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यारो क्या है? जानिए, इसका आयुर्वेदिक महत्व, लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

यारो क्या है? जानिए, इसका आयुर्वेदिक महत्व, लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

2022-09-03 00:00:00

यारो एक बारहमासी बड़ा फूल वाला पौधा है। जिसका वैज्ञानिक नाम अचिलिया मिलेफोलियम (Achillea millefolium) है। इसके फूल पीले सफेद रंग और गुच्छों के रूप में व्यवस्थित होते हैं। यारो को प्राचीन काल से स्वास्थ्य लाभों के लिए औषधि के तौर उपयोग किया जाता रहा है। इसे व्यापक रूप से नाकबंद पौधे के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि इसकी पत्तियों में रक्त को गाढ़ा करने और नकसीर को नियंत्रित करने की क्षमता होती है।

आयुर्वेद में यारो का महत्व-

आयुर्वेद में, यारो अपने ज्वरनाशक और स्वेदजनक गुणों के कारण लोकप्रिय है। यह शरीर में पसीना उत्पन्न करके बुखार को नियंत्रित करने में सहायक होता है। इसके एंटीस्पास्मोडिक गुणों के कारण, इसका उपयोग दस्त के इलाज के लिए भी किया जाता है। यारो के पत्तों का सेवन इसके कार्मिनेटिव गुणों के कारण पाचन में भी मदद करता है।

यारो के पौष्टिक तत्व-

यारो एक शक्तिशाली चिकित्सीय जड़ी-बूटी है। जिसमें विटामिन, खनिज, फ्लेवोनोइड और एंटी ऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं। यारो आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे खनिज तत्वों एवं विटामिन ए और सी से भरपूर होता है।

यारो के स्वास्थ्य लाभ-

  • घाव भरने के लिए-यावसा का उपयोग रक्त स्राव घावों, निशान और अन्य त्वचा की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। यारो के ताजे पत्तों को किसी कट या घाव के चारों ओर लपेटा या बांधा जाता है। इसके उपचार गुण उपचार प्रक्रिया को तेज करने में मदद करते हैं। यारो का तेल रोगाणुरोधी और ऑक्सीकरण रोधी गुणों से भरपूर है, जो कई तरह के त्वचा रोगों के इलाज में फायदेमंद होता है। इसके अलावा, यारो के फूलों के काढ़े से सफाई करने से एक्जिमा के उपचार में लाभ होता है।
  • तनाव को दूर करने में सहायक-यारो में मौजूद फ्लेवोनोइड्स और शक्तिशाली एल्कलॉइड अवसाद और चिंता के लक्षणों को दूर करने में मदद करते हैं। यारो में पाए जाने वाले फाइटोन्यूट्रिएंट कॉर्टिकोस्टेरोन (एक हार्मोन जो तनाव के साथ बढ़ता है) के स्राव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए इससे बने तेल को अरोमाथेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • सूजन को कम करने में सहायक-आयुर्वेदिक चिकित्सा में यारो को त्वचा और यकृत की सूजन को कम करने के लिए जाना जाता है। त्वचा के संक्रमण, उम्र बढ़ने के लक्षण, फैटी लीवर की बीमारी और बुखार के इलाज के लिए यारो टी लाभकारी होती है।
  • मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद-यारो मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के लिए प्राकृतिक उपचारक है। यह मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसे मस्तिष्क विकारों को ठीक करने में मदद करता है। दरअसल इस जड़ी-बूटी में एंटी सिजुरे (anti seizure) प्रभाव पाया जाता है, जो मिर्गी का इलाज करता है। इसलिए इस हर्बल चाय को अपने आहार में शामिल करने से याददाश्त में भी सुधार होता है।
  • पाचन तंत्र के लिए लाभकारी-यारो का उपयोग इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) की समस्या जैसे पेट में दर्द, दस्त, सूजन और कब्ज आदि के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें मौजूद फ्लेवोनोइड्स और एल्कलॉइड पाचन समस्याओं से राहत प्रदान करता है। साथ ही यह आंत के कार्यप्रणाली में सुधार करता है।

यारो का उपयोग-

  • यारो का सेवन मुख्य रूप से चाय या काढ़े के रूप में किया जाता है।
  • इसके पत्तियों से बने अर्क या तेल को अरोमा थेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों को पीसकर पेस्ट बनाकर घावों पर लेप किया जाता है। .
  • यारों की पत्तियों को दातों के दर्द को दूर करने के लिए चबाया जाता है।
  • यारो की पत्तियों और फूलों को सुखाकर सुगंधित मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

यारो का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां-

वैसे तो यारो का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। लेकिन इसका अधिक मात्रा या लंबे समय तक सेवन दुष्प्रभाव का कारण बन सकते हैं। इसलिए सीमित मात्रा में ही इसका सेवन करें। आइए, चर्चा करते हैं इससे होने वाले कुछ अल्पकालिक दुष्प्रभाव के बारे में:

  • गर्भावस्था के दौरान यारो के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि यह मासिक धर्म चक्र को प्रभावित करता है। इस प्रकार यह गर्भपात का कारण बन सकता है।
  • यह रक्त के थक्के को धीमा करता है। इसलिए ब्लीडिंग डिसऑर्डर वाले लोगों में यारो के सेवन से ब्लीडिंग का खतरा बढ़ सकता है।
  • इसके प्रति संवेदनशील लोगों में एलर्जी का कारण बनता है। यदि किसी को इससे एलर्जी है, तो यारो का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  • ड्रोसिनेस्स (असामान्य रूप से नींद आना)।
  • त्वचा में जलन।
  • मूत्र उत्पादन में वृद्धि।

यह कहां पाया जाता है?

यारो उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। भारत में यह मुख्य रुप से जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है।

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