क्या है प्राकृतिक चिकित्सा या नेचुरोपैथी?
2022-05-25 18:14:15
प्राकृतिक चिकित्सा को अंग्रेजी में नेचुरोपैथी (Naturopathy) कहते हैं। इस चिकित्सा पद्धति के तहत प्रकृति के पांच मूल तत्वों- पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु की मदद से रोगों का उपचार किया जाता है। इस चिकित्सा प्रणाली का उद्देश्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के प्रयोग से रोगों का मूल कारण समाप्त करना है। यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है बल्कि शरीर में उपस्थित प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक संपूर्ण जीवन-शैली है।
प्राचीन वेदों और ग्रंथों में भी नेचुरोपैथी (Naturopathy) का वर्णन मिलता है। पुराने समय में नेचुरोपैथी (Naturopathy) की मदद से ही रोगों को ठीक किया जाता था। नेचुरोपैथी (Naturopathy) की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस उपचार पद्धति से शरीर को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। इस प्राकृतिक चिकित्सा के दौरान न सिर्फ रोगों को सही किया जाता है। अपितु पंच तत्व का उचित प्रयोग करके व्यक्ति को रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रदान की जाती है।
प्राकृतिक चिकित्सा के मूल सिद्धांत–
- सभी रोगों के कारण और उनकी चिकित्सा एक ही है। चोट, घाव और वातावरण जन्य परिस्थितियों (Atmospheric conditions) को छोड़कर सभी रोगों का मूलकारण और इलाज एक ही होता है।
- शरीर में विजातीय (Heterogeneous) पदार्थो का जमाव रोगों को जन्म देता है और शरीर से उनका निष्कासन ही चिकित्सा है।
- रोग का मुख्य कारण जीवाणु नहीं हैं। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोग जीवाणु के कारण पैदा नहीं होते। जीवाणु शरीर पर तभी हमला करते हैं,
- जब शरीर में विजातीय पदार्थो का जमाव हो और उनके पनपने लायक वातावरण हो। अतः रोगों का मूल कारण विजातीय पदार्थ हैं, जीवाणु नहीं। जीवाणु किसी रोग का द्वितीय कारण है।
- शरीर के स्व-उपचारात्मक प्रयास होने के कारण तीव्र रोग हमारे शत्रु नहीं मित्र हैं। जीर्ण रोग (स्थायी बीमारी) तीव्र रोगों के गलत उपचार से पैदा होते हैं ।
- प्रकृति स्वयं सबसे बड़ी चिकित्सक है। शरीर में स्वयं को रोगों से बचाने और अस्वस्थ होने पर दुबारा स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता रखती है।
- प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार रोग का नहीं बल्कि रोगी का किया जाता है।
- इस प्राकृतिक चिकित्सा में जीर्ण रोग (Chronic disease) से ग्रस्त रोगियों का कम अवधि में भी सफल इलाज संभव है।
- प्राकृतिक चिकित्सा की सहायता से शरीर में दबे रोग भी उभर कर ठीक हो जाते हैं।
- इस प्राकृतिक चिकित्सा में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक (नैतिक) और आध्यात्मिक चारों पक्षों की चिकित्सा एक साथ संभव है ।
- इसमें विशिष्ट अवस्थाओं का इलाज करने के स्थान पर पूरे शरीर की चिकित्सा की जाती है।
- प्राकृतिक चिकित्सा बिना औषधियों के की जाती है। इसके मुताबिक ‘आहार ही औषधि’ है ।
प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा ठीक होने वाले रोग;
- दमा (Asthma)
- कब्ज (Constipation)
- पक्षाघात (Paralysis)
- पोलियो (Poliomyelitis)
- उच्च रक्ताचाप (Hypertension)
- निम्न रक्ताचाप – (Hypotension)
- सोरायसिस (Psoriasis)
- उलझन/व्याकुलता (Anxiety Neurosis)
- मधुमेह (Diabetes)
- अति अम्लता (Hyperacidity)
- खाज (Scabies)
- प्रत्यूर्जता संबंधी चर्म रोग (Allergic Skin Diseases)
- दाद (Eczema)
- पीलिया (Jaundice)
- साइटिका (Sciatica)
- सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस (Cervical Spondylosis)
- मुख पक्षाघात (Facial Paralysis)
- श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)
- प्लीहा वृद्धि (Splenomegaly)
- चिरकारी व्रण (Chronic Non-Healing Ulcers)
- कुष्ठ रोग (Leprosy)
- संधिवात (Rheumatoid Arthritis)
- जठर शोथ (Gastritis)
- मोटापा (Obesity)
- मनोकायिक विकार (Psycho-somatic disorders)
- यकृत सिरोसिस (Cirrhosis of liver)
- गठिया (Gout)
- अस्टियो-अर्थराइटिस (Osteo -Arthritis)
प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियां;
आहार चिकित्सा–
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार आहार ही मूलभूत ‘औषधि’ है। इसलिए आहार को उसके प्राकृतिक रूप में ही लेना चाहिए। मौसम के ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित अनाज अवश्य खाने चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए हमारा भोजन 20 प्रतिशत अम्लीय (acidic) और 80 प्रतिशत क्षारीय (Alkaline) होना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के इच्छुक लोगों को संतुलित भोजन ही लेना चाहिए।
उपवास चिकित्सा–
स्वस्थ्य रहने के प्राकृतिक तरीकों में उपवास को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार उपवास पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम की प्रक्रिया है। क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान पाचन प्रणाली विश्राम अवस्था में होती है। मस्तिष्क एवं शरीर के विकारों को दूर करने के लिए उपवास एक उत्तम चिकित्सा है। इससे कब्ज, पेट में गैस, पाचन संबंधी रोग, दमा, मोटापा, उच्च रक्तचाप और गठिया जैसे रोगों का प्रभाव कम किया जा सकता है।
मिट्टी चिकित्सा–
मिट्टी चिकित्सा का प्रयोग शरीर को शीतलता प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह बहुत ही सरल एवं प्रभावी चिकित्सा पद्धति है। इसके लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी साफ-सुथरी और जमीन से तकरीबन 3-4 फीट नीचे की होनी चाहिए। मिट्टी शरीर के दूषित पदार्थो को शरीर के बाहर निकाल देती है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में मुख्य रूप से मिट्टी की पट्टी और मिट्टी स्नान प्रक्रियाएं आती हैं। इससे कब्ज, तनावजन्य सिरदर्द, उच्च रक्तचाप और चर्मरोग जैसी बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।
जल चिकित्सा–
जल चिकित्सा एक उपचार पद्धति है। जिसमें पानी से इलाज किया जाता है। इसमें ठंडा और गर्म पानी या भाप का उपयोग करके शरीर के दर्द से राहत दिलाने और स्वास्थ्य को बनाए रखने वाले कार्य किए जाते हैं। जल चिकित्सा से रूमेटिक बुखार (गले से संबंधित बैक्टीरियल संक्रमण), अर्थराइटिस (गठिया) और जोड़ों की परेशानी का उपचार किया जा सकता है। यह उपचार पद्धति सामान्य रूप से लेकर हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपी विभाग तक की जाती है। जल चिकित्सा को अंग्रेजी में ‘हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy)’ कहते हैं।
मसाज चिकित्सा–
जितना महत्व आधुनिक दिनचर्या में आहार और व्यायाम का है। उतना ही महत्व मसाज का भी है। तेल, क्रीम या किसी अन्य चिकने पदार्थ (Greasy substance) को बॉडी पर हल्के हाथ से रगड़ना या मलना, मसाज (मालिश) कहलाता है। इस चिकित्सा में शरीर की मांशपेशियों और नरम ऊतकों को हाथों से आराम दिया जाता है। मालिश करने से मांशपेशियों के दर्द में आराम मिलता है और रक्त परिसंचरण में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मसाज करने से त्वचा और मस्तिष्क संबंधित बीमारियां कम होती हैं।
सूर्य किरण चिकित्सा–
सूर्य से प्राप्त होने वाली सतरंगी (बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल) किरणों के अलग-अलग चिकित्सीय महत्व हैं। स्वस्थ रहने तथा रोगों के विभिन्न उपचार में रंग प्रभावी ढंग से कार्य करते है। सूर्य किरण चिकित्सा स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होती है। इस चिकित्सा पद्धति में 45 से 60 दिन तक सूर्य के प्रकाश से गर्म हुए तेल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्री से विभिन्न रोगों का उपचार किया जाता है। पानी में रंगों को डालकर धूप में गर्म किया जाता है जिससे रोगों का उपचार होता है। इस उपचार से रक्त संचार तेज होता है। धूप से शरीर में विटामिन-डी बनता है। जो लकवा, गठिया, टीबी, दमा, चर्म रोग आदि बीमारियों में लाभदायक होता है।
वायु चिकित्सा–
इस चिकित्सा में वायु स्नान के माध्यम से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि स्वच्छ व ताजी हवा अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। प्रतिदिन 20 मिनट या उससे अधिक समय के लिए प्रत्येक व्यक्ति को वायु स्नान करना चाहिए।
वायु चिकित्सा की प्रक्रिया में, व्यक्ति को रोज़ाना कपड़े उतारकर या हल्के कपड़े पहनकर एकांतयुक्त ऐसे साफ-सुथरे स्थान पर चलना चाहिए, जहां पर्याप्त ताजा हवा उपलब्ध हो। गठिया, घबराहट, त्वचा व मानसिक विकारों के मामलों में वायु चिकित्सा लाभदायक होती है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा–
एक्यूप्रेशर (Naturopathy) एक प्राचीन उपचार पद्धति है। इसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव डालकर बीमारी को ठीक करने की कोशिश की जाती है। हमारे शरीर के मुख्य अंगों के दबाव केंद्र (Pressure Points) पैरों के तलवे और हथेलियों में होते हैं।
इन दबाव केंद्रों की मालिश (Massage) करने पर प्रेशर पॉइंट जिस अंग को प्रभावित करता है उससे जुड़ी बीमारी में राहत मिलती है। इन विशेष बिन्दुओं को ‘एक्यू बिन्दु’ (Acupressure points) कहा जाता है। उदाहरण के लिए- बाएं पैर में हृदय (Heart) का प्रेशर पॉइंट होता है और इस बिंदु पर हल्की मालिश करने से हृदय से जुड़ी बीमारी में आराम मिलता है।
एक्यूपंक्चर चिकित्सा–
एक्यूपंक्चर (Naturopathy) उपचार पद्धति में शरीर के विशिष्ट बिन्दुओं पर बारीक सुइयां चुभोकर एवं हिलाकर दर्द से राहत दिलाई जाती है। इसकी मदद से शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह को सही किया जाता है। परंपरागत चीनी चिकित्सा सिद्धांत के मुताबिक, एक्यूपंक्चर (Naturopathy) बिंदु शिरोबिंदुओं पर स्थित हैं। जिसके सहारे क्यूई (QI) नामक महत्वपूर्ण ऊर्जा शरीर में बहती है। एक्यूपंक्चर चिकित्सा का उपयोग मुख्य रूप से दर्द कम करने के लिए किया जाता है।
चुंबक चिकित्सा–
चुंबक थेरेपी या मेग्नेट थेरेपी एक प्रकार की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है। जिसमें चुंबकों के उपयोग द्वारा इलाज किया जाता है। चुंबकीय चिकित्सा को हर आयु के व्यक्ति के लिए गुणकारी माना गया है। चुंबकीय चिकित्सा से शरीर के रक्त संचार में सुधार आता है।कुछ समय तक चुंबक को लगातार शरीर के संपर्क में रखने पर शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। जिससे शरीर की सभी क्रियाएं सुधर जातीं हैं और रक्त संचार बढ़ जाता है।