अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के नियम और फायदे
2022-05-25 00:00:00
मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। मेरुदंड के सुचारू रूप से काम करने एवं स्वस्थ्य रहने पर संपूर्ण शरीर का स्वास्थ्य बना रहता है। ऐसे में कुछ व्यायाम जरुरी है, जो उर्जा के संचार को सुचारू रखने का काम करते हैं। इन्हीं में से एक अर्ध मत्स्येन्द्रासन योग है। यह एक ऐसा योग है जो रीढ़ की हड्डी को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही अर्ध मत्स्येन्द्रासन का नियमित अभ्यास मेरुंदड को सक्रिय कर संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
अर्धमत्स्येन्द्रासन क्या है?
पौराणिक कथाओं एवं योगग्रंथों के अनुसार, इस आसन का नाम नवनाथ परंपरा के प्रसिद्ध गुरु ऋषि मत्स्येन्द्र नाथ पर रखा गया है। क्योंकि इसी मुद्रा में योगी मत्स्येन्द्रासन ध्यान में लीन रहा करते थे। साथ ही उन्होंने ही इस मुद्रा को प्रचारित किया था। यह योगासन चार शब्दों से मिलकर बना है। पहला अर्ध जिसका मतलब आधा, दूसरा मत्स्य का अर्थ मछली, तीसरा इंद्र का मतलब भगवान और आसन यानी मुद्रा होती है। इसके योगाभ्यास के दौरान शरीर को कमर से मोड़ा जाता है। इसलिए इसे वक्रासन भी कहा जाता है। अर्धमत्स्येन्द्रासन को अंग्रेजी में हाफ स्पाइनल ट्विस्ट पोज़ (Half spinal Twist Pose) के नाम से जाना जाता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के फायदे-
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यह आसन मेरुदंड को लचीला और मजबूती प्रदान करता है। साथ ही इसकी कार्यप्रणाली में सुधार करता है।
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इस योगाभ्यास से पीठ में दर्द और कठोरता से छुटकारा मिलता है।
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यह मुद्रा कंधे, कूल्हों और गर्दन की कठोरता को कम करता है।
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यह फेफड़ों में ऑक्सीजन का संचार प्रभावी ढंग से करता है।
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यह आसान स्लिप डिस्क के लिए चिकित्सकीय उपाय है।
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यह पेट के अंगों की मालिश करके पाचन तंत्र में सुधार करता है। जिससे कब्ज, एसिडिटी, अपच एवं अन्य पाचन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
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अर्ध मत्स्येन्द्रासन का नियमित अभ्यास अग्नाशय के कार्यप्रणाली में सुधार करता है। इस प्रकार या मधुमेह के रोगियों के लिए बेहद लाभदायक है।
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यह रक्त को शुद्ध करके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के नियम-
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सबसे पहले फर्श या जमीन पर मैट बिछाकर दंडासन की मुद्रा में बैठ जाएं।
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अब अपने दोनों हाथों को जमीन पर सीधा रखें । साथ ही सांस अंदर की ओर लेते हुए अपने रीढ़ की हड्डी सीधा रखें।
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अपने बाएं पैर को इस प्रकार मोड़ें कि यह दाएं पैर के घुटनों से ऊपर जाते हुए जमीन को छुएं।
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अब अपने दाहिने पैर को मोड़कर बाई नितंब के पास जमीन पर आराम से रखें।
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इसके बाद अपने दाहिने हाथ को बाएं पैर के ऊपर ले आएं और बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें।
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अब सांस को छोड़ते हुए शरीर को जितना हो सके मोड़ें। साथ ही गर्दन को इस प्रकार मोड़ें कि नजर बाएं कंधें की ओर केंद्रित हो।
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अब बाएं हाथ को जमीन पर टिकाएं। साथ ही सामान्य मुद्रा में सांस लेते रहें।
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इस मुद्रा में करीब 1 मिनट तक बने रहें।
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पुनः अपने मूल अवस्था में आ जाएं। फिर इसी प्रक्रिया को विपरीत क्रम में दोहराएं।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करते समय बरतें यह सावधानियां-
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हल्के स्लिप डिस्क में यह आसन बेहद लाभदायक होता है। लेकिन गंभीर समस्या होने पर इसके अभ्यास से बचना चाहिए।
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मेरुदंड में किसी भी प्रकार की चोट या गंभीर समस्या होने पर इसका अभ्यास न करें।
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हार्निया या पेप्टिक अल्सर से पीड़ित लोगों को इसका अभ्यास बहुत सावधानी पूर्वक करें।
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यदि किसी को पहले कभी मस्तिष्क, पेट या दिल संबंधी सर्जरी हुई है, तो उन्हें इस योगासन से बचना चाहिए।
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गर्भवस्था और मासिक धर्म के दौरान इसके अभ्यास से बचें।