जटामांसी के अनसुने फायदे और नुकसान
2022-05-24 14:59:42
जटामांसी एक छोटा, सुंगधित शाक होती है। यह हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाली जड़ी-बूटी होती है।जोपहाड़ों पर बर्फ में पैदा होती है। इसको जटामांसी इसलिए कहा जाता है। क्योंकि इसकीजड़ों में जटा या बाल जैसे तंतु लगे होते हैं। इसका पौधा 10-60 सेमी ऊंचा, सीधा, बहुवर्षायु और शाकीय होता है। इसके तने का ऊपरीभाग रोम वाला औरआधा भाग रोमहीन होता है। भूमि के ऊपर जटामांसी की जड़ों से कई शाखाएं निकलती हैं। जो 6-7 अंगुल तक सघन, बारीक, जटाकार औररोमयुक्त होती हैं। जटामांसी के पत्ते भी हर्बल और पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किए जाते हैं। दुर्गन्ध, शामक, रोगाणुरोधी और सूजन को कम करने वाले गुणों की वजह से इसको आवश्यक तेल के रूप में प्रयोग किया जाता है। जटामांसी औषधीय जड़ी-बूटी का इस्तेमाल तीक्ष्ण गंध वाला परफ्यूम और दवा बनाने के लिए भी किया जाता है।
जटामांसी एक लुप्तप्राय आयुर्वेदिक चिकित्सा जड़ी-बूटी है। जिसका उपयोग कई औषधीय उद्देश्यों के लिए प्राचीन समय से किया जा रहा है। जटामांसी की जड़ें इसका मुख्य औषधीय हिस्सा है। यह तनाव को कम करने, संज्ञानात्मक कार्य (cognitive function) और नींद में सुधार करने की क्षमता के लिए जानी जाती है। इस पर किए गए शोध बताते हैं कि, जटामांसी का उपयोग स्मृति में सुधार, सूजन और अनिद्रा का इलाज करने में किया जाता है। जटामांसी के फायदे बहुत अधिक हैं। आयुर्वेद में इसका उपयोग मिर्गी (epilepsy), आवेग और हिस्टीरिया (hysteria) के लिए किया जाता है। बाजार में यह जड़, तेल और पाउडर के रूप में उपलब्ध है। इसकी दो प्रजातियां गन्धमांसी तथा आकाशमांसी होती है।
जटामांसी के फायदे:
मानसिक थकावट को दूर करती है जटामांसी-
जटामांसी मानसिक थकावट को कम करती है। जोएक स्नायू टॉनिक के रूप में कार्य करती है। आयुर्वेद के अनुसार, यह स्वस्थ दायक कार्यों को उत्तेजित और मस्तिष्क को पोषण प्रदान करती है। जटामांसी का अश्वगंधा के साथ सेवन करना CFS (Chronic Fatigue Syndrome) से जुड़े तनाव के लिए एक कारगर उपाय है। तनाव को कम करने वाली और इन जड़ी-बूटियों की एंटीऑक्सीडेंट गतिविधियां भी CFS की वजह से हुए ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करती हैं।
अनिद्रा से बचाती है जटामांसी-
अनिद्रा की समस्या होने पर सोने से एक घंटा पहले एक चम्मच जटामांसी की जड़ का चूर्ण ताजे पानी के साथ लेने से लाभ होता है। यहनींद की गुणवत्ता में सुधार और अनिद्रा को दूर करने का काम करती है।
सिर दर्द में प्रभावी है जटामासी चूर्ण-
आयुर्वेद के अनुसार, जटामांसी सिर दर्द के साथ होने वाले कान के पास वाले दर्द औरआंख के पास वाले कष्टदायी दर्द आदि के लिए एक प्रभावी समाधान है। इसके अलावा तनाव और थकान के कारण होने वाले सिर दर्द की परेशानी से छुटकारा पाने के लिए जटामांसी, तगर, देवदारू, सोंठ, कूठ आदि को समान मात्रा में पीसकर देशी घी में मिलाकर सिर पर लेप करने से लाभ मिलता है।
दिमाग को तेज बनाता है जटामांसी की जड़ों का उपयोग-
जटामांसी दिमाग के लिए एक रामबाण औषधि है। यह धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है। जटामांसी याददाश्त में सुधार और भुलक्कड़पन को कम करने का काम करती है। इसके अलावा यह याददाश्त को तेज करने की अचूक दवा है। इसलिए यह स्मृति हानि वाले लोगों में स्मृति एजेंट के रूप में कार्य करती है। एक चम्मच जटामांसी चूर्ण को एक कप दूध में मिलाकर पीने से दिमाग तेज होता है।
जटामांसी के गुण हैं चिंता को दूर करने का उपाय-
जटामांसी में चिंता को कम करने वाले गुण होते हैं। जोबेचैनी और घबराहट की भावना को कम करते हैं। इसे चिंता, कंपन, चिंता की वजह से सोने में होने वाली मुश्किल आदि को नियंत्रित करने और चिंता विकारों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। यह चिंता विकारों में कंपन को नियंत्रित करने के लिए भी एक प्रभावी उपाय है।
जटामांसी का उपयोग करे त्वचा में सुधार-
त्वचा की रंगत में निखार लाने के लिए जटामांसी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए जटामांसी की जड़ को गुलाबजल में पीसकर चेहरे पर लेप की तरह लगाएं। इससे कुछ दिनों में ही चेहरा खिलने लगता है।
रक्तचाप को सामान्य रखने में लाभकारी है जटामांसी-
जटामांसी में हृदय को सुरक्षित रखने वाले गुण होते हैं। जटामांसी एक उत्कृष्ट हृदय टॉनिक के रूप में काम करती है। यह दिल के कार्यों को बढ़ाती है और हृदय की दर को सामान्य रखती है। यह लिपिड चयापचय (metabolism) को बरकरार रखती है और हृदय के ऊतकों को ऑक्सीडेटिव चोट से बचाती है। आयुर्वेद में, जटामांसी को रक्त परिसंचरण में सुधार और रक्तचाप को सामान्य करने के लिए जाना जाता है। क्योंकि जटामांसी का मुख्य प्रभाव रक्त परिसंचरण पर पड़ता है। इस प्रकार यह दोनों स्थितियों, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और निम्न रक्तचाप में रक्त चाप को सामान्य करने के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।
जटामांसी के अन्य लाभ
- जटामांसी के बारीक चूर्ण से मालिश करने से ज्यादा पसीना आने की समस्या कम हो जाती है।
- जटामांसी के टुकड़े को मुंह में रखकर चूसने से मुंह की जलन एवं पीड़ा कम होती है।
- जटामांसी चूर्ण को वाच चूर्ण और काले नमक के साथ मिलाकर, दिन में तीन बार सेवन करने से हिस्टीरिया, मिर्गी, पागलपन जैसी बीमारियों से राहत मिलती है।
- यदि कोई व्यक्ति दांतों के दर्द से परेशान है तो, वह जटामांसी की जड़ का चूर्ण बनाकर मंजन करें। इससे दांतों के दर्द के साथ- साथ मसूढ़ों के दर्द, सूजन, दांतों से खूनऔरमुंह से बदबू आने जैसी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
- जटामांसी को पीसकर आंखों पर लेप की तरह लगाने से बेहोशी की समस्या दूर होती है।
- जटामांसी को मूत्र से ग्लूकोज (चीनी) के उत्सर्जन को कम करने के लिए भी इस्तेमालकिया जाता है।
जटामांसी के नुकसान
- जटामांसी का ज्यादा उपयोग या सेवन करने से गुर्दों को नुकसान या पेट दर्द की शिकायत हो सकती है।
- मासिक धर्म के समय इसका ज़्यादा उपयोग परेशानी पैदा कर सकता है।
- गर्भावस्था और स्तनपान दौरान इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
- जटामांसी का ज़रूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से बचें। नहीं तो यह उल्टी औरदस्त जैसी बीमारियां का कारण बन सकता है।
- यदि आपकी त्वचा संवेदनशील है, तो जटामांसी का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें। अन्यथा एलर्जी का खतरा हो सकता है।
- उच्च रक्तचाप वाले लोगों को भी इसके सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।