घुटना और टखना कहा जाता है।
सुजोक थेरेपी का सिद्धांत?
सुजोक चिकित्सा पद्धति के सिद्धांत को सादृश्य सिद्धांत नाम से भी जाना जाता है। इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार मानव शरीर में बारह मार्गों से ऊर्जा का प्रवाह होता है। इन मार्गों को ‘मेरिडियन’ कहते हैं। जब यह प्रवाह सामान्य रूप से होता है तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है। लेकिन ऊर्जा के प्रवाह-मार्ग में रुकावट आने के कारण शरीर में बीमारियों का जन्म होता है। सुजोक चिकित्सा पद्धति द्वारा ऊर्जा के इसी प्रवाह को नियंत्रित करके मनुष्य को रोगों से मुक्त करने का प्रयास किया जाता है।
इन्हीं मेरेडियन के माध्यम से शरीर जीवन उपयोगी ऊर्जा ब्रह्मांड से ग्रहण करता है। इस चेतना शक्ति को विश्व के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे भारत में प्राण, आत्मा, जीव एवं प्राण-शक्ति कहते हैं। दूसरे देशों में इसे यूनिवर्सल लाइफ फोर्स एनर्जी, कॉस्मिक एनर्जी तथा चीन और जापान में ‘ची’, ‘की’ एवं शिआत्सु नाम से जाना जाता है।
सुजोक थेरेपी का उपचार-
शरीर की ऊर्जा में आए असंतुलन को ठीक करने के कई तरीके हैं। जैसे सुई से, बीज से, चुंबक से, मॉक्सा हर्ब से, जोड़ों की मसाज करके हाथ और पांव का इलाज किया जाता है। इस पद्धति द्वारा इलाज करने में दर्द नहीं होता। इस इलाज के दौरान कई रोगों में बीज या छोटे चुंबक को समस्या वाले क्षेत्र पर टेप से चिपका दिया जाता है। इसमें शरीर के आगे के हिस्से को हथेली की ओर और पीछे के हिस्से को हथेली के पीछे की ओर माना जाता है।
थेरेपी में किन टूल्स का होता है इस्तेमाल?
सुजोक थेरेपी के लिए अनेक टूल्स का प्रयोग किया जाता है। जो एक्यूप्रेशर में प्रयोग किए जाने वाले प्रोब या स्टिम्युलेटर टूल होते हैं। जिन्हें डायग्नोस्टिक स्टिक भी कहा जाता है। प्रोब या स्टिम्युलेट करने के बाद मसाजर, मॉक्सा हर्ब (Moxa herb) आदि से इलाज शुरू करता है। शरीर में दर्द, ब्लॉकेज, जोड़ों में दर्द, रीढ़ की हड्डी से संबंधित कोई परेशानी होने पर इस जड़ी-बूटी का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त गठिया, दमा, बंद नाक, कब्ज, एसिडिटी, मधुमेह जैसे कई रोगों में मॉक्सा हर्ब कारगर होती है।
थेरेपी में कितने तरह से होता है इलाज?
सुजोक चिकित्सा में दो तरीके से इलाज होता है। पहला- फिजिकल और दूसरा- मेटाफिजिकल। फिजिकल में शरीर के वह अंग आते हैं, जिन्हें हम देख सकते। इन अंगों को फिजिकल तरीके से ही स्टिम्युलेट करना होता है। मेटाफिजिकल में वह अंग आते हैं, जिन्हें हम देख नहीं सकते। शरीर में प्राण ऊर्जा, एनर्जी लेवल, चक्र, मेरीडियन, पंच तत्व आदि को संतुलित करने के लिए जो उपचार किया जाता है, उसे सिक्स की कहा जाता है। इसके उपचार से किसी भी तरह की कमी और अधिकता को संतुलित किया जा सकता हैं।
विभिन्न बीमारियों में सुजोक थेरेपी से उपचार
अस्थमा
इसमें कलाई और हथेली के जोड़ पर केंद्र में प्वाइंट खोजकर उसपर एक उंगली से एक मिनट तक तेज दबाव बनाएं। इससे सांस लेने की दिक्कत, कफ, और गले की खराश में आराम लगने लगता है। इसके अतिरिक्त अंगूठे के ठीक नीचे के बिंदु पर भी एक मिनट तक उंगली से तेज बदाव बनाने से भी कफ और फेफड़ों की समस्याओं में राहत मिलती है।
साइनस
साइनस से पीड़ित लोगों की नाक हमेशा बहती है या जाम हो जाती है। यहां किसी भी सिस्टम से अंदर नाक के कॉरेसपॉन्डिंग प्वॉइंट्स की पहचान की जाती है। फिर उस प्वॉइंट पर नीला रंग लगाया जाता है। जिसके बाद साइनस में आराम मिलने लगता है। इसके लिए 16 सिटिंग लेनी पड़ती हैं। इसमें कलर खुद-ब-खुद हीलिंग का काम करता है। कलर थेरेपी के बाद इलास्टिक रिंग मसाज का इस्तेमाल किया जाता है। यदि समस्या नाक बंद की है तो मसाज के लिए लाल रंग का प्रयोग किया जाता है। अंगूठे के उभरे हुआ हिस्सा को चेहरे की नाक माना जाता है। इसलिए रंगों का इस्तेमाल अंगूठे के इसी हिस्से में करते हैं। यह 0-30 सेकेंड तक करना होता है।
सर्वाइकल
सुजोक थेरेपी के अनुसार मानव शरीर में गर्दन के ऊपर चार से छह इंच का हिस्सा सर्वाइकल क्षेत्र कहलाता है। इस थेरेपी में हाथ को हथेली की तरफ पलटकर ऊपर से नीचे की ओर, अंगूठे का पहला और दूसरे जोड़ का हिस्सा सर्वाइकल क्षेत्र होता है। इन दोनों क्षेत्रों के बीचो-बीच मेरुदंड प्वॉइंट होता है। इसे दबाने पर दर्द महसूस होता है। इसलिए इलाज के रूप में लाल रंग का इस्तेमाल करते हुए इस प्वॉइंट पर दबाव देना चाहिए। इसके अतिरिक्त मरीज दोनों अंगूठों को अपनी ठोड़ी पर लगाते हुए ऊपर की ओर ले जाएं। और वहां कुछ सेकेंड या मिनट तक रोके। इसे प्रक्रिया को नियमित रूप से करने पर कुछ दिनों में आराम मिलने लगता है।
आर्थराइटिस
सुजोक थेरेपी के मुताबिक मध्यमा और अनामिका उंगलियों के ज्वॉइंट से बिंदुओं की पहचान की जाती है। यह दोनों उंगलियां पांव से संबंधित होती हैं। इनका पहला जोड़ कूल्हा, घुटने व टखने को रिप्रेजेंट करता है। आर्थराइटिस में भी दो तरह की प्रॉब्लम्स होती हैं। जिसमें पहली है- जोड़ों का जकड़ना। इसमें व्यक्ति को उठने-बैठने की समस्या और जोड़ों के लचीलेपन में रुकावट आ जाती है। ऐसे में उंगलियों को पेन-पेंसिल आदि से दबाने पर किसी प्वॉइंट पर दर्द का आभास होगा। इसलिए इस चिकित्सा में हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। दूसरी प्रॉब्लम है- घुटने या जोड़ों में बहुत दर्द की वजह से उठने-बैठने में मुश्किल होना। ऐसे में उंगलियों के प्वॉइंट पर लाल रंग का इस्तेमाल करना चाहिए।
माइग्रेन
सुजोक थेरेपी में सिर व मस्तिष्क से संबंधित हर रोग का इलाज किया जाता है। सुजोक के मुताबिक अंगूठे को चेहरा माना जाता है। इसलिए अंगूठे का सबसे ऊपरी हिस्सा माथा होता है। क्योंकि माइग्रेन या सिर दर्द का मुख्य वजह गैस होती है। इसके अलावा किसी को जोड़ों में तो किसी को रीढ़ की हड्डी में दर्द होता है। इसलिए अंगूठे के दाएं-बाएं (किनारे पर) स्थित प्वॉइंट पर भूरे रंग के मार्कर से प्रेशर देकर इलाज करना चाहिए। इसमें दोनों अंगूठों को मिला कर कुल 6 प्वॉइंट पर मार्कर का प्रयोग करते हैं। सुजोक थेरेपी का प्रयोग करने से पहले या बाद में चाय या कॉफी का इस्तेमाल करना अच्छा होता चाहिए।