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रेबीज के कारण, लक्षण और उपचार

रेबीज के कारण, लक्षण और उपचार

2022-05-24 16:35:13

रेबीज एक विषाणु जनित रोग है। जिसके इलाज में कतई भी देरी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने पर इस बिमारी के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। रेबीज मनुष्यों में संक्रमित पशुओं के काटने या खरोंचने से होती है। आमतौर पर मान्यता है कि रेबीज केवल कुत्तों के काटने से होता है लेकिन ऐसा नहीं है। रेबीज का वायरस, किसी भी गर्म खून वाले जानवर की लार में हो सकता है। खास तौर पर कुत्ते, बिल्ली, बंदर, चमगादड़ आदि जानवरों मे यह वायरस पाया जाता है। इन जानवरों के काटने और खरोंचने के अलावा चाटने पर भी यह वायरस मनुष्य के शरीर में पहुंचकर सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर सकता है। जिससे शरीर को धीरे-धीरे आघात पहुंता है। रेबीज को हिंदी में जलांतक और अलर्क कहा जाता है। आईए बात करते हैं कि रेबीज व्यक्ति को किस प्रकार से प्रभावित करता है? क्या हैं इसके लक्षण, कारण और घरेलू उपचार?

 
रेबीज होने के क्या कारण हैं?

रेबीज लिसा वायरस के कारण होता है। जिसमें रेबीज वायरस पाया जाता है। यह मुख्य रूप से पशुओं की बीमारी है। जो संक्रमित पशुओं से ही मनुष्यों में भी फैल जाती है। यह वायरस संक्रमित पशुओं के लार में रहता है और जब वही संक्रमित जानवर (विशेष रूप से कुत्ते या चमगादड़) मनुष्य को काट लेते हैं तो विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसके अलावा संक्रमित जानवर की लार मनुष्य की आंख, मुंह, नाक या शरीर के किसी घाव के संपर्क में आ जाती है तो भी मनुष्य में रेबीज वायरस पनपने लगता है। जो मनुष्य की लार ग्रंथियों और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।

 
क्या होते हैं रेबीज के लक्षण?

रेबीज के ज्यादातर लक्षण प्रकट होने में कई वर्ष लग जाते हैं। लेकिन इसके प्रारंभिक लक्षण संक्रमित जानवरों के काटने या खरोंचने के बाद 1 से 3 महीनों में प्रकट होने लगते हैं। रेबीज के शुरुआती लक्षण यह हैं की जिस हिस्से पर जानवर काटते या खरोंचते हैं, वहां की मांसपेशियों में सनसनाहट की भावना उत्पन्न होने लगती है। इसके बाद विषाणु शरीर में नसों के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंचने लगते हैं। जिसके बाद निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने लगते हैं;

  • लगातार सिरदर्द होना।
  • बार-बार बुखार आना।
  • अधिक थकावट महसूस होना।
  • मांसपेशियों, जोड़ों में जकड़न और दर्द होना।
  • चिड़चिड़ापन और उग्र स्वभाव होना।
  • लगातार व्याकुल अर्थात परेशान रहना।
  • दिमाग में अजीबोगरीब विचार आना।
  • ठीक से भूख न लगना।
  • मुंह का स्वाद खराब होना।
  • लार और आंसुओं का ज्यादा बनना।
  • तेज रोशनी और आवाज से चिड़न होना।
  • बोलने में तकलीफ होना।
  • व्यवहार में असामान्य परिवर्तन होना।
 
जब संक्रमण बहुत अधिक हो जाता है तो निम्न लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं-
  • वस्तुओं का दो दिखाई देना।।
  • मुंह की मांसपेशियों को घुमाने में परेशानी होना।
  • लार और मुंह में ज्यादा झाग बनना।
  • पीड़िता में पागलपन वाले लक्षणों का दिखाई देना।
 
रेबीज को कैसे रोकें या नियंत्रित करें?
पेट्स (पालतू पशु) वैक्सीनेशन-

कुत्तों, बिल्लियों और बंदर आदि जानवरों का रेबीज के खिलाफ टीकाकरण किया जाना चाहिए।

 
पालतू जानवरों का बाहर जाना सीमित रखें-

पालतू जानवरों को घर के अंदर रखें और बाहर जाने पर उनकी भली-भांति निगरानी करें। जिससे वह जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बच सकें।

 
छोटे पालतू जानवरों को सुरक्षित रखें-

खरगोशों जैसे छोटे पालतू जानवरों को रेबीज के खिलाफ टीका नहीं दिया जा सकता। इसलिए इन जानवरों को घर के अंदर और जंगली जानवरों से बचाकर रखें।

 
जंगली जानवरों की रिपोर्ट करें-

जंगली ​​कुत्ते और बिल्लियों की रिपोर्ट अपने स्थानीय पशु नियंत्रण अधिकारियों को कराएं।

 
जंगली जानवरों से संपर्क न करें-

ऐसे हर जानवर से दूर रहें जो किसी भी प्रकार की बीमारी से ग्रसित दिखाई देता हो।

 
रेबीज का टीकाकरण-

जब किसी ऐसे देश या राज्य में जाना पड़े, जहां रेबीज का खतरा बहुत ज्यादा हो। ऐसे में अपने डॉक्टर की सलाहानुसार रेबीज का टीका लगवाकर ही वहां जाएं।

 
रेबीज के घरेलू इलाज:
टिटनेस का इंजेक्शन-

आमतौर पर यह रेबीज का सरल और शुरुआती इलाज होता हैं। किसी जानवर के काट लेने या रेबीज की पुष्टि होने पर चौबीस घंटे के अंदर टिटनेस का इंजेक्शन लगवा लेना चाहिए जिससे उसका संक्रमण नियंत्रित हो सके।

 
गुनगुने पानी का इस्तेमाल-

किसी भी जानवर के काटने और उसकी लार का शरीर पर लग जाने पर हल्के गुनगुने पानी से प्रभावित हिस्से को अच्छे से धोएं। ऐसा करने से वायरस काफी हद तक दूर हो जाता हैं।

 
कीवी फल-

कीवी फल रेबीज बीमारी में कारगर साबित होता हैं। क्योंकि इस फल में विटामिन सी पाया जाता हैं जो रेबीज में फायदेमंद होता हैं। इसके लिए रोजाना दो से तीन कीवी का सेवन करना चाहिए।

 
जीरा-

कुत्ते या अन्य जानवर के काटने पर जीरा भी काफी असरदार साबित होता है। इसके लिए दो बड़े चम्मच जीरा और बीस काली मिर्च को पीसकर, उसमें हल्का पानी मिलाकर लेप बनाएं और प्रभावित हिस्से पर लगाएं। ऐसा करने से घाव जल्दी भरने में मदद मिलती है।

 
लैवेंडर-

लैवेंडर में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। जो किसी भी प्रकार के घावों में फायदेमंद साबित होते हैं जानवर के काटने हुए हिस्से पर लैवेंडर को पीसकर, लेप करने से भी इंफेक्शन से बचा जा सकता है।

 
पानी और साबुन-

किसी भी प्रकार की बीमारी से ग्रसित जानवर के संपर्क में आने पर सबसे पहले प्रभावित हिस्से को पानी और साबुन से अच्छी तरह धोएं। इसके अलावा जानवर ने काटने और खरोंचने पर बिना देरी किए घाव को साबुन और पानी से धोकर, तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।

 
विटामिन-

रेबीज का इन्फेक्शन होने पर विटामिन युक्त खाद्य पदार्थ बहुत फायदेमंद होते हैं। इसलिए पालक, संतरे का जूस, टमाटर आदि का अधिक मात्रा में सेवन करें|

Disclaimer

The informative content furnished in the blog section is not intended and should never be considered a substitution for medical advice, diagnosis, or treatment of any health concern. This blog does not guarantee that the remedies listed will treat the medical condition or act as an alternative to professional health care advice. We do not recommend using the remedies listed in these blogs as second opinions or specific treatments. If a person has any concerns related to their health, they should consult with their health care provider or seek other professional medical treatment immediately. Do not disregard professional medical advice or delay in seeking it based on the content of this blog.


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