तिल के बीज
2022-03-17 14:54:31
तिल आयुर्वेद में एक बहुउपयोगी औषधि है। सेसमं जीन के पौधे से उत्पन्न होने वाले तिल के बीज को विश्व की सबसे प्राचीन तेलों की फसल के रूप में जाना जाता है। तिल के बीज को उसके स्वाद के कारण भी चाव से खाया जाता है। तिल का पौधा तेज सुगंध वाला 30-60 सेमी ऊंचा, सीधा और शाकीय (शाखाएं) होता है। तिल के बीज रंग भेद के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं- लाल, श्वेत एवं काला। तिल का वानस्पतिक नाम सिसेमम इण्डिकम (Sesamum indicum Linn or Syn-Sesamum orientale Linn) है।
तिल के बीज की प्रकृति-
तिल प्रकृति से मीठे, तीखे और उत्तम स्वाद वाले होते हैं। इनकी तासीर गर्म, कफ तथा पित्त को कम करने वाली होती है। तिल के बीज बालों के लिए फायदेमंद, बलदायक और त्वचा के लिए अत्यंत लाभकारी, घाव भरने में कारगर होते हैं। तिल के बीज महिलाओं के स्तनों में दूध की मात्रा को बढ़ाने में भी सक्षम होते हैं। तीनों प्रकार के तिलों (लाल, श्वेत एवं काला) में काले तिल को श्रेष्ठ माना जाता है, जो पुरुषों में शुक्राणु (Semen) बढ़ाने में लाभकारी होते हैं।
तिल का तेल-
आयुर्वेदिक उपचार में तिल के तेल का उपयोग मुख्य रूप से मालिश के लिए किया जाता है। तिल के तेल से मालिश करने से शरीर में गर्म प्रभाव पड़ता है, जो त्वचा के साथ-साथ रक्त संचार के लिए भी बहुत लाभदायक है। पॉलीअनसैचुरेटेड फैट (बहुअसंतृप्त फैट) होने के कारण तिल का तेल सेहत के लिए अत्यंत लाभकारी है, विटामिन-के, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन-डी, विटामिन-ई और फास्फोरस जैसे तत्वों से भरपूर होने के कारण यह आयुर्वेद में भी बहुत उपयोगी माना गया है। तिल के तेल में कुछ ऐसे प्रोटीन और एंजाइम्स होते हैं, जो बालों के लिए लाभकारी होते हैं।
तिल के बीज-
आयुर्वेद में मुख्य रूप से काले और सफेद तिलों का वर्णन किया गया हैं। आयुर्वेद के अनुसार दोनों तिलों के गुण व औषधीय प्रयोग अलग-अलग हैं। इसमें सफेद की तुलना में काले तिल औषधीय उपयोग के आधार पर अधिक महत्त्वपूर्ण है। आयुर्वेद में तिल के बीज को बलवर्धक, मधुर तथा पुष्टिकारक बताया गया है। तिल पिण्याक (तेल निकालने के बाद बचा अवशेष) आंखों से संबंधी रोग, रूखी त्वचा और डायबिटीज कंट्रोल करने में सहायक होती है।
तिल के बीज के फायदे;
तिल के बीज बहुउपयोगी होते हैं। खाने की चीजों में स्वाद वर्धक होने के साथ-साथ अपने औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तिल के बीज और तेल दोनों का ही खास महत्त्व है। तिल के बीजों से कई प्रकार की सॉस एवं डिप्स (एक प्रकार की चटनी) भी बनाई जाती है। तिल के बीज के औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-
1) बालों के लिए बेहद फायदेमंद है तिल का तेल-
बालों के झड़ने, समय से पहले सफेद होने, सिर में रूसी (डैंड्रफ) व गंजापन आदि समस्याओं में तिल का तेल बहुत फायदेमंद होता है। आयुर्वेद के अनुसार तिल की जड़ और पत्ते का काढ़ा बनाकर उससे बाल धोने से बाल सफेद नहीं होते। काले तिल के तेल को बालों में लगाने से बाल असमय सफेद नहीं होते। प्रतिदिन नियमित रूप से सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल मुलायम, काले व घने बनते हैं। तिल के फूल तथा गोक्षुर (पौधे का एक प्रकार) को बराबर मात्रा में लेकर घी और शहद में पीसकर सिर पर लगाने से बालो का झड़ना और सिर में रूसी की समस्या दूर हो जाती है। बालों को लम्बा, काला व घना बनाने के लिए आंवला, कमल केसर, काला तिल और मुलेठी के चूर्ण को समान मात्रा में मधु (शहद) में मिलाकर सिर पर लगाना चाहिए।
2) आंखों से संबंधी बीमारियों में कारगर हैं तिल के बीज-
आंखों से संबंधित बीमारियां जैसे आंखों का लाल होना, आंखों का दर्द आदि को ठीक करने में तिल के बीज मदद करते हैं। काले तिल का काढ़ा बनाकर आंखे धोने से नेत्र संबंधी अन्य रोगों से छुटकारा मिलता है।
3) खांसी में तिल का सेवन है लाभदायक-
तिल का काढ़ा पीने से खांसी में राहत मिलती है। मिश्री (sugar candy) तथा तिल को उबालकर पीने से सूखी खांसी की समस्या दूर होती है।
4) पाइल्स की समस्या में मददगार हैं तिल के बीज-
दिन में तीन बार भोजन से 1 घण्टा पहले तिल को पीसकर मक्खन के साथ खाने से पाइल्स (बवासीर) में लाभ मिलता है।
5) पथरी के रोग में सहायक है तिल का सेवन-
तिल के बीजों का नियमित सेवन करने से पथरी की समस्या ठीक होती है। इसके अलावा तिल के फूलों को जलाकर, उस राख का सेवन करने से भी पथरी का आकार (साइज) कम होती है।
6) तिल का उपयोग गर्भाशय विकार में है कारगर-
तिल के बीज का दिन में 3 से 4 बार सेवन करना गर्भाशय संबंधी रोगों को दूर करता है। पीरियड्स से संबंधित समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए तिल के काढ़े का सेवन करना अच्छा होता है। इसके अलावा तिल के तेल में रूई को भिगोकर योनि में रखने से श्वेतप्रदर या सफेद पानी की समस्या दूर होती है।
7) पुरुषत्व वर्धक है तिल के बीज-
पुरुषत्व को बढ़ाने के लिए सुबह-शाम भोजन से पहले तिल और अलसी का काढ़ा बनाकर पीना अच्छा होता है। साथ ही अल्सर (छाले) पर काले तिल को पीसकर लगाने से अल्सर में राहत मिलती है।
8) कई प्रकार के विष (जहर) निकालने में लाभकारी है तिल का प्रयोग
- मकड़ी के काटने पर तिल और हल्दी को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर, काटे हुए स्थान पर लगाने से मकड़ी का विष तुरंत उतर जाता है।
- बिल्ली के काटने पर तिल को पानी में पीसकर, काटे हुए स्थान पर लगाने से बिल्ली का विष शरीर में नहीं फैलता और घाव भी जल्दी ठीक होता है।
- भिड़ (बर्रे या ततैया) का विष निकाले हेतु तिल को सिरके (Vinegar) में पीसकर काटे हुए स्थान पर मलना फायदेमंद होता है।
- बिच्छु द्वारा काटे जाने पर तिल की खली (तेल निकालने के बाद बचा अवशेष) को लगाने से दर्द में राहत मिलती है।
कहां पाये जाते हैं तिल के बीज?
जापान और चीन तिल के प्रमुख उत्पादक देश हैं। भारत में भी तिल पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। सभी प्रान्तों (provinces) में 1200 मी की ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है। इसके पत्ते पतले, कोमल, रोमयुक्त और बड़े होते हैं। वहीं इसके फूल बैंगनी, गुलाबी अथवा सफेद बैंगनी रंग के होते हैं।