औषधीय पौधों का अस्तित्व
2022-05-25 18:15:42
औषधीय पौधों का अस्तित्व मनुष्य जन्म से काफी पहले का रहा है। पुरातनकाल से ही मनुष्य रोग से छूटकारा पाने के लिए तरह-तरह के पौधों का उपयोग करता आया है। जिन औषधीय पौधों से औषधि मिलती है, उनमें से अधिकतम पौधे जंगली होते हैं। इसलिए इन्हें हर कोई नहीं उगा सकता। इन औषधीय पौधों की जड़, तना, पत्तियां, फूल, फल, बीज और छाल का उपयोग उपचार के लिए होता है।
हमारे जीवन में औषधीय पौधों का महत्त्व-
औषधीय पौधों का महत्व उसमें पाए जाने वाले रसायन और उनकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है। औषधीय पौधों का उपयोग ज्यादातर दिमागी बीमारियों जैसे- मिर्गी, पागलपन तथा मन्द-बुद्धि के उपचार में किया जाता है। औषधि पौधे कफ, पीलिया, हैज़ा, पेट की जलन और वायु रोग आदि का शमन करते हैं। शरीर की पाचन शक्ति, रक्त शोधक क्षमता (खून को शुद्ध करना) को बढ़ाने और बुद्धि का विकास करने में भी मदद करते हैं। साथ ही मधुमेह, मलेरिया, त्वचा रोग और ज्वर आदि में लाभकारी होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ औषधीय पौधों का उपयोग भोजन में खुशबू, स्वाद, रंजक बढ़ाने में किया जाता है।
नीम-
नीम एक उच्च दर्जे की औषधि है। इसको औषधियों में एंटीबायोटिक माना जाता है। इस रूप में इसको घर का डॉक्टर कहना गलत नहीं होगा। यह टेस्ट (स्वाद) में भले ही कड़वा हो पर इससे होने वाले लाभ जरूर मिठास का अनुभव कराते हैं। नीम का पौधा भारी मात्रा में ऑक्सीजन प्रदान करता है। इसी वजह से इस पौधे के आस-पास की हवा ज्यादा स्वच्छ रहती है। वैसे तो नीम वह ऑलराउंडर है, जिसके पास हर बीमारी का इलाज है। पर अभी नजर डालते हैं इसकी कुछ महत्वपूर्ण बातों पर-
- इसकी पत्तियां बुखार में फायदा करती हैं।
- एक कप पानी में नीम की 4-5 पत्तियों को उबालकर पीना, गले के लिए काफी फायदेमंद होता है।
- शरीर के जले हुए भाग पर नीम की पत्तियों को पीसकर लगाने से वह जल्दी ठीक होता है।
- इसका पेस्ट दांतों के लिए अच्छा होता है।
- कान के दर्द के लिए नीम का तेल फायदेमंद होता है।
- यह तेल बालों के लिए भी अच्छा होता है।
- नीम का पेस्ट फुंसी-फोड़े और दूसरे जख्मों पर भी लगाया जा सकता है।
- बिच्छू, ततैया जैसे जहरीले कीटों के काट लेने पर नीम का पेस्ट लगाने से राहत मिलती है और ऐसा करने से कीड़े का जहर भी शरीर में नहीं फैलता।
तुलसी-
तुलसी के पौधे को हर इंसान लगाना पसंद करता है। क्योंकि घर के आंगन में तुलसी का पौधा रखना पूजनीय और शुभ माना जाता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक दवाओं में भी तुलसी को सबसे महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। दवा के रूप में तुलसी का उपयोग बहुत पहले से किया जाता रहा है। क्योंकि यह कई बीमारियों का रामबाण ईलाज है। इसलिए आयुर्वेदिक औषधि में तुलसी को विशेष महत्व दिया जाता है। पुराने समय में दादी-नानी के नुस्खों में भी तुलसी का उपयोग जरूर होता था। वैज्ञानिक तौर पर तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो बदलते मौसम में शरीर को होने वाली दिक्कतों से बचाने का काम करते हैं। आइए जानते हैं तुलसी के कुछ जरूरी उपचारों को-
- खांसी, जुकाम या दस्त होने पर तुलसी का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है।
- यह चोट को जल्दी ठीक करने की क्षमता रखती है।
- तुलसी चेहरे की चमक बढ़ाने में भी फायदेमंद होती है।
- यह मुंह से आने वाली दुर्गंध को दूर करने में सहायता करती है।
- तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाती है।
- तुलसी सर्दी-जुकाम के साथ बुखार में भी फायदा पहुंचाती है।
- जुकाम होने पर तुलसी को पानी में उबाल कर भाप लेने से भी फायदा होता है।
- महिलाओं को होने वाली अनियमित पीरियड्स की समस्या को कम करने में उपयोगी होती है।
- यौन रोगों के इलाज में पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है।
धनिया-
हम सभी लोगों ने सब्जियों में डाल कर खूब हरा धनिया खाया है। खाना पकाने के बाद उसकी गार्निश करने के लिए लोग उसपर हरा धनिया डालते हैं। इससे न सिर्फ खाने की खूबसूरती बढ़ती है, बल्कि स्वाद भी बढ़ता है। असल में धनिया एक औषधीय पौधा है। जिसमें कई गुण पाए जाते हैं। इसका सेवन करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है। यह शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाने, कोलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने, डाइबिटीज, किडनी के साथ कई रोगों में लाभदायक होता है।
इसमें वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल्स होते हैं। जो इसको अधिक पावरफुल बनाते हैं। इसके अलावा हरे धनिये में फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, कैल्शियम, विटामिन-सी और पोटैशियम आदि भारी मात्रा में पाएं जाते हैं। आइए जानते हैं धनिया के कुछ घरेलु नुस्खों के बारे में-
- धनिया मुंहासे और काले धब्बे को हटाने में मदद करता है। इसके लिए हरा धनिया और हल्दी का पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगाएं।
- हरे धनिया का रस मुंह के छाले पर लगाने से छालों से निजात मिलती है।
- साबुत सूखा धनिया चबाने से मुंह की दुर्गंध खत्म होती है।
- धनिया के पत्तों के रस को माथे पर लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है।
- हरा धनिया, कला नमक और जीरे की चटनी बनाकर खाने से कब्ज जैसी समस्या दूर होती है।
- शरीर के किसी हिस्से में जलन या सूजन होने पर धनिये के पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है।
पुदीना-
पुरातन काल से ही पुदीने को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में देखा जाता है। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने और घाव को जल्दी ठीक करने के साथ अन्य रोगों से लड़ने का भी काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीना कफ और वात रोग को कम करके भूख बढ़ाने का काम करता है। पुदीने को विटामिन-सी, तांबा, मैंगनीज जैसे मिनरल्स का बड़ा स्त्रोत माना जाता है। साथ ही इसमें जीवाणु एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट जैसे गुण भी होते हैं। जो दस्त, अपच, बुखार, लीवर, पेट संबंधी बीमारियों को ठीक करने का काम करते हैं। पुदीने का इस्तेमाल मल-मूत्र संबंधित रोगों और शारीरिक कमजोरी को कम करने के लिए भी किया जाता है। पुदीने के फायदे-
- पुदीने का रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
- पुदीने का सेवन पेट संबंधी रोगों को कम करता है।
- इसके पत्तों को चबाने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
- इसके इस्तेमाल से बालों में रूसी, बालों का गिरना आदि समस्याएं कम होती हैं।
- पुदीने में वातशामक और उष्ण गुण होते हैं, जो मासिक धर्म के दर्द और ऐंठन में राहत देते हैं। इसलिए पुदीना का इस्तेमाल मासिक धर्म के समय करना फायदेमंद होता है।
काली मिर्च-
आयुर्वेद में काली मिर्च को आला दर्जे की औषधि माना जाता है। इसमें मौजूद पेपरीन बॉडी में कुछ खास न्यूट्रिएंट्स (पोषक तत्त्व) की मात्रा बढ़ाकर बॉडी फंक्शन्स को बेहतर बनाने में मदद करती है। काली मिर्च की एंटीबैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइन्फ्लेमेटरी प्रॉपर्टी के कारण आयुर्वेद में इसे असरकारी औषधि माना गया है। जो वात एवं कफ दोषों को खत्म करने की ताकत रखती है। काली मिर्च इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करती है। यह अपच की समस्या को दूर कर भूख बढ़ाने में मदद करती है। काली मिर्च के सेवन से पेट के रोग खत्म होते हैं और लीवर भी स्वस्थ रहता है। काली मिर्च का तीखा और गर्म प्रभाव मुंह में लार बनाने का काम करता है। जो शरीर के विभिन्न स्रोतों से गन्दगी को बाहर कर स्रोतों को शुद्ध करती है। आइए जानते हैं इसके कुछ घरेलू उपचार के बारे में-
- खांसी, जुकाम में काली मिर्च का सेवन बहुत ही फायदेमंद है।
- गले में दर्द या खरास है तो भी काली मिर्च का उपयोग लाभ पहुंचाएगा।
- काली मिर्च आंखो की रोशनी बढ़ाने में मदद करती है। इसके लिए आधा चम्मच घी में आधा चम्मच काली मिर्च पाउडर मिलाकर पेस्ट के रूप में सेवन करना चाहिए।
- गैस की समस्या के लिए काली मिर्च बेहतर विकल्प माना जाता है।
एलोवेरा-
आयुर्वेद में एलोवेरा को घृतकुमारी के रूप में महाराजा का स्थान दिया गया है और औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी कहा जाता है। इसकी गिनती मुख्य औषधीय पौधों में होती है। एलोवेरा के जूस का सेवन करने से शरीर में होने वाले पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। जड़ी-बूटी के तौर पर एलोवेरा में कई गुण होते हैं। इसमें अमीनो एसिड की भरपूर मात्रा रहती है और विटामिन बी-12 की मौजूदगी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बनी रहती है। एलोवेरा त्वचा की देखभाल, बालों की खूबसूरती और घावों को भरने में मदद करता है। एलोवेरा चेहरे के लिए अमृत और औषधीय गुणों का भंडार है। आइए जानते हैं एलोवेरा के कुछ फायदों के बारे में-
- एलोवेरा के इस्तेमाल से मुहांसे, रूखी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग-धब्बे और आखों के काले घेरों को दूर किया जाता है।
- यह ब्लड शुगर को संतुलित रखता है। इसलिए मधुमेह (Diabetes) से पीड़ित लोगों के लिए एलोवेरा एक लाभदायक औषधि है।
- एलोवेरा पेट के रोगों से लड़ने में सक्षम है।
- यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
- एलोवेरा का रस बालों में लगाने से बाल काले, घने और मुलायम रहते हैं।
- यह जोड़े के दर्द में कारगर है।
- एलोवेरा जेल महिलाओं को होने वाले वजाइना क्रश (Yeast Infection) से निजात दिलाने में भी मदद करता है।
- इसमें एंटी इंफ्लामेट्री प्रॉपर्टीज होती हैं। जो स्किन में किसी भी तरह के रैशेज, सूजन और जलन नहीं होने देतीं।
- महिलाओं या पुरुषों में से किसी को भी गुप्त भाग (Private Part) में जलन, खुजली या रैशेज होने पर भी एलोवेरा जेल का उपयोग किया जा सकता है।
चिरायता-
चिरायता को चिरेता भी कहा जाता है। यह मूल रूप से हिमालय में पाई जाने वाली औषधीय पौधों में शामिल है । जिसका उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। चिरायता का प्रयोग मादक और गैरमादक (alcoholic and non-alcoholic) पेय के लिए भी किया जाता है। इसलिए चिरायता को कड़वा टॉनिक भी बोला जाता है। चिरायता स्वाद में जितना कड़वा होता है, उतना ही रोगों से लड़ने में फायदेमंद होता है। आमतौर पर चिरायता का उपयोग बुखार, कब्ज, भूख की कमी, आंतों के कीड़े, पेट की समस्या, त्वचा रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। निम्न बातों से हम जानेंगे चिरायता के फायदे के बारे में-
- चिरेता का उपयोग खून को साफ करने के लिए औषधि के रूप में किया जाता है।
- चिरेता में एंटीवायरल गुण पाया जाता है। जो खांसी, जुकाम, सर्दी जैसी वायरल इन्फेक्शन को रोकता है।
- इसका सेवन भूख बढ़ाने में मदद करता है।
- चिरेता में स्वेरचिरिन (Swerchirin) नामक तत्व होता है। जो एंटी-मलेरिया के रूप में काम करता है।
- चिरेता में एंटीपैरासिटिक गुण होता है। जिससे पेट व आंतों में होने वाले कीड़ों को नष्ट करता है।
- यह शरीर के पाचन स्वास्थ्य को बेहतर करता है।
- चिरेता जोड़ो के दर्द में के लिए भी अच्छा होत है।
इंद्रायण-
आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो अनगिनत बीमारियों के उपचार में सहायता करते हैं। इंद्रायण का वानास्पतिक नाम सिटुल्स कोलोसिंथिस (Citrullus colocynthis) है। जिसे कोलोसिंथ (Colocynth) के नाम से भी जाना जाता है। इंद्रायण का फल तरबूज के परिवार से संबंध रखता है। यह एक बारहमासी लता (बेल) है, जो भारत के बलुई क्षेत्रों के खेतों में उगाई जाती है। इंद्रायण के तीन प्रकार हैं। बड़ी इंद्रायण, छोटी इंद्रायण और लाल इंद्रायण। इसकी हर प्रकार की बेल पर लगभग 50-100 फल लगते हैं। जो कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। आइए जाने इन्द्रायन के कुछ स्वास्थ्य लाभों के बारे में-
- इन्द्रायण का प्रयोग कील मुहांसो जैसी समस्या के लिए किया जाता है। इसके लिए जड़ों को पीसकर प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं।
- इसमें एंटी-डायबिटिक गुण होते हैं, जो मधुमेह को कम करने में मदद करते हैं।
- इंद्रायण ऑस्टियोआर्थराइटिस (जोड़ों की बीमारी) के दर्द और सूजन को कम करने में सहायता करता है।
- इसका इस्तेमाल आंतो के कीड़ों को दूर करने के लिए जाता है।
- इंद्रायण के तेल को सिर में लगाने से बालों का विकास होता है। साथ ही इन्द्रायण बालों की झड़ने और सफ़ेद होने वाली समस्या को कम करता है।
गिलोय (गुडुची)-
आयुर्वेद में गिलोय को उत्तम दर्जे की जड़ी-बूटी माना जाता है। इसलिए इसे जड़ी-बूटियों की रानी भी कहा जाता है। गिलोय एक बहुवर्षीय लता होती है। इसके पत्ते पान की तरह और फल मटर के दाने जैसे होते हैं। यह प्रमुख औषधीय पौधों में से एक है। गिलोय के पत्ते स्वाद में कड़वे, कसैले और तीखे होते हैं । गिलोय में क्षाराभ प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें पाए जाने वाले अन्य जैव-रासायनिक पदार्थ स्टेरॉयड, फ्लेवोनोइड, लिग्नेंट, कार्बोहाइड्रेट हैं। इनकी उच्च पोषक तत्व सामग्री के कारण, गिलोय का उपयोग कई हर्बल, आयुर्वेदिक और आधुनिक दवाओं के निर्माण के लिए किया जाता है।
- गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाता है।
- यह ज्वरनाशी है अर्थात पुराने से पुराने बुखार के इलाज में गिलोय का सेवन करना बेहतर विकल्प है।
- गिलोय शरीर के रक्त प्लेट्स को बढ़ाता है और डेंगू बुखार के लक्षणों को कम करता है।
- गिलोय में आक्सीकरण रोधी गुण होते हैं। जो स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और खतरनाक बीमारियों से लड़ने में सहायक होते हैं।
- इससे रक्त शर्करा और लिपिड के स्तर को कम करता है। इसलिए टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को गिलोय के रस का सेवन करना लाभप्रद होगा।
- गिलोय नेत्र विकारों के लिए फायदेमंद है।
- इसके सेवन से शरीर का पाचन तंत्र मजबूत होता है।
अश्वगंधा-
अश्वगंधा प्राचीन काल से आयुर्वेद में उपयोग होने वाली एक कारगर औषधि है। सालों से इसका इस्तेमाल कई बीमारियों के लिए होता आया है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रयोग कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई छोटे-बड़े गुण निहित हैं। इसके अलावा अश्वगंधा शरीर में एंटीऑक्सिडेंट की आपूर्ति करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) को मजबूत बनाता है। इसमें जीवाणुरोधी (antibacterial) और रोगरोधी (anticonvulsant) गुण भी होते हैं। जो शरीर और मस्तिष्क के लिए कई अन्य लाभ प्रदान करते हैं। अभी नजर डालते हैं अश्वगंधा के कुछ फायदों पर-
- इसमें ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं। जो तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करते हैं।
- अश्वगंधा के चूर्ण को गिलोय के साथ सेवन करने से बुखार से निजात मिलती है।
- यह सूजन और जोड़ों के दर्द में राहत देने का काम करता है।
- अश्वगंधा की जड़ों का पेस्ट घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
- अश्वगंधा बॉडी में कोर्टिसोल के लेवल को कम करके बाल झड़ने की समस्या को कम करता है।
- व्यक्ति के यौन संबंधी रोग के लिए अश्वगंधा रामबाण औषधि है। यह पुरुषों में शुक्राणु (Sperm) बढ़ाने में मदद करता है।
ब्रह्मी-
ब्राह्मी एक प्रकार का औषधीय पौधा है। ब्राह्मी का तना और पत्तियां मुलामय और गूदेदार होती हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं। भारत में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे- सफेद चमनी, सौम्यलता, वर्ण, नीरब्राम्ही, जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि। इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है।
आयुर्वेद में ब्राह्मी के सभी भागों को जैसे पत्ते, फूल, फल, बीज और जड़ आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसे ब्रेन बूस्टर के नाम से भी जाना जाता है। ब्राह्मी याद्दाश्त बढ़ाने के लिए नायाब औषधि है।
ब्राह्मी को एक तरह का नर्व टॉनिक भी माना जाता है। यह नसों की कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती है। इसका इस्तेमाल खून से संबंधी विकारों, बुखार, पीलिया, हिस्टीरिया, मिर्गी, उन्माद, खांसी, बाल झड़ने, मूत्राशय से संबंधी विकारों, मेमोरी लॉस के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर को कम करने, अनिद्रा और तुतलाहट को दूर करने के लिए किया जाता है। आइए जानते है ब्राह्मी के फायदे के बारे में-
- यह शरीर में उपस्थित कोर्टिसोल के स्तर को कम करता है। इससे तनाव, थकान, चिंता को कम किया जाता है।
- ब्राह्मी में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जो कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकते हैं।
- ब्राह्मी का इस्तेमाल प्रतिदिन करने से पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
- प्राकृतिक रूप से यह शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायता करता है।