क्या है अमिबायसिस? समझें, इसके लक्षण, इलाज और बचाव को
2022-05-24 13:50:55
अमीबायसिस एक ऐसी बीमारी है, जो घर में किसी को भी सकती है। यह एक ऐसा इनफ़ेक्शन है, जो परजीवी से होता है। असल में अमीबायसिस की बीमारी अमीबा की एक प्रजाति के कारण होती है। जो पेट में पाई जा सकती है। यह 'प्रोटोजोएन एंटामीबा हिस्टोलिटिका' या ई. हिस्टोलिटिका नामक परजीवी की वजह से होता है। इसका मुख्य कारण खराब पानी और साफ-सफाई का अभाव होता है। हालांकि यह रोग किसी को भी हो सकता है, पर ज्यादातर उन लोगों को होता है। जो विकासशील देश में रहते हैं। अत: जहां पर स्वच्छता पर कम ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा यह रोग उन लोगों को भी हो सकता है, जो इन विकासशील देशों में रहकर या घूमकर आए हैं। यह बीमारी इतनी खतरनाक होती है कि इससे मौत भी हो सकती है।
क्या है अमीबायसिस?
अमीबायसिस एक ऐसी बीमारी है, जो एकल-कोशिका परजीवी के कारण होती है। इसे एंटामोइबा हिस्टोलिटिका भी कहा जाता है। यह बीमारी उष्णकटिबंधीय देशों में बेहद आम है। जहां पर अच्छी स्वच्छता नहीं रहती। इसलिए जब कोई व्यक्ति खराब उष्णकटिबंधीय स्थानों की यात्रा करता है, जब कोई व्यक्ति किसी संस्था या जेल जैसी जगह पर खराब सेनेटरी की स्थिति में रहता है, जब कोई व्यक्ति दूसरे के साथ यौन संबंध बनाता है, जब किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है या जब कोई व्यक्ति किसी अन्य चिकित्सा स्थिति से पीड़ित होता है। तो उसे यह बीमारी हो सकती है। अमीबायसिस को अमरबारुग्णता के नाम से भी जाना जाता है।
कैसे होता है अमीबायसिस?
आसानी से फैलने वाले इस संक्रमण में एंट-अमीबा हिस्टोलाइटिका एवं प्रोटोजोन बड़ी आंत को अपना घर बनाकर संक्रमित करके व्यक्ति को बीमार कर देता है। यह एक कोशीय जीवाणु बड़ी आंत के अलावा फेफड़ों, लिवर, हृदय, अंडकोष, मस्तिष्क, वृक्क, अंडाशय और त्वचा आदि में भी पाए जाते हैं।
अमीबायसिस के लक्षण-
- पतले दस्त होना।
- उल्टी होना।
- जी मचलाना।
- पेट फूलना।
- पेट में ऐंठन का दर्द होना।
- परिवर्तित पाखाने की आदत।
- भोजन पश्चात दस्त होना।
- बुखार आना।
- पेट में रुक-रुक कर दर्द होना।
- कब्ज या बारी-बारी से दस्त होना।
- अधिक थकान महसूस होना।
- वजन का एकदम कम हो जाना।
- भूख न लगना।
- अपच एवं वायु-विकार आदि।
अमीबायसिस की जांच-
- अमीबायसिस का पता लगाने के लिए डॉक्टर्स रोगी के स्टूल (मल) सैंपल की जांच करते हैं।
- स्टूल सैंपल के अतिरिक्त पीड़ित व्यक्ति के लिवर फंक्शन की भी जांच की जाती है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि लिवर को कोई नुकसान तो नहीं हुआ।
- आवश्यकता लगने पर डॉक्टर नीडल की मदद से संक्रमण के कारण लिवर में होने वाले घाव की भी जांच करता है। क्योंकि कभी-कभी अमीबायसिस होने पर लिवर में फोड़ा या सिस्ट फटकर पेट, फेफड़ों और हृदय की झिल्ली (यानी पेरिकार्डियम) में चला जाता है। जिससे होने वाली तकलीफ और भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है।
- अंदरूनी अंगों को हानि पहुंचने की संभावना पाए जाने पर डॉक्टर्स रोगी को अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन कराने की सलाह देते हैं।
- इसके अलावा डॉक्टर इंटेस्टाइन या कोलोन टिश्यू में परजीवी की उपस्थिति का पता लगाने के लिए रोगी को कोलोनोस्कोपी के लिए भी बोलते हैं।
अमीबायसिस का इलाज-
इस बीमारी अर्थात अमीबायसिस का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी को किस तरह का संक्रमण है। यदि व्यक्ति को सामान्य संक्रमण है तो डॉक्टर उसे 10-12 दिन की दवा दे देते हैं। लेकिन यह परजीवी यदि लिवर में फोड़ा पैदा कर दे तो रोगी को 15-20 दिनों या इससे भी ज्यादा तक दवा खानी पड़ सकती है। वहीं, अगर फोड़े में पस (मवाद) पड़ जाए तो उसे डॉक्टर सिरिंज की मदद से निकालते हैं। लेकिन आंतों में अगर अमीबिक अल्सर फट जाए, तो यह सारे पेट में फैल जाता है। जिससे बाद सर्जरी भी करनी पड़ सकती है।
अमीबायसिस से बचाव-
- सब्जियों और फलों को अच्छी तरह से धोकर उपयोग में लाएं।
- कुकवेयर को अच्छी तरह से धोकर इस्तेमाल करें।
- पानी को उबालकर ही प्रयोग करें।
- सड़क किनारे बिकने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करने से बचें।
- टॉयलेट से आने के बाद और बच्चों के डाइपर बदलने के बाद गर्म पानी से अच्छे से हाथों को धोएं।
- टॉयलेट और टॉयलेट सीट की नियमित सफाई करें।
- तौलिया या फेसवाशर्स को एक-दूसरे से शेयर करने से बचें।
अमीबायसिस के कुछ घरेलू उपचार-
- नारियल पानी का सेवन करें।
- काली चाय बनाकर पिएं।
- जाम (अमरूद), पपीते जैसे फलों का सेवन करें।
- अमीबायसिस में बेल और अखरोट का सेवन करना लाभकारी साबित होता है।
- पेयजल में क्लोरिवेट दवा डालकर या पानी को उबालकर ही प्रयोग में लाएं।
- आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक की सलाह लें।